बुधवार, 19 अक्टूबर 2022

रामायण की शूटिंग में साक्षात् काकभुशुण्डी आये और रामानन्द सागर के निर्देशन में शूटिंग की Kakbhushundi Came In The Shooting Of Ramayana & Shot Under The Direction Of Ramanand Sagar



-प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय      

     दूरदर्शन के अतिप्रसिद्ध धारावाहिक 'रामायण' की शूटिंग के समय निर्देशक रामानन्द सागर के लिए सब से मुश्किल कार्य था, काकभुशुण्डी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना। दोनों ही निर्देशक के आदेश का तो पालन करने से रहे। इसी कारण रामानन्द सागर परेशान थे।

     इस अत्यन्त कठिन और असम्भव लग रहे कार्य को सागर ने अपनी भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत पूरा किया। यह कार्य किस प्रकार सम्पूर्ण हुआ, आगे पढ़िये.....

     शूटिंग-यूनिट के सौ से अधिक सदस्य और स्टूडियो के लोग कौए को पकड़ने में घंटों लगे रहे। पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे चार कौओं को जाल में फँसाने में सफल हुए। चारों को चेन से बाँध दिया गया; ताकि वे अगले दिन की शूट से पहले रात में उड़ न जाएँ। सुबह तक केवल एक ही बचा था और वह भी अल्युमीनियम की चेन को अपनी पैनी चोंच से काटकर उड़ जाने के लिए संघर्ष कर रहा था।

     अगले दिन शॉट तैयार था। कमरे के बीच शिशु श्रीराम और उन के पास ही चेन से बँधा कौआ था। लाइट्स ऑन हो गयी थीं। रामानंद सागर शांति से प्रार्थना कर रहे थे, जबकि कौआ छूटने के लिए हो-हल्ला कर रहा था। वे उस भयभीत कौए के पास गए और काकभुशुण्डी के समक्ष हाथ जोड़ दिए। फिर आत्मा से याचना की “काकभुशुण्डीजी, रविवार को इस एपिसोड का प्रसारण होना है। मैं आप की शरण में आया हूँ, कृपया मेरी सहायता कीजिए।" 

     निस्तब्ध सन्नाटा छा गया, चंचल कौआ एकदम शांत हो गया ऐसा प्रतीत होता था, जैसे कि काकभुशुण्डी स्वयं पृथ्वी पर उस बंधक कौए के शरीर में आ गए हों। रामानंद सागर ने जोर से कहा, 'कैमरा' 'रोलिंग', कौए की चेन खोल दी गयी और १० मिनट तक कैमरा चालू रहा। रामानंद सागर निर्देश देते रहे, “काकभुशुंडीजी! शिशु राम के पास जाओ और रोटी छीन लो।” कौए ने निर्देशों का अक्षरश: पालन किया, काकभुशुण्डीजी ने रोटी छीनी और रोते हुए शिशु को वापस कर दी, उसे संशय से देखा, उस ने प्रत्येक प्रतिक्रिया दर्शायी और दस मिनट के चित्रांकन के पश्चात् उड़ गया। मैं इस दैविक घटना का साक्षी था।

     निस्संदेह वे काकभुशुण्डी (कागराज) ही थे, जो रामानंद सागर का मिशन पूरा करने के लिए पृथ्वी पर उस कौए के शरीर में आये थे। 

     जय श्रीराम! जय काकभुशुण्डी!

     साभार : 'रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथाएँ' (पुस्तक), पृष्ठ संख्या २०० से।

बुधवार, 12 अक्टूबर 2022

मनुष्य की कीमत Man's Value



-शीतांशु कुमार सहाय 

     लोहे की दुकान में अपने पिता के साथ काम कर रहे एक बालक ने अचानक ही अपने पिता से  पूछा, “पिताजी इस दुनिया में मनुष्य की क्या कीमत होती है?”

     पिताजी एक छोटे से बच्चे से ऐसा गंभीर सवाल सुन कर हैरान रह गये। फिर वे बोले, “बेटे एक मनुष्य की कीमत आँकना बहुत मुश्किल है, वह तो अनमोल है।”

     "क्या सभी उतनी ही कीमती और महत्त्वपूर्ण हैं?" बालक ने फिर प्रश्न किया। 

     पिताजी ने कहा, "हाँ बेटा।"

     बालक कुछ समझा नहीं। उस ने फिर प्रश्न किया, "तो फिर इस दुनिया में कोई ग़रीब तो कोई अमीर क्यों है? किसी की कम इज्ज़त तो किसी की ज़्यादा क्यों होती है?"

     प्रश्न सुनकर पिताजी कुछ देर तक शान्त रहे और फिर बालक से स्टोर रूम में पड़ा एक लोहे का रॉड लाने को कहा।

     रॉड लाते ही पिताजी ने पूछा, "इस की क्या कीमत होगी?"

     बालक ने २०० रुपये कीमत बतायी। 

     पिताजी ने समझाते हुए कहा, "अगर मैं इस के बहुत-से छोटे-छोटे कील बना दूँ तो इस की क्या कीमत हो जायेगी?"

     बालक कुछ देर सोचकर बोला, "तब तो ये और महंगा बिकेगा लगभग 1000 रुपये में।

     पिताजी ने पुनः प्रश्नात्मक अन्दाज़ में बताया, "अगर मैं इस लोहे से घड़ी के बहुत सारे स्प्रिंग बना दूँ तो?"

     बालक कुछ देर गणना करता रहा और फिर एकदम से उत्साहित होकर बोला, ”तब तो इस की कीमत बहुत अधिक हो जायेगी।”

     फिर पिताजी उसे मर्म समझाया, “ठीक इसी तरह मनुष्य की कीमत इस में नही है कि अभी वह क्या है; बल्कि इस में है कि वह अपने आप को क्या बना सकता है।” बालक अपने पिता की बात समझ चुका था।

     ...तो अब आप भी समझिये.....

     अक्सर हम अपनी सही कीमत आँकने में ग़लती कर देते हैं। हम अपनी वर्तमान स्थिति को देखकर अपने आप को निरुपयोगी समझने लगते हैं लेकिन हम में हमेशा अथाह शक्ति होती है। हमारा जीवन हमेशा सम्भावनाओं से भरा होता है। हमारे जीवन में कई बार स्थितियाँ अच्छी नहीं होती हैं पर इस से हमारी कीमत कम नहीं होती है। मनुष्य के रूप में हमारा जन्म इस दुनिया में हुआ है, इस का मतलब है कि हम बहुत विशेष और महत्त्वपूर्ण हैं। हमें हमेशा अपने आप में सुधार करते रहना चाहिये और अपनी सही कीमत प्राप्त करने की दिशा में बढ़ते रहना चाहिये।


शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

अद्भुत शक्तिशाली थे जामवन्त Jamwant was Amazingly Powerful

प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

     जामवन्त सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी रहे लेकिन वे सर्वाधिक चर्चित त्रेतायुग में रहे जब भगवान श्रीराम की सेवा का पुण्य कार्य उन्होंने किया। वे अतुलनीय बलशाली थे। एक शाप के कारण वे बूढ़े दीखने लगे और उन के बल में कमी आयी। उस शाप के बारे में भी आप इसी आलेख में जानेंगे। पहले उन के बल के सन्दर्भ में थोड़ी चर्चा कर लेते हैं, जैसा ग्रन्थों में उल्लेख है। 

     वास्तव में जामवन्त रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिन के विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उन के विषय में केवल एक-दो बातें ऐसी बतायी गयी हैं जिन से उन के बल के बारे में अनुमान लगा सकते हैं।

      पहली बात तो जामवन्त सतयुग के व्यक्ति थे। अब सतयुग में निःसन्देह योद्धा अन्य युगों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिशाली होते थे। उन की उत्पत्ति सीधा ब्रह्माजी से बतायी गयी है। अब परमपिता ब्रह्मा से जो जन्मा हो उस की शक्ति के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।

      रामचरितमानस में उन के पराक्रम के बारे में दो घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन दोनों स्थानों पर जामवन्त का युद्ध रावण और मेघनाद के साथ हुआ था। इन दोनों को जामवन्त ने अपने पाद प्रहार से मूर्छित कर दिया था। मेघनाद की शक्ति तो उन्होंने अपने हाथों से ही पकड़ कर पलट दी थी। अत्यन्त वृद्धावस्था में भी जो रावण और मेघनाद जैसे योद्धाओं को अपने घात से मूर्छित कर दे, जरा सोचिये युवावस्था में उस का बल क्या होगा!

      जब द्वापर युग आया तो जामवन्त और अधिक बूढ़े हो गये। उस समय उन का युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। जमवन्त को परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण को उन से एक-दो नहीं; बल्कि २८ दिनों तक युद्ध करना पड़ा। स्वयं परमेश्वर कृष्ण को जिसे परास्त करने में अट्ठाइस दिन लग गये हों, वो भी वृद्धावस्था में, जवानी में उन के बल के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।

      जब सीता माता को खोजने के लिए समुद्र लाँघने की बात चल रही थी, उस समय जामवन्त कहते हैं-- "मैं तो अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, फिर भी इस समुद्र में मैं नब्बे योजन तक जा सकता हूँ।" हनुमान जी अपनी युवावस्था में १०० योजन छलाँग गये, जामवन्त की आयु उस समय छः मन्वन्तर की बतायी गयी है। एक मन्वन्तर तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का होता है और इस से छः गुना अधिक उम्र का व्यक्ति समुद्र में ९० योजन तक जाने की क्षमता रखता था। इसी से उन के बल का पता चलता है।

      इस वार्तालाप के दौरान उन्होंने युवावस्था में अपने बल के बारे में दो बातें बतायीं जिन्हें ध्यान से सुनना आवश्यक है। इस से जामवन्त की वास्तविक शक्ति का पता चलेगा।

      पहली घटना तब की है जब समुद्र मन्थन चल रहा था जिसे देवता और दैत्य मिलकर बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे। उस समय जामवन्त ने अपनी जवानी के जोश में एक बार अकेले ही सम्पूर्ण मन्दराचल पर्वत को घुमा दिया था। मन्दराचल को अकेले घुमाने के लिए कितनी शक्ति चाहिए होगी, क्या आप अनुमान भी लगा सकते हैं? 

      दूसरी घटना भगवान विष्णु के वामन अवतार की है। जब श्रीहरि ने विराट स्वरुप लिया और एक पैर से स्वर्ग को माप लिया। फिर जब उन्होंने अपना पैर पृथ्वी को मापने के लिए उठाया, उस दौरान जामवंत ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। जरा सोचिये, महावीर हनुमान एक ही रात में लंका से सैकड़ों योजन दूर से पर्वत शिखर उखाड़ कर ले आये लेकिन जामवन्त ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। एक पल लगभग चौबीस सेकेण्ड का होता है। क्या आप उन की गति का अनुमान लगा सकते हैं?

      महाबलशाली जामवन्त के बल का ऐसा वर्णन सुनकर जब अंगद उन से पूछते हैं कि उन का बल क्षीण कैसे हुआ? तब वे बताते हैं कि जब वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे तो अन्तिम परिक्रमा के समय उन के पैर के अँगूठे का नाख़ून महामेरु पर्वत से छू गया, जिस से उस का शिखर खण्डित हो गया। इसे अपना अपमान मानते हुए मेरु ने जामवन्त को ये शाप दे दिया कि वह सदा के लिए बूढ़े हो जायेंगे और उन का बल क्षीण हो जायेगा।

      प्रत्याशा है कि आप को जामवन्त की शक्ति का कुछ अनुमान लग गया होगा। पर, इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उन में लेश मात्र भी घमण्ड नहीं था। 

      जय श्रीराम!

बुधवार, 5 अक्टूबर 2022

समयसूचक AM और PM का उद्गम स्थल भारत Origin of Timeline AM & PM

-शीतांशु कुमार सहाय

   भारतीय ज्ञान की तुलना किसी से नहीं। अतुलनीय भारतीय ज्ञान-विज्ञान और सिद्धांत को कई विदेशियों ने अपने नाम से प्रचारित किया। विदेशियों के इन झूठे कारनामों को आज लोग सच मान रहे हैं। अफसोस की बात है कि भारत में भी वही झूठ प्रचारित है। यहाँ तक कि भारतीय पाठ्यपुस्तकों में भी वही झूठ पढ़ाया जा रहा है। पर, अब धीरे-धीरे सच्चाई सामने आने लगी है। ऐसे ही एक सच के बारे में इस आलेख में जानिये।

      भारतीय पुस्तकों में यह उल्लेख मिलता है कि समय सूचक शब्द AM और PM विदेशियों की देन है, अँग्रेज वैज्ञानिकों की देन है। साथ ही इस का Full form भी ग़लत बताया गया-

      AM : एंटी मेरिडियन (Ante Meridian)

      PM : पोस्ट मेरिडियन (Post Meridian)

      एंटी मतलब पहले, लेकिन किस आकाशीय पिण्ड के? पोस्ट मतलब बाद में, लेकिन किस के? यह कभी स्पष्ट नहीं किया गया; क्योंकि ये भारतीय ग्रन्थों से चुराये गये शब्दों के लघुतम रूप हैं।

    भारतीय ऋषियों-मुनियों के पास असीम ज्ञान-भण्डार था। उन्होंने पृथ्वी पर समय की गणना सूर्य और चन्द्र की गति के आधार पर की। समय की उसी भारतीय गणना प्रणाली को ही आज भी पूरा विश्व अनुसरण कर रहा है। समय गणना में दोपहर से पहले के समय को पूर्वाह्न और दोपहर के बाद के समय को अपराह्न कहा गया है। पूर्वाह्न में सूर्य (मार्तण्ड) पूर्व में उदित होकर आकाश में ऊपर की ओर चढ़ता (आरोहण) हुआ दिखायी देता है। इस के विपरीत अपराह्न में सूर्य पश्चिम की ओर ढलता (पतन) हुआ अर्थात् नीचे आता हुआ दीखता है। 

      अब भारतीय ऋषियों के ज्ञान को देखिये कि उन के संस्कृत ज्ञान पर किस प्रकार हल्की फेर-बदल कर अपने नाम की मुहर चिपका दी--

AM = आरोहणम् मार्तण्डस्य 

(Aarohanam Martandasya)

PM = पतनम् मार्तण्डस्य 

(Patanam Martandasya)

     पूर्वाह्न में सूर्य का चढ़ना अर्थात् संस्कृत में होता है आरोहणं मार्तण्डस्य Arohanam Martandasya और अपराह्न में सूर्य का ढलना मतलब संस्कृत में पतनं मार्तण्डस्य Patanam Martandasya होता है।