शनिवार, 13 अप्रैल 2013

सरहुल : सूरज से धरती के विवाह का अद्भुत नजारा


प्रकृति की पूजा का पर्व और सूरज से धरती के विवाह का प्रतीक सरहुल का झारखण्ड में अद्भुत नजारा रहता है। झारखंड में प्रकृति की उपासना का पर्व सरहुल आज चैत्र शुक्ल तृतीया शनिवार को धूमधाम से मनाया गया जा रहा है। विभिन्न अखाड़ों और सरना स्थलों पर लोग शनिवार को सुबह सरहुल की पूजा-अर्चना के लिए जमा हुए। पूजा-अर्चना के बाद विभिन्न मुहल्लों व आसपास के गांवों से शोभा यात्र्ाा निकाली जाती है। सरना धर्मावलंबियों की ओर से एक दिन पहले उपवास रखा जाता है और शाम में सरना स्थलों पर घड़ों में जल भी रखा जाता है। इन घड़ों के जलस्तर को देख कर पाहन यानी आदिवासियों के पुरोहित ने इस वर्ष होने वाली बारिश की भविष्यवाणी की। पूजा-अर्चना के बाद सरहुल शोभा यात्र् में विभिन्न इलाकों से सरना समितियां झंडे के साथ शामिल होती हैं। इस बार भी ऐसा ही हुआ। रांची में शोभायात्र् में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चों तथा युवक-युवतियां भी मौजूद थीं। सरना स्थल में पहुंचकर शोभा यात्र्एं वापस अपने-अपने क्षेत्र् में लौट गयीं। शोभा यात्र् को लेकर शहर के प्रमुख मार्गा के किनारे सरना झंडे लगाए गए थे। जुलूस में कई आकर्षक झांकियां भी शामिल थीं। शोभा यात्र्में शामिल लोगों के लिए जगह-जगह पेयजल की भी व्यवस्था की गयी थी। अल्बर्ट एक्का चौक के निकट बने पंडाल के निकट एक मंच भी बनाया गया था। उसमें आकर्षक झांकियां और बेहतर खेल दिखाने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कृत किया गया। इस मौके पर मांदर और ढोल की थाप पर लोग देर रात तक झूमते रहे।
यहां देखिये रांची में सरहुल के नजारे-










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