सोमवार, 31 मार्च 2014

अरविन्द केजरीवाल पर स्नात्कोत्तर परीक्षा में 46 अंकों के प्रश्न, मोदी पर 20 अंकों के प्रश्न / 46 MARKS QUESTIONS ON ARVIND KEJRIWAL & 20 ON MODI IN M.A. EXAM OF KURUKESHTRA UNIVERSITY


-शीतांशु कुमार सहाय
जिस तेज रफ्तार से अरविन्द केजरीवाल और उनके द्वारा स्थापित आम आदमी पार्टी को सुर्खियों में जगह मिली है, उसका प्रभाव अब विश्वविद्यालयों की परीक्षा में भी देखने को मिल रहा है। सोमवार 31 मार्च 2014 को उत्तर प्रदेश के झाँसी स्थित बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की राजनीति शास्त्र की परीक्षा में केजरीवाल ही छाए रहे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय की एमए सेकंड इयर की 'इंडियन पॉलिटिक्स' (भारतीय राजनीति) की परीक्षा में 2 प्रश्नपत्रों में केजरीवाल और आम आदमी पार्टी पर 46 नंबर के 4 सवाल पूछे गए। इन दोनों प्रश्न-पत्रों में 20 नंबर का एक सवाल नरेंद्र मोदी पर और 4 नंबर का एक सवाल शिव सेना और अकाली दल की भूमिका पर रहा। राहुल गाँधी और दूसरे नेताओं पर कोई सवाल नहीं पूछा गया।
आप और केजरीवाल पर सवाल----
1. आम आदमी पार्टी के भविष्य पर संक्षिप्त टिप्पणी (2 अंक)
2. आम आदमी पार्टी के घोषणा-पत्र एवं कार्यक्रम का वर्णन कीजिए। (4 अंक)
3. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की जीत ने भारतीय राजनीति के विमर्श को बदल दिया है। वर्णन करिए। (20 अंक)
4. अन्ना हजारे आंदोलन एवं दिल्ली विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की जीत के भारतीय राजनीति पर प्रभाव की विवेचना कीजिए। (20 अंक)
नरेंद्र मोदी पर सवाल----
1. लोकसभा चुनाव 2014 पर नरेंद्र मोदी के प्रभाव की विवेचना कीजिए। (20 अंक)
शिव सेना और अकाली दल 1. अकाली दल और शिव सेना की भूमिका (4 अंक)
ऑप्शनल पेपर है इंडियन पॉलिटिक्स----
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में इंडियन पॉलिटक्स ऑप्शनल पेपर है। कई विश्वविद्यालयों में यह अनिवार्य प्रश्न-पत्र भी होता है। इस ऑप्शनल प्रश्नपत्र में भी 2 विकल्प 'पॉलिटिकल पार्टीज इन इंडिया' और 'डिमॉक्रेसी इन इंडिया' हैं। दोनों ही प्रश्नपत्र 100-100 नंबर के हैं। 'इंडियन पॉलिटिकल पार्टीज' नाम से पाठ्यक्रम तय है लेकिन पाठ्य सामग्री तय नहीं होती। पॉलिटिकल पार्टीज पर कोई भी सवाल पूछा जा सकता है लेकिन सामान्य तौर पर परिपाटी रही है कि एक पार्टी पर एक-दो सवाल ही पूछे जाते हैं। प्रश्न-पत्र के सवाल पेपर सेट करने वाले शिक्षक के विवेक पर निर्भर करते हैं। राजनीति शास्त्र के जानकारों का मानना है कि एक पार्टी से जुड़े इतने सवाल पूछना उचित नहीं लगता। इसकी वजह यह है कि पॉलिटकल पार्टीज पूरे पाठ्यक्रम का एक हिस्सा भर हैं।






रविवार, 30 मार्च 2014

भारतीय नववर्ष विक्रम सम्वत् 2071 की शुभकामनाएँ! / HAPPY INDIAN NEW YEAR VIKRAM SAMVAT 2014


-शीतांशु कुमार सहाय
विक्रम सम्वत् 2071 कल मतलब चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा (31 मार्च 2014) को आरम्भ हो रहा है। विश्वभर में सनातनधर्मी इसी सम्वत् के आधार पर अपना पर्व-त्योहार मनाते हैं। यह सम्वत् चाँद की दिशा व दशा के आधार पर दिन-तिथि निर्धारित करता है। ग्रन्थों की बात मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा के दिन ही आदिशक्ति के आदेश से सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। भारतीय दर्शन में सृष्टि की उत्पत्ति आदिशक्ति से मानी जाती है। उन्होंने अपने रूप को जल, स्थल और वायु के साथ-साथ समस्त देवी-देवताओं, मानव व अन्य जीव-जन्तुओं की करोड़ों श्रेणियों में विभक्त किया। आदिशक्ति ने ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की और ब्रह्माण्ड के कण-कण में वह स्वयं ही विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं।
सर्वप्रथम आदिशक्ति ने नीरव शान्ति और भयंकर अन्धेरे के बीच अपने शब्द-स्वरूप ‘ऊँ’ को प्रकट किया जिससे नीली रश्मि उत्पन्न हुई और सर्वत्र ऊँ व्याप्त हो गया। ऊँ के नाद (स्वर) से ब्रह्माण्ड में उथल-पुथल हुई तो गति उत्पन्न हुई और विभिन्न वायु प्रकट हुए। यों सर्वत्र जल-ही-जल दिखायी देने लगा। तब आदिशक्ति ने नारायण (विष्णु) का पुरुषस्वरूप धारण किया। विष्णु के नाभि से एक कमल प्रकट हुआ जिससे ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई।
आदिदेव ब्रह्मा को आदिशक्ति ने सृष्टि का आदेश दिया। ब्रह्मा ने चारों ओर मुख घुमाकर ब्रह्माण्ड की व्यापकता का दर्शन किया तो उनके चार मुख हो गये। उन्होंने अपने अस्तित्व पर विचार करना और अपनी उत्पत्ति वाले स्थान के अन्वेषण में बहुत समय व्यतीत किया पर पता न चला तो तपस्या में लीन हो गये। सौ दिव्य वर्षों तक तपश्चर्या के दौरान उन्हें अन्तःकरण में दिव्य प्रकाश दिखायी दिया। साथ ही नारायण का दर्शन भी प्राप्त हुआ। नारायण ने उन्हें सृष्टि की रचना के लिए उत्प्रेरित किया। सभी मित्रों को भारतीय नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!
भारतीय नववर्ष का ऐतिहासिक महत्व---
1. यह दिन सृष्टि रचना का पहला दिन है। इस दिन से एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष पूर्व इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने जगत की रचना प्रारंभ की।
2. विक्रम सम्वत् का पहला दिन : उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होता था जिसके राज्य में न कोई चोर हो, न अपराधी हो, और न ही कोई भिखारी हो। साथ ही राजा चक्रवर्ती सम्राट भी हो। सम्राट विक्रमादित्य ने 2071 वर्ष पहले इसी दिन राज्य स्थापित किया था।
3. प्रभु श्री राम का राज्याभिषेक दिवस : प्रभु राम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक के लिये चुना।
4. नवरात्र स्थापना : शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन उत्सव मनाने का प्रथम दिन।
5. गुरू अंगददेव प्रगटोत्सव : सिख परंपरा के द्वितीय गुरू का जन्म दिवस।
6. समाज को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाने हेतु स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन को आर्य समाज स्थापना दिवस के रूप में चुना।
7. संत झूलेलाल जन्म दिवस : सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार संत झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8. शालिवाहन संवत्सर का प्रारंभ दिवस : विक्रमादित्य की भांति शालिनवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
9. युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन : 5112 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व---
1. वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2. फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3. नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
अत: हमारा नववर्ष कई कारणों को समेटे हुए है, अत: हर्षोउल्लास के साथ नववर्ष  मनायें और दूसरो को भी मनाने के लिए प्रेरित करें।


झारखण्ड : मुख्य निर्वाचन आयुक्त वीएस संपत ने चुनाव तैयारियों पर जताया संतोष / Chief Election Commissioner of India VS Sampat in Jharkhand at Ranchi for Preparedness of Loksabha General Election 2014


-शीतांशु कुमार सहाय
30 अप्रैल 2014 को भारत के मुख्य निर्वाचन आयुक्त वीएस संपत झारखण्ड में लोकसभा की तैयारियों को जायजा लेने राँची पहुँचे। एकदिवसीय दौरे के क्रम में राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों, जिला निर्वाची पदाधिकारियों, मुख्य सचिव, गृह सचिव व डीजीपी समेत अन्य अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक की। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने चुनाव तैयारियों और सुरक्षा के इंतजाम पर संतोष व्यक्त करते हुए यह उम्मीद जतायी कि झारखंड में आम चुनाव पूरी तरह से स्वतंत्र्ा, निष्पक्ष और भयमुक्त वातावरण में होगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने बताया कि मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में कई सूचनाएं, शिकायतें और इनपुट प्राप्त हुए तथा कई अच्छे सुझाव मिलेे। उन्होंने बताया कि बाद में जिला निर्वाची पदाधिकारियों, आरक्षी अधीक्षकों, आरक्षी महानिरीक्षकों, आरक्षी उपमहानिरीक्षकों के साथ बैठक हुई। फिर मुख्य सचिव, गृह सचिव व पुलिस महानिदेशक के साथ बैठक हुई। इसके अलावा आयकर विभाग के वरीय अधिकारियों के साथ भी बैठक हुई।
उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 सीटों के लिए कुल 2.03 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इसमें 1.06 करोड़ पुरुष और 99 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। उन्होंने बताया कि लोकसभा चुनाव के लिए 5 मार्च 2014 को अधिसूचना जारी होने के बाद मतदाता सूची में मतदाताओं के नाम जोड़ने के लिए विशेष अभियान चलाये गये जिसमें राज्य में 2.32 लाख नये मतदाताओं को जोड़ा गया है। संपत ने बताया कि आम चुनाव पर नजर रखने के लिए 14 सामान्य पर्यवेक्षक, 13 व्यय पर्यवेक्षक, 5 पोलिंग पर्यवेक्षक तथा 4 अवरनेस पर्यवेक्षकों को ड्यूटी पर लगाया गया है।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने बताया कि राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की ओर से यह बात सामने आयी कि उन्हें प्रचार वाहनों की संख्या समिति करने से उन्हें कठिनाई हो रही है। इस संबंध में जिला निर्वाची पदाधिकारियों को यह निर्देश दिया गया कि अनावश्यक रूप से वाहनों की संख्या को सीमित नहीं किया जाये और जिन वाहनों को प्रचार कार्य में लगाया जाता है, उसका व्यय प्रतिदिन प्रत्याशियों के खर्च मंे जोड़ा जाये। उन्होंने बताया कि घरों मंे झंडा-बैनर लगाने के लिए पूर्वानुमति जरूरी नहीं है और हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति जिला निर्वाची पदाधिकारी देंगे। इसके लिए संबंधित दल के प्रतिनिधियों को जिला प्रशासन के साथ समन्वय करना होगा। उन्होंने बताया कि उम्मीदवारों द्वारा चुनाव प्रचार में किये जा रहे व्यय पर निगरानी के लिए विशेष तौर पर निगरानी रखी जा रही है और व्यय मॉनिटरिंग के इंतजाम किये जा रहे हैं। इसके अलावा राज्य में 256 स्थानों पर चेक पोस्ट बनाकर वाहनों की छानबीन की जा रही है। 295 फ्लाइंग स्क्वायड की टीम गठित की गयी है। जिन क्षेत्र्ाों में चुनाव में अधिक खर्च किये जाने की संभावना है, उन क्षेत्र्ाों में विशेष नजर रखी जा रही है। उन्होंने बताया कि 70 माइक्रो ऑबजर्वर, 865 वीडियो कैमरे व 75 वेब कैमरों से चुनाव पर रखी जायेगी। अब तक 51 लाख रुपये नकद जब्त किये गये हैं। इसके अलावा 66 हजार लीटर अवैध शराब जब्त किये गये हैं और सैकड़ों छापामारी अभियान चलाकर बड़ी संख्या में गिरफ्तारी वारंट का तामिला कराया गया है।
-भाजपा
भाजपा की ओर से वरीय अधिवक्ता अनिल सिन्हा और राकेश प्रसाद के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल ने आज वीएस संपत से मुलाकात की और उनके समक्ष 9 सूत्र्ाी बिन्दुओं पर अपनी बातों को रखा। बाद में पत्र्ाकारों से बातचीत में अनिल सिन्हा ने बताया कि मुख्य रुप से दो प्रमुख मुद्दों चुनाव के दौरान पार्टी सिंबल का उपयोग और घरों में झंडा-बैनर लगाने के मसले पर आयोग का ध्यान दिलाया गया। इसके अलावा अन्य 7 बिन्दुओं पर पार्टी की ओर से ध्यान आकृष्ट कराया गया।
-काँग्रेस
काँग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से कुछ दलों के नेताओं की शिकायत सहित यह आग्रह किया कि महिलाओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मतदान केंद्रों को अधिक दूर नहीं रखा जाये।
-आजसू
पार्टी उपाध्यक्ष प्रवीण प्रभाकर ने याद दिलायी कि 4 मार्च 2014 को नयी दिल्ली में सभी राजनीतिक दलों के साथ चुनाव आयोग की बैठक हुई थी। उसमें यह स्पष्ट किया गया था कि पार्टी के कार्यकर्त्ता अपनी इच्छानुसार अपने घरों पर पार्टी का झण्डा लगा सकते हैं लेकिन व्यावहारिक रूप में इसका उलटा हो रहा है। निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देश के नाम पर स्थानीय पुलिस-प्रशासन द्वारा कार्यकर्त्ताओं को अपने घरों पर स्वेच्छा से भी झण्डा नहीं लगाने दिया जा रहा है। इस पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने आश्वस्त किया कि पार्टी कार्यकर्ता स्वेच्छा से अपने घरो पर झंडा लगा सकते हैै इसके लिए अनुमति की जरुरत नहीं है। सोशल मीडिया पर सामग्रियों के पूर्व प्रमाणीकरण के निर्देश पर सिर्फ विज्ञापन की सामग्रियों का पूर्व प्रमाणीकरण पर जोर दिया और मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि संबंधित साइट के सदस्य या फॉलोअर को किसी भी सूचना या सामग्री को बिना अनुमति पोस्ट करने की छूट है।  
-राजद
राजद के प्रदेश राजद के प्रवक्ता डॉ. मनोज कुमार, वरिष्ठ नेता विजया पाहन और रामकुमार यादव ने संपत से मुलाकात की। राजद नेताओं की ओर से मुख्य चुनाव आयुक्त को यह जानकारी दी गयी कि चुनाव जैसे महत्वपूर्ण मौके पर आयोग की ओर से विभिन्न राजनीतिक दलों को कई पत्र्ा भेजे जाते है, जो अंग्रेजी में होते हैैं। इस कारण विभिन्न दलों के कई नेता-कार्यकर्त्ता इसे ठीक से समझ नहीं पाते हैं, इसलिए ऐसे महत्वपूर्ण पत्र्ाों को हिन्दी में भी अनुवाद कर उपलब्ध कराया जाये। इसके अलावा पार्टी नेताओं ने क्षेत्र्ाीय भाषाओं में भी पत्र्ा उपलब्ध कराने का आग्रह किया। 

राँची में जब मुख्य निर्वाचन आयुक्त वीएस संपत प्रेस को सम्बोधित कर रहे थे तो उनके बायें बैठे अधिकारी नींद ले रहे थे। देखिये चित्रों में--






शुक्रवार, 28 मार्च 2014

विदेशी फंड का घपला : काँग्रेस व भाजपा पर दिल्ली उच्च न्यायालय सख्त / FOREIGN FUNDING : DELHI HIGH SOURT RIGOROUS ON CONGRESS & BJP


शीतांशु कुमार सहाय / SHEETANSHU KUMAR SAHAY
लोकसभा आम चुनाव होने वाले हैं। पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व काँग्रेस के बीच ही मुख्य टक्कर है। पर, इस बीच सबसे आश्चर्य की बात है कि मात्र एक वर्ष की आम आदमी पार्टी (आप) पूरे देश में तीसरे स्थान पर मीडिया के चुनाव कवरेज में बना हुआ है। अब इससे भी आश्चर्य की बात जानिये कि भाजपा और काँग्रेस ने विदेश से करोड़ों रुपयों का राजस्व अवैध तरीके से प्राप्त किया। इसपर शुक्रवार 28 मार्च 2014 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने सख्त रूख अपनाया है। इन दोनों के विरुद्ध 6 माह में जाँच का आदेश दिया है। वैसे यह मालूम हो कि ये दोनों दल आप के विदेशी फण्डिंग पर सवाल खड़ा करते रहे हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से कहा है कि काँग्रेस और भाजपा पर विदेशी फडिंग को लेकर लग रहे आरोपों पर उचित कार्रवाई करे। जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और जस्टिस जयंत नाथ की बेंच ने गृह मंत्रालय के रुख को खारिज करते हुए कहा कि दोनों राष्ट्रीय पार्टियों ने फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन रेग्युलेशन ऐक्ट का उल्लंघन किया है। कोर्ट ने गृह मंत्रालय और चुनाव आयोग को निर्देश दिया है कि राजनीतिक दलों की रसीदों की दोबारा जांच करके विदेशी फंडिंग की पहचान की जाए और छ: महीने के भीतर कार्रवाई की जाए। कोर्ट का यह आदेश असोसिएशन फॉर डेमॉक्रैटिक रीफॉर्म्स के वकील प्रशांत भूषण की उस जनहित याचिका पर दिया गया है जिसमें दावा किया गया था कि ब्रिटेन की कंपनी वेदांता और भारत में इसकी सहयोगी कंपनियां स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, सेसा गोवा और मालको भारत के राजनीतिक दलों काँग्रेस और भाजपा को कई करोड़ रुपये की फंडिंग कर रही हैं। हाई कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि कंपनीज़ ऐक्ट 1956 के हिसाब से वेदांता एक विदेशी कंपनी है। इस हिसाब से इसके और इसकी सहयोगी कंपनियों स्टरलाइट और सेसा को विदेशी सोर्स माना जाए। हाई कोर्ट ने कहा, 'पहली नजर में लगता है कि काँग्रेस और भाजपा साफ-साफ विदेशी फंडिंग पर लगाई गई रोक का उल्लंघन कर रही हैं क्योंकि स्टरलाइट और सेसा से जो धन मिला है वह कानूनन विदेशी धन है।' जनहित याचिका में वेदांता की 2012 की वार्षिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2011-12 में उसने 20.1 लाख डॉलर की राजनीतिक फंडिंग दी। कानूनन कोई भारतीय पार्टी किसी विदेशी कंपनी से फंड नहीं ले सकती। उच्च न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि वेदांता कंपनी अधिनियम 1956 के तहत एक विदेशी कंपनी है और विदेशी योगदान (नियमन) अधिनियम, 1976 के तहत वेदांता और इसकी सहायक कंपनियां विदेशी स्रोत हैं। पीठ ने कहा, "प्रथम दृष्टया काँग्रेस और भाजपा ने कानून के दायरे में विदेशी स्रोत माने जाने वाले स्टरलाइट और सेसा से चंदा स्वीकार कर विदेशी योगदान (नियमन) अधिनियम का प्रत्यक्ष उल्लंघन किया है।" एनजीओ और केंद्र सरकार के पूर्व सचिव ईएएस शर्मा द्वारा दायर याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि दोनों पार्टियों ने वेदांता सर्विसेज से चंदा लिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और विदेशी योगदान (नियमन) अधिनियम (एफसीआरए) का उल्लंघन किया है। याचिका के मुताबिक, वेदांता के 2012 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उसने 2011-12 में 20.1 लाख डॉलर का चंदा दिया है। याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि वित्त मंत्री पी.चिदंबरम मई 2004 तक वेदांता के निदेशक थे, इसलिए सरकार ने खुद इस समूह पर कोई कार्रवाई नहीं की।

सोमवार, 24 मार्च 2014

आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म की सर्वोच्च न्यायालय ने, दिया कड़ा निर्देश / AADHAR CARD IS NOT NECESSARY : SUPREME COURT



-शीतांशु कुमार सहाय।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह आधार कार्ड को सभी के लिए अनिवार्य बनाने के आदेश को तुरंत वापस ले। सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस आदेश के बाद भी कि आधार कार्ड नही होने के कारण किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए, नागरिकों के जबरन आधार कार्ड बनवाने के लिए मजबूर किए जाने पर सरकार को तुरंत इसकी अनिवार्यता खत्म कराने का निर्देश दिया है। केन्द्र की यूपीए सरकार को कड़ा झटका देते हुए न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आधार कार्ड को सबके लिये अनिवार्य बनाने के आदेश को तुरंत वापस लेने का सोमवार 24 मार्च 2014 को निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि मुझे अनेक पत्र मिले हैं जिसमे कहा गया है कि अदालत के आदेश के बावजूद आधार कार्ड बनाना अनिवार्य है। एक पत्र में तो यह लिखा है कि उसकी शादी का पंजीकरण इसलिये नहीं हो सका, क्‍योंकि उसके पास आधार कार्ड नहीं था। ऐसे ही एक और पत्र में लिखा है कि आधार कार्ड नहीं होने के कारण मकान की रजिस्ट्री नहीं हो सकी। पीठ ने कहा कि हम पहले ही आदेश दे चुके हैं कि आधार कार्ड नहीं होने के कारण किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिये और अगर कोई ऐसा निर्देश है कि आधार कार्ड होना अनिवार्य है तो उसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिये। पिछले साल सितंबर में ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आधार कार्ड जनसुविधाओं के लिए जरूरी नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही आधार कार्ड की जानकारी बिना संबंधित शख्स की मंजूरी के साझा नहीं करने का भी निर्देश दिया है।

आपको ज्ञात ही है कि देशभर के गैस एजेंसी वालों ने आधार कार्ड को आधार बनाकर कितनी मनमानी की और ग्राहकों को काफी परेशान किया। केन्द्र व राज्य सरकारें चुप रहीं तब सितम्बर 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार कार्ड की अनिवार्यता खत्म कर दी थी मगर तब भी सरकार व उसकी विभिन्न योजनाओं में इसकी अनिवार्यता को समाप्त नहीं किया गया था। इसलिये आज 24 मार्च 2014 को पुनः सर्वोच्च न्यायालय को कड़ा निर्देश देना पड़ा कि जहाँ भी इसकी अनिवार्यता केन्द्र या राज्य सरकारों ने जारी रखा है, उसे तुरन्त समाप्त किया जाये।

23 मार्च (शहादत दिवस) : कुछ देशभक्तों को याद आये शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु / SAHADAT DIVAS


23 मार्च 2014 को झारखण्ड की राजधानी राँची में चन्द लोगों ने मिलकर शहीदे आजम भगत सिंह व उनके मित्रों राजगुरु व सुखदेव का शहादत दिवस मनाया। स्थानीय मौलाना आजाद कॉलेज की ओर से शहादत पर चर्चा की गयी।

23 मार्च 2014 को कुछ संगठनों ने राँची के अलबर्ट एक्का चौक पर शहादत समारोह मनाया।

23 मार्च 2014 को राँची में शहादत दिवस पर सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन।

23 मार्च 2014 को सामाजिक कार्यकर्ता अन्‍ना हजारे सभी राजनीतिक दलों से तौबा कर पंजाब के अमृतसर के स्‍वर्ण मंदिर में मत्‍था टेकने के लिए पहुँचे। पर, उन्होंने शहादत दिवस पर कुछ नहीं कहा।



रविवार, 23 मार्च 2014

23 मार्च (शहादत दिवस) : भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को श्रद्धांजलि देने की फुर्सत नहीं है किसी को

 लाहौर से प्रकाशित 'द ट्रिब्युन' के बुधवार 25 मार्च 1931 ईश्वी के अंक का प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित सुखदेव, राजगुरु तथा भगत सिंह के फाँसी का समाचार।



-शीतांशु कुमार सहाय।
आज 23 मार्च है। आज ही के दिन सन् 1931 ईश्वी को शहीदे आजम भगत सिंह व उनके दो मित्रों सुखदेव व राजगुरु को अंग्रेजों ने फाँसी दे दी थी। देश की आजादी के लिए जीवन कुर्बान करने वालों के लिए देश के नेताओं के पास श्रद्धांजलि के लिए आज न समय मिला और न शब्द। आश्चर्य है कि लोकसभा निर्वाचन की गहमागहमी के दौरान विभिन्न दलों के छोटे-बड़े नेताओं ने देशभर में हजारों सभाएँ कीं मगर किसी को भी उन शहीदों की याद न आयी। दूसरी तरफ जिस गद्दार शोभा सिंह की गवाही पर इन देशभक्तों को मौत की सजा दी गयी, उसके बेटे खुशवन्त सिंह की तीन दिनों पूर्व 20 मार्च 2014 को मौत हुई तो राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर तमाम बड़े-छोटे नेताओं ने शोक में उसके प्रति कसीदे पढ़े। सबने खुशवन्त को महान बताया, उनके बाप को आधी दिल्ली का निर्माता बताया। पर, किसी ने इतिहास का वह सच नहीं बताया कि खुशवन्त का पिता ही वह सख्श था जिसके मुँह खोलने से भारत माँ के तीन सपूतों की जीवनलीला समाप्त हो गयी!
इस सन्दर्भ में मैं 20 मार्च 2014 को खुशवन्त पर जो लिखा था, उसे अपने मित्रों के लिए एक बार फिर से पेश कर रहा हूँ---

देशद्रोही के पुत्र खुशवन्त सिंह की मौत
20 मार्च 2014 ईश्वी तदनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम सम्वत् 2070 को खुशवन्त सिंह का 99 वर्षों की अवस्था में निधन हो गया। पूरे इण्टरनेट पर एक गद्दार के बेटे के मरने पर शोक से भरे समाचार भरे पड़े हैं। पर, जिन्होंने शोक के शब्द कहे या शोक के शब्द लाचारी में बोले या लिखित शोक-संदेश पढ़े, वे शायद इतिहास को नहीं जानते या इतिहास को जान-बूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं। ऐसे तमाम लोगों को खुशवन्त की असलियत भी जाननी चाहिये। अंग्रेजी सरकार के पिट्ठू बन गए थे खुशवन्त के पिता। भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे भगत सिंह। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है। आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत के साथ लेता है। जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है– ''भगत सिंह एक प्रतीक बन गया। सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गाँव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूँज उठा। उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।''
भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ खुशवन्त के पिता ने दी थी गवाही---
जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने कुछ लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था खुशवन्त का पिता शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को पहले देश निकाला मिला फिर लाहौर में चले मुकद्दमें में उन्हें उनके दो साथियों समेत फाँसी की सजा मिली जिसमें अहम गवाह था शादी लाल।
खुशवन्त के पिता की गद्दारी के ऐतिहासिक दस्तावेज---
प्रेमचंद सहजवाला ने भगत सिंह के कई अनछुए पहलुओं पर एक अनोखी किताब लिख रखी है। किताब का नाम है, ‘भगत सिंह, इतिहास के कुछ और पन्ने‘। जिस दिन भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका था उस दिन के बारे में विस्तार से बताया गया है। किताब के मुताबिक शोभा सिंह ने न सिर्फ गवाही दी थी, बल्कि भगत सिंह को पकड़वाया भी था। किताब मे प्रमुख इतिहासकार ए जी नूरानी के हवाले से लिखा गया है--- ''शोभा सिंह, जो कि नई दिल्ली के निर्माण में प्रमुख ठेकेदार थे, अभी-अभी गैलरी में प्रविष्ट हुए थे। वे अपने चंद मित्रों के चेहरे खोज रहे थे जिनके साथ उन्हें बाद में भोजन करना था….. ठीक इसी क्षण धमाक-धमाक की आवाज से दोनों बम गिरे थे। सभी भागने लगे, लेकिन शोभा सिंह दोनों पर नजर रखने के लिए डटे रहे…. जैसे ही पुलिस वाले आए शोभा सिंह ने दो पुलिसकर्मियों को उनकी ओर भेजा और स्वयं भी उनके पीछे लपके… पुलिस जब नौजवानों के निकट पहुंची तब किसी भी अपराध बोध से मुक्त अपने किए पर गर्वान्वित दोनों वीरों ने खुद ही अपनी गिरफ़्तारी दी…।''
शोभा सिंह व शादी लाल को गद्दारी का इनाम---
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। लेकिन शादी लाल को गाँव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था। इस नाते शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। शोभा सिंह को अंग्रेजों ने ‘सर’ की उपाधि दी थी। खुशवंत सिंह ने खुद भी लिखा है कि ब्रिटिश सरकार ने उनके पिता को न सिर्फ महत्वपूर्ण ठेके दिए बल्कि उनका नाम नॉर्थ ब्लॉक में लगे पत्थर पर भी खुदवाया था। इतना ही नहीं, खुशवंत सिंह के ससुर यानि शोभा सिंह के समधी पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (सीपीडब्ल्यूडी) का प्रमुख बनने का ‘अवसर’ प्राप्त हुआ था। कहते हैं ‘सर’ शोभा सिंह और उसके परिवार को दो रुपए प्रति वर्ग गज पर वह जमीन मिली थी जो कनॉट प्लेस के पास है और आज दस लाख रुपए वर्ग गज पर भी उपलब्ध नहीं है।
अपने को प्रतिष्ठित करते रहे खुशवन्त---
शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की। खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जुटे गद्दार को महिमामण्डित करने---
अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जाए कि प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस नाम के चौराहे (जहां ली मेरीडियन, जनपथ और कनिष्क से शांग्रीला बने तीन पांच सितारा होटल हैं) का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। हालाँकि अबतक ऐसा नहीं हो पाया है; क्योंकि इसका भारी विरोध भी हुआ। क्या मनमोहन सिंह को इतिहास की जानकारी नहीं कि वे देशभक्त के विरोध में अंग्रेजों के पक्ष में गवाही देने वाले को प्रतिष्ठित करने का लिखित आदेश दे दिया। आश्चर्य होता है ऐसी काँग्रेसी सरकार पर और उसके मुखिया पर! गृह मंत्रालय को हारकर प्रधानमंत्री की अपील और दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को मानने से मना करना पड़ गया।
पिता के पक्ष से सफाई दी थी खुशवन्त ने---
जब खुशवन्त के पिता के नाम से दिल्ली में चौक का नाम नहीं पड़ा तो हिन्दुस्तान टाइम्स के अपने साप्ताहिक स्तम्भ 'विद मैलिस टूवार्ड्स वन एंड ऑल'  में खुशवंत सिंह ने अपने पिता को ‘सच्चा इन्सान’ बताया। लेख का शीर्षक है- 'जब सच बोलना अपराध बन गया'। लेख कुछ इस प्रकार है--- ''कुछ वक्त पहले मैंने नई दिल्ली बनाने वालों पर लिखा था। उनमें पांच लोग खास थे। मेरी शिकायत थी कि उनमें से किसी के नाम पर दिल्ली में सड़क नहीं है। तब तक मुझे नहीं पता था कि मनमोहन सिंह ने शीला दीक्षित को इस सिलसिले में एक चिट्ठी लिखी है। उनकी गुजारिश थी कि विंडसर प्लेस को मेरे पिता शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। उसके बाद एक किस्म का तूफान ही आ गया। कई लोगों ने विरोध जताया कि मेरे पिता तो ब्रिटिश सरकार के पिट्ठू थे। मैंने उस पर कुछ भी नहीं कहा। जब कुछ अखबारों ने उनका नाम भगत सिंह की सजा से जोडा, तो मुझे तकलीफ हुई। सचमुच, उस खबर में कोई सच नहीं था। दरअसल, शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इंस्पेक्टर सांडर्स और हेड कांस्टेबल चन्नन सिंह की हत्या की थी। वे इन दोनों से लाला लाजपत राय का बदला लेना चाहते थे। लाहौर में लालाजी की हत्या में उनका हाथ था। उसके बाद भगत सिंह और उनके साथी हिन्दुस्तान की आजादी के आंदोलन को दुनिया की नजरों में लाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तय किया कि संसद में हंगामा करेंगे। और फिर अपनी गिरफ्तारी दे देंगे। ठीक यही उन्होंने किया भी। ये लोग दर्शक दीर्घा में जा बैठे। वहीं मेरे पिता भी बैठे थे। संसद में बहस चल रही थी। और वह खासा उबाऊ थी। सो मेरे पिता ने अखबार निकाला और उसे पढ़ने लगे। अचानक पिस्टल चलने और बम के धमाके की आवाज सुनी। वहां बैठे बाकी लोग भाग लिए। रह गए मेरे पिता और दो क्रांतिकारी। जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आई, तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। मेरे पिता का जुर्म यह था कि उन्होंने कोर्ट में दोनों की पहचान की थी। दरअसल, मेरे पिता ने सिर्फ सच कहा था। सच के सिवा कुछ नहीं। क्या सच कहना कोई जुर्म है? फिर भी मीडिया ने शहीदों की फांसी से उन्हें जोड़ दिया। सचमुच उनका क्रांतिकारियों की फांसी से कोई लेना-देना नहीं था। यह एक ऐसे आदमी पर कीचड़ उछालना है, जो अपना बचाव करने के लिए दुनिया में नहीं है।''  हालांकि खुशवंत सिंह ने यह तो कुबूल किया था कि उनके मरहूम पिता ने भगत सिंह की शिनाख्त की थी, लेकिन शायद यह छिपा गए थे कि उनके पिता इस हद तक अंग्रेजी सरकार के पिट्ठू बन गए थे कि सिपाहियों के मददगार बनकर क्रांतिवीरों की गिरफ्तारी का इनाम लेने में जुट गए थे।
खुशवन्त के चाचा सरदार उज्जल सिंह---
शोभा सिंह के छोटे भाई उज्जल सिंह, जो पहले से ही राजनीति में सक्रिय थे, को 1930-31 में लंदन में हुए प्रथम राउंड टेबल कांफ्रेंस और 1931 में ही हुए द्वितीय राउंड टेबल कांफ्रेंस में बतौर सिख प्रतिनिधि लंदन भी बुलाया गया। उज्जल सिंह को वाइसरॉय की कंज्युलेटिव कमेटि ऑफ रिफॉर्म में रख लिया गया था। हालांकि जब सिखों ने कम्युनल अवार्ड का विरोध किया तो उन्होंने इस कमेटि से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन फिर 1937 में उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया। 1945 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कनाडा में यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर कांफ्रेंस में प्रतिनिधि बना कर भेजा और जब 1946 में संविधान बनाने के लिए कॉन्सटीच्युएंट असेंबली बनी तो उसमें भी शोभा सिंह के इस भाई को शामिल कर लिया गया। अंग्रेजों ने तो जो किया वह ‘ वफादारी ’ की कीमत थी, लेकिन आजादी के बाद भी कांग्रेस ने शोभा सिंह के परिवार पर भरपूर मेहरबानी बरपाई। उज्जल सिंह को न सिर्फ कांग्रेसी विधायक, मंत्री और सांसद बनाया गया बल्कि उन्हें वित्त आयोग का सदस्य और बाद में पंजाब तथा तमिलनाडु का राज्यपाल भी बनाया गया। अभी हाल ही में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर मौजूद उनकी 18,000 वर्गफुट की एक कोठी की डील तय हुई तो उसकी कीमत 160 करोड़ आंकी गई थी।
अमीरी में बीता खुशवंत का जीवन---
खुशवंत सिंह का जीवन भी कम अमीरी में नहीं बीता। उन्होंने अपने पिता के बनाए मॉडर्न स्कूल और सेंट स्टीफेंस के बाद लंदन के किंग्स कॉलेज व इनर टेंपल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाई की थी, जिसके बाद उन्होंने लाहौर में वकालत भी की, लेकिन आजादी के बाद दिल्ली आ गए और लेखन तथा पत्रकारिता शुरु कर दी। उन्होंने सरकारी पत्रिका ‘योजना’ का संपादन किया और फिर साप्ताहिक पत्रिका इलसट्रेटेड वीकली तथा नैश्नल हेराल्ड और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों के ‘सफल’ कहलाने वाले संपादक रहे। कहा जाता है कि खुशवंत सिंह ने अधिकतर उन्हीं अखबारों का संपादन किया जो कांग्रेस के करीबी माने जाते थे।
एक नजर डालिये शोक-संदेशों पर---
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई गणमान्य लोगों ने जाने माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह के निधन पर शोक जताया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। खुशवंत सिंह का 99 वर्ष की आयु में गुरुवार को निधन हो गया। प्रधानमंत्री ने खुशवंत को प्रतिभाशाली लेखक, स्पष्टवादी टिप्पणीकार और एक प्रिय मित्र बताया जिन्होंने सही रूप में सजनात्मक जीवन जीया। वयोवृद्ध लेखक पिछले कुछ समय से बीमार थे और सार्वजनिक जीवन से दूर रह रहे थे। उनके पुत्र और पत्रकार राहुल सिंह ने बताया कि उन्होंने सुजान सिंह पार्क स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी और दिवंगत आत्मा की शांति की कामना की। पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने सिंह के साथ टेनिस खेलने की बात याद की। उन्होंने कुछ शॉटों पर उनकी हंसी को याद करते हुए कहा कि वे आनंद के लिए खेलते थे, न कि प्रतिस्पर्धा के लिए। खुशवंत सिंह से जुड़े रहे लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी और उनके साथ बिताए क्षणों को याद किया। वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली ने उन्हें महान लेखक बताते हुए कहा कि खुशवंत सिंह का हास्यबोध काफी अच्छा था। टली ने कहा कि वह काफी स्पष्टवादी और साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि एक बार वह खुशवंत सिंह के साथ रात का खाना खा रहा था, जब सिंह ने उर्दू शायरी के अपना व्यापक ज्ञान से उनका परिचय कराया। टली के अनुसार खुशवंत एक प्यारा इंसान थे।


 शहीदों को श्रद्धांजलि दें और उनके अन्तिम क्षणों को पुनः याद करें---
आइये, गद्दारों से देश की रक्षा का संकल्प लेते हुए शहीदों को श्रद्धांजलि दें और उनके अन्तिम क्षणों को पुनः याद करें। सोमवार 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई । फाँसी पर जाने से पहले वे राम प्रसाद 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिन्ध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिन्ध से छापी थी। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनके फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा था- "ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।" फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले- "ठीक है अब चलो।"
फाँसी पर जाते समय भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु तीनों मस्ती से गा रहे थे--
''मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;
मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला...''
फाँसी के बाद कहीं कोई आन्दोलन न भड़क जाये इसके डर से अंग्रेजों ने पहले इनके मृत शरीर के टुकड़े किये फिर इसे बोरियों में भरकर फिरोजपुर की ओर ले गये जहाँ घी के बदले मिट्टी का तेल डालकर ही इनको जलाया जाने लगा। गाँव के लोगों ने आग जलती देखी तो करीब आये। इससे डरकर अंग्रेजों ने इनकी लाश के अधजले टुकड़ों को सतलुज नदी में फेंका और भाग गये। जब गाँव वाले पास आये तब उन्होंने इनके मृत शरीर के टुकड़ो कों एकत्रित कर विधिवत दाह संस्कार किया और भगत सिंह हमेशा के लिये अमर हो गये। इसके बाद लोग अंग्रेजों के साथ-साथ गाँधी को भी इनकी मौत का जिम्मेवार समझने लगे। इस कारण जब गाँधी काँग्रेस के लाहौर अधिवेशन में हिस्सा लेने जा रहे थे तो लोगों ने काले झण्डों के साथ गाँधी का स्वागत किया। एकाध जग़ह पर गाँधी पर हमला भी हुआ किन्तु सादी वर्दी में उनके साथ चल रही पुलिस ने बचा लिया।





झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के अनछुए पहलू Untouched Aspects of Rani Laxmibai of Jhansi

प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
    झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी के भदैनी नामक नगर में 19 नवम्बर 1835 ईश्वी में हुआ था। बचपन में उन का नाम मणिकर्णिका था। सब उनको प्यार से मनु कह कर पुकारा करते थे। उनके पिता का नाम मोरपंत व माता का नाम भागीरथीबाई था जो धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उनके पिता ब्राह्‌मण थे। सिर्फ़ 4 साल की उम्र में ही उन की माता की मृत्यु हो गई थी इसलिये मनु के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उन के पिता पर आ गई थी। मनु ने बचपन से ही पढ़ाई के साथ-साथ शिकार करना, तलवार-बाजी, घुड़सवारी आदि विद्याएँ सीखी।
    सन् 1842 ईश्वी में मनु की शादी झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुई। शादी के बाद मनु को 'लक्ष्मीबाई' नाम दिया ग़या। 1851 में इनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन मात्र 4 महीने बाद ही उन के पुत्र की मृत्यु हो गई। उनके पति का स्वास्थ्य बिगड़ गया तो सबने उत्तराधिकारी के रूप में एक पुत्र गोद लेने की सलाह दी। इसके बाद दामोदर राव को गोद लिया गया। 21 नवम्बर 1853 ईश्वी को महाराजा गंगाधर राव की भी मृत्यु हो गई। इस समय लक्ष्मीबाई 18 साल की थी और अब वो अकेली रह गई लेकिन रानी ने हिम्मत नहीं हारी व अपने फ़र्ज को समझा। ब्रिटिश सरकार ने बालक दामोदर को झाँसी का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया व झाँसी को ब्रितानी राज्य में मिलाने का षड्यन्त्र रचा। जब रानी को पता लगा तो उन्होंने एक वकील की मदद से लंदन की अदालत में मुकदमा दायर किया लेकिन ब्रितानियों ने रानी की याचिका खारिज कर दी व डलहौजी ने बालक दामोदर को उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वे झाँसी को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। अंग्रेजों से युद्ध के दूसरे ही दिन 18 जून 1858 ईश्वी को भारत की आजादी के लिये चलने वाले प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 22 साल की महानायिका लक्ष्मीबाई लड़ते-लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गई।
    इस आलेख में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के 2 छायाचित्र हैं। इन्हें लक्ष्मीबाई का वास्तविक छायाचित्र बताया जाता है। तलवार व योद्धा के साजो-सामान के साथ बैठी हुई अवस्था वाले चित्र को कोलकाता में रहने वाले अंग्रेज छायाकार जॉनस्टोन एंड हॉटमैन द्वारा 1850 ईश्वी में ही खींचा गया था। यह फोटो अहमदाबाद निवासी चित्रकार अमित अंबालाल के संग्रह में मौजूद है। दूसरा मुखाकृति वाले चित्र को भी सन् 1850 ईश्वी में अंग्रेज छायाकार हॉटमैन ने ही खींचा था। यह फोटो भी अहमदाबाद के चित्रकार अमित अम्बालाल के संग्रह में मौजूद है। इस फोटो को 19 अगस्त 2009 ईश्वी को भोपाल में आयोजित विश्व फोटोग्राफी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था।

    साहित्य में लक्ष्मीबाई पर खूब लेखनी चली मगर हिन्दी कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘झाँसी की रानी’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुई।

झाँसी की रानी

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।

चमक उठी सन् सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।

वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़|

महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में,

चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।

निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।

अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।

रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।

बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।

यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।

हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,

जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।

लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।

अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।

घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

सुभद्रा कुमारी चौहान
जन्म-- 16 अगस्त 1904
जन्म स्थान-- प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
मृत्यु-- 15 फरवरी 1948


शनिवार, 22 मार्च 2014

झारखण्ड : लोकसभा-2014 के लिए पहली बार किस्मत आजमा रहे हैं कई नये चेहरे / JHARKHAND : MANY NEW FACESES IN LOKSABHA ELECTION-2014



-आजसू से सबसे ज्यादा नये प्रत्याशी
शीतांशु कुमार सहाय
लोकसभा चुनाव में झारखण्ड से कुछ नये चेहरे भी किस्मत आजमा रहे हैं। हालाँकि कुछ चेहरे विधानसभा में प्रतिनिधितत्व कर चुके हैं तो कुछ पहली बार ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं। ऐसे नेता अब प्रदेश की राजनीति से निकलकर दिल्ली की सीट लपकने को बेचैन हैं। राज्य की 14 लोकसभा सीटों में से कई पर पार्टियों ने नये चेहरे उतारे हैं। उम्मीदवार पूर्व आइएएस, आइपीएस हांे या पार्टी कार्यकर्त्ता, जो भले ही पहली बार संसदीय चुनाव में एण्ट्री ले रहे हैं लेकिन वह अपने क्षेत्र के दिग्गज माने जाते हैं।
प्रत्याशियों की घोषणा के इस दौर में भाजपा ने झारखंड के पूर्व डीजीपी बीडी राम को पलामू से प्रत्याशी बनाया है। हजारीबाग से यशवंत सिन्हा के पुत्र जयन्त सिन्हा को मैदान में उतारा है।
यों काँग्रेस, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) चुनावी गठबंधन ने क्रमशः नौ-चार-एक सीटों से प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें काँग्रेस ने अजय दूबे को धनबाद से लोकसभा सीट से पहली बार उतारा है जबकि खूँटी से कालीचरण मुण्डा प्रत्याशी बनाये गये हैं। झामुमो ने विधायक जगन्नाथ महतो को गिरिडीह और काँग्रेस ने आये विजय हांसदा को राजमहल से टिकट दिया है। टेल्को के पूर्व अधिकारी निरूप मोहन्ती को जमशेदपुर से पहली बार मौका दिया गया है।
इसी तरह झारखण्ड विकास मोर्चा (झाविमो) ने पूर्व आइपीएस अमिताभ चौधरी को राँची से, नीलम देवी को चतरा से और कोडरमा से प्रणव वर्मा को प्रत्याशी बनाया है। तीनों पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं।
बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रदेश अध्यक्ष जलेश्वर महतो भी पहली बार गिरिडीह लोकसभा सीट से मैदान में है। झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चाईबासा से व एनोस एक्का खूँटी से पहली बार निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाल प्रत्याशियों की सबसे ज्यादा संख्या ऑल झारखण्ड स्टूडेण्ट्स यूनियन (आजसू) में है। आजसू पार्टी प्रमुख सुदेश महतो पहली बार राँची सीट से लोकसभा के लिए किस्मत आजमा रहे हैं। सुदेश झारखण्ड के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और वर्तमान में पार्टी के विधायक भी हैं। आजूस ने सुदेश के अलावा पूर्व आइपीएस सुबोध प्रसाद को गोड्डा सीट से, यूसी मेहता को गिरिडीह से, लोकनाथ महतो को हजारीबाग से पहली बार चुनाव मैदान में उतारा है।

गुरुवार, 20 मार्च 2014

देशद्रोही के पुत्र खुशवन्त सिंह की मौत / QUISLING'S SON KHUSHWANT SINGH DEAD


-शीतांशु कुमार सहाय
आज अर्थात् 20 मार्च 2014 ईश्वी तदनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम सम्वत् 2070 को खुशवन्त सिंह का 99 वर्षों की अवस्था में निधन हो गया। पूरे इण्टरनेट पर एक गद्दार के बेटे के मरने पर शोक से भरे समाचार भरे पड़े हैं। पर, जिन्होंने शोक के शब्द कहे या शोक के शब्द लाचारी में बोले या लिखित शोक-संदेश पढ़े, वे शायद इतिहास को नहीं जानते या इतिहास को जान-बूझकर नजरअंदाज कर रहे हैं। ऐसे तमाम लोगों को खुशवन्त की असलियत भी जाननी चाहिये। अंग्रेजी सरकार के पिट्ठू बन गए थे खुशवन्त के पिता। भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे भगत सिंह। शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है। आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत के साथ लेता है। जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है– ''भगत सिंह एक प्रतीक बन गया। सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गाँव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूँज उठा। उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।''
भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ खुशवन्त के पिता ने दी थी गवाही---
जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने कुछ लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था खुशवन्त का पिता शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को पहले देश निकाला मिला फिर लाहौर में चले मुकद्दमें में उन्हें उनके दो साथियों समेत फाँसी की सजा मिली जिसमें अहम गवाह था शादी लाल।
खुशवन्त के पिता की गद्दारी के ऐतिहासिक दस्तावेज---
प्रेमचंद सहजवाला ने भगत सिंह के कई अनछुए पहलुओं पर एक अनोखी किताब लिख रखी है। किताब का नाम है, ‘भगत सिंह, इतिहास के कुछ और पन्ने‘। जिस दिन भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका था उस दिन के बारे में विस्तार से बताया गया है। किताब के मुताबिक शोभा सिंह ने न सिर्फ गवाही दी थी, बल्कि भगत सिंह को पकड़वाया भी था। किताब मे प्रमुख इतिहासकार ए जी नूरानी के हवाले से लिखा गया है--- ''शोभा सिंह, जो कि नई दिल्ली के निर्माण में प्रमुख ठेकेदार थे, अभी-अभी गैलरी में प्रविष्ट हुए थे। वे अपने चंद मित्रों के चेहरे खोज रहे थे जिनके साथ उन्हें बाद में भोजन करना था….. ठीक इसी क्षण धमाक-धमाक की आवाज से दोनों बम गिरे थे। सभी भागने लगे, लेकिन शोभा सिंह दोनों पर नजर रखने के लिए डटे रहे…. जैसे ही पुलिस वाले आए शोभा सिंह ने दो पुलिसकर्मियों को उनकी ओर भेजा और स्वयं भी उनके पीछे लपके… पुलिस जब नौजवानों के निकट पहुंची तब किसी भी अपराध बोध से मुक्त अपने किए पर गर्वान्वित दोनों वीरों ने खुद ही अपनी गिरफ़्तारी दी…।''
शोभा सिंह व शादी लाल को गद्दारी का इनाम---
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। लेकिन शादी लाल को गाँव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था। इस नाते शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी। शोभा सिंह को अंग्रेजों ने ‘सर’ की उपाधि दी थी। खुशवंत सिंह ने खुद भी लिखा है कि ब्रिटिश सरकार ने उनके पिता को न सिर्फ महत्वपूर्ण ठेके दिए बल्कि उनका नाम नॉर्थ ब्लॉक में लगे पत्थर पर भी खुदवाया था। इतना ही नहीं, खुशवंत सिंह के ससुर यानि शोभा सिंह के समधी पहले ऐसे भारतीय थे जिन्हें सेंट्रल पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट (सीपीडब्ल्यूडी) का प्रमुख बनने का ‘अवसर’ प्राप्त हुआ था। कहते हैं ‘सर’ शोभा सिंह और उसके परिवार को दो रुपए प्रति वर्ग गज पर वह जमीन मिली थी जो कनॉट प्लेस के पास है और आज दस लाख रुपए वर्ग गज पर भी उपलब्ध नहीं है।
अपने को प्रतिष्ठित करते रहे खुशवन्त---
शोभा सिंह के बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था। खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की। खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जुटे गद्दार को महिमामण्डित करने---
अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जाए कि प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस नाम के चौराहे (जहां ली मेरीडियन, जनपथ और कनिष्क से शांग्रीला बने तीन पांच सितारा होटल हैं) का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। हालाँकि अबतक ऐसा नहीं हो पाया है; क्योंकि इसका भारी विरोध भी हुआ। क्या मनमोहन सिंह को इतिहास की जानकारी नहीं कि वे देशभक्त के विरोध में अंग्रेजों के पक्ष में गवाही देने वाले को प्रतिष्ठित करने का लिखित आदेश दे दिया। आश्चर्य होता है ऐसी काँग्रेसी सरकार पर और उसके मुखिया पर! गृह मंत्रालय को हारकर प्रधानमंत्री की अपील और दिल्ली सरकार के प्रस्ताव को मानने से मना करना पड़ गया।
पिता के पक्ष से सफाई दी थी खुशवन्त ने---
जब खुशवन्त के पिता के नाम से दिल्ली में चौक का नाम नहीं पड़ा तो हिन्दुस्तान टाइम्स के अपने साप्ताहिक स्तम्भ 'विद मैलिस टूवार्ड्स वन एंड ऑल'  में खुशवंत सिंह ने अपने पिता को ‘सच्चा इन्सान’ बताया। लेख का शीर्षक है- 'जब सच बोलना अपराध बन गया'। लेख कुछ इस प्रकार है--- ''कुछ वक्त पहले मैंने नई दिल्ली बनाने वालों पर लिखा था। उनमें पांच लोग खास थे। मेरी शिकायत थी कि उनमें से किसी के नाम पर दिल्ली में सड़क नहीं है। तब तक मुझे नहीं पता था कि मनमोहन सिंह ने शीला दीक्षित को इस सिलसिले में एक चिट्ठी लिखी है। उनकी गुजारिश थी कि विंडसर प्लेस को मेरे पिता शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। उसके बाद एक किस्म का तूफान ही आ गया। कई लोगों ने विरोध जताया कि मेरे पिता तो ब्रिटिश सरकार के पिट्ठू थे। मैंने उस पर कुछ भी नहीं कहा। जब कुछ अखबारों ने उनका नाम भगत सिंह की सजा से जोडा, तो मुझे तकलीफ हुई। सचमुच, उस खबर में कोई सच नहीं था। दरअसल, शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने इंस्पेक्टर सांडर्स और हेड कांस्टेबल चन्नन सिंह की हत्या की थी। वे इन दोनों से लाला लाजपत राय का बदला लेना चाहते थे। लाहौर में लालाजी की हत्या में उनका हाथ था। उसके बाद भगत सिंह और उनके साथी हिन्दुस्तान की आजादी के आंदोलन को दुनिया की नजरों में लाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने तय किया कि संसद में हंगामा करेंगे। और फिर अपनी गिरफ्तारी दे देंगे। ठीक यही उन्होंने किया भी। ये लोग दर्शक दीर्घा में जा बैठे। वहीं मेरे पिता भी बैठे थे। संसद में बहस चल रही थी। और वह खासा उबाऊ थी। सो मेरे पिता ने अखबार निकाला और उसे पढ़ने लगे। अचानक पिस्टल चलने और बम के धमाके की आवाज सुनी। वहां बैठे बाकी लोग भाग लिए। रह गए मेरे पिता और दो क्रांतिकारी। जब पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने आई, तो उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। मेरे पिता का जुर्म यह था कि उन्होंने कोर्ट में दोनों की पहचान की थी। दरअसल, मेरे पिता ने सिर्फ सच कहा था। सच के सिवा कुछ नहीं। क्या सच कहना कोई जुर्म है? फिर भी मीडिया ने शहीदों की फांसी से उन्हें जोड़ दिया। सचमुच उनका क्रांतिकारियों की फांसी से कोई लेना-देना नहीं था। यह एक ऐसे आदमी पर कीचड़ उछालना है, जो अपना बचाव करने के लिए दुनिया में नहीं है।''  हालांकि खुशवंत सिंह ने यह तो कुबूल किया था कि उनके मरहूम पिता ने भगत सिंह की शिनाख्त की थी, लेकिन शायद यह छिपा गए थे कि उनके पिता इस हद तक अंग्रेजी सरकार के पिट्ठू बन गए थे कि सिपाहियों के मददगार बनकर क्रांतिवीरों की गिरफ्तारी का इनाम लेने में जुट गए थे।
खुशवन्त के चाचा सरदार उज्जल सिंह---
शोभा सिंह के छोटे भाई उज्जल सिंह, जो पहले से ही राजनीति में सक्रिय थे, को 1930-31 में लंदन में हुए प्रथम राउंड टेबल कांफ्रेंस और 1931 में ही हुए द्वितीय राउंड टेबल कांफ्रेंस में बतौर सिख प्रतिनिधि लंदन भी बुलाया गया। उज्जल सिंह को वाइसरॉय की कंज्युलेटिव कमेटि ऑफ रिफॉर्म में रख लिया गया था। हालांकि जब सिखों ने कम्युनल अवार्ड का विरोध किया तो उन्होंने इस कमेटि से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन फिर 1937 में उन्हें संसदीय सचिव बना दिया गया। 1945 में उन्हें ब्रिटिश सरकार ने कनाडा में यूएन के फूड एंड एग्रीकल्चर कांफ्रेंस में प्रतिनिधि बना कर भेजा और जब 1946 में संविधान बनाने के लिए कॉन्सटीच्युएंट असेंबली बनी तो उसमें भी शोभा सिंह के इस भाई को शामिल कर लिया गया। अंग्रेजों ने तो जो किया वह ‘ वफादारी ’ की कीमत थी, लेकिन आजादी के बाद भी कांग्रेस ने शोभा सिंह के परिवार पर भरपूर मेहरबानी बरपाई। उज्जल सिंह को न सिर्फ कांग्रेसी विधायक, मंत्री और सांसद बनाया गया बल्कि उन्हें वित्त आयोग का सदस्य और बाद में पंजाब तथा तमिलनाडु का राज्यपाल भी बनाया गया। अभी हाल ही में दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर मौजूद उनकी 18,000 वर्गफुट की एक कोठी की डील तय हुई तो उसकी कीमत 160 करोड़ आंकी गई थी।
अमीरी में बीता खुशवंत का जीवन---
खुशवंत सिंह का जीवन भी कम अमीरी में नहीं बीता। उन्होंने अपने पिता के बनाए मॉडर्न स्कूल और सेंट स्टीफेंस के बाद लंदन के किंग्स कॉलेज व इनर टेंपल जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ाई की थी, जिसके बाद उन्होंने लाहौर में वकालत भी की, लेकिन आजादी के बाद दिल्ली आ गए और लेखन तथा पत्रकारिता शुरु कर दी। उन्होंने सरकारी पत्रिका ‘योजना’ का संपादन किया और फिर साप्ताहिक पत्रिका इलसट्रेटेड वीकली तथा नैश्नल हेराल्ड और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों के ‘सफल’ कहलाने वाले संपादक रहे। कहा जाता है कि खुशवंत सिंह ने अधिकतर उन्हीं अखबारों का संपादन किया जो कांग्रेस के करीबी माने जाते थे।
एक नजर डालिये शोक-संदेशों पर---
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कई गणमान्य लोगों ने जाने माने लेखक और पत्रकार खुशवंत सिंह के निधन पर शोक जताया और उन्हें श्रद्धांजलि दी। खुशवंत सिंह का 99 वर्ष की आयु में गुरुवार को निधन हो गया। प्रधानमंत्री ने खुशवंत को प्रतिभाशाली लेखक, स्पष्टवादी टिप्पणीकार और एक प्रिय मित्र बताया जिन्होंने सही रूप में सजनात्मक जीवन जीया। वयोवृद्ध लेखक पिछले कुछ समय से बीमार थे और सार्वजनिक जीवन से दूर रह रहे थे। उनके पुत्र और पत्रकार राहुल सिंह ने बताया कि उन्होंने सुजान सिंह पार्क स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी और दिवंगत की आत्मा की शांति की कामना की। पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने सिंह के साथ टेनिस खेलने की बात याद की। उन्होंने कुछ शॉटों पर उन की हंसी को याद करते हुए कहा कि वे आनंद के लिए खेलते थे, न कि प्रतिस्पर्धा के लिए। खुशवंत सिंह से जुड़े रहे लोगों ने उन्हें सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि दी और उनके साथ बिताए क्षणों को याद किया। वरिष्ठ पत्रकार मार्क टली ने उन्हें महान लेखक बताते हुए कहा कि खुशवंत सिंह का हास्यबोध काफी अच्छा था। टली ने कहा कि वह काफी स्पष्टवादी और साहसी व्यक्ति थे। उन्होंने कहा कि उन्हें याद है कि एक बार वह खुशवंत सिंह के साथ रात का खाना खा रहा था, जब सिंह ने उर्दू शायरी के अपना व्यापक ज्ञान से उनका परिचय कराया। टली के अनुसार खुशवंत एक प्यारा इंसान थे। (कुछ अंश मीडिया दरबार से साभार)


शुक्रवार, 14 मार्च 2014

उपलब्धि : झारखंड की राजधानी राँची में पहली बार आदिवासी दर्शन पर राष्ट्रीय सेमिनार First Time in India A Seminar on Tribal Philosophy at Ranchi


-शीतांशु कुमार सहाय।
देश ने पहली बार महसूस किया कि आदिवासियों का भी कोई दर्शन होता है। आदिवासियों के दर्शन को जानने और आदिवासी दार्शनिकों के विचारों से देशवासियों के ज्ञान में वृद्धि करने का मन बनाया गया है। झारखंड की राजधानी राँची में पहली बार आदिवासी दर्शन और साहित्य पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन होने जा रहा है। यह आयोजन भारत में भी पहला है। 22 व 23 मार्च 2014 को राँची के एसडीसी के बिशप कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित इस सेमिनार में देश के विभिन्न राज्यों से आदिवासी लेखक, विद्वान और रिसर्च स्कॉलर जुटेंगे। सेमिनार का उद्घाटन इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय आदिवासी विश्वविद्यालय के कुलपति टीवी कट्टीमनी करेंगे। ‘झारखंडी भाषा साहित्य संस्कृति अखाड़ा’ और जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग मारवाड़ी कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम के अंत में आदिवासी दर्शन और साहित्य पर घोषणा पत्र भी जारी किया जायेगा। अखाड़ा के केंद्रीय प्रवक्ता केएम सिंह मुंडा ने बताया कि 2-दिवसीय सेमिनार पाँच सत्रों में आयोजित होगा। पहले दिन कथा-साहित्य पर और दूसरे दिन आदिवासी कविताओं पर आदिवासी दर्शन के आलोक में विमर्श होगा। इस अवसर पर झारखंडी पुस्तक मेला और झारखंड के संघर्ष व सृजन पर एक चित्र प्रदर्शनी भी लगेगी। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व 21 मार्च की शाम से तीन दिनों का आदिवासी-दलित राष्ट्रीय नाट्य समारोह भी शुरू होगा जिसमें देश के चुनिंदा व लोकप्रिय नाटकों का प्रदर्शन होगा। अब देखते हैं कि आदिवासियों के दर्शन का प्रथम राष्ट्रीय कार्यक्रम कितना सफल होता है?

बुधवार, 12 मार्च 2014

उपलब्धि : झारखंड में शिशु मृत्यु दर सबसे कम



-शीतांशु कुमार सहाय।
झारखंड में शिशु मृत्यु दर सबसे कम दर्ज किया गया है। हाल में जारी वार्षिक स्वास्थ्य सर्वे के ताजा सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार झारखंड में 2010-11  के दौरान शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्म में 41 था, जो कि 2011-12 के दौरान घटकर 38 हुआ और अब 2012-13 में यह 36 पहुंच गया है। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया के कार्यालय के द्वारा यह सर्वेक्षण 9 राज्यों के 304 जिलों में कराया गया था। इन राज्यों मंे झारखंड के अलावा उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उड़ीसा और असम शामिल हैं। उŸाराखंड में यह दर 40, छŸाीसगढ़ में 46, बिहार में 48, असम व राजस्थान में 55, ओड़िशा में 56, मध्य प्रदेश में 62 एवं उŸार प्रदेश में सबसे अधिक 68 दर्ज की गयी है।
रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के पांच जिले शिशु मृत्यु दर को 28 तक घटाकर सहस्राब्दी विकास लक्ष्य प्राप्त कर चुके हैं। इन जिलों में पूर्वी सिंहभूम, जहाँ शिशु मृत्यु दर 25, धनबाद 26, बोकारो 28, गिरिडीह 28 और कोडरमा 27 शामिल हैं। राज्य के अन्य चार जिले भी 2015 के अंत तक शिशु मृत्यु दर के इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हैं। इनमें हजारीबाग 29, राँची 30, देवघर 31 और गढ़वा 33 शामिल है। हालाँकि, कुछ जिलों में शिशु मृत्यु दर अभी भी काफी ऊँचा है। इनमें गोड्डा 54, साहिबगंज व पाकुड़ 52 और पश्चिमी सिंहभूम और लोहरदगा 53 शामिल हैं। राज्य में न केवल शिशु मृत्यु दर बल्कि नवजात मृत्यु दर में भी गिरावट आयी है। वर्तमान में यह प्रति 1000 जीवित जन्मंे बच्चों में 23 है। 2010-11 में यह 26 और 2011-12 में  24 था।
यूनिसेफ के झारखंड प्रमुख जॉब जकारिया ने कहा कि झारखंड 2015 तक शिशु मृत्यु दर को 28 तक घटाकर सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि शिशु मृत्यु और नवजात मृत्यु को घटाने के लिए संस्थागत प्रसव, जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान, जन्म के पहले 6 महीने तक सिर्फ स्तनपान, महिलाओं में एनीमिया और खुले में शौच को घटाने के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना भी जरूरी है।

अरविन्द केजरीवाल को बुरा कहने से पहले सोचें / Arvind Kejriwal & AAP is not Bad


-शीतांशु कुमार सहाय।
आप अरविन्द केजरीवाल की तुलना किस दल के किस नेता से कर रहे हैं? याद रखो मेरे मित्र कि काँग्रेस को 82.50 प्रतिशत, भाजपा को 73.00, बसपा को 61.80, राकाँपा को 91.58 और अपने को गरीबों का मसीहा बताने वाले वामपंथी दलों भाकपा को 14.70 और माकपा को 53.80 प्रतिशत आय अज्ञात स्रोत से प्राप्त होते हैं। याद रखना कि आम आदमी पार्टी तो हर दिन प्राप्त होने वाला आय उजागर कर देती है। वैसे यहाँ बता दूँ कि मैं आप या किसी अन्य दल से जुड़ा हुआ नहीं हूँ। बतौर पत्रकार अपने कर्त्तव्य का पालन करते हुए सच्चाई से अवगत करा रहा हूँ।
-सूचना का अधिकार कानून और राजनीतिक दल
यह भी याद रखिये कि जब राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखने के लिए केन्द्र की मनमोहन सरकार ने 2013 में कानून बनाया तो धुर विरोधी भाजपा भी काँग्रेस के साथ हो गयी। ऐसे में मेरे मित्र! राजनीतिक दलों ने (आम आदमी पार्टी को छोड़कर) अवैध धन पचाने का अस्त्र खोज लिया। अब कोई ऐसे दलों से उनकी आय और आय का स्रोत नहीं पूछ सकता। क्या राजनीतिक दल जनता के प्रति जवाबदेह नहीं? मेरे मित्र, जरा यह सवाल उस दल से अवश्य पूछ लीजिये जिसे आप चुनाव में अपना मत देंगे।
-दल ही पारदर्शी नहीं तो...
जब राजनीतिक दल ही पारदर्शी नहीं तो उसके नेता किस मुँह से व्यवस्था में पारदर्शिता या भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की नैतिकता रखते हैं। किसी को गाली देने से पहले या तो अपने अन्दर झाँकना चाहिये या उसकी तरफ गौर से देखना चाहिये जिसे आप चाहते हैं अर्थात् जिसके समर्थन में आप किसी और को बुरा कह जाते हैं।
-जहाँ जनता को अपनी आय बताते हैं दल
याद रखिये कि विश्व के 40 देशों में राजनीतिक दलों को अपनी आय, सम्पत्ति व देनदारियों का खुलासा करना पड़ता है। यह आँकड़ा कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशियेटिव ने वर्ष 2013 में दिया है। इस आँकड़े के अनुसार नेपाल, जर्मनी, स्वीडेन, तुर्की, आर्मेनिया, ऑस्ट्रिया, भूटान, ब्राजील, बुल्गारिया, फ्रांस, इटली, जापान, घाना, यूनान, हंगरी, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पोलैण्ड, रोमानिया, स्लोवाकिया, सूरीनाम, तजाकिस्तान, यूक्रेन, उज्बेकिस्तान, अमेरिका, ब्रिटेन, बेल्जियम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, दक्षिण अमेरिका आदि देश शामिल हैं जहाँ के राजनीतिक दल जनता के प्रति वफादार हैं और जनता को अपनी आय-व्यय बताते हैं।
-मुकेश अम्बानी और केजरीवाल
मेरे मित्र! जानिये यह भी कि विगत दिनों जब दिल्ली के मुख्यमंत्री रहते हुए अरविन्द केजरीवाल ने देश के अमीरतम मुकेश अम्बानी पर उनकी अनियमितता के कारण प्राथमिकी दर्ज करवायी तो सबने उनकी बुराई की। बुराई करने वाले सच्चाई नहीं जानते केवल मीडिया के समाचारों से अपना मत निर्धारित कर लेते हैं। दरअसल, इन दिनों अगर मीडिया केजरीवाल के विरोध में दिखायी दे रही तो उसका कारण यह है कि उन्होंने वैसे टीवी चैनलों पर कहा कि चैनलों पर मालिकों के नाम भी उजागर किये जाने चाहिये; ताकि उस पर दिखायी जाने वाली सामग्रियों की विश्वसनीयता के बारे में जनता निकट से समझ-बूझ सके। इससे कुछ मीडिया घरानों ने केजरीवाल के खिलाफ अघोषित अभियान चला रखा है। इसी का परिणाम हाल का कथित 55 सकेण्ड वाला सीडी-प्रकरण है। केजरीवाल का यह साक्षात्कार ‘आजतक’ चैनल पर प्रसारित हुआ था। आजतक के अनुसार, उस साक्षात्कार का सीधा प्रसारण किया गया था, अतः ‘यह ज्यादा दिखाना या वह कम दिखाना जैसी घटना घटी ही नहीं थी; क्योंकि प्रसारण लाइव था।
-घातक नया कानून
मेरे मित्र! एक बहुत जरूरी बात बता दूँ। इन दिनों मीडिया और कॉरपोरेट का घातक गठजोड़ बन रहा है। नये कानून के अनुसार, किसी कम्पनी को राजनीतिक दल को चन्दा देने के लिए एक ट्रस्ट बनाना होगा। अम्बानी, मित्तल सहित पाँच औद्योगिक घराने ऐसे ट्रस्ट बना रहे हैं। इसके अलावा दो दर्जन से अधिक कारोबारी समूह ऐसी ही योजना बना रहे हैं। नये नियम के तहत राजनीतिक दलों को ट्रस्ट के माध्यम से चन्दा देने पर कर में विशेष छूट मिलती है। चन्दे की यह रकम बिल्कुल गुप्त रहेगी जिसे किसी भी कानून के तहत जनता नहीं जान सकेगी। यही सच है हमारे भारतीय लोकतन्त्र का!

-आम आदमी पार्टी के चन्दे की पारदर्शिता
अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी राजनीतिक दलों के चन्दे की पारदर्शिता को बेहद महत्तवपूर्ण मानती है। यह दल कोई छिपा हुआ चन्दा नहीं लेती और प्रत्येक चन्दे को अपने वेबसाइट पर अपडेट करती है।
-काँग्रेस व भाजपा को मोटा चन्दा
वर्ष 2013 में जारी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की रपट के अनुसार, वर्ष 2004-05 से 2011-12 तक भारत में राजनीतिक दलों को 4,895 करोड़ रुपयों के चन्दे मिले। इस विशाल राशि को पाने वाले दलों में काँग्रेस, भाजपा, भाकपा, माकपा, बसपा और राकाँपा हैं। इनमें से 3,674 करोड़ रुपयों के चन्दे अज्ञात स्रोत से प्राप्त हुए। काँग्रेस को 2365.05 करोड़ रुपये, भाजपा को 1304.22 करोड़ रुपये और बसपा को 497.44 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं।

शुक्रवार, 7 मार्च 2014

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च 2014) पर विशेष : झारखण्ड में महिलाओं की स्थिति में सुधार, पर काफी कुछ किया जाना शेष / INTERNATIONAL WOMEN'S DAY : WOMEN ON PROGRESSIVE WAY IN JHARKHAND BUT...



-शीतांशु कुमार सहाय
झारखण्ड में पिछले 10-12 सालों में महिलाओं और लड़कियों की स्थिति में सुधार हुए हैं लेकिन अभी भी काफी कुछ किये जाने की जरुरत है। राज्य में पिछले दस सालों में लिंगानुपात में सुधार देखा गया है। 2001 में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं का अनुपात 941 था। वर्ष 2011 में यह प्रति 1000 पुरुषों पर 949 महिलाओं का हो गया। इसी अवधि में शिशु लिंगानुपात (0-6 वर्ष) में गिरावट दर्ज की गयी। 2001 में यह प्रति 1000 लड़कों पर 965 लड़कियों का था जो 2011 में प्रति 1000 लड़कों पर 948 लड़कियों का हो गया।
साक्षरता:-
झारखण्ड में लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि दर्ज की गयी है। 2001 में यह 39 प्रतिशत था जो 2011 में बढ़कर 55 प्रतिशत पर पहुँच गया। यह आँकड़ा राष्ट्रीय 65 प्रतिशत से अभी भी नीचे है।
लड़कियों की शिक्षा-
विद्यालयों में कक्षा 1-8 तक में लड़कियों के नामांकन में काफी सुधार हुआ है। राज्य की प्रायः सभी लड़कियाँ क्लास 1-8 तक में नामांकित हैं। कक्षा 11-12 में मात्र 12 प्रतिशत लड़कियाँ ही नामांकित हैं।
लड़कियों की शिशु मृत्यु दर-
पिछले 12 वर्षों में लड़कियों (और लड़कों के भी) शिशु मृत्यु दर में आधी से अधिक गिरावट दर्ज की गयी है। यह वर्ष 2000 में प्रति एक हजार जीवित बच्चे के जन्म में 79 की मृत्यु के आँकड़े से घटकर 2012 में 39 तक पहुँच गया।
कुपोषण-
कुपोषण के सभी मानकों (उम्र की तुलना में कम वजन, उम्र की तुलना में कम लंबाई और लंबाई की तुलना में कम वजन) में लड़कियों की स्थिति लड़कों से थोड़ी बेहतर है।
मातृ मृत्यु-
झारखण्ड राज्य में मातृ मृत्यु में गिरावट दर्ज की गयी है। 2004-05 में प्रति एक लाख बच्चों के जन्म में माताओं की मृत्यु का आँकड़ा 312 का था जो 2010-12 में घटकर 219 पर पहुँच गया। सहस्राब्दी विकास लक्ष्य के तहत 2015 के अंत तक मातृ मृत्यु दर घटाकर 109 पर लाना है।
बाल विवाह-
2005-06 में बाल विवाह दर 63 प्रतिशत था जो 2007-08 में 56 प्रतिशत हो गया। वर्ष 2011-12 में यह आँकड़ा 48 प्रतिशत तक पहुँच गया।
महिलाओं के खिलाफ अपराध-
महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में झारखण्ड में 100 प्रतिशत वृद्धि दर्ज की गयी है, खासकर जघन्य अपराधों के मामले में।

बुधवार, 5 मार्च 2014

सबसे बड़ा चुनाव : 9 चरणों में लोकसभा चुनाव, 16 को मतगणना / Loksabha Election-2014 in 9 Steps


बुधवार  5 मार्च 2014 को मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त संपत कुमार ने लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया।
प्रत्याशी को नकारने का अधिकार---
वर्ष 2014 का लोकसभा निर्वाचन में पहली बार मतदाताओं को अपनी अनिच्छा प्रकट करने का अवसर मिला है। इस बार के मतदान में जब मतदाता को लगेगा कि उनके क्षेत्र से खड़े सभी प्रत्याशी उनके मनोनुकुल नहीं हैं या यदि सभी प्रत्याशी उनकी नजर में भ्रष्ट हों तो वह ‘नोटा’ (एनओटीए) बटन दबा सकते हैं। नोटा (एनओटीए) का मतलब है- नॉन ऑफ द एबव अर्थात् ‘ऊपर्युक्त में से कोई नहीं’। यों मतदाताओं को मतदान के दौरान प्रत्याशी को नकारने का अधिकार मिल गया है। देखना है कि इस बार नोटा की चपेट में आकर कितने प्रत्याशी पराजित होते हैं। 
72 दिनों का आचार संहिता---
तारीखों के ऐलान के साथ ही आने वाले 72 दिनों के लिए देशभर में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है, यानी सरकार अब कोई नया बिल पेश नहीं कर पाएगी। चुनाव आयोग पहले ही साफ कर चुका है कि लोकपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया को आचार संहिता से बाहर रखा जाएगा; क्योंकि बिल को पहले ही मंजूरी मिल चुकी है। लोकसभा चुनाव 9 चरणों में होगा। चुनाव आयोग ने 58 पन्‍नों का कार्यक्रम छपवाया है। मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त संपत कुमार ने बताया कि इम्तिहान और मौसम को ध्‍यान में रखकर चुनाव की तारीखें तय की गई हैं। लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्र प्रदेश, उड़ीसा और सिक्किम विधानसभा के चुनाव भी होंगे। मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने इस बात पर जोर दिया कि यह नौ चरणों में संपन्‍न होने वाला चुनाव नहीं है, बल्कि नौ तारीखों में संपन्‍न होगा और पूरी प्रक्रिया 72 दिन में ही पूरी हो जाएगी, पिछले चुनाव की तुलना में तीन दिन कम में ही। मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने बताया कि कई लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज नहीं। उनके लिए एक और मौका है। 9 मार्च (रविवार) को सभी मतदान केंद्रों पर मतदाता सूची में नाम जुड़वाने के लिए लोग बूथ लेवल के अफसर के पास फॉर्म जमा करा सकते हैं।
युवा मतदाता---
28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में दादर एवं नगर हवेली में सबसे ज्यादा युवा मतदाता (9.88 प्रतिशत) हैं, इसके बाद सबसे अधिक युवा मतदाता झारखंड (9.03 प्रतिशत) में हैं। अंडमान निकोबार द्वीप समूह में ऐसे मतदाताओं (1.1 प्रतिशत) की संख्या सबसे कम है। संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश में 18-19 साल के बीच के मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक 38.1 लाख है और इसके बाद पश्चिम बंगाल का नंबर आता है जहाँ यह संख्या लगभग 20.8 लाख है। 6 राज्यों, राजस्थान (25 सीट), छत्तीसगढ़ (11), मध्य प्रदेश (29), पश्चिम बंगाल (42), उत्तर प्रदेश (80) और असम (14) की 201 लोकसभा सीटों पर 18 से 19 वर्ष की आयु वाले मतदाताओं की संख्या राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है।
महिला मतदाता--- 
देश के कुल मतदाताओं में पुरुष मतदाता 52.4 प्रतिशत और महिला मतदाताओं की संख्‍या 47.6 प्रतिशत है। 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों में से 21 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में महिला मतदाताओं का अनुपात 47.6 प्रतिशत के राष्ट्रीय अनुपात से अधिक है। आठ राज्य/केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जहाँ महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक है। पुडुचेरी में महिला मतदाताओं का अनुपात 52.01 प्रतिशत है जो देश में सबसे अधिक है। इसके बाद केरल में महिला मतदाताओं का अनुपात 51.90 प्रतिशत है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में महिला मतदाताओं का अनुपात सबसे कम 44.57 प्रतिशत है। इसके बाद उत्तर प्रदेश है जहाँ महिला मतदाताओं का अनुपात 45.20 प्रतिशत है।
मतदान की 9 तारीखें---
7 अप्रैल 2014- 2 राज्‍यों के 6 संसदीय क्षेत्रों में
9 अप्रैल 2014- 5 राज्‍यों के 7 संसदीय क्षेत्रों में
10 अप्रैल 2014- 14 राज्‍यों के 92 क्षेत्रों में
12 अप्रैल 2014- तीन राज्‍यों के पांच क्षेत्रों में
17 अप्रैल 2014- 13 राज्‍यों के 122 क्षेत्रों में
24 अप्रैल 2014- 12  राज्‍यों के 117 क्षेत्रों में
30 अप्रैल 2014- 9  राज्‍यों के 89 क्षेत्रों में
7 मई 2014- 7 राज्‍यों के 64 क्षेत्रों में
12 मई 2014- 3 राज्‍यों के 41 संसदीय क्षेत्रों में
पेड न्‍यूज---
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त वीएस संपत ने कहा कि कानून में 'पेड न्‍यूज' को अपराध मानने को लेकर कोई स्‍पष्‍ट प्रावधान नहीं है। हमने सरकार से अनुरोध किया है कि 'पेड न्‍यूज' को जुर्म घोषित किया जाए। 
ओपीनियन पोल---
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने कहा कि हमारे पास उपलब्‍ध ताकत का इस्‍तेमाल करने में हमें कोई हिचक नहीं होती। पर, जो अधिकार हमारे पास हैं ही नहीं, उनका इस्‍तेमाल हम कैसे कर सकते हैं। ओपीनियन पोल का मसला वैधानिक (लेजिस्‍लेटिव) अधिकार के तहत आता है।
नक्‍सल प्रभावित प्रदेश---
चुनाव आयुक्‍त एचएस ब्रह्मा ने कहा कि नक्‍सल प्रभावित सभी क्षेत्रों में एक ही दिन चुनाव कराने का फैसला लिया गया है।
कुल मतदान केंद्र---
9,30,000 मतदान केंद्र, पिछली बार से 12 प्रतिशत ज्‍यादा।
कुल मतदाता---
कुल मतदाता 81.4 करोड़, पिछले चुनाव की तुलना में दस करोड़ ज्‍यादा

होगा पहली बार---
- 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 81 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे।
- पहली बार चुनाव कार्यक्रम नौ चरणों में संपन्‍न होगा। पिछली बार लोकसभा चुनाव पांच चरण में हुए थे। 
- पहली बार 9,30,000 मतदान केंद्र बनेंगे।
- लोकसभा चुनाव में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग के साथ इलेक्ट्रॉनिक ट्रेल का भी कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में इस्तेमाल होगा। यानी वोटिंग के बाद एक पर्ची निकलेगी जो बताएगी कि वोट डल पाया है या नहीं। 
- यह पहला मौका होगा जब आम चुनाव में नोटा (नन ऑफ द अबव) के विकल्प का मतदाता इस्तेमाल कर पाएंगे। दिसंबर में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में इसे पहली बार लागू किया गया था।
- हर लोकसभा सीट पर करीब 1.79 लाख नए मतदाता वोट डालेंगे। चुनाव आयोग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के करीब 81.4 करोड़ मतदाताओं में 2.31 करोड़ मतदाताओं की उम्र 18 से 19 साल के बीच है, जो देश के कुल मतदाताओं का 2.8 प्रतिशत है।

राज्‍यवार चुनाव की तारीखें---
आंध्र प्रदेश :
17 सीटों पर 30 अप्रैल और 25 सीटों पर 7 मई।
अरुणाचल प्रदेश :
सभी 2 सीटों पर 9 अप्रैल।
असम :
]5 सीटों पर 7 अप्रैल, 3 सीटों पर 12 अप्रैल और 6 सीटों पर 27 अप्रैल।
बिहार :
6 सीटों पर 10 अप्रैल, 7 सीटों पर 17 अप्रैल, 7 सीटों पर 24 अप्रैल, 7 सीटों पर 30 अप्रैल, 7 सीटों पर 7 मई और 6 सीटों पर 12 मई।
छत्‍तीसगढ़ :
1 सीट पर 10 अप्रैल, 3 सीटों पर 17 अप्रैल और 7 सीटों पर 24 अप्रैल।
गोवा :
सभी 2 सीटों पर 17 अप्रैल।
गुजरात :
सभी 26 सीटों पर 30 अप्रैल।

हरियाणा :
सभी 10 सीटों पर 10 अप्रैल।
हिमाचल प्रदेश :
सभी 4 सीटों पर 7 मई।
जम्‍मू-कश्‍मीर :
1 सीट पर 10 अप्रैल, 1 सीट पर 17 अप्रैल, 1 सीट पर 24 अप्रैल, 1 सीट पर 30 अप्रैल और 2 सीटों पर 7 मई। 
झारखंड :
5 सीटों पर 10 अप्रैल, 5 सीटों पर 17 अप्रैल और 4 सीटों पर 24 अप्रैल।
कर्नाटक :
सभी 28 सीटों पर 17 अप्रैल।
केरल :
सभी 20 सीटों पर 10 अप्रैल।
मध्‍य प्रदेश :
9 सीटों पर 10 अप्रैल, 10 सीटों पर 17 अप्रैल और 10 सीटों पर 24 अप्रैल।
महाराष्‍ट्र :
10 सीटों पर 10 अप्रैल, 19 सीटों पर 17 अप्रैल और 19 सीटों पर 24 अप्रैल।
मणिपुर :
1 सीट पर 9 अप्रैल और 1 सीट पर 17 अप्रैल।
मेघालय :
सभी 2 सीटों पर 9 अप्रैल।
मिजोरम :
1 मात्र सीट पर 9 अप्रैल।
नागालैंड :
1 मात्र सीट पर 9 अप्रैल।
ओडिशा :
10 सीटों पर 10 अप्रैल और 11 सीटों पर 17 अप्रैल।
पंजाब :
सभी 13 सीटों पर 30 अप्रैल।
राजस्‍थान :
20 सीटों पर 17 अप्रैल और 5 सीटों पर 27 अप्रैल।
सिक्किम :
1 मात्र सीट पर 12 अप्रैल।
तमिलनाडु :
सभी 39 सीटों पर 24 अप्रैल।
त्रिपुरा :
1 सीट पर 7 अप्रैल और 1 सीट पर 12 अप्रैल।
उत्‍तर प्रदेश :
10 सीटों पर 10 अप्रैल, 11 सीटों पर 17 अप्रैल, 12 सीटों पर 24 अप्रैल, 14 सीटों पर 30 अप्रैल, 15 सीटों पर 7 मई और 18 सीटों पर 12 मई।
उत्‍तराखंड :
सभी 5 सीटों पर 7 मई।
पश्चिम बंगाल :
4 सीटों पर 17 अप्रैल, 6 सीटों पर 24 अप्रैल, 9 सीटों पर 30 अप्रैल, 6 सीटों पर 7 मई और 17 सीटों पर 12 मई।
अंडमान और निकोबार :
1 मात्र सीट पर 10 अप्रैल।
चंडीगढ़ :
1 मात्र सीट पर 10 अप्रैल।
दादर और नागर हवेली :
1 मात्र सीट पर 30 अप्रैल।
दमन और दीव :
1 मात्र सीट पर 30 अप्रैल।
लक्षद्वीप :
1 मात्र सीट पर 10 अप्रैल।
दिल्‍ली :
सभी 7 सीटों पर 10 अप्रैल।
पुडुचेरी :
1 मात्र सीट पर 24 अप्रैल।

खास सीटों पर चुनाव---
रायबरेली--- 30 अप्रैल
अमेठी--- 7 मई
पटना--- 17 अप्रैल
मुंबई की सभी सीटें, भिवंडी, ठाणे, नासिक--- 24 अप्रैल
जयपुर, अजमेर, बीकानेर, बाड़मेर, चुरू, सीकर--- 17 अप्रैल
भोपाल, ग्‍वालियर, राजगढ़--- 17 अप्रैल
कोलकाता--- 12 मई
लखनऊ, कानपुर--- 30 अप्रैल
इलाहाबाद--- 7 मई
वाराणसी--- 12 मई
अहमदाबाद, गांधीनगर--- 30 अप्रैल
गाजियाबाद, नोएडा--- 10 अप्रैल
गोरखपुर--- 12 मई
मैनपुरी--- 24 अप्रैल
नागपुर--- 10 अप्रैल
मतगणना---
16 मई - सभी सीटों के लिए मतगणना। मौजूदा 15वीं लोकसभा का कार्यकाल एक जून को खत्म होगा। लिहाजा 31 मई तक नई लोकसभा का गठन करना जरूरी है।

मंगलवार, 4 मार्च 2014

दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक देश भारत, अफगानिस्तान और सीरिया से ज्यादा बम धमाके होते हैं यहाँ / THIRD HIGHEST BLAST IN INDIA



-शीतांशु कुमार सहाय /SHEETANSHU KUMAR SAHAY
पूरी दुनिया को शांति और अहिंसा का संदेश देने वाला भारत अब सबसे खतरनाक देश में शामिल हो चुका है। नेशनल बॉम्ब डाटा सेंटर की ओर से जारी किये गये आंँकड़ों में यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में होने वाले बम धमाकों के मामले में दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक देश भारत है। पहले स्थान पर इराक और दूसरे स्थान पर पाकिस्तान है। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, इस मामले में अफगानिस्तान और सीरिया बेहतर स्थिति में हैं। भारत में अफगानिस्तान और सीरिया से ज्यादा बम धमाके होते हैं।
राष्ट्रीय डाटा सेंटर के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2013 में भारत में 212 बम धमाके हुए। इस दौरान अफगानिस्तान में 108 बम धमाके हुए जबकि बांग्लादेश में 75 और सीरिया में सिर्फ 36 बम धमाके हुए। भारत में 2013 में 2012 के मुकाबले कम बम धमाके हुए। 2012 में 241 बम धमाके हुए थे लेकिन 2013 में 2012 के मुकाबले ज्यादा लोग मारे गये। 2013 में हुए बम धमाकों में 130 लोग मारे गये और 466 घायल हुए। 2012 में हुए बम धमाकों में 103 लोग मारे गये जबकि 419 लोग घायल हुए।
पिछले 10 साल में भारत में हुए आईईडी धमाकों के विश्लेषण से पता चला कि 2004 से 2013 के बीच भारत में औसतन 298 बम धमाके हुए। उसमें 1,337 लोग मारे गये। यह अफगानिस्तान से काफी ज्यादा है। अफगानिस्तान में पिछले पाँच साल में 2010 तक अधिकतम 209 बम धमाके हुए। गौरतलब है कि इन आँकड़ों से यह भी पता चलता है कि दुनियाभर में होने वाले 75 प्रतिशत बम ब्लास्ट इराक, पाकिस्तान और भारत में होते हैं।