मंगलवार, 4 जनवरी 2011
युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद
दुनिया में सनातन धर्म और भारत की प्रतिष्ठा स्थापित करने वाले आध्यात्मिक हस्ती स्वामी विवेकानंद अपने नवीन व जीवंत विचारों के कारण आज भी युवाओं के प्रेरणास्रोत बने हुए हैं। आजकल युवाओं को स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत भाते जरूर हैं पर उनके जीवन में इन सिद्धांतों का कोई खास असर नहीं है। स्वामी विवेकानंद पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थे। स्कॉटिश चर्च कॉलेज के प्राचार्य डॉ. विलियम हस्टी ने उनके बारे में लिखा है, ''मैंने काफी भ्रमण किया है लेकिन दर्शन शास्त्रों के छात्रों में ऐसा मेधावी और संभावनाओं से पूर्ण छात्र कहीं नहीं, यहाँ तक कि जर्मन विश्वविद्यालयों में भी नहीं देखा।'' उन्होंने धर्मग्रंथों के अलावा विविध साहित्यों के भी गहन अध्ययन किए। वह ब्रह्म समाज से जुड़े लेकिन वहाँ उनका मन नहीं रमा। एक दिन वह अपने मित्रों के साथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के यहाँ गए। जब नरेंद्रनाथ ने भजन गाया तब परमहंस बहुत प्रसन्न हुए। तर्कशील नरेंद्रनाथ ने परमहंस से पूछा कि क्या आप ईश्वर में विश्वास करते हैं। क्या आप उन्हें दिखा सकते हैं। परमहंस ने उनके सवालों का हाँ में जवाब दिया। हालाँकि विवेकानंद ने प्रारंभ में परमहंस को अपना गुरु नहीं माना लेकिन काफी समय तक उनके संपर्क में रहकर वह उनके पक्के शिष्य बन गए। परमहंस के आध्यात्मिक सपंर्क में रहकर उनके मन की अशांति जाती रही। बताया जाता है कि दुनियाभर में स्वामी रामकृष्ण को स्वामी विवेकानंद के चलते ही ख्याति मिली। वर्ष 1893 में विश्व धर्म संसद में उनके ओजपूर्ण भाषण से ही विश्वमंच पर न केवल सनातन धर्म (हिंदू धर्म); बल्कि भारत की भी प्रतिष्ठा स्थापित हुई। ग्यारह सितंबर 1893 को इस संसद में जब उन्होंने अपना संबोधन ‘अमेरिका के भाइयो और बहनो’ से प्रांरभ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। उनके तर्कपूर्ण भाषण से लोग अभिभूत हो गए। उन्हें निमंत्रणों का तांता लग गया। स्वामी विवेकानंद ने देश और दुनिया का काफी भ्रमण किया। वह नर सेवा को ही नारायण सेवा मानते थे। उन्होंने रामकृष्ण के नाम पर 'रामकृष्ण मिशन' और मठ की स्थापना की। मात्र 39 वर्ष की उम्र में चार जुलाई 1902 को अपने निधन के दिन उन्होंने बेल्लूर मठ, कोलकाता में अपने गुरुभाई स्वामी प्रेमानंद को मठ के भविष्य के बारे में निर्देश दिए। वह रात को जब ध्यान में थे तब उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके शिष्यों के अनुसार यह महासमाधि थी। महज 39 वर्ष के जीवनकाल में स्वामी विवेकानंद ने अपने विचारों से युवाओं के मन-मस्तिष्क पर ऐसी अमिट छाप छोड़ी कि उनके गुजरने के 108 वर्ष बाद भी युवा पीढ़ी उनसे प्रेरणा लेती है। विवेकानंद कहते थे कि युवाओं की स्नायु फौलादी होनी चाहिए; क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। स्वामी विवेकानंद को देश और युवाओं से काफी प्यार था। उनका मानना था कि विश्व मंच पर भारत की पुन:प्रतिष्ठा में युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है।
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