बुधवार १८ जनवरी २०२५ को प्रयागराज के महाकुंभ में १५०० पुरुषों ने पिण्डदान सहित स्वयं ही अपना पूरा श्राद्ध कर्म किया और नागा संन्यासी बनने के लिए दीक्षा ग्रहण की।
इस अवसर पर १९ महिलाएँ भी महाकुम्भ में नागा संन्यासी बनने की दीक्षा लेंगी। इन सब को गुरु परंपरा के अनुसार ही दीक्षा दी जायेगी।
सभी पुरुषों ने पंच दशनाम जूना अखाड़े से जुड़कर हर-हर महादेव के उद्घोष के बीच नागा संन्यासी बनने की दीक्षा ली।
जूना अखाड़े के रमता पंच के श्री महंत रामचंद्र गिरि, दूधाधारी महाराज, निरंजन भारती और मोहन गिरि की देखरेख में पहले सभी लोगों का मुंडन संस्कार किया गया। इस के बाद सभी ने १०८ बार गंगा के पवित्र जल में डुबकी लगाई। इस के उपरान्त गंगा पूजन किया औऱ अपना, माता-पिता सहित सात पीढ़ियों का पिणडदान किया।
पिण्डदान के बाद सभी ने एक स्वर में स्वयं को सांसारिक मोह-माया से अलग करते हुए सांसारिक तौर पर स्वयं के मृत होने की घोषणा कर दी।
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