-शीतांशु कुमार सहाय
नवरात्र के सप्तम दिवस को आदिशक्ति दुर्गा के सप्तम् स्वरूप ‘कालरात्रि’ की आराधना की जाती है। घनी काली रात्रि की तरह काला वर्णवाली माता ही ‘कालरात्रि’ कहलाती हैं। काल भी इन्हीं के वश में है। इन्हें सप्तम् दुर्गा भी कहते हैं।
माँ कालरात्रि की केश-राशि बिखरी हुई है। गले में विद्युत की तरह चमकीली माला है। इस रूप में माता के तीन नेत्र हैं। अतः इन्हें ‘त्रिनेत्रा’ भी कहते हैं। माता के तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं। इन नेत्रों से विद्युत के समान चमकवाली किरणें अनवरत् निकलती रहती हैं।
गर्दभ (गदहा) पर सवार माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यन्त भयानक है। बिखरे बाल, गोल-गोल अत्यन्त चमकीले नेत्र और व्याघ्रचर्म पहनी हुई माँ का यह विकराल रूप देखकर असुर काँप उठते हैं। असुरों और दुर्गुणों का नाश करने के लिए माता ने बायीं तरफ के ऊपरवाले हाथ में लोहे का काँटा व नीच के हाथ में खड्ग अर्थात् कटार धारण किया है।
असुरों के लिए भयानक होने पर भी माँ कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल ही प्रदान करती हैं। अतः इन्हें ‘शुभङ्करी’ भी कहा जाता है। भक्तों को वरदान देने के लिए माता शुभङ्करी ने ऊपर के दायें हाथ को वरमुद्रा मंे रखा है। निचले दायें हाथ से माँ कालरात्रि भक्तों को अभय प्रदान कर रही हैं; क्योंकि यह हाथ अभयमुद्रा में है। इस तरह माँ सदैव स्नेह बरसाती रहती हैं। उन के भयङ्कर रूप से न घबराते हुए उन से कृपा की याचना करनी चाहिये।
सप्तम् दुर्गा की पूजार्चना के दौरान योगीजन सहस्रार चक्र में ध्यान लगाते हैं। सहस्रार चक्र एक हजार (सहस्र) पंखुड़ियोंवाला कमल है। इन पंखुड़ियों पर कई मन्त्र अंकित हैं। इस चक्र के मध्य में अत्यन्त उज्ज्वल शिवलिंग है जो पवित्र और उच्चतम चेतना का प्रतीक है। सहस्रार चक्र के इष्टदेव शिव और देवी शक्ति हैं जिन का समस्त शक्तियों तथा तत्त्वों पर अधिकार है। इस चक्र में समस्त शक्तियाँ निहित हैं जिन का सम्बन्ध पचास बीजमन्त्रों की शक्ति के बीस गुणक (50 गुणा 20 बराबर 1000) से है। यहीं शिव-शक्ति का मिलन होता है, आत्मा का परमात्मा में विलय होता है। इस चक्र में ध्यान लगवाकर माँ कालरात्रि सम्पूर्ण बन्धनों से मुक्त कर देती हैं और अपने चरणांे में स्थान दे देती हैं।
दुष्टों का विनाश करनेवाली माँ कालरात्रि की उपासना करनेवाला बाधाओं में नहीं फँसता, वह निर्भय हो जाता है। कालरात्रि देवी के आराधक को आग, जल, जन्तु, शत्रु और अन्धकार का भय नहीं सताता। ऐसे साधक को ग्रह-बाधा से भी मुक्ति मिल जाती है। मन, कर्म, वचन और शारीरिक शुद्धता-पवित्रता से इन की आराधना करनी चाहिये।
भय से मुक्ति का आशीर्वाद देनेवाली माँ कालरात्रि के चरणों में हाथ जोड़कर प्रणाम करें-
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें