शनिवार, 25 अक्टूबर 2014

छठ व्रत की हैं अनेक कथाएँ / CHHATH

-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान सूर्य की आराधना के महापर्व छठ से कई कथाएँ जुड़ी हैं। छठ भारत की पारंपरिक पूजन विधियों में से एक है और सबसे कठिन व्रतों में भी एक है। चार दिन के छठ व्रत से जुड़ी अनेक कथाएँ भी लोकमानस में प्रचलित हैं। मार्कण्डेय पुराण में आये उल्लेख के अनुसार, सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने को छः भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी के रूप में जाना जाता है। वह ब्रह्मा की मानसपुत्री और बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। कार्तिक मास के शुक्ल षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छः दिनों के बाद भी इसी देवी की पूजा और आराधना कर बच्चे के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु होने की कामना की जाती है। यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है।

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द्रौपदी ने भी रखा था व्रत---
एक श्रुत कथा के अनुसार, जब पाण्डव अपना सारा राजपाट जुए में हार गये तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया और पाण्डवों की मनोकामनाएँ पूर्ण हुईं। पाण्डवों को अपना राजपाट वापस मिल गया। छठ का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। 
वर्ष में दो बार---
छठ पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। एक बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में मनाये जानेवाले छठ को ‘चैती छठ’ और कार्तिक में मनाये जानेवाले छठ को ‘कार्तिकी छठ’ कहा जाता है।
सदियों से चली आ रही है परम्परा---
छठ की परम्परा सदियों से चली आ रही है। एक मान्यता के अनुसार, प्रियव्रत नाम के राजा की कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने की सलाह दी। यज्ञ के फलस्वरुप महारानी ने एक शिशु को जन्म दिया पर वह मृत था। इससे पूरे नगर में शोक की लहर दौड़ गयी। तब एक आश्चर्यजनक घटना घटी। आकाश से एक देवी जमीन पर उतरीं और उन्होंने कहा- ‘‘मैं देवी षष्ठी हूँ और समस्त बालिकाओं की रक्षिका हूँ।’’ इसके बाद देवी ने शिशु को स्पर्श किया और बालक जीवित हो उठा। इसके बाद राजा ने पूरे राज्य में यह पर्व मनाने की घोषणा कर दी।
षष्ठी देवी हैं छठी मैया---
षष्ठी देवी का विवाह भगवान शिव व भगवती पार्वती के प्रथम पुत्र कार्तिक से हुआ। वह पंचत्त्व से इतर छठे तत्त्व से उत्पन्न हुईं, अतः उन्हें षष्ठी देवी कहा जाता है। छठ के गीतों में इन्हें छठी मैया के रूप में याद किया जाता है और सूर्य के साथ स्वतः ही इनकी भी पूजा हो जाती है।


झारखंड और जम्मू-कश्मीर में 25 नवंबर से 5 चरणों में विधानसभा चुनाव / Assembly Election in Jharkhand & Jammu-Kashmir-2014

-Sheetanshu Kumar Sahayचुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर और झारखंड विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान कर दिया है। दोनों राज्यों में मतदान 5 चरणों में होंगे। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का एलान भी किया है। यहां 25 नवंबर को मतदान होंगे। इसके साथ ही दोनों राज्यों में आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने शनिवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस ने मतदान की तारीखों की घोषणा की। इसके मुताबिक, दोनों राज्यों में 25 नवंबर, 2 दिसंबर, 9 दिसंबर, 14 दिसंबर और 20 दिसंबर को मतदान होंगे जबकि मतगणना 23 दिसंबर को होगी। झारखंड विधानसभा का कार्यकाल 3 जनवरी 2015 को खत्म हो रहा है जबकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा 19 जनवरी तक है। जम्मू-कश्मीर में 72 लाख वोटर्स हैं जिनके लिए 10015 मतदान केंद्र बनाए जाएंगे। वहीं झारखंड में दो करोड़ सात लाख मतदाता हैं, जो 24648 मतदान केंद्रों पर वोट डाल पाएंगे। दोनों राज्यों में काँग्रेस समर्थित सरकारें हैं।
अब तक की स्थिति---
जम्मू-कश्मीर में फिलहाल नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास सबसे ज्यादा 28 सीटें हैं। पीडीपी 21 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है और काँग्रेस के पास 17 सीटें हैं। 10 सीटें अन्यों के पास हैं। राज्य में 6 साल तक नेशनल कॉन्फ्रेंस और काँग्रेस के गठबंधन की सरकार रही। 2008 में जम्‍मू-कश्‍मीर की 87 सीटों के लिए हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। नेशनल कॉन्‍फ्रेंस 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। एनसी ने काँग्रेस के समर्थन से राज्‍य में उमर अब्‍दुल्‍ला के नेतृत्‍व में सरकार बनाई जबकि झारखंड में विधानसभा की 81 सीटें हैं। 2009 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी और झारखंड मुक्ति मोर्चा को 18-18 सीटें मिलीं जबकि काँग्रेस की झोली में 13 सीटें आईं और 20 सीटें अन्य को मिलीं। झारखंड में इस समय जेएमएम के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार है, जिसे काँग्रेस का समर्थन हासिल है।
आरक्षित सीटें---
झारखंड में 9 अनुसूचित जाति के लिए और 28 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। इसी तरह जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 7 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में अनुसूचित जनजाति का आरक्षण नहीं है।
दिल्ली विधानसभा चुनावों का संकेत नहीं---
चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा चुनावों को लेकर कोई संकेत नहीं दिया है, बल्कि इसके स्थान पर तीन रिक्त हो चुकी विधानसभा सीटों महरौली, तुगलकाबाद और कृष्णानगर में उपचुनाव की तारीख घोषित की गई है। स्पष्ट है कि अभी दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने के आसार नहीं है। बता दें कि दिल्ली विधानसभा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 3 नवंबर को सुनवाई होनी है, साथ ही उपराज्यपाल नजीब जंग ने भी अपना मत नहीं दिया है। माना जा रहा है कि आयोग इसी का इंतजार कर रहा है। 
जम्मू-कश्मीर में बीजेपी---
जम्‍मू-कश्‍मीर घाटी में पहली बार बीजेपी पूरी ताकत से चुनाव में उतर रही है। बाढ़ आने से पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने साफ कर दिया था कि उनके लिए घाटी में सरकार बनाना पहला उद्देश्य है।  बीजेपी मिशन-44 को मकसद लेकर चल रही है ताकि अपनी सरकार बना सके। दूसरी ओर, इस बार काँग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। उसकी नजर जम्मू और लद्दाख की 37 सीटों पर है। हालांकि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने राज्य में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। उसे 6 सीटों में से तीन पर जीत हासिल हुई है। 87 सीटों वाली मौजूदा विधानसभा में उसके 11 विधायक हैं।

झारखंड विधानसभा चुनाव कार्यक्रम---
पहला चरण-
29 अक्टूबर को अधिसूचना जारी
5 नवंबर तक नामांकन करने की तिथि
25 नवंबर को चुनाव  
दूसरा चरण- 
7 नवंबर को अधिसूचना
14 नवंबर तक नामांकन 
15 को स्क्रूटनी
17 नाम वापस लेने की अंतिम तिथि 
2 दिसंबर को चुनाव
तीसरा चरण-
14 नवंबर अधिसूचना
21 नवंबर नामांकन की अंतिम दिन 
22 डेट ऑफ स्क्रूटनी
9 दिसंबर को चुनाव
चौथा चरण- 
19 नवंबर को अधिसूचना
26 नवंबर नामांकन का लास्ट डेट
27 नवंबर को स्क्रूटनी
29 नवंबर नाम वापसी का अंतिम दिन 
14 दिसंबर को चुनाव
पाँचवाँ चरण-
26 नवंबर अधिसूचना
3 दिसंबर नामांकन का अंतिम दिन
4 दिसंबर स्क्रूटनी
6 दिसंबर नाम वापस लेने का अंतिम दिन
20 दिसंबर को चुनाव

भगवान चित्रगुप्त हैं यमराज के आलेखक, ऐसे प्रकट हुए चित्रगुप्त / BHAGWAN CHITRAGUPTA



-शीतांशु कुमार सहाय
भगवान चित्रगुप्त ब्रह्माजी के 17वें और अंतिम मानसपुत्र हैं। यम द्धितीया को भैयादूज भी कहते हैं। इस दिन बहनों को अपने भाई को हाथ से भोजन कराने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि बहन अगर भाई को भोजन कराती है तो उसकी उम्र बढ़ने के साथ जीवन के कष्ट भी दूर होते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया के दिन यमराज ने अपनी बहन यमुना के घर भोजन किया था, अतः इस तिथि को यम द्धितीया कहते हैं। भैयादूज के दिन ही चित्रगुप्त की पूजा के साथ ही कमल दवात और पुस्तकों की पूजा की जाती है। एक बार युधिष्ठिरजी भीष्मजी से बोले- हे पितामह! आपकी कृपा से मैंने धर्मशास्त्र सुने, परन्तु यमद्वितीया का क्या पुण्य है, क्या फल है यह मैं सुनना चाहता हूँ। आप कृपा करके मुझे विस्तारपूर्वक कहिए। भीष्मजी बोले- तूने अच्छी बात पूछी। मैं उस उत्तम व्रत को विस्तारपूर्वक बताता हूँ। कार्तिक मास के उजले और चैत्र के अँधेरे की पक्ष जो द्वितीया होती है, वह यमद्वितीया कहलाती है। युधिष्ठिरजी बोले- उस कार्तिक के उजले पक्ष की द्वितीया में किसका पूजन करना चाहिए और चैत्र महीने में यह व्रत कैसे हो, इसमें किसका पूजन करें?


भीष्मजी बोले- हे युधिष्ठिर, पुराण संबंधी कथा कहता हूँ। इसमें संशय नहीं कि इस कथा को सुनकर प्राणी सब पापों से छूट जाता है। सतयुग में नारायण भगवान्‌ से, जिनकी नाभि में कमल है, उससे चार मुँह वाले ब्रह्माजी उत्पन्न हुए, जिनसे वेदवेत्ता भगवान्‌ ने चारों वेद कहे। नारायण बोले- हे ब्रह्माजी! आप सबकी तुरीय अवस्था, रूप और योगियों की गति हो, मेरी आज्ञा से संपूर्ण जगत्‌ को शीघ्र रचो। हरि के ऐसे वचन सुनकर हर्ष से प्रफुल्लित हुए ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मणों को, बाहुओं से क्षत्रियों को, जंघाओं से वैश्यों को और पैरों से शूद्रों को उत्पन्न किया। उनके पीछे देव, गंधर्व, दानव, राक्षस, सर्प, नाग जल के जीव, स्थल के जीव, नदी, पर्वत और वृक्ष आदि को पैदा कर मनुजी को पैदा किया। इनके बाद दक्ष प्रजापतिजी को पैदा किया और तब उनसे आगे और सृष्टि उत्पन्न करने को कहा। दक्ष प्रजापतिजी से 60 कन्या उत्पन्न हुई, जिनमें से 10 धर्मराज को, 13 कश्यप को और 27 चंद्रमा को दीं। कश्यपजी से देव, दानव, राक्षस इनके सिवाय और भी गंधर्व, पिशाच, गो और पक्षियों की जातियाँ पैदा हुईं।
धर्मराज को धर्म प्रधान जानकर सबके पितामह ब्रह्माजी ने उन्हें सब लोकों का अधिकार दिया और धर्मराज से कहा कि तुम आलस्य त्यागकर काम करो। जीवों ने जैसे-जैसे शुभ व अशुभ कर्म किए हैं, उसी प्रकार न्यायपूर्वक वेद शास्त्र में कही विधि के अनुसार कर्ता को कर्म का फल दो और सदा मेरी आज्ञा का पालन करो। ब्रह्माजी की आज्ञा सुनकर बुद्धिमान धर्मराज ने हाथ जोड़कर सबके परम पूज्य ब्रह्माजी को कहा- हे प्रभो! मैं आपका सेवक निवेदन करता हूँ कि इस सारे जगत के कर्मों का विभागपूर्वक फल देने की जो आपने मुझे आज्ञा दी है, वह एक महान कर्म है। आपकी आज्ञा शिरोधार्य कर मैं यह काम करूँगा कि जिससे कर्त्ताओं को फल मिलेगा, परन्तु पूरी सृष्टि में जीव और उनके देह भी अनन्त हैं। देशकाल ज्ञात-अज्ञात आदि भेदों से कर्म भी अनन्त हैं। उनमें कर्ता ने कितने किए, कितने भोगे, कितने शेष हैं और कैसा उनका भोग है तथा इन कर्मों के भी मुख्य व गौण भेद से अनेक हो जाते हैं एवं कर्ता ने कैसे किया, स्वयं किया या दूसरे की प्रेरणा से किया आदि कर्म चक्र महागहन हैं। अतः मैं अकेला किस प्रकार इस भार को उठा सकूँगा, इसलिए मुझे कोई ऐसा सहायक दीजिए जो धार्मिक, न्यायी, बुद्धिमान, शीघ्रकारी, लेख कर्म में विज्ञ, चमत्कारी, तपस्वी, ब्रह्मनिष्ठ और वेद शास्त्र का ज्ञाता हो।
धर्मराज की इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक किए हुए कथन को विधाता सत्य जान मन में प्रसन्न हुए और यमराज का मनोरथ पूर्ण करने की चिंता करने लगे कि उक्त सब गुणों वाला ज्ञानी लेखक पुरुष होना चाहिए। उसके बिना धर्मराज का मनोरथ पूर्ण न होगा। तब ब्रह्माजी ने कहा- हे धर्मराज! तुम्हारे अधिकार में मैं सहायता करूँगा। इतना कह ब्रह्माजी ध्यानमग्न हो गए। उसी अवस्था में उन्होंने 11 हजार वर्ष तक तपस्या की। जब समाधि खुली तब अपने सामने श्याम रंग, कमल नयन, शंख की सी गर्दन, गूढ़ शिर, चंद्रमा के समान मुख वाले, कलम, दवात और पानी हाथ में लिए हुए, महाबुद्धि, देवताओं का मान बढ़ाने वाला, धर्माधर्म के विचार में महाप्रवीण लेखक, कर्म में महाचतुर पुरुष को देख उसे पूछ कि तू कौन है? तब उसने कहा- ''हे प्रभो! मैं माता-पिता को तो नहीं जानता, किन्तु आपके शरीर से प्रकट हुआ हूँ, इसलिए मेरा नामकरण कीजिए और कहिए कि मैं क्या करूँ?'' ब्रह्माजी ने उस पुरुष के वचन सुन अपने हृदय से उत्पन्न हुए उस पुरुष को हँसकर कहा- ''तू मेरी काया से प्रकट हुआ है, इससे मेरी काया में तुम्हारी स्थिति है, इसलिए तुम्हारा नाम कायस्थ चित्रगुप्त है। धर्मराज के पुर में प्राणियों के शुभाशुभ कर्म लिखने में उसका तू सखा बने, इसलिए तेरी उत्पत्ति हुई है।''  भगवान चित्रगुप्त को ब्रह्माजी ने भगवती की तपस्या कर आशीर्वाद पाने की सलाह दी। ब्रह्माजी ने चित्रगुप्त से यह कहकर धर्मराज से कहा- ''हे धर्मराज! यह उत्तम लेखक तुझको मैंने दिया है जो संसार में सब कर्मसूत्र की मर्यादा पालने के लिए है।'' इतना कहकर ब्रह्माजी अन्तर्ध्यान हो गए।
चित्रगुप्त कोटि नगर को जाकर चण्ड-प्रचण्ड ज्वालामुखी कालीजी के पूजन में लग गये। उपवास कर उन्होंने भक्ति के साथ चण्डिकाजी की भावना मन में की। उसने उत्तमता से चित्त लगाकर ज्वालामुखी देवी का जप और स्तोत्रों से भजन-पूजन और उपासना इस प्रकार की- ''हे जगत्‌ को धारण करने वाली! तुमको नमस्कार है, महादेवी! तुमको नमस्कार है। स्वर्ग, मृत्यु, पाताल आदि लोक-लोकान्तरों को रोशनी देने वाली, तुमको नमस्कार है। सन्ध्या और रात्रि रूप भगवती तुमको नमस्कार है। श्वेत वस्त्र धारण करने वाली सरस्वती तुमको नमस्कार है। सत, रज, तमोगुण रूप देवगणों को कान्ति देने वाली देवी, हिमाचल पर्वत पर स्थापित आदिशक्ति चण्डी देवी तुमको नमस्कार है।'' तपस्या पूर्ण होने पर देवताओं और ऋषियों के साथ ब्रह्माजी आशीर्वाद देने पहुँचे। ब्रह्माजी ने उन्हें अमर होने का वरदान दिया। यमराज के आलेखक भगवान चित्रगुप्त की पूजा आश्विन शुक्ल पक्ष द्धितीया को की जाती है।
चित्रगुप्त का विवाह क्षत्रिय वर्ण के विश्वभान की पुत्र श्राद्धदेव मुनि की कन्या नन्दिनी से हुआ। इनका दूसरा विवाह ब्राह्मण वर्ण के कश्यप ऋषि के पोते सुशर्मा की पुत्री इरावती से हुआ। इनके 12 पुत्र हुए जिनके वंशज इन दिनों कायस्थ की 12 उपजातियों के रूप में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में वास करते हैं।

यमराज के साथ रहकर चित्रगुप्त मनुष्य के जीवन-मरण और पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष द्धितीया (यम द्वितीया) को कलम व दवात की पूजा होती है। यह कायस्थों की सबसे बड़ी पूजा है। वर्ष 2014 का चित्रगुप्त पूजा 25 अक्तूबर को है। आप सबको चित्रगुप्त पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ!

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

दीपावली में महालक्ष्म्यष्टकम् का पाठ / Read Mahālakshmyashtakam on Deepawali


-शीतांशु कुमार सहाय
देवराज इंद्र ने देवी महालक्ष्मी की स्तुति की। वह स्तोत्र 'महालक्ष्म्यष्टकं' जन कल्याण के लिए विख्यात हुआ। महालक्ष्मी की दृष्टि मात्र पड़ जाने से व्यक्ति श्री युक्त हो जाता है। प्रत्येक को इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करके प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिए। दीपावली के पावन अवसर पर आप भी धन व ऐश्वर्य की अधिठात्री देवी लक्ष्मी की आराधना के दौरान महालक्ष्म्यष्टकम् का सस्वर पाठ करें और माता की कृपा प्राप्त करें।

महालक्ष्म्यष्टकम्

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 1।।
नमस्ते गरूडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 2।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 3।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 4।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 5।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 6।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि‍।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 7।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते।। 8।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिमान्नरः।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।। 9।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं यः पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वितः।। 10।।
त्रिकालं यः पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।। 11।।

|| इति इन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् ||

आयी दीपावली : जलाइये प्यार का दीया / Deepawali came : Lamp The Lamp of Love



-शीतांशु कुमार सहाय

ह्रीं बीज मंत्र में वास करनेवाली माता धनेश्वरी अपने धनाध्यक्ष कुबेर के साथ आप पर अनवरत् भौतिक-अभौतिक ऐश्वर्यवर्षण करती रहें- हृदय की यही पुकार, हो आप को स्वीकार! दीपावली की असीम शुभकामनाएँ!

दिन गिनते-गिनते फिर बीत ही गया पूरा एक वर्ष। उड़ान की बात तो दूर, सोच ने पर फड़फड़ाये भी नहीं और पुनः आ गयी दीपावली। क्या-क्या सोचा था मगर कुछ हुआ नहीं! कुछ हुए भी तो आधे-अधूरे! कुछ तो सोच की परिधि से बाहर आ भी न सके! कुछ हसरतें तो सोच की धरातल पर भी नहीं आये! यदि आपके साथ ऐसा हुआ है तो यकीन मानिये कि आपके हाथ से सफलताएँ लगातार फिसल रही हैं। जब असफलताएँ हाथ लगती रहेंगी तो तमाम पर्व-त्योहारों का मजा आता नहीं, मजा किरकिरा हो जाता है। किरकिराते मजे का समूल बदलने की शक्ति वास्तव में मनुष्य के हाथों में है। बस, करना यही है कि दिल से प्यार का एक दीया जलाना है। इसके उजियारे में उन हसरतों के सिलसिले को सजाना है; ताकि उस फेहरिश्त पर नजर पड़ते ही याद ताजा हो जाये। ऐसा करने से तमाम हसरतें नतीजे के मुकाम तक अवश्य ही पहुँचेंगी।

दीपावली कब से और क्यों मनायी जाती है, इस बिन्दु पर मतैक्य नहीं है। उस मतभिन्नता में पड़ने के बदले कीजिये वही जो आपको अच्छा लगता है। जरूरी नहीं कि जो एक को पसन्द है वही दूसरे को भी पसन्द हो। लिहाजा अपनाइये वही जिससे औरों को हानि न हो। निश्चय ही वही कार्य सराहनीय है जिसे समाज भी सराहे, जिससे किसी का दिल न दुखाये। पर, अफसोस यही है कि इन दिनों वही ज्यादा हो रहा है जिसे अधिकतर लोग पसन्द नहीं करते हैं। समाज के कथित अगुआ व्यक्ति उन कार्यों को अंजाम दे रहे हैं जो हर किनारे से आलोचित होते हैं, निन्दित होते हैं। यहाँ किसी का नाम लेना उचित नहीं है। पर, इतना तो कहना ही पड़ेगा कि लोकतन्त्र में तन्त्र से जुड़े अधिकतर लोग वही कर रहे हैं जो लोक यानी जनता को पसन्द नहीं, उनके कार्यों से लोकोपकार कम, लोकापकार अधिक हो रहा है। हम यहाँ तन्त्र से नहीं, लोक से मुखातिब हैं कि करें वही जो लोकोपकारी हो। चूँकि वर्तमान दौर पूर्णतः व्यावसायिक है, लिहाजा हर क्षेत्र को व्यवसाय से जोड़कर देखा जाता है। इस व्यावसायिक नजरिये का अपवाद पर्व-त्योहार भी नहीं हैं। दीपावली को भी व्यवसायियों ने अपने हित में उपयोग किया है, परम्परा में व्यावसायिकता को जोड़ दिया है। तभी तो दीपावली के पावन अवसर पर पटाखे छोड़ने की प्रदूषणयुक्त परम्परा को शामिल किया है। यदि समुद्र मन्थन में लक्ष्मी प्रकट हुईं तो दीप जलाकर देवों द्वारा उनके स्वागत की बातें ग्रन्थों में मिलती हैं मगर पटाखे छोड़ने की कला का प्रदर्शन देवताओं ने नहीं किया था। अगर भगवान राम से दीपावली को जोड़ें तो उनके वनवास से लौटने पर अयोध्यावासियों के दीपोत्सव के बीच कहीं विस्फोट की बातों का जिक्र नहीं मिलता। तेज पटाखों को छोड़ने से पूर्व आस-पड़ोस के किसी हृदय रोगी या किसी अन्य बीमार की राय ले लें। इसी तरह कम आवाज वाले पटाखों में आग लगाने से पूर्व किसी बच्चे से पूछें। दोनों स्थितियों में पता यही चलता है कि आपका व्यवहार उनके लिए क्षतिकारक है।

दरअसल, दीपावली को कई नजरिये से देखा जाता है। सबके नजरिये पृथक हो सकते हैं। यदि जेब गर्म हो तो वर्ष में एक दिन नहीं पूरे वर्ष की हर रात दीपावली व हर दिन होली ही है। पर, उस देश में जहाँ की एक-चौथाई आबादी को दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल पाता, वहाँ रुपये में आग लगाना उन दुखियों का मखौल उड़ाना ही तो है। जरूरी नहीं कि 100 दीये ही जलाएँ, एक ही दीया जलाइये, पूरे मन से, दिल से और पूरे वर्ष वैसों के साथ प्यार का दीया जलाइये जो आपके खर्च की सीमा का कभी अन्दाज भी नहीं लगा पाते। प्यार का एक दीया केवल घर को ही नहीं, समाज को रौशन करेगा! ...तो कीजिये दीपावली एंज्वाय और माता धनेश्वरी का इस मंत्र से आराधना करें-
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते।।

सोमवार, 13 अक्टूबर 2014

झारखंड : विधानसभा चुनाव-2014 में तबाही मचाने का षड्यन्त्र नाकाम, माओवादी मुखलाल धराया, हथियारों का और विस्फोटक का जखीरा बरामद



 -शीतांशु कुमार सहाय
भाकपा माओवादी के उत्तरी छोटनागपुर जोनल कमेटी के सदस्य मुखलाल महतो उर्फ मोछू उर्फ भगत (30) को सोमवार राँची में सोमवार 13 अक्तूबर 2014 को पुलिस ने मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किया। डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि गुप्त सूचना मिली थी कि कुख्यात नक्सली राममोहन और मुखलाल महतो अपने हथियार बंद दस्ते के साथ सिल्ली के जंयतीबेड़ा स्थित जुमला में बैठक करने वाले है। श्री कुमार ने बताया कि सूचना के बाद ऑपरेशन स्वर्णरेखा चलाया गया। दस्ता जुमला स्थित नयाकोचा में शनिवार 11 अक्तूबर की रात बैठक कर रहा था। सूचना के बाद रविवार को सुबह 4.30 बजे जैसे ही पुलिस टीम पहुंची। पहाड़ से नक्सलियों ने फायरिंग शुरु कर दी। पुलिस ने भी जबावी फायरिंग शुरु की। नक्सली फायरिंग करते हुए अंधेरे और झाड़ी का फायदा उठाकर भागने लगे। इसी दौरान एक नक्सली को पकड़ा गया। उसने पूछताछ में अपना नाम मुखलाल बताया। पूछताछ में उसने बताया कि विधानसभा में मतदान को प्रभावित करने और पुलिस पार्टी पर हमले की योजना थी।
संवाददाता सम्मेलन में जानकारी देते आरक्षी महानिदेशक राजीव कुमार

डीजीपी ने बताया कि ऑपरेशन के दौरान हथियारों का जखीरा बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि मुखलाल बोकरो, रामगढ़, सिल्ली, गिरिडीह में सक्रिय था। इसके खिलाफ 50 से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज है। टीम स्वर्णरेखा में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी हर्षपाल सिंह, सीआरपीएफ के आर के मिश्रा, दिलीप कुमार सिंह, अंशुमन नीलरत्न सहित झारखंड जगुआर तथा अन्य सशस्त्र बल शामिल थे। प्रेस कांफ्रेस में झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती, एडीजी केएस मीणा, आइजी सह प्रवक्ता अनुराग गुप्ता, आइजी एमएम भाटिया, डीआइजी प्रवीण कुमार, एसएसपी प्रभात कुमार सहित अन्य अधिकारी मौजूद थे।
संवाददाता सम्मेलन के दौरान फुर्सत के क्षण में सजल चक्रवर्ती ने ली चाय की चुस्की

हथियारों का जखीरा बरामद---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर राँची के सिल्ली से दो रायफल, 110 गोली, तीन ग्रेनेड, 40 पीस जिलेटीन, 4 पीस डेटोनेटर, एक मोबाइल, 11 गोली, 15 विभिन्न हथियारों की गोलियों का खोखा, 8 मोबाइल चार्जर, एक केन, 10 मीटर तार, नक्सली साहित्य, रसीद, दैनिक उपयोग के सामान बरामद किये गये। डीजीपी ने बताया कि मुखलाल की निशानदेही पर ही बोकारो के महुआटांड थाना क्षेत्र के असनापानी की पहाड़ी और जंगल क्षेत्र से सर्च करने पर एक एके 47, 54 जिंदा केन बम, 100 डेटोनेटर, 14 क्लेमोर मांइस, 16 केन, एक स्ट्रील ड्रम, 9 स्वीच बम बनाने के सामान और उपकरण बरामद किये गये है। उन्होंने बताया कि बोकारों के कसमार थाना क्षेत्र के तिरियोनाला पहाड़ी व जंगल से 4 केन बम, 7 कोडेक्स वायर, विद्युत तार, एक पाइप बम बरामद किया गया है। उन्होंने बताया कि अन्य बताये ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है।
2 लाख रुपये का चेक देते मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती
टीम को दिया 2 लाख का ईनाम---
डीजीपी राजीव कुमार ने बताया कि टीम में शामिल पुलिसकर्मियों को दो लाख रुपये नकद दिये गये। रुपये मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने सभी अधिकारियों को दिये। श्री कुमार ने बताया कि नक्सलियों के मूवमेंट की सूचना देने वाले को 50 हजार रुपये नकद इनाम दिया गया।

परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है, टीम इतिहास बना देती है : सजल

झारखंड के मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती ने कहा कि परिस्थिति अनोखी टीम बना देती है। टीम इतिहास बना देती है। श्री चक्रवर्ती पुलिस मुख्यालय में चल रहे प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पहुँचे थे। उन्होंने कहा कि राँची की पुलिस टीम में एसपी ग्रामीण सुरेन्द्र कुमार झा, एएसपी अभियान हर्षपाल सिंह ने राज्य पुलिस में अनोखी पहचान बनायी है। कुछ दिनों पहले कुख्यात नक्सली प्रसाद जी को भी गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने टीम की सराहना की। मुख्य सचिव ने राज्य में शहीद पुलिसकर्मियों के लिए शहीद स्मारक बनाये जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आगामी 19 अक्तूबर को पुलिस शहीद समारोह के आयोजन में बेहतर थीम के साथ काम किया जाना चाहिए।
मुखलाल ने इन घटनाओं को दिया था अंजाम---
2014 में बोकारो के लुगु घाटी में लोकसभा चुनाव में पुलिस वाहन को विस्फोट कर उड़ाना।
झुमरा पहाड़ के समीप पन्दना टांड के पास पुलिस जीप को विस्फोट कर उड़ाना।
2014 अगस्त में महुआटांड के चौकीदार की हत्या।
2009 में बोकारो के पंचमों के चौकीदार रामधनी गंझू की हत्या।
2009 में बोकारो में राहावान के बंधु महतो की हत्या।
चुरचु के टुटकी गांव में डिलु महतो की हत्या।
रामगढ़ के गोला में जोभिया गांव में वाहनों को जलाना।
रामगढ़ के गोला के खाखरा में वाहनों को जलाना।
अनगड़ा के हापादाग के जंगल में पुलिस पर हमला।

शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2014

सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी : नोबेल शांति पुरस्कार-2014 विजेता की प्रमुख बातें / Social Worker Kailash Satyarthi : Nobel Peace Prize-2014 Winner's Main Points


मलाला यूसुफजई और कैलाश सत्यार्थी

-शीतांशु कुमार सहाय
भारत के सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को वर्ष 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से देने की घोषणा की गई। सत्यार्थी भारत में जन्मे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें नोबल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है और नोबल पुरस्कार पाने वाले सातवें भारतीय हैं। कैलाश सत्यार्थी बच्चों के अधिकार के लिए संघर्ष करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो सालों से बाल अधिकार के लिए संघर्षरत हैं। कैलाश सत्यार्थी के बारे में प्रमुख बातें---
(1.) कैलाश का जन्म मध्य प्रदेश के विदिशा में 11 जनवरी 1954 को हुआ था।
(2.) कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1980 में बालश्रम के खिलाफ 'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की। उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है।

(3.) गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। बाल श्रमिकों को छुडाने के दौरान उन पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए हैं। दिल्ली की एक कपड़ा फैक्ट्री में 17 मार्च 2011 को छापे के दौरान उन पर हमला किया गया था। इससे पहले 2004 में ग्रेट रोमन सर्कस से बाल कलाकारों को छुडाने के दौरान उन पर हमला हुआ। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के रूप में उनकी संस्था लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय है। दिल्ली एवं मुंबई जैसे देश के बड़े शहरों की फैक्टरियों में बच्चों के उत्पीड़न से लेकर ओडिशा और झारखंड के दूरवर्ती इलाकों से लेकर देश के लगभग हर कोने में उनके संगठन ने बंधुआ मजदूर के रूप में नियोजित बच्चों को बचाया। उन्होंने बाल तस्करी एवं मजदूरी के खिलाफ कड़े कानून बनाने की वकालत की और अभी तक उन्हें मिश्रित सफलता मिली है। बाल मित्र ग्राम वह मॉडल गांव है जो बाल शोषण से पूरी तरह मुक्त है और यहां बाल अधिकार को तरजीह दी जाती है। 2001 में इस मॉडल को अपनाने के बाद से देश के 11 राज्यों के 356 गांवों को अब तक बाल मित्र ग्राम (चाइल्ड फ्रेंडली विलेज) घोषित किया जा चुका है। इन गांवों के बच्चे स्कूल जाते हैं, बाल पंचायत, युवा मंडल और महिला मंडल में शामिल होते हैं और समय-समय पर ग्राम पंचायत से बाल समस्याओं के संबंध में बातें करते हैं। ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बाल मित्र ग्राम में 14 साल के सभी बच्चों को मुफ्त, व्यापक और स्तरीय शिक्षा के साथ ही लड़कियां स्कूल न छोड़ें, इसलिए स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं मौजूद हों यह सुनिश्चित करती है।
(4.) कैलाश सत्यार्थी ने 26 साल की उम्र में अपना इलेक्ट्रिकल इंजीनियर का पेशा छोड़कर बच्चों के अधिकारों के लिए काम करना शुरू किया था। 
(5.) कैलाश सत्यार्थी ने 'रगमार्क' (Rugmark) की शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है। इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ काम करना था।
(6.) कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए।
(7.) कैलाश सत्यार्थी यूनेस्को के सदस्य भी रहे हैं।
(8.) वे नई दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उनके परिवार में पत्नी सुमेधा, उनकी बेटी, बेटा और बहू शामिल हैं। उनके साथ उनकी संस्था 'बचपन बचाओ आंदोलन' द्वारा बचाए गए बच्चे भी रहते हैं।
(9.) नोबेल से पहले उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं। इसमें 2009 में यूएस का डिफेंडर्स ऑफ डेमोक्रेसी अवार्ड, 2008 में स्पेन का एलफोंसो कामिन इंटरनेशनल अवार्ड, 2007 में मेडेल ऑफ इटेलियन सीनेट अवार्ड और फ्रीडम अवार्ड, रॉबर्ट एफ. केनेडी इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (अमेरिका) और फ्रेडरिक एबर्ट इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड (जर्मनी) शामिल हैं। इसके साथ ही 2007 में ही यूस लिस्ट ऑफ 'हीरोज एक्टिंग टू एंड मार्डन डे स्लेवरी' में सत्यार्थी का नाम शामिल किया गया था।
(10.) उन्हें 10 दिसंबर 2014 को यह पुरस्कार नार्वे की राजधानी ओस्लों में दिया जाएगा। इस पुरस्कार के साथ 12 करोड़ डॉलर (7,35,54,00,000 रुपये) की धनराशि भी दी जाएगी।
(11.) साल 2014 का शांति के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों एवं युवाओं के दमन के खिलाफ और बच्चों की शिक्षा की दिशा में काम करने के लिए दिया गया है।
(12.) मदर टेरेसा (1979) के बाद कैलाश सत्यार्थी सिर्फ दूसरे भारतीय हैं जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया है।
(13.) कैलाश सत्यार्थी ने नोबेल शांति पुरस्कार मिलने के बाद अपनी प्रतिक्रिया में खुशी जताई। उन्होंने कहा, ''मैं काफी खुश हूं। यह बाल अधिकारों के लिए हमारी लड़ाई को मान्यता है। मैं इस आधुनिक युग में पीड़ा से गुजर रहे लाखों बच्चों की दुर्दशा पर काम को मान्यता देने के लिए नोबेल समिति का शुक्रगुजार हूं।'' 
(14.)  कैलाश सत्यार्थी का अधिकांश कार्य राजस्थान और झारखंड के गांवों में होता है।
(15.) उनके बारे में जानने की लोगों की दिलचस्पी का आलम यह है कि उनकी वेबसाइट पुरस्कार की घोषणा के पाँच मिनट के भीतर ही क्रैश हो गई। पुरस्कार की घोषणा के चंद मिनटों के भीतर ही कैलाश सत्यार्थी ट्विटर पर टॉप ट्रेंड्स में भी कुछ देर शामिल रहे।
(16.) भारत के राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि इस पुरस्कार को बाल श्रम जैसी जटिल सामाजिक समस्या के समाधन में भारत के नागरिक समाज के योदान को मान्यता देने और देश से बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने में सरकार के साथ सहयो की उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफ़ज़ई को नोबेल जीतने पर बधाई दी। उन्होंने इसके लिए ट्विटर का सहारा लिया। मोदी ने लिखा, "इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है। कैलाश सत्यार्थी ने ऐसे उद्देश्य के लिए पूरा जीवन लगाया है जो पूरी मानवता के लिए अहम है। मैं उनके प्रयासों के लिए उन्हें सलाम करता हूँ।" मोदी ने मलाला को भी बधाई देते हुए लिखा, "मलाला यूसुफ़ज़ई का जीवन धैर्य और साहस की यात्रा है। मैं उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार जीतने पर बधाई देता हूँ।"
(17.) कैलाश इस समय वह ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर (बाल श्रम के खिलाफ वैश्विक अभियान) के अध्यक्ष भी हैं। सत्यार्थी संस्था की वैश्विक सलाहकार परिषद से भी जुड़े रहे हैं। इस संस्था में दुनिया के भर के एनजीओ, शिक्षक और ट्रेड यूनियनें काम करती हैं, जो शिक्षा के लिए ग्लोबल कैंपेन भी चलाती हैं।
(18.) अब तक इन भारतीयों को मिले नोबेल पुरस्कार--- बाल श्रम उन्मूलन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले कैलाश सत्यार्थी प्रतिष्ठित नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले 8वें और शांति के क्षेत्र में यह पुरस्कार पाने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं। इससे पहले यह पुरस्कार जिन भारतीयों को दिए गए हैं वे हैं---
रवींद्र नाथ टैगोर- 1913 - साहित्य
सीवी रमण- 1930 - भौतिक विज्ञान
हरगोविंद खुराना- 1968 - चिकित्सा औषधि
मदर टेरेसा - 1979 - शांति
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर - 1983 - भौतिक विज्ञान
अमर्त्य सेन - 1998 - अर्थशास्त्र
वी रामकृष्णन - 2009 - रसायन शास्त्र