बिहार की राजधानी पटना का प्राचीन नाम ‘पाटलीपुत्र’ था। सदियों तक भारत की राजधानी पाटलीपुत्र ही थी। उस समय के भारत में वर्तमान भारत (कुछ दक्षिणी भागों को छोड़कर) वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल व भूटान भी शामिल थे। इतने बड़े भू-भाग पर पटना से शासन चलता था। अतः यह अत्यन्त प्राचीन नगर है। यहाँ कहीं भी खुदाई की जाये तो ऐतिहासिक अवशेष मिलेंगे ही। ऐसा ही एक कुआँ पटना के अशोक राजपथ पर गाँधी मैदान के निकट स्थित मगध महिला महाविद्यालय में खुदाई के दौरान मिला जो दो हजार वर्ष पुराना है। चक्र कूप या रिंग वेल तकनीक पर यह कुआँ बना है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम शुक्रवार 9 जनवरी 2015 की सुबह वहाँ पहुँची। जाँच के बाद पता चला कि यह रिंग वेल टेराकोटा ईंटों से बना है। इस बारे में आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सुपरिंटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट एचए नायक ने बताया कि कुआँ लगभग 2000 साल पुराना है। यह कुषाण काल का है। इस तरह के रिंग वेल के अवशेष वैशाली राजा विशाल के गढ़ और राजगीर स्थित घोड़ा कटोरा में भी मिले हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार (8 जनवरी 2015 ) शाम कॉलेज से सूचना मिली कि ग्राउंड में एक कुआँ मिला है। इसके बाद जाँच टीम वहाँ भेजी गई। स्पोर्ट्स डे के लिए कॉलेज ग्राउंड को तैयार किया जा रहा था। गुरुवार को जेसीबी के जरिए कुछ जगहों से मिट्टी खोदकर ग्राउंड में फैलाई जा रही थी। इस दौरान जेसीबी से एक स्लैब टकराया जो सीमेंट से बना था। उसके टूटने के बाद वहाँ की मिट्टी धंस गई। इसके बाद पता चला कि वहाँ कुआँ है। कुआँ मिलने के बाद कॉलेज में भीड़ उमड़ पड़ी, प्रशासन को जगह को सील करना पड़ा। कुएँ के ऊपर लोहे की जाली बिछा दी गई है। कई लड़कियों ने इन तस्वीरों को अपने फेसबुक अकाउंट पर भी शेयर किया है। ऐसे तीन कुएँ कॉलेज में हैं। एक कुआँ कल्याण हॉस्टल के नीचे है जिसे निर्माण के वक्त भर दिया गया। दूसरा कुआँ अवंतिका छात्रावास में है। उसे ढँक दिया गया है और उसमें कचरा डाला जाता है। ये कुएँ भी उसी समय के हो सकते हैं, जिस काल का कुआँ अभी मिला है लेकिन जागरुकता की कमी से उनका अस्तित्व खत्म हो गया। इस बारे में पूछने पर कल्याण हॉस्टल की वार्डन सुहेली महेता ने बताया कि उन्हें हॉस्टल के नीचे कुआँ होने जैसी कोई जानकारी नहीं है। वहीं अवंतिका हॉस्टल की वार्डन प्रो. जयश्री मिश्रा ने बताया कि कुआँ तो है लेकिन पुरातात्विक महत्व का नहीं है।
रविवार, 11 जनवरी 2015
पटना के मगध महिला महाविद्यालय में मिला 2000 वर्ष प्राचीन कुआँ / 2000 years old well at Patna
बिहार की राजधानी पटना का प्राचीन नाम ‘पाटलीपुत्र’ था। सदियों तक भारत की राजधानी पाटलीपुत्र ही थी। उस समय के भारत में वर्तमान भारत (कुछ दक्षिणी भागों को छोड़कर) वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल व भूटान भी शामिल थे। इतने बड़े भू-भाग पर पटना से शासन चलता था। अतः यह अत्यन्त प्राचीन नगर है। यहाँ कहीं भी खुदाई की जाये तो ऐतिहासिक अवशेष मिलेंगे ही। ऐसा ही एक कुआँ पटना के अशोक राजपथ पर गाँधी मैदान के निकट स्थित मगध महिला महाविद्यालय में खुदाई के दौरान मिला जो दो हजार वर्ष पुराना है। चक्र कूप या रिंग वेल तकनीक पर यह कुआँ बना है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम शुक्रवार 9 जनवरी 2015 की सुबह वहाँ पहुँची। जाँच के बाद पता चला कि यह रिंग वेल टेराकोटा ईंटों से बना है। इस बारे में आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सुपरिंटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट एचए नायक ने बताया कि कुआँ लगभग 2000 साल पुराना है। यह कुषाण काल का है। इस तरह के रिंग वेल के अवशेष वैशाली राजा विशाल के गढ़ और राजगीर स्थित घोड़ा कटोरा में भी मिले हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार (8 जनवरी 2015 ) शाम कॉलेज से सूचना मिली कि ग्राउंड में एक कुआँ मिला है। इसके बाद जाँच टीम वहाँ भेजी गई। स्पोर्ट्स डे के लिए कॉलेज ग्राउंड को तैयार किया जा रहा था। गुरुवार को जेसीबी के जरिए कुछ जगहों से मिट्टी खोदकर ग्राउंड में फैलाई जा रही थी। इस दौरान जेसीबी से एक स्लैब टकराया जो सीमेंट से बना था। उसके टूटने के बाद वहाँ की मिट्टी धंस गई। इसके बाद पता चला कि वहाँ कुआँ है। कुआँ मिलने के बाद कॉलेज में भीड़ उमड़ पड़ी, प्रशासन को जगह को सील करना पड़ा। कुएँ के ऊपर लोहे की जाली बिछा दी गई है। कई लड़कियों ने इन तस्वीरों को अपने फेसबुक अकाउंट पर भी शेयर किया है। ऐसे तीन कुएँ कॉलेज में हैं। एक कुआँ कल्याण हॉस्टल के नीचे है जिसे निर्माण के वक्त भर दिया गया। दूसरा कुआँ अवंतिका छात्रावास में है। उसे ढँक दिया गया है और उसमें कचरा डाला जाता है। ये कुएँ भी उसी समय के हो सकते हैं, जिस काल का कुआँ अभी मिला है लेकिन जागरुकता की कमी से उनका अस्तित्व खत्म हो गया। इस बारे में पूछने पर कल्याण हॉस्टल की वार्डन सुहेली महेता ने बताया कि उन्हें हॉस्टल के नीचे कुआँ होने जैसी कोई जानकारी नहीं है। वहीं अवंतिका हॉस्टल की वार्डन प्रो. जयश्री मिश्रा ने बताया कि कुआँ तो है लेकिन पुरातात्विक महत्व का नहीं है।
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