प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
जामवन्त सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी रहे लेकिन वे सर्वाधिक चर्चित त्रेतायुग में रहे जब भगवान श्रीराम की सेवा का पुण्य कार्य उन्होंने किया। वे अतुलनीय बलशाली थे। एक शाप के कारण वे बूढ़े दीखने लगे और उन के बल में कमी आयी। उस शाप के बारे में भी आप इसी आलेख में जानेंगे। पहले उन के बल के सन्दर्भ में थोड़ी चर्चा कर लेते हैं, जैसा ग्रन्थों में उल्लेख है।
वास्तव में जामवन्त रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिन के विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उन के विषय में केवल एक-दो बातें ऐसी बतायी गयी हैं जिन से उन के बल के बारे में अनुमान लगा सकते हैं।
पहली बात तो जामवन्त सतयुग के व्यक्ति थे। अब सतयुग में निःसन्देह योद्धा अन्य युगों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिशाली होते थे। उन की उत्पत्ति सीधा ब्रह्माजी से बतायी गयी है। अब परमपिता ब्रह्मा से जो जन्मा हो उस की शक्ति के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
रामचरितमानस में उन के पराक्रम के बारे में दो घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन दोनों स्थानों पर जामवन्त का युद्ध रावण और मेघनाद के साथ हुआ था। इन दोनों को जामवन्त ने अपने पाद प्रहार से मूर्छित कर दिया था। मेघनाद की शक्ति तो उन्होंने अपने हाथों से ही पकड़ कर पलट दी थी। अत्यन्त वृद्धावस्था में भी जो रावण और मेघनाद जैसे योद्धाओं को अपने घात से मूर्छित कर दे, जरा सोचिये युवावस्था में उस का बल क्या होगा!
जब द्वापर युग आया तो जामवन्त और अधिक बूढ़े हो गये। उस समय उन का युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। जमवन्त को परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण को उन से एक-दो नहीं; बल्कि २८ दिनों तक युद्ध करना पड़ा। स्वयं परमेश्वर कृष्ण को जिसे परास्त करने में अट्ठाइस दिन लग गये हों, वो भी वृद्धावस्था में, जवानी में उन के बल के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।
जब सीता माता को खोजने के लिए समुद्र लाँघने की बात चल रही थी, उस समय जामवन्त कहते हैं-- "मैं तो अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, फिर भी इस समुद्र में मैं नब्बे योजन तक जा सकता हूँ।" हनुमान जी अपनी युवावस्था में १०० योजन छलाँग गये, जामवन्त की आयु उस समय छः मन्वन्तर की बतायी गयी है। एक मन्वन्तर तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का होता है और इस से छः गुना अधिक उम्र का व्यक्ति समुद्र में ९० योजन तक जाने की क्षमता रखता था। इसी से उन के बल का पता चलता है।
इस वार्तालाप के दौरान उन्होंने युवावस्था में अपने बल के बारे में दो बातें बतायीं जिन्हें ध्यान से सुनना आवश्यक है। इस से जामवन्त की वास्तविक शक्ति का पता चलेगा।
पहली घटना तब की है जब समुद्र मन्थन चल रहा था जिसे देवता और दैत्य मिलकर बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे। उस समय जामवन्त ने अपनी जवानी के जोश में एक बार अकेले ही सम्पूर्ण मन्दराचल पर्वत को घुमा दिया था। मन्दराचल को अकेले घुमाने के लिए कितनी शक्ति चाहिए होगी, क्या आप अनुमान भी लगा सकते हैं?
दूसरी घटना भगवान विष्णु के वामन अवतार की है। जब श्रीहरि ने विराट स्वरुप लिया और एक पैर से स्वर्ग को माप लिया। फिर जब उन्होंने अपना पैर पृथ्वी को मापने के लिए उठाया, उस दौरान जामवंत ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। जरा सोचिये, महावीर हनुमान एक ही रात में लंका से सैकड़ों योजन दूर से पर्वत शिखर उखाड़ कर ले आये लेकिन जामवन्त ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। एक पल लगभग चौबीस सेकेण्ड का होता है। क्या आप उन की गति का अनुमान लगा सकते हैं?
महाबलशाली जामवन्त के बल का ऐसा वर्णन सुनकर जब अंगद उन से पूछते हैं कि उन का बल क्षीण कैसे हुआ? तब वे बताते हैं कि जब वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे तो अन्तिम परिक्रमा के समय उन के पैर के अँगूठे का नाख़ून महामेरु पर्वत से छू गया, जिस से उस का शिखर खण्डित हो गया। इसे अपना अपमान मानते हुए मेरु ने जामवन्त को ये शाप दे दिया कि वह सदा के लिए बूढ़े हो जायेंगे और उन का बल क्षीण हो जायेगा।
प्रत्याशा है कि आप को जामवन्त की शक्ति का कुछ अनुमान लग गया होगा। पर, इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उन में लेश मात्र भी घमण्ड नहीं था।
जय श्रीराम!
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