शनिवार, 10 जनवरी 2015

गुड़ है अमृत और सफेद जहर है चीनी / Molasses is Nectar and Sugar is White Poison


 -शीतांशु कुमार सहाय
रासायनिक विश्लेषणों से यह बात सामने आयी है कि अनेक खाद्योपयोगी घटक तथा लोहा, कैल्शियम, गंधक, पोटेशियम एवं विटामिन आदि गुड़ में भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। गुड़ में पैनथीनिक एसिड, नायसिन, थियासिन, रीबोप्लेविन, पायरिडोक्सिन, बायोटिन, फालिक एसिड तथा आइनोसिटल इतनी मात्रा में पाए जाते हैं कि यह एक प्रमुख सामग्री के रूप में गिना जाता है। गुड़ के प्रत्येक 100 ग्राम भाग में प्रोटीन 0.4 ग्राम, वसा 0.1 ग्राम, खनिज 0.6 ग्राम, कैल्शियम 80 मि.ग्रा, फास्फोरस 40 मि.ग्रा, लोहा 11.4 मि.ग्रा आदि पोषक तत्व होते हैं। गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध, अपरिष्कृत पूरी चीनी है। यह खनिज और विटामिन है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। पर लिए ज़रूरी है की देशी गुड लिया जाए, जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल का प्रयोग न हुआ हो। यह थोड़े गहरे रंग का होगा। इसे चीनी का शुद्धतम रूप माना जाता है। गुड़ का उपयोग मूलतः दक्षिण एशिया मे किया जाता है। भारत के ग्रामीण इलाकों मे गुड़ का उपयोग चीनी के स्थान पर किया जाता है। लखनऊ के भारतीय गन्ना शोध संस्थान के प्रोसेस इंजीनियरिंग के डा.जसवंत सिंह ने गुड़ की पोषण गुणवत्ता को जोरदार तरीके से रेखांकित किया है। डा.सिंह के अनुसार चीनी बनाने की प्रक्रिया के कारण उसमें हर प्रकार के विटामिन खनिज और पोषक तत्व नष्ट अलग हो जाते हैं। इसके विपरित गुड़ बनाते समय उसमें रिड्युसिंग शुगर और अन्य खनिजों की मात्रा और बढ़ जाती है। डा.सिंह का तो दावा है कि ग्रामीण इलाकों में डायबीटिज इसलिये कम होती है कि वहां गुड़ अधिक खाया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार गुड़ जल्दी पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। गुड़ के साथ पकाए चावल खाने से बैठा हुआ गला व आवाज़ खुलती है। गुड़ की तासीर गर्म है। भारतवर्ष में जबसे गन्ने का उत्पादन प्रारम्भ हुआ तभी से इसका उपयोग गुड़ उत्पादन के निमित्त किया जा रहा है। भारतीय वैदिक कालीन इतिहास में गन्ने की खेती एवं विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के गुड़ के उपयोग के विषय में वर्णन आता है। सन् 1920 से पूर्व गन्ने की खेती केवल गुड़ एवं खाण्डसारी उद्योग के लिये ही की जाती थी। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 80 लाख टन गुड़ विभिन्न रूपों में प्रतिवर्ष उत्पादित किया जाता है जिसकी लगभग 56 प्रतिशत मात्रा अकेले उ0प्र0 में ही बनाई जाती है। रोजाना 20 ग्राम गुड़ खाएं। चरक संहिता और आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने भी लोगों को खाना खाने के बाद रोजाना थोड़ा सा गुड़ खाने की सलाह दी है। अंग्रेजों के शासनकाल में गन्ना उत्पादक काश्तकार खाण्डसारी के बजाय गुड़ बनाना पसंद करते थे जबकि अंग्रेजों को चीनी की जरुरत होती थी। जब गुड़ निर्माताओं ने चीनी मिलों को गन्ने की आपूर्ति बंद कर दी तो अंग्रेजों ने गुड़ बनाने पर ही प्रतिबंध लगाने के साथ ही इसे गैर कानूनी भी घोषित कर दिया। पूजा-अर्चना हवन आदि धार्मिक कार्यों में भी गुड़ का प्रयोग किया जाता है।

सफेद जहर है चीनी

गुड़ को स्वास्थ्य के लिए अमृत जबकि चीनी को सफेद जहर माना गया है। आयुर्वेद में किये गये शोध से पता चला है कि गुड़ के मुकाबले चीनी को पचाने में पांच गुणा ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है। यदि गुड़ को पचाने मे 100 कैलोरी ऊर्जा लगती है तो चीनी को पचाने में 500 कैलोरी खर्च होती है। गुड़ में कैल्शियम के साथ फास्फोरस भी होता है जो हड्डियों को मजबूत करने में सहायक माना जाता है। वहीं चीनी हड्डियों के लिए नुकसानदायक होती है क्योंकि चीनी इतने अधिक तापमान पर बनाई जाती है कि गन्ने के रस में मौजूद फास्फोरस भस्म जाता है। फास्फोरस कफ को संतुलित करने में भी सहायक माना जाता है। आयुर्वेद का मानना है कि गुड़ में मौजूद क्षार शरीर मौजूद अम्ल (एसिड) को खत्म करता है इसके विपरीत चीनी के सेवन से अम्ल बढ़ जाता है जिससे वात रोग पैदा होते है। वैद्य सलाह देते हैं कि नीरोग रहने और दीर्घायुता के लिए भोजन के बाद नियमित रूप से 20 ग्राम गुड़ का सेवन किया जाना चाहिए। गुड़ के तमाम फायदों के बावजूद आयुर्वेद में कुछ पदार्थों के साथ इसके सेवन को निषेध माना है जिनमें दूध में मिला कर पीने की मनाही की गयी है। हालांकि पहले गुड़ खाएं और फिर दूध पिएं, आपकी सेहत ठीक रहेगी और कई रोगों से बचाव होगा। चीनी की चाय की जगह गुड़ की चाय अधिक स्वास्थ्यकर मानी जाती है।
गुड़ गन्ने से तैयार एक शुद्ध प्राकृतिक आहार है। यह खनिज और विटामिन का मुख्य स्रोत है जो मूल रूप से गन्ने के रस में ही मौजूद हैं। यह प्राकृतिक होता है। गुड़ के सेवन के दौरान ध्यान रखें कि यह पूरी तरह देसी ही हो, जिसके रंग साफ़ करने में सोडा या अन्य केमिकल का प्रयोग न हुआ हो। शुद्ध गुड़ लालिमा लिए हुए भूरा होता है। पीला या चमकीला गुड़ लाभदायक नहीं है, यह जहर है। 

गुड के औषधीय गुण---

-आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार गुड़ का उपभोग गले और फेफड़ों के संक्रमण के उपचार में लाभदायक होता है।
-गुड़ लोहतत्व का एक प्रमुख स्रोत है और रक्ताल्पता (एनीमिया) के शिकार व्यक्ति को चीनी के स्थान पर इसके सेवन की सलाह दी जाती है।
- देसी गुड़ प्राकृतिक रुप से तैयार किया जाता है तथा कोई रसायन इसके प्रसंस्करण के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, जिससे इसे अपने मूल गुण को नहीं खोना पड़ता है, इसलिए यह लवण जैसे महत्वपूर्ण खनिज से युक्त होता है।
- गुड़ सुक्रोज और ग्लूकोज जो शरीर के स्वस्थ संचालन के लिए आवश्यक खनिज और विटामिन का एक अच्छा स्रोत है।
- गुड़ मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है जिससे मांसपेशियों, नसों और रक्त वाहिकाओं को थकान से राहत मिलती है।
- गुड़ सोडियम की कम मात्रा के साथ-साथ पोटेशियम का भी एक अच्छा स्रोत है, इससे रक्तचाप को नियंत्रित बनाए रखने मेंमदद मिलती है।
- भोजन के बाद थोडा सा गुड खा ले; सारा भोजन अच्छे से और जल्दी पच जाएगा।
- गुड़ रक्तहीनता से पीड़ित लोगों के लिए बहुत अच्छा है, क्योंकि यह लोहे का एक अच्छा स्रोत है यह शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर को बढाने में मदद करता है।
- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है।
- गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस और जस्ता होता है जो बेहतर स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है।
- यह रक्त की शुद्धि में भी मदद करता है, पित्त की आमवाती वेदनाओं और विकारों को रोकने के साथ-साथ गुड़ पीलिया के इलाज में भी मदद करता है।
- गुड़ शरीर को विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाने में मदद करता है। सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है।
- यह खांसी, दमा, अपच, माइग्रेन, थकान व इसी तरह की अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से निपटने में मदद करता है।
- यह संकट के दौरान तुरन्त ऊर्जा देता है।
- लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने यह मददगार होता है।
- गुड़ गले और फेफड़ों के संक्रमण के इलाज में फायदेमंद होता है।
- यह व्यक्ति के तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने में सहायक होता है। 
- गुड़ शरीर में जल के अवधारण को कम करके शरीर के वजन को नियंत्रित करता है।
- गुड़ उच्चस्तरीय वायु प्रदूषण में रहनेवाले लोगों को इससे लड़ने में मदद करता है।
-गुड़ मूत्र की रुकावटों को दूर करता है।
-गुड़ जितना पुराना हो उतना अधिक गुणों से युक्त होता है।
-गुड़ में पाया जाने वाला क्षारीय गुण रक्त की अम्लता को दूर करता है।
-मेहनतकश एवं खिलाड़ियों के लिये तो यह किसी वरदान से कम नहीं है। बढ़ते बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत उपयोगी होता है।
-कोई भी आसव, आरिष्ट बिना गुड़ के नहीं बनाए जाते हैं।
-राज निघण्टुकार के अनुसार, गुड़ हृदय के लिये हितकारक, त्रिदोष नाशक, मल-मूत्र के रोगों को नष्ट करने वाला, खुजली और प्रमेह नाशक, थकान दूर करने वाला एवं पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला है।
-250 ग्राम कच्चा पीसा जीरा और 125 ग्राम गुड़ को मिला कर इसकी गोलियाँ बना लें। दो-दो गोली नित्य दिन में तीन बार खाने से मूत्र विकार में लाभ मिलता है। जैसे मूत्र नहीं होना, मूत्र में जलन आदि।
-भावप्रकाश के अनुसार, गुड़ का अदरक के साथ सेवन कफ को छाँटता है, हरड के साथ पित्त का नाश करता है और सौंठ के साथ सम्पूर्ण वातज रोगों में लाभकारी है।
-प्राचीनकाल से ही हमारे यहाँ गुड़ का हर मांगलिक कार्य में उपयोग होता है। बिना गुड़ के मांगलिक कार्य अधूरा माना जाता है।
-शुभ कार्य के प्रारंभ में गुड़ को शगुन माना गया है। किसी भी शुभ कार्य के लिये प्रस्थान के समय गुड़ को मूंह में डालकर जाने से सफलता प्राप्त होती है।
-प्रसव के पश्चात स्त्रियों को गुड़ देना प्राचीनकाल से चला आ रहा है। शिशु जन्म के बाद गर्भाशय की पूर्ण रूप से सफाई न होने पर अनेक विकार होने की संभावना बनी रहती है। अत: शिशु के जन्म के 3 दिन तक प्रसूता को गुड़ के पानी के साथ सौंठ दी जाती है।
-वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों का कहना है कि यौवन क्षमता बनाए रखने तथा दीर्वजीवन के लिये गुड़ का प्रयोग अच्छा रहता है।
-बढ़ते हुए बच्चों के लिये यह एक अत्यन्त उत्तम खाद्य है। यदि बच्चों को उचित मात्रा में दूध न मिले तो उन्हें कुछ मात्रा में गुड़ देना चाहिये। जो बच्चे रिकेट दांत के क्षय या कैल्शियमहीनता की दूसरी बीमारियों से पीड़ित हो उनको हमेशा चीनी की जगह पर्याप्त गुड़ देना चाहिये।
-गुड़ और काले तिल के लड्डू बच्चों को देने से बच्चों का बिस्तर में पेशाब करना दूर हो जाता है।
-छोटा बच्चा यदि गलती से तम्बाकू खा ले तो विशाक्तता से बचने के लिये गुड़ अथवा गन्ने का रस बच्चे को पिलायें।
-इसमें एंटी एलर्जिक तत्व हैं इसलिए दमा के मरीजों के लिए इसका सेवन काफी फायदेमंद है। गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता।
-गुड़ एवं सरसों का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से श्वास एवं दमा में लाभ होता है।
-सर्दी या अन्य किसी कारण से गले में खराश हो तो आवाज बैठ जाने पर दो काली मिर्च, 50 ग्राम गुड़ के साथ खाने से यह शिकायत दूर हो जाती है।
-पतले दस्त लगने पर एवं तेज बुखार के कारण शरीर में पानी की कमी हो जाने पर गुड़ के पानी में नींबू का रस मिलाकर देने से तत्काल राहत मिलती है; क्योंकि गुड़ ग्लूकोज के समान कार्य करता है।
-भोजन के साथ गुड़ खाने से थकान दूर होती है।
-भोजन के बाद गुड़ खाने से गैस नहीं बनती है।
-सर्दी, जुकाम या कफ बहुत बनता हो तो अदरक व गुड़ बराबर मात्रा में दिन में तीन बार लेने से आराम मिलता है।
-अगर ज़ुकाम जम गया हो तो गुड़ पिघला कर उसकी पपड़ी बना कर खिलाएं। गुड़ और घी मिला कर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
-गुड़ का हलवा खाने से स्मरणशक्ति भी बढ़ती है।
-गुड़ शरीर का रक्त साफ करता है और मेटाबॉलिज्म ठीक करता है।
-गुड़ रक्त से टॉक्सिन दूर करता है जिससे त्वचा दमकती है और मुहांसे की समस्या नहीं होती है।
- प्रतिदिन गुड़ के एक टुकड़े के साथ अदरक के सेवन से सर्दियों में जोड़ों के दर्द से दूर रहा जा सकता है।
-जिन महिलाओं को पीरियड्स के दौरान अधिक दर्द होता है उनके लिए गुड़ का सेवन काफी फायदेमंद है। चूंकि यह पाचन ठीक रखता है इसलिए पीरियड्स के दर्द से आराम में यह फायदेमंद है।
-एक वर्ष पुराना गुड़ रूचिवर्धक, अग्निवर्धक, लघु एवं वात पित्त नाशक होता है। ज्वर का नाश करने वाला एवं हृदय को बल देने वाला होता है।
-नया गुड़ हल्का खारा, वीर्यवर्धक, बात कफ नाशक होता है मगर यह पित्त एवं रक्त के रोगियों के लिये हानिकारक होता है।
-गुड़ को गुनगुन पानी में घोलकर उसमें शुद्ध घी की दो बूंदें डालकर सेवन करने से पेट के कृमि बाहर निकल जाते हैं। पेट साफ हो जाता है।
-गुड़ को गुनगुने दूध में मिलाकर दिन में दो बार पीने से मूत्र खुलकर आता है।
-गुड़ में हरड़ के चूर्ण को मिलाकर अग्नि प्रदीप्त होती है, जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है, और भूख ठीक से लगती है।
-गुड़ में अजमायन मिलाकर शल्य पट्टी बाँध देने से पांव अथवा किसी अन्य अंग में लगा कांटा, कांच, कंकण आदि बाहर निकल जाते हैं।
-दो पके हुये केले लेकर इनके गूदे में गुड़, नमक या दही मिलाकर खाने से पेचिश दूर हो जाती है।
-गुड़ को तिल के क्वाथ में मिलाकर सेवन करने से बंद मासिक स्त्राव पुनः प्रारम्भ हो जाता है।
-आधे सिर का दर्द होने पर 10 ग्राम गुड़ 5 ग्राम देशी घी में मिलाकर सूर्योदय से पहले एवं बाद में सेवन करने से दर्द में आराम मिलता है।
-एक-एक दिन का गैप देकर आने वाले ज्वर में गुड़ और फिटकरी का चूर्ण मिलाकर छोटी गोलियां बनाकर खाने से पुराने से पुराना ज्वर भी ठीक हो जाता है। यह नुस्खा 95 प्रतिशत कामयाब है।
-बाजरे की खिचड़ी में गुड़ डालकर खाने से नेत्र-ज्योति बढ़ती है।
-बीस ग्राम गुड़ और एक चम्मच आँवले का चूर्ण नित्य लेने से वीर्य की दुर्बलता दूर होती है और वीर्य पुष्ट होता है।


--------------------------------------------

चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठे पन्थ असाढ़े बेल।

सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही।।

अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना।

ई बारह जो देय बचाय, वहि घर बैद कबौं न जाय।।

(यदि व्यक्ति चैत में गुड़, बैसाख में तेल, जेठ में यात्रा, आषाढ़ में बेल, सावन में साग, भादों में दही, क्वाँर (आश्विन या मार्गशीर्ष) में करेला, कार्तिक में मट्ठा अगहन में जीरा, पूस में धनिया, माघ में मिश्री और फागुन में चना, ये वस्तुएँ स्वास्थ्य के लिए कष्टकारक होती हैं। जिस घर में इनसे बचा जाता है, उस घर में वैद्य कभी नहीं आता क्योंकि लोग स्वस्थ बने रहते हैं।)
------------------------------------------

गुड़-चना बंदरों को खिलाने से मिट जाते हैं पुराने पाप

भाग्य का हमारे सुख और दुख का सीधा संबंध है। शास्त्रों के अनुसार हमारे कर्मों से ही भाग्य या नसीब बनता है। हमें जीवन में कितना सुख मिलेगा और कितना दुख ये पूर्व समय और पूर्व जन्म में किए गए कर्मों के आधार पर निर्भर है। किसी व्यक्ति को कुंडली के किसी ग्रह दोष के कारण अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है तो इसका मतलब यही है कि उसका भाग्य साथ नहीं दे रहा है। भाग्य संबंधी परेशानियों को दूर करने के लिए ज्योतिष शास्त्र में एक सटीक उपाय बताया है, जिससे शुभ फल प्राप्त होने लगते हैं। शास्त्रों के अनुसार पुराने समय से ही किसी भी प्रकार की समस्या या मनोकामना की पूर्ति के लिए हनुमानजी का पूजन श्रेष्ठ उपाय माना गया है। कलयुग में हनुमानजी बहुत ही जल्द प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं। इनकी नियमित आराधना से कुंडली के सभी ग्रह दोष भी शांत हो जाते हैं। साथ ही पुराने पाप कर्मों का अशुभ प्रभाव भी नष्ट हो जाता है और व्यक्ति को दुर्भाग्य से छुटकारा मिल जाता है। हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय है बंदरों को गुड़-चना खिलाना। हर शनिवार को यदि भक्त बंदरों को गुड़-चना खिलाता है तो उसके ज्योतिषीय दोष दूर हो जाते हैं। रुके हुए कार्य पूर्ण होने लगते हैं और भाग्य साथ देने लगता है। बंदरों को गुड़-चना खिलाने से हनुमानजी प्रसन्न होते हैं क्योंकि स्वयं बजरंग बली को वानर रूप में ही पूजा जाता है।






घर बनाने के लिए जरूरी होगी ऑप्टिकल फाइबर की सुविधा / दो लाख पंचायतों को बेहतरीन दूरसंचार नेटवर्क से जोड़ा जाएगा / OPTICAL FIBER IN INDIA 2016


-शीतांशु कंमार सहाय
साल 2016 में मार्च के अंत तक नेशनल ब्रॉडब्रैंड नेटवर्क प्लान के तहत देशभर में 20,000 गाँव को ऑप्टिक फाइबर से जोड़ा जाएगा। पिछले आठ वर्षों से नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनएफओएन) पर सिर्फ बात हो रही है, लेकिन अब इसमें प्रगति भी देखने को मिलेगी। मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना की तर्ज पर एनएफओएन योजना को भी आगे बढ़ाने का फैसला किया है।

संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद स्वयं इस योजना की निगरानी कर रहे हैं। इसके तहत दिसंबर, 2016 तक देश की सभी पंचायतों को बेहतरीन दूरसंचार सेवा से जोड़ने का लक्ष्य है। केरल इस नेटवर्क के जरिये अपने सभी पंचायतों को जोड़नेवाला पहला राज्य बनने जा रहा है। प्रसाद सोमवार 12 जनवरी 2016 को इसका उद्घाटन करेंगे। मार्च के अंत तक केरल को डिजिटल रूप से जोड़ना तय है और उसके बाद दक्षिण भारत के अन्य राज्यों कर्नाटक एवं सीमांध्र को जोड़ा जाएगा। संचार व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया, 'गुजरात और महाराष्ट्र जैसे पश्चिम भारत के राज्यों में इस पर काम तेजी से चल रहा है।' एनएफओएन को तेज करने के लिए संचार मंत्री कई नए कदम उठाने जा रहे हैं। प्रसाद राज्यों को ऐसी व्यवस्था करने को कहेंगे, जिसके तहत ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ने की सुविधा होने पर ही भवन निर्माण का नक्शा पास हो सकेगा। इससे घरों को ऑप्टिकल फाइबर केबल (ओएफसी) से जोड़ने में मदद मिलेगी।

संचार मंत्री राज्यों से अपने राजमार्गों के साथ ओएफसी लगाने का ढांचा तैयार करने का भी अनुरोध करेंगे। संचार मंत्री इस तरह का पत्र सड़क व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को पहले ही लिख चुके हैं। माना जा रहा है कि सड़क व राजमार्ग मंत्रालय इसकी व्यवस्था करने जा रहा है कि राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के किनारे ओएफसी लगाने की भी व्यवस्था होगी। इससे केबल बिछाने का काम तेजी से होगा। प्रसाद ने बताया कि पिछली सरकार की तमाम नीतियों की वजह से दूरसंचार क्षेत्र की सारी योजनाएं लंबित थीं। अब मोदी सरकार के विजन को देखकर दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों में भरोसा लौटने लगा है। यह राज्यों के स्तर पर भी दिखाई दे रहा है। इसका सबसे ज्यादा फायदा एनओएफएन योजना को मिलने जा रहा है। केरल के बाद आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी इस योजना की प्रगति संतोषजनक है। इसके अलावा महाराष्ट्र और गुजरात में भी तेजी से प्रगति होने लगी है। हालांकि उत्तरी राज्यों खास तौर पर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के पिछड़ने के आसार हैं। आंध्र प्रदेश ने तो पंचायतों को ही नहीं, बल्कि हर घर को ऑप्टिकल फाइबर केबल से जोड़ने की तैयारी कर ली है।
सरकार की योजना---
लगभग 32 हजार करोड़ रुपये की इस योजना के तहत देश के दो लाख पंचायतों को बेहतरीन दूरसंचार नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। पहले चरण में हर पंचायत में एक स्कूल और स्वास्थ्य केंद्र को इससे जोड़ा जाएगा जो वहां आधुनिक शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाएगा।

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

संस्कृत वर्णमाला की उत्पत्ति



-शीतांशु कुमार सहाय
ब्रह्मांड की ध्वनियों के रहस्य के बारे में वेदों से ही जानकारी मिलती है। इन ध्वनियों को अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के संगठन नासा और इसरो ने भी माना है। कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंत:स्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है। संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्णमाला आधारित हैं।

मुसलमान संस्कृत विद्वान पं. गुलाम दस्तगीर बिराजदार




'देश की सभी शास्त्रीय भाषाओं, विशेषकर संस्कृत का संरक्षण सरकार का काम है और सरकार को इसके लिए मजबूर कर देना हमारा' यह कहना है पंडित गुलाम दस्तगीर बिराजदार का। संस्कृत के प्रकांड विद्वान, एक प्राचीन मुस्लिम दरगाह के मुतवल्ली गुलाम साहब शान से खुद को 'संस्कृत का गुलाम' कहा करते हैं।
पंडित गुलाम दस्तगीर बिराजदार - नाम सुनकर आपको आश्चर्य होगा, पर असली आश्चर्य तो वर्ली स्थित उनके घर पर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। छोटे से कमरे में कुरान और मुस्लिम मजहबी किताबों के साथ रामायण, महाभारत, वेद, पुराण और उपनिषदों से भरे ताखे और आलमारियां, मुख से धाराप्रवाह झरते मंत्र व हिंदू धार्मिक आख्यान और उनका 'संस्कृतमय' बायोडाटा।
'बेटा और दोनों बेटियां शादी-विवाह करके बाहर नहीं गए होते तो आपको इस परिवार के बीच शुद्ध संस्कृत संभाषण भी सुनने को मिलता।' यह कहना है पत्रकार मोहम्मद वजीहुद्दीन का, जिन्होंने हमारी जानकारी में वृद्धि की और बताया कि गुलाम साहब ने तीनों बच्चों के विवाह की पत्रिका भी संस्कृत में ही छपवाई थी।
हिंदी, मराठी, कन्नड, उर्दू, अरबी और अंग्रेजी के विद्वान, 'विश्व भाषा' पत्रिका के संपादक, 'कुरान' व अमर चित्र कथा के संस्कृत रूपांतरकार - पं. गुलाम दस्तगीर बिराजदार नाम का उनके धर्म से कोई वास्ता नहीं। वे नाम से नहीं, काम से पंडित हैं। संस्कृत उनका प्रेम है, आदत है, जुनून है और शायद उनकी जिंदगी भी। वे जैसे माहिर हैं हदीस, कुरान और इस्लामी तहजीब के, संस्कृत पुराणों और कर्मकांड के भी वैसे ही उद्भट् विद्वान हैं।
पं. गुलाम दस्तगीर बिराजदार हिंदू कर्मकांडों का ज्ञान भी हिंदू धर्मशास्त्रों के ज्ञान से कम नहीं रखते। लिहाजा, उन्हें शादी-विवाह, जैसे शुभ संस्कार और अंत्यक्रिया कराने के आग्रह भी मिलते रहते हैं, पर यह उन्हें मंजूर नहीं। वजह? 'क्योंकि ये शुद्ध धार्मिक संस्कार हैं', अपने घर के पास सूफी संत सैयद अहमद बदवी की सैकड़ों साल पुरानी दरगाह के मुतवल्ली (प्रमुख) ने हमें समझाया।
80 वर्षीय पं. गुलाम दस्तगीर आज भी बचपन के वे दिन भूले नहीं हैं, जब सोलापुर के अपने गांव में खेतिहर मजदूर के रूप में दिन भर खेतों में खटने के बाद वे रात्रिशाला में पढ़ने जाते समय पास की संस्कृत शाला के बाहर बैठे घंटों संस्कृत के मंत्र व श्लोक सुनने में बिता देते। उनकी लगन देखकर शाला के ब्राह्मण शिक्षक ने आखिरकार उन्हें कक्षा में बैठने की अनुमति दी। फिर जो हुआ वह अब इतिहास है।
उनकी संस्कृत सेवाओं का ही पुण्यप्रताप था, जो वर्षों महाराष्ट्र राज्य संस्कृत संगठन का मानद राजदूत रखने के बाद महाराष्ट्र सरकार ने देवभाषा की देख-रेख करने वाली अपनी संस्कृत स्थायी समिति का सदस्य बनाया और काशी के विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान ने अपना महासचिव। आज भी काशी उनका दूसरे घर जैसा है। काशी नरेश जब भी मुंबई में होते हैं, उनके घर जरूर आया करते हैं।
पंडितजी खुद को संस्कृत के मामूली प्रचारक से ज्यादा नहीं मानते और मराठा मंदिर स्कूल के संस्कृत विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद देश भर घूम-घूमकर सभा-सेमिनारों को संबोधित कर संस्कृत और सर्वधर्म समभाव का प्रचार किया करते हैं। उनकी संस्कृत विरासत अभी कायम है। उनके नवासे दानिश ने देवभाषा में संभाषण की कला सीखी है और बेटी गयासुन्निसा ने संस्कृत में 'शास्त्री' कर इस्लाम और हिंदू धर्मों में तुलनात्मक शोधकार्य किया।
संस्कृत को लेकर मौजूदा विवाद से खिन्न पंडितजी कहते है, 'संस्कृत बहुत ही सरल और ज्ञान की भाषा है। संस्कृत को सीखने के लिए जरूरत है सिर्फ इच्छा एवं उत्कंठा की। सरकार को उसे प्रश्रय देना चाहिए। नहीं तो यह हमारा काम है कि हम उसे उसके लिए मजबूर कर दें।'
पंडित गुलाम दस्तगीर बिराजदार कहते हैं, 'वेदों और कुरान का एक ही जैसा संदेश है - मानवता का कल्याण। केवल उसे हासिल करने के तरीके अलग-अलग हैं।' (संदर्भ : नवभारत टाइम्स/विमल मिश्र)

बुधवार, 7 जनवरी 2015

केपलर अंतरिक्ष दूरबीन ने रहने लायक आठ ग्रहों को खोजा


-शीतांशु कुमार सहाय
अंतरिक्ष में जीवन की संभावना खोजने में लगे खगोलविदों ने आठ ऐसे ग्रहों का पता लगाया है जो धरती के आकार-प्रकार का है और जिन्हें रहने लायक माना जा रहा है। इनमें से दो ग्रहों की पृथ्वी से बहुत अधिक समानता पाई गई है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि ये आठों ग्रह अपने तारों की उतनी ही दूरी से परिक्रमा कर रहे हैं, जिससे इनकी सतहों पर पानी की संभावना हो सकती है। खगोल वैज्ञानिक इन ग्रहों पर धरती जैसे चट्टान पाए जाने की भी संभावना जता रहे हैं। हार्वर्ड-स्मिथसोनियन खगोल भौतिकी केंद्र में शोधपत्र के प्रमुख लेखक गिलेरमो टॉरेस ने कहा कि जिन दो ग्रहों की धरती से अत्यधिक समानता पाई गई है, उनके नाम केपलर-438बी और केपलर-442बी हैं। ये दोनों ग्रह लाल बौने तारों की परिक्रमा कर रहे हैं, जो हमारे सूर्य से छोटे और अपेक्षाकृत ठंडे हैं। इन ग्रहों का पता नासा की केपलर अंतरिक्ष दूरबीन ने लगाया है। इसके साथ ही केपलर द्वारा खोजे गए ग्रहों की संख्या एक हजार से अधिक हो गई है। उल्लेखनीय है कि केपलर दूरबीन हमारे सौरमंडल से बाहर डेढ़ लाख से अधिक तारों की लगातार निगरानी करती रहती है। शोधपत्र के दूसरे लेखक डेविड किपिंग ने कहा कि हम पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं कि ये ग्रह सच में रहने लायक हैं या नहीं। फिलहाल हम सिर्फ इतना कह सकते हैं ये भविष्य के लिए हमारी आशाओं के केंद्र हैं।
-किसी ग्रह को कब माना जाता है रहने के लायक?
किसी ग्रह को रहने लायक तभी माना जाता है, जब वह अपने तारे से लगभग उतना ही प्रकाश लेता है, जितनी कि हमारी धरती सूर्य से लेती है। इससे ज्यादा प्रकाश आने से पानी भाप बनकर उड़ जाएगा और कम प्रकाश मिलने पर पानी जमकर बर्फ बन जाएगा। उदाहरण के लिए शुक्र ग्रह पर धरती की तुलना में दोगुना प्रकाश आता है और वहां सतह पर पानी की संभावना नहीं है।
केपलर-438बी-
-आकार में धरती से 12 प्रतिशत बड़ा है।
-35.2 दिनों में अपने तारे की परिक्रमा करता है।
-ग्रह पर चट्टान पाए जाने की 70 प्रतिशत संभावना।
-धरती की तुलना में 40 प्रतिशत अधिक प्रकाश ग्रहण करता है।
-यहां पर जीवन की संभावना 70 प्रतिशत मानी जा रही है।
-धरती से 475 प्रकाश वर्ष दूर।

केपलर-442बी
-आकार में धरती से 33 प्रतिशत बड़ा है।
-112 दिनों में अपने तारे की परिक्रमा करता है।
-चट्टान पाए जाने की 60 प्रतिशत संभावना।
-धरती की तुलना में दो तिहाई अधिक प्रकाश ग्रहण करता है।
-यहां पर जीवन की संभावना 97 प्रतिशत मानी जा रही है।
-धरती से 1,100 प्रकाश वर्ष दूर।

सोमवार, 5 जनवरी 2015

लकी रहा भाजपा के लिए 2014 / LUCKY YEAR 2014 FOR BJP




-केन्द्र से झारखंड तक रहा शानदार प्रदर्शन
-नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर पेश करना अत्यन्त लाभदायक रहा
-काँग्रेस को भाजपा ने विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं छोड़ा
-शीतांशु कुमार सहाय।
केन्द्र में बहुमत की सरकार हो या झारखंड में रघुवर राज की स्थापना। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए बीता वर्ष 2014 उपलब्धियों से भरा रहा। सन् 2014 ईश्वी में केन्द्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। साथ ही महाराष्ट्र, हरियाणा व झारखंड में भी भाजपा की मजबूत सरकार सŸाा में आयी। साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी पहली बार भाजपा ने 25 सीटें हासिल की। राज्यों से लेकर केन्द्र तक भाजपा ने हर तरफ परचम लहराया। केन्द्र में भाजपा की जीत के बाद से उसके रथ का पहिया लगातार सकारात्मक स्थिति में घूमता रहा। दूसरे शब्दों में कहें तो 2014 भाजपा के लिए लकी रहा।
-केन्द्रीय सत्ता में पूर्ण बहुमत
30 साल बाद देश में पहली बार किसी एक पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार केन्द्र में बनी। भाजपा ने 2013 में एक रणनीति के तहत नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर पेश किया। इसके बाद शुरू हुआ बैठक, सभा और रैली का दौर। यह सिलसिला तबतक चला जबतक जीत का स्वाद भाजपा ने नहीं चखा।
-मोदी की लहर
लोगों ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पलकों पर बैठाया। इसके बाद नरेन्द्र मोदी भाजपा के पर्याय बन गये और मोदी-लहर ने देश में तूफान पैदा कर दिया। काँग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने भी मोदी के सामने घुटने टेक दिये। यहाँ तक कि काँग्रेस को भाजपा ने लोकसभा में विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं छोड़ा। हर ओर मोदी का डंका बजने लगा।
-मिशन 272 प्लस में 10 प्लस
लोकसभा निर्वाचन में भाजपा ने अपने मिशन के तहत 272 प्लस सीटों का लक्ष्य रखा था। पर, उत्साहित मतदाताओं ने भाजपा को जी खोलकर मत दिये। नतीजा यह हुआ कि मिशन 272 प्लस में 10 प्लस हुआ और भाजपा ने 282 सीटों पर जीत दर्ज की। पहली बार केन्द्र में किसी एक पार्टी ने विशाल बहुमत के साथ सरकार बनायी। इसमें झारखंड की भूमिका भी काफी महत्त्वपूर्ण रही। राज्य की 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा रहा।
-विधानसभा निर्वाचन में भी परचम लहराया
भाजपा का विजय रथ लोकसभा निर्वाचन के बाद भी नहीं रूका। झारखंड  विधानसभा निर्वाचन में भी भाजपा ने दमदार उपस्थिति दर्ज की। पिछले विधानसभा निर्वाचन की तुलना में इस बार भाजपा ने दुगुनी से ज्यादा सीटों पर विजय प्राप्त की। 2009 में जहाँ झारखंड में भाजपा के 18 विधायक ही सदन में पहुँच पाये थे, वहीं इस बार उनकी संख्या 37 है। इस बार सभी 81 सीटों पर आजसू व लोजपा के साथ भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा और राज्य में राजग गठबंधन की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। झारखंड में यह भी अनोखी घटना रही। जब से राज्य अस्तित्व में आया, तब से यहाँ खिचड़ी सरकार बनती रही है। इसका नतीजा कभी किसी सरकार ने पाँच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया लेकिन इस बार भाजपा मजबूती के साथ सरकार में आयी है और पहली बार गैर-आदिवासी रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाया गया है।
-राँची के महापौर व उपमहापौर पद पर कब्जा 
झारखंड में लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुए राँची नगर निगम के महापौर के निर्वाचन में भी भाजपा की जीत का सिलसिला जारी रहा और महापौर प्रत्याशी आशा लकड़ा ने भारी मतों से विजय हासिल की। इसके पूर्व नगर निगम के उपमहापौर के चुनाव में भी भाजपा प्रत्याशी संजीव विजयवर्गीय ने फतह हासिल की थी।

रविवार, 4 जनवरी 2015

देश में 2500 स्थापित होंगे नये कौशल विकास केन्द्र : राजीप प्रताप रुडी / 2500 New Skills Development Centres will be established in the country : Rajip Pratap Rudy


-शीतांशु कुमार सहाय

-सार्वजनिक-निजी भागीदारी से देशभर में स्थापित होंगे आईटीआई और पॉलिटेक्निक केन्द्रों की नयी शृँखला

-12 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य

नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम में राजीप प्रताप रुडी व अन्य

 

अगले कुछ वर्षों में भारत विकास के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करनेवाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता का ही पर्याय है कि केन्द्रीय सरकार के अन्तर्गत कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) को लेकर एक नया विभाग बनाया गया है जिसके अन्तर्मन्त्रालीय व अन्तर्विभागीय सम्बद्धता के आधार पर देशभर के युवाओं को विभिन्न हुनरों या तकनीकों में प्रशिक्षित किया जायेगा। भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अन्तर्गत औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग द्वारा नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित ‘मेक इन इण्डिया’ कार्यक्रम में उक्त बात की जानकारी देते हुए केन्द्रीय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) कौशल विकास एवं उद्यमिता-सह-संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव प्रताप रुडी ने कहा कि युवाओं को विभिन्न चरणों में प्रशिक्षित किया जायेगा; ताकि विश्व में सर्वाधिक हुनरमन्द भारत में हों।

-संगठित होगा श्रम बाजार
श्री रुडी ने कहा कि विश्वश्रम बाजार में भारत सबसे बड़ा असंगठित श्रम बाजार है जिसकी उत्पादकता अत्यन्त कम है। केन्द्र सरकार की उद्यमिता उत्थान की नीति से श्रम बाजार संगठित होगा और श्रमिकों के
हुनरमन्द होने से उनकी उत्पादकता भी बढ़ेगी। इसके लिए देशभर में औद्योगिक प्रशिक्षण केन्द्रों (आईटीआई) और पॉलिटेक्निक प्रशिक्षण संस्थानों की नयी शृँखला स्थापित की जायेगी। वर्तमान में लगभग 12 हजार आईटीआई केन्द्रों से आठ लाख और चार हजार पॉलिटेक्निक संस्थानों से दस लाख युवाओं को प्रशिक्षण मिल रहा है जो देश में हुनरमन्दों की आवश्यकता से बहुत कम है।
-भारत बनेगा ‘स्किल कैपिटल’
केन्द्रीय मंत्री श्री रुडी ने कहा कि प्रधानमंत्री का यह सपना है कि अगले कुछ वर्षों में भारत को दुनिया का ‘स्किल कैपिटल’ बनाया जाय, जिसे हम साकार करेंगे। युवाओं के छः महीने के प्रशिक्षण पर प्रति प्रशिक्षणार्थी औसतन 10 हजार रुपये खर्च किये जायेंगे। फिलहाल 12 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने का
लक्ष्य है जिसके तहत प्रति प्रशिक्षणार्थी 10 से 18 हजार रूपये खर्च का अनुमान है। सरकारी आकलन के अनुसार देश में स्किल डेवलपमेंट पर 24 हजार करोड़ रुपये खर्च होंगे। इस राशि का 30 प्रतिशत बाजार या निजी भागीदारी से उपलब्ध होगा। स्किल डेवलपमेंट के लक्ष्य को पूरा करने के लिए केन्द्रीय सरकार पूरी तरह संकल्पित है।
-कई देशों से सहयोग
श्री रुडी ने बताया कि देश को हुनरमन्द बनाने के लिए स्वीडन, आस्टेªलिया, यूरोपियन संघ, फ्रांस, कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, विश्व बैंक आदि से तकनीकी व व्यावसायिक प्रमाणन सहयोग लिया जा रहा है।

-स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इंडिया व राष्ट्रीय सौर मिशन
केन्द्रीय उद्यमिता विकास मंत्री के अनुसार, देश में उद्यमिता अभिवृद्धि के लिए ‘मेक इन इंडिया’ के अन्तर्गत 25 क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है तथा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत 2500 मल्टी स्किलिंग संस्थान स्थापित होंगे। इसके लिए 100 कम्पनियों को शामिल किया जायेगा। स्वच्छ भारत अभियान, डिजिटल इंडिया व राष्ट्रीय सौर मिशन को इसमें शामिल किया गया है। इस सन्दर्भ में सरकार ‘डिजाइन वन्स, यूज मल्टीपल्स’ योजना पर कार्य कर रही है; ताकि उत्पादन व नये डिजाइन के आधार पर बाजार की माँग को पूरा किया जा सके। उपर्यक्त जानकारी श्री रुडी के कार्यालय प्रभारी धनंजय तिवारी ने दी।

शनिवार, 3 जनवरी 2015

भगवान हनुमान की पत्नी हैं सुवर्चला मगर फिर भी हैं अखण्ड ब्रह्मचर्य / Suvarchalaa wife of Lord Hanuman

-शीतांशु कुमार सहाय
     भगवान विष्णु ने त्रेता युग में भगवान राम का अवतार धारण किया था। उनकी सेवा के लिए भगवान शिव ने अपने रुद्रावतार भगवान हनुमान को प्रकट किया। द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लेकर उन्हें कलियुग में धरती पर सशरीर रहने का आदेश दिया। तब से वे कलियुग देव के रूप में ज्यादा पूजे जाने लगे और सशरीर हिमालय क्षेत्र में तपस्यारत हैं। वे आजीवन ब्रह्मचर्य हैं। हालाँकि उन्होंने सूर्य से कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूर्य की ही महान् तपस्विनी पुत्री सुवर्चला से विवाह किया मगर फिर भी वे अखण्ड ब्रह्मचर्य हैं। बजरंगबली के विवाह का उल्लेख पराशर संहिता में भी किया गया है। भारत में मारुतिनंदन हनुमानजी का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ वह अपनी पत्नी सुर्वचला के साथ विराजे हैं। दरअसल यह मंदिर हैदराबाद से करीब 220 किलोमीटर दूर तेलंगाना के खम्मम जिले में स्थित है। पाराशर संहिता में हनुमानजी के विवाह की कथा का उल्लेख है। भारत के कुछ हिस्सों विशेषरूप से तेलंगाना में हनुमान जी को विवाहित माना जाता है। सुवर्चला सूर्यदेव की पुत्री हैं जिनका विवाह पवनपुत्र हनुमानजी के साथ हुआ था। वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों से मुक्ति दिलाते हैं विवाहित हनुमान जी। मान्यता है कि जो भी मारुतिनंदन और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है।  
     पाराशर संहिता के अनुसार, हनुमानजी विवाहित हैं। हनुमानजी ने सूर्यदेव को अपना गुरु बनाया था। सूर्यदेव के पास नौ दिव्य विद्याएँ थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान हनुमानजी प्राप्त करना चाहते थे। सूर्यदेव ने इन नौ में से पाँच विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया लेकिन शेष चार विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया। शेष चार दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों। हनुमानजी अखण्ड ब्रह्मचर्य थे। इस कारण सूर्यदेव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। समस्या के निराकरण के लिए सूर्यदेव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए लेकिन उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। तब हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी। जब हनुमानजी विवाह के लिए मान गए तब उनके योग्य कन्या के रूप में सूर्यदेव की पुत्री सुवर्चला को चुना गया। सूर्यदेव ने हनुमानजी से कहा-- सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है और इसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो। सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष चार दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। सूर्यदेव ने यह भी बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव अखण्ड ब्रह्मचर्य ही रहोगे; क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी। इस तरह हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह सूर्यदेव ने करवा दिया। 

     विवाह के बाद सुवर्चला तपस्या में लीन हो गईं और हनुमानजी से अपने गुरु सूर्यदेव से शेष चार विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया। इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ब्रह्मचारी बने हुए हैं और सशरीर हिमालय क्षेत्र में तपस्यारत हैं। 

पराशर ऋषि

     महर्षि वसिष्ठ के पौत्र, गोत्रप्रवर्तक, वैदिक सूक्तों के द्रष्टा और ग्रंथकार पराशर ऋषि थे। राक्षस द्वारा मारे गए वसिष्ठ के पुत्र-शक्ति से इनका जन्म हुआ। बड़े होने पर माता अदृश्यंती से पिता की मृत्यु की बात ज्ञात होने पर राक्षसों के नाश के निमित्त इन्होंने राक्षस सत्र नामक यज्ञ शुरू किया जिसमें अनेक निरपराध राक्षस मारे जाने लगे। यह देखकर पुलस्त्य आदि ऋषियों ने उपदेश देकर इनकी राक्षसों के विनाश से निवृत्त किया और पुराण प्रवक्ता होने का वर दिया। तीर्थयात्रा में यमुना के तट पर मल्लाह की सुंदर कन्या परंतु मत्स्यगंध से युक्त सत्यवती को देखकर उससे प्रेम करने लगे। संपर्क से तुम्हारा कन्याभाव नष्ट न होगा और तुम्हारे शरीर की दुर्गंध दूर होकर एक योजन तक सुंगध फैलेगी, यह वर पराशर ने सत्यवती को दिए। समीपस्थ ऋषि न देखें, अत: कोहरे का आवरण उत्पन्न किया। बाद में सत्यवती से इन को प्रसिद्ध व्यास पुत्र हुआ। ऋग्वेद के अनेक सूक्त इन के नाम पर हैं (1, 65-73-9, 97)। इन से प्रवृत्त पराशर गोत्र में गौर, नील, कृष्ण, श्वेत, श्याम और धूम्र छह भेद हैं। गौर पराशर आदि के भी अनेक उपभेद मिलते हैं। उन के पराशर, वसिष्ठ और शक्ति तीन प्रवर हैं (मत्स्य., 201)। भीष्माचार्य ने धर्मराज को पराशरोक्त गीता का उपदेश किया है (महाभारत, शांतिपर्व, 291-297)। 

    इन के नाम से संबद्ध अनेक ग्रंथ ज्ञात होते हैं--- 1. बृहत्पराशर होरा शास्त्र, 2. लघुपाराशरी (ज्यौतिष), 3. बृहत्पाराशरीय धर्मसंहिता, 4. पराशरीय धर्मसंहिता (स्मृति), 5. पराशर संहिता (वैद्यक), 6. पराशरीय पुराणम्‌ (माधवाचार्य ने उल्लेख किया है), 7. पराशरौदितं नीतिशास्त्रम्‌ (चाणक्य ने उल्लेख किया है), 8. पराशरोदितं, वास्तुशास्त्रम्‌ (विश्वकर्मा ने उल्लेख किया है)।
     श्री पराशर संहिता के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ --
श्रीजानकीपतिं रामं भ्रातृभिर्लक्ष्यणादिभः।
सहिंत परम वन्दे रत्नसिंहासने स्थितम्। १ 
१. श्रीलक्ष्मणादि भाइयों के साथ रत्न सिंहासन पर विराजित श्रीजानकीपति राम को प्रणाम करता हूँ।

एकदा सुखमासीनं पराशरमहामुनिम
  मैत्रेयः परिपप्रच्छ तपोनिधिमकल्मषम्। २
२. एक बार सुखासन में विराजमान निष्पाप तपोमूर्ति पराशर महामुनि से मैत्रेय ने पूछा।

भगवन्योगिनां श्रेष्ठ! पराशर महामते। 
किंचिद्विज्ञातुकामोडस्मि तन्ममानुग्रंह कुरु। ३ 
३. हे भगवन् योगियों में श्रेष्ठ महामति पराशर! मैं कुछ जानना चाहता हूँ, अतः आप मुझ पर कृपा करें।

प्राप्तं कलियुंग घोरं मोहमायासमाकुलम् 
अधर्मानृतसंयुक्तं दारिद्र्यव्याधिपीड़ितम्। ४ 
४. मोहमाया से आच्छन्न अधर्म, असत्य से युक्त दारिद्र्य व्याधि से पीड़ित घोर कलियुग आ चुका है।

तस्मिन् कलियुगे घोरे किं सेव्यं शिवमिच्छताम्। 
पूर्वकर्मविपाकेन ये नराः दुःखभागिनः। ५ 
५. उस घोर कलियुग में पूर्वजन्म के कर्मवश जो मनुष्य दुःखी हैं, वह अपने कल्याण करने हेतु क्या उपाय करें।

तेषां दुःखाभिभूतानां किं कर्तव्यं कृपालुभिः
दस्युप्रायास्सदा भूपास्साधवो विपदान्विताः। ६ 
६. उन दुःख संतप्तों के लिए दयालुओं को क्या करना चाहिये। राजा जन दस्युकर्म में प्रवृत्त हुए हैं और साधुजन विपत्तियों से घिरे हैं।

पीड़िताः कलिदारिद्रयाद्व्याधिभिश्चापरे जनाः
किं पथ्यं किं प्रजत्तव्यं सद्यों विजयकारकम्। ७ 
७. कलियुग के दारिद्र्य एवं व्याधियों से लोग पीड़ित हैं। इन से छुटकारा पाने का क्या उपाय है। किस का जप करें जिन से दुःखों पर विजय प्राप्त हो।

संसारतारकं किं वा भोगस्वर्गापवर्गदम्
कस्मादुत्तीर्यते पारः सद्य आपत्समुद्रतः। ८ 
८. संसार से तारनेवाला कौन है? कौन लौकिक भोग, स्वर्ग एवं मोक्ष देनेवाला है? किस उपास से तुरन्त दुःख सागर को पार कर सकते हैं?

किमत्र बहुनोक्तेन सद्यस्सकलसिद्धदम्
शिष्यं मां कृपया वीक्ष्य वद सारं कृपानिधे! ९ 
९. हे कृपानिधि! कौन-सा लघु उपाय है जिस से सभी सिद्धियाँ तुरन्त प्राप्त हो जाय? कृपया मुझे शिष्य समझकर बताएँ।

एतत्पृष्टं त्वंया विद्धि लोकानामुपकारकम् 
घोरं कलियुग सर्वमधर्मानृतसंकुलम्। १० 
१०. संसार के उपकार के लिए आप ने यह पूछा है। यह घोर कलियुग अधर्म और असत्य से संपृक्त हो गया है।

वेदशास्त्रपुराणौधसारभूतार्थसंग्रहम् 
सर्वसिद्धिकरं वक्ष्ये श्रृणु त्वं सुमना भव। ११ 
११. समस्त वेद एवं शास्त्र-पुराण का सारतत्त्व मैं आप को कहता हूँ। आप मनोयोग से सुनें।

तीर्थयात्राप्रसंगेन सरयूतीरमागतम्
मां तीक्ष्य कृपया साक्षाद्वसिष्ठोऽस्मत्पितामहः। १२
उपादिदेश विद्यां में सद्यस्सिद्धिविधायिनीम्। १३.
१२,१३. तीर्थयात्रा प्रसंग से सरयू से सरयू तट पर आए हुए हमारे पितामह वशिष्ठ ने मुझे देखकर कृपापूर्वक सद्यः सिद्धि प्रदान करनेवाली विद्या का उपदेश मुझे दिया।

शैववैष्णवशाक्तार्कगाणपत्येन्दुसंभवाः 
न शीध्रं सिद्धिदाः प्रोक्ताश्चिरकालफलप्रदाः। १४
१४. शैव, वैष्णव, शाक्त, सूर्य, गाणपत्य एवं चन्दविद्या शीघ्र फल प्रदान करनेवाली नहीं कहीं गयी हैं। इन का फल बहुत दिनों बाद प्राप्त होता है।

लक्ष्मीनारायणी विद्या भवानीशंकरात्मिका 
सीताराममहाविद्या पंचवक्त्रहनूमतः। १५
१५. लक्ष्मी-नारायणी विद्या, भवानी-शंकरात्मिका विद्या, सीताराम महाविद्या, पञ्चमुखी हनुमदविद्या चतुर्थी विद्या कही गयी है।

विद्या चतुर्था संप्रोक्ता नसिंहानष्टुभाभिदा 
ब्रह्मास्वविद्या षष्ठीस्यादष्टार्णामारुतेः परा। १६
१६. नृसिंह–अनुष्टुभविद्या, षष्ठी ब्रह्मास्त्र विद्या, अष्टार्णा मारुति विद्या परा विद्या है।

साम्राज्यलक्ष्मीस्त्वपरा दक्षिणाकालिका परा 
चिंतामणिमहाविद्या द्वादशी परिकीर्तिता। १७
१७. अपरा विद्या साम्राज्यलक्ष्मी विद्या एवं महागणपति विद्या हैं। महागौरीनाम्नी विद्या, कालिकाविद्या द्वादर्शी विद्या कही गयी है।

एता द्वादश विद्या स्युः मन्त्रसाम्राज्यईरिताः 
एतास्वपि महाविद्याश्शीघ्रसिद्धिप्रदाः श्रृणु। १८
१८. ये द्वादशविद्या मन्त्र साम्राज्य कहे गये हैं। इन में महाविद्या शीघ्र सिद्धि प्रदान करनेवाली है।

दक्षिणाकालिका विद्या पुरश्चरणतःपरम् 
अनाचारेणौकरात्रों सिद्धिदा चिरसाधनात्।। १९
१९. दक्षिणा कालिका विद्या पुरश्चरण के पश्चात् अनाचार से एक रात्रि में चिरसाधना से सिद्धि देनेवाली है।

अष्टाख्या मारुतेः प्रोक्ता ततोऽष्यचिरसिद्धिदा 
पंचाशदक्षराण्यत्रानुलोमप्रतिलोमतः।। २०
२०. पचास अक्षरों के अनुलोम प्रतिलोम से अष्टमी मारुतिविद्या शीघ्र सिद्धि देनेवाली है।

विशिष्य मालया जप्या गुरु संतोष्य यत्नतः
 गृहीत्वा गुरुसान्निध्यादबगला परमेश्वरी। २१ 
२१. विशेषमाला द्वारा गुरु को यत्न से संतुष्ट करके बगला परमेश्वरी विद्या गुरु की सन्निधि से ग्रहण करके

प्रजप्य सिद्धिदा प्रोक्ता विद्या ब्रह्मास्त्रसंज्ञिका
अनुष्टुबाख्यां नृहरेस्ततोऽप्यचिरसिद्धिदा। २२
२२. ब्रहास्वविद्या की सिद्धि जप से प्राप्त होती है। नृसिंह अनुष्टुभ विद्या शीघ्र सिद्धि देने वाली है।

ततोऽपि पंचवक्त्रस्य मारुतेर्जगदीशितुः 
विद्या सिद्धिकरी शीघ्रं गुर्वनुग्रहतो मुने! २३
२३. हे मुनि! गुरुकृपा से पञ्चमुखी हनुमद् विद्या सभी विद्याओं से शीघ्र सिद्धि देने वाली है।

चुलुकोदकवत्पीतास्सागरास्सप्तयोगिना
अगस्त्येन पुरा जप्ल्वा विद्यामेनां हनूमतः। २४
२४. प्राचीन काल में इसी हनुमद् विद्या का जप करके महायोगी अगस्त्य ने अँजलिजल के समान सातों समुद्र को पी लिया था।

पार्थस्य जयसामर्थ्य–भीमस्यारिनिबर्हणम् 
अस्या एव प्रभावेन सत्यं संत्य वदाम्यहम्। २५ 
२५. यह सत्य कहता हूँ–अर्जुन का विजय सामर्थ्य, भीम का शत्रु मर्दन इसी विद्या का प्रभाव है।

श्रीरामानुग्रहादेनां विद्यां प्राप्त विभीषणः
अचलां श्रियमासाद्य लंकाराज्ये वसत्यसौ। २६
२६.  श्रीराम की कृपा से इस विद्या को प्राप्त करके विभीषण ने अचल श्री को प्राप्त कर लंका राज्य में वास करते हैं।

अनया सदृशी विद्या नास्ति नास्तीति में मतिः 
प्रवृत्त्यर्थ न प्रशंसा क्रियते सत्यमेव हि। २७ 
२७. इस विद्या के सदृश अन्य कोई विद्या मेरे मत में नहीं है। इस की यह प्रशंसा नहीं अपितु सत्य ही है।

विजयों बहु सम्मानं राजवश्यमनुत्तमम् 
स्त्रीवश्यं जनवश्यं च महालक्ष्मीरचंचला। २८ 
२८. इस विद्या से विजय, अत्यधिक सम्मान राजा की अनुकूलता, स्त्री आनुकूल्य जनानुकूल्य तथा स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

धर्मार्थकाममोक्षाश्च निवृत्तिः सकलापदाम् 
शत्रूणामपि सर्वेषां निग्रहानुग्रहास्सताम्। २९
२९. यह विद्या धर्म-अर्थ काम-मोक्ष प्रदान करने वाली सभी संकटों को दूर करने वाली एवं शत्रु तथा मित्रों में समान भाव पैदा करने वाली है।

वाक्सिद्धिः पुत्रसंपत्तिर्भोगा अष्टविधा अपि
यद्यदिष्टतंम लोके तत्सिध्यति न संशयः। ३०
३०. वाक्सिद्धि पुत्रसंपत्ति आठों प्रकार का भोग एवं संसार के सभी इच्छित वस्तुओं को प्रदान करने वाली है। इसमें संशय नहीं है।

गुरुसंतोषतस्सिद्धिः शीघ्रमेव भविष्यति 
एकाक्षरप्रदातारं यों गुरुं नाभिमन्यते। ३१ 
स श्वयोनिशंत गत्वा चंडालत्वमवाप्नुयात्
गुरुं हुंकृत्य तुं कृत्य उल्लंघ्याज्ञां गुरोरपि। ३२
३१, ३२. गुरु को संतुष्ट करने से यह विद्या शीघ्र सिद्धि देने वाली होती है। एक अक्षर प्रदान करने वाले को भी जो गुरु नहीं मानता है। निरादर वचन से गुरु की आज्ञा का उल्लंघन करता है, वह कुत्ते की सौ यौनि में जाकर चाण्डालत्व को प्राप्त करता है।

अरण्ये निर्जले देशे भवति ब्रह्मराक्षसः
दरिद्रो गुरुशुश्रूषां वत्सरत्रयमाचरन्
विद्यां लब्घ्वा महासिद्धिमवान्नोति न संशयः। ३३ 
३३. जलरहति अरण्य में वह ब्रह्मराक्षस बनता है। जो दरिद्र तीन वर्ष तक गुरु की सेवा करता है, वह इस विद्या को प्राप्त कर निःसंदेह सिद्धि को प्राप्त करता है।

यत्किचिद्धनवांश्चापि वस्त्रालंकरणादिभिः कलत्रं प्रीणयित्वा
 तं संतोष्य श्रीगुरुं विभुम् गुरुत्वासिद्धिमाप्नोति नान्यथा व्रतकोटिभः। ३४ 
३४. यथाशक्ति धनधान्य वस्त्रालंकरणादि से परिवार को प्रसन्न करके गुरु को संतुष्ट करता है। वह उसके सिद्धि को प्राप्त करता है, जिसकी सिद्धि करोड़ों व्रत से नहीं होती है।

गुरुवाक्येन मन्त्राणां पुरश्चर्यादिनापि च
संतोषः जायते तस्मादित्याह भगवान्शिवः। ३५ 
३५. भगवान् शंकर ने कहा है–गुरु के वचन से मन्त्र-पुरश्चरणादि से सन्तोष प्राप्त होता है।

मन्त्रोंपदेशसमये प्रांदजलिश्शिष्यकों मुने! 
स्वामिन्! गुरो! महाप्राज्ञ! यावज्जीवं महाविभो। ३६ 
३६. हे मुनि! मन्त्रोपदेश के समय शिष्य अंजलिबद्ध होकर गुरु को स्वामी! गुरु महाप्राज्ञ महाविभु! जब तक मैं जीवित रहूँ–

भवच्चरणकैंकर्य करोम्याज्ञां कुरु में
इति स्वभाषयोच्यार्य प्रदान गुरुदक्षिणाण्। ३७ 
३७. आप के चरणों की सेवा करुँ ऐसी आज्ञा प्रदान करें। ऐसे वचन का उच्चारण करके गुरुदक्षिणा प्रदान करें।

विद्यासिद्धिमवाप्नोति नान्यथा व्रतकोटिभिः
मन्त्रोपदेशकाले तु–गुरुरिष्टप्रदं मनुम्। ३८ 
३८. मन्त्रों के उपदेश काल में गुरु को अभीष्ट प्रदान करने वाला मानता है, वह विद्या सिद्धि को प्राप्त करता है, जो अन्य कोटि व्रतादि से प्राप्य नहीं है।

अष्टोत्तरशंत चैवाप्यष्टाविंशतिमेव वा
जप्त्वा शिष्यस्य शिरिस हस्तं निक्षिप्य दक्षिणम्। ३९ 
३९. १०८ या २८ बार जप करके शिष्य के सिर पर दाहिना हाथ रखकर–

दक्षिणे कर्णमूले तू मूलमंत्रं वदेन्मुने!
वीर्यशिध्द्धयै च मन्त्रस्य जपं कुर्याच्च देशिकः। ४०
४०. हे मुनि! दाहिने कान से मूलमन्त्र का उच्चारण करें। मन्त्र में पराक्रम का आधान करने हेतु गुरु मन्त्र का जप करें।