शीतांशु कुमार सहाय
काले धन का विरोध भारत में आपातकाल के दौर से ही एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है। समस्या यह है कि विरोध करने वाले जब सरकार में होते हैं तो वे इस मामले को व्यावहारिक नजरिये से देखने लगते हैं। इसे काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में चले नागरिक आंदोलन का असर कहें या अदालतों द्वारा बात-बात पर लगाई जा रही फटकार का लेकिन भारत सरकार अभी इस बीमारी से निपटने को लेकर गंभीर होती दीख रही है।
केन्द्रीय सरकार काले धन पर संसद के वर्तमान बजट सत्र में श्वेत पत्र लाएगी। यह ऐलान वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने 16 मार्च 2012 शुक्रवार को लोकसभा में आम बजट पेश करते हुए किया। उन्होंने कहा कि पिछले साल काले धन के सृजन और उसके चलन की बुराई तथा भारत से बाहर इसके गैर कानूनी लेनदेन की समस्या का सामना करने के लिये एक पंचआयामी कार्यनीति को रेखांकित किया गया था। सरकार ने इस कार्यनीति पर अमल के लिए कई सक्रिय कदम उठाए हैं। मुखर्जी ने बताया कि दुहरे कराधान से बचने के लिये 82 तथा कर सूचना आदान-प्रदान के लिये 17 करार विभिन्न देशों के साथ किये गए और भारतीयों के विदेश स्थित बैंक खातों और परिसंपत्तियों के संबंध में सूचना हासिल होनी शुरू हो गई है। कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी। उन्होंने बताया कि केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) में आयकर आपराधिक अन्वेषण निदेशालय की स्थापना की गई है। उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक ए.पी. सिंह कह चुके हैं कि विदेश में भारतीयों का 24.5 लाख करोड़ रुपए काला धन जमा है। सिंह का यह बयान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर आया था।
सेंट्रल बोर्ड आॅफ डायरेक्ट टैक्सेज, एनफोसर्मेंट डायरेक्टरेट, रेवेन्यू इंटेलिजेंस, फायनेंशल इंटेलिजेंस और कानून मंत्रालय के कई अधिकारियों को लेकर गठित एक उच्चाधिकार समिति ने काले धन पर रोक लगाने के लिए कई महत्त्वपूर्ण सुझाव दिये हैं। आम लोगों का मानना है कि काला पैसा कमाने में राजनेताओं और नौकरशाहों का कोई सानी नहीं है लेकिन समिति का निष्कर्ष यह है कि देश में सबसे ज्यादा काला धन इस समय जमीन-जायदाद, सोना-चांदी और जेवरात के धंधे में पैदा हो रहा है। इससे निपटने के लिए रीयल एस्टेट और कमोडिटी कारोबार पर नजर रखने के कुछ ठोस उपाय सुझाए गए हैं। मसलन यह कि अचल संपत्ति की कारोबारी खरीद-फरोख्त को आयकर कानून के दायरे में लाया जाए। सबसे ज्यादा चिंता काले धन और भ्रष्टाचार के मुकदमों के लंबा खिंचने को लेकर जताई गई है।
इन्हें जल्द से जल्द निपटाने के लिए सुझाव दिया गया है कि सभी उच्च न्यायालय इन मुकदमों के लिए विशेष न्यायालय गठित करें और इनमें बैठने वाले न्यायाधीशों के लिये अलग से प्रशिक्षण और रिफ्रेशर कोर्स की व्यवस्था की जाए। समिति ने ऐसे मामलों के दोषियों को मिलने वाली सजा सात से बढ़ाकर दस साल करने का भी सुझाव दिया है। देश के बाहर जमा काले धन के बारे में कमेटी का सुझाव है कि एक निश्चित सीमा से ज्यादा धन देश से बाहर जाने की स्थिति में देसी और विदेशी, दोनों तरह के बैंकों के लिये उसका पूरा रेकॉर्ड रखना और इसकी जानकारी भारत सरकार को देना जरूरी बना दिया जाए। ये सुझाव बहुत अच्छे हैं और विभिन्न नागरिक समूहों से फीडबैक लेकर इन्हें और ताकतवर बनाया जा सकता है।
इन सुझावों का दायरा मुख्यत: महानगरीय लगता है लेकिन ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्र भी काले धन के खिलाड़ियों से कम त्रस्त नहीं हैं। एक बड़ी समस्या सरकार के नजरिये की भी है, जो कॉरपोरेट सेक्टर पर हाथ डालने से आम तौर पर कतराती है और निवेश बढ़ाने के नाम पर कुछ-कुछ समय बाद वॉलंटरी डिस्क्लोजर स्कीमें लेकर हाजिर हो जाती है। इस मामले में हमें चीनियों और अमेरिकियों से सबक लेनी चाहिए, जो बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाले देश होने के बावजूद अपनी सरकार को चूना लगाने वालों के मामले में बिल्कुल एक-से बेरहम हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें