-शीतांशु कुमार सहाय
अध्ययन, अध्यापन और परीक्षा का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। विद्यार्थी को अध्ययन करना चाहिए। शिक्षक को अध्यापन कराना चाहिये। पर, अफसोस यह है कि ये दोनों ही अपनी जिम्मेदारी को निभाने के बदले मात्र औपचारिकता कर रहे हैं। यही कारण है कि अध्ययन के उपरान्त जिस परीक्षा की बारी आती है, उसके प्रति विद्यार्थी ईमानदार भूमिका नहीं निभा सकता। वह कमजोर है, इसलिये कदाचार का सहारा लेता है। उसने अध्ययन कहीं किया, इसलिये चोरी करता है। यह बहुत ही गलत परम्परा है जिससे तत्काल तो परीक्षार्थी को लाभ दीखता है, पर भविष्य में संबंधित परीक्षार्थी के साथ-साथ देश को भी गुणात्मक हानि होती है। मेरे विचार से परीक्षा से चोरी या नकल रोकने के दो प्रमुख कारगर कदम हो सकते हैं- पहला यह कि शिक्षकों पर कड़ाई हो कि वे नियमित पढ़ायें; क्योंकि वही विद्यार्थी चोरी करते हैं जो अध्यापन के अभाव में अध्ययन से वंचित रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि प्रत्येक कक्ष में सीसीटीवी कैमरे लगाये जायें और इसकी रिकॉर्डिंग के आधार पर ही शिक्षक को वेतन मिले। जब विद्यार्थी सीसीटीवी कैमरे की जद में परीक्षा दे सकते हैं तो शिक्षक पढ़ायेंगे क्यों नहीं। इसी तरह परीक्षा प्रपत्र में एक निर्देश यह भी अंकित किया जाये कि कदाचार में लिप्त पाये जाने पर परीक्षार्थी अगले पाँच वर्षों तक परीक्षा के अयोग्य ठहराये जायेंगे। साथ ही परीक्षा प्रपत्र में परीक्षार्थी का आधार संख्या भरना अनिवार्य कर दिया जाये। इससे कदाचारी परीक्षार्थी देश के किसी भी राज्य से पाँच वर्षों तक परीक्षा नहीं दे सकता। यों परीक्षा में चोरी को रोका जा सकता है।
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