-शीतांशु कुमार सहाय
श्रावण मास के प्रथम सोमवार को अपने सभी शुभेच्छुओं की ओर से भगवान शिव के श्रीचरणों में कोटिशः नमस्कार!
सनातन धर्म में हर दिवस का सम्बन्ध किसी-न-किसी देवता से है। सप्ताह का प्रथम दिवस रविवार को भगवान भास्कर की उपासना की जाती है। मंगलवार को भगवान मारूतिनन्दन हनुमान का दिन माना जाता है। कहीं-कहीं इसे मंगलमूर्ति गणपति का भी दिवस मानते हैं। बुधवार को बुध की पूजा का विधान है; क्योंकि यह शांति का दिवस है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी विशेष साप्ताहिक आराधना की जाती है। बृहस्पतिवार को कदली यानी कला वृक्ष में देवगुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है। अत: बृहस्पतिवार को गुरुवार भी कहते हैं। गुरुवार को भगवान विष्णु की अर्चना का भी विधान है। शुक्रवार भगवती संतोषी के दिवस के रूप में प्रसिद्ध है तो शनिवार को महाकाल रूप भैरव एवं महाकाली की उपासना के जाती है। शनिवार को भी भगवान हनुमान की विशेष पूजा होती है। ठीक ऐसे ही भगवान शंकर सोमवार को सब से ज्यादा पूजे जाते हैं। हर सनातनधर्मी का आग्रह होता है कि और किसी दिन शिव मंदिर जाएँ या न जाएँ लेकिन सोमवार को दर्शन अवश्य करेंगे। आखिर ऐसा क्यों? शिव के लिए सोमवार का आग्रह ही क्यों? इस पर कुछ चिंतन करें, विचार करें।
सब से पहले दिनों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में विचार करते हैं। वास्तव में ये सारे दिवस भगवान शिव से ही प्रकट माने जाते हैं। शिवमहापुराण के अनुसार, प्राणियों की आयु का निर्धारण करने के लिए भगवान शंकर ने काल की कल्पना की। उसी से ही ब्रह्मा से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का अनुमान लगाया जाता है। उस काल को ही व्यवस्थित करने के लिए महाकाल ने सप्तवारों की कल्पना की। सब से पहले ज्योतिस्वरूप सूर्य के रूप में प्रकट होकर आरोग्य के लिए प्रथमवार (रविवार) की कल्पना की-
संसारवैद्यः सर्वज्ञः सर्वभेषजभेषजम्।
आय्वारोग्यदं वारं स्ववारं कृतवान्प्रभुः॥
अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति के लिए द्वितीयवार की कल्पना की। उस के बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार के लिए अत्यन्त सुन्दर तृतीयवार की कल्पना की। तदनन्तर सर्वलोकों की रक्षा का भार वहन करनेवाले परम मित्र मुरारी के लिए चतुर्थवार की कल्पना की। देवगुरु के नाम से पञ्चमवार की कल्पना कर उस का स्वामी यम को बना दिया। असुरगुरु के नाम से छठे वार की कल्पना कर उस का स्वामी ब्रह्मा को बना दिया एवं सप्तमवार की कल्पना कर उस का स्वामी इंद्र को बना दिया।
नक्षत्र चक्र में सात मूल ग्रह ही दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए भगवान ने सूर्य से लेकर शनि तक के लिए सातवारों की कल्पना की। राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण दृष्टिगत न होने से उन के वार की कल्पना नहीं की गयी।
भगवान शिव की उपासना हर वार को अलग फल प्रदान करती है। शिवमहापुराण में यह श्लोक कहा गया है--
आरोग्यम्सम्पद चैव व्याधीनांशान्तिरेव च।
पुष्टिरायुस्तथाभोगोमृतेर्हानिर्यथाक्रमम्॥
अर्थात् स्वास्थ्य, सम्पत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान शिव या उन के साकार रूप शंकर की आराधना करनी चाहिये। सभी वारों में जब शिव फलप्रद हैं तो फिर सोमवार का आग्रह क्यों? ऐसा लगता है की मनुष्य मात्र को सम्पत्ति से अत्यधिक प्रेम होता है, इसलिए उस ने शिव के लिए सोमवार का चयन किया।
पुराणों के अनुसार, सोम का अर्थ चन्द्र या चाँद होता है और चन्द्र भगवान् शङ्कर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। लगता है कि भगवान शङ्कर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चन्द्रमा को उस के अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया। ऐसे ही भगवान हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही भक्तों ने शिव का वार बना दिया।
चन्द्र मन का प्रतीक है। जड़ मन को चेतनता से प्रकाशित करनेवाला परमेश्वर ही है। मन की चेतनता को पकड़कर हम परमात्मा तक पहुँच सकें, इसलिए परमेश्वर महादेव की उपासना सोमवार को की जाती है।
सोम का एक अर्थ सौम्य भी होता है। भगवान शङ्कर अत्यन्त शांत और समाधिस्थ देव हैं। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है।
सोम का एक विशेष अर्थ होता है-- उमा के सहित शिव। केवल कल्याणरी शिव की उपासना न कर साधक भगवती शक्ति की भी साथ में उपासना करना चाहता है; क्योंकि बिना शक्ति के शिव के रहस्य को समझना अत्यन्त कठिन है। इसलिए भक्तों ने सोमवार को शिव का वार स्वीकृत किया।
एक विशेष बात बताता हूँ। जरा 'सोम' शब्द का उच्चारण कीजिये और इस उच्चारण पर ध्यान दीजिये। आप को 'सोम' में 'ॐ' समाया हुआ मिलेगा। है नऽ गज़ब की बात! भगवान शिव ॐकारस्वरूप हैं। ॐकार की उपासना द्वारा ही साधक अद्वय स्थिति में पहुँच सकता है। अद्वय स्थिति ही एकेश्वरवाद है। अद्वय स्थिति आने पर योग साधना में सहस्रार चक्र (सिर के मध्य में स्थित) में शिव-शक्ति के मिलन का साक्षात् अनुभव होता है। इसलिए भगवान शिव को सोमवार का देव कहा जाता है।
सृष्टि का मूल आधार माता शक्ति हैं, जिन्हें ‘आदिशक्ति’ कहा जाता है। आदिशक्ति ने सब से पहले सृष्टि की कल्पना की तो शक्ति का अनन्त प्रवाह निकला जो अनन्त आकार का अण्डस्वरूप शिवलिंग रूप में प्रकट हुआ। आदिशक्ति ने इस शिवलिंग का साकार रूप प्रकट किया जिन्हें हम भगवान शंकर कहते हैं। शक्ति को आदिस्त्रीरूप और शंकर को आदिपुरुषरूप की मान्यता है। इन दोनों का मिलन ही सृष्टि की रचना का मूल है। इन दोनों का मिलन रूप दर्शन ही मुक्ति का कारण है। अतः योग साधना द्वारा शिव और शक्ति का मिलन अद्वय रूप प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
वेदों ने 'सोम' का जहाँ अर्थ किया है, वहाँ सोमवल्ली का ग्रहण किया जाता है। जैसे सोमवल्ली में सोमरस आरोग्य और आयुष्यवर्द्धक है, वैसे ही शिव हमारे लिए कल्याणकारी हों, इसलिए सोमवार को महादेव की उपासना की जाती है।
सोमवार की शिव पूजा हमेशा सूर्योदय से पूर्व करना ही सर्वश्रेष्ठ है। सम्भव
न हो पाने पर दोपहर से पूर्व अवश्य कर लें। शिव के विशेष स्थान या ज्योतिर्लिंगों की
पूजा दिनभर या परम्परागत रूप से किसी भी समय की जा सकती है।