शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

छठ व्रत की हैं अनेक कथाएँ / CHHATH

-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान सूर्य की आराधना के महापर्व छठ से कई कथाएँ जुड़ी हैं। छठ भारत की पारंपरिक पूजन विधियों में से एक है और सबसे कठिन व्रतों में भी एक है। चार दिन के छठ व्रत से जुड़ी अनेक कथाएँ भी लोकमानस में प्रचलित हैं। मार्कण्डेय पुराण में आये उल्लेख के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने को छः भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जाना जाता है। वह ब्रह्मा की मानसपुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छः दिनों के बाद भी इसी देवी की पूजा और आराधना कर बच्चे के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने की कामना की जाती है। यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

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द्रौपदी ने भी रखा था व्रत---
एक श्रुत कथा के अनुसार, जब पाण्डव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया और पाण्डवों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं। पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया। छठ का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। 
वर्ष में दो बार---
छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में मनाये जानेवाले छठ को ‘चैती छठ’ और कार्तिक में मनाये जानेवाले छठ को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है।
सदियों से चली आ रही है परम्परा---
छठ की परम्परा सदियों से चली आ रही है। एक मान्यता के अनुसार, प्रियव्रत नाम के राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के फलस्वरुप महारानी ने एक शिशु को जन्म दिया पर वह मृत था। इससे पूरे नगर में शोक की लहर दौड़ गयी। तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आकाश से एक देवी जमीन पर उतरीं और उन्होंने कहा- ‘‘मैं देवी षष्ठी हूँ और समस्त बालिकाओं की रक्षिका हूँ।’’ इसके बाद देवी ने शिशु को स्पर्श किया और बालक जीवित हो उठा। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में यह पर्व मनाने की घोषणा कर दी।
षष्ठी देवी हैं छठी मैया---
षष्ठी देवी का विवाह भगवान शिव व भगवती पार्वती के प्रथम पुत्र कार्तिक से हुआ। वह पंचत्त्व से इतर छठे तत्त्व से उत्पन्न हुईं, अतः उन्हें षष्ठी देवी कहा जाता है। छठ के गीतों में इन्हें छठी मैया के रूप में याद किया जाता है और सूर्य के साथ स्वतः ही इनकी भी पूजा हो जाती है।


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