शनिवार, 27 सितंबर 2025

टेक्सटेरिया ड्रेसेज : आशा, विश्वास और क्षमता का प्रतीक टेक्सटेरिया के रेडीमेड कपड़े Textarya Dresses : Textarya Readymade Garments Symbolize Hope, Faith & Potential

Textarya Shirts
 -शीतांशु कुमार सहाय 

      हमारी आशा और हमारे स्वप्न कभी-कभी हमारी पहुँच से बाहर लग सकते हैं; क्योंकि समाज ने हमें सिखाया है कि कुछ चीज़ें बस अप्राप्य हैं। हम ऐसा क्यों मानते हैं? हम स्वयं पर और अपनी अद्भुत क्षमता पर विश्वास क्यों नहीं करते? जो लोग जीवन की बाधाओं और संशयवादियों को पीछे छोड़कर सितारों तक पहुँचना चाहते हैं, उन के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। वास्तविक बदलाव लाने की अपनी क्षमता पर विश्वास करना ही होगा। कभी-कभी सही दिशा में एक धक्का ही हमें अपनी समस्याओं को अलग नज़रिये से देखने के लिए पर्याप्त होता है। 'कुछ भी असंभव नहीं है', जब हम ऐसा ठान लेते हैं तो अन्दर से एक शक्ति मिलती है जो हम को असम्भवताओं के बारे में नये नज़रिये से सोचने पर बाध्य कर देती है। इस के बाद हम जो परिश्रम करते हैं तो सम्भावनाएँ सकारात्मक परिणाम में बदलने लगती हैं और ज़रूरी उपाय खोजने नहीं पड़ते, दीखने लगते हैं। 

रीना कुमारी 

    यह किसी उपदेशक ने नहीं कहा। यह कथन है एक सफल महिला उद्यमी रीना कुमारी का। ये उन के अनुभव से निकले शब्द हैं। कुछ नहीं से शुरू कर आज लाखों का कारोबार करनेवाली रीना का टेक्सटेरिया (Textarya) ब्राण्ड के रेडीमेड गारमेण्ट्स आज कई नगरों में बिक रहे हैं। वह कहती हैं कि वर्तमान सरकार की योजनाएँ महिला उद्यमियों के लिए अनुकूल हैं। सरकार की तरफ से न केवल ऋण और अनुदान के रूप में आर्थिक मदद मिल रही है; बल्कि औद्योगिक, व्यावसायिक और मार्केटिंग के प्रशिक्षण भी दिये जा रहे हैं। पहले महिलाओं के लिए ऐसा माहौल नहीं था।

      बिहार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। महिलाएँ भी इस प्रगति में निरन्तर भागीदारी सुनिश्चित कर रही हैं। उद्योग, व्यवसाय और सेवा के विविध क्षेत्रों में सफल उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। इसी सन्दर्भ में बिहार की महिमा उद्यमी के रूप में उभरता नाम रीना कुमारी का है।

      बिहार के पटना जिले में जन्मी रीना के पिता उद्योग विभाग में कार्यरत धे। उन्होंने बेटी को हर सम्भव मदद की और निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। उन का आशीर्वाद अब भी मिल रहा है। माँ गृहणी होने के बावजूद बेटी के उद्यमी कदम को बढ़ने से कभी नहीं रोकी। माता के प्रगतिशील विचारधारा का सम्बल प्राप्त हुआ। एक भाई और दो बहनों में सब से छोटी हैं रीना जिन के सपने कभी छोटे नहीं रहे। कारोबारी गतिविधियों में पति सतीश कुमार का निरन्तर सहयोग मिल रहा है।

      माता-पिता के आशीर्वाद और पति के साहस व उत्प्रेरणा से रीना ने अपने बचपन के स्वप्न को साकार करना आरम्भ किया। वह सिलेसिलाये वस्त्र का कारोबार करना चाहती थी। इस के लिए मन में एक योजना बनायी और तदनुरूप कार्य करना आरम्भ कर दिया। पच्चीस वर्षों के वैवाहिक जीवन में कई वर्ष औद्योगिक शहरों में रहने के अवसर प्राप्त हुए। इस बीच वह एक पुत्र आकाश और पुत्री भूमि की माँ बनीं लेकिन अपने लक्ष्य से ध्यान को भटकनेे नहीं दिया। अपने सम्पर्क के आधार पर लगातार वस्त्र उद्योग के सभी पक्षों की बारीकियों को आत्मसात करती रहीं। साध ही सरकारी योजनाओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त करती रहीं।

      पति के सहयोग से रीना ने पटना में कारोबार करने की ठानी। कई विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ा। कभी-कभी ऐसा भी लगा कि रेडीमेड कपड़ों के उत्पादन से बेहतर होगा कि दूसरी कम्पनी का माल लेकर बेचा जाय लेकिन जिद्द थी अपना ब्राण्ड बनाने की और वह पूरा हुआ। पहले ट्रीना एण्टरप्राइजेज (Treenaa Enterprises) नामक कम्पनी की स्थापना की। नियमानुसार जीएसटी निबन्धन कराया। रीना कुमारी का कहना है कि उन्हें घर से आरम्भिक पूँजी मिल सकती थी, पर उन्होंने अपने बूते कम्पनी को चलाने का निश्चय किया और प्रधानमंत्री रोज़गार योजना के तहत दस लाख रुपये का ऋण लिया। अच्छी कम्पनी की सिलाई मशीनों का क्रय किया और कुशल कारीगरों की व्यवस्था की। इस प्रकार आरम्भ हो गयी टेक्सटेरिया (Textarya) ड्रेसेज की विकास यात्रा जो अनवरत् जारी है। रीना ने नियमानुसार इस नाम का ट्रेडमार्क भी लिया है।

      फिलहाल टेक्सटेरिया ब्राण्ड के अन्तर्गत शर्ट, कुर्ता, पैजामा और बण्डी का हर साइज में उत्पादन हो रहा है। शुरुआत में पटना के कुछ स्थानीय दुकानों में ही कपड़ों की बिक्री हो पा रही थी लेकिन उत्तम क्वालिटी के कपड़े और उत्कृष्ट तथा मजबूत सिलाई के कारण टेक्सटेरिया के ड्रेसेज लोकप्रिय होने लगे। पटना, बक्सर, वैशाली, सारण, गया, जहानाबाद, भोजपुर, मुजफ्फरपुर, नवादा होते हुए झारखण्ड के राँची, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा, धनबाद, बोकारो आदि नगरों में टेक्सटेरिया ने अपना बाजार बना लिया है। 

      रेडीमेड कपड़ों का उत्पादन शुरू कर रीना ने न केवल स्वयं को आर्थिक रूप स्वावलम्बी बनाया; बल्कि दर्जनों महिलाओं और पुरुषों की बेरोजगारी भी दूर कर रही हैं। अब उन के कपड़े कई बड़े माॅल की भी शोभा बढ़ा रहे हैं। पटना के चर्चित खादी माॅल, बिहार इम्पोरियम के बिक्री केन्द्रों, बिहार संग्रहालय के बिक्री केन्द्रों से भी टेक्सटेरिया ड्रेसेज की खरीददारी की जा सकती है। 

      क्या आप ने कभी सोचा है कि असम्भव परिस्थितियाँ भी आगे बढ़ने का एक असाधारण अवसर हैं? याद रखिए कि कोई भी महान रचना कुछ संशोधनों के बिना नहीं रची जा सकती। वर्तमान संभावनाओं पर काम करते हुए असम्भवता को ही लक्ष्य बनाएँ, आप वहाँ पहुँच जाएंगी। अगर लोग यह मानना ​​छोड़ दें कि चीजें असंभव हैं तो जीवन कहीं अधिक उज्ज्वल होगा। आप पर्याप्त दृढ़ संकल्प और विश्वास के साथ कुछ भी कर सकती हैं। अपने असंभव स्वप्नों पर विश्वास रखें और रीना कुमारी की तरह लक्ष्य पर ध्यान लगाकर निरन्तर प्रगति के पथ पर बढ़ते रहें।

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बुधवार, 24 सितंबर 2025

भवान्यष्टक और इस की उत्पत्ति का इतिहास Bhawani Ashtak And Its History

 

 -प्रस्तोता : शीतांशु कुमार सहाय 

      माता आदिशक्ति अपने दुर्गा अवतार को नौ रूपों में व्यक्त किया है। इन्हें 'नवदुर्गा' कहते हैं। नवरात्र के दौरान इन की आराधना-उपासना की जाती है। कई मन्त्रों, स्तवनों, श्लोकों और स्तोत्रों से नवदुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। इन में महत्त्वपूर्ण रूप से 'भवान्यष्टक' यानी 'भवानी अष्टक' शामिल है जिसे आचार्य शंकर (शंकराचार्य) ने रचा था।

      भवान्यष्टक की रचना का एक इतिहास है। इस बारे में आप भी जानिए। एक बार आदिगुरु शंकराचार्य शाक्तमत (शक्ति को माननेवाले का मत) का खण्डन करने के लिए कश्मीर पहुँचे थे। कश्मीर में उन का स्वास्थ्य बिगड़ गया। उन का शरीर शक्तिहीन हो गया था। एक पेड़ के नीचे आराम करते हुए विचारमग्न थे कि इतनी शारीरिक शक्तिहीनता कैसे प्रकट हुई और इस का निराकरण क्या है।

वहाँ से एक ग्वालिन सिर पर दही का बर्तन लेकर निकली। आचार्य शंकर का पेट जल रहा था और वे बहुत प्यासे भी थे। उन्होंने ग्वालिन को इशारा किया कि वह उन के पास आकर दही दे। ग्वालिन थोड़ी दूर पर रूकी और  कहा, "दही लेना है तो आप यहाँ आइए।" 

      आचार्य शंकर ने धीरे से कहा, “मुझ में इतनी दूर आने की शक्ति नहीं है। बिना शक्ति के कैसे तुम्हारे पास पहुँच सकता हूँ।"

      हँसती हुई ग्वालिन ने कहा, "शक्ति के बिना कोई एक कदम भी नहीं उठा सकता और आप शक्ति का खण्डन करने निकले हैं?"

      ग्वालिन की बात सुनते ही शंकराचार्य की आँखें खुल गयीं। वह समझ गये कि भगवती स्वयं ही इस ग्वलिन  के रूप में आयी हैं। उन के मन में जो शिव और शक्ति के बीच का अंतर था वो मिट गया और उन्होंने शक्ति के सामने समर्पण कर दिया और शब्द निकले "गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानी"

      समर्पण का यह स्तवन 'भवानी अष्टक' या 'भवान्यष्टक' नाम से प्रसिद्ध है, जो अद्भुत है। शिव स्थिर शक्ति हैं और भवानी उन में गतिशील शक्ति हैं। दोनों अलग-अलग हैं... एक दूध है और दूसरा उस की सफेदी है। इस तरह नेत्रों पर अज्ञान का जो आखिरी पर्दा भी माँ ने ही उसे हटाया था। इसलिए शंकर ने कहा, "माँ, मैं कुछ नहीं जानता"।

      यहाँ शंकराचार्य रचित 'भवान्यष्टक' को प्रस्तुत किया गया है। 

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता

          न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।

    न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥१॥


भवाब्धावपारे महादुःखभीरु

          प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः।

    कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं  

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥२॥


न जानामि दानं न च ध्यानयोगं

          न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।

    न जानामि पूजां न च न्यासयोगं

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥३॥


न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं

          न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।

    न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मातर्-

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥४॥


कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धिः कुदासः

          कुलाचारहीनः कदाचारलीनः।

    कुदृष्टिः कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥५॥


प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं

          दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।

    न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥६॥


विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे

          जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।

    अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥७॥


अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो

          महाक्षीणदीनः सदा जाड्यवक्त्रः।

    विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्टः सदाहं

          गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥८॥

रविवार, 14 सितंबर 2025

जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत में मछली खाने की परम्परा का सच The Truth Behind The Tradition of Eating Fish During Jivitputrika Vrat or Jitiya Vrat


-शीतांशु कुमार सहाय 

      ग्रन्थों में वर्णित जीवित्पुत्रिका व्रत को ही जितिया व्रत या जिउतिया व्रत भी कहा जाता है। आदिशक्ति के दुर्गा अवतार का ही एक नाम 'जीवित्पुत्रिका' भी है। अतः इस दिन सन्तान  की दीर्घायुता, विद्वत्ता, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए माता दुर्गा की आराधना अवश्य करनी चाहिए। ऐसा शास्त्र का आदेश है। साथ ही जीमूतवाहन की हरे कुश से प्रतिकृति बनाकर पूजा करने का विधान है। यह चर्चा 'जीवित्पुत्रिका व्रत कथा' में भी है। पूर्ण फल की प्राप्ति हेतु ऐसा ही करना चाहिए। 

      मैं ने देखा है कि लोग मूल ग्रन्थ नहीं पढ़ते और सुनी-सुनायी बातों के आधार पर शास्त्रोक्त पूजन विधियों में फेरबदल कर लेते हैं। फलतः भगवद्कृपा प्राप्त नहीं होती और पूजन का फल नहीं मिलता है। 

      कुछ लोगों ने जितिया के दौरान मछली खाने की परम्परा को आत्मसात् कर लिया है। यह घोर पापकर्म है। यह व्रत पूरी तरह वैष्णव व्रत है। आश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी रहित अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। मतलब यह कि पितृपक्ष का आठवाँ दिन। पितृपक्ष के दौरान मांसाहार पूरी तरह वर्जित होता है। सातवें दिन यानी आश्विन कृष्ण सप्तमी को नहाय-खाय के दिन स्वाद के गुलाम लोगों ने मछली खाना आरम्भ कर दिया जो स्थानीय स्तर पर परम्परा का रूप ले लिया है जो सर्वथा ग़लत है। इसी तरह कुछ लोग नवरात्र के दौरान भी मछली का सेवन करते हैं। यह भी जीभ की परतन्त्रता स्वीकारनेवालों की 'चालाकी' का प्रतीक है। किसी भी धार्मिक आयोजन में मांसाहार की शास्त्रीय परम्परा नहीं है। धर्म की ग़लत व्याख्या करनेवाले विधर्मियों ने धर्म को बदनाम करने के लिए एक षड्यन्त्र के तहत इसे एक 'परम्परा' का स्वरूप देने का कुत्सित प्रयास किया है। धार्मिक लोग विधर्मियों के इस षड्यन्त्र का जाने-अनजाने में शिकार हो रहे हैं। 

      ऊपर वर्णित 'मछली परम्परा' अधिकतर मिथिला क्षेत्र (नेपाल और बिहार का उत्तरी भाग) में देखने को मिलती है। नवरात्र में मछली खाने की परम्परा बंगाल में अधिक दृष्टिगोचर होती है। मिथिला के निवासियों के मस्तिष्क में यह बात बैठायी गयी है कि मिथिला राज्य (स्वाधीनता से पूर्व) का राजचिह्न मछली थी। कुछ कुतर्की लोग मछली को मांसाहार नहीं मानते; बल्कि 'जल का फल' मानते हैं। पर, धर्म के नियम और शास्त्र के अनुशासन यह बताते हैं कि व्रत, यज्ञ, अनुष्ठान आदि में मूल ग्रन्थ का ही अनुसरण करना चाहिए। 

      अब स्वीकार कीजिए 'जीवित्पुत्रिका व्रत' की मङ्गलकामना, साथ ही सुनिए 'जीवित्पुत्रिका व्रत कथा' और कमेण्ट कर बताइए कि इस में जो कहा गया है, क्या व्रत करनेवाली महिलाएँ उन का पालन करती हैं? यदि नहीं, तो उन्हें पूर्ण फल की प्राप्ति निश्चित रूप से नहीं होगी। अन्त में आप से निवेदन करता हूँ कि आप तैत्तिरीयोपनिषद का कथन 'धर्मं चर' अर्थात् 'धर्म का आचरण करो' की नीति को याद रखिए और ऐसा ही कीजिए।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा


शुक्रवार, 5 सितंबर 2025

बिहार में सम्पन्नता की संजीवनी : मुख्यमन्त्री महिला रोज़गार योजना Mukhyamantri Mahila Rozgar Yojana In Bihar


-शीतांशु कुमार सहाय 

"नया वक़्त है नया ज़माना,

मिलकर ग़रीबी को दूर भगाना।

बढ़ती जाएंगी महिलाएँ जब,

विकसित होगा भारत अपना तब।"

      बिहार राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती अप्सरा का उक्त कथन हाल ही में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा घोषित 'मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना' पर पूरी तरह से चरितार्थ होता है। महिला सशक्तीकरण की राह में यह योजना वास्तव में ज़मीनी स्तर पर मील का पत्थर साबित होगा। भारत के सभी राज्यों में यह पहली योजना है जो बिहार के सभी परिवार को लाभान्वित करेगी। यह योजना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 'हर घर महिला उद्यमी' के स्वप्न को साकार करेगी। इस से न केवल प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी; बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा। इस तरह बिहार की उद्यमी महिलाएँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'विकसित भारत' के संकल्प को पूरा करने में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम हो पायेंगी। सात सितम्बर २०२५ को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 'मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना' का शुभारम्भ कर रहे हैं। 

●  योजना का उद्देश्य : 

      महिलाओं के उत्थान के लिए निरन्तर प्रयासरत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निर्थनता का समूल नष्ट करने के उद्देश्य से इस योजना को लागू किया है। इस का लाभ प्रत्येक परिवार तक पहुँचाने को सरकार संकल्पित भाव से कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना के उद्देश्य के सन्दर्भ में बिहार महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती अप्सरा कहती हैं कि घरेलू जिम्मेदारियों के निर्वहन के बाद महिलाओं के पास दोपहर में घण्टों समय बचता है। इस समय का उपयोग कर महिलाएँ सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक सहायता से परिवार की आमदनी बढ़ा सकती हैं। श्रीमती अप्सरा ने व्यावहारिक रूप से बताया कि अक्सर पारिवारिक या घरेलू विवाद दोपहर के समय में होते हैं। जब महिलाएँ दोपहर के समय का अर्थोपार्जन में सदुपयोग करने लगेंगी तो पारिवारिक कलह में भी कमी आयेगी और महिला आयोग पर बढ़ते घरेलू विवाद के बोझ घटेंगे। प्रत्येक परिवार की एक महिला को उद्यमी या व्यवसायी बनाने का उद्देश्य भी यह योजना पूरी करेगी। श्रीमती अप्सरा कहती हैं कि यह योजना निश्चय ही 'सम्पन्नता की संजीवनी' साबित होगी।

कितनी आर्थिक सहायता :

      इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक परिवार की एक महिला को शुरुआत में दस हजार रुपये की राशि बैंक खाते में प्रदान की जायेगी। इस राशि से उद्योग या व्यवसाय आरम्भ करना है। कुछ महीनों बाद उद्योग या व्यवसाय की स्थिति का आकलन करने के बाद आवश्यकता के अनुसार दो लाख रुपये तक अतिरिक्त सहायता राशि प्रदान की जायेगी।

कार्यकारी एजेन्सी : 

      मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना को राज्य का ग्रामीण विकास कार्यान्वित कर रहा है। इस विभाग के अधीन कार्यरत 'बिहार ग्रामीण जीविकोपार्जन प्रोत्साहन समिति (जीविका) ही इस योजना को संचालित करने के लिए अधिकृत एजेन्सी है। गाँवों में जीविका के अन्तर्गत संचालित महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएँ इस योजना का लाभ ले सकती हैं। जो महिलाएँ समूह से नहीं जुड़ी हैं, उन्हें समूह से जुड़ने के बाद ही आवेदन करना होगा। 

      शहरों की महिलाओं को भी इस योजना का लाभ मिलेगा। शहरी महिलाएँ भी जीविका समूह से जुड़कर इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन कर सकती हैं। शहरों में योजना के सफल कार्यान्वयन के लिए नगर विकास एवं आवास विभाग की सहायता ली जा रही है। 

योजना में परिवार की परिभाषा :

      मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना का फायदा हर परिवार तक पहुँचाने को सरकार संकल्पित भाव से कार्य कर रही है। इस योजना में पति, पत्नी और उन के अविवाहित बच्चों को परिवार माना जायेगा। यदि 18 वर्ष से अधिक आयु की अविवाहित लड़की की माँ और पिता दोनों का देहान्त हो गया है तो उसे एकल परिवार माना जायेगा। ऐसी लड़की इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन कर सकती है। 

पात्रता की शर्तें :

      इस योजना के तहत लाभ लेने के लिए कुछ शर्तें निर्धारित की गयी हैं।  आवेदिका की आयु कम-से-कम 18 और अधिकतम 60 वर्ष होनी चाहिए। आवेदिका या उस का पति आयकर न देता हो तभी इस योजना का लाभ मिलेगा। साथ ही आवेदिका या उस का पति नियमित या संविदा पर सरकारी नौकरी न करता हो। आवेदिका का एक बैंक खाता हो जो आधार से जुड़ा हो।

आवश्यक दस्तावेज :

      इस योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए एक नियमित संचालित बैंक खाता हो जो आधार से जुड़ा होना चाहिए। साथ ही आधार कार्ड, आवास प्रमाण पत्र, आय प्रमाण पत्र और जाति प्रमाण पत्र की भी आवश्यकता के अनुसार ज़रूरत पड़ेगी।

      परिवार की आय बढ़ाने, बिहार को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने और विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना से महिलाओं को अवश्य जुड़ना चाहिए। 

● पंजीकरण और वेबसाइट :

ग्रामीण क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएँ जीविका के प्रखण्ड या जिला कार्यालय में पंजीकरण करा सकती हैं। इस के अलावा प्रखण्ड कार्यालय, उप विकास आयुक्त कार्यालय अथवा जिलाधिकारी (डीएम) के कार्यालय में भी पंजीकरण कराया जा सकता है। 

शहरी क्षेत्रों में रहनेवाली महिलाएँ 'मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना' का लाभ लेने के लिए अपने नगर पंचायत, नगर परिषद या नगर निगम कार्यालय में जाकर पंजीकरण करा सकती हैं। 

मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना के लिए ऑनलाइन आवेदन का वेबसाइट है :- www.brlps.in

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