शुक्रवार, 11 अप्रैल 2014

पहली बार अरविंद केजरीवाल ने माना कि दिल्ली की सरकार से इस्तीफा देना गलत था / Resignation from Delhi Goverment was Wrong : Arvind Kejriwal

केजरीवाल ने दावा किया कि 'आप' निश्चित तौर पर 2 सीटें- वाराणसी और अमेठी जीतेगी।


आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने माना कि दिल्ली की सरकार से इस्तीफा देने का समय गलत था। एक अखबार से बात करते हुए केजरीवाल ने पहली बार यह स्वीकार किया है कि उन्हें दिल्ली की सरकार से किसी बेहतर समय पर इस्तीफा देना चाहिए था। केजरीवाल ने माना है कि इस्तीफा देने का फैसला ज्यादा जोश में आकर लिया गया इसके लिए किसी बेहतर मौके की तलाश करनी चाहिए थी। केजरीवाल ने पहली बार यह भी माना कि जिस वक्त कांग्रेस और बीजेपी ने जन लोकपाल बिल पर विरोध किया उसी रात उन्होने इस्तीफा देने का मन बनाया था लेकिन यह उनकी गलती थी,हालांकि अब उन्हें इसका कोई दुख या खेद नहीं नहीं है। अरविंद मानते हैं कि इस्तीफा देने का फैसला उसी रात नहीं करना चाहिए था। केजरीवाल अपनी पार्टी का प्रचार करने पंजाब और अमृतसर जा रहे थे इसी दौरान उन्होने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस बात का खुलासा किया।
इस्तीफे पर बोले केजरीवाल----
मुख्यमंत्री पद छोड़ने का उन्हें कोई मलाल नहीं है, लेकिन उन्हें लगता है कि जिस दिन कांग्रेस और बीजेपी ने उनके जनलोकपाल विधेयक को रोका, उन्हें उसी दिन इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिए था।
कुछ और वक्त लेना चाहिए था----
केजरीवाल ने इंटरव्यू में कहा, मुझे लगता है कि हमें अपने फैसले के पीछे का कारण बताने के लिए जनसभाएं करने के लिए कुछ और दिन लेने चाहिए थे और उसके बाद सरकार छोड़ी जा सकती थी। अब भविष्य की चिंता-केजरीवाल ने कहा कि अब आम आदमी पार्टी को अपने फ़ैसलों के प्रति भविष्य में सजग रहने की ज़रूरत है।
कांग्रेस बीजेपी ने भुनाया मौका----
अरविंद ने कहा, ''हमारे फ़ैसले और जनता के साथ संवादहीनता की वजह से कांग्रेस और भाजपा ये प्रचार करने में कामयाब रहे कि हम दिल्ली छोड़ कर भाग गए हैं।'' यह वजह है कि कांग्रेस और बीजेपी आम आदमी पार्टी पर ज़िम्मेदारी से बचने का आरोप लगाते रहे हैं।
आप के समर्थकों की संख्या घटी----
आप' ने मिडल क्लास के अपने समर्थन को नुकसान पहुंचाया है। इस सवाल पर केजरीवाल का जवाब था कि 'दो तरह के लोग सरकार से इस्तीफा देने से निराश हुए हैं। पहली कैटिगरी हमारे पक्के समर्थकों की है जो सरकार में हमारे काम को मानते हैं और हमारे लिए वोट करना जारी रखेंगे। दूसरी कैटिगरी उन लोगों की है जो अरविंद केजरीवाल को सीएम और मोदी को पीएम देखना चाहते हैं। इस कैटिगरी के लोग इस बात को हजम नहीं कर पा रहे कि मैंने मोदी को सीधी टक्कर दी है और ये लोग मुझसे काफी गुस्सा हैं। हमें ये समर्थक कभी भी वापस नहीं मिलेंगे, लेकिन इनकी संख्या काफी कम है।'
बीजेपी 180 से कम सीटें जीतेगी----
केजरीवाल लोकसभा चुनाव में ''आप' की संभावनाओं को लेकर पॉजिटिव नजर आए। उनका कहना था कि बीजेपी 180 से कम सीटें जीतेगी और 272 के आंकड़े से काफी पीछे रहेगी, जो बीजेपी के नेता नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक करियर के लिए घातक होगा। उन्होंने बताया, 'मेरी गणना कहती है कि बीजेपी 180 से कम सीटें जीतेगी और मोदी इस देश के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे।''
वाराणसी और अमेठी जीतेंगे----
केजरीवाल ने दावा किया कि 'आप' निश्चित तौर पर 2 सीटें- वाराणसी और अमेठी जीतेगी।

बुधवार, 9 अप्रैल 2014

मजीठिया वेतन आयोग के विरोधवाला पुनर्विचार याचिका खारिज : पत्रकारिता जगत का काला दिन / Majithia Wage Commission Opposed Petition Dismissed : Black day for the World of Indian Journalism


-शीतांशु कुमार सहाय
आज अर्थात् 9 अप्रैल 2014 का दिन भारतीय पत्रकारिता जगत में ‘काला दिन’ के रूप में दर्ज हो गया। इस दिन पत्रकारों, पत्रकारिता जगत और मीडिया घरानों को प्रभावित करनेवाले अतिमहत्त्वपूर्ण घटना घटी। पर, अत्यन्त अफसोस की बात है कि इस समाचार को देश के सभी समाचार पत्रों ने अपनी सुर्खियों से हटा दिया। यों कहें कि इसे किसी ने तरजीह ही नहीं दी। इस समाचार को प्रकाशित या प्रसारित ही नहीं किया गया। पत्रकारिता के इस अन्धेरगर्दी में ‘जनसत्ता एक्सप्रेस’ व ‘भड़ांस4मीडिया’ जैसे कुछ सितारे भी हैं जिन्होंने इसे अपने वेबपोर्टल पर इसे छापा।
मैं जिस अतिमहत्त्वपूर्ण समाचार की बात कर रहा हूँ, वह समाचार माध्यमों में कार्यरत पत्रकारों व गैर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन, भत्ते व छुट्टियाँ आदि का लाभ देने से सम्बन्धित है। दरअसल, 7 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि देश के सभी छोटे-बड़े मीडिया घरानों को अपने पत्रकारों व गैर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार वेतन, भत्ते व छुट्टियाँ आदि का लाभ अप्रैल 2014 से देना पड़ेगा। साथ ही न्यायालय के आदेश के अनुसार यह वेतन आयोग 11 नवंबर 2011 से लागू होगा जब इसे सरकार ने पेश किया था और 11 नवंबर 2011 से मार्च 2014 के बीच बकाया वेतन भी पत्रकारों को एक साल के अंदर चार बराबर किस्तों में दिया जाएगा। इसके साथ ही मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार अप्रैल 2014 से नया वेतन लागू किया जाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय के 7 फरवरी वाले आदेश पर कुछ मीडिया घरानों एबीपी प्रा.लि., इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, राजस्थान पत्रिका प्रा. लिमिटेड, उषोदया पब्लिकेशंस और द प्रिंटर्स (मैसूर) प्रा.लि. आदि ने पुनर्विचार याचिका दायर कर दी। इसे आज यानि 9 अप्रैल 2014 को सर्वोच्च न्यायालय ने सुनवाई के याग्य न करार देते हुए खारिज कर दिया। इस समाचार को किसी भी अखबार ने तरजीह नहीं दी और  9 अप्रैल 2014 को ‘पत्रकारिता जगत का काला दिन’ सिद्ध कर दिया। आखिर ऐसे अखबार किस मुँह से पाठकों के बीच अपने को स्वच्छ व निष्पक्ष साबित करते हैं! उनकी पक्षपात तो जगजाहिर हो गयी। क्या ऐसे समाचार माध्यमों के समाचारों पर पूरी तरह विश्वास करना चाहिये ???
जनसत्ता एक्सप्रेस में समाचार---        
''मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर फैसले पर पुनर्विचार के लिए सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे अखबार मालिकों को करारा झटका लगा है। इस मामले को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर माननीय मुख्य न्यायमूर्ति पी. सथशिवम की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने आज संक्षिप्त सुनवाई के बाद करीब दो बजे खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रिंट मीडिया और समाचार एजेंसियों से जुड़े कर्मचारियों के लिए बहुत बड़ी खुशखबरी है। वेतन वृद्धि और एरियर को लेकर टालमटोल कर रहे मालिकान के लिए अब इससे बचने का कोई कानूनी रास्ता नहीं रहा गया है। दो दिन से इस पर मीडया से जुड़े सभी लोगों की नजरें लगी हुई थीं। इस पीठ के दो अन्य न्यायाधीशों में रंजन गोगोई और शिवा कीर्ति सिंह शामिल रहे। याचिका दाखिल करने वालों में आनंद बाजार पत्रिका निकालने वाले समूह एबीपी प्रा.लि., इंडियन एक्सप्रेस लिमिटेड, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया, राजस्थान पत्रिका प्रा. लिमिटेड, उषोदया पब्लिकेशंस और द प्रिंटर्स (मैसूर) प्रा.लि. के नाम शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा कदम से अखबारों, पत्रिकाओं और समाचार एजेंसियों में कार्यरत पत्रकारों और गैर-पत्रकारों को अपने बढ़े वेतन एवं एरियर के लिए अब और इंतजार नहीं करना पड़ेगा।''
जनसत्ता एक्सप्रेस ने समाचार को छापने के बाद नीचे में लिखा- ''आपको बता दें कि मजीठिया वेजबोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को फैसला सुनाया था कि इसे संस्थान लागू करें। पर अखबार मालिकों ने मिलकर इसे न लागू कराने का प्लान बनाया और उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा पर वहां से उन्हें निराशा हाथ लगी है। सो सभी मीडियाकर्मियों को एक बार बधाई...।''
....और मेरी तरफ से समाचार छापने पर बधाई!

मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

राँची : रामनवमी पर शोभायात्रा व रामलीला / RAMNAVAMI AT RANCHI


-शीतांशु कुमार सहाय
आज रामनवमी है। आप सबको रामनवमी की हार्दिक बधाई!

रामनवमी के अवसर पर राँची के अलबर्ट एक्का चौक पर रामलीला का आयोजन किया गया।

इस दौरान भगवा ध्वजों के साथ हजारों श्रद्धालुओं ने शोभायात्रा निकाली। शोभायात्रा में कई झाँकियाँ भी शामिल की गयीं।

तैंतीस करोड़ नहीं, तैंतीस प्रकार के देवता / No 33 Crore, 33 Types of Devata


-शीतांशु कुमार सहाय

चित्र में आदिशक्ति द्वारा त्रिदेवों की उत्पत्ति

सनातन धर्म के बारे में बनी व प्रचलित अधिकतर अवधारणाएँ विवादित हैं। वास्तव में वैसी अवधारणाएँ ही विवादित हैं, जिनका आधार वेद पर आधारित नहीं है। सुनी-सुनायी बातों पर कोई विचार बना लेने से ही विवाद का जन्म होता है। वास्तव में अधिकतर लोग वेदों को पढ़े बिना ही सनातन धर्म पर तर्क प्रस्तुत कर देते हैं। यह गलत है। वेदों को पढ़ें और उसके तथ्यों को गम्भीरता से समझें और तब विचार व्यक्त करें। अधिकतर हिन्दुओं ने वेद नहीं पढ़ी, जो उनकी सबसे बड़ी भूल है।
मेरे एक मुसलमान मित्र तौहीद अनवर ने बताया- आपके धर्म में वेद, रामायण, गीता आदि पढ़ना दकियानूसी विचारधारा का प्रतीक माना जाता है। जीवन गुजर जाती है पर वेद के चन्द पन्ने भी पढ़ नहीं पाते। मित्र ने आगे कहा- आप जिस पण्डित या ब्राह्मण को धर्म व धर्मग्रन्थ का प्रतीक मानते हैं, वह भी जीवन में एक बार भी वेद आदि नहीं पढ़ा। यदि पढ़ा होता तो चन्द रुपयों के लिए पूजा करवाने से आना-कानी नहीं करता या किसी मन्दिर आदि में प्रवेश से पहले पैसे की वसूली के लिए छीछालेदर नहीं करता। मित्र अविराम बोले जा रहा था- इस्लाम में नैतिक नियम बना दिया गया है कि बच्चे पाँच-दस वर्ष की अवस्था में कम-से-कम एक आवृत्ति कुरानशरीफ अवश्य पढ़ें और उसका अर्थ मौलवी या किसी जानकार से समझे। पर, आपके धर्म में बच्चे को वेद, रामायण या गीता आदि पढ़ने का कोई नियम नहीं है। यदि कोई अपने पुत्र या पुत्री को ऐसा करवाता भी है तो आपका समाज उसे पुरानपंथी कहकर चिढ़ाता है। यदि ग्रन्थों को पढ़ने की परम्परा रहती तो हिन्दुओं में इतनी भ्रान्तियाँ नहीं आतीं।
मैं मित्र की बात सुनकर अवाक् रह गया। वास्तव में स्थिति का बिल्कुल सही आकलन किया था तौहीद ने। वास्तव में तौहीद का बड़ा भाई मेरा मित्र है। इस लिहाज से वह मुझे भैया कहता है। तौहीद हिन्दी और उर्दू में पुस्तकों का लेखन भी करता है और पेशे से शिक्षक है।
सनातन धर्म की एक भ्रान्ति यह भी है कि लोग मानते हैं कि इस धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवता हैं। अन्य धर्मवालों को छोड़ दीजिये, सनातनधर्मी अर्थात् हिन्दू भी यही मानते हैं। घोर आश्चर्य है कि इस भ्रान्ति को वेद पढ़े बिना ही प्रचारित कर दिया गया अथवा गलत अर्थ लगाकर भ्रान्ति फैलायी गयी। वास्तव में ‘कोटि’ शब्द का अर्थ ‘करोड़’ ही नहीं ‘प्रकार’ भी होता है। वेद में 33 प्रकार के देवताओं की चर्चा है, 33 करोड़ की नहीं। यहाँ जानिये कि उच्चकोटि का अर्थ ऊँचा करोड़ नहीं, अच्छा प्रकार होता है। वेदों का तात्पर्य तैंतीस कोटि अर्थात तैंतीस प्रकार के देवी-देवताओं से है। इन प्रकारों में हजारों देवी-देवता शामिल हैं। पर, सनातन धर्म एक ही आदिशक्ति की उपासना करने को प्ररित करता है। धार्मिक ग्रंथों में साफ-साफ लिखा है-- ''निरंजनो निराकारो एको देवो महेश्वरः'' अर्थात इस ब्रह्माण्ड में सिर्फ एक ही देव हैं जो निरंजन निराकार महादेव हैं। साथ ही यहाँ एक बात ध्यान में रखने योग्य बात है कि हिन्दू सनातन धर्म मानव की उत्पत्ति के साथ ही बना है और प्राकृतिक है, इसीलिए हमारे धर्म में प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित कर जीना बताया गया है।
प्रकृति में भगवान---
प्रकृति को भी भगवान की उपाधि दी गयी है; ताकि लोग प्रकृति के साथ खिलवाड़ न करें। जैसे :- गंगा को देवी माना जाता है; क्योंकि गंगाजल में सैकड़ों प्रकार की हिमालय की औषधियां घुली होती हैं। गाय को माता कहा जाता है; क्योंकि गाय का दूध अमृत है और गोबर एवं गौमूत्र में कई प्रकार की औषधीय गुण पाए जाते हैं। तुलसी के पौधे को भगवान इसीलिए माना जाता है कि तुलसी के पौधे के हर भाग में विभिन्न औषधीय गुण हैं। इसी तरह वट और पीपल के वृक्ष घने होने के कारण ज्यादा ऑक्सीजन देते हैं और थके हुए राहगीर को छाया भी प्रदान करते हैं। यही कारण है कि हमारे धर्मग्रंथों में प्रकृति पूजा को प्राथमिकता दी गयी है। प्रकृति से ही मनुष्य जाति है न कि मनुष्य जाति से प्रकृति है। प्रकृति को धर्म से जोड़ा जाना और उनकी पूजा करना सर्वथा उपर्युक्त है। यही कारण है कि धर्मग्रंथों में सूर्य, चन्द्र, वरुण, वायु, अग्नि को भी देवता माना गया है। इसी प्रकार कुल 33 प्रकार के देवी-देवता हैं।
प्रकृति की प्रार्थना---
वेद प्राकृतिक तत्त्व की प्रार्थना किए जाने के रहस्य को बताते हैं। ये नदी, पहाड़, समुद्र, बादल, अग्नि, जल, वायु, आकाश और हरे-भरे प्यारे वृक्ष हमारी कामनाओं की पूर्ति करने वाले हैं। इनकी पूजा नहीं प्रार्थना की जाती है। यह ईश्वर और हमारे बीच सेतु का कार्य करते हैं।
33 प्रकार के देवी-देवता---
8 वसु ये हैं--  अग्नि, पृथिवि, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, घौ:, चन्द्रमा ओर नक्षत्र। इनका नाम वसु इसलिये है कि सब पदार्थ इन्ही में वास करते हैं। ये ही सबके निवास करने के स्थान हैं। 11 रूद्र ये हैं--  जो शरीर में दश प्राण हैं अर्थात प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कुर्म, कृकल, देवदत्त, धनंजय और 11वां जीवात्मा। जब वे इस शरीर से निकल जाते है तब मरण होने से उसके सब सम्बन्धी लोग रोते हैं। वे निकलते हुए उनको रुलाते हैं, इससे इनका नाम रूद्र है। सृष्टि की उत्पत्ति के दौरान रुद्र की उत्पत्ति ब्रह्मा के क्रोध आने पर उनके भौंहों के बीच से हुआ था। उत्पत्ति के समय रुद्र रो रहे थे। अतः जब भी ये किसी कि शरीर से निकलते हैं तो सबको रुलाते हैं। इसी प्रकार आदित्य 12 महीनो को कहते हैं। वे सब जगत के पदार्थों का आदान अर्थात सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते हैं, इसी से इनका नाम आदित्य है। ऐसे ही 'इंद्र' नाम बिजली का है। वह उत्तम ऐश्वर्य का मुख्य हेतु है और 'यज्ञ' को प्रजापति इसलिए कहते है की उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है तथा पशुओं की यज्ञ संज्ञा होने का यह कारण है कि उनसे भी प्रजा का जीवन पालन होता है। ये सब मिलके अपने दिव्यगुणों से 33 देव कहलाते हैं। इनमें से कोई भी उपासना के योग्य नही है। व्यवहार मात्र की सिद्धि के लिए ये सब देव हैं। वेदानुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं- 1.ब्रह्मयज्ञ, 2.देवयज्ञ, 3.पितृयज्ञ, 4.वैश्वदेव यज्ञ और 5.अतिथि यज्ञ। उक्त पांच यज्ञों को पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार दिया गया है। वेदज्ञ सार को पकड़ते हैं विस्तार को नहीं।
केवल ब्रह्म ही उपासना योग्य---
मनुष्य के उपासना के योग्य देव तो एक ब्रह्म ही है। सब जगत के बनाने से ब्रह्मा, सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु, दुष्टों को दण्ड देकर रुलाने से रूद्र, मंगलमय और सबका कल्याणकर्ता होने से शिव हैं। ईश्वर एक ही है और वही प्रार्थनीय तथा पूजनीय है। वही स्रष्टा है, वही सृष्टि है। शिव, राम, कृष्ण आदि सभी उस ईश्वर के संदेश वाहक हैं। हजारों देवी-देवता उसी एक के प्रति नमन करते हैं। वेद, वेदांत और उपनिषद एक ही परमतत्त्व को मानते हैं। ब्रह्म को ही आदिशक्ति या परमेश्वर कहा जाता है। सनातन हिन्दू धर्म की मान्यता है कि सृष्टि उत्पत्ति, पालन एवं प्रलय की अनंत प्रक्रिया पर चलती है। गीता में कहा गया है कि जब ब्रह्मा का दिन उदय होता है, तब सब कुछ अदृश्य से दृश्यमान हो जाता है और जैसे ही रात होने लगती है, सब कुछ वापस आकर अदृश्य में लीन हो जाता है। वह सृष्टि पंच कोष तथा आठ तत्त्व से मिलकर बनी है। परमेश्वर सबसे बढ़कर है।
धर्म के मूल तत्त्व---
किसी भी धर्म के मूल तत्त्व उस धर्म को मानने वालों के विचार, मान्यताएं, आचार तथा संसार एवं लोगों के प्रति उनके दृष्टिकोण को ढालते हैं। हिंदू धर्म की बुनियादी पांच बातें हैं-- 1. वंदना, 2. वेदपाठ, 3. व्रत, 4. तीर्थ, और 5. दान। यम नियम का पालन करना प्रत्येक सनातनी का कर्तव्य है। यम अर्थात 1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय, 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह। नियम अर्थात 1.शौच, 2.संतोष, 3.तप, 4.स्वाध्याय और 5.ईश्वर प्रणिधान। संधि काल में ही संध्या वंदन की जाती है। वैसे संधि पांच या आठ वक्त (समय) की मानी गई है, लेकिन सूर्य उदय और अस्त अर्थात दो वक्त की संधि महत्त्वपूर्ण है। इस समय मंदिर या एकांत में गायत्री से ईश्वर की प्रार्थना की जाती है। मोक्ष की धारणा और इसे प्राप्त करने का पूरा विज्ञान विकसित किया गया है। यह सनातन धर्म की महत्त्वपूर्ण देन में से एक है। मोक्ष में रुचि न भी हो तो भी मोक्ष ज्ञान प्राप्त करना अर्थात इस धारणा के बारे में जानना प्रमुख कर्तव्य है। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण करना ही पिंडदान करना है। श्राद्ध पक्ष का सनातन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्त्व माना गया है। दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियां खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। मृत्यु आए इससे पूर्व सारी गांठे खोलना जरूरी है। दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेद और पुराणों में दान के महत्त्व का वर्णन किया गया है।
वेद ही धर्म ग्रंथ है---
कितने लोग हैं जिन्होंने वेद पढ़े? सभी ने पुराणों की कथाएं जरूर सुनी और उन पर ही विश्वास किया तथा उन्हीं के आधार पर अपना जीवन जिया और कर्मकांड किए। पुराण, रामायण और महाभारत धर्मग्रंथ नहीं इतिहास ग्रंथ हैं। ऋषियों द्वारा पवित्र ग्रंथों, चार वेद एवं अन्य वैदिक साहित्य की दिव्यता एवं अचूकता पर जो श्रद्धा रखता है वही सनातन धर्म की सुदृढ़ नींव को बनाए रखता है। कहा जाता है कि वेदों को अध्ययन करना और उसकी बातों की किसी जिज्ञासु के समक्ष चर्चा करना पुण्य का कार्य है, लेकिन किसी बहसकर्ता या भ्रमित व्यक्ति के समक्ष वेद वचनों को कहना निषेध माना जाता है।
कर्म पर विश्वास व सर्वधर्म समभाव---
सनातन हिन्दू धर्म भाग्य से ज्यादा कर्म पर विश्वास रखता है। कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है। कर्म एवं कार्य-कारण के सिद्धांत अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने भविष्य के लिए पूर्ण रूप से स्वयं ही उत्तरदायी है। प्रत्येक व्यक्ति अपने मन, वचन एवं कर्म की क्रिया से अपनी नियति स्वयं तय करता है। इसी से प्रारब्ध बनता है। कर्म का विवेचन वेद और गीता में दिया गया है। सनातन हिन्दू धर्म पुनर्जन्म में विश्वास रखता है। जन्म एवं मृत्यु के निरंतर पुनरावर्तन की प्रक्रिया से गुजरती हुई आत्मा अपने पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है। आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने से ही यह चक्र समाप्त होता है। ''आनो भद्रा कृत्वा यान्तु विश्वतः।'' ऋग्वेद के इस मंत्र का अर्थ है कि किसी भी सदविचार को अपनी तरफ किसी भी दिशा से आने दें। ये विचार सनातन धर्म एवं धर्मनिष्ठ साधक के सच्चे व्यवहार को दर्शाते हैं। चाहे वे विचार किसी भी व्यक्ति, समाज, धर्म या सम्प्रदाय से हो। यही सर्वधर्म समभाव है।
अतः हमें नियमित रूप से ग्रन्थों को पढ़ना चाहिये, उसके तथ्यों को समझना चाहिये और उसपर अमल करना चाहिये। ऐसा करने से ही सफल जीवन का आनन्द लिया जा सकता है।


सोमवार, 7 अप्रैल 2014

शान्ता थीं श्रीराम की बड़ी बहन और लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला / SHANTA WAS THE LORD RAM'S SISTER & URMILA WAS LAXMAN'S WIFE


-शीतांशु कुमार सहाय
कल अर्थात् 8 अप्रैल 2014 को रामनवमी है। आप सबको रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ! रामनवमी के अवसर पर यहाँ मैं भगवान श्रीराम से जुड़े दो पात्रों के बारे में चर्चा कर रहा हूँ, श्रीराम की बड़ी और एकमात्र बहन शान्ता और उनके अनुज लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के बारे में। शान्ता के बारे में तीन कथाएँ (प्रकरण) यहाँ प्रस्तुत हैं--
प्रकरण-- 1
हम सभी प्रभु राम के 3 भाईओं के बारे में तो जानते हैं जिनके नाम क्रमशः लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न थे। परन्तु शान्ता का नाम अल्प ही लिया जाता है जो कि वास्तव में इन सभी भ्राताओं में वरिष्ठ थीं। शान्ता रामायण का एक अभिन्न अङ्ग है। वो दशरथ तथा कौशल्या की पुत्री थीं तथा उनको रोम्पद तथा वर्षिणी ने गोद लिया था। वो ऋषिश्रङ्ग की पत्नी थीं। ये माना जाता है कि उनके वंशज सेंगर राजपूत हैं जिन्हे ऋषिवंशी राजपूत भी कहा जाता है। शान्ता राजा दशरथ तथा कौशल्या की पुत्री थीं परन्तु उन्हे अङ्ग देश के राजा रोम्पद तथा उनकी काकी (कौशल्या की बड़ी बहन) वर्षिणी ने गोद लिया था। वर्षिणी के पास कोई बच्चा नहीं था तथा एक बार अयोध्या में उन्होने हंसी में बच्चे की मांग की। दशरथ मान गए। रघुकुल का दिया गया वचन निभाने के लिए शान्ता अङ्गदेश की राजकुमारी बन गईं। ये माना जाता है कि शान्ता वेद, कला तथा शिल्प में पारङ्गत थीं। वो अधिक सुन्दर भी थीं। एक दिन वो अपने पिता के साथ वार्तालाप कर रहीं थीं कि एक ब्राह्मण उनके पास आया। वो मानसून के मौसम में बीजने के लिए सहायता मांगने आया था। परन्तु रोम्पद ने उसे अनदेखा कर दिया। इससे क्रोधित हो कर ब्राह्मण राज्य छोड़ कर चला गया जिससे इन्द्र देव क्रोधित हो गए। वर्षा ऋतु में कम जल बरसने के कारण सूखा पड़ गया। इस स्थिति से पार पाने के लिए राजा ने ऋषिश्रङ्ग को बुलाया। यज्ञ से वर्षा हुई। ऋषिश्रङ्ग को धन्यवाद स्वरूप शान्ता का विवाह उन ऋषि के साथ कर दिया गया। दशरथ के कोई पुत्र नहीं था। वो चाहते थे कि वंश चलाने वाला कोई तो हो। उन्होने ऋषिश्रङ्ग को पुत्रकामेष्ठि यज्ञ पूर्ण करने के लिए बुलाया। इसी यज्ञ से चारों भाई राम, लक्षमण, भरत तथा शत्रुघ्न पैदा हुए।
प्रकरण-- 2
सत्य साईं बाबा ने अपने एक प्रवचन (19 मई, 2002), जो कि बृन्दावन, व्हाईटफ़ील्ड (बेंगलुरु) में दिया गया था, में प्रभु राम की बहन के बारे में कहा था। उन्होने इस कथा को ऐसे कहा:--- कौशल्या के राम को जन्म देने से पहले उसके एक पुत्री थी। क्योंकि वो एक कन्या थी तथा राज्य की उत्तराधिकारी नहीं थी तो उसको एक ऋषि की गोद में दे दिया गया। उस ऋषि ने उसका पालन किया तथा उसका विवाह ऋषिश्रङ्ग से कर दिया। दशरथ ने उनके मंत्री सुमन्त की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। दशरथ ने ऋषिश्रङ्ग को भी बुलाया। ऋषिश्रङ्ग एक पुन्य ऋषि थे तथा जहां वो पांव रखते थे वहां यश होता था. सुमन्त ने ऋषिश्रङ्ग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। ऋषिश्रङ्ग ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी भार्या शान्ता को भी आना पड़ेगा। सुमन्त इस के लिए मान गए। शान्ता तथा ऋषिश्रङ्ग अयोध्या पहुंचे। तभी शान्ता ने दशरथ के चर्ण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वो कौन है चूँकि वो एक ऋषि की भाँति जान पड़ती थीं। वो जहां भी पांव रखती थी सूखा मिट जाता था और समय पर वर्षा होती थी। जब माता पिता विस्मित थे कि वो कौन है तब शान्ता ने बताया कि वो उनकी पुत्री शान्ता है। दशरथ और कौशल्या ये जानकर अधिक प्रसन्न हुए।
प्रकरण-- 3
इसी कथा का एक और रूप है जो कि टीवी कार्यक्रम 'रावण' में था--- इस रूप के अन्तर्गत पुत्री को गोद नहीं दिया। परन्तु सूखा पड़ने के कारण ऋषिश्रङ्ग को बुलाने वाली बात इसमें भी है। ऋषि यज्ञ के लिए मान गए। वर्षा हुई तथी सभी प्रसन्न हो गए। राजा दशरथ अध्यात्मिक वैज्ञानिक को पुरस्कार देने के लिए तत्पर थे जिसने सहस्रों की तृष्णा शान्त की थी। ऋषि ने पुरस्कार के रूप में शान्ता के साथ विवाह का प्रस्ताव रख दिया। सभी आश्चर्यचकित रह गए चूँकि वो एक ब्राह्मण थे तथा शान्ता एक राजकन्या थी। यदि विवाह हुआ तो उसे ऋषि पत्नी की भाँति आश्रम में रहना होगा। परन्तु वो मान गए। वर्षों उपरान्त, दशरथ ने पुनः ऋषिश्रङ्ग को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। ऋषिश्रङ्ग ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा और भाईयों का जन्म हुआ।

लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला---

वाल्मीकि के ‘रामायण’ या तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला के बारे में बहुत कम चर्चा है। अन्य ग्रन्थों में भी उनकी चर्चा नहीं मिलती है। उर्मिला का नाम रामायण में लक्ष्मण की पत्नी के रूप में मिलता है। महाभारत, पुराण तथा काव्य में भी इससे अधिक उर्मिला का कोई परिचय नहीं मिलता। आधुनिक काल में उर्मिला के विषय में विशेष सहानुभूति प्रकट की गयी है। उर्मिला जनकनंदनी सीता की छोटी बहन थीं और सीता के विवाह के समय ही दशरथ और सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को ब्याही गई थीं। इनके अंगद और चन्द्रकेतु नाम के दो पुत्र तथा सोमदा नाम की एक पुत्री थी। उर्मिला विविध कलाओं में पारंगत और कर्तव्यपरायण नारी थी। राम के साथ लक्ष्मण के भी चौदह वर्ष के लिए वन जाने पर उर्मिला ने अपनी विरह-व्यथा को जीव-जन्तुओं के प्रति सहानुभूति में बदल दिया। भगवान राम के राजतिलक का वनवास में परिवर्तन हो जाने की भनक उर्मिला को नहीं थी। वो अपने भवन में राम के राजतिलक का सुन्दर चित्र बना रही थी। वनवास का समाचार उर्मिला को बताने जब उर्मिला के कक्ष में लक्ष्मण आये तो चित्र पर रंग गिर पड़ा और पूरा चित्र बिगड़ गया। वह सोचीं कि अवश्य ही कोई विषादवाला समाचार है। श्रीराम के वन जाने का समाचार सुनने पर उर्मिला ने पति लक्ष्मण से कहा- आप भी उनके साथ जाइये। वैसे पतिव्रता होने के कारण मुझे भी आपके साथ जाना चाहिये, किन्तु यदि मैं भी वन गयी तो आपकी राम-भक्ति में बाधा पड़ेगी। अतः आप अग्रज के साथ जाएँ और मैं यहीं रहूँगी। यह सुनकर लक्ष्मण हर्षित हो गये। उन्हें अपनी पत्नी पर गर्व हुआ कि उनकी राम-भक्ति में पत्नी बाधा नहीं बनी। यों चौदह वर्षों तक वह पति से अलग रहीं। उनका त्याग अद्भुत है।
भगवान राम आपकी मनोकामना पूरी करें!

रविवार, 6 अप्रैल 2014

बन्दरों के बीच त्रिकूट का आनन्द / A TOUR ON TRIKUT WITH MONKEYS AT DEOGHAR IN JHARKHAND



-शीतांशु कुमार सहाय
झारखण्ड के देवघर जिले से 16 किलोमीटर दूर देवघर-दुमका मार्ग पर खूबसूरत त्रिकूट पहाड़ स्थित है। देवघर का यह सबसे रोमांचक पर्यटन स्थल है। इस पहाड़ पर कई गुफाएँ और झरनें हैं। वैद्यनाथधाम से वासुकिनाथ मंदिर की ओर जाने वाले श्रद्धालु मंदिरों से सजे इस पहाड़ पर रूकना पसन्द करते हैं। यहाँ लोग पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ पहाड़ के निचले हिस्से पर बन्दर की कई प्रजातियाँ मिलती हैं। बन्दरों को दर्शनार्थी चना खिलाते हैं। गाड़ी से उतरते ही पर्यटकों पर पैनी निगाह रखनेवाले बन्दर हाथों में कोई भी वस्तु देखने पर उसे छीन लेते हैं। अतः यहाँ आने पर जरूरी वस्तुओं को लोग वाहनों में ही रखकर बन्द कर देते हैं। बन्दरों के अलावा त्रिकूट के जंगल में हाथी, खरहा, शाहिल, हिरन आदि वन्य जीव पाये जाते हैं। इस पहाड़ पर व निकटवर्ती जंगल में कई प्रजातियों की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। यह पहाड़ काफी मनोरम है।
ब्रह्मा़-विष्णु-महेश व ट्रैकिंग
त्रिकूट पहाड़ की तीन मुख्य ऊँची चोटियाँ हैं। इनके नाम हैं- ब्रह्मा़, विष्णु़ और महेश। इसलिए इसे ‘त्रिकूट’ कहा गया। सबसे ऊँची चोटी समुद्र तल से 2470 फीट की ऊँचाई पर है। यह ट्रैकिंग के लिए एक आदर्श स्थान है। अधिकतर चोटियाँ खड़ी ढाल वाली हैं। अतः ट्रैकिंग के लिए कुछ चोटियाँ ही सुरक्षित हैं।
रज्जु मार्ग
त्रिकूट पहाड़ और इसके जंगल में पैदल घूमने के अलावा मुख्य शिखर (विष्णु चोटी) पर रज्जु मार्ग (रोप-वे) के माध्यम से भी जाया जा सकता है। शिखर तक पहुँचने के लिए एक एकल रस्सी कार को 10 मिनट लगते हैं।
तपस्थली व मन्दिर
यह मनोरम पहाड़ कई ऋषियों-मुनियों की तपस्थली रही है। कहा जाता है कि कुछ समय तक रावण ने भी यहाँ तपस्या की थी। अभी भी यहाँ सन्त आश्रम है और कई मन्दिर हैं। यहाँ प्रसिद्ध त्रिकूटाचल महादेव मंदिर है। गणेश, पार्वती, भैरव, अन्नपूर्णा आदि की भी मन्दिरें हैं। मन्दिरों के बीच एक प्राकृतिक जलस्रोत है जिसका जल अत्यन्त निर्मल है। पर्यटकों के अलावा मन्दिर में रहनेवालों के लिए यह जीवनदायिनी जलस्रोत है। मैंने भी बोतल में भरकर इस जल का रसास्वादन किया।

कई गुफाएँ
देवघर के त्रिकूट पहाड़ पर कई गुफाएँ हैं। कुछ में मन्दिर तो कुछ में सन्तों या स्थानीय पुजारियों के आवास हैं। कुछ गुफाओं में पूजन स्थल बनाये गये हैं। सभी गुफाएँ अत्यन्त गर्मी में भी शीतलता प्रदान करती हैं। सबसे अधिक शीतल गुफा में माता अन्नपूर्णा देवी का मन्दिर है। इसमें हमें काफी राहत महसूस हुई। 
प्लास्टिक से हानि
देवघर के त्रिकूट पहाड़ पर इन दिनों प्लास्टिक का जमकर उपयोग हो रहा है। उपयोग में लाए गए प्लास्टिक को नष्ट करने का कोई प्रयास नहीं होने से इस मनोरम पर्यटक स्थल की स्थिति नारकीय होती जा रही है। विभागीय अधिकारी एक-दूसरे की जिम्मेदारी बताकर अपना पाला झाड़ लेतेे हैं। इससे जहाँ पर्यावरण को खतरा है वहीं यहाँ निवास कर रहे बंदर, शाहिल, खरहे, हिरन, हाथी आदि जंगली जानवरों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है।

इसके अलावा एक अन्य प्रसिद्ध त्रिकूट पर्वत हिमालय क्षेत्र में है जिसपर माता वैष्णो देवी का मन्दिर है।  

शनिवार, 5 अप्रैल 2014

मजीठिया वेतन आयोग : लोकसभा निर्वाचन-2014 के भारी शोर में पत्रकारों के कल्याण की बात छिप गयी / MAJITHIA WAGE COMMISSION



-शीतांशु कुमार सहाय
लोकसभा निर्वाचन-2014 के भारी शोर में पत्रकारों के कल्याण की बात छिप गयी है। यह बात इतनी परतों में खो गयी है कि किसी पत्रकार को भी अपने हक में बोलने-लड़ने की फुसर्त नहीं है; बल्कि यों कहें कि चुनावी समाचारों के कवरेज की व्यस्तता में पत्रकारों को फुर्सत के क्षण मिल ही नहीं रहे हैं कि वे अपने हक में सोच भी सकें। मैं बात कर रहा हूँ पत्रकारों व गैर पत्रकारों के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से अप्रैल 2014 से नये वेतनमान के तहत भुगतान करनेवाले प्रकरण की। दरअसल, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 7 फरवरी 2014 को देशभर के सभी समाचार पत्रों, समाचार एजेंसियों, टीवी न्यूज चैनलों, वेब मीडिया आदि में कार्यरत पत्रकारों व गैर पत्रकारों के लिए मजीठिया वेतन आयोग की सभी सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया जो एक अप्रैल 2014 से प्रभावी भी हो गया। पर, सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश को समाचार संगठनों के प्रबन्धन लागू नहीं कर रहे हैं।
ठेका पत्रकार होते ही नहीं---                               
मजीठिया वेतन आयोग लागू होने के बाद पत्रकारों के बीच एक चर्चा है कि प्रेस मालिक ठेका पत्रकार रख लेंगे, किसी को इसका लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं है। कानून की परिभाषा में ठेका पत्रकार होते ही नहीं और जो कर्मचारियों से कुछ भी लिखा कर उन्हें अपना गुलाम बनाने की बात करते हैं, वे प्रेस मालिक कर्मचारियों को उल्लू बनाने की कोशिश करते है। चूंकि प्रेस एक उद्योग है इस कारण इंण्डस्ट्रियल एम्प्लायमेंट (स्टैडिंग आर्डर्स) एक्ट 1946 के उपबंध यहां भी लागू होते हैं। इस एक्ट की धारा 38 के तहत कर्मचारियों से नियोक्ता की कोई अनलीगल शर्त स्वतः समाप्त हो जाती है। कानून में इस बात का भी प्रावधान है कि भले ही आपसे बंदूक अड़ाकर या भय दिखाकर कोई कुछ भी करा ले, लिखा ले, उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं है। श्रमजीवी पत्रकार तथा अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और विविध उपबंध अधिनियम 1955 में या कानून में कहीं भी 'ठेका पत्रकार' शब्द का उल्लेख नहीं है, हां मजीठिया वेतन बोर्ड में अंशकालीक संवाददाता का जरूर उल्लेख है लेकिन उन्हें भी 30 से 40 प्रतिशत मजीठिया वेतनमान देना पड़ेगा।  
क्या होता है ठेका---
ठेका श्रमिक की परिभाषा अलग है। प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से कर्मचारी सप्लाई करने या ठेका श्रमिक रखने के लिए संविदा श्रमिक (विनियमन तथा उन्मूलन) अधिनियम 1970 की धारा 13 के तहत पहले एक ठेकेदार को पंजीयन कराना पड़ता है जो लेबर आफिस में होता है और इसकी लीगल फीस होती है यहां कम से कम 20 श्रमिकों के सप्लाई के नाम पर ठेका मिलता है। तभी ठेके श्रमिक से काम कराए जा सकते है यदि इस नियम का पालन कर पत्रकार की भर्ती की जाती है तो भी उसे ठेकेदार के माध्यम से मजीठिया वेतनमान देना पड़ेगा। हालांकि पत्रकार का कार्य एक मौसमी कार्य नहीं होता इसलिए ठेका पत्रकार नहीं रखे जा सकते। संविदा श्रमिक (विनियमन तथा उन्मूलन) अधिनियम 1970 की धारा 10 के तहत ऐसे कार्यों के लिए ठेका श्रमिक रखने को प्रतिबंधित किया गया है जो नियमित कार्य की श्रेणी में आते है। मतलब पत्रकारिता का पेशा ठेका श्रमिक रखकर नहीं कराए जा सकते। कंपनी या नियोक्ता कर्मचारी से कुछ भी लिखा ले और वह ठेका श्रमिक हो गया। यह गुमराह करने का तरीका है और लेबर कोर्ट में इस तरह की कोई दलील नहीं सुनी जाती।
मजीठिया वेतन देना कानूनन मजबूरी---
प्रेस मालिकों को मजीठिया वेतनमान देना कानूनन मजबूरी है। वश पत्रकारों व पत्रकार संगठन को जागरूक होने की जरूरत है उनकी जिम्मेदारी बनती है कि यदि कही इस बोर्ड के आदेश का पालन नहीं हो रहा है तो वे लेबर कोर्ट में चुनौती दे या पत्रकार अपने संस्था के खिलाफ शिकायत करें चाहे वह गुमनाम ही शिकायत क्यों ना हो। पत्रकार अधिनियम 1955 के तहत इस कानून का पालन कराना सरकार की जिम्मेदारी है। यदि प्रेस मालिक वेतन नहीं देते तो मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 के तहत भारी भरकम जुर्माना होता है जो कुल वेतन का 10 प्रतिशत हो सकता है। पत्रकारों के वेतन भुगतान में भी मजदूरी भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 6 के तहत क्लेम किया जाता है। अधिनियम के अनुसार कर्मचारियों को वेतन माह की 7 तारीख तक मिल जाना चाहिए। इसी की धारा 7 के तहत यदि पीएफ की कटौती नहीं की जाती तो कर्मचारी भविष्य निधि और प्रकीण उपबंध 1955 के तहत भू-राजस्व के बकाया की भांति वसूली की जाती है तथा धारा 14 के अनुसार हर्जाना वसूल में कंपनी अपना अंशदान नहीं देती तो भारतीय दंड संहित की धारा 409 के तहत दंडनीय अपराध दर्ज होता है। रही बोनस की बात तो बोनस भुगतान अधिनियम 1965 की धारा 10 के अनुसार कुल वेतन का 8.33 प्रतिशत भुगतान करना चाहिए। जो एक माह के वेतन के बराबर होता है। धारा 31 के तहत 20 प्रतिशत का बोनस दिया जाता है। प्रेस के लिए कंपनी के मुनाफे के अनुसार कर्मचारियों को बोनस मिलना चाहिए नहीं तो उक्त अधिनियम लागू होते है।
पत्रकारों की छंटनी---
यदि संस्थान को घाटा हो रहा है या किसी कारण से छंटनी करना चाहती है तो पहले इसकी विधिवत सूचना देकर छंटनी की प्रक्रिया शुरू की जाती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह किसी को भी निकाल दे जो पहले आया है वह पहले जाएगा जो लास्ट में आया है वह अंतिम में जाएगा। और हर साल के 15 दिन के हिसाब से छंटनी मुआवजा देना पड़ता है जैसे यदि पत्रकार दो साल का किया तो 30 दिन का अतिरिक्त वेतन छंटनी मुआवजा के रूप में देना होता है। इसमें ग्रेच्यूटी की बात शामिल नहीं है वह अलग से देना पड़ता है। लेकिन यदि किसी पत्रकार को निकालना है तो पहले उसके खिलाफ आरोप और विभागीय जांच होती है यदि उसमें वह दोषी पाया जाता है तो 3 माह का वक्त देकर नमस्ते किया जाता है। लेकिन यदि कर्मचारी कार्यवाही से संतुष्ट नहीं तो लेबर कोर्ट से स्टे ले सकता है या चुनौती दे सकता है। यदि किसी कर्मचारी की सेवा एक वर्ष में 240 दिन से अधिक हो गई तो वह नियमित कर्मचारी मान लिया जाता है और उसका काम संतोषजनक माना जाता है। औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 25 (एफ) में इसका उल्लेख है लेकिन इसका पालन ना कर कर्मचारी को निकालने पर निकालने की अवधि का वेतन और पुनः नौकरी पाने का कानून अधिकारी होता है।

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

आम आदमी पार्टी का घोषणा-पत्र जारी / AAP MANIFESTO



-शीतांशु कुमार सहाय
वृहस्पतिवार 3 अप्रैल 2014 को लोकसभा निर्वाचन-2014 के मद्देनजर आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी का घोषणा पत्र जारी किया। इस अवसर पर मुख्य रूप से मनीष सिसोदिया, योगेन्द्र यादव, गोपाल राय आदि उपस्थित थे। घोषणा-पत्र में आम आदमी पार्टी (आप) ने जनलोकपाल विधेयक लाने, अदालत कक्षों में सीसीटीवी कैमरे लगाने और चुनाव लडने की न्यूनतम आयु 25 से 21 साल करने सहित कई और वादे किए हैं। अगले पांच साल में देश भर में न्यायाधीशों की संख्या दोगुनी करने का भी वादा किया। केजरीवाल ने कहा, ‘हम अपने पड़ोस के देशों के साथ राजनीतिक शत्रुता को कम करने की दिशा में काम करेंगे पर सीमा पार आतंकवाद के लिए तनिक भी बर्दाश्त न करने की नीति अपनायी जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘सीमाई इलाकों को उच्च आर्थिक संपर्क क्षेत्र के तौर पर विकसित किया जाना चाहिए ताकि दोनों पक्षों में शांति के पक्षधर लोगों की संख्या बढ़ायी जाए। चीन द्वारा की जाने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए हम रक्षा क्षमता बढ़ाएंगे पर उसके साथ संतुलित व्यापार बढ़ाने की भी कोशिश करेंगे।’ केजरीवाल ने कहा कि उनकी पार्टी न केवल उपकरणों को लेकर दूसरों देशों पर निर्भरता को कम करेगी बल्कि रक्षा उपकरणों की खरीद में पारदर्शिता भी लाएगी।
घोषणा पत्र की मुख्य बातें--
1. स्वराज लाने व भ्रष्टाचार समाप्त करने का किया गया है वायदा।
2. जनलोकपाल बिल पारित किया जाएगा।
3. स्वराज बिल के तहत ग्राम सभा और मोहल्ला सभाओं की ताकत बढ़ाई जाएगी ताकि स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म किया जा सके।
4. सरकारी प्रक्रिया को आसान बनाया जाएगा।
5. सूचना तकनीक का उपयोग पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए किया जाएगा।
6. आम आदमी को न्याय दिलाएंगे।
7. ग्राम न्यायालयों का गठन किया जाएगा।
8. हाईकोर्ट और निचली अदालतों में जजों की नियुक्ति पारदर्शी बनाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर न्यायिक नियुक्ति कमीशन का गठन किया जाएगा।
9. फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया जाएगा।
10. अगले पांच सालों में अदालतों की संख्या दोगुनी की जाएगी। अदालतो में ढांचागत सुविधाओं और संसाधनों को बढ़ाया जाएगा।
11. मानवीय और जवाबदेही नीतियां सुनिश्चित करेंगे।
12. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक पुलिस सुधार लागू किए जाएंगे। राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाने के लिए पुलिस को अधिक स्वायत्तता दी जाएगी।
13. स्थानीय ग्राम सभा(मोहल्ला सभा) के प्रति पुलिस की जवाबदेही तय की जाएगी
14. पुलिस हिरासत के अधिकार को खत्म किया जाएगा। सभी हिरासत न्यायिक होंगी और इसी के तहत पुलिस पूछताछ करेगी
15. एफआईआर दर्ज करने से इनकार करना अपराध श्रेणी में आएगा।
16. वीआईपी सुरक्षा में लगे भारी सुरक्षा बलों को हटाया जाएगा।
17. स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव, प्रतिनिधित्व में सुधार लाया जाएगा।
18. चुनाव आयुक्त की नियुक्ति सरकार नहीं बल्कि कई सदस्यों वाली संसदीय कमेटी करेगी। चुनाव आयुक्त के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया जाएगा।
19. राजनीति में काले धन के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाएगी। स्टेट फंडिंग इलेक्शन की संभावनाओं को तलाशा जाएगा।
20. राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल प्रक्रिया को लाया जाएगा।
21. देश के सभी नागरिकों को उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ देने के लिए राइट टू हेल्थ केयर विधेयक लाया जाएगा।
22. जन स्वास्थ्य व्यवस्था में जवाबदेही तय की जाएगी।
23. सभी बच्चों के लिए उच्च स्तरीय शिक्षा मुहैया कराना प्राथमिकता होगी। जनशिक्षा प्रणाली का भी विस्तार किया जाएगा।
24. लड़कियों, गरीब बच्चों, सामाजिक रूप से पिछड़े समुदाय के बच्चों के लिए उच्च स्तरीय शिक्षा सुविधाओं दिलाने का विशेष प्रावधान किया जाएगा।
25. स्कूल प्रबंधनों में लोकल कम्युनिटीज की भागीदारी के साथ ही स्कूलों/टीचरों की ग्राम सभाओं या मोहल्ला सभाओं के प्रति जवाबदेही तय की जाएगी।
26. योग्य टीचरों की पारदर्शी चयन प्रक्रिया के तहत नियमित आधार पर नियुक्ति की जाएगी।
27. बड़ी संख्या में आईटीआई स्थापित की जाएगी।
28. सार्वजनिक क्षेत्र के तहत विश्व स्तर के शिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाएगी।
29. दिल्ली यूनिवर्सिटी में लागू किए गए चार वर्षीय अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम को वापस लिया जाएगा।
30. देश के हर नागरिक मूलभूत सुविधाएं मसलन खाना, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य,बिजली, पानी, शौचालय और अन्य सुविधाएं मुहैया कराईं जाएंगीं।
31. किसानों का जीवन खुशहाल और सुरक्षित बनाया जाएगा।
32. युवाओं को रोजगार के अवसर दिए जाएंगे।
33. निष्पक्ष उद्यमिता को बढ़ावा दिया जाएगा।
34. कर प्रणाली को आसान और निष्पक्ष बनाया जाएगा।
35. रोटी कपड़ा और मकान के साथ-साथ सुरक्षा, सम्मान और व्यक्तिगत क्षमता को हर नागरिक को उपलब्ध कराया जाएगा।
36. एकीकृत आर्थिक और पार्यावरण प्रणाली लाई जाएगी।
37. गांव और शहरों में विश्वस्तरीय ढांचागत व्यवस्था को बढ़ावा दिया जाएगा।
38. देशभर के युवाओं को कृषि,उत्पादन, और अन्य सेवा सेक्टरों में रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएंगे।
39. नौकरियों के अवसर पैदा किए जाएंगे।
40. काले धन की अर्थव्यस्था को खत्म किया जाएगा।
41. गरीब और पिछड़ों को और अधिकार दिए जाएंगे।
42. किसानों की जीवनदशा में सुधार लाया जाएगा।
43. स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू किया जाएगा।
44. किसानों को आत्महत्या से रोकने के लिए क्रेडिट और इंश्योरेंस लागू किए जाएंगे।
45. खनिजों और प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में ग्राम सभा महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
46. प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग का लाभ स्थानीय लोगों को मिले। इन संसाधनों का वाणिज्यिक शोषण पर लगाम लगाई जाएगी।
47. नई भूमि अधिग्रहण नीति लाई जाएगी।
49. नौकरियों में ठेकेदारी प्रथा बंद करेंगे।
50. बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाएंगे।
51. लैंगिक हिंसा और भेदभाव को खत्म करने के लिए एक जनशिक्षण अभियान चलाएंगे।
52. महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का समर्थन करेंगे।
53. जातिगत असमानता को खत्म करेंगे।
54. वाल्मीकि समुदाय सम्मान के साथ जीने के अधिकार देंगे।
55. सांप्रादायिक और सामुदायिक सदभावना को बढ़ावा देंगे।
56. मुस्लिम के साथ भेदभाव का खात्मा किया जाएगा और सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
57. आदिवासियों को उनके विकास का अधिकार देना।
58. पशु कल्याण के लिए कार्य किए जाएंगे।
59. खेल प्राधिकरणों पर भ्रष्ट और आपराधिक लोगों का वर्चस्व कम किया जाएगा।
60. खिलाड़ियों को राष्ट्रीय खेल प्राधिकरण में निर्णय और निर्णय निर्धारण समीति में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
62. मीडिया में पारदर्शिता लाने के लिए कानून लाया जाएगा।
63. आतंरिक और सीमा सुरक्षा को मजबूत किया जाएगा।
64. विदेश और रक्षा नीति की मजबूती के लिए कदम उठाए जाएंगे।

बुधवार, 2 अप्रैल 2014

झारखण्ड : धूमधाम से मना प्रकृति पर्व सरहुल, निकाली गयी शोभायात्रा / SARHUL IN JHARKHAND


-शीतांशु कुमार सहाय
आदिवासियों का प्रकृति पर्व सरहुल के अवसर पर बुधवार 2 अप्रैल 2014 को झारखण्ड की राजधानी राँची में विशाल शोभायात्रा निकाली गयी। राज्यभर में सरहुल का पर्व धूमधाम से मनाया गया। पूजा करने वाले को नायके हड़ाम कहते हैं। नायके हड़ाम ने आदिवासियों के इष्टदेव मारांग बुरु व इष्टदेवी जोहार आयो की विधिवत् पूजा की। उन्हें सखुआ का फूल अवश्य चढ़ाया जाता है। श्रद्धालुओं को कान पर सखुए का फूल लगाकर पुजारी द्वारा बधाई दी जाती है। सरहुल का मुख्य उद्देश्य समाज के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए वृक्षों की रक्षा करना है; ताकि पर्यावरण स्वच्छ रहे और मनुष्य सहित अन्य जीवों का जीवन संकट में न पड़े। अखाड़ा व सरना स्थलों पर सुबह में सरहुल की पूजा-अर्चना विधि-विधान से की गयी। मुख्य पूजा 'हातमा' सरना स्थल में हुई। पाहन जगलाल हेमरोम ने पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ मुर्गा की बलि देकर पूजा संपन्न करायी।
राँची के मोरहाबादी के निकट हातमा बस्ती से आरंभ हुई शोभायात्रा विभिन्न मार्गों से होती हुई क्लब रोड के पास सिरमटोली बस्ती पहँुची। सिरमटोली बस्ती में पाहन (आदिवासी पुरोहित) द्वारा पूजा सम्पन्न होने के बाद शोभायात्रा का विसर्जन हुआ। रास्ते में विभिन्न अखाड़ों और मोहल्लों से निकाली गयी झाँकियाँ शोभायात्रा में शामिल हुईं। सिरमटोली पहँुचते-पहँुचते शोभायात्रा ने विशाल स्वरूप ले लिया। ढोल और नगाड़ों की गूँज पर युवक-युवतियों की टोलियाँ सरहुल गीत गाती हुई थिरक रही थीं। बीच-बीच में एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर सरहुल की शुभकामनाएँ भी दे रहे थे। सरहुल गीत, युवक-युवतियों के नृत्य और पारंपरिक वेश-भूषा के कारण सड़क पर झारखंड की समृद्ध संस्कृति की झलक दिख रही थी। इसके साथ-साथ आधुनिक नागपुरी गीतों पर भी लोग थिरक रहे थे। ट्रकों में शामिल वाहनों पर सवार महिलाएँ इस शोभायात्रा का आनंद उठा रही थीं। 
पूजा-अर्चना के बाद दोपहर में राजधानी के विभिन्न मुहल्लों व आसपास के गाँवों से शोभा यात्रा निकाली गयी।, उसमें विभिन्न इलाकों की सरना समितियाँ झंडे और कई आकर्षक झाँकियांे के साथ शामिल हुईं। चडरी सरना समिति द्वारा अल्बर्ट एक्का चौक पर बनाये गये विशाल पंडाल में शोभायात्रा में शामिल लोगों का स्वागत किया गया। कई क्षेत्र की सरना समितियों को सम्मानित भी किया गया। जुलूस में शामिल लोगों के स्वागत के लिए कई अन्य संगठनों द्वारा जगह-जगह शिविर लगाये गये थे। इन शिविरों में जुलूस में शामिल लोगों के लिए चना-गुड़, पेयजल, शर्बत आदि की व्यवस्था भी की गयी थी।
सरहुल के मौके पर उमड़ी भीड़ को लेकर प्रशासन की ओर से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये थे। राज्य में कहीं से भी कोई अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। शोभायात्रा में महिलाओं की बड़ी संख्या को देखते हुए महिला सुरक्षा बल को भी तैनात किया गया था। सभी प्रमुख चौक-चौराहो और संवेदनशील इलाके में दंडाधिकारियों के नेतृत्व में सुरक्षा बल मुस्तैद थे। यातायात सुगम बनाने के लिए शोभा यात्रा के दौरान मार्ग परिवर्तन किया गया था। जिस ओर से सरहुल की शोभायात्रा निकाली गयी, उधर से वाहनों को दूसरी ओर डायवर्ट कर दिया गया था। इस दौरान कुछ लोगों ने लोकसभा चुनाव के मौसम में नेताओं से विविध तरीके से अपनी माँगें भी रखीं।
-होगी अच्छी वर्षा
पूजा संपन्न होने के बाद पाहन ने वहाँ रखे गये घड़े के पानी को देखकर इस वर्ष अच्छी वर्षा होने की भविष्यवाणी की और इसे कृषि के लिए शुभ बताया। मंगलवार को उपवास रखने के बाद पाहन घड़ों में पानी भरकर सरना-स्थल पर रखते हैं। उसमें केकड़े भी डाले जाते हैं। दूसरे दिन सुबह इसी पानी को देखकर भविष्यवाणी की जाती है। पाहन ने कहा कि रात में रखा गया घड़ा सुबह भंडार कोण की ओर झुका पाया गया। यह कृषि और वर्षा के लिए अच्छा संकेत है।