नवरात्र में माँ दुर्गा के व्रत रखे जाते हैं। भारत के उत्तरी क्षेत्र में स्थान-स्थान पर माँ दुर्गा की मूर्तियाँ बनाकर उनकी विशेष पूजा की जाती है। अनेक लोग घर में भी कलश स्थापित कर ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ करते हैं। कुछ लोग इस दौरान ‘रामायण’, ‘रामचरितमानस’ या ‘सुन्दरकाण्ड’ (रामचरितमानस का एक खण्ड) आदि का भी पाठ करते हैं।
नवरात्र के दौरान अम्बिका स्थान पर दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। नवरात्र के दिनों में यहाँ मेला लगता है। भगवती के नौ प्रमुख रूप (अवतार) हैं तथा प्रत्येक की इन नौ दिनों में विशिष्ट पूजा की जाती है। मुख्य रूप से वर्ष में दो बार भगवती अम्बिका भवानी की विशेष पूजा की जाती है। इन में एक नवरात्र तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (प्रथमा) से नवमी तक और दूसरा श्राद्धपक्ष (पितृपक्ष) के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल प्रथमा से आश्विन शुक्ल नवमी तक। अष्टमी तथा नवमी को भगवती दुर्गा को पूर्णाहुति दी जाती है। चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्या तथा छोटे बच्चों को भोजन कराया जाता है।
नवरात्र में अम्बिका स्थान पर पशुओं की हत्या-बलि नहीं दी जाती। यहाँ के पुजारी सन्त भीखमदास बताते हैं कि सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के किसी भी मूल ग्रन्थ में पशु-पक्षियों की हत्या-बलि का विधान नहीं है। उन्होंने कहा कि जिस धर्म में किसी भी जीव को कष्ट पहुँचाने तक की मनाही है, उस धर्म में हत्या को कैसे जायज माना जा सकता है। यह धर्म में घुसे मांसाहारियों के मन की खुराफात है। बलि का अर्थ वास्तव में प्रिय वस्तु का त्याग है, दुर्गुणों का त्याग है, कुरीतियों का त्याग है- किसी को जान से मारकर जश्न मनाना किसी भी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता।
भीखमदास के अनुसार, अम्बिका स्थान में मुक्त-बलि की प्रथा प्रचलित है। इस के तहत पशु के कान में छेद कर उसे छोड़ दिया जाता है जिसे जरूरतमन्द लोग पकड़ लेते हैं और उसे पालते हैं।
नवरात्र ही शक्ति पूजा का समय है, इसलिए नवरात्र में नौ शक्तियों की पूजा करनी चाहिये। पूजन की पूर्णाहुति पर दरिद्रनारायण व ब्राह्मण को अवश्य दान दें। दान देते समय यह कल्पना कदापि न करें कि मैं दे रहा हूँ और वह ले रहा है। उस समय यही स्मरण रहना चाहिये कि भगवान के एक रूप से भगवान का ही अन्य रूप ग्रहण कर रहा है।
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