रविवार, 1 दिसंबर 2013

झारखंड : हाथियों को भगाने में माहिर है 14 साल की लेडी टार्जन निर्मला




-शीतांशु कुमार सहाय
झारखंड की 14 वर्षीया आदिवासी लड़की निर्मला टोप्पो हाथियों के झुण्ड को भगाने में माहिर है। उसकी इसी कला से प्रभावित होकर ओड़िशा वन विभाग ने निर्मला को जून 2013 में राउरकेला स्टेडियम में उधम मचा रहे हाथियों के झुण्ड को भगाने के लिए बुलाया था। हाथियों के झुण्ड को भगाने के एवज में उस किशोरी को मेहनताना भी दिया गया। निर्मला झारखण्ड के सिमडेगा जिले के आदिवासी इलाके की रहने वाली हैं। वह राउरकेला अकेली नहीं; बल्कि गाँव के 10 नौजवान भी उसके साथ गये थे।
यों बनी लेडी टार्जन
निर्मला की माँ को हाथियों ने तब मार दिया था, जब वह जंगल में लकड़ी चुनने गई थी। इस घटना का निर्मला पर गहरा असर हुआ। जब वह महज 10 साल की हुई, तब उसने अपने पिता मरिनस टोप्पो से हाथियों के झुण्ड से निपटने की कला सीखनी शुरू की।
यों भगाती है हाथी
वह हाथियों को कैसे भगाती है? उसने बताया कि पहले वह प्रार्थना करती है फिर हाथियों को अपनी भाषा यानी मुण्डारी में कहती है कि वे चले जाएँ। इसके बाद हाथी चले जाते हैं।
काफी लोकप्रिय है निर्मला
सिमडेगा के सामाजिक कार्यकर्ता नील जस्टिन बेक कहते हैं- निर्मला उन जगहों पर काफी लोकप्रिय हैं, जहाँ हाथियों का झुण्ड खेतों में लगी फसलों को बर्वाद कर देते हैं या फिर लोगों को क्षति पहुँचाते हैं। उन्होंने बताया कि निर्मला जंगली हाथियों से अपनी जुबान यानी मुण्डारी भाषा में बात कर उन्हें वापस जाने के लिए मनाती है। हाथी उसकी भाषा समझते हैं। अब कहीं भी अगर हाथियों का उत्पात होता है, तो लोग इलाके में वन विभाग को नहीं, बल्कि निर्मला और उसके दल को ही बुलाते हैं। हालाँकि कई सामाजिक संगठन हाथी से बात करने वाली बात को अंधविश्वास मानते हैं।
वन क्षेत्र अधिकारी के अनुसार, ओड़िशा वन विभाग के 20 कर्मचारियों को निर्मला का दल हाथियों को भगाने का गुर सीखा रहा हैं। 
हाथियों की दो प्रजातियाँ
झारखण्ड में वन विभाग के प्रमुख एके मिश्र के अनुसार, राज्य में हाथियों की संख्या करीब 700 है। यहां पाये जाने वाले हाथियों में दो प्रजातियां हैं। इनमें से एक सरगुजा के हाथी कहलाते हैं, जो छत्तीसगढ़ से झारखंड आते-जाते रहते हैं। दूसरी प्रजाति सिंहभूम के हाथियों की है, जो स्वभाव से उग्र होते हैं। जब हाथियों की संख्या बढ़ी तो वे अपना दल बना अलग-अलग घूमने लगे।
शराब के शौकीन हाथी
श्री मिश्र का कहना है कि झारखंड के जंगलों में रहने वाले आदिवासी महुए से शराब बनाते हैं। इसकी खुशबू भी हाथियों को आदिवासियों के घरों तक खींच लाती है। कभी-कभी हाथियों का झुंड सिर्फ शराब पीने के लिए घरों को तोड़कर घुस जाता है। झारखंड के वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 साल में इंसानों और हाथियों के संघर्ष में 400 लोग मारे जा चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा लोग सिंहभूम व संथाल परगना के इलाक़े में मारे गये हैं।

विश्व एड्स दिवस : झारखंड में बढ़ रहे हैं एड्स के नये मामले



-शीतांशु कुमार सहाय
प्रत्येक वर्ष एक दिसंबर को मनाया जाने वाला विश्व एड्स दिवस के अवसर पर झारखंड पर डालते हैं एक नजर। इस वर्ष एड्स दिवस की थीम ‘एड्स मुक्त पीढ़ी की ओर‘ रखी गयी है। पिछले कुछ वर्षाें के दौरान झारखंड में एचआइवी पीड़ित लोगों और संक्रमण के नये मामले खतरनाक दर से बढ़ रहे हैं।
एचआइवी संक्रमण में वृद्धि 80 प्रतिशत--
झारखंड में एचआइवी का प्रसार दर तेजी से बढ़ रहा है और अब यह राष्ट्रीय औसत के करीब पहुंच चुका है। नेशनल एड्स कण्ट्रोल ऑर्गेनाइजेशन यानि राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण संगठन (नाको) के हालिया रिपोर्ट-2012 के अनुसार, झारखंड में वयस्कों (15-49 वर्ष) में एचआइवी का प्रसार दर 2011 में 0.25 प्रतिशत था। इसी दौरान राष्ट्रीय औसत 0.27 प्रतिशत था। राज्य में 2007 में एचआइवी का प्रसार दर 0.14 प्रतिशत, 2008 में बढ़कर 0.16 प्रतिशत, 2009 में 0.18 प्रतिशत, 2010 में 0.21 प्रतिशत और 2011 में यह 0.25 प्रतिशत पहुंच गया। वर्ष 2007 से लेकर 2011 के दौरान एचआइवी दर में तकरीबन 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
15 वर्ष से अधिक उम्र वालों में एचआइवी संक्रमण--
झारखंड में 15 वर्ष और उससे अधिक के वयस्कों में एचआइवी संक्रमण के नये मामलों में भी बढ़ोत्तरी देखी गई। 2007 में यह आँकड़ा 4,621 था जो कि 2011 में बढ़कर 9,085 तक पहुँच गया। इन चार वर्षों के दौरान इसमें 100 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। भारत में वयस्कों में नए एचआइवी संक्रमण के मामले आंध्र प्रदेश (16,600) और ओड़िशा (12,700) के बाद झारखंड (9,085) में सबसे अधिक हैं।
48,000 एचआइवी पॉजीटिव--
2007 में झारखंड में एड्स से 1,118 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि 2011 में एड्स से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़कर 1,947 थी। झारखंड में 48,000 एचआइवी पॉजीटिव लोगों में 4 प्रतिशत बच्चे हैं, जिनकी आयु 15 वर्ष से नीचे है। झारखंड में सबसे अधिक एचआइवी प्रसार वाले जिलों में हजारीबाग, पूर्वी सिंहभूम, राँची, बोकारो और धनबाद है। गिरिडीह और खूँटी में भी यह उच्च स्तर पर है।

बुधवार, 27 नवंबर 2013

विवाह के चौथे वर्षगाँठ पर बाबा वैद्यनाथ को जलार्पण व सोलह संस्कार पर चर्चा On the Fourth Anniversary of Marriage, Offering Holy Water to Baba Vaidyanath & Discussing Sixteen Sacraments



-शीतांशु कुमार सहाय
      मेरे त्रयोदश संस्कार विवाह के चार वर्ष हो गये। २७ नवम्बर २००९ की रात को मैंने रीना का पाणि ग्रहण किया था। विवाह के चौथे सालगिरह पर मैं पत्नी व पुत्र अभ्युदय के साथ झारखण्ड के देवघर स्थित वैद्यनाथ मन्दिर में बाबा वैद्यनाथ को जलार्पण करने गया। भीड़ काफी कम थी। अतः हमलोग बाबा का स्पर्श पूजन भी कर पाये। उन की कृपा और आप तमाम मित्रों के प्यार के साथ!

सोलह संस्कार 

      अब थोड़ी बात कर लेते हैं १६ संस्कारों की। गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है। महर्षि अंगिरा ने इन का अंतर्भाव पच्चीस संस्कारों में किया। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है। हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गयी है। महर्षि वेदव्यास के अनुसार मनुष्य के सृजन से विसर्जन तक (जन्म से लेकर मृत्यु तक) पवित्र १६ संस्कार संपन्न किये जाते हैं :-
१. गर्भाधान   
२. पुंसवन   
३. सीमन्तोन्नयन   
४. जातकर्म   
५. नामकरण   
६. निष्क्रमण  
७. अन्नप्राशन   
८. चूड़ाकरण   
९. कर्णवेध   
१०. उपनयन   
११. केशान्त   
१२. समावर्तन   
१३. विवाह   
१४. वाणप्रस्थ   
१५. परिव्राज्य या संन्यास   
१६. पितृमेध या अन्त्यकर्म।

विवाह संस्कार 

      विवाह संस्कार हिन्दू धर्म संस्कारों में 'त्रयोदश संस्कार' है। विवाह= वि+वाह, अत: इस का शाब्दिक अर्थ है--- विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को विवाह के नाम से जाना जाता है। विद्याध्ययन के पश्चात विवाह करके गृहस्थाश्रम में प्रवेश करना होता है। विवाह संस्कार पितृ ऋण से उऋण होने के लिए किया जाता है। दो प्राणी अपने अलग-अलग अस्तित्वों को समाप्त कर एक सम्मिलित इकाई का निर्माण करते हैं।

पूर्णता का प्रतीक है विवाह 

      स्त्री और पुरुष दोनों में परमात्मा ने कुछ विशेषताएँ और कुछ अपूर्णताएँ दे रखी हैं। पाणिग्रहण से एक-दूसरे की अपूर्णताओं की अपनी विशेषताओं से पूर्ण करते हैं। इससे समग्र व्यक्तित्व का निर्माण होता है। विवाह मानव जीवन की एक आवश्यकता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है पर हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुवतारा को साक्षी मानकर दो तन, मन और आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति-पत्नी के बीच शारीरिक सम्बंध से अधिक आत्मिक सम्बंध होता है, इस सम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।

विवाह में वासना की प्रधानता हानिकारक 

      आज विवाह वासना-प्रधान बनते चले जा रहे हैं। रंग-रूप के आकर्षण को स्त्री और पुरुष के चुनाव में प्रधानता दी जाने लगी है, यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। दाम्पत्य-जीवन शरीर प्रधान रहने से एक प्रकार के वैध-व्यभिचार का ही रूप धारण कर लेगा। शारीरिक आकर्षण का अवसर सामने आने पर विवाह जल्दी-जल्दी टूटते-बनते रहेंगे। अभी स्त्री का चुनाव शारीरिक आकर्षण को ध्यान में रखकर किये जाने की प्रथा चली है। बढ़ती हुई इस प्रवृत्ति को रोकना चाहिए और सद्गुणों तथा सद्भावनाओं को ही विवाह का आधार बने रहने देना चाहिए।

शनिवार, 23 नवंबर 2013

तरुण तेजपाल की नैतिकता : शिखर की ढलान


तहलका पत्रिका के संपादक तरुण तेजपाल के खिलाफ गोवा पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और बहुत संभव है कि उनकी गिरफ्तारी भी जल्द हो जाए, लेकिन एक युवा पत्रकार के यौन उत्पीड़न के मामले में उनके संस्थान का रवैया हैरान करने वाला रहा है। इस प्रकरण ने 12 वर्ष पूर्व तहलका के ऑपेरशन वेस्टलैंड के जरिये रक्षा सौदों में दलाली का मामला उजागर करने वाले तेजपाल का एक अलग ही चेहरा सामने लाया है। यह मामला सिर्फ दो व्यक्तियों के बीच का नहीं है, बल्कि कार्यस्थल में मालिक और उसकी मातहत के बीच का भी है। तेजपाल ने छह महीने के लिए खुद को तहलका से अलग करने की सजा मुकर्रर की, उससे ही साफ है कि वह खुद और उनकी पत्रिका का प्रबंधन इस मामले को कितने हल्के में ले रहा था। वरना तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी बलात्कार के मामलों में खासी मुखर रही हैं। सवाल है कि विशाखा बनाम राजस्थान सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल में महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए जो निर्देश दिए हैं, तहलका ने उनका पालन क्यों नहीं किया? क्या कानून और नैतिकता के मानदंड सिर्फ दूसरों के लिए हैं? यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उच्च स्तर की नैतिकता का दावा करने वालों और लीक से अलग हटकर काम करने वालों का जीवन भी पारदर्शी होना चाहिए। जब ऐसे प्रतीक ध्वस्त होते हैं तो आम लोगों का विश्वास भी दरकने लगता है।
यह संयोग है कि तरुण तेजपाल मानवीय कमजोरियों और नैतिकता के उसी कठघरे में खड़े हैं, जिसे उन्होंने अपनी चर्चित किताब अल्केमी ऑफ डिजायर (हिंदी में 'शिखर की ढलान' नाम से प्रकाशित) के केंद्र में रखा था।

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

एसयूसीआई के इस प्रदर्शन को समझें



प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय

कुछ बातें कहने की नहीं, समझने की होती है। सोमवार 18 नवम्बर 2013 को झारखंड की राजधानी राँची में एसयूसीआई के समर्थकों ने प्रदर्शन किया। चित्र को देखकर आप समझिये कि किसका और क्यों विरोध किया जा रहा है।

रविवार, 17 नवंबर 2013

जनप्रतिनिधियों, सांसदों और विधायकों का प्रवेश वर्जित है इस पुल पर




-काँग्रेस, भाजपा व जदयू ने ठगा  दरभंगा के बहादुरपुर के कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों को 



बिहार में जिला दरभंगा के बहादुरपुर के कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों को अपने गांव के लिए कमला नदी पर एक पुल की जरूरत थी। लोगों ने इसके लिए बहुत अर्जियां दीं, बहुत बार चुने हुए नेताओं को अपनी समस्या बताई, लेकिन न तो जनप्रतिनिधियों के कान पर जूं रेंगी और न ही प्रशासन ने इसकी बात सुनी। इसके बाद गांव के लोगों ने मिलकर खुद ही एक पुल बना लिया और उसके एंट्री प्वाइंट पर एक बैनर टांग दिया। बैनर पर लिखा है-- ''सेतु पर जनप्रतिनिधि, सांसद और विधायकों का प्रवेश वर्जित। निवेदक- ग्रामवासी, कमलपुर-ब्रह्मोत्तर।''
बिहार की नीतीश सरकार ने अपने पिछले 8 साल में इसे लेकर खूब ढोल पीटा है कि उन्होंने बिहार के बहुत से दूर-दराज के गांवों को पुल देकर दुनिया से जोड़ा है। बिहार स्टेट ब्रिज कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन के अधिकारियों का दावा है कि बिहार में विभिन्न स्कीमों के जरिए 3878 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। इतने पैसे खर्च होने के बाद भी यदि जिला दरभंगा के कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों को पुल नसीब नहीं हुआ तो इसे क्या कहा जाए?
बांस जोड़कर पुल बना---
बहादुरपुर में पड़ने वाले कमलपुर-ब्रह्मोत्तर घाट के लोगों ने बांस जोड़-जोड़कर एक पुल बनाया है। इस केवल पैदल, साइकिल, मोटरसाइकिल को आने-जाने की अनुमति है। बड़े वाहनों का बोझ यह पुल सहन नहीं कर पाएगा, इसलिए उनकी एंट्री नहीं है। ऐसे में लोगों के पास शहर से जुड़ने के लिए एक पुल है लेकिन भारी सामान को लाने ले जाने की किल्लत बरकरार है। इस पुल को बनाने की पहल की बालब्रह्मचारी बाबा लक्ष्मण दास ने। उनके साथ गांव के ही कुछ और लोग जुड़े। गांव से चंदा जुटाया गया और इसी साल सितंबर में बना दिया गया बांस का एक पुल। बाबा लक्ष्मण दास का कहना है कि यहां जन‍प्रनिधियों के प्रवेश को वर्जित किया गया है। जब तक यहां कंक्रीट का पुल‍ नहीं बन जाता, वे किसी भी नेता को गांव में घुसने नहीं देंगे। यही नहीं, लोगों का कहना है कि वे आने वाले सभी तरह के चुनावों का भी बहिष्कार करेंगे।
1985 में रखा गया था नींव का पत्थर---
गांव के लोगों का यह कदम एकाएक उठाया गया नहीं है। 1985 से लेकर अब तक पुल नहीं बन पाने के बाद गांव के लोगों ने ऐसा फैसला लिया। जी हां, इस पुल की नींव का पत्थर 1985 में तब के कांग्रेसी एमएलसी हरीशचंद्र झा ने रखा था। साल-दर-साल समय गुजरता गया पर नींव के पत्थर के ऊपर ईंट नहीं रखी गई। इसके बाद गांव के लोगों ने बीजेपी सांसद कीर्ति आजाद के सामने अपील की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। फिर, लोग जेडीयू के बहादुरपुर के विधायक मदन साहनी के पास गए और निराश होकर लौटे।


झारखंड की दूसरी महिला मुख्य न्यायाधीश बनीं न्यायमूर्ति आर. बानुमति


प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
झारखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. बानुमति को रांची में शनिवार 16 नवम्बर 2013 को शपथ दिलायी गयी। वह राज्य की 9वीं और दूसरी महिला मुख्य न्यायाधीश हैं। झारखंड के राज्यपाल डॉ. सैयद अहमद ने राजभवन के बिरसा मंडप में न्यायमूर्ति आर. बानुमति को पद की शपथ दिलायी। शपथ ग्रहण समारोह के मौके पर मुख्यमंत्र्ाी हेमंत सोरेन, विधानसभा अध्यक्ष शशांक शेखर भोक्ता, मंत्र्ाी अन्नपूर्णा देवी, काँग्रेस सांसद सुबोधकांत सहाय के अलावा झारखंड उच्च न्यायालय के अधिकांश न्यायाधीशगण, न्यायिक पदाधिकारी और पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित थे। इससे पहले मुख्य सचिव आरएस शर्मा ने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. बानुमति की नियुक्ति से संबंधित राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी वारंट को पढ़कर सुनाया। झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रकाश टाटिया 3 अगस्त 2013 को सेवानिवृत्त हो गये थे। उनकी जगह न्यायमूर्ति डीएन पटेल कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम देख रहे थे। न्यायमूर्ति आर. बानुमति को वर्ष 2003 में मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद की शपथ दिलायी गयी थी।
यहाँ चित्रों में देखिये झारखंड उच्च न्यायालय की नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर. बानुमति को--















भारत के दैनिक समाचार पत्रों में छाये रहे सचिन रमेश तेन्दुलकर व सीएनआर राव

प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
शनिवार 16 नवम्बर 2013 को महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन रमेश तेंदुलकर ने मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम पर अपना 200वां टेस्ट खेलकर क्रिकेट से संन्यास लिया। वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरे टेस्ट के तीसरे दिन टीम इंडिया की जीत के साथ ही वह लम्हा आ गया जब करोड़ो फैन्स ने अपने महानायक को भारी मन से विदाई दी। इस लम्हे पर सचिन खुद भी जज्बाती हो गए और अपने आंसुओं को नहीं नहीं रोक पाए। क्रिकेट से संन्यास के कुछ देर बाद भारत सरकार ने नियमों में बदलाव कर सचिन को भारत रत्न से नवाजने का फैसला किया। भारत सरकार के इस फैसले पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गई। देश का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न पाने वाले सचिन देश के पहले खिलाड़ी हैं। 24 साल के दौरान क्रिकेट में तेंदुलकर की महान उपलब्धियों के लिए भारत रत्न दिए जाने की घोषणा सरकार ने की है। प्रधानमंत्री कार्यालय से इस आशय के जारी आदेश के मुताबिक, सचिन तेंदुलकर के साथ मशहूर वैज्ञानिक प्रो. सीएनआर राव को भारत रत्न दिया जाएगा। 26 जनवरी 2014 को सचिन व प्रो.राव को ये सम्मान मिलेगा। प्रो.सीएनआर राव एक मशहूर वैज्ञानिक हैं और उनकी पहचान ठोस पदार्थ और पदार्थ रसायन में एक विशेषज्ञ के रूप में है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रो. राव के 1400 रिसर्च पेपर और 45 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। सचिन ने भारत रत्न अपनी मां को समर्पित किया है। पिछले कई सालों से सचिन के लिए देश के सबसे बड़े सम्मान देने की मांग चल रही थी लेकिन सरकार इस पर फैसला नहीं ले पा रही थी। पिछले कुछ दिनों से सचिन की दीवानगी देखते ही बन रही थी। इसी का सम्मान करते हुए सरकार ने ये ऐलान किया!  सचिन ने भारत के खेल दूत के रूप में दुनिया में भारतीय अस्मिता को ऊँचा उठाया।

यहाँ चित्रों में देखिये कि भारत के किस दैनिक समाचार पत्र ने अपने 17 नवम्बर 2013 के अंक में सचिन रमेश तेंदुलकर व सीएनआर राव को किस प्रकार कवरेज दिया--











राष्ट्रीय सहारा


शनिवार, 16 नवंबर 2013

देश के 2 रत्नों सचिन तेंदुलकर व सीएनआर राव को भारत रत्न



-शीतांशु कुमार सहाय
आज शनिवार 16 नवम्बर 2013 को महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन रमेश तेंदुलकर ने वानखेड़े स्टेडियम पर अपना 200वां टेस्ट खेलकर क्रिकेट से संन्यास लिया है। क्रिकेट से संन्यास के बाद भारत सरकार ने नियमों में बदलाव कर सचिन को भारत रत्न से नवाजने का फैसला किया है। भारत सरकार के इस फैसले पर ख़ुशी कि लहर दौड़ गई। देश का सबसे बड़ा सम्मान भारत रत्न पाने वाले सचिन देश के पहले खिलाड़ी हैं। 24 साल के दौरान क्रिकेट में तेंदुलकर की महान उपलब्धियों के लिए भारत रत्न दिए जाने की घोषणा सरकार ने की है। प्रधानमंत्री कार्यालय से इस आशय के जारी आदेश के मुताबिक, सचिन तेंदुलकर के साथ मशहूर वैज्ञानिक प्रो. सीएनआर राव को भारत रत्न दिया जाएगा। 26 जनवरी 2014 को सचिन व प्रो.राव को ये सम्मान मिलेगा। सचिन ने भारत रत्न अपनी मां को समर्पित किया है। पिछले कई सालों से सचिन के लिए देश के सबसे बड़े सम्मान देने की मांग चल रही थी लेकिन सरकार इस पर फैसला नहीं ले पा रही थी। पिछले कुछ दिनों से सचिन की दीवानगी देखते ही बन रही थी। इसी का सम्मान करते हुए सरकार ने ये ऐलान किया!  सचिन ने भारत के खेल दूत के रूप में दुनिया में भारतीय अस्मिता को ऊँचा उठाया।

मशहूर गायिका लता मंगेशकर से भारत रत्न वापसी की मांग करने वाली काँग्रेस क्या कभी सचिन तेन्दुलकर से भी भारत रत्न देने के बाद वापस लेने की माँग रखेगी?
1400 रिसर्च पेपर और 45 किताबें---
प्रो.सीएनआर राव एक मशहूर वैज्ञानिक हैं और उनकी पहचान ठोस पदार्थ और पदार्थ रसायन में एक विशेषज्ञ के रूप में है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रो. राव के 1400 रिसर्च पेपर और 45 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भी भारत रत्न देने कि मांग---

भाजपा ने सचिन को भारत रत्न देने के लिए सरकार को धन्यवाद दिया और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को भी भारत रत्न देने कि मांग की।

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

हर शिकायत की दर्ज करनी होगी एफआईआर : सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पी सदाशिवम की अध्‍यक्षता वाली 5 सदस्‍यीय संवैधानिक पीठ ने कहा है कि संगीन अपराधों में एफआईआर दर्ज करने के लिए के लिए पुलिस अधिकारी को मामले की शुरुआती जांच करने की जरुरत नहीं है। संवैधानिक पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा न्यायाधीश बीएस चौहान, न्यायाधीश रंजन पी देसाई, न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश एसए बोब्दे भी शामिल थे। संवैधानिक पीठ ने कहा कि एफआईआर को लेकर कानून में कोई अस्पष्टता नहीं है और कानून की मंशा संज्ञेय अपराधों में अनिवार्य एफआईआर दर्ज कराने की है। सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर पर बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा है----

1. संगीन अपराधों के मामले में प्राथमिकी दर्ज करना अनिवार्य है। 
2. अगर पुलिस अधिकारी के पास कोई शिकायत आती है और मामला संज्ञेय अपराध से जुड़ा तो बिना शुरुआती जांच के ही एफआईआर दर्ज करना होगा।  
3. पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से बच नहीं सकते और संज्ञेय मामले की शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। 
4. मामलों की शिकायत मिलने पर एफआईआर दर्ज नहीं किए जाने को कोर्ट की अवमानना माना जाएगा और जिम्‍मेदार पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 
5. एफआईआर दर्ज करने के एक हफ्ते के भीतर पुलिस अधिकारी को जांच पूरी करनी होगी। कोई भी पुलिस कर्मी ज्‍यादा समय तक मामले की जांच को नहीं लटका सकता है।
6. कई बार ऐसा लगता है कि शिकायत में लगाए गए आरोप झूठे हैं। ऐसे मामले में गिरफ्तारी भले ही न हो, लेकिन एफआईआर दर्ज करना जरूरी है।  

संवैधानिक पीठ ने तीन जजों की बेंच द्बारा मामले को बड़ी बेंच के पास भेजे जाने के बाद यह फैसला दिया गया है। तीन जजों की पीठ ने इस आधार पर मामले को बड़ी बेंच के पास भेजा था कि इस मुद्दे पर विरोधाभासी फैसले हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल में कई फैसलों के दौरान ये बात कही है। उन्‍होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अनुसार पुलिस किसी भी व्‍यक्ति की एफआईआर दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती है लेकिन फिर भी पुलिस मामला दर्ज करने से इनकार कर देती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से पुलिस के रवैये में कुछ सुधार होगा क्‍योंकि जो पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज नहीं करेगा उसके खिलाफ कार्रवाई करने की सिफारिश की गई है।

रविवार, 10 नवंबर 2013

गोवा में नरेन्द्र मोदी, राहुल गाँधी व मनमोहन सिंह पर गुस्साये चिदम्बरम



प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 10 नवम्बर 2013 (रविवार) को स्वीकार किया कि नरेंद्र मोदी को कांग्रेस पार्टी चुनौती देने वाले नेता के तौर पर देखती है। चिदंबरम ने गोवा गोवा की राजधानी पणजी में आयोजित थिंकफेस्ट समारोह में एक परिचर्चा के दौरान कहा कि राजनीतिक दल के तौर पर हम मानते हैं कि मोदी चुनौती पैदा करने वाले हैं। हम उनकी अनदेखी नहीं कर सकते। वह मुख्य विपक्षी दल के उम्मीदवार हैं। हमें उन्हें ध्यान में रखना होगा। उन्‍होंने कहा कि वह मोदी की विचारधारा, सोच और जनसभाओं में उनके द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली भाषा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक नरेंद्र मोदी बहुत ही अस्पष्ट हैं। अभी तक उन्होंने किसी बड़े मुद्दे पर बात नहीं रखी है। उन्होंने केवल चुनावी वायदे किए हैं। हालांकि केंद्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि एक व्यक्ति के तौर पर वह मोदी की विचारधारा, सोच और जनसभाओं में उनके द्वारा इस्तेमाल में लाई जाने वाली भाषा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने कहा कि अभी तक वह (मोदी) बहुत ही अस्पष्ट हैं। अभी तक उन्होंने किसी बड़े मुद्दे पर बात नहीं रखी है। उन्होंने केवल चुनावी वायदे किये हैं।
कांग्रेस सत्ता में आती है तो राहुल गांधी को पार्टी और सरकार का नेतृत्व---
चिदंबरम के मुताबिक कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को लगता है कि यदि आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सत्ता में आती है तो राहुल गांधी को पार्टी और सरकार का नेतृत्व मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता ऐसा सोचते हुए लग रहे हैं कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो राहुल गांधी को पार्टी और सरकार का नेता बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक मेरी निजी राय है तो मुझे लगता है कि अब कमान युवा पीढ़ी के हाथ में सौंपने का वक्त आ गया है। उन्होंने कहा कि देश में अनेक युवक और युवतियां हैं जो सरकार में भूमिका निभा सकते हैं और सुशासन प्रदान कर सकते हैं।
राहुल गांधी ने किसी बड़े मुद्दे पर बात नहीं रखी है---
चिदंबरम ने गोवा में आयोजित थिंकफेस्ट समारोह में एक परिचर्चा के दौरान कहा कि राहुल गांधी अनेक जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं, लेकिन यदि मैं उन्हें सलाह देता तो उन्हें रैलियों में अनेक बड़े मुद्दों पर अपनी राय रखने का सुझाव देता।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपेक्षा से कम बोलते हैं---
जब चिदंबरम से पूछा गया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस के नेता बड़े मुद्दों पर विचार क्यों नहीं रख रहे तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्रोताओं को संबोधित करते हैं और संवाददाता सम्मेलनों में बोलते हैं। हालांकि जितनी मैं उनसे अपेक्षा रखता हूं, उतना नहीं। चिदंबरम ने कहा कि वह क्या बोलते हैं, आप उससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन वह बोलते जरूर हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का गांव आज पाकिस्‍तान में है, यह भूगोल किसने बदला : नरेंद्र मोदी

प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
10 नवम्बर 2013 को गुजरात के खेड़ा जिले में मुस्लिम ट्रस्‍ट के अस्‍पताल 'रिलायबल मल्‍टी स्‍पेशिलिटी हॉस्पिटल' के उद्धाटन के मौके पर मोदी ने मनमोहन सिंह के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि एक परिवार की भक्ति में लीन कांग्रेस ने भारत के इतिहास को खोखला कर दिया है। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार नरेंद्र मोदी ने 10 नवम्बर 2013 (रविवार) को गुजरात के खेड़ा जिले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। मोदी ने कहा- प्रधानमंत्रीजी ! जिस गांव में आपका जन्‍म हुआ था, कभी वह हिंदुस्‍तान था, लेकिन आज वह हिंदुस्‍तान में नहीं है। यह भूगोल किसने बदला, देश का बंटवारा किसने कराया ? चीन सैकड़ों किलोमीटर तक हमारी सीमा में घुस आया है और आप चुप हैं, यह भूगोल किसने बदला ? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 9 नवम्बर 2013 को को भाजपा पर इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाया था।
कांग्रेस इतिहास के साथ खिलवाड़ कर रही है---
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार ने कहा कि कांग्रेस देश का भूगोल बदल रही है और इतिहास के साथ खिलवाड़ कर रही है।
दूसरों की सेवा करना गुजरात के डीएनए में---
अस्‍पताल के उद्धाटन के मौके पर मोदी ने कहा कि आज गुजरात को बदनाम करने की साजिश हो रही है, लेकिन गुजरात दान के क्षेत्र में सबसे आगे है। फिर चाहे वह रक्‍तदान की बात हो या अंग दान, इन सभी सेवा के कार्यों में गुजरात देश में सबसे आगे है। दूसरों की सेवा करना गुजरात के डीएनए में है। उन्‍होंने कहा कि आज दुनियाभर में हेल्‍थ इंश्‍योरेंस की बात हो रही है, लेकिन हम हेल्‍थ एश्‍योरेंस की बात करते हैं। मोदी ने कहा कि हमने गुजरात में स्‍वच्‍छ पानी, स्‍वच्‍छ हवा और आधुनिक मेडिकल सुविधाएं उपलब्‍ध कराई हैं। देश में सबके लिए सस्‍ता इलाज होना चाहिए। मोदी ने कहा कि गुजरात में लंबे समय से कोई महामारी नहीं हुई है।
नेहरू-इंदिरा को जीवित रहते और पटेल को मृत्‍यु के 45 बाद भारत रत्‍न--- 
सरदार पटेल को उनकी मृत्‍यु के 45 बाद भारत रत्‍न दिया गया। डॉक्‍टर बाबा साहेब अंबेडकर को उनके निधन के 35 साल बाद भारत रत्‍न दिया गया जबकि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी को उनके जीवित रहते ही भारत रत्‍न दिया गया। राजीव गांधी को उनकी मौत के तुंरत बाद भारत रत्‍न दिया गया और डॉक्‍टर अबुल कलाम आजाद को याद तक नहीं किया जाता।  मोदी ने कांग्रेस से पूछा कि 1857 की क्रांति को आज भी किताबों में बगावत क्‍यों कहा जाता है।
महात्मा गांधी के दांडी मार्च का मार्ग बदलवाने का आरोप---
भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार मोदी ने केंद्र सरकार पर महात्मा गांधी के दांडी मार्च का मार्ग बदलवाने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा,'महात्मा गांधी ने 1930 में साबरमती आश्रम से दांडी तक की यात्रा की थी। पीएम ने साबरमती से दांडी के मार्ग को हेरिटेज रोड बनाने की घोषणा की थी। पैसा देने का ऐलान किया था, लेकिन पैसा नहीं मिला। छह महीने पहले केंद्र सरकार ने चिट्ठी भेजी कि गांधी जिस रास्ते से चले थे, उसे हेरिटेज बनाने के बजाय रास्ते को 30 किलोमीटर थोड़ा दूसरे तरफ ले जाएं तो सुविधा रहेगी। महात्मा गांधी की दांडी यात्रा का भूगोल कौन बदल रहा है? आपने गांधी को छोड़ दिया और अब गांधी के मार्ग को भी बदल रहे हो। भूगोल आप बदल रहे हैं और छत्तीसगढ़ में जाकर भूगोल और इतिहास का पाठ पढ़ा रहे हैं।'
1857 का स्वतंत्रता संग्राम को बगावत कहा जा रहा है---
मोदी ने सरकार पर गांधी परिवार के लिए देश के इतिहास को बदलने का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा, '1857 का स्वतंत्रता संग्राम हिंदू-मुस्लिमों ने साथ मिलकर लड़ा था। यह आपकी सरकार है कि आप उसे स्वतंत्रता संग्राम कहने को तैयार नहीं है। पाठ्य पुस्तकों में उसे बगावत कहा जा रहा है। यह इतिहास के साथ खिलवाड़ है।'
अंडमान-निकोबार के शहीदों की उपेक्षा---
नरेंद्र मोदी ने सरकार पर अंडमान-निकोबार में जेल काटने वाले देशभक्तों की उपेक्षा का आरोप भी लगाया। मोदी ने कहा,'अंडमान-निकोबार में जेल काटने वाले देशभक्तों को एक आदमी की वजह से नई पीढ़ी तक नहीं पहुंचने दिया जा रहा है। आपकी सरकार के मंत्री अंडमान-निकोबार गए और वहां शहीदों के नाम का बोर्ड उखाड़ कर फेंक दिया। देश के लिए मरने वालों के साथ यह आपकी सरकार का व्यवहार है।'
बड़ी-बड़ी बातों को कोई स्वीकार नहीं करता---
नरेंद्र मोदी ने मनमोहन के भाषण में 'ऊंचे-ऊंचे मंचों से ऊंची-ऊंची बातें करने से सफलता नहीं मिलती' वाली बात पर भी निशाना साधा। मोदी ने कहा 'प्रधानमंत्री जी मैं आपकी इस बात से 100 पर्सेंट सहमत हूं। ऊंचे-ऊंचे मंच से बातें करने पर सफलता नहीं मिलती। इसका सबूत है 2012 का गुजरात का चुनाव। बड़ी-बड़ी बातें करने वालों को जनता ने घर भेज दिया और जो जमीन से जुड़ी बातें करने वाले थे, उन्हें तीसरी बार सत्ता पर बिठा दिया। बड़ी-बड़ी बातों को कोई स्वीकार नहीं करता है।'
श्यामा प्रसाद मुखर्जी, लाल-बाल-पाल, अबुल की उपेक्षा---
नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस सरकारों पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उपेक्षा का आरोप लगाया। मोदी ने कहा कि मुखर्जी की अस्थियां 1930 में उनके निधन के बाद 73 साल तक जीनिवा में पड़ी रहीं। 2003 में मैं जीनिवा गया और मुखर्जी की अस्थियों को लेकर आया और कच्छ के उनके गांव ले गया।' मोदी ने कांग्रेस पर लाल-बाल-पाल, अबुल कलाम आजाद को भी भुलाने का आरोप लगाया।

मोदी ने गुजरात के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बीच अंतर नहीं समझ पाए। गुजरात के खेड़ा जिले में एक कार्यक्रम के दौरान मोदी ने कहा, 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक क्रांतिकारी थे। लंदन में 1930 में उनका निधन हो गया। लेकिन कांग्रेस ने कभी उनकी अस्थियां भारत लाने की कोशिश नहीं की।' हालांकि, अपने भाषण के अंत में मोदी ने याद दिलाए जाने के बाद अपनी बात में सुधार कर लिया कि वे श्यामजी कृष्ण वर्मा के बारे में सोच रहे थे न कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में। इससे बीजेपी की चिंता बढ़ गई है कि अगर मोदी ने अपनी शैली में सुधार नहीं किया तो उनकी गंभीरता सवालों के घेरे में आ सकती है। मोदी की ताज़ा गलती पर बीजेपी की प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने कहा, 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी और श्यामजी वर्मा के मामले में जुबान फिसल गई, जिसे सुधार लिया गया गया। लेकिन सुधार की बात मीडिया ने नजरअंदाज कर दी।'




शनिवार, 2 नवंबर 2013

आयी दीपावली : जलाइये प्यार का दीया





-शीतांशु कुमार सहाय
दिन गिनते-गिनते फिर बीत ही गये 365 दिन।  उड़ान की बात तो दूर, सोच ने पर फड़फड़ाये भी नहीं और पुनः आ गयी दीपावली। क्या-क्या सोचा था मगर कुछ हुआ नहीं! कुछ हुए भी तो आधे-अधूरे! कुछ तो सोच की परिधि से बाहर आ भी न सके! कुछ हसरतें तो सोच की धरातल पर भी नहीं आये! यदि आपके साथ ऐसा हुआ है तो यकीन मानिये कि आपके हाथ से सफलताएँ लगातार फिसल रही हैं। जब असफलताएँ हाथ लगती रहेंगी तो तमाम पर्व-त्योहारों का मजा आता नहीं, मजा किरकिरा हो जाता है। किरकिराते मजे का समूल बदलने की शक्ति वास्तव में मनुष्य के हाथों में है। बस, करना यही है कि दिल से प्यार का एक दीया जलाना है। इसके उजियारे में उन हसरतों के सिलसिले को सजाना है; ताकि उस फेहरिश्त पर नजर पड़ते ही याद ताजा हो जाये। ऐसा करने से तमाम हसरतें नतीजे के मुकाम तक अवश्य ही पहुँचेंगी।

दीपावली कब से और क्यों मनायी जाती है, इस बिन्दु पर मतैक्य नहीं है। उस मतभिन्नता में पड़ने के बदले कीजिये वही जो आपको अच्छा लगता है। जरूरी नहीं कि जो एक को पसन्द है वही दूसरे को भी पसन्द हो। लिहाजा अपनाइये वही जिससे औरों को हानि न हो। निश्चय ही वही कार्य सराहनीय है जिसे समाज भी सराहे, जिससे किसी का दिल न दुखाये। पर, अफसोस यही है कि इन दिनों वही ज्यादा हो रहा है जिसे अधिकतर लोग पसन्द नहीं करते हैं। समाज के कथित अगुआ व्यक्ति उन कार्यों को अंजाम दे रहे हैं जो हर किनारे से आलोचित होते हैं, निन्दित होते हैं। यहाँ किसी का नाम लेना उचित नहीं है। पर, इतना तो कहना ही पड़ेगा कि लोकतन्त्र में तन्त्र से जुड़े अधिकतर लोग वही कर रहे हैं जो लोक यानी जनता को पसन्द नहीं, उनके कार्यों से लोकोपकार कम, लोकापकार अधिक हो रहा है। हम यहाँ तन्त्र से नहीं, लोक से मुखातिब हैं कि करें वही जो लोकोपकारी हो। चूँकि वर्तमान दौर पूर्णतः व्यावसायिक है, लिहाजा हर क्षेत्र को व्यवसाय से जोड़कर देखा जाता है। इस व्यावसायिक नजरिये का अपवाद पर्व-त्योहार भी नहीं हैं। दीपावली को भी व्यवसायियों ने अपने हित में उपयोग किया है, परम्परा में व्यावसायिकता को जोड़ दिया है। तभी तो दीपावली के पावन अवसर पर पटाखे छोड़ने की प्रदूषणयुक्त परम्परा को शामिल किया है। यदि समुद्र मन्थन में लक्ष्मी प्रकट हुईं तो दीप जलाकर देवों द्वारा उनके स्वागत की बातें ग्रन्थों में मिलती हैं मगर पटाखे छोड़ने की कला का प्रदर्शन देवताओं ने नहीं किया था। अगर भगवान राम से दीपावली को जोड़ें तो उनके वनवास से लौटने पर अयोध्यावासियों के दीपोत्सव के बीच कहीं विस्फोट की बातों का जिक्र नहीं मिलता। तेज पटाखों को छोड़ने से पूर्व आस-पड़ोस के किसी हृदय रोगी या किसी अन्य बीमार की राय ले लें। इसी तरह कम आवाज वाले पटाखों में आग लगाने से पूर्व किसी बच्चे से पूछें। दोनों स्थितियों में पता यही चलता है कि आपका व्यवहार उनके लिए क्षतिकारक है।

दरअसल, दीपावली को कई नजरिये से देखा जाता है। सबके नजरिये पृथक हो सकते हैं। यदि जेब गर्म हो तो वर्ष में एक दिन नहीं पूरे वर्ष की हर रात दीपावली व हर दिन होली ही है। पर, उस देश में जहाँ की एक-चौथाई आबादी को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल पाता, वहाँ रुपये में आग लगाना उन दुखियों का मखौल उड़ाना ही तो है। जरूरी नहीं कि 100 दीये ही जलाएँ, एक ही दीया जलाइये, पूरे मन से, दिल से और पूरे वर्ष वैसों के साथ प्यार का दीया जलाइये जो आपके खर्च की सीमा का कभी अन्दाज भी नहीं लगा पाते। प्यार का एक दीया केवल घर को ही नहीं, समाज को रौशन करेगा!

दर्द बांटने पटना आया हूं: नरेंद्र मोदी: AAJ TAK: Video/ प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय

दर्द बांटने पटना आया हूं: नरेंद्र मोदी: AAJ TAK: Video
प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

स्‍टैच्‍यू ऑफ यूनिटी : नए संकल्प का शिलान्यास / STATUE OF UNITY



प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय/SHEETANSHU KUMAR SAHAY

गुजरात में नर्मदा डैम के तीन किमी आगे साधुद्वीप पर सरदार पटेल की 597 (182 मीटर) फीट ऊंची प्रतिमा बनाई जाएगी। इसका चेहरा नर्मदा बांध की ओर होगा।  यह मूर्ति बनने के बाद दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति होगी। यह अमेरिका के स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से दोगुनी बड़ी होगी। इसका नाम स्टेच्यू ऑफ यूनिटी रखा गया है।
31 अक्टूबर 2013 को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले गृहमंत्री सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा का शिलान्यास किया। 31 अक्टूबर सरदार पटेल का जन्मदिन भी है। उनके साथ में इस मौके पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी थे। इस मौके पर मोदी ने कहा कि नर्मदा पर बांध का सपना सरदार पटेल का था। इस मौके पर मोदी ने कहा कि आज के युग की मांग है कि हिंदुस्तान को गौरव से देखा जाए। किसी जमाने में चीन को नहीं देखा जाता था और अब शंघाई के आसपास नया इतिहास खड़ा होने लगा है। जापान ने जब स्पीड बुलेट ट्रेन बनाई तो लोगों ने कहा कुछ तो बात है। आज समय की मांग है कि हमें ग्लोबल पॉजिशनिंग करना चाहिए। हमारी सोच में हमारी क्रिया में हमें पता ही नहीं होता कि गुलामी हमें किस तरह से दबोच रही है। पूरी दुनिया में हिंदुस्तान को दीन भाव से देखने की आदत हो गई थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के आने के बाद जब न्यूक्लियर विस्फोट किया गया तो विश्वास पैदा हुआ। उसके बाद दुनिया हिंदुस्तान का नाम सुनती है तो कहते है कुछ तो बात है।
मूर्ति का निर्माण कार्य दो चरणों में पूरा किया जाएगा। पहले चरण में ही 2000 करोड़ रुपये का खर्च होने का अनुमान है। इस मूर्ति के लिए गुजरात सरकार पहले ही 100 करोड़ रुपये पास कर चुकी है। चीन की 153 मीटर ऊंची 'स्प्रिंग टेंपल बुद्धा' मूर्ति इसकी नजदीकी प्रतिद्वंद्वी होगी। लोहा संग्रह करने और इसके प्रचार के लिए एक वेबसाइट 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी डॉट कॉम' भी बनाई गई है। मोदी की नाराजगी कांग्रेस के उन नेताओं से है जो स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए देशभर से लोहा इकट्ठा करने की उनकी योजना को कबाड़ जुटाने का प्रयास बता रहे हैं। मोदी कहते हैं, बात सिर्फ लोहे की नहीं है। हम सात लाख गांवों को देश की एकता-अखंडता के शिल्पकार सरदार पटेल के विचारों के साथ जोडऩा चाहते हैं। इन सात लाख सरपंचों के फोटो डिजिटाइज करके स्टैच्यू ऑफ म्यूजियम में रखे जाएंगे। वर्षों बाद भी यदि देश के किसी भी गांव का कोई व्यक्ति इस प्रतिमा के दर्शन करने आएगा, तो अपने गांव के सरपंच का फोटो पहचानकर अपनापन महसूस करेगा। मोदी कहते हैं- यह प्रतिमा मेरे लिए नहीं बन रही है। यह तो देश के लिए है। इसके साथ मोदी का नाम न भी जोड़ा जाए तो भी मुझे फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन प्रतिमा तो बननी ही चाहिए, बनेगी ही।


इस अवसर पर नरेन्द्र मोदी ने जो भाषण दिया वह अक्षरशः इस प्रकार है---
भाइयों-बहनों
नर्मदा के तट पर आज नए इतिहास और नए संकल्प का शिलान्यास हो रहा है. कई सालों से इस सपने को मैंने मन में संजोया था. कई लोगों ने इस सपने में रंग भरे थे, सुझाव दिए थे. कई मनोमंथन के बाद इस योजना गर्भाधान हुआ. अनेक लोगों का मार्गदर्शन, प्रेरणा, आशीर्वाद मिला. उन सबका अभिनंदन-नमन करता हूं. यह हम सबका सपना है. नर्मदा जिला छोटा जिला है, इसके विकास के लिए और आने वाले दिनों में यह काम और सरलता से हो, इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर कई फैसले हुए हैं. लेकिन सबका मूल्यांकन करने के बाद सरकार को लगा कि अच्छा होगा कि इस काम को गति देने के लिए यहां एक छोटे से तालुका (कस्बा) का निर्माण हो. मुझे पानी के मुद्दे पर कई सुझाव आए. आदिवासी भाइयों का पूरा अधिकार है, पानी उनको मिलेगा. किसानों को भी पानी मिलेगा. हमने टेक्निकल सॉल्यूशन खोजा है. नर्मदा के बाएं किनारे को भी सिंचाई का लाभ मिले, इसके लिए भी काम किया जाएगा. नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध और इसके जरिये गुजरात-राजस्थान में पानी पहुंचाने का प्रयास सरदार पटेल का सपना था. किसी जमाने में प्यासों के लिए पानी की मटकी भी घर के बाहर रखने वालों को समाज आदर से देखता था. हमारे यहां, खास तौर से गुजरात-राजस्थान में पानी का मू्ल्य है, क्योंकि हमने पानी की तंगी झेली है. आज भी गुजरात सरकार का सबसे ज्यादा बजट पानी के काम के लिए दिया जाता है. सरदार सरोवर बांध परियोजना के लिए पिछली सरकारों ने जितना खर्च किया, उससे डबल खर्च हमारी सरकार ने पिछले दस सालों में किया. लेकिन इस सारे काम का सपना सरदार पटेल ने देखा. यह उन्हीं के सपने पर सारा काम हो रहा है.
अगर हम पानी की व्यवस्था न कर पाते तो कहां होते, कौन जानता हमें. गुजरात में नेगेटिव ग्रोथ थी, लोग छोड़कर जा रहे थे. आज राजस्थान के किसी भी व्यक्ति से मिलते हैं तो कहता है कि आपने बहुत अच्छा काम किया, जो हमें पानी दिया. इस सबके लिए सरदार पटेल जिम्मेदार हैं. अब भी गुलामी का इतना बोझ है, आजादी के इतने साल बाद भी. हम गुलामी की छाया से अब तक निकल नहीं पाए हैं. और हमने गुलामी की छाया से निकलने के लिए इस गुलामी के साये को तोड़ने के लिए कुछ ऐसे काम करने होंगे. जिसके कारण हम गर्व के साथ आत्मसम्मान के साथ दुनिया के सामने खड़े हों. आज मैं आपको याद दिलाता हूं. 15-17 साल पहले हिंदु्स्तान में जब बजट पेश किया जाता था, तो उसे शाम को पांच बजे पार्लियामेंट में रखा जाता था. आजादी के पचास साल बाद भी ऐसा होता था. किसी ने सोचा ये क्यों ऐसा था. इसलिए था क्योंकि अंग्रेजों के जमाने से परंपरा थी. जब हमारे यहां शाम के पांच बजते थे, तब ब्रिटेन में 11 बजते थे और उस समय उनके यहां संसद का काम शुरू होता था. जब वाजपेयी जी प्रधानमंत्री बने तब यह परंपरा तोड़ी गई औऱ सुबह 11 बजे बजट रखा जाना शुरू हुआ.

हमारी सोच में पता भी नहीं चलता है कि गुलामी किस कदर दबोच रही है. मित्रों इस सोच के सामने एक स्वाभिमान के साथ खड़े होने की आवश्यकता है. भारत को हीन भाव से देखे जाने की आदत सी हो गई है. भारत से हो, चलो बाजू जाओ. जब वाजपेयी जी ने शासन में आने के कुछ ही समय बाद परमाणु बम विस्फोट किया, तो पूरी दुनिया ने लोहा माना. दुनिया अब हिंदुस्तान का नाम सुनती है, तो कहती है, हां कुछ तो है. मित्रों दुनिया के अंदर हमारे देश का कोई नागरिक क्यों न हो. कोई परंपरा क्यों न हो. आज के युग में समय की मांग की. हिंदुस्तान आजाद होने के बाद भी अगर दूसरे देशों को गौरव से देखा जाता हो, तो हमारे हिंदुस्तान को क्यों न देखा जाए किसी जमाने में चाइना को कौन देखता था. चाइना ने एक शंघाई बना दिया. दुनिया के सामने पेश कर दिया. लोगों की चाइना की तरफ सोचने की आदत बदल गई. ये जो पुराने पर नया चाइना बना, शांघाई के आसपास बना. जापान ने जब बड़ी स्पीड की बुलेट ट्रेन बनाई तो दुनिया ने कहा, अरे भाई कुछ तो है. अमेरिका ने अरबों डॉलर खर्च कर चांद पर भेजा, दुनिया ने लोहा माना.
हमारा भी एक ग्लोबल पोजिशनिंग करना चाहिए. सवा अऱब का देश एक ताकत बनकर उभरना चाहिए। अनेक मार्ग हो सकते हैं. अनेक क्रिया प्रतिक्रिया हो सकती हैं. आज ये सरदार पटेल का स्मारक सिर्फ...सरदार सरोवर डैम बना, सरदार साहब का सपना पूरा हुआ. वो हमारे गुजरात के थे. मगर ये सपना बहुत बड़ा है. ये भव्य स्मारक. जिसकी ऊंचाई हिंदुस्तान की तरह देखने के लिए मजबूर करेगी. इतने बड़े राजे रजवाड़ों को एक करने का काम. अंग्रेजों की कुटिल कूटनीति का पर्दाफाश, ये भारत का सामर्थ हम दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं. अगर इतिहास की धरोहर देखें तो चाणक्य के बाद इस देश को एक करने का काम किसी ने किया, तो वह हैं सरदार पटेल. क्या हम राणा प्रताप का सम्मान करेंगे. हम छत्रपति शिवाजी महाराज का सम्मान करेंगे. हम भगत सिंह, सुखदेव राजगुरु का सम्मान करेंगे. क्या वो बीजेपी के मेंबर थे क्या. क्या उन्हीं का सम्मान होगा देश में, जो भाजपा का सदस्य हो.
दल से बड़ा देश होता है. और देश के लिए मरने वाला हमारे लिए सबसे बढ़कर है. और इसीलिए सरदार साहब को किसी दल के साथ जोड़ना उनका अपमान है. वो दल उनके इतिहास का हिस्सा है. इससे नरेंद्र मोदी भी इनकार नहीं कर सकता. हमें विरासत को कभी बांटना नहीं चाहिए. हमारी विरासतें सांझी होती हैं. लेकिन देश आजाद होने के बाद गांधी जी छुआछूत के खिलाफ जीवन भर लड़ते रहे. मगर ये जो नई राजनीतिक छुआछूत बढ़ गई है. हम इसे भी नष्ट करें.
मित्रों मुझे दो दिन पूर्व पीएम से मिलने का अवसर मिला. उन्होंने एक बात बहुत अच्छी कही. मैं आभार व्यक्त करता हूं. मीडिया के मित्र समझ नहीं आए. बात उलटी तरफ चली. हो सकता है उनकी रोजी रोटी की डिमांड थे. पीएम ने कहा कि सरदार साहब सच्चे सेकुलर थे. हम भी कहते हैं कि देश को सरदार साहब वाला सेकुलरिज्म चाहिए. वोट बैंक वाला नहीं. और इसलिए प्रधानमंत्री जी, सरदार साहब का सेकुलरिज्म चाहिए इस देश को. भारत एक हुआ. राजे रजवाड़े किसी एक संप्रदाय या समाज के नहीं थे. सब अलग अलग परंपराओँ से थे.
इसलिए मित्रों मैं भारत के प्रधानमंत्री का अभिनंदन करता हूं. आग्रह करता हूं. हम सब मिलकर सरदार साहब का सेकुलरिज्म आगे बढ़ाएं कुछ लोगों के मन में आता होगा क्यों इतना बड़ा स्मारक. बाबा साहेब आंबेडकर, उनके कई स्मारक हैं. मगर मानना पड़ेगा कि दलित शोषित समाज के लिए वह भगवान का रूप हैं. और जो भी पीड़ित दलितों के लिए भला चाहते हैं, उन्हें बाबा साहेब आंबेडकर को प्रेरणा मिलती है. तब ये नहीं पूछा जाता कि वो किस दल से थे. उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है. ये साझी विरासत है, हम सबको गर्व होना चाहिए. हम सबका दिल देश के लिए होना चाहिए.
नई पीढ़ी को कहा पता चलेगा कि लौह पुरुष कैसे हुए। वो कौन सी शक्ति थी उनके अंदर. हम सरदार साहब का स्मारक बनाने के साथ साथ हिंदुस्तान के कोने कोने में फिर से एक बार एकता का मंत्र पहुंचाना चाहते हैं. हम इस बात से भली भांति परिचित हैं.कि भारत की प्रगति शांति एकता और सदभाव के बिना नहीं हो सकती. मां के दूध में कभी दरार नहीं हो सकती. प्रांतवाद के झगड़े, भाषावाद के झगड़े, जातिवाद और ऊंच नीच के झगड़े. इन चीजों ने हमारे देश को तबाह कर दिया. किसी दल के किसी राजनेता की झोली तो भर गई होगी, लेकिन मेरी भारत मां का गौरव क्षीण हुआ. अगर हमें वो गौरव फिर से हासिल करना है, तो एकता के मंत्र को घर घऱ तक पहुंचाना होगा. इस स्मारक के जरिए सरदार साहब के सपनों का स्मरण करते हुए, उनकी आवाज जिसे कई बरसों से दबोचा गया था. उसे बुलंद करके. कई लोगों ने सरदार साहब की आवाज पहली बार सुनी होगी. रोंगटे खड़े हो गएं. मन में फीलिंग आता है. हमने सबसे पहले महात्मा मंदिर बनाया. ये मजे की बात है, जब हमने ये मंदिर बनाया. काम अभी भी चल रहा है. लेकिन उस समय हमें किसी ने चैलेंज किया, कि मोदी तुम तो बीजेपी वाले हो, गांधी बीजेपी में नहीं थे. तो क्यों बना रहे हो. मगर जब सरदार साहब की बात आई, तो परेशानी क्यों हो रही है. मित्रों आज गुजरात गर्व महसूस कर रहा है. पहले 31 अक्टूबर को जो सरकारी एड आते थे, उसमें सरदार साहब कहीं नहीं होते थे. आज ऐसा नहीं है. ये गुजरात इफेक्ट है. हमारे महापुरुषों को भुला कैसे दिया जा सकता है.हमारी भी किसी ने आलोचना की हो, तब भी उनके महान कामों की पूजा करना आगे वाली पीढ़ी का काम होता है. हमारी कोशिश है कि हिंदुस्तान की आने वाली पीढ़ी इतिहास को जिए और जाने ये हमारा प्रयास है.
कोई समाज अपने इतिहास को भूलकर के, अपने इतिहास के ग्रासरूट से अगर बिखर जाता है, तो जैसे मूल से उखड़ा हुआ पेड़ कितना भी बड़ा क्यों न हो. वैसे ही समाज की धारा सूख जाती है, इतिहास से उसको ताकत और प्रेरणा मिलती है. रास्ते खोजने को मिलते हैं. हमारे देश के लिए अगर समाज के मन में आवश्यकता है. तो हमारे समाज का इतिहास बोध होना चाहिए. ये सरदार साहब की प्रतिमा के माध्यम से हम आने वाली पीढ़ी को वो नजराना देना चाहते हैं. भाइयों बहनों ये मूर्ति कैसे बनेगी. इसमें हम दुनिया भर के एक्सपर्ट लगाएंगे. छोटा काम नहीं है. कितनी धातुओं को मिलना होगा. ये बता देता हूं कि मूर्ति ऐसी बनेगी, जो सदियों तक सलामत रहे. इस काम को हम हिंदुस्तान की एकता के लिए जोड़ना चाहते हैं. इसलिए तिजोरी से रुपये निकाल मूर्ति बन जाए. ये नहीं चाहते. जन जन को जोड़ना चाहते हैं. क्योंकि सरदार साहब ने एकता का काम किया था, वही सरदार साहब का संदेश बन जाए, इसलिए हर गांव को जोड़ना चाहते हैं. उनसे हम कुछ मांग रहे हैं. क्या मांग रहे हैं. कुछ लोगों ने गंदे शब्द प्रयोग किए। उनके दिमाग में गंदगी है.
किसान, उसके घर में तलवार तोप भी है, तब भी वह सबसे ज्यादा किसी को प्रेम करता है, तो खेती के औजार को करता है. उसके लिए वह सबसे ज्यादा मूल्यवान होता है. सरदार वल्लभ भाई पटेल किसान थे, लौह पुरुष थे. सरदार पटेल ने एकता का काम किया था. इसलिए हिंदुस्तान के हर कोने को जोड़ना है. वह किसान थे, इसलिए किसान को जोड़ना है. वह लौह पुरुष थे, इसलिए लोहे को मांगना है. हमने हर गांव पंचायत से प्रार्थना की है. कि किसान ने खेत के अंदर जिस औजार का प्रयोग किया है. वो औजार जो भारत मां की गोद में खेला है. जिसने गरीब के पेट को भरने के लिए भारत मां के साथ कष्ट झेला है. मुझे तोप नहीं चाहिए. मुझे तलवार चाहिए. मुझे तो मेरे किसान ने खेत में जो औजार इस्तेमाल किया है, उसका टुकड़ा चाहिए. उसे पिघलाएंगे. अच्छे से अच्छा स्टील निकालेंगे. उस लोहे का अर्क उस मूर्ति में जगह पाएगा, तब हिंदुस्तान का हर नागरिक कहेगा, मेरा गांव भी इसमें है. हम गांव के मुखिया के तस्वीर लेंगे, गांव का छोटा सा इतिहास लेंगे. पूरा स्मारक बनेगा, उसमें एक वर्चुअल वर्ल्ड होगा, जिसमें हिंदुस्तान के सात लाख गांवों की तस्वीर होगी, कथा होगी, कोई पचास साल बाद आएगा, तो अपने गांव का इतिहास देखेगा.ये पवित्र काम हम करेंगे.
आज देश में ताजमहल देखने के लिए यात्री आते हैं. अमेरिका में स्टेचू ऑफ लिबर्टी देखने के लिए यात्री जाएंगे. हम चाहते हैं ये पूरे विश्व के लिए महान केंद्र बने. हमारी ऊंचाई को देखे. इस देश की ऊंचाई को नापे. और जब ये पूरा स्मारक बनेगा. हम देशवासियों के लिए वह प्रेरणा का तीर्थ होगा. विश्व भर के लिए प्रवासन का धाम बन जाएगा. हर एक को अपने अपने लिए जो चाहिए वो मिलेगा. इस स्मारक में भारत के भविष्य को हमने जोड़ा है. देश में आदिवासियों के कल्याण के लिए चाहे जिस सरकार ने जो काम किए हों. उन सबको हम संग्रहित करना चाहते हैं. मेरे आदिवासी भाई बहनों के जीवन में नया उमंग उत्साह कैसे आए, वे संपन्न कैसे बनें. अगुवा कैसे बनें. उसके रिसर्च का काम भी इसी स्मारक के तहत हो.
ये देश गांव का देश है. पटेल किसान पुत्र थे. किसान के कल्याण के लिए कौन से नए विज्ञान की जरूरत है, गांव आधुनिकता की तरफ कैसे बढ़े. किसान आधुनिकता के मार्ग को कैसे आगे बढ़ाए. ये उनको शिक्षा दीक्षा कैसे मिले, एग्रीकल्चर के लिए. गांव गरीब किसान के लिए. ये काम भी हम इससे जोड़ना चाहते हैं.
मित्रों दुनिया में इस काम को करने वाली श्रेष्ठ कंपनियों को बुलाया है. तीन साल पहले उस कल्पना को सामने रखा. उसे साकार करने के लिए एक्सपर्ट आए. तीन साल उसके पहलुओं की बारीकी में लगे. तब जाकर हम इसे आगे बढ़ा रहे है. जब हमने पहली बार कहा था इस काम का. मुझे कच्छ के लोगों ने चांदी से तौलकर भेंट दी थी. मैंने पूछा, भई अभी इतनी जल्दी क्यों दे रहे हो. अभी तो योजना बन रही है. तब कच्छ के लोगों ने जवाब दिया. मोदी जी, अगर सरदार साहब न होते, इस बांध का सपना न देखा होता, तो हमारे कच्छ में पानी न पहुंचता, हम उनके कर्जदार हैं. मुंबई गया. वहां चांदी से तौला, वह भी इसी में लगेगा. हमें हिंदुस्तान के जन जन को जोड़ना है. शासन, जन देश की शक्ति, भारत सरकार की शक्ति सबको जोड़ना है. धरती भले गुजरात की हो, सपना हिंदुस्तान का है. हम कई बरसों से कह रहे हैं कि सरदार सरोवर बांध का काम पूरा हो. मगर कुछ लोग हैं, जो बयान नहीं देते, पेट में रोटी नहीं जाते. कुछ मित्रों ने मोदी को समाप्त करने की सुपारी फैलाई है. पता नहीं क्या क्या गंध फैलाते रहते हैं.
मुझे पता कि पीएम की टीम हर शब्द सुनती है, उनके बॉस की टीम सुनती है. इसलिए मैं कहना चाहता हूं, सरदार सरोवर डैम में बस गेट लगाना बाकी है. बाकी काम हो चुका है. गेट के बाद ही सबसे ज्यादा पानी भरेगा. कई बार पीएम से मिला. कहा, तीन साल लगेंगे. बंद मत करने देना, खड़े तो करने तो, मिले पीएम तो बोले कि बात तो आपकी समझने की है. एक साल बाद मिला, तो बोले कि अरे अभी तक नहीं हुआ. फिर मिले तो फिर वही बात. इतना ही नहीं एमपी वगैरह में पुनर्वास को देखने के लिए पूर्व जजों की अध्यक्षता में कमेटी हो. भले महाराष्ट्र में कांग्रेस की और बाकी दो में हमारी सरकार हो. इन तीनों राज्यों ने पुनर्वास का काम पूरा कर दिया. भारत सरकार की कमेटी ने स्वीकार कर लिया. मौखिक रूप से कहा, अखबारों में छपा. अब बस मीटिंग बुलाकर फाइनल ऑर्डर देना है. गेट बना लीजिए. पिछले आठ महीनों से रुका पड़ा है. मैं अफसरों से कहता हूं. पूछो क्या तकलीफ है.साहब आप समझते तो हैं. मैं खुला बोलूं. समझ गए न. मुझे नहीं बोलना. इसीलिए काम रुका है. मैं आज फिर नर्मदा मैया के तट से पीएम को आग्रह करता हूं. महाराष्ट्र गुजरात को पानी चाहिए. मध्य प्रदेश को बिजली चाहिए. महाराष्ट्र का चार सौ करोड़ मिल जाएगा.
मैं यहां बड़ा शिलालेख लगाने को तैयार हूं. ये काम केंद्र सरकार ने किया. मोदी का नाम भी मत लो. कम से कम डैम का काम पूरा करने की इजाजत दो. ऐसे काम में राजनीति नहीं होनी चाहिए. भाइयों बहनों मैं आशा करता हं. इस नर्मदा के तट पर, गुजरात के पशुओं की, गरीबों की, किसानों की, पेड़ पौधों की आवाज देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचेगी. दल से बड़ा देश होता है, ये भाव उनके मन में जगेगा और भारत के लिए इतना बड़ा अच्छा काम, पूरा करें, गर्व करें, रिबन कटें. वो चाहें तो मैं आऊंगा नहीं. मैं आज कहता हूं आपका है. आप आनंद कीजिए, मगर पूरा कीजिए.
भाइयों बहनों, आज जब हम एकता का मंत्र लेकर चले हैं, तब देश को जोड़ना ये सपना लेकर चले हैं तब, सरदार पटेल के भव्य स्मारक का निर्माण करने जा रहे हैं तब, विश्व का सबसे ऊंचा स्टेचू ऑफ लिबर्टी से दो गुना बड़ा, उसका निर्माण करने जा रहे हैं तब, एकता का स्मारक है, एकता का संदेश है, भाषा अनेक, भाव एक, राज्य अनेक, राष्ट्र एक, पंथ अनेक, लक्ष्य एक. बोली अनेक, स्वर एक, रंग अनेक, तिरंगा एक, समाज अनेक, भारत एक, रिवाज अनेक, संस्कार एक, कार्य अनेक, संकल्प एक, राह अनेक, मंजिल एक, चेहरे अनेक, मुस्कान एक. ये एकता का संदेश हम लेकर चले और भाइयों बहनों. ये भारत की विशेषता है,विविधता में एकता.
हम अनेक संप्रदाय पंथ बोली भाषा होंगे, हम सब एक हैं.हमारी एकता की गारंटी ही. हमारे उज्जवल भविष्य की गारंटी है. इस स्मारक से सदियों तक एकता को बनाए रखने का काम इसी तीर्थ क्षेत्र से मिले.
मैं आदरणीय आडवाणी जी का बहुत आभारी हूं. सरदार साहब से उनका लगाव रहा है. इस महान काम में उनका आशीर्वाद मिले, इसके लिए आभारी हूं. देश से प्रार्थना है, हर गांव मिलकर जिम्मेदारी ले. 15 दिसंबर को उनके जम्मदिन के दिन रन फॉर यूनिटी है, देश के नौजवान दौड़ें. हर स्कूल कॉलेज में भाषण हों. निबंध प्रतियोगिता हों. पूरे देश में एकता का ही माहौल बने. राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम. एकता के लिए निरंतर जागरण चाहिए. पुण्य स्मरण चाहिए. एकता के लिए एक होकर चलना चाहिए. सोचना चाहिए, इस मंत्र को पहुंचाने के लिए आज पवित्र काम का प्रारंभ हो रहा है. दोनों हाथ ऊपर कर पूरी ताकत से बोलिए, सरदार पटेल अमर रहें.

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

गरीबों के देश में कुबेर : फोर्ब्स की सूची के 10 अमीर भारतीय


-शीतांशु कुमार सहाय
जिस तरह सारे स्वाद केवल स्वस्थ व्यक्तियों की जिह्वा को ही संतुष्ट करते हैं, उसी तरह जगत की सारी खुशियाँ केवल अमीरों के लिए ही हैं। अपने धन बल से ऐसे लोग समस्त आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। लिहाजा खुशियाँ उनके चरणों को चूमती हैं। महंगाई उनके लिए है जिनकी आय कम है। उनके लिए महंगाई कोई मायने नहीं रखती जिनकी आय असीमित है या यों कहें कि महंगाई के अनुसार उनकी आय भी बढ़ती जाती है। देश में जहाँ एक ओर निर्धनों की संख्या बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ धनकुबेरों की तादाद में भी इजाफा देखा जा रहा है। कम संख्या में ही सही लेकिन अब महिलाएँ भी धनकुबेरों में शामिल हो रही हैं। अमेरिकी आर्थिक पत्रिका ‘फोर्ब्स’ द्वारा जारी सूची के अनुसार, भारत के 100 धनकुबेरों में 5 महिलाएँ शामिल हैं। पुरुषों व महिलाओं की साझा सूची में सावित्री 14वें नंबर पर हैं। उनके बाद 1.9 अरब डॉलर (116 अरब रुपये) संपत्ति के साथ इंदू जैन दूसरे नंबर पर रही हैं। संयुक्त सूची में वह 29वें पायदान पर हैं। थर्मेक्स की अनु आगा तीसरे बायोकॉन की किरण मजूमदार शॉ चौथे व शोभना भरतिया पाँचवें स्थान पर रही हैं। संयुक्त सूची में इनका स्थान क्रमशः 86वाँ, 96वाँ और 98वाँ रहा है।
रिलायंस उद्योग समूह के प्रमुख मुकेश अम्बानी लगातार छठी बार भारत के सबसे बड़े धनकुबेर बने हैं। देश की सबसे अमीर महिला बनी हैं जिन्दल उद्योग समूह की चेयरपर्सन सावित्री जिन्दल। ‘फोर्ब्स’ द्वारा मंगलवार को जारी 100 सबसे अमीर भारतीयों की सूची में शामिल हस्तियों की आय एक साल की तुलना में करीब 3 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 259 अरब डॉलर यानी 15,897 अरब रुपये पर पहुँची है। भारत की अर्थव्यवस्था में सुस्ती के कारण अमीरों की संपत्ति में वृद्धि धीमी रही। ऊँची महंगाई दर व डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में गिरावट के कारण भी इनकी अमीरी की रफ्तार सुस्त रही।
दरअसल, इन दिनों अमेरिका सहित कई प्रमुख देशों में आर्थिक सुस्ती जारी है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। लिहाजा मुकेश अम्बानी व आर्सेलर मित्तल के प्रमुख लक्ष्मी निवास मित्तल की निजी संपत्ति में अधिक वृद्धि नहीं हुई। मुकेश की संपत्ति 21 अरब डॉलर यानी 1,289 अरब रुपये आँकी गयी जिसमें प्रतिवर्ष 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। लक्ष्मी 16 अरब डॉलर यानी 982 अरब रुपये की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर हैं। यों सन फार्मा के स्वामी दिलीप संघवी 13.9 अरब डॉलर अर्थात् 853 अरब रुपये के साथ तीसरे स्थान पर हैं। ‘फोर्ब्स’ की सूची में सबसे शानदार प्रदर्शन संघवी का ही रहा है जिनकी सम्पत्ति में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उन्होंने तीसरे स्थान से विप्रो के स्वामी अजीम प्रेमजी (847 अरब रुपये) को चौथे स्थान पर धकेला। दिलीप की सम्पत्ति 4.7 अरब डॉलर बढ़ी और प्रेमजी की संपत्ति में 1.6 अरब डॉलर जुड़ा। हाल के वर्षों में निर्माण क्षेत्र की चर्चित कम्पनी समूह शपूरजी पलोनजी उद्योग समूह के पलोनजी मिस्त्री टाटा संस के बड़े शेयरधारक के रूप में उभरे हैं। इस वर्ष उनकी सम्पत्ति घटकर 12.5 अरब डॉलर यानी 767 अरब रुपये हो गयी। वह चौथे से खिसक पाँचवें स्थान पर गिरे। उनके पुत्र साइरस मिस्त्री पिछले वर्ष  रतन टाटा के स्थान पर टाटा उद्योग समूह के प्रमुख बने।
अप्रवासी भारतीय कारोबारी हिन्दुजा बन्धु इस वर्ष 9 अरब डॉलर यानी 552 अरब रुपये की सम्पत्ति के साथ नौंवे से उठकर छठे स्थान पर आ गये। शिव नाडर भी ऊपर चढ़े, सातवें स्थान पर आ गये। अदि गोदरेज दो स्थान नीचे आये और 8.3 अरब डॉलर यानी 509 अरब रुपये की सम्पत्ति के साथ आठवें स्थान हैं। आदित्य बिड़ला समूह के अध्यक्ष कुमार मंगलम बिड़ला 7.6 अरब डॉलर (466 अरब रुपये) के साथ एक स्थान ऊपर उठकर नौंवे स्थान पर हैं। सुनील मित्तल 6.6 अरब डॉलर (405 अरब रुपये) संपत्ति के साथ फिर से दसवें स्थान पर हैं। वैसे 100 में शामिल 5 महिलाओं की कुल संपत्ति 8.83 अरब डॉलर यानी 542 अरब रुपये है जो शीर्ष-100 की कुल संपत्ति का 3 प्रतिशत है। गरीबों के देश के इन धनकुबेरों ने गरीबी दूर करने में कोई रुचि नहीं ली जबकि उन गरीबों के पैसे पर ही इनकी अमीरी कायम है।
20 परिवारों के पास 33.77 खरब रुपये
देश के 20 औद्योगिक घरानों के पास करीब 3,37,600 करोड़ रुपये (33.77 खरब) की सम्पत्ति है। शीर्ष 10 में 3 औद्योगिक घराने शामिल हैं। इनमें हिंदुजा बंधु छठे, गोदरेज परिवार आठवें व मित्तल परिवार 10वें नंबर पर है। रुईया, जिंदल व बजाज परिवार भी शीर्ष 20 में जगह बनाने में सफल रहे।

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

जदयू में अन्तर्कलह : नीतीश व शरद परेशान



-शीतांशु कुमार सहाय
घर की कोठरी में बेइज्जती हो तो केवल 2 को ही पता चलता है- एक बेइज्जत करने वाला और दूसरा बेइज्जत होने वाला। ऐसे में बाहर आकर सीना चौड़ा किया जा सकता है, चेहरे पर मुस्कान कायम रखने की कोशिश की जा सकती है। पर, जब बेइज्जती भरी सभा में हो तब? तब तो वह भी कुछ कह जायेगा जो कभी सामने खड़ा होने से भी घबराता था। कुछ ऐसा ही हुआ है बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ राजगीर में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के चिन्तन शिविर में। जदयू अध्यक्ष शरद यादव के साथ दल के नेता चिन्तन में डूबे थे, अपने-अपने चिन्तन को मंच से अभिव्यक्त भी कर रहे थे कुछ जाने-माने नेता। इसी दौरान जब राष्ट्रीय जनता दल से जदयू में आये शिवानन्द तिवारी की बारी आयी तो वे बेवाकी से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की लगे तारीफ करने। वे रूके बिना नीतीश की खिलाफत भी करने लगे। नीतीश-सरकार के एक मंत्री नरेन्द्र सिंह ने भी तिवारी के सुर-में-सुर मिलाया। यों जदयू का अन्तर्कलह पटल पर आ गया। इस अन्तर्कलह के केन्द्र में हैं नरेन्द्र मोदी।
राज्य की जनता ने भाजपा-जदयू गठबन्धन को बहुमत दिया था। बीच में ही जब सरकार से भाजपा पृथक हुई तो कलह का अन्देशा लगाया गया था। वह अन्देशा हाल के महीनों में सच सिद्ध हो रहा है। राज्य में कलह बढ़ा मतलब अपराध में बेतहाशा वृद्धि हुई। पर, एक अन्देशा जो लगाया नहीं गया था, वह भी सामने आया, जदयू में कलह हो गया। पटना में नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली के दिन हुए धमाकों के बाद भाजपा-जदयू नेताओं के बीच राजनीतिक खींचतान के दरम्यान जदयू में बगावती सुर उठे हैं। राजगीर में जदयू के चिन्तन शिविर में पार्टी नेता शिवानन्द तिवारी व मंत्री नरेन्द्र सिंह ने मंच से जमकर बगावती तेवर दिखाये। पर, नीतीश ने अपने भाषण में पार्टी के नेताओं के बगावती तेवरों पर चुप्पी साधे रखी। उन्होंने नरेन्द्र मोदी व भाजपा को निशाना बनाया और मोदी के झूठ गिनाये, उन्हें अहंकारी बताया। अपने दल के अन्तर्कलह पर उनकी जुबान नहीं चली। पर, जब तिवारी की जुबान चली तो बस चलती ही गयी। उन्होंने आरोपों की झड़ी लगा दी- नीतीश ने दल में दूसरी पंक्ति का नेता पनपने ही नहीं दिया, वे जमीनी नेता हैं ही नहीं और पुराने साथियों को भूलकर चाटुकारों से घिरे हैं। मोदी के संघर्ष के कारण स्वयं को तिवारी ने मोदी का प्रशंसक बताया। यही नहीं, मोदी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गुण कूट-कूटकर भरे होने के कारण उनसे डरने की बात भी स्वीकारी शिवानन्द ने। वे इससे पहले भी कई बार बगावती तेवर दिखाते रहे हैं लेकिन उनका यह अब तक का नीतीश कुमार पर सबसे बड़ा हमला है। इससे पार्टी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं।  
इस बीच नीतीश मंत्रिमण्डल के एक सदस्य नरेन्द्र सिंह ने भी मंच से ही नीतीश की कार्यशैली पर निशाना साधा।  आरोपों की झड़ी लगाने में वे तिवारी को भी पीछे छोड़ गये। गर्म तेवर के साथ गरजते हुए सिंह ने कहा कि पार्टी में खून-पसीना बहाने वालों की अनदेखी हो रही है और दरबार लगाने वालों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। उनका निशाना नीतीश का बहुचर्चित जनता दरबार है। सिंह की दहाड़ से नीतीश और शरद पर भी असर पड़ा; क्योंकि उन्होंने यह भी कह डाला कि बगावती तेवर के बदले यदि वे सरकार या दल से निकाले भी जाते हैं तो उन्हें कोई फिक्र नहीं है। एक टूटता है तो एक जुड़ता है। एक रोता है तो एक हँसता है। इसी तर्ज पर जदयू के सम्भावित टूट का फायदा लेने को भाजपा तैयार है। तभी तो नीतीश-सरकार में भाजपा कोटे से मंत्री रहे गिरिराज सिंह ने तिवारी के लिए भाजपा के दरवाजे खोले। वैसे जदयू नेता केसी त्यागी पार्टी में बगावत से इनकार कर रहे हैं। पर, धुआँ उठा है तो आग की सम्भावना से इनकार कैसे किया जा सकता है!

सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

पटना धमाके पर राजनीति जारी : जनता की सुधि नहीं





-शीतांशु कुमार सहाय
यह लोकतन्त्र है। यहाँ हर चीज राजनीति से जुड़ी है। हर चीज पर राजनीति होती है। लिहाजा पटना में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से प्रधानमंत्री के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी की हुंकार रैली से पूर्व हुए 7 विस्फोटों पर भी राजनीतिक सुर सुनाई दे रहे हैं। पक्ष व विपक्ष के नेताओं की ओर से संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर या सोशल वेबसाइटों के जरिये अपने सुर अलाप रहे हैं। रविवार को भाजपा नेताओं के हुंकार के बीच आम जनता के बीच से जो चीत्कार उठी, उस पर किसी का ध्यान नहीं है। ध्यान होगा भी कैसे, क्योंकि फिलहाल बिहार में चुनाव तो है नहीं कि कुछ बातें जनता के पक्ष में भी की जाये! ऐसी ही घटना यदि उन 5 राज्यों में होती, जहाँ विधान सभाओं के चुनाव हैं तो इन नेताओं के सुर बिल्कुल अलग होते। जनता के पक्ष में नेताओं के सुर न अलापने के पीछे तर्क केवल यही है कि इन दिनों नेताओं की नजर में बिहारी मतदाता नहीं हैं। वर्तमान सन्दर्भ ने यह जता दिया कि राजनीति की नजर में जनता के 2 रूप हैं- एक तो आमजनता है, जिसकी सुधि लेना वाजिब नहीं समझते राजनीतिज्ञ और दूसरा रूप है मतदाता का। इनमें दूसरा रूप सभी दलों को पसन्द है। तभी तो सभी दलों ने साबित कर दिया कि उन्हें जनता का आम रूप नहीं मतदाता रूप पसन्द है।
विस्फोट के बाबत भाजपा के सुर में रूखापन है। वहीं, केन्द्र में सत्तासीन काँग्रेस व बिहार में सत्ता से चिपकी जनता दल युनाइटेड के सुर में गजब का ओछापन दीख रहा है। काँग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने रविवार को ट्विटर पर लिखा कि दोषी का पता लगाना नीतीश कुमार के लिए चुनौती है। वे नीतीश को नसीहत देते हैं कि बम धमाकों के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्द न पकड़ा गया तो बिहार में नरेन्द्र मोदी हीरो हो जायेंगे। दिग्विजय ने शब्द तीर चलाया कि नरेन्द्र मोदी की लॉन्चिंग के लिए यह परफेक्ट सेटिंग है। उनके सुर बताते हैं कि धमाके में आतंकी की नहीं, बल्कि भाजपा की सेटिंग है। इसी तरह रविवार को ही जदयू सांसद
साबिर अली ने भी धमाके के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराया। सरकार और प्रशासन को क्लीन चिट देते हुए वे कहते हैं कि बिहार में भाजपा के सत्ता से अलग होने से ही ऐसी घटना घटी। पर, जब जाँच एजेंसियों ने पड़ताल आगे बढ़ायी तो इण्डियन मुजाहिदीन (आईएम) के हाथ होने की बात सामने आयी। आईएम का तहसीन अख्तर उर्फ मोनू के अलावा 2 अन्य आतंकी इम्तियाज व तारिक पुलिस की पकड़ में आये हैं। इनसे महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिल रही हैं। ऐसे में काँग्रेस के बयान बहादुर दिग्विजय व जदयू के साबिर के भाजपा पर लगाये आरोप निराधार सिद्ध हुए। अब वे कुछ नया कहने को अवश्य विचार कर रहे होंगे। ऐसी घटनाओं के बाबत त्वरित प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्षियों पर आरोप तय करने से नेताओं को बाज आना चाहिये।

यों भाजपा ने कई प्रश्न बिहार सरकार से पूछे हैं। पार्टी को लगता है कि सुरक्षा में भारी चूक थी जबकि केन्द्र ने पुख्ता सुरक्षा की नसीहत दी थी। हालाँकि किसी केन्द्रीय सूचना से सोमवार को बिहार के एक वरीय आरक्षी अधिकारी ने इंकार किया है, जैसा रविवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था। इस बीच बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि विस्फोट तभी आरंभ हो गये थे जब नरेन्द्र मोदी पटना के हवाई अड्डे पर आये भी नहीं थे। उनकी बात मानें तो धमाके के बाद रैली को रद्द करने से भगदड़ मच सकती थी, इसलिये मोदी व अन्य नेताओं ने काफी विचार के बाद रैली को संबोधित किया। वैसे गौर करें भाजपा के अरुण जेटली के प्रश्नों पर तो पता चलता है कि गाँधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली के लिए सुरक्षा के इंतजाम नाकाफी थे। इतनी बड़ी रैली थी लेकिन पुलिस का कोई भी बड़ा अधिकारी मौके पर मौजूद नहीं था। प्रशासनिक चूक का इससे बड़ा सबूत नहीं हो सकता; क्योंकि इतनी बड़ी भीड़ को संभालने के लिए गाँधी मैदान पर कोई बड़ा सुरक्षा एक्सपर्ट नहीं था। कोई भी बड़ा पुलिस अधिकारी भाजपा नेताओं से नहीं मिला। मोदी पर हमले का अलर्ट केन्द्र द्वारा 23 सितंबर को ही सभी राज्यों को दिया गया था। सरकार क्यों अपनी नाकामी छिपाने के लिए अलर्ट की बात से इनकार कर रही है? धमाके के बाद सोमवार भी जिंदा बम मिले तो रविवार को पुलिस ने कैसे तलाशी ली थी?

अरुण जेटली के बिहार सरकार से प्रश्न-
-नीतीश सरकार ने गृह मंत्रालय के अलर्ट के बाद भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
-मोदी पर हमले का अलर्ट 23 सितंबर को ही सभी राज्यों को दिया गया था। सरकार क्या अपनी नाकामी छिपाने के लिए अलर्ट की बात से इनकार कर रही है?
-धमाके के बाद आज भी जिंदा बम मिले, तो रविवार को पुलिस ने कैसे तलाशी ली थी?
-आतंकी गांधी मैदान तक बम ले जाने में कैसे कामयाब हुए?
-गांधी मैदान के पास बम निरोधक दस्ता क्यों नहीं तैनात था?
-गांधी मैदान के किसी गेट पर मेटल डिटेक्टर क्यों नहीं था?
-बोरा और झोला लेकर पहुंच रहे लोगों की तलाशी क्यों नहीं ली जा रही थी?
-राज्य का खुफिया विभाग क्या कर रहा था?
-पहला बम फटने के बाद भी पुलिस हरकत में क्यों नहीं आई?