मेरे पौने तीन वर्ष के पुत्र अभ्युदय ने कुछ आड़ी-तिरछी रेखाएँ खींची तो अक्षर बन गए। इन अक्षरों में अगणित शब्द छिपे हैं। किसी की खुशी तो किसी का गम छिपा है। किसी की सफलता तो किसी को मायूस कर देने वाली असफलता छिपी है। इन्हीं के माध्यम से अध्यात्म या विज्ञान के राज उजागर होते हैं और दुराचारियों-घोटालेबाजों के राज छिपाए भी जाते हैं। जो चाहिये, वह मिलेगा इन अक्षरों से।
मित्रों! चुनिये अपने-अपने हिस्से की खुशी और सफलता.....और बस चल पड़िये आगे जीवन की डगर पर।
भेंट कीजिये अभ्युदय से और कीजिये स्वीकार मेरा नमस्कार!
-शीतांशु / SHEETANSHU
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