शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010
नेपाल में पानी का सही बंटवारा
नेपाल में मौजा का अर्थ है गांव, जबकि कूलो नहर को कहते हैं। इसका अर्थ हुआ कि छत्तीस मौजा कूलो से यहां के 36 गांवों में तिनाऊ नदी का पानी पहुंचाया जाता है। हालांकि यह परंपरा छत्तीसमौजा कूलो के नाम से दुनिया भर में मशहूर है लेकिन दरअसल यहां पानी के बंटवारे की दो परंपराएं एक साथ काम करती हैं। पहली छत्तीस समौजा तथा दूसरी सोलहमौजा कूलो। यानी पहली से 36 गांवों तक पानी पहुंचता है तो दूसरी से 16 गांवों तक। अब, आबादी बढ़ने व गांवों के पुनर्गठन होने के कारण पहली से 59 गांवों में, जबकि दूसरी से 33 गांवों में पानी पहुंचता है। दोनों से कुल मिलाकर तकरीबन 6000 हैक्टेयर क्षेत्र में पानी का इस्तेमाल होता है। अगर आबादी के नजरिए से देखें तो लाभान्वितों की संख्या 53000 परिवारों तक पहुंचती है। इस व्यवस्था की खास बात यह है कि इसकी कल्पना करने, इसे लागू करने और अब तक कायम बनाए रखने में सरकार की कभी कोई भूमिका नहीं रही। यह तो यहां के समाज की एकता, समझ और दूरदर्शिता थी जो आज भी बदस्तूर जारी है। जो समस्या पर बात करने से ज्यादा समस्या के समाधान के मौके तलाशने का अवसर देता है। हमारे यहां पानी के बंटवारे को लेकर अक्सर नल-टंटों से लेकर गांव-शहरों और राज्यों के बीच तक झगड़े होते रहते हैं। कई बार तो गली-मोहल्लों या खेतों में इसी वजह से लोगों की जान भी चली जाती है। लेकिन हमारे पड़ोसी देश नेपाल में पानी के बंटवारे को लेकर पिछले डेढ़ सौ सालों से एक ऐसी परंपरा चली आ रही है जो न केवल लोगों के आपसी भाईचारे को बढ़ाती है बल्कि उनकी जरूरतों के मुताबिक पानी का सही बंटवारा भी करती है। 'छत्तीस मौजा कूलो' के नाम से जानी जाती यह परंपरा नेपाल के तराई में बसे रूपनदेही जिले में आज भी जारी है। संभवत: पानी के मुद्दे पर तीसरे विश्व युध्द की आशंका वाले वर्तमान युग में इस क्षेत्र में पानी का इतना शांत और न्यायोचित वितरण इस लिए हो पाता है कि दुनिया भर में शांति का संदेश देने वाले गौतम बुध्द का जन्म स्थल 'लुंबिनी' यहां से महज 30 किलोमीटर दूर है। http://hi.shvoong.comPlease read this Article and send to your friends.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें