वर्तमान हालातों में यह स्पष्ट हो गया कि सीबीआइ की हर जांच व गतिविधि को सरकार प्रभावित करती है। ऐसे में सीबीआइ की साख धूमिल हुई और उसकी जांच को भी निष्पक्ष नहीं माना जा सकता। हालाँकि खुलासा करके सीबीआइ ने अपने दाग धोने के प्रयास किये। पर, यह दाग अधिवक्ता के काले कोट पर लगे दाग की तरह नहीं; बल्कि अधिवक्ता के सफेद शर्ट पर लगे दाग की तरह है जो दीखता है, दीखता रहेगा।
विधि मंत्री अश्विनी कुमार
सोमवार को एक और सच देश के सामने आया। इस सच ने कई दिग्गजों के झूठ को बेनकाब कर दिया। सच-दर-सच उद्घाटित होते जा रहे हैं और लगातार मौन धारण किये रहने वाले प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की सरकार कटघरे में नजर आ रही है। सोमवार वाला सच ऐसा है जिसमें सीधा मनमोहन सिंह का कार्यालय भी कटघरे में दीख रहा है। इसमें केन्द्रीय मंत्रियों के साथ-साथ उच्च पदस्थ प्रशासनिक व न्यायिक अधिकारियों की भी पोल-पट्टी खुल गई है। यह खुलासा किया है केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) के निदेशक रंजीत सिन्हा ने। सिन्हा ने सर्वोच्च न्यायालय में उन नामों को उजागर किया जिन्होंने कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाले की जाँच रपट में रद्दोबदल करवाए। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय ने 12 अप्रैल को सीबीआइ से पूछा कि कोयला घोटाले की रपट किसी से साझा तो नहीं की गई। 26 अप्रैल को रंजीत सिन्हा ने न्यायालय को बताया कि रपट को प्रधान मंत्री कार्यालय, विधि मंत्रालय व कोयला मंत्रालय से साझा कर उसमें फेर-बदल किये गए। तब सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करने वालों के नाम बताने का आदेश दिया। उसी आदेश का पालन करते हुए जब सोमवार को सीबीआइ ने नामों की घोषणा की तो कई दिग्गजों के झूठ पकड़े गए और केन्द्रीय राजनीति में भूचाल आ गया। वास्तव में कोयला महाघोटाला एक लाख 76 हजार करोड़ रुपये का है। सीबीआइ के इस खुलासे ने सीने तक भ्रष्टाचार में डूबी केन्द्र सरकार को अब गर्दन तक डूबो दिया है। विपक्षी भारतीय जनता पार्टी चाहती है कि सरकार की गर्दन भी डूब जाए, प्रधान मंत्री त्याग पत्र दे दें।
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा व विधि मंत्री अश्विनी कुमार
सीबीआइ ने सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की खण्डपीठ को एक शपथ पत्र के माध्यम से विधि मंत्री अश्विनी कुमार, अटार्नी जनरल जीई वाहनवती, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरीन पी. रावल, प्रधान मंत्री कार्यालय और इस कार्यालय के संयुक्त सचिव शत्रुघ्न सिंह, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव अजय कुमार भल्ला के नाम बताए। कोयले के रंग में इन सबके चेहरे काले नजर आने लगे हैं। यह कालापन और गहराएगा जब कल सर्वोच्च न्यायालय इसपर अगली सुनवाई करेगा। हालाँकि इस मामले में सीबीआइ निदेशक ने न्यायालय से बिना शर्त्त क्षमा मांगी कि उन्होंने नियमित सुनवाई के दौरान ये खुलासे नहीं किये। यदि न्यायालय यह स्पष्टीकरण नहीं मांगता तो इस गंभीर बात को रंजीत सिन्हा हजम ही कर जाते। ऐसे में वे किस हद तक क्षमा के पात्र हो सकते हैं? वैसे चर्चित अधिवक्ता प्रशान्त भूषण के अनुसार, अटार्नी जनरल वाहनवती पर कोर्ट के अवमानना का मामला चलना चाहिए; क्योंकि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकार किया था कि वे सीबीआइ की रपट को देखे ही नहीं जबकि वे रद्दोबदल वाली बैठक में शामिल थे। रद्दोबदल के लिए 3 बैठकें हुईं- विधि मंत्री के कार्यालय में, अटार्नी जनरल के साथ व सीबीआइ कार्यालय में। सीबीआइ के इस खुलासे के केन्द्र में विधि मंत्री अश्विनी कुमार हैं। यह जाहिर हो गया है कि अबतक अश्विनी झूठ बोलते रहे। यदि वे सच बोल रहे थे तो खुलासे के तुरंत बाद बचाव के उपाय पर मंथन करने प्रधान मंत्री के पास क्यों गए? वास्तव में अश्विनी ने सीबीआइ की रपट में से पूरा एक अवतरण ही निकलवा दिया। क्या रद्दोबदल हुए यह भी न्यायालय जानना चाहता है जिसे सीबीआइ बन्द लिफाफे के माध्यम से अवगत कराएगी। मतलब यह कि केन्द्र सरकार की परेशानी को सीबीआइ अभी और बढ़ाएगी।
अब तक राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा केन्द्र सरकार पर यह आरोप लगाया जाता रहा कि सीबीआइ को उसने कठपुतली बनाकर रखा है। इसलिए सरकार के साथ जनलोकपाल की बैठकों में अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सीबीआइ को सरकार के नियंत्रण से मुक्त कर जनलोकपाल के अधीन लाने की मांग करते रहे। पर, सरकार अन्त तक नहीं मानी। वर्तमान हालातों में यह स्पष्ट हो गया कि सीबीआइ की हर जांच व गतिविधि को सरकार प्रभावित करती है। ऐसे में सीबीआइ की साख धूमिल हुई और उसकी जांच को भी निष्पक्ष नहीं माना जा सकता। हालाँकि खुलासा करके सीबीआइ ने अपने दाग धोने के प्रयास किये। पर, यह दाग अधिवक्ता के काले कोट पर लगे दाग की तरह नहीं; बल्कि अधिवक्ता के सफेद शर्ट पर लगे दाग की तरह है जो दीखता है, दीखता रहेगा। इस पूरे मामले में एक बार फिर प्रधान मंत्री ने मौन साध रखा है। हालाँकि कोयले की कालिख उनके कार्यालय पर भी लगी है। इस बीच काँग्रेस एक बार फिर मनमोहन सिंह की व्यक्गित इमानदारी की दुहाई देती हुई भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगी है। उधर मुख्य विपक्षी भाजपा संसद के दोनों सदनों को चलने नहीं दे रही है। वह प्रधान मंत्री, विधि मंत्री व रेल मंत्री के त्याग पत्र से कम पर फिलहाल मानने के मूड में नहीं है। इस बीच आपके साथ हम भी प्रतीक्षा करते हैं 8 मई के सर्वोच्च न्यायालय के रुख का।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें