बुधवार, 11 जुलाई 2018

गुरु पूर्णिमा (२७ जुलाई २०१८) को सब से लम्बा चन्द्रग्रहण The Longest Lunar Eclipse on Guru Purnima 27 July 2018


-शीतांशु कुमार सहाय
हमलोग २१वीं सदी में हैं २१वीं सदी का सब से लम्बी अवधि का चन्द्रग्रहण आषाढ़ पूर्णिमा को होनेवाला है यह खग्रास चन्द्रग्रहण होगा आषाढ़ पूर्णिमा २०७५ अर्थात २७ जुलाई २०१८ शुक्रवार को है आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहते हें चन्द्रग्रहण वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण खगोलीय घटना है २७ जुलाई २०१८ का चन्द्रग्रहण २१वीं सदी का सब से लंबा चन्द्रग्रहण रहनेवाला है इस की कुल अवधि घंटा १४ मिनट रहेगी जिस में पूर्ण चन्द्रग्रहण (खग्रास) की स्थिति १०३ मिनट ( घंटा ४३ मिनट) तक रहेगी  
ऐसा संयोग १०४ साल बाद बना है गुरु पूर्णिमा का चन्द्रग्रहण संसार के बड़े भाग में दिखायी देगा यह चन्द्रग्रहण नजारा भारत समेत दुबई, अफ्रीका, दक्षिण एशिया, मध्य-पूर्व के देशों, म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान चीन, नेपाल, अंटाकर्टिक, ऑस्ट्रेलिया में दीखेगा

यह चन्द्र ग्रहण २७ जुलाई की रात ११ बजकर ५४ मिनट से शुरू होकर सुबह के बजकर ४९ मिनट तक रहेगा भारत में चन्द्रग्रहण लगभग रात्रि ११ बजकर ५५ मिनट से स्पर्श कर लगभग बजकर ५४ मिनट पर पूर्ण होगा

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

बराबर पहाड़ी : श्रीकृष्ण और शिव के बीच युद्ध का साक्षी / Barabar Hill : Witness of War between Shrikrishna & Shiva


बाबा सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग 
 -शीतांशु कुमार सहाय
बिहार के गया जिले में स्थित है बराबर पहाड़। ऐतिहासिक दृष्टि से यह पहाड़ काफी महत्त्वपूर्ण है। भगवान श्रीकृष्ण, शिव, पाण्डव और बाणासुर से सम्बन्धित है यह प्राचीन पर्वत है जो अब पहाड़ी के रूप में विराजमान है। पृथ्वी पर यह एकमात्र पहाड़ी है जो भगवान श्रीकृष्ण और शिव के बीच हुए भयंकर युद्ध का साक्षी है। विश्व के गिने-चुने पहाड़ों में बराबर पहाड़ी शामिल है जो खण्डित है, जड़ से चोटी तक पूरी तरह टुकड़ों में बँटा है। यहाँ भगवान शिव सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। सालोंभर भक्तों और पर्यटकों से बराबर पहाड़ी गुलजार रहती है। 
बराबर पहाड़ी के टूटे होने की एक कथा प्राचीन भारतीय ग्रन्थ में उपलब्ध है। उस की संक्षिप्त चर्चा मैं यहाँ कर रहा हूँ। वामनरूपधारी भगवान को पृथ्वी दान देनेवाले राजा बलि के सौ पुत्रों में बाणासुर ज्येष्ठ था। उदार, बुद्धिमान व अटल प्रतिज्ञा के लिए प्रसिद्ध बाणासुर भगवान शिव की भक्ति में मग्न रहता था। वह शोणितपुर (वर्तमान असम का तेजपुर) में राज्य करता था। 
भगवान शिव के आशीर्वाद से बाणासुर ने एक हजार भुजाएँ प्राप्त की। हजार भुजा प्राप्त कर वह समूची पृथ्वी पर तहलका मचाने लगा। उस ने कई पर्वतों को अपने हाथों से तोड़ डाला। इसी दौरान उस ने बराबर पहाड़ पर भी प्रहार किया और इसे चूर कर दिया। पूरा पहाड़ छोटे-बड़े चट्टानों के रूप में है। कई विशाल चट्टानें बहुत छोटी चट्टानों पर अवलम्बित हैं, पर आश्चर्य है कि ये गिरते नहीं।   
हजार हाथों के अलावा शिवजी ने अन्य वरदान माँगने को कहा तो बाणासुर ने कहा- आप मेरे किले के पहरेदार बन जायंे। लाचारी में शिव उस के किले के रक्षक बन गये। 
बाणासुर अत्यन्त बलशाली हो गया। उस से कोई राजा या देवता युद्ध करना नहीं चाहते थे। सभी भयभीत रहने लगे। तब बाणासुर ने शिवजी से युद्ध करनी चाही मगर शिष्य होने के कारण शिवजी ने मना कर दिया। उन्होंने बाणासुर को एक ध्वज दिया और कहा कि जिस दिन यह फट जायेगा, उस दिन तुम से युद्ध करनेवाला (श्रीकृष्ण) अवतार लेगा। यह सुन बाणासुर डर गया। उस ने पुनः तपस्या की और अपनी हजार हाथों से कई सौ मृदंग बजाकर शिवजी को प्रसन्न किया और श्रीकृष्ण से युद्ध के दौरान उन के सहयोग व अपने प्राण की रक्षा का वरदान पा लिया।
बाणासुर की एक पुत्री उषा थी। उषा से विवाह के लिए कई राजा आये किन्तु बाणासुर सब को अपमानित कर भगा देता था। एक दिन उषा ने स्वप्न में एक सुन्दर राजकुमार देखा और मन-ही-मन उस से प्रेम करने लगी। यह बात सखी चित्रलेखा को बतायी। चित्रलेखा मायावी थी जो सुन्दर कलाकृति बनाती थी। उस ने माया से उषा की आँखों में झाँका और स्वप्न-दृश्यों को देखकर उस राजकुमार का चित्र बना दिया। चित्रलेखा ने कहा कि यह चित्र श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का है। उषा के आग्रह पर चित्रलेखा ने माया के बल पर द्वारिका से अनिरुद्ध को अदृश्य कर उषा के सामने प्रकट कर दिया। तब दोनों ने ओखिमठ नामक स्थान (केदारनाथ के पास) में विवाह किया, जहाँ आज भी उषा-अनिरुद्ध नाम से एक मन्दिर है। बाणासुर ने अनिरुद्ध और उषा को कैद कर लिया। 
अन्ततः श्रीकृष्ण और बलराम ने बाणासुर पर हमला कर दिया। भयंकर युद्ध हुआ। बाणासुर की तरफ से भगवान शिव भी श्रीकृष्ण से युद्ध किये। श्रीकृष्ण ने बाणासुर के छियानबे हाथों को काट डाले। तब बाणासुर ने उषा-अनिरुद्ध का विवाह कर दिया और सब सुखी-सुखी रहने लगे।

बाणासुर का राज्य विस्तार

बाणासुर को अधिकतर ग्रन्थों में शोणितपुर का शासक बताया गया है। पर, कुछ ग्रन्थों में उस के शासन क्षेत्र का विस्तार भी बताया गया है। उत्तर में बामसू (वर्तमान उत्तराखण्ड का लमगौन्दी), मध्य भारत में बाणपुर (मध्यप्रदेश) में भी बाणासुर का राज था। बाणासुर बामसू में रहता था। बाणासुर को आज भी उत्तराखण्ड के कुछ गाँवों में पूजा जाता है। बाणासुर का राज्य विस्तार वर्तमान उत्तराखण्ड में भी था। अतः बाणासुर के नाम से एक पर्वत ‘वारणावत पर्वत’ उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले में भी है। जिस प्रकार बराबर पहाड़ी पर सिद्धेश्वरनाथ शिवलिंग हैं, वैसे ही वारणावत पर्वत पर विमलेश्वर महादेव का मन्दिर है।
शिवभक्त बाणासुर से सम्बन्धित ‘वारणावत’ नाम का स्थान भी है जो ग्रन्थ में प्रसिद्ध है। ‘महाभारत’ के अनुसार, वारणावत में ही पाण्डवों को जलाकर भस्म कर देने के लिए  दुर्योधन ने लाक्षागृह बनवाया था। युधिष्ठिर ने जिन पाँच ग्रामों को युद्ध से पूर्व दुर्योधन से माँगा था, उन में से एक वारणावत भी था। महाभारत के आदिपर्व में वर्णन है कि वारणावत में शिवोपासना से सम्बन्धित भारी मेला लगता था, जिसे ‘समाज’ कहा जाता था। इस प्रकार के ‘समाजों’ का उल्लेख अशोक के शिलालेख संख्या एक में भी है। माना जाता है कि शिवभक्त बाणासुर यहाँ शिवोपासना से सम्बन्धित मेले का आयोजन करवाता था। वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के मेरठ जिलान्तर्गत ‘बरनावा’ स्थान ही प्राचीन वारणावत है। हिण्डन और कृष्णा नदी के संगम पर मेरठ नगर से 15 मील दूर बरनावा स्थित है।

नामकरण

बराबर पहाड़ी का वर्णन ग्रन्थों में ‘बाणावर्त पर्वत’ के नाम से है। यह नामकरण शोणितपुर के राजा बाणासुर के नाम पर पड़ा। कालान्तर में यह अपभ्रन्शित होकर ‘बराबर पहाड़’ हो गया। ऊँचाई कम होने के कारण इसे अब पहाड़ी कहा जाता है- बराबर पहाड़ी। 

सात गुफाएँ   

बराबर पहाड़ी में सात प्राचीन गुफाएँ हैं। ये विस्तृत प्रकोष्ठों के रूप में निर्मित हैं। तीन गुफाओं में मौर्य वंश के प्रसिद्ध शासक अशोक के अभिलेख अंकित हैं। अभिलेख से विदित होता है कि अशोक ने वन और पर्वत के बीच गुफाओं का निर्माण परिभ्रमण करनेवाले भिक्षुओं के ठहराव के लिए करवाया था। बराबर पहाड़ी की दो गुफाएँ अशोक द्वारा शासन के 12वें वर्ष और 19वें वर्ष में भिक्षुओं को दान में दी गयी थीं। तीन गुफाओं का आकार बड़ा है- कर्णचौपार, विश्वझोपड़ी और सुदामा गुफा। गुफा की दीवारें अब भी काफी चिकनी हैं। एक गुफा में अन्दर बेंच की तरह ऊँचा बैठने का स्थान है। बताया जाता है कि उस पर परिव्राजक साधु टोली के प्रमुख (गुरु) बैठते थे और शिष्यगण नीचे बैठकर उन से निर्देश लेते या ध्यान करते थे। एक ‘लोमस ऋषि गुफा’ है जो लोमस ऋषि से सम्बन्घित है।
विशाल गुफा 
बड़ी गुफा के अन्दर सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता। ऐसे में यह शोध का विषय है कि आखिर राजा अशोक के समय धुआँरहित वह कौन-सी प्रकाश व्यवस्था थी, जिस के प्रकाश में गुफा के अन्दर की निर्माण प्रक्रिया पूरी की गयी।
यहाँ मैं ने एक अधूरे निर्माणवाला गुफा भी देखा। प्रवेश द्वार से दो-तीन फीट तक गुफा की आन्तरिक दीवारें चिकना कर दी गयी हैं और शेष भाग पर पत्थर काटे जाने के निशान बरकरार हैं। इन के बारे में कहा जाता है कि निर्माण के दौरान अशोक के शासन काल की समाप्ति हो गयी और गुफा अधूरी रह गयी। 

मनोरम वातावरण

यहाँ मनोरम व प्रदूषणरहित वातावरण है। प्राकृतिक छटाओं से परिपूर्ण बराबर पहाड़ी पर्यटकों को आकर्षित करती है। यहाँ वर्षभर पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। बराबर पहाड़ी की प्राकृतिक वादियाँ, पाताल गंगा, नौका विहार, ऐतिहासिक व पुरातात्त्विक महत्त्ववाली गुफाएँ और झरना पर्यटकों को खूब आकर्षित करती हैं। झरने का जल अत्यन्त शुद्ध है, जिसे यहाँ के लोग पीते हैं। 

बाबा सिद्धेश्वरनाथ

बराबर पहाड़ी की चोटी पर भगवान शिव सिद्धेश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। बाबा सिद्धेश्वरनाथ का मन्दिर काफी लोकप्रिय है। यहाँ सालों भर जलाभिषेक करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। ‘शिवपुराण’ में कहा गया है कि भगवान शिव के नौ रूपों में ‘सिद्धनाथ’ का सर्वाेच्च स्थान है। यह साधना का महत्त्वपूर्ण स्थान है। सिद्धेश्वरनाथ या सिद्धनाथ मन्दिर के गर्भ गृह का प्रवेश द्वार छोटा है जिस में झुककर अन्दर जाना पड़ता है। शिवलिंग के अलावा यहाँ आदिशक्ति का दुर्गा रूप और हनुमान की प्रतिमाएँ स्थापित हैं। पहाड़ी के नीचे भी एक मन्दिर स्थानीय श्रद्धालुओं ने दशकों पूर्व स्थापित की है।

पहाड़ी के अन्दर मन्दिर

कहा जाता है कि बाणासुर ने बराबर पहाड़ी के अन्दर शिवलिंग स्थापित किया था। वह उस शिवलिंग की पूजा प्रतिदिन करने आता था। पहाड़ी के एक छोर से अन्दर की तरफ विशाल गुफा है जो जंगलों से अटा पड़ा है। यही अन्दर जाने का रास्ता है जहाँ बाणासुर द्वारा स्थापित शिवलिंग है। अन्दर अब तक किसी के जाने का प्रमाण नहीं मिला है।

आये थे श्रीकृष्ण संग पाण्डव

कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव (पाण्डव) के साथ भगवान श्रीकृष्ण बराबर पहाड़ी के क्षेत्र में आये थे। परिभ्रमण के दौरान श्रीकृष्ण को प्यास लगी। तब अर्जुन ने धरती में तीर मारकर भूगर्भ जल को प्रकट किया। जहाँ अर्जुन ने तीर चलाया था, पहाड़ी पर वह स्थान आज भी गड्ढे के रूप में बरकरार है। पाताल गंगा के झरने का जल अब भी अत्यन्त शुद्ध है, जिसे पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
 टुकड़ों में बँटी पहाड़ी 

सुविधाएँ विकसित

सरकार द्वारा इस स्थल को अन्तरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए कई तरह की आधुनिक सुविधाएँ बहाल करायी गयी हैं। अब पाताल गंगा के निकट अत्याधुनिक संग्रहालय बनाया गया है। साथ ही कैफिटेरिया, सुदामा मार्केट कॉम्प्लेक्स, जल नौकाओं की सुविधा, अतिथिशाला और बाबा सिद्धनाथ मन्दिर तक जाने-आने के लिए सीढ़ियों का निर्माण श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है। 

पहुँच पथ

बिहार की राजधानी पटना से बराबर पहाड़ी की दूरी सड़क मार्ग से करीब 65 किलोमीटर है। भाड़े की गाड़ी या अपनी गाड़ी से यहाँ पहुँचा जा सकता है। रेलमार्ग से आने के लिए पटना जंक्शन से वैसी ट्रेन को पकड़ें जो पटना-गया रेलमार्ग से जाती हो और बेलागंज स्टेशन या बराबर हॉल्ट पर रूकती हो। यहाँ उतरकर भाड़े की गाड़ी से बराबर पहाड़ी तक पहुँच सकते हैं। यहाँ ठहरने के लिए सरकारी अतिथिशाला बना है। यहाँ खाने-पीने के सामान उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं।

मंगलवार, 19 जून 2018

योगः कर्मसु कौशलम्

''योगः कर्मसु कौशलम् । प्रत्येक कार्य में कुशलता और प्रवीणता के लिए योग का अनुसरण अनिवार्य है। प्रतिदिन योग किया जाय तो शारीरिक और मानसिक व्याधियों से आसानी से मुक्ति मिलेगी और सभी तरह के कर्म करने में व्यापक सुधार आयेगा जिसे भगवान ने गीता में कर्म में कुशलता कहा है। योग को दिनचर्या का अंग बनायें तो यह जीवन का आधार बन जायेगा।''

-शीतांशु कुमार सहाय की योग की एक पुस्तक से।

योग से अचेतन की शक्ति का लाभ लें

 
''प्रत्येक मनुष्य को प्राकृतिक रूप से अचेतन की अपरिमित शक्ति मिली हुई है। योग के अलावा कोई अन्य साधन है ही नहीं जो इस अपरम्पार सामर्थ्य का प्रतिलाभ दे सके। अतः योग को दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बनाएँ और आनन्द का अनुभव करें।''
-शीतांशु कुमार सहाय, (योग विशेषज्ञ) की पुस्तक से।



गुरुवार, 7 जून 2018

ताम्बे से बनते हैं कई मिश्रधातु / Many Alloys are Made with Copper

-शीतांशु कुमार सहाय 
ताम्बे को विभिन्न धातुओं में मिलाकर अलग-अलग प्रकार के मिश्रधातुओं का निर्माण किया जाता है। ऐसे कुछ मिश्रधातुओं के बारे में आप भी जानिये--    
पीतल (Brass) : इस में ताँबा 73-66 तथा जस्ता 27-34 प्रतिशत तक होता है। पीतल का उपयोग चादर, नली तथा बरतन बनाने में होता है।
काँसा या घंटा धातु (Bronze or Bell metal) : इस में ताँबा और टिन की मात्रा क्रमश: 75-80 प्रतिशत और 25-20 प्रतिशत तक होती है। काँसा से घंटे आदि बनते हैं।
ऐल्युमिनियम-पीतल (Aluminimum-brass) : इस के संगठन में ताँबा, जस्ता और ऐल्युमिनियम हैं, जो क्रमश: 71-55, 26-42 तथा 1-6 प्रतिशत तक होते हैं। ऐल्युमिनियम-पीतल का उपयोग पानी के जहाजों तथा वायुयान के नोदकों (propeller) के निर्माण में होता है।
ऐल्युमिनियम-काँसा (Aluminimum-bronze) : इस में ताँबा 99-89 तथा ऐल्युमिनियम 1-11 प्रतिशत तक होता है। यह अति कठोर तथा संक्षारण अवरोधक होता है। ऐल्युमिनियम-काँसा के बरतन बनते हैं।
बबिट (Babit) धातु : इस में टिन, ऐंटीमनी तथा ताँबा की मात्रा क्रमश: 89 प्रतिशत, 7.3 प्रतिशत तथा 3.7 प्रतिशत होती है। बबिट का मुख्य उपयोग बॉल बियरिंग बनाने में होता है।
कॉन्स्टैंटेन (Constantan) : इस में तांबा 60-45, निकल 40-55, मैगनीज 0-1.4, कार्बन 0.1 प्रतिशत तथा शेष लोहा होता है। कॉन्स्टैंटेन का उपयोग वैद्युत-तापमापक यंत्रों तथा ताप वैद्युत-युग्म (thermocouple) बनाने में होता है, क्योंकि यह विद्युत्‌ का प्रबल प्रतिरोधक होता है।
डेल्टा धातु (Delta metal) : इस में ताँबा 54-56, जस्ता 40-44, लोहा 0.9-1.3, मैंगनीज 0.8-1.4 और सीसा 0.4-1.8 प्रतिशत तक होता है। यह मृदु इस्पात के समान मजबूत है, किंतु उस की तरह सरलता से जंग खाकर नष्ट नहीं होती। डेल्टा धातु का उपयोग पानी के जहाज बनाने में होता है।
जर्मन सिल्वर : इस में ताँबा 55, जस्ता 25 और निकल 20 प्रतिशत होता है। कुछ वस्तुओं को बनाने में चाँदी के स्थान पर जर्मन सिल्वर का उपयोग करते हैं, क्योंकि इस से बनी वस्तुएँ चाँदी के समान ही होती हैं।
गन मेटल (Gun metal) : इस में ताँबा ७१-९५, टिन ०-११, सीसा ०-१३, जस्ता ०-५ तथा लोहा ०-१.४ प्रतिशत तक होता है। इस से बटन, बिल्ले, थालियाँ तथा दाँतीदार चक्र (gear) बनाए जाते हैं।
पर्मलॉय (Permalloy) : इस में निकल 78, लोहा 21, कोबल्ट 0.4 प्रतिशत तथा शेष मैगनीज, ताँबा, कार्बन, गंधक और सिलिकन होते हैं। इस से टेलीफोन के तार बनाये जाते हैं।
टिन की पन्नी (Tin foil) : इस में टिन 88, सीसा 8, ताँबा 4 और ऐंटिमनी 0.5 प्रतिशत होते हैं। यह पन्नी सिगरेट और खाद्य वस्तुओं को सुरक्षित रखने के लिए उन के ऊपर लपेटी जाती है।
डच मेटल (Dutch metal) : इस में ताम्बा 80 प्रतिशत और जस्ता 20 प्रतिशत होता है।
मोनल धातु (Monal metal) : इस में ताम्बा 27 प्रतिशत, निकिल 70 प्रतिशत और लोहा 3 प्रतिशत होता है।

ताम्बे के बर्तन का पूजा में उपयोग कब से / Use of Copper Utensils in Worship


-शीतांशु कुमार सहाय 
अधिकतर धार्मिक कार्यों में या पूजा-पाठ में ताम्बे के पात्रों का ही उपयोग किया जाता है। यह वैज्ञानिक रूप से अत्यन्त शुद्ध धातु माना जाता है। इस के अलावा ताम्बा और टिन मिलाकर काँसा तथा ताम्बा और जस्ता मिलाकर बनाये गये पीतल धातु से निर्मित पात्रों का भी धर्म-कर्म में प्रयोग होता है। सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म में भगवान की पूजा से संबंधित अनेक नियम हैं। उन में से एक यह भी है कि पूजा के पात्र यानी बर्तन ताम्बे के होने चाहिये। पूजा में ताम्बे के बर्तनों के उपयोग से सम्बन्धित कथा का वर्णन 'वराहपुराण' में मिलता है।
सृष्टि के आरम्भिक काल में गुडाकेश नाम का एक असुर हुआ था। वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। 'गुडाका' का अर्थ है नींद और जो नींद को जीत लेता है वह 'गुडाकेश' है। नींद का अर्थ अज्ञान भी है। द्वापर युग में अर्जुन ने कृष्ण की मित्रता के कारण नींद तथा अज्ञान दोनों पर विजय प्राप्त की थी, अतः अर्जुन को 'गुडाकेश' कहा गया। 
असुर गुडाकेश ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। वह ताम्बे का शरीर धारण कर १४ हज़ार वर्ष तक पूरी श्रद्धा और विश्वास से भगवान विष्णु की आराधना करता रहा। उस की कठिन तपस्‍या से संतुष्‍ट होकर भगवान विष्णु प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा।
भगवान को देखकर गुडाकेश अत्यन्त आनन्दित हुआ। पीताम्‍बर भगवान विष्णु शंख, चक्र और गदा से युक्त चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए थे। वह अतिशय रोमांचित होकर भगवान के चरणों पर वह गिर पड़ा। उस के नेत्र हर्ष के आँसू से भींग गये, हृदय आह्लाद से भर गया, गला रुँध गया और वह कुछ भी नहीं बोल पा रहा था। कुछ देर पश्चात शरीर व मन को स्थिर कर हाथ जोड़कर नतमस्तक हो भगवान के सम्मुख खड़ा हो पाया। भगवान ने कहा, "निष्‍पाप गुडाकेश! तुम ने कर्म, मन और वाणी से जिस वस्‍तु को वांछनीय समझा हो, जो तुम्‍हें अच्‍छी लगती हो, माँग लो। मैं आज तुम्‍हें सब कुछ दे सकता हूँ।"
कमलनयन भगवान विष्णु की बात सुनकर गुडाकेश ने कहा, "भगवान! यदि आप मुझ पर पूर्ण रूप से प्रसन्‍न हैं तो ऐसी कृपा करें कि मैं जहाँ-जहाँ जन्‍म लूँ, प्रत्येक जन्‍म में आप के चरणों में ही मेरी आस्था व भक्ति बनी रहे। आप के हाथ से छोड़े गये चक्र से ही मेरी मृत्‍यु हो और जब चक्र से मैं मारा जाऊँ, तब मेरे मांस, मज्‍जा आदि अत्‍यन्‍त पवित्र ताम्बे के रूप में परिवर्तित हो जायें।" गुडाकेश ने यह भी वरदान माँग लिया कि ताम्बे के पात्र में भोग लगाने से भगवान प्रसन्‍न होंगे। इस तरह मरने के बाद भी गुडाकेश का शरीर भगवान के ही काम में आ रहा है। 
भक्तवत्सल भगवान ने गुडाकेश की प्रार्थना स्‍वीकार की और कहा कि वैशाख शुक्‍ल द्वादशी के दिन चक्र के माध्यम से उसे मुक्ति मिलेगी। यह वचन देकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये। 
मुक्ति की तिथि वैशाख शुक्‍ल द्वादशी की प्रतीक्षा में गुडाकेश पुनः तपस्‍या करने लगा। तिथि आ गयी। वह उत्‍साह के साथ भगवान की प्रार्थना करने लगा, "हे प्रभु! शीघ्रातिशीघ्र धधकती अग्नि के समान जाज्‍वल्‍यमान चक्र मुझ पर छोड़ें, अब विलम्‍ब न करें। हे नाथ! मेरे शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर मुझे शीघ्र ही अपने चरणों की सन्निधि में बुला लें।" 
भक्त की सच्‍ची प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने शीघ्र ही चक्र से गुडाकेश के शरीर को टुकड़े-टुकड़े कर अपने धाम वैकुण्ठ में बुला लिया। प्‍यारे भक्त के शरीर का अंश होने के कारण भगवान को आज भी ताम्बा प्रिय है। गुडाकेश के मांस से ताम्बा, रक्त से सोना, हड्डियों से चाँदी का निर्माण हुआ। यही कारण है कि भगवान की पूजा में हमेशा ताम्बे के बर्तनों का उपयोग किया जाता है। 

साथ ही ताम्बे के दो मिश्रधातुओं (पीतल व काँसा) का उपयोग भी धार्मिक कार्यों में होता है। पीतल में ताँबा 73-66 तथा जस्ता 27-34 प्रतिशत तक होता है। काँसा में ताँबा और टिन की मात्रा क्रमश: 75-80 प्रतिशत और 25-20 प्रतिशत तक होती है। 

गुरुवार, 31 मई 2018

क्रिप्टोजैकिंग : कम्प्यूटर हैकिंग का नया हथियार / Crypto Jacking : A New Weapon of Computer Hacking


-शीतांशु कुमार सहाय
क्या आप का फोन अचानक से धीमा हो गया है? क्या इस की बैटरी अचानक गर्म हो जाती है और बहुत जल्दी डिस्चार्ज भी हो रही है? अगर आप के फोन या लैपटॉप के साथ ऐसा हो रहा है तो शायद यह क्रिप्टोजैकिंग की चपेट में है। दरअसल, क्रिप्टोजैकिंग के जरिये क्रिप्टोकरेंसी माइनर आप की जानकारी के बिना फोन या कंप्यूटर की क्षमता का उपयोग कर रहे हैं। आप के कंप्यूटर को हैक कर उस की क्षमता का उपयोग क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग में किया जा रहा है।
अप्रैल-मई २०१८ में आदित्य बिड़ला समूह के दो हज़ार से अधिक कंप्यूटरों पर क्रिप्टोजैकिंग मालवेयर का हमला हुआ। इस से पहले ड्रूपल (Drupal) की सहायता से बनी 300 से अधिक वेबसाइटों पर क्रिप्टोजैकिंग हमले की खबरें थीं। ड्रूपल एक स्वतंत्र और खुला ऑनलाइन वेब स्रोत सामग्री प्रबंधन (सीएमएफ) ढाँचा है।
फरवरी २०१८ में टेस्ला की वेबसाइट पर भी इस तरह का हमला हुआ था। सॉफ्टेयर सुरक्षा कंपनी क्विक हील के अनुसार, वर्ष २०१७ में कंपनी ने क्रिप्टोकरेंसी माइनरों की ओर से इस तरह के १.४ करोड़ हमलों की पहचान की थी।
क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग प्रक्रिया में दो तरह के कार्य होते हैं। पहला, ब्लॉकचेन में जोडऩे के लिए नए ब्लॉक का सृजन और दूसरा, प्रत्येक लेन-देन के सफल होने के लिए किसी अन्य ब्लॉक की वैधता की जाँच करना। इसे तकनीकी भाषा में प्रूफ ऑफ वर्क (पीओडब्ल्यू) कहते हैं और इस के लिए बहुत अधिक कंप्यूटर क्षमता और बिजली का उपयोग होता है। इस के लिए कई माइनिंग फर्म उपयोगकर्ताओं के एक समूह में कार्य करती हैं, जिस से उन के कंप्यूटरों की क्षमता का सामूहिक उपयोग किया जा सके।
साइबर सुरक्षा प्रदाता कंपनी एफ सिक्योर के अनुसार, यह सब कॉइनहाइव कंपनी के सॉफ्टवेयर से शुरू हुआ। कंपनी ने सामान्य कंप्यूटरों पर माइनिंग के लिए जावा स्क्रिप्ट कोड लिखे लेकिन ये इतने सरल थे कि हैकरों ने इस का दुरुपयोग शुरू कर दिया।
क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग की प्रक्रिया काफी जटिल होती है, जिसे एक सामान्य कंप्यूटर द्वारा पूरा करने में दो-तीन दिन लग जाते हैं। इस के कारण इसे कंप्यूटरों के समूह में करना आसान रहता है। साइबर अपराधी पैसा कमाने के लिए पहले रैनसमवेयर जैसे हमले करते थे लेकिन क्रिप्टोजैकिंग इस का एक आसान माध्यम है। एक सामान्य जावा स्क्रिप्ट कोड की सहायता से विभिन्न वेबसाइटों और ऑनलाइन विज्ञापनों के माध्यम से ये कोड आप के कंप्यूटर या मोबाइल तक पहुँच जाते हैं। इस से कंप्यूटर की क्षमता काफी धीमी हो जाती है। ऐसा वेब सर्वर सेवा प्रदाता की जानकारी या इस के बिना भी किया जा सकता है।
वेब ब्राउजर "गूगल क्रोम" के कुछ एक्स्टेंशन में भी इस तरह के मालवेयर पाये गये हैं। इन हमलों से उपभोक्ता या कंपनियों की सेवाओं की गति काफी धामी हो जाती है और कंपनी के सर्वर की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। कुछ मामलों में क्रिप्टोजैकिंग हमले कंप्यूटर के एंटीवायरस को अद्यतन होने से रोक देते हैं और फिर सर्वर से जुड़कर माइनिंग प्रारंभ कर देते हैं।
पिछले वर्ष अक्टूबर-नवंबर में इस तरह के हमलों की संख्या में तेज देखी गई। इन में मोनेरो क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग से जुड़े मामले काफी अधिक रहे। क्विक हील सिक्योरिटी लैब्स के अनुसार, फरवरी 2018 के शुरुआती 10 दिनों में ही कॉइनहाइव मालवेयर हमलों के लगभग 1.9 लाख मामले सामने आए। इन की खास बात यह है कि सामान्य तौर पर इन की पहचान करना बहुत मुश्किल है। 
हमें इन हमलों को लेकर काफी सजग रहने की जरूरत है। देखना होगा कि क्या किसी विशेष वेबसाइट पर जाने के बाद कंप्यूटर की गति कम तो नहीं हो गई? या फिर कंप्यूटर के पंखे की गति बढ़ तो नहीं गयी है?' इस तरह के हमलों से बचने के लिए कंप्यूटर में एक अच्छा ऐंटीवायरस रखना आवश्यक है। एंटीवायरस को लगातार अपडेट करते रहें। इस तरह के हमलों में रोज नये मालवेयर बनाये जाते हैं, इसलिए अद्यतन एंटीवायरस की सहायता से इन से बचा जा सकता है।

क्रिप्टोजैकिंग से बचाव :
मोबाइल फोन या कंप्यूटर की गति और क्षमता पर लगातार नजर बनाए रखें।
आवश्यकता न होने पर इंटरनेट बंद कर दें।
कंप्यूटर में नया एंटीवायरस रखें और लगातार अपडेट करते रहें।
सभी ऑनलाइन खातों के लिए द्वि-स्तरीय सुरक्षा अपनायी जाय।

ज्योतिष : जन्म कुण्डली निर्माण अनिवार्य / Astrology : Birth Horoscope is Compulsory

-शीतांशु कुमार सहाय
जन्म के समय का बड़ा महत्त्व है। इस समय का जीवनपर्यन्त प्रभाव पड़ता है। बच्चे का जन्म चाहे स्वतः अर्थात् प्राकृतिक रूप से हो या शल्य क्रिया द्वारा, उस के जन्म का समय उस के भविष्य को निर्धारित करता है। वास्तव में जन्म के समय ब्रह्माण्ड में ग्रहों और नक्षत्रों की जो स्थिति होती है, उस का प्रभाव जीवनभर पड़ता रहता है। 
भारत के ऋषियों ने प्राचीन काल में ही अपनी ज्योतिषीय गणना द्वारा यह बताया था जो आज कृत्रिम उपग्रहों के युग में भी अक्षरशः सत्य है। इसी आधार पर नवजात की जन्म कुण्डली बनायी जाती है। इस से बच्चे की रुचि, रोजगार, व्यवसाय, दुर्घटना, विवाह की स्थिति, विदेश यात्रा, विघ्न-बाधा आदि की सहज जानकारी मिल जाती है। यों बेटे या बेटी के भविष्य निर्धारण में महत्त्वपूर्ण सहयोग मिलता है। समस्याओं के समय रहते समाधान निकालने का अवसर मिल जाता है। 
कुछ बड़े लोग भी कुण्डली की जानकारी से अनभिज्ञ हैं। यदि आप बड़े हो गये और आप के माता-पिता ने आप की कुण्डली नहीं बनवायी है तो आप वरदान ज्योतिष केन्द्र से अपनी कुण्डली बनवा सकते हैं। 
ज्योतिषीय गणना चँूकि सूर्य या चन्द्र की चाल पर निर्भर करता है, अतः यह पूर्णतः वैज्ञानिक है। पर, आवश्यक यह है कि आप जिस ज्योतिषाचार्य की सेवा ले रहे हैं, वह वास्तव में ज्योतिषीय ज्ञान में पारंगत हो और सटीक गणना का उसे पूर्ण ज्ञान हो। 

शनिवार, 26 मई 2018

पटना उच्च न्यायालय ने दी व्यवस्था : परिवार में कोई नौकरीवाला है तो आश्रित को अनुकम्पा पर नौकरी नहीं / Patna High Court Gave the Order : There is no Employer in the Family, Then the Dependent does not have Employment on Compassionate Grounds.

-शीतांशु कुमार सहाय 
अनुकम्पा के आधार पर नौकरी प्राप्त करना काफी कठिन है। कई अधिकारियों के मान-मनव्वल और रिश्वत के बाद ही नौकरी मिल पाती है। अब पटना उच्च न्यायालय के नये आदेश की गलत व्याख्या करके अधिकारी अनुकम्पा के लाभार्थियों की नानी याद दिला देंगे। दरअसल, पटना उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि किसी सरकारी कर्मचारी के सेवाकाल में मृत्यु के बाद उस का कोई बच्चा नौकरी में है तो कर्मचारी के अन्य आश्रितों को अनुकंपा पर नौकरी नहीं मिलेगी। मुख्य न्यायाधीश राजेन्द्र मेनन, न्यायमूर्ति डॉ. रवि रंजन व न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की तीन सदस्यीय पीठ ने यह व्यवस्था कई याचिकाओं व अपील पर सुनवाई के बाद दी। 
तीन सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट किया कि कर्मचारी के किसी बच्चे की नौकरी ऐसी हो कि वह परिवार के अन्य सदस्यों का भरण-पोषण कर सके तो उसे अनुकम्पा का लाभ नहीं दिया जा सकता। अगर ऐसा नहीं है तो कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा पर नौकरी दी जा सकती है। न्यायालय ने यह व्यवस्था देते हुए याचिकाकर्ता निरंजन कुमार मल्लिक सहित अन्य की याचिकाओं को खारिज कर दिया। 
पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि मृत कर्मचारी का कोई आश्रित नौकरी करता है तो अधिकारी को यह देखना है कि वह परिवार के अन्य सदस्यों को खिला सकता है या नहीं। अगर नहीं खिला सकता है तो मृत कर्मचारी के अन्य आश्रित को अनुकंपा पर नौकरी देने का विचार किया जा सकता है। 
न्यायालय ने कहा कि अनुकम्पा पर नौकरी दिया जाना सामान्य तरह से नौकरी दिये जाने के समान नहीं है। इस में यह देखा जाता है कि मृत कर्मचारी के आश्रितों का भरण-पोषण कैसे होगा। परिवार में भरण-पोषण करनेवाला कोई नहीं है तो आश्रित को अनुकम्पा पर नौकरी दी जाती है। 
पटना उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार का मृत कर्मचारी के किसी आश्रित को नौकरी में होने की दशा में अन्य आश्रित को अनुकम्पा पर नौकरी नहीं देना, उस का नीतिगत फैसला है। इस में अधिकारी को यह नहीं देखना है कि नौकरी करनेवाला आश्रित दूसरे आश्रितों का भरण-पोषण करेगा कि नहीं। सरकार सकारात्मक दृष्टिकोष रखते हुए देखती है कि नौकरी करनेवाला आश्रित परिवार के अन्य सदस्यों का भरण-पोषण करेगा। 
यहाँ यह विचारयोग्य है कि सरकार पहले ही कई नौकरियों में पेंशन बंद कार चुकी है। साथ ही कई अन्य लाभों को भी बंद कर दिया गया है। अब एक अनुकम्पा का लाभ ही सरकारी नौकरी में बचा था जो पटना उच्च न्यायालय की दी गयी व्यवस्था के बाद लगभग समाप्त ही हो जायेगा।

रविवार, 15 अप्रैल 2018

षष्ठी देवी का स्तोत्र, मन्त्र और महिमा / Shashthi Devi's Stotra, Mantra & Magnificence


-शीतांशु कुमार सहाय
         षष्ठी देवी को ही छठी मइया कहते हैं। भगवती षष्ठी ब्रह्माजी की मानसी कन्या हैं। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इन का नाम ‘षष्ठी देवी’ है। छठी मैया जगत को अनवरत् मंगल प्रदान कर रही हैं।

छठ व्रत कथा देखने-सुनने के लिए नीचे के लिंक पर क्लिक करें :

छठ व्रत कथा


         छठी मइया समय-समय पर असुरों का संहार करती रहीं और भक्तों का उद्धार करती रहीं। वह अब भी असुरों का नाश कर रही हैं। वर्तमान कलियुग में असुर सूक्ष्म रूप से हमारे मन-मस्तिष्क में प्रवेश कर गये हैं। हमारे अन्दर के ये असुर हमारे दुर्गुण के रूप में, कुकर्म के रूप में और रोग के रूप में प्रकट हो रहे हैं। इन असुरों से बचने के लिए हमें अनिवार्य रूप से छठी मइया की पूजा करनी चाहिये। छठ में तो सूर्यदेव के साथ छठी माता की पूजा स्वतः हो जाती है। छठ व्रत में ब्रह्म और शक्ति दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है, इसलिए व्रत करने वालों को दोनों की पूजा का फल मिलता है। अन्य किसी भी व्रत में ऐसा नहीं है। कई ग्रन्थों में षष्ठी देवी का वर्णन है। सामवेद की कौथुमी शाखा में भी इन की चर्चा है।
        सतयुग, त्रेतायुग और द्वापर युग में भी छठी माता की आराधना होती रही है। द्वापर युग में पाण्डव की पत्नी द्रौपदी ने महर्षि धौम्य के बताने पर छठ व्रत किया और युधिष्ठिर को पुनः राजपाट प्राप्त हुआ। उस से पूर्व के काल में नागकन्या के उपदेश से सुकन्या ने छठ किया था।

यों करें छठी मइया की पूजा 

        इन की प्रतिमा या चित्र बनाकर पूजा की जा सकती है। शालग्राम की प्रतिमा बनायी जा सकती है। बिना प्रतिमा के केवल कलश स्थापित करके भी पूजा हो सकती है। वटवृक्ष के जड़वाले भाग में छठी माई की उपस्थिति मानकर अर्चना करनी चाहिये। अगर ये सब सम्भव न हो तो घर की दीवार को साफ कर लें और उस पर चित्र बनाकर प्रकृति के छठे अंश से प्रकट होनेवाली शुद्धस्वरूपिणी भगवती छठी की पूजा करनी चाहिये। 
        भगवती देवसेना अर्थात् छठी माई का पूजन प्रतिदिन हो रहा है; क्योंकि प्रतिदिन और प्रतिक्षण जन्म का क्रम जारी है। श्रद्धावानों को प्रतिमाह शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी मइया की पूजा करनी चाहिये। प्रतिदिन या प्रतिमाह षष्ठी तिथि को भगवती षष्ठी की पूजा न कर सकें तो वर्ष में दो बार चैत्र और कार्तिक में होनेवाले छठ में से कोई एक छठ व्रत तो करना ही चाहिये। छठ को ही रविषष्ठी व्रत या सूर्यषष्ठी व्रत भी कहते हैं।

षष्ठी देवी का ध्यान इस मंत्र से करें 

श्रीमन्मातरमम्बिकां विधि मनोजातां सदाभीष्टदां 
स्कन्देष्टां च जगत्प्रसूं विजयदां सत्पुत्र सौभाग्यदाम् ।
सद्रत्नाभरणान्वितां सकरुणां शुभ्रां शुभां सुप्रभां 
षष्ठांशां प्रकृतेः परां भगवतीं श्रीदेवसेनां भजे ॥
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्। 
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्। 
पवित्ररूपां परमां देवसेनां परां भजे।।
        ध्यान के बाद ॐ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा इस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए। इस के साथ ही देवी के इस अष्टाक्षर मंत्र का तुलसी या लाल चन्दन के माला से यथाशक्ति जप करना चाहिए। देवी के पूजन तथा जप के बाद षष्ठीदेवी स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करना चाहिए। एक वर्ष तक इस के पाठ से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी।

षष्ठी देवी स्तोत्र

        मैं यहाँ  छठी मइया अर्थात् षष्ठी देवी के स्तोत्र का उल्लेख कर रहा हूँ जो सम्पूर्ण कामनाओं को प्रदान करनेवाला, सब का मनोरथ पूर्ण करनेवाला है--

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्धै शान्त्यै नमो नम:। 

शुभायै देवसेनायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।१।।


वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।

सुखदायै मोक्षदायै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।२।।


सृष्ट्यै षष्ठांशरूपायै सिद्धायै च नमो नम:।

मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।३।।


सारायै शारदायै च परादेव्यै नमो नम:।

बालाधिष्ठातृदेव्यै च षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।४।।


कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम्।

प्रत्यक्षायै च सर्वभक्तानां षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।५।।


पूज्यायै स्कन्दकान्तायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।

देवरक्षणकारिण्यै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।६।।


शुद्धसत्त्वस्वरूपायै वन्दितायै नृणां सदा।

हिंसाक्रोधवर्जितायै षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।७।।


धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि।

धर्मं देहि यशो देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।८।।


भूमिं देहि प्रजां देहि विद्यां देहि सुपूजिते।

कल्याणं च जयं देहि षष्ठीदेव्यै नमो नम:।।९।।


इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे इतिखण्डे नारदनारायणसंवादे षष्ठ्युपाख्याने श्रीषष्ठीदेविस्तोत्रं सम्पूर्णम्

षष्ठी देवी स्तोत्र का हिन्दी अर्थ

  देवी को नमस्कार है! महादेवी को नमस्कार है! भगवती सिद्धि और शान्ति को नमस्कार है! शुभा, देवसेना और देवी षष्ठी को बार-बार नमस्कार है! १
        वर, संतान और धन देनेवाली देवी को नमस्कार है! सुख और मोक्ष प्रदान करनेवाली षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! २
        मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होनेवाली भगवती सिद्धा को नमस्कार है! माया और सिद्धयोगिनी षष्ठी देवी को बारम्बार नमस्कार है! ३ 
सारा, शारदा और परादेवी को नमस्कार है! बालकों की अधिष्ठातृ षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! ४
        कल्याणदायक, कल्याणस्वरूपिणी, कर्मों के फल प्रदान करनेवाली और भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देनेवाली षष्ठी देवी को बारम्बार नमस्कार है! ५ 
        सब के लिए सम्पूर्ण कार्यों में पूजा प्राप्त करने की अधिकारिणी देवी भगवान स्कन्द यानी कार्तिकेय की पत्नी हैं। देवों की रक्षा करनेवाली हे षष्ठी देवी, आप को बार-बार नमस्कार है! ६
        मनुष्य जिन की सदा वन्दना करते हैं, जो शुद्धसत्त्वस्वरूपा हैं, जो हिंसा और क्रोध से रहित हैं, उन भगवती षष्ठी को नमस्कार है! ७
        हे सुरेश्वरि! आप मुझे धन दीजिये, प्यारी पत्नी दीजिये और पुत्र प्रदान करने की कृपा कीजिये। हे षष्ठी देवी! आप मुझे यश अर्थात् सामाजिक सम्मान प्रदान कीजिये और विजय दीजिये। आप को बार-बार नमस्कार करता हूँ! ८  
        हे सुपूजिते! आप मुझे भूमि दीजिये, प्रजा अर्थात् प्रिय लोग की संगति दीजिये और विद्या प्रदान कीजिये। कल्याण करनेवाली और जय प्रदान करनेवाली षष्ठी देवी को बार-बार नमस्कार है! ९     

षष्ठी देवी स्तोत्र की महिमा 

        ब्रह्मवैवर्तमहापुराण में ही षष्ठीदेवी स्तोत्र के बाद इस का फल बताया गया है। जो व्यक्ति माता षष्ठी के इस स्तोत्र को एक वर्ष तक श्रवण करता है, वह अगर सन्तानहीन है तो दीर्घजीवी सुन्दर पुत्र प्राप्त कर लेता है। जो एक वर्ष तक भक्तिपूर्वक देवी की पूजा कर यह स्तोत्र सुनता है या पढ़ता है तो उस के सम्पूर्ण पाप समाप्त हो जाते हैं। वन्ध्या स्त्री यदि इस स्तोत्र का नियमित पाठ करे या किसी के पाठ करने पर भक्तिपूर्वक श्रवण करे तो वह सन्तानोत्पत्ति की योग्यता प्राप्त कर लेती है। उसे माँ देवसेना की कृपा से गुणवान, यशस्वी, दीर्घायु व श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति होती है। काकवन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्री एक वर्ष तक षष्ठी देवी के स्तोत्र का श्रवण करने के फलस्वरूप भगवती षष्ठी के आशीर्वाद से पुत्रवती हो जाती है। सन्तान को कोई रोग होने पर माता-पिता एक मास तक इस स्तोत्र का श्रवण करें, षष्ठी देवी की कृपा से बालक निश्चय ही नीरोग हो जायेगा।

ऊँ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहा 

        इस मन्त्र से छठी मइया की पूजा की जाती है। यथाशक्ति इस अष्टाक्षर महामन्त्र का जप भी करें। जो व्यक्ति इस मन्त्र का एक लाख जप करता है, उसे अवश्य ही उत्तम पुत्र की प्राप्ति होती है, ऐसा ब्रह्माजी ने कहा है। 

बच्चे की छट्ठी में षष्ठी की पूजा 

        प्राचीन काल में जब प्रियव्रत ने छठी माई की प्रथम पूजा की तब से प्रत्येक महीने में शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को भगवती षष्ठी की पूजा का व्रत मनाया जाने लगा। इसी तरह बच्चों के जन्म के बाद प्रसवगृह में छठे दिन, इक्कीसवें दिन और अन्नप्राशन के शुभ अवसरों पर यत्नपूर्वक छठी मइया की पूजा होने लगी। 

कर्म सब से बलवान 

        राजा प्रियव्रत को माता षष्ठी ने बताया कि सुख-दुःख, भय, शोक, दर्प, मंगल-अमंगल, सम्पत्ति और विपत्ति- ये सब कर्म के अनुसार होते हैं। अपने ही कर्म के प्रभाव से कोई मनुष्य अनेक सन्तानों को जन्म देता है और कुछ लोग सन्तानहीन भी होते हैं, किसी को मरा हुआ पुत्र होता है और किसी को दीर्घजीवी। मनुष्य को कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है। कोई गुणवान है तो कोई मूर्ख, कोई आरोग्यवान है तो कोई रोगी, कोई रूपवान है तो कोई कुरूप या अंगहीन, कोई धर्मी है तो कोई अधर्मी, किसी के कई विवाह होते हैं तो कोई अविवाहित रह जाता है- ये सब कर्म के अनुसार ही होते हैं। कर्म सब से बलवान है। 

माता के कई नाम 

        भगवती षष्ठी ब्रह्माजी की मानसी कन्या हैं। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इन का नाम ‘षष्ठी देवी’ है। भक्त इन्हें प्यार से ‘छठी मइया’ और ‘छठी माता’ कहते हैं। देवताओं को रण में सहायता पहुँचाने और जगत पर शासन करने के कारण इन्हें ‘देवसेना’ कहा जाता है। देवसेना के नाम से ही यह सम्पूर्ण मातृकाओं में प्रसिद्ध हैं। इन के स्वामी शिवपुत्र कार्तिकेय हैं। 

अनवरत् कल्याण  

इन की अपार कृपा से पुत्रहीन को सुयोग्य पुत्र, पत्नीहीन पुरुष को आज्ञाकारिणी पत्नी, पतिहीन कन्या को गुणवान पति, मूर्ख को ज्ञान, दरिद्र को धन तथा कर्मशील व्यक्ति को कर्मों के उत्तम फल प्राप्त होते हैं। छठी मैया जगत को अनवरत् मंगल प्रदान कर रही हैं।

आदिशक्ति का रूप 

        छठी मइया आदिशक्ति का ही रूप हैं। आदिशक्ति को ही हम परमपिता परमेश्वर भी कहते हैं। सृष्टि में जो भी सजीव-निर्जीव और चर-अचर इन स्थूल आँखों से दिखायी दे रहे हैं, वे सब आदिशक्ति के ही रूप हैं। कई ऐसे सूक्ष्म पदार्थ भी हैं जो इन आँखों से नहीं दिखायी देते, वे भी उन्हीं के रूप हैं, उन्हीं की रचना है। उन्हीं का अंश हम भी हैं, आप भी हैं- वह परमात्मा और हम सब के अन्दर आत्मा। इस तरह हमें जानना चाहिये कि छठी मइया सदैव हमारे साथ है। छठी मइया प्राणियों के कल्याण में निरन्तर संलग्न हैं। 

प्रथम भक्त प्रियव्रत

        प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। वे स्वायम्भुव मनु के पुत्र थे। प्रियव्रत योग-साधक होने के कारण विवाह करना नहीं चाहते थे। सदा तपस्या में संलग्न रहते थे। सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी की आज्ञा और सत्प्रयत्न से उन्होंने मालिनी से विवाह तो कर लिया पर कई वर्षों तक सन्तान उत्पन्न नहीं हुई। तब महर्षि कश्यपजी ने पुत्रेष्टियज्ञ कराया और मालिनी गर्भवती हो गयीं। पुत्र उत्पन्न हुआ जो अत्यन्त सुन्दर था, पर जन्म के साथ ही उस की मृत्यु हो गयी। घर-परिवार में प्रसन्नता की जगह उदासी छा गयी। मृत पुत्र के शव का अन्तिम संस्कार करने के लिए राजा प्रियव्रत और रानी श्मशान पहुँचे। वहाँ छठी मइया प्रकट हुईं और उसे जीवित कर दीं। तब प्रियव्रत ने विधिवत उन की पूजा की और षष्ठी देवी के पूजन की परम्परा चल पड़ी। 
छठी मइया की जय!