-शीतांशु कुमार सहाय
धनतेरस के सुअवसर पर वामनरूप भगवान श्रीविष्णु, अमृत कलश लेकर समुद्र मन्थन में औषधियों सहित प्रकट होनेवाले भगवान धनवन्तरि और धनाध्यक्ष कुबेर अपनी असीम कृपा का वर्षण करते रहें!
आध्यात्मिक धन, स्वास्थ्य धन और वस्तुगत धन प्राप्ति हेतु साधन-परिश्रम का विशेष दिवस 'धनतेरस' का आयोजन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को होता है।
अब जानते हैं 'धनतेरस' से जुड़ी कथा। राजा बलि के भय से देवताओं को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था। इस पाँचवें अवतार में वे राजा बलि के यज्ञ स्थल पर जा पहुँचे। इस बीच असुरों के गुरु शुक्राचार्य पहचान गये थे कि वामन के रूप में भगवान विष्णु ही हैं। तब शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा कि वामन जो भी माँगे, वह उन्हें न दिया जाय। साथ ही उन्होंने कहा कि वामन के रूप में भगवान विष्णु हैं, जो देवताओं की सहायता करने के लिए यहाँ आये हैं।
शुक्राचार्य ऐसा नहीं चाहते थे कि बलि के हाथों भगवान वामन को कुछ भी दान में न मिले। राजा बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य ने वामनरूप भगवान के कमण्डल में लघु रूप धारण कर प्रवेश कर लिया। गुरु शुक्राचार्य की ये चालाकी भगवान विष्णु समझ गये। तब उन्होंने अपने हाथों में मौजूद कुश को कमण्डल में इस तरह रखा कि शुक्राचार्य की एक आँख फूट गयी। इस के बाद सदा के लिए वे एक आँख गँवा बैठे।
इस घटना के बाद भगवान द्वारा माँगी गयी तीन पग भूमि को बलि ने दान करने का फैसला ले लिया। उस समय भगवान वामन ने अपने एक पैर से पूरी धरती को मापा और दूसरे पैर से अंतरिक्ष के सभी लोकों को माप लिया। अब तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा था, तो भगवान के सम्मुख सिर झुकाकर असुरराज बलि ने अपने सिर नरेन्द्र भगवान वामन को पैर रखने का आग्रह किया। भगवान ने अपने श्रीचरणों से वलि को मुक्ति प्रदान किया। इस तरह देवताओं को बलि के भय से मुक्ति मिल गयी। इसी जीत की उल्लासमय अभिव्यक्ति धनतेरस है।
समुद्र मन्थन में अमृत कलश लेकर औषधियों सहित प्रकट होनेवाले आयुर्वेद अर्थात् चिकित्सा शास्त्र के प्रणेता भगवान धनवन्तरि की भी आराधना की जाती है। इसी दिन धन-वैभव के अध्यक्ष कुबेर देव की भी पूजा की जाती है।
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