-प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय
दूरदर्शन के अतिप्रसिद्ध धारावाहिक 'रामायण' की शूटिंग के समय निर्देशक रामानन्द सागर के लिए सब से मुश्किल कार्य था, काकभुशुण्डी और शिशु राम के दृश्य फिल्माना। दोनों ही निर्देशक के आदेश का तो पालन करने से रहे। इसी कारण रामानन्द सागर परेशान थे।
इस अत्यन्त कठिन और असम्भव लग रहे कार्य को सागर ने अपनी भक्ति और आध्यात्मिक शक्ति की बदौलत पूरा किया। यह कार्य किस प्रकार सम्पूर्ण हुआ, आगे पढ़िये.....
शूटिंग-यूनिट के सौ से अधिक सदस्य और स्टूडियो के लोग कौए को पकड़ने में घंटों लगे रहे। पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे चार कौओं को जाल में फँसाने में सफल हुए। चारों को चेन से बाँध दिया गया; ताकि वे अगले दिन की शूट से पहले रात में उड़ न जाएँ। सुबह तक केवल एक ही बचा था और वह भी अल्युमीनियम की चेन को अपनी पैनी चोंच से काटकर उड़ जाने के लिए संघर्ष कर रहा था।
अगले दिन शॉट तैयार था। कमरे के बीच शिशु श्रीराम और उन के पास ही चेन से बँधा कौआ था। लाइट्स ऑन हो गयी थीं। रामानंद सागर शांति से प्रार्थना कर रहे थे, जबकि कौआ छूटने के लिए हो-हल्ला कर रहा था। वे उस भयभीत कौए के पास गए और काकभुशुण्डी के समक्ष हाथ जोड़ दिए। फिर आत्मा से याचना की “काकभुशुण्डीजी, रविवार को इस एपिसोड का प्रसारण होना है। मैं आप की शरण में आया हूँ, कृपया मेरी सहायता कीजिए।"
निस्तब्ध सन्नाटा छा गया, चंचल कौआ एकदम शांत हो गया ऐसा प्रतीत होता था, जैसे कि काकभुशुण्डी स्वयं पृथ्वी पर उस बंधक कौए के शरीर में आ गए हों। रामानंद सागर ने जोर से कहा, 'कैमरा' 'रोलिंग', कौए की चेन खोल दी गयी और १० मिनट तक कैमरा चालू रहा। रामानंद सागर निर्देश देते रहे, “काकभुशुंडीजी! शिशु राम के पास जाओ और रोटी छीन लो।” कौए ने निर्देशों का अक्षरश: पालन किया, काकभुशुण्डीजी ने रोटी छीनी और रोते हुए शिशु को वापस कर दी, उसे संशय से देखा, उस ने प्रत्येक प्रतिक्रिया दर्शायी और दस मिनट के चित्रांकन के पश्चात् उड़ गया। मैं इस दैविक घटना का साक्षी था।
निस्संदेह वे काकभुशुण्डी (कागराज) ही थे, जो रामानंद सागर का मिशन पूरा करने के लिए पृथ्वी पर उस कौए के शरीर में आये थे।
जय श्रीराम! जय काकभुशुण्डी!
साभार : 'रामानंद सागर के जीवन की अकथ कथाएँ' (पुस्तक), पृष्ठ संख्या २०० से।
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