-शीतांशु कुमार सहाय
शिव को कभी किसी समस्या से नहीं गुजरना पड़ा। हाँ, ऐसे कुछ ऐसी स्थितियाँ अवश्य उत्पन्न हुईं, जब वे विचलित दीखे,जैसे कि जब उन्होंने अपनी प्रिया पत्नी सती को खो दिया तब वे कुछ समय तक गहरे दुख में रहे। पर, कुछ समय बाद, वह फिर से ठीक हो गये। हर किसी के साथ ऐसा ही होता है। अपने किसी बहुत पात्र को खोने के बाद भी कुछ समय तक दुख में रहने के बाद आप जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। उन्हें भी उसी स्थिति का सामना करना पड़ा, इस में कोई बड़ी बात नहीं थी। कृष्ण को भी कई स्थितियों से गुजरना पड़ा और मेरे जीवन में भी ऐसा ही हुआ है। स्थितियाँ आती हैं, मगर कोई पीड़ा नहीं होती। चाहे जो भी हो जाय, उस से आप टूटते नहीं हैं, कमजोर नहीं पड़ते।
अब प्रश्न यह है कि ऐसी स्थितियाँ कृष्ण, शिव, ईसा मसीह या मेरे सामने भी क्यों आती हैं? एक बार जब आप दुनिया में जीवन जीने का चयन कर लेते हैं, तो आप दुनिया के नियमों के वश में हो जाते हैं। मैं मानव निर्मित नियमों की बात नहीं कर रहा हूँ। पर, एक बार जब आप एक भौतिक शरीर अपनाने और दुनिया में एक भूमिका निभाने का फैसला कर लेते हैं, तो आप भी उन नियमों के अधीन हो जाते हैं, जो भौतिक अस्तित्व को नियन्तत करते हैं।
इसीलिए श्रीकृष्ण ने धर्म की बात की, गौतम बुद्ध ने धम्म की बात की और हम मूलभूत यौगिक सिद्धान्त की बात कर रहा हूँ; क्योंकि ये सिद्धान्त, धम्म या धर्म, जीवन के भौतिक आयाम को रास्ता दिखाते हैं या भौतिकता का मार्गदर्शन करते हैं। ईश्वर ऊपर बैठकर सारा प्रबन्ध नहीं कर रहे, सारा खेल कुछ नियमों और एक निश्चित प्रणाली के अनुसार संचालित हो रहा है।
एक बार जब आप भौतिक आयाम में प्रवेश करने का मन बना लेते हैं, तो उस भौतिकता के नियम आप पर भी लागू होते हैं, चाहे आप कोई भी हों। आप कृष्ण हों, शिव हों या सद्गुरु हों – अगर आप विष पियेंगे, तो आप की मृत्यु हो जायेगी। हो सकता है कि आप के अंदर बहुत आवश्यक होने पर किसी-न-किसी तरह कुछ स्थितियों से परे जाने की क्षमता हो। हो सकता है कि आप की मौत न हो मगर फिर भी आप को कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी। उस से आप बच नहीं सकते। अगर आप छत से नीचे गिरेंगे, तो कुछ न कुछ टूटेगा ही, चाहे आप जो भी हों – क्योंकि आप ने भौतिक में रहने का फैसला किया है। अगर आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कहीं से गिरकर भी आप को कुछ न हो, तो आप को शरीरहीन होना पड़ेगा। जब आप भौतिक शरीर छोड़ देते हैं, तो भौतिक नियम आप पर लागू नहीं होते। जब तक आप के पास एक भौतिक शरीर है, आप भौतिकता के नियमों के अधीन होते हैं। दूसरे आयामों पर भी यही बात लागू होती है। जब आप भौतिक या अभौतिक जीवन से ऊब जाते हैं, तभी मुक्ति की चाह उत्पन्न होती है।
जब आप भौतिक दुनिया में होते हैं, तो इस भौतिक दुनिया के कुछ मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप शरीरहीन दुनिया में होते हैं, तो कुछ शरीरहीन मूर्ख आप को धौंस दिखाते हैं। जब आप दिव्य दुनिया में होते हैं, तो कुछ दिव्य मूर्ख आप को तंग करते हैं। इन चीजों को देखते हुए, बुद्धिमान लोग मुक्ति चाहते हैं। आप ऐसी स्थिति में होना चाहते हैं, जहाँ कोई भी आप के ऊपर धौंस न जमा सके। किसी भी चीज के अधीन न होने के लिए आप को ऐसी स्थिति में आना होगा जहाँ या तो आप ‘कुछ नहीं’ हों या ‘सब कुछ’ बन जायें। इसे आप दोनों तरह से देख सकते हैं। आप को असीम हो जाना होगा; ताकि कोई भी आप को अधीन न कर सके। भले ही आप अपने अंदर असीम हों लेकिन एक बार जब आप भौतिक शरीर में रहना तय कर लेते हैं, तो भौतिक नियम आप के ऊपर लागू होते हैं।
यही कारण है कि अधिकतर ज्ञानी जीव अपने शरीर में नहीं रहते। एक बार जब उन्हें परे जाने की कुञ्जी मिल जाती है, तो उन्हें शरीर से चिपके रहने और भौतिकता के अधीन रहने में कोई समझदारी नहीं लगती। यह ऐसा ही है, मानो आप देश के प्रधान मंत्री हों और एक छोटे से गाँव में आने पर पंचायत का प्रमुख आप पर धौंस जमाये। सभी ज्ञानी प्राणियों का यही अनुभव होता है। उन के पास परे जाने की कुञ्जी होती है, वे कहीं और हो सकते हैं मगर एक भौतिक शरीर अपना लेने के बाद भौतिक क्षेत्र की हर चीज और हर इंसान लाखों अलग-अलग रूपों में उन पर मर्जी चलाता है। श्रीकृष्ण ने कई बार यह कहा है कि ईश्वर के रूप में उन्हें इन चीजों के अधीन होने की आवश्यकता नहीं होती; क्योंकि उन्होंने एक मानव शरीर अपनाया, वे भौतिक आयाम में धर्म की स्थापना करना चाहते थे, इसलिए उन्हें भौतिक नियमों के अधीन होना पड़ा। कुछ लोग उन की पूजा करते थे। पर, कुछ अलग प्रवृत्ति के लोग बार-बार ग्वाला कहकर उन की हँसी उड़ाते थे। प्यार से नहीं; बल्कि नीचा दिखाने के लिए उन्हें 'गोपाल' कहा। उन्हें यह सब सहन करने की आवश्यकता नहीं होती मगर उन्होंने धर्म की स्थापना का बीड़ा उठाया था, इसलिए उन्हें ऐसे कई अपमान सहने पड़े।
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