-शीतांशु कुमार सहाय
नवरात्र के अन्तिम नवम् दिवस को आदिशक्ति दुर्गा के नवम् स्वरूप ‘सिद्धिदात्री’ की आराधना की जाती है। सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने के कारण ही इन्हें ‘सिद्धिदात्री’ कहा गया। सभी देवता, ऋषि, गन्धर्व, यक्ष, दैत्य, दानव, राक्षस और मनुष्य निरन्तर इन की उपासना में संलग्न हैं।
चार भुजाओंवाली माँ सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है। कहीं-कहीं माँ कमल पुष्प पर भी आसीन दीखती हैं। माँ की ऊपरवाली दायीं भुजा में गदा और नीचे की दायीं भुजा में चक्र है। इसी तरह ऊपरवाली बायीं भुजा में कमल और निचली बायीं भुजा में शङ्ख है। इन्हें नवम् दुर्गा भी कहते हैं।
माँ सिद्धिदात्री समस्त सिद्धियाँ अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। ‘ब्रह्मवैवर्त्तपुराण’ में श्रीकृष्ण के जन्मखण्ड में अठारह सिद्धियाँ बतायी गयी हैं-
१ .अणिमा,
२ .लघिमा,
२ .लघिमा,
३ .प्राप्ति,
४ .प्राकाम्य,
४ .प्राकाम्य,
५ .महिमा,
६ .ईशित्व-वशित्व,
६ .ईशित्व-वशित्व,
७ .सर्वकामावसायिता,
८ .सर्वज्ञत्व,
८ .सर्वज्ञत्व,
९ दूरश्रवण,
१० .परकायप्रवेशन,
१० .परकायप्रवेशन,
११ .वाक्सिद्धि,
१२ .कल्पवृक्षत्व,
१२ .कल्पवृक्षत्व,
१३ .सृष्टि,
१४ .संहारकरणसामर्थ्य,
१४ .संहारकरणसामर्थ्य,
१५ .अमरत्व,
१६ .सर्वन्यायकत्व,
१६ .सर्वन्यायकत्व,
१७ .भावना और
१८ .सिद्धि।
१८ .सिद्धि।
एक अन्य ग्रन्थ ‘मार्कण्डेयपुराण’ में सिद्धियों की संख्या मात्र आठ बतायी गयी है-
१ . अणिमा,
२ . महिमा,
२ . महिमा,
३ . गरिमा,
४ . लघिमा,
४ . लघिमा,
५ . प्राप्ति,
६ . प्राकाम्य,
६ . प्राकाम्य,
७ . ईशित्व और
८ वशित्व।
८ वशित्व।
नवम् दुर्गा माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति हुई थी। ऐसा ‘देवीपुराण’ ग्रन्थ में उल्लेख है। ग्रन्थ के अनुसार, सिद्धिदात्री की अनुकम्पा से शिव का आधा शरीर देवी का हो गया था। इस प्रकार महादेव को ‘अर्द्धनारीश्वर’ भी कहा जाने लगा।
सभी तरह की मनोकामनाओं और सिद्धियों को प्रदान कर माँ सिद्धिदात्री अपने भक्तों की उच्चस्तरीय परीक्षा लेती हैं। वास्तव में ये दोनों कामना व सिद्धि मुक्ति के मार्ग के प्रलोभन हैं। इन्हें प्राप्त करने पर प्रायः गर्व का अनुभव होता है और अहंकार प्रकट हो जाता है। गर्व और अहंकार दोनों ही पतन के कारक हैं। एक बार पतन होने पर पुनः शिखर पर पहुँचना अत्यन्त दुष्कर हो जाता है। अतः मुक्ति के मार्ग पर चलते हुए जब सि़िद्धयाँ प्राप्त होने लगे तो उन में उलझने से अच्छा है, एकाग्रचित होकर आगे बढ़ते रहना।
माँ सिद्धिदात्री के चरणों पर ध्यान लगाने से अहंकार का शमन होता है।
ब्रह्माण्ड पर पूर्ण विजय का आशीर्वाद देनेवाली माता सिद्धिदात्री के चरणों में सिर झुकाते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।