चाहत की भूल
- शीतांशु कुमार सहाय
ज़िन्दगी में कई भूल किये हैं मगर,
चाहत की भूल बड़ी भूल थी;
न शिकवा करूँगा न गिला कोई बाकी,
अफसोस पर ज़िन्दगीभर करूँगा।
चाहा था तुमको हद से ज़्यादा,
निभाया न तुने कोई अपना वायदा;
फिर भी मैं हरदम हँसता रहा हूँ,
बाकी के दिन अब रोया करूँगा।
ज़ख़्म भरे दिल में थोड़ी जगह थी,
जिसे ज़ख़्म से भर डाला तुने;
दिल पर जो तुने से ज़ख़्म दिये हैं,
सहला के उसको ही ज़िन्दा रहूँगा।
मोहब्बत में कहते हैं सबकुछ मिलेगा,
मगर सच कहूँ तो हर कुछ लुटेगा;
कंगाल दिल ही साथ है रहता,
जो कहता है सीने में धड़का करूँगा।
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