-शीतांशु कुमार सहाय
आइये जानते हैं, राष्ट्रगान के बारे में। बंगाल के साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा सन् १९११ ईस्वी में लिखा गया 'जन-गण-मन' ही विश्व के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का राष्ट्रगान है। 'जन-गण-मन' को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी मातृभाषा बंगला में लिखा था। बाद में आबिद अली ने इस का हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया। राष्ट्रगान में संस्कृत भाषा के शब्दों की अधिकता है। इसे २७ दिसंबर सन् १९११ ईस्वी को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान को गाने में ५२ सेकेंड का समय लगता है।
सच यह है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान बनाने के लिए 'जन-गण-मन' गीत की रचना नहीं की थी। आप सच जान लीजिये। बात सन् १९११ ईस्वी की है, जब दिल्ली को कलकत्ता की जगह भारत की राजधानी बनाया गया था। उस समय नयी राजधानी दिल्ली में विशेष 'दरबार' का आयोजन किया गया था। इस में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम को भी आमंत्रित किया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर से जॉर्ज पंचम के स्वागत के लिए गीत लिखने को कहा गया था और इस तरह 'जन-गण-मन' गीत की रचना हुई जो पाँच अवतरणों का है। २४ जनवरी सन् १९५० ईस्वी को भारत की संविधान सभा में राष्ट्रगान के रूप में 'जन गण मन' के हिन्दी संस्करण के प्रथम अवतरण को स्वीकार किया गया।
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जिस कविता की रचना की थी उस के केवल पहले पद को ही राष्ट्रगान माना गया। पूरी कविता पाँच अवतरणों यानी पदों में है। कविता के पाँचों अवतरण यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ--
जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग,
विन्ध्य-हिमाचल, यमुना-गंगा उच्छल जलधितरंग,
जब शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष माँगे,
गा हे तव जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे; जय-जय-जय-जय हे।।
अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार वाणी,
हिन्दू बौद्ध सिक्ख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी,
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पासे,
प्रेमहार हय गाथा।
जन-गण-ऐक्यविधायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।
पतन अभ्युदय वन्धुर पन्था, युग-युग धावित यात्री,
तुम चिरसारथि, तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे,
संकटदुःखत्राता।
जन-गण-पथपरिचायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।
घोर तिमिरघन निविड़ निशीथे, पीड़ित मूर्छित देशे,
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल, नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके,
स्नेहमयी तुमि माता।
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।
रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि, पूर्व उदयगिरिभाले,
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे, निद्रित भारत जागे,
तव चरणे नत माथा।
जय हे जय हे जय-जय-जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।
(द्रष्टव्य : ऊपर लाल रंग में लिखा गया अंश भारत का राष्ट्रगान बना।)