-शीतांशु कुमार सहाय/ SHEETANSHU KUMAR SAHAY
नववर्ष 2014 के प्रथम दिवस में नवीन उत्साह और नये स्वप्नों के साथ आपका स्वागत है! ऐसे-वैसे जैसे भी हो, वर्ष 2013 बीत ही गया। नूतन उल्लास के साथ आया है 2014 जिसमें कई हसीन सितारे जड़े हैं। उन सितारों को पाने लिए, उनकी चमक-दमक को आत्मसात् करने के लिए, उसके प्रकाश से विकास का पथ प्रशस्त करने के लिए प्रयत्न तो करना ही पड़ेगा। चूँकि प्रत्येक क्षेत्र में भीड़ है, कहीं अधिक तो कहीं कम; लिहाजा लक्ष्योन्मुखी प्रयत्न करना पड़ेगा। यह प्रयत्न प्रतियोगितात्मक हो, प्रतिद्वन्द्वितात्मक नहीं। किसी से प्रतियोगिता करने का मतलब है कि हमारा प्रयत्न अपने प्रतियोगी की अपेक्षा अधिक सशक्त और अधिक लक्ष्योन्मुखी होना चाहिये। ऐसा होगा तभी सफलता मिलेगी। ऐसी सफलता स्वस्थ परम्परा का परिचायक है। प्रतियोगिता करने से परिश्रम करने की क्षमता में वृद्धि होती है। इसके विपरीत प्रतिद्वन्द्विता से द्वन्द्व अर्थात् खींचतान बढ़ती है। यह खींचतान मन में हो या किसी व्यक्ति से, दोनों ही हानिकारक हैं। किसी की सफलता या समृद्धि से जब हर्ष के बदले ईर्ष्या हो तो समझिये कि ईर्ष्या बीज रूप में मन में अंकुरित-प्रस्फुटित होकर प्रतिद्वन्द्विता को उत्पन्न कर देगी।
नये वर्ष में लक्ष्य निश्चित करते समय यह भी निर्धारित करें कि 2014 के एक सितारे को पाने के लिए भी प्रतियोगिता के मार्ग पर ही अग्रसर होंगे, प्रतिद्वन्द्विता के मार्ग पर कदापि नहीं।
नये स्वप्नों को साकार करने के लिए, हसीन जिन्दगी गुजारने के लिए वही करें जो अच्छा है। अच्छा वही है जिसे करने में आनन्द की अनुभूति हो और जिसका परिणाम भी व्यक्गित व सामूहिक रूप से सकारात्मक हो। यकीन मानिये कि अगर आप वो करेंगे जो आपको अच्छा नहीं लगता है तो आपको वो परिणाम मिलेगा जो आपको अच्छा नहीं लगेगा। जब आपको अच्छा नहीं लगेगा तब नये वर्ष के नये स्वप्न बिखर जायेंगे, पूरे नहीं होंगे।
अच्छाई और बुराई के बीच बहुत कम फासला है, पतले धागे-सी सीमा रेखा है इन दोनों के बीच। ये दोनों एक नहीं हो सकते, परस्पर विरोधी हैं दोनों। इनमें से एक ही को चुनना होगा। संगीत के क्षेत्र में एक कहावत प्रचलित है कि जो कलाकार सुर में नहीं है, वह असुर है। सदैव सुर में रहने वाला ही लक्ष्योन्मुखी प्रयत्न कर सकता है, लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। ऐसा व्यक्ति ही विकास के शिखर से शंखनाद कर दूसरों को भी सकारात्मक प्रयत्न से लक्ष्य-प्राप्ति के लिए उत्प्रेरित कर सकता है। ऐसा आप भी कर सकते हैं, बस आवश्यकता है नये संकल्प के साथ और नकारात्मक सोच को त्यागकर लगातार आगे बढ़ जाने की, बढ़ते रहने की।
वर्ष 2014 का पहला दिन अमावस्या से आरम्भ हो रहा है। घुप्प अन्धेरी रात, जिसमें चाँद भी दिखलाई नहीं देता। ऐसे अन्धेरे को भी नकारात्मक पक्ष मत मानिये। जिसे लोग नकारात्मक मानते हैं, उस नकारात्मकता में भी आप अपने हिस्से की सकारात्मकता खोज सकते हैं। याद रखिये कि गहन अन्धकार में सूई की नोंक-सी रोशनी का लक्ष्य भी स्पष्ट दिखाई देगा जिसे प्राप्त किया जा सकता है। पर, उजाले में, चाँदनी रात में या कृत्रिम प्रकाश-व्यवस्थाओं की चकाचौंध में उक्त लक्ष्य नहीं दिखाई देगा और उसे प्राप्त करने की बात ही अलग है। उपस्थित होने वाले प्रत्येक परिदृश्य से अपने विवेक के आधार पर सकारात्मक पहलू को खोजिये और उसी के सहारे आगे बढ़ जाइये। आप देखेंगे कि नकारात्मकता पीछे, काफी पीछे छुट गयी। यों दुःख की घड़ी में भी सुख के क्षण आप खोज ही लेंगे। प्यार से थोड़ा मुस्कुरा लेंगे तो दिल का बोझ घट जायेगा- सौ बरस की जिन्दगी से अच्छे हैं प्यार के दो-चार दिन!
आप किसी भी मार्ग में जैसे ही आगे बढ़ेंगे तो कई कंटक मिलेंगे, अवरोधक मिलेंगे; उन्हें पार करना होगा- संयम, धैर्य और सूझ-बूझ से। जैसे ही धैर्य कमजोर पड़ेगा, संयम का साथ नहीं मिलेगा और जीवन के मार्ग पर चलने वाला ऐसे चौराहे पर अपने को खड़ा पायेगा, जहाँ से प्रत्येक रास्ता लक्ष्य से दूर, बहुत दूर जाता हुआ दिखाई देता है। ऐसे में पुनः धैर्य व संयम को संजोने के लिए सदाचार का साथ स्वीकारना होगा। वर्तमान परिदृश्य में अनाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार और व्यभिचार के बीच घिरा है सदाचार। चारों ‘चार’ को जब आप नहीं स्वीकारेंगे तभी बीच वाला ‘चार’ आपके सम्मुख प्रकट होगा जिसके सहारे आप किसी भी लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं, किसी भी शिखर को फतह कर सकते हैं। .....तो उत्तरोत्तर विकास की शुभकामना कीजिये स्वीकार और डूब जाइये नववर्ष के उल्लास में!
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