-शीतांशु कुमार सहाय
अधिकतर धार्मिक कार्यों में या पूजा-पाठ में ताम्बे के पात्रों का ही उपयोग किया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से अत्यन्त शुद्ध धातु माना जाता है। इस के अलावा ताम्बा और टिन मिलाकर काँसा तथा ताम्बा और जस्ता मिलाकर बनाये गये पीतल धातु से निर्मित पात्रों का भी धर्म-कर्म में प्रयोग होता है। सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म में भगवान की पूजा से संबंधित अनेक नियम हैं। उन में से एक यह भी है कि पूजा के पात्र यानी बर्तन ताम्बे के होने चाहिये। पूजा में ताम्बे के बर्तनों के उपयोग से सम्बन्धित कथा का वर्णन 'वराहपुराण' में मिलता है।
सृष्टि के आरम्भिक काल में गुडाकेश नाम का एक असुर हुआ था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। 'गुडाका' का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह 'गुडाकेश' है। नींद का अर्थ अज्ञान भी है। द्वापर युग में अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी, अतः अर्जुन को 'गुडाकेश' कहा गया।
असुर गुडाकेश ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। वह ताम्बे का शरीर धारण कर १४ हज़ार वर्ष तक पूरी श्रद्धा और विश्वास से भगवान विष्णु की आराधना करता रहा। उस की कठिन तपस्या से संतुष्ट होकर भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
भगवान को देखकर गुडाकेश अत्यन्त आनन्दित हुआ। पीताम्बर भगवान विष्णु शंख, चक्र और गदा से युक्त चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए थे। वह अतिशय रोमांचित होकर भगवान के चरणों पर वह गिर पड़ा। उस के नेत्र हर्ष के आँसू से भींग गये, हृदय आह्लाद से भर गया, गला रुँध गया और वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। कुछ देर पश्चात शरीर व मन को स्थिर कर हाथ जोड़कर नतमस्तक हो भगवान के सम्मुख खड़ा हो पाया। भगवान ने कहा, "निष्पाप गुडाकेश! तुम ने कर्म, मन और वाणी से जिस वस्तु को वांछनीय समझा हो, जो तुम्हें अच्छी लगती हो, माँग लो। मैं आज तुम्हें सब कुछ दे सकता हूँ।"
कमलनयन भगवान विष्णु की बात सुनकर गुडाकेश ने कहा, "भगवान! यदि आप मुझ पर पूर्ण रूप से प्रसन्न हैं तो ऐसी कृपा करें कि मैं जहाँ-जहाँ जन्म लूँ, प्रत्येक जन्म में आप के चरणों में ही मेरी आस्था व भक्ति बनी रहे। आप के हाथ से छोड़े गये चक्र से ही मेरी मृत्यु हो और जब चक्र से मैं मारा जाऊँ, तब मेरे मांस, मज्जा आदि अत्यन्त पवित्र ताम्बे के रूप में परिवर्तित हो जायें।" गुडाकेश ने यह भी वरदान माँग लिया कि ताम्बे के पात्र में भोग लगाने से भगवान प्रसन्न होंगे। इस तरह मरने के बाद भी गुडाकेश का शरीर भगवान के ही काम में आ रहा है।
भक्तवत्सल भगवान ने गुडाकेश की प्रार्थना स्वीकार की और कहा कि वैशाख शुक्ल द्वादशी के दिन चक्र के माध्यम से उसे मुक्ति मिलेगी। यह वचन देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये।
मुक्ति की तिथि वैशाख शुक्ल द्वादशी की प्रतीक्षा में गुडाकेश पुनः तपस्या करने लगा। तिथि आ गयी। वह उत्साह के साथ भगवान की प्रार्थना करने लगा, "हे प्रभु! शीघ्रातिशीघ्र धधकती अग्नि के समान जाज्वल्यमान चक्र मुझ पर छोड़ें, अब विलम्ब न करें। हे नाथ! मेरे शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर मुझे शीघ्र ही अपने चरणों की सन्निधि में बुला लें।"
भक्त की सच्ची प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने शीघ्र ही चक्र से गुडाकेश के शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर अपने धाम वैकुण्ठ में बुला लिया। प्यारे भक्त के शरीर का अंश होने के कारण भगवान को आज भी ताम्बा प्रिय है। गुडाकेश के मांस से ताम्बा, रक्त से सोना, हड्डियों से चाँदी का निर्माण हुआ। यही कारण है कि भगवान की पूजा में हमेशा ताम्बे के बर्तनों का उपयोग किया जाता है।
साथ ही ताम्बे के दो मिश्रधातुओं (पीतल व काँसा) का उपयोग भी धार्मिक कार्यों में होता है। पीतल में ताँबा 73-66 तथा जस्ता 27-34 प्रतिशत तक होता है। काँसा में ताँबा और टिन की मात्रा क्रमश: 75-80 प्रतिशत और 25-20 प्रतिशत तक होती है।
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