-करोड़ों रुपये खर्च होने पर केवल बदला इन्सेफलाइटिस का नाम- नया नाम है इन्सेफेलोपैथी /ENCEPHALOPATHY
-शीतांशु कुमार सहाय
पिछले सात वर्षों में मौत ही मौत! अब भी यह सिलसिला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चल ही रहा है। जिले में इन्सेफलाइटिस के शोध, दवा व अन्य मदों में पिछले दो वर्षों में 28 करोड़ रुपये से अधिक खर्च दिखाये गये पर नतीजा शून्य निकला। हर साल गर्मी में मौत का पर्याय बनकर बच्चों पर कहर ढाहनेवाले इन्सेफलाइटिस का सिर्फ नाम ही तो बदला है। इन्सेफलाइटिस के बजाय ‘इन्सेफेलोपैथी’ हो गया है। केंद्र सरकार के इस खर्च (28 करोड़ रुपये) में यदि बिहार राज्य सरकार के खर्च को मिला दिया जाय तो यह रकम काफी अधिक हो जायेगी। देश-विदेश की कई जाँच एजेंसियाँ लगीं पर नतीजा ढाक के तीन पात। स्मरणीय है कि पिछले कई वर्षों से उत्तर बिहार में इन्सेफलाइटिस से बच्चों की मौत का सिलसिला नहीं रूक रहा है। सबसे अधिक प्रभाव मुजफ्फरपुर जिले में देखने को मिलता है। कारण जानने के लिए शोध मद में केंद्र सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च किये पर अभी तक किसी खास नतीजे पर नहीं पहुँचा जा सका है। बच्चों के इलाज में बिहार सरकार भी करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। फलतः इस वर्ष भी लक्षण के आधार पर ही इलाज चलेगा। गर्मी के दस्तक देते ही इंसेफेलोपैथी के मरीजों का इलाज के लिए आना शुरू हो गया है। मौसम की तल्खी बढ़ती गयी तो मरीजों की संख्या भी बढ़ती जाती है।
-इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर के 694 गाँव
इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में मुजफ्फरपुर जिले के 694 गाँव आते हैं। स्वास्थ्य विभाग की ओर से कराये गये शोध में यह आँकड़ा सामने आया है। वर्ष 2010 से 2014 तक लगातार इन गाँवों में तथा इसके आस-पास मरीज मिले हैं। जिले के सिविल सर्जन ने इन प्रखंडों में इन्सेफेलोपैथी बीमारी से बचाव के लिए चिकित्सक व मेडिकल स्टाफ को जरूरी टिप्स देने का काम प्रारम्भ किया है। इन्सेफेलोपैथी के हाई रिस्क जोन में जिले का मुसहरी, मीनापुर, बोचहाँ, काँटी प्रखंडों के ग्राफ सबसे ऊपर हैं। मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग इन क्षेत्रों के गाँवों पर पूरी नजर रखेगा। लोगों में जागरुकता लाने व बीमारी के नियन्त्रण के लिए इन गाँवों में माइकिंग कराने व घर-घर में पर्चा पहुँचाने का निर्णय लिया गया है। बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण के साथ ही एक-एक परिवार को जागरुक करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है; ताकि कम-से-कम बच्चे इस साल प्रभावित हो सकें।
-डा. जैकब मानते हैं लीची को कारण
इन्सेफेलोपैथी के शोध में लगे चेन्नई के वरीय वैज्ञानिक डॉ. जैकब जॉन की पिछले दिनों आयी शोध रपट पर सवालिया निशान लगने शुरू हो गये हैं। शोध में उन्होंने इस बीमारी के पीछे लीची को भी एक कारण माना था। पर, इस साल तो 15 अप्रैल तक लीची में फूल से फल का निकलना शुरू हुआ, फिर भी श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) व केजरीवाल अस्पताल में इन्सेफलाइटिस प्रभावित मरीजों का आना शुरू हो गया है। कई संदिग्ध मरीज भी सामने आये हैं। इस शोध पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए लीची उत्पादक किसान भोलानाथ झा इस बीमारी के शोध में लगे यहाँ के चिकित्सक, स्वास्थ्य एवं प्रशासन के वरीय अधिकारी का कहना है कि इसके शोध में सही कारणों का पता लगाना जरूरी है। मुसहरी स्थित लीची अनुसन्धान केन्द्र के निदेशक डॉ. विशाल नाथ ने कहा है कि वर्षों से लीची हमारी पहचान व मौसमी फल है। इन्सेफलाइटिस बीमारी का कारण लीची नहीं कुछ दूसरा है जिसपर सामूहिक रूप से शोध जरूरी है।
-डॉ. गोपाल बताते हैं तापमान को जिम्मेदार
इस बीमारी के एक अन्य शोधकर्ता व एसकेएमसीएच के वरीय शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. गोपाल शंकर सहनी का कहना है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण तापमान यानी गर्मी है। जब तापमान बढ़ता है, मरीजों का बढ़ना शुरू हो जाता है और तापमान के घटते ही घटने लगती है मरीजों की संख्या।
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