-शीतांशु कुमार सहाय
रूलाई और आँसू का सम्बन्ध लोग दु:ख से लगाते रहे हैं, किंतु रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने की कला मनुष्य को विरासत में मिली है। जन्म के समय से ही बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। उस समय न रोने पर उसे रूलाने की कोशिश की जाती है; ताकि उस की मांसपेशियों व फेफड़ों का संचालन ठीक प्रकार से होने लगे।
कुछ लोग जोर से चिल्लाकर रोते हैं। ऐसी रूलाई सामान्य रूलाई से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। जोर से रोने पर मस्तिष्क में दबी भावनाओं का तनाव दूर हो जाता है, राहत मिलती है और बहुत शक्ति प्राप्त होती है; अत: पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में हृदयाघात यानी दिल का दौरा काफी कम पड़ता है।
अपने मानसिक तनाव को आँसू द्वारा शिथिल न कर पाने के कारण अक्सर पुरुष धमनियों से सम्बन्धित व्याधियों से पीड़ित रहते हैं।
आँसू ही आँखों को नम रखते हैं, स्वच्छ रखते हैं तथा धूल आदि पडऩे पर उसे धो डालते हैं। आँसू के विष के प्रभाव से ही हवा से उड़कर आँखों में पड़ऩेवाले कीट-पतंगे मर जाते हैं और वे हानि नहीं पहुँचा पाते। वैज्ञानिकों के मतानुसार, एक चम्मच आँसू 200 गैलन जल के कीटाणुओं को मारकर साफ करने में समर्थ है।
भावनात्मक आँसू हमें उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्ति दिलाते हैं। यही आँसू हद से बाहर जाने से भी रोकते हैं। रोने से मन का मैल धुल जाता है तथा एक प्रकार की शान्ति महसूस होती है। न रोनेवाले मानसिक तनाव से ग्रसित होकर चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐेसे व्यक्ति शीघ्र निर्णय भी नहीं ले पाते।
आयुर्वेद के अनुसार, रूलाई रोकने पर कई रोगों के होने का डर है। ऐसे रोगों में जुकाम, आँख या हृदय में पीड़ा, अरुचि, डर, चक्कर आना, गर्दन में अकडऩ, मानसिक तनाव आदि मुख्य हैं। सदमा लगने पर रूलाई को जबरन रोकने से हृदयाघात, उच्च या निम्न रक्तचाप अथवा मस्तिष्क के निष्क्रिय होने का भय भी बना रहता है।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता या अध्यापक बच्चे को डाँट या पीट देते हैं और जब वे रोने लगते हैं तो उन्हें डरा-धमकाकर रोने नहीं देते हैं। यह अत्यन्त घातक कदम है। इस से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों की बुद्धि कुंठित भी हो सकती है अथवा वे किसी मनोरोग से ग्रसित होकर आजीवन उस से पीड़ित रह सकते हैं।
रोना कभी निरर्थक नहीं जाता। बच्चे रोते हैं तो 'दूध' मिलता है, पत्नी के रोने पर 'जिद्द' पूरी हो जाती है। रूलाई का एक शानदार उदाहरण देखिये-- अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर वास्तव में एन. हेथवे को छोड़कर दूसरी लड़की से प्रेमालाप करने लगे। इस बात की जानकारी मिलने पर हेथवे घबरा गयीं। सहयोग की अपेक्षा से वह पड़ोसी के घर जाकर बहुत रोयीं और वृत्तान्त कह सुनाया।
हेथवे के रोने का प्रभाव पड़ोसी पर इतना पड़ा कि उस ने दूसरे दिन पूरे शहर में शेक्सपियर तथा हेथवे के विवाह के पोस्टर चिपकवा दिये। अंतत: विवश होकर शेक्सपियर को हेथवे से विवाह करना पड़ा।
आँसू की बहुपयोगिता को देखकर ही शायरों ने इसे 'मोती' की संज्ञा दी है। हिन्दी फिल्मों में कई गानों का मुख्य विषय आँसू ही है। .....तो आँसू से घबराएँ नहीं और रोने का मन करे तो अवश्य रोएँ; क्योंकि यह जीवन का अभिन्न अंग है।
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