गुरुवार, 12 जुलाई 2018

वीर सावरकर को शत-शत नमन Veer Sawrkar

-शीतांशु कुमार सहाय
जिन की किताब १९०९ में लिखी पुस्तक 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' (१८५७ : प्रथम स्वातंत्र्य समर') को पढ़कर क्रांतिकारी भगत सिंह प्रेरित हुए और उसे पुनर्मुद्रित कराकर उस की प्रतियाँ जनता में बाँटी, जिन की पुस्‍तक 'हिंदुत्‍व' ने भारतीय राजनीति का परिदृश्‍य बदल दिया, जिन को क्रांतिकारी कार्य के लिए अँग्रेजों ने दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जिन्‍होंने समाज में व्‍याप्‍त कुरीतियों को खत्‍म करने की मुहिम चलायी-- ऐसे महापुरुष वीर सावरकर को शत-शत नमन! उन का जन्म २८ मई १८८३ को महाराष्ट्र (तत्कालीन बम्बई प्रान्त) के नासिक जिलान्तर्गत भगूर गाँव में हुआ था। उन का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर थावे स्वाधीनता संग्राम के तेजस्वी सेनानी, महान क्रान्तिकारी, वकील, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, नाटककार, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं उन्होंने १८५७  के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला दिया था। सावरकर कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे
* सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य योद्धा थे जिन्हें दो-दो आजीवन कारावास की सजा मिली, सजा को पूरा किया और फिर से राष्ट्र जीवन में सक्रिय हो गये।
* वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिन की कृति 'द इंडियन वॉर ऑफ़ इंडिपेंडेंस-1857' को दो-दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया। अमर शहीद भगत सिंह ने इस पुस्तक का तीसरा संस्करण अपने पैसों से छपवा कर बंटवाया।
* वे पहले स्नातक थे जिन की स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अँगरेज सरकार ने वापस ले लिया।
* सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के केन्द्र लंदन में उस के विरुद्ध क्रांतिकारी आंदोलन संगठित किया था।
* सावरकर भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने सन् १९०५ ईस्वी के बंग-भंग के बाद सन् १९०६ में 'स्वदेशी' का नारा दे, विदेशी वस्त्रों की होली जलायी 
* वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।
* वीर सावरकर ने राष्ट्रध्वज तिरंगे के बीच में धर्मचक्र लगाने का सुझाव सर्वप्रथम ‍दिया था, जिसे राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने माना।
* सावरकर पहले भारतीय थे जिस ने एक अछूत को मंदिर का पुजारी बनाया था।
* उन्होंने ही सब से पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। वे ऐसे प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला पहुँचा।
* वे पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।
* दुनिया के वे ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंदमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएँ लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई दस हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा।
* वे प्रथम क्रान्तिकारी थे, जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार ने झूठा मुकदमा चलाया और बाद में निर्दोष साबित होने पर माफी माँगी।

* १९६६ ईस्वी में वीर सावरकर के निधन पर भारत सरकार ने उन के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। इस महान देशभक्त की मृत्यु २६ फ़रवरी १९६६ ईस्वी को मुम्बई में हुई

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