शनिवार, 11 मार्च 2023

हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र Hanuman Dwadashnam Stotra

 


-शीतांशु कुमार सहाय 

      भगवान शिव के रुद्रावतार भगवान हनुमानजी कलियुग में भक्तों के संरक्षण के लिए सशरीर पृथ्वी पर निवास कर रहे हैं। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के ध्वज में वास करनेवाले अपने अप्रतिम भक्त हनुमानजी को कलियुग के अन्त तक सशरीर पृथ्वी पर निवास करने का आदेश दिया। वे भक्तों में आध्यात्मिकता को प्रगाढ़ कर धर्म-मार्ग पर प्रेरित करते हैं। नकारात्मक अदृश्य शक्तियों (प्रेत, यक्ष, पिशाच आदि) से रक्षा करते हैं। संकटों से उबारते हैं। 

      चूँकि कलियुग का अन्त बहुत निकट है। अतः हमें धर्म-मार्ग का अनुसरण करते हुए भगवान हनुमानजी की आराधना करनी चाहिये; ताकि युग के परिवर्तन के दौरान होनेवाले कष्टों से बच सकें और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।

      यहाँ प्रस्तुत है 'हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र'। इसे ब्रह्म-मुहूर्त में पढ़ने या ध्यानपूर्वक सुनने से निश्चय ही कल्याण होता है।

हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महाबल:।
रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम:॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन:।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा॥

      हनुमानजी के द्वादश (बारह) नाम ये हैं :-

१. हनुमान,

२. अञ्जनीपुत्र,

३. वायुपुत्र,

४. महाबल,

५. रामेष्ट,

६. फाल्गुनसखा,

७. पिङ्गाक्ष,

८. अमितविक्रम,

९. उदधिक्रमण,

१०. सीताशोकविनाशक,

११. लक्ष्मणप्राणदाता,

१२. दशग्रीवस्य दर्पहा। 

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