-शीतांशु कुमार सहाय
पूरी धरती पर भारत का बिहार और आस-पास का एकमात्र ऐसा मानव निवास क्षेत्र है, जहाँ के लोग डूबते सूर्य की भी आराधना करते हैं।
छठ सूर्योपासना का ऐसा महापर्व है जो वर्ष में दो बार चैत्र और कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से सप्तमी पर्यन्त मनाया जाता है। प्रमुख आयोजन षष्ठी तिथि को होता है जिस दिन सन्ध्या काल में जलाशय में स्नान कर खड़े अवस्था में ही जल से भीगे वस्त्र पहने हुए डूबते अरुणाभ सूर्यदेव को ऋतुफल, पकवान, दूध, जल आदि से अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इस षष्ठी यानी छठी तिथि के कारण इस महापर्व का नाम 'छठ' पड़ा।
चार दिवसीय छठ महापर्व की चतुर्थी तिथि को उदित सूर्यदेव की आराधना (सुबह के प्रथम मुहूर्त के बाद) होती है, जिसे 'नहाय-खाय' कहते हैं। पञ्चमी तिथि को अस्त होने के पश्चात् शाम में सूर्यदेव की पूजा की जाती है, जिसे 'खरना' कहा जाता है। षष्ठी की शाम में अस्ताचलगामी यानी डूबते अरुणाभ सूर्य को अर्घ्य प्रदान किया जाता है। इसी तरह सप्तमी तिथि को उदयगामी यानी उगते अरुणाभ सूर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करने के पश्चात् चार दिवसीय छठ महापर्व सम्पन्न होता है।
नीचे जो प्रकाशित आलेख है, वह पटना से छपनेवाले दैनिक समाचार पत्र 'राष्ट्रीय सहारा' में शुक्रवार, 16 नवम्बर 2007 को प्रकाशित हुआ था। इस आलेख को राष्ट्रीय सहारा में कार्यरत तत्कालीन फीचर सम्पादकद्वय सुनील पाण्डेय और किशोर केशव ने अपनी कुशल विद्वत्ता में सम्पादित किया था।
एक बार आप भी पढ़िये और और जानिये उन तथ्यों को जिन्हें आप अबतक नहीं जानते.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें