-शीतांशु कुमार सहाय
मेरे त्रयोदश संस्कार विवाह के चार वर्ष हो गये। २७ नवम्बर २००९ की रात को मैंने रीना का पाणि ग्रहण किया था। विवाह के चौथे सालगिरह पर मैं पत्नी व पुत्र अभ्युदय के साथ झारखण्ड के देवघर स्थित वैद्यनाथ मन्दिर में बाबा वैद्यनाथ को जलार्पण करने गया। भीड़ काफी कम थी। अतः हमलोग बाबा का स्पर्श पूजन भी कर पाये। उन की कृपा और आप तमाम मित्रों के प्यार के साथ!
सोलह संस्कार
अब थोड़ी बात कर लेते हैं १६ संस्कारों की। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इन का अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गयी है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के सृजन से विसर्जन तक (जन्म से लेकर मृत्यु तक) पवित्र १६ संस्कार संपन्न किये जाते हैं :-
१. गर्भाधान
२. पुंसवन
३. सीमन्तोन्नयन
४. जातकर्म
५. नामकरण
६. निष्क्रमण
७. अन्नप्राशन
८. चूड़ाकरण
९. कर्णवेध
१०. उपनयन
११. केशान्त
१२. समावर्तन
१३. विवाह
१४. वाणप्रस्थ
१५. परिव्राज्य या संन्यास
१६. पितृमेध या अन्त्यकर्म।
विवाह संस्कार
विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में 'त्रयोदश संस्कार' है। विवाह= वि+वाह, अत: इस का शाब्दिक अर्थ है--- विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को विवाह के नाम से जाना जाता है। विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। विवाह संस्कार पितृ ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं।
पूर्णता का प्रतीक है विवाह
स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषताएँ और कुछ अपूर्णताएँ दे रखी हैं। पाणिग्रहण से एक-दूसरे की अपूर्णताओं की अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं। इससे समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है। विवाह मानव जीवन की एक आवश्यकता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है पर हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुवतारा को साक्षी मानकर दो तन, मन और आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बंध से अधिक आत्मिक सम्बंध होता है, इस सम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
विवाह में वासना की प्रधानता हानिकारक
आज विवाह वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं। रंग-रूप के आकर्षण को स्त्री और पुरुष के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। दाम्पत्य-जीवन शरीर प्रधान रहने से एक प्रकार के वैध-व्यभिचार का ही रूप धारण कर लेगा। शारीरिक आकर्षण का अवसर सामने आने पर विवाह जल्दी-जल्दी टूटते-बनते रहेंगे। अभी स्त्री का चुनाव शारीरिक आकर्षण को ध्यान में रखकर किये जाने की प्रथा चली है। बढ़ती हुई इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए और सद्गुणों तथा सद्भावनाओं को ही विवाह का आधार बने रहने देना चाहिए।