शीतांशु कुमार सहाय
सुनी-सुनायी बातों के आधार पर बिना सन्दर्भों को पढ़े-समझे ही किसी के बारे में अवधारणा बना ली जाती है। यह बड़ा आसान है और इन दिनों अधिकतर ऐसा ही हो रहा है। कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अल्पज्ञानियों के वक्तव्यों या अल्पज्ञों के लिखितनामे के अनुसार अपनी अवधारणा बना लेते हैं। अधिकतर लोग उक्त अवधारणा को ही आधार बनाकर श्रीकृष्ण के बारे में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। आज जन्माष्टमी के पावन अवसर पर मनन करने का दिन है, श्रीकृष्ण को जानने-समझने का मौका है। कोई उन्हें चोर कहते हुए स्वयं भी ‘चोरी’ करता है और अन्ततः अपने को उन का भक्त भी बताता है। कोई उन्हें धूर्त्त बताते हुए महाभारत के प्रसंग का सन्दर्भ भी देता है। दो कदम आगे बढ़कर कोई 'भक्त' तो भगवान श्रीकृष्ण को भयानक षड्यन्त्रकारी बताने से भी गुरेज नहीं करता है। उन पर बहुपत्नीवाद का भी आरोप लगाया जाता है। साथ ही रासलीला के बहाने उन के चरित्र पर भी अँगुली उठती रही है। ऐसे आरोप लगाने वाले भी अन्ततः श्रीकृष्ण को भगवान मानते हैं और उन की आराधना करते हैं। पर, आवश्यक है प्रामाणिक ग्रन्थों के अध्ययन कर सच को जानने की; ताकि ऐसे विरोधाभास से बच सकें।
युग-गणना के अनुसार, तीसरे युग द्वापर में विष्णु ने ही श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया। वह द्वापर का अन्तिम चरण था। उन के प्रस्थान के तत्काल बाद ही काल परिवर्तन हुआ और वर्तमान कलियुग का प्रवेश हुआ। इसलिए उस समय के अधिकतर विचार आज की ही तरह के प्रतीत होते हैं। आम तौर पर एक युग में लोग के विचार समान होते हैं। साथ ही युग-सन्धि के समय का विचार अगले युग के विचार से मेल खाते हैं। यही कारण है कि श्रीकृष्ण के विचार वर्तमान विचार से मेल खाते हैं और उन की कारगुजारियों को सर्वाधिक आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। उन के जीवन की शुरुआत ही माखन चोरी से सम्बद्ध है। यह प्रवृत्ति लड़कपन की है। चूँकि वह सन्धि युग का काल था और कलियुग आने वाला था, लिहाजा उन्होंने माखन चोरी के माध्यम से सन्देश दिया कि अब यह प्रवृत्ति बढ़ेगी अतः सम्पत्ति की सुरक्षा की जानी चाहिये। मक्खन खाकर भी यह कहना कि उन्होंने खाया नहीं, यह विदित करता है कि आने वाले समय में झूठ का बोलवाला होगा। लोग सहज ही झूठ बोलेंगे और बच्चों में यही प्रवृत्ति डालेंगे। झूठ बोलना भी हास्य का पर्याय हो जायेगा। सच बोलने वाले घट जाएंगे। सच को भी प्रमाण की आवश्यकता होगी मगर झूठ बोलने या आरोप लगाने के लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं। क्या इन दिनों ऐसा नहीं हो रहा? यों उन्होंने एक दिन युद्ध के समय अपनी शक्ति से धुंध उत्पन्न कर सूर्य को ढँका और एक विशेष योद्धा को मरवाया। इस प्रकरण में भगवान श्रीकृष्ण पर षड्यन्त्र का आरोप लगाया जाता है। यहाँ इस रहस्य से पर्दा उठाया गया है कि जो इस भौतिक आँखों से दीखता है वह सच नहीं भी हो सकता है। विश्वास करने से पहले सच को भी परख लें। दृष्टि-भ्रम कभी भी और कहीं भी हो सकता है। फर्श की जगह जल और जल की जगह फर्श का आभास हुआ था उस दुर्योधन को जो ज्ञान-विज्ञान में माहिर ही नहीं; बल्कि साँस लिये बिना जल में रहने का अभ्यस्त भी था। मतलब यह कि प्राणायाम में पूर्णतः निपुण था। जल से इतनी अभिन्नता के बाद भी दुर्योधन जल को पहचानने में विफल रहा। अपने ज्ञान पर अतिविश्वसनीसता घातक है। सर्वज्ञ होने के बावजूद सन्दीपन ऋषि से ६४ कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर उन्होंने गुरु की महत्ता कायम रखी। महाभारत का युद्ध टालने का भी उन्होंने भरसक प्रयास किया। राजनीति के ६ अंगों-- सन्धि, विग्रह, यान, आसन, द्वैध व आश्रय के अनुसार समझौते का भरपूर प्रयास किया पर युद्धोन्मादी कौरव नहीं माने।
श्रीकृष्ण पर आयत होता है कि वे बहुपत्नीवादी थे। उन की १६,१०८ रानियों में ८ पटरानियाँ थीं। वास्तव में तत्कालीन एक शासक (कंस) व्यभिचारी था जो युवतियों से दुष्कर्म कर उन्हें कारागार में डाल देता था। कंस का वध करने के बाद सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए उन सभी महिलाओं को मुक्त कर श्रीकृष्ण ने पति के रूप में अपना नाम दिया। चूँकि महाभारत के पश्चात् पुरुषों की संख्या काफी घट गयी अतः उन्होंने सभी रानियों से १०-१० पुत्र प्राप्त किये। ये सभी प्रजनन अलैंगिक थे जिसे काल्पनिक नहीं कहा जा सकता। परखनली शिशु की उत्पत्ति अलैंगिक प्रजनन का ही रूप है। यों हजारों असहाय महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो पायी।
रासलीला के कारण उन पर कामुकता फैलाने का आरोप लगाया जाता है। वास्तव में रासलीला के कई गूढ़ार्थ हैं। गोपबालाओं के साथ उन का नृत्य यह बताने के लिए पर्याप्त है कि जो लोकप्रिय होते हैं, उन के चाहने वाले उन की यादों के साथ हँसते हैं, बोलते हैं, नाचते हैं, गाते हैं और न जाने क्या-क्या करते हैं! ऐसी स्थिति में जब गोकुल से पलायन कर चुके श्रीकृष्ण की यादों में ही जीवन गुजारने का निर्णय लेती हैं गोपिकाएँ तो उन्हें समझाने आते हैं उद्धव। यों उद्धव को रासलीला व प्रेम का सच्चा अर्थ समझ में आता है। इस प्रकरण को पढ़ने वाले श्रीकृष्ण पर कामुकता फैलाने का आरोप नहीं लगाते।
भगवान श्रीकृष्ण ने ‘श्रीमद्भग्वद्गीता’ का ऐसा दिव्य सन्देश दिया जो मानव जीवन का प्रायोगिक सत्य उद्घाटित करता है। आत्मान्वेषण से समस्त कार्य सम्भव हैं जो ‘श्रीमद्भग्वद्गीता’ के गहन अध्ययन-मनन-चिन्तन से सम्भव है। योगेश्वर श्रीकृष्ण को कोटिशः नमन!
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