बुधवार, 11 अक्टूबर 2017

गोधरा कांड पर फैसला उचित / Decision on Godhra proceedings


-शीतांशु कुमार सहाय
गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा गोधरा कांड पर दिये गये फैसले का अर्थ इतना ही है कि विशेष एसआईटी न्यायालय द्वारा जिन ३१ लोग को दोषी माना गया वे वाकई दोषी थे। हाँ, ११ फाँसी की सजा पाये अभियुक्तों को उम्र कैद में बदलने का मतलब हुआ कि अदालत इन के गुनाह को विरलतम नहीं मानती। मृत्युदंड के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने विरलों में विरलतम का आधार तय किया हुआ है। हालाँकि २७ फरवरी, २००२ को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी एस ६ में आग लगाकर जिस तरह ५९ लोग को मरने के लिए विवश किया गया, उस से जघन्यतम अपराध कोई और नहीं हो सकता। गुजरात दंगों पर गठित नानावती आयोग ने भी माना था कि उस बोगी में स्वयं आग नहीं लगी थी, उसे साजिशन जलाया गया था जिस में केवल एक समुदाय के लोग मरे थे। देश उस कांड को कभी नहीं भूल सकता जिस की प्रतिक्रिया में गुजरात में भीषण दंगे हुए और उस में करीब १२०० लोग मारे गये। हालाँकि एक वर्ग गुजरात दंगों पर तो छाती पीटता रहा है लेकिन गोधरा पर चुप रहता है। 
पहले एसआईटी की जाँच, फिर एसआईटी न्यायालय का फैसला और अब उच्च न्यायालय के फैसले के बाद उन्हें यह तो स्वीकारना होगा कि अपराधियों के एक वर्ग ने जान-बूझकर अयोध्या से लौटते कारसेवकों को जलाकर मार डाला तथा ऐसी स्थिति नहीं छोड़ी कि वे अपनी जान बचा सकें। इन के खिलाफ आपराधिक साजिश, ज्वलनशील पदार्थ जुटाने और समुदाय विशेष के लोग पर हमला करके मार डालने का आरोप साबित हुआ है। वैसे, दोनों न्यायालयों ने ६३ आरोपितों को बरी भी किया है। इन में मौलाना उमरजी शामिल हैं, जिन्हें एसआईटी ने मुख्य साजिशकर्ता माना था। इस को इसलिए बरी किया गया; क्योंकि पुख्ता सुबूत रखने में एसआईटी विफल रही। मृत्युदंड की जगह ११ लोग को उच्च न्यायालय ने उम्रकैद दी तो इस का कारण भी यही है कि इन का साजिश में शामिल होना तो साबित हुआ लेकिन इस के मुख्य साजिशकर्ताओं की सटीक पहचान नहीं हो सकी। फैसले का एक महत्त्वपूर्ण पहलू गोधरा कांड में मारे गए लोग के परिजनों को सरकार द्वारा १०-१० लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश है। न्यायालय की टिप्पणी बिल्कुल उचित है कि राज्य सरकार एवं रेलवे प्रशासन कानून-व्यवस्था बनाये रखने में विफल रहे।

कोई टिप्पणी नहीं: