-शीतांशु कुमार सहाय
पूरा संसार चीन की मनमानी से उत्पन्न नोवेल कोरोना विषाणु के खिलाफ युद्ध कर रहा है। चीन ने काफ़ी देर से इस नोवेल कोरोना विषाणु से उत्पन्न रोग कोविड-१९ की भयावहता से संसार को परिचय कराया और तब तक इस से संक्रमित लोग चीन से कई देशों तक पहुँच चुके थे और बड़ी तेज गति से इस रोग ने महामारी का रूप ले लिया। इसलिए इसे चीन द्वारा विश्व समुदाय से अघोषित परोक्ष युद्ध की संज्ञा दी गयी है। चीन की इस ख़तरनाक हरक़त से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है। सारी गतिविधियाँ कोरोना युद्ध से जीतने में सिमट गयी है। स्थिति इतनी ख़राब है कि पृथ्वी का पूरा मानव समुदाय नोवेल कोरोना विषाणु से काँप रहा है।
नवम्बर २००२ और जुलाई २००३ के बीच कहर बनकर बरपे संक्रामक रोग सार्स भी चीन से ही पनपा था। वास्तव में सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिण्ड्रोम जिसे हिन्दी में गम्भीर तीव्र श्वसन रोग का लक्षण कहा जाता है, इसे ही संक्षेप में SARS यानी सार्स कहा गया। कोरोना वायरस के सम्बन्ध में चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग का मानना है कि नोवेल कोरोना वायरस का करीब १७ साल पहले चीन में आतंक मचा चुके सार्स से जुड़ाव ख़तरनाक है।
इस भयावह स्थिति के बीच आशाभरी एक खबर संयुक्त राज्य अमेरिका से आयी है। अमेरिका में कोरोना वायरस की दवाई और वैक्सीन तैयार की जा चुकी है। पहले इस का परीक्षण अन्य जन्तुओं पर किया गया। उस के बाद मानव पर भी इस टीके का परीक्षण हो चुका है। खु़शी की बात है कि ये सारे परीक्षण सफल रहे हैं। जो दवा बनायी गयी है वह पहले से मलेरिया रोग के शमन के लिए उपयोग की जा रही दवा क्लोरोक्वीन (cloroquine) और हाड्रोक्सिक्लोरोक्वीन (Hydroxycloroquine) के संयोग से बनायी गयी है। भारत में भी इन दोनों दवाइयों के प्रयोग कोविड-१९ के रोगियों पर हो रहे हैं। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस से नोवेल कोरोना वायरस को खत्म करने में सफलता हासिल की है।
अमेरिका सहित चार देशों में क्लोरोक्वीन और हाड्रोक्सिक्लोरोक्वीन के संयोग से बनी दवाई और टीके के ट्रायल के शानदार सकारात्मक परिणाम आये हैं। अमेरिका के अलावा चीन, दक्षिण कोरिया और फ्रान्स में अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित कोरोना विषाणु को ख़त्म करनेवाले टीके का ट्रायल किया गया है। अब इस के क्लिनिकल ट्रायल को मंजूरी मिली है।
अमेरिका के सेण्टर फॉर डिजिज कण्ट्रोल एण्ड प्रिवेन्शन (CDC) के अनुसार अमेरिकी वैज्ञानिकों ने मलेरिया की दवा क्लोरोक्वीन और हाड्रोक्सिक्लोरोक्वीन के संयोग से एक टीका भी तैयार किया है। अमेरिका की फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने इस टीके के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी है। फरवरी २०२० से इस टीके के ट्रायल चीन, दक्षिण कोरिया, फ्रान्स और अमेरिका में सफल रहे हैं। जिन मरीजों का इलाज इस टीके से किया गया है, उन में काफी प्रभावी नतीजे मिले हैं।
नोवेल कोरोना वायरस से उत्पन्न रोग कोविड-१९ का टीका यानी वैक्सीन का पहला मानव परीक्षण अमेरिका में वॉशिंगटन के सिएटल शहर में यहीं की एक ४३ साल की महिला जेनिफर हॉलर पर किया है। नोवेल कोरोना वायरस से बचाने के लिए बनाये गये वैक्सीन का परीक्षण सोमवार, २३ मार्च २०२० से शुरू हो चुका है। अमेरिका में राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान (NIH) इस परीक्षण के लिए धन मुहैया करा रहा है और यह परीक्षण सिएटल में कैसर परमानेण्ट वॉशिंगटन हेल्थ रिसर्च इन्स्टीट्यूट में हो रहा है। यह परीक्षण ४५ युवा एवं स्वस्थ स्वेच्छाकर्मियों के साथ शुरू हुआ।
अमेरिकी सरकार जल्द ही इस टीके से चिकित्सा शुरू कर सकती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना वायरस को खत्म करने में इस नये टीके ने सफलता हासिल की है। हालाँकि किसी भी टीके को मंजूरी देने में काफी लम्बा समय लगता है लेकिन वैश्विक चुनौती और हालात देखते हुए अगले कुछ दिनों में इसे इलाज के लिए हरी झण्डी मिलने की उम्मीद है।
वैज्ञानिको का कहना है कि सार्स वायरस को खत्म करने में इस दवा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। इस बार इस टीके में कोरोना वायरस के जेनेटिकल कोड के हिसाब से बदलाव किये गये हैं। कोरोना वायरस से लड़ने में इस टीके के नतीजे़ काफ़ी आशाजनक हैं। वास्तव में सार्स का ही भयंकर रूप है नोवेल कोरोना वायरस। भारत के केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय के का कहना है कि अगर किसी टीके को अमेरिका के थ्क्। यानी फूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से मंजूरी मिल जाती है तो भारत बिना देरी किये इस का इस्तेमाल कर सकता है। आम तौर पर भारत में किसी नयी दवा को चिकित्सा में शामिल करने से पहले लम्बी प्रक्रिया से गुजरना होता है। सामान्य तौर पर मंजूरी मिलने में २ से ३ महीने भी लग जाते हैं।
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