सोमवार, 18 नवंबर 2019

नींद की अधिकता और मधुमेह के बीच गहरा रिश्ता Deep Relationship Between Excess Sleeping And Diabetes

-शीतांशु कुमार सहाय
     अधिकतर रोग हमारी गलत आदत के कारण होते हैं। यदि आदतों को सुधार लिया जाय तो कई घातक व्याधियों से सुरक्षित रह सकते हैं। सामान्य व्यक्ति के लिए आठ घंटे तक की नींद पर्याप्त मानी जाती है। आठ घंटे से ज्यादा नींद लेना, भविष्य में कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी बुलावा देती है। मधुमेह (डायबिटीज), हृदयरोग (हर्ट डिसीज), मोटापे और अल्पायु के लिए भी अधिक सोना (ओवर स्लीपिंग) जिम्मेदार हो सकती है।
   अमेरिका में हु अध्ययन में करीब नौ हज़ार लोग को शामिल किया गया। इस में कहा गया है कि सोने के समय पर कई पहलू निर्धारित होते हैं। अध्ययन के अनुसार नींद की अधिकता और डायबिटीज के बीच गहरा रिश्ता है। जो रोजाना नौ या इस से अधिक घंटे की नींद लेते हैं उन में डायबिटीज की आशंका सात घंटे नींद लेने वालों की तुलना में ५० प्रतिशत अधिक होती है। शोध में खुलासा किया गया है कि सामान्य से अधिक नींद शरीर के वजन को अनियंत्रित कर सकती है। 
     अमेरिकी शोधकर्ताओं के अनुसार जो रोजाना ९ से १० घंटे की नींद लेते हैं, उन में मोटापे की समस्या ७ से ८ घंटे की नींद लेने वालों की तुलना में २१ प्रतिशत अधिक होती है। योग-व्यायाम में लापरवाही, शारीरिक गतिशीलता की कमी और अधिक सोने के कारण पाचन की क्रिया ठीक से नहीं हो पाती है, इसलिए वजन बढ़ना स्वाभाविक है। 
     मोटापा बढ़ने के साथ ही अन्य बीमारियों के होने की आशंका बढ़ जाती है। हार्ट डिसीज, पीठ और कमर दर्द, घुटने का दर्द सहित अन्य परेशानियां हो सकती हैं। कई लोग वीकेंड या छुट्टी होने पर अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक नींद लेना पसंद करते हैं। इस कारण से भी पीड़ित को अगले दिन सिरदर्द होती है। कई बार अधिक नींद लेने की वजह से दिमाग के कुछ न्यूरोट्रांसमीटर्स और दिमाग में सक्रिय होनेवाले सेरोटॉनिन हार्मोन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।  
     दिन में अधिक नींद लेनेवालों की रात की नींद प्रभावित होती है। इस वजह से भी सुबह सिर में दर्द बना रहता है। कई लोग की शिकायत होती है कि बिस्तर पर लेटते ही पीठ में दर्द होने लगता है। यदि नियमित योग-व्यायाम के चलते पीठदर्द की शिकायत है, तो उसे तुरंत रोक दें या उस में बदलाव करें। 
     शोध के अनुसार, गहरे तनाव की स्थिति में पीड़ित को अधिक नींद आने की समस्या १५ प्रतिशत ज्यादा हो सकती है जो उस के तनाव की स्थिति को और गंभीर बना सकती है। नर्सेस हेल्थ स्टडी के मुताबिक, जो लोग रोजाना ९ से ११ घंटे की नींद लेते हैं उन में कोरोनरी हर्ट डिसीज का खतरा आठ घंटे की नींद लेनेवालों की तुलना में ३८ प्रतिशत अधिक होता है।
     नियम के अनुसार सोना और जागना हो तो ऊपर वर्णित रोगों से बचा जा सकता है। रात में नौ से दस बजे के बीच अवश्य सो जाना चाहिये।  

शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

गुरु नानक, उन के उपदेश और करतारपुर कॉरिडोर GURU NANAK, HIS PREACHING AND KARTARPUR CORRIDOR

आशीर्वाद मुद्रा में गुरु नानक देव 
 -शीतांशु कुमार सहाय
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमर्धमस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
श्रीमद्भगवद्गीता के चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में भगवान ने कहा है कि जब-जब धर्म की हानि होती है तब-तब मैं प्रकट होता हूँ और धर्म की रक्षा करता हूँ। कलियुग की पन्द्रहवीं सदी में भगवान ने नानक के रूप में धर्म की रक्षा के लिए अवतार लिया। 
सुधी पाठक! आप इस आलेख में जानेंगे कि गुरु नानक ने कौन-कौन से प्रमुख उपदेश दिये जो हम सब के जीवन को सकारात्मक रूप से बदलने में सक्षम हैं। यहाँ आप यह भी जानेंगे कि भारत को नानकदेव ने ‘हिन्दुस्तान’ कब और क्यों कहा? बिना स्कीप किये हुए पूरा आलेख पढ़ेंगे तो आप जान सकंेगे कि सिक्खों के प्रथम गुरु ने निराकार परमात्मा को एकमात्र किस मन्त्र से सम्बोधित किया। इन सब बातों को जानने से पहले थोड़ी चर्चा गुरु नानक की कर लेते हैं। 
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15 अप्रील सन् 1469 ईस्वी को पंजाब के तलवण्डी नाम के स्थान में नानक का जन्म हुआ था जो अब पाकिस्तान में लाहौर से करीब 120 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। अधिकतर लोग उन का जन्म दिन कार्तिक पूर्णिमा सन् 1469 ईस्वी को मानते हैं। प्रतिवर्ष नानकदेव की जयन्ती या अवतरण दिवस के रूप में कार्तिक पूर्णिमा को ही प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरु नानक के नाम पर अब तलवण्डी को ‘ननकाना’ कहा जाता है। वहाँ एक भव्य गुरुद्वारा बना है जो ‘ननकाना साहिब’ कहलाता है। 
विश्व को कल्याण का मार्ग दिखानेवाले महान सन्त नानक के पिता कल्याणचन्द थे जो मेहता कालू के नाम से भी जाने जाते थे। माता का नाम तृप्ता था। पाँच वर्ष बड़ी बहन नानकी थीं जिन के नाम के आधार पर ही इन्हें ‘नानक’ नाम दिया गया। सामान्यतः बच्चे रोते हुए जन्म लेते हैं पर नानक जन्म के समय हँस रहे थे। 
सामान्य बच्चों की तरह खेलने या पढ़ने में उन का मन नहीं लगा। बचपन से ही वे ध्यानस्थ हो जाया करते थे। न पण्डित हरदयाल उन्हें पढ़ा सके और न मौलवी कुतुबुद्दीन कोई सबक सिखा सके। ये दोनों शिक्षक बालक नानक के प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ रहे।
नानक का विवाह सन् 1485 ईस्वी में बटाला की रहनेवाली कन्या सुलक्षणी (सुलक्खनी) से हुआ। इन्होंने दो पुत्रों श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द को जन्म दिया। दोनों सिद्ध योगी के रूप में प्रसिद्ध हुए। 
कृषि या व्यापार में नानक का मन नहीं लगा। कुछ दिनों बाद वे सुल्तानपुर में अपने बहनोई के घर चले गये और वहीं सुल्तानपुर के राजा दौलत खाँ के यहाँ नौकरी करने लगे।  
नानक प्रतिदिन बेई नदी में स्नान करते थे। एक दिन स्नान के पश्चात् नदी किनारे स्थित वन में अन्मर्ध्यान हो गये। उस दौरान परमात्मा ने उन्हें अमृत पिलाया और कहा- ‘‘मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ। तृम्हारे सम्पर्क में जो भी आयेगा, वह भी आनन्दित हो जायेगा। तुम दान दो और उपासना करो। मेरे नाम का कीर्तन और जप करो तथा दूसरों से भी कराओ।’’
परमात्म-दर्शन की इस घटना के पश्चात् सन् 1507 ईस्वी में नानक ने पारिवारिक जिम्मेदारी ससुर को सौंप दी और स्वयं देश-विदेश के तीर्थ-परिभ्रमण पर निकल गये। सिक्ख सम्प्रदाय में तीर्थ यात्रा को उदासी कहते हैं। नानक ने चार उदासियाँ कीं। उन्होंने धर्म रक्षार्थ प्रचार आरम्भ कर दिया और सद्मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। 
करतारपुर में भव्य गुरुद्वारा करतारपुर साहिब 
सन् 1521 ईस्वी से जीवन के अन्तिम समय 1539 ईस्वी तक नानक करतारपुर में रहे। करतारपुर भी पाकिस्तान में ही पड़ता है। करतारपुर में भी विशाल गुरुद्वारा है, जहाँ विश्वभर से सिक्ख और अन्य धर्मों के श्रद्धालु सालोंभर आते हैं। पाकिस्तान और भारत के सम्मिलित सहयोग से करतारपुर कॉरिडोर का निर्माण हुआ है। फिलहाल करतारपुर जानेवाले भारतीय श्रद्धालुओं को 20 डॉलर का शुल्क पाकिस्तान सरकार को अदा करना पड़ता है। प्रतिदिन अधिकतम 5,000 भारतीय श्रद्धालु करतारपुर की तीर्थ यात्रा कर सकते हैं।
गुरु नानक देवजी ने जाति-पाँति को समाप्त करने और सब में समभाव प्रकट करने के लिए ‘लंगर’ की प्रथा आरम्भ की थी। लंगर में छोटे-बड़े और अमीर-ग़रीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में लंगर की परम्परा जारी है। लंगर में सेवा और भक्ति का भाव मुख्य होता है।
गुरु नानक जी ने जो उपदेश दिये वे सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। उन्होंने कहा है- परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य हैं। वह सर्वत्र व्याप्त हैं।
नानकदेव ने मन्त्र को ‘नाम’ कहा है। भगवान के मन्त्र अर्थात् नाम का स्मरण ही सर्वाेपरि तत्त्व है और यह नाम गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान ने चौथे अध्याय के चौंतीसवें श्लोक में कहा है कि ज्ञान की बातें तत्त्वदर्शी गुरु को दण्डवत् प्रणाम और सेवा कर, उन के आगे झुककर ही प्राप्त किया जा सकता है। यही बात नानक ने भी कहा। 
नाम और गुरु की महत्ता बताने के बाद नानक कहते हैं कि परमात्मा निराकार हैं और जो भी दीख रहा है, वह सब उन का ही प्रकट रूप है, साकार रूप है। परमात्मा को उन्होंने ‘एक ओ अंकार’ (1ऊँ) अर्थात् एक मात्र ऊँकार के नाम से पुकारा है। इस ऊँकार शब्द को ही गुरु नानक ने गुरु माना है और कहा है कि इस शब्द के बिना यह विश्व पागल हो जायेगा। उन्हीं के शब्दों में-
सबदु गुरु, सुरति धुनि चेला;
सबदु गुर पीरा, गहिर गम्भीरा।
बिनु सबदै जगु बउरान। 
उन्होंने भगवान को काल से परे माना है। इसलिए भगवान को उन्होंने ‘अकाल’ कहा है। वह अकाल ही एकमात्र सत्य है। जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल!
शिक्षा को सीख भी कहते हैं। इस तरह जिन्होंने नानकदेव की शिक्षा को माना और उन के अनुयायी बन गये, वे सिक्ख कहलाये।
सन् 1526 ईस्वी में जब बाबर ने पाँचवीं बार भारत पर आक्रमण कर दिल्ली सल्तनत के अन्तिम शासक इब्राहिम लोदी को परास्त कर मुगल राजवंश की स्थापना की और भारतीयों के सनातन धर्म-संस्कृति पर प्रहार करना आरम्भ किया तो उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए सिक्ख सम्प्रदाय की स्थापना की। उस दौरान सिक्खों के प्रथम गुरु नानक ने भारत को पहली बार ‘हिन्दुस्तान’ की संज्ञा दी। उन्होंने बाबर के हमले के सन्दर्भ में कहा था- 
खुरासान खसमाना कीआ 
हिन्दुस्तान डराईआ।
उपदेश और सद्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते नानक देव 
गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत-प्रोत है। उन्होंने सिक्खों और समस्त श्रद्धालुओं को जीवन जीने और मोक्ष प्राप्त करने के आसान रास्ते बताये-
  • - ईश्वर एक हैं पर उन के रूप अनेक हैं। ईश्वर के अनन्त रूपों के जंजाल में उलझना नहीं चाहिये; बल्कि उन के किसी एक रूप की ही उपासना करनी चाहिये। 
  • - ईश्वर सब जगह व्याप्त हैं। वे सभी प्राणियों और निर्जीवोें में मौज़ूद हैं।  
  • - ईश्वर की भक्ति करनेवालों को किसी का भय नहीं रहता। भगवान का भक्त निर्भय हो जाता है।  
  • - ईमानदारी से मेहनत कर के ही जीवनयापन करना चाहिये। बेईमानी का धन रोग, शोक और दुःख का कारण होता है।
  • - मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से निर्धन और ज़रूरतमन्द व्यक्ति को भी कुछ दानस्वरूप देना चाहिये। 
  • - बुरा कार्य करने के बारे में कभी नहीं सोचना चाहिये और न ही किसी को सताना चाहिये। कोई आर्थिक रूप से कमजोर हो या शारीरिक रूप से, उसे सताने के बदले उस का सहयोग करना चाहिये। 
  • - सदैव प्रसन्न रहना चाहिये। जाने-अनजाने में हुई ग़लतियों के लिए ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा माँगनी चाहिये। हमेशा ऐसा कार्य करें जिस में ग़लतियों की सम्भावना न हो।  
  • - सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। लिंग, जाति आदि किसी आधार पर भी भेदभाव नहीं करें। 
  • - शरीर को जीवित रखने के लिए भोजन आवश्यक है परन्तु स्वाद का गुलाम नहीं बनना चाहिये। रसना अर्थात् जीभ की गुलामी स्वीकार करने से शरीर रोगों का घर बन जाता है।  
  • - लोभ, लालच और धन संग्रह करने की वृत्ति यानी आदत बहुत ही बुरी है। ऐसा करने से कभी शान्ति नहीं मिलती और पारिवारिक-सामाजिक प्रतिष्ठा की क्षति होती है। 
गुरु नानकदेव जी के इन उपदेशों को अपनाकर आप भी सार्थक जीवन का आनन्द ले सकते हैं। आप चाहें तो अपने मित्रों और रिश्तेदारों को भी यह वीडियो शेयर कर सकते हैं। 
स्वस्थ रहिये, आनन्दित रहिये और पढ़ते रहिये शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और देखत रहिये शीतांशु टीवी!

सोमवार, 16 सितंबर 2019

विश्वकर्मा पूजा : कीजिये कर्म की पूजा, बने रहिये कर्मशील Vishwakarma Puja

शीतांशु कुमार सहाय
विश्व को कर्म करने और निरन्तर कर्मशील रहने का सन्देश देनेवाले देव विश्वकर्मा के वार्षिक पूजन का दिन है १७ सितम्बर। वैसे तो सृष्टि के आरम्भिक काल से ही विश्वकर्मा की आराधना की जा रही है पर आज के विकासवादी माहौल में उन की आराधना का महत्त्व कुछ अधिक ही हो गया है। निर्माण-गतिविधियों को ही वर्तमान विकास का आधार माना जाता है। यों निर्माण के देव विश्वकर्मा के भक्तों की संख्या में वृद्धि हुई है। 
      सनातन धर्म के ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि नवनिर्माण की विशेषज्ञता के कारण ही उन्हें देवताओं का अभियन्ता माना गया। भारतीय परम्परा में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। इन्हीं अवतारों में से एक भगवान विश्वकर्मा को प्रथम अभियन्ता और वास्तुविद् माना गया है। समूचे विश्व का ढाँचा, लोक-परलोक का खाका उन्होंने ही तैयार किया। वे ही प्रथम आविष्कारक हैं। यान्त्रिकी, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र तकनीक, वैमानिकी विद्या, नवविद्या आदि के जो प्रसंग मिलते हैं, उन सब के अधिष्ठाता विश्वकर्मा ही माने जाते हैं। 
दरअसल, भारतीय परम्परा में ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ अर्थात् मैं ही ब्रह्म (भगवान) हूँ की भी संकल्पना है। इसे कई लोग ने अपनाया, उसे साकार किया। विकास के इस युग में  निर्माण को अंजाम देनेवाले ही भगवान की श्रेणी में हैं, भगवान हैं। 
    धरती छोड़ते समय विश्वकर्मा निर्माण के गुण मनुष्य को दे गये। स्वयं मानव मन के उस उच्च स्थान पर विराजमान हो गये जहाँ पहुँचने के लिए निरन्तर उच्च श्रेणी का परिश्रम करना अनिवार्य है। ऐसे परिश्रम से ही आत्मविकास, समाज या परिवार का विकास सम्भव है। यहाँ यह जानने की बात है कि प्रत्येक ज्ञान अपने-आप में विशेष ज्ञान है। कोई भी ज्ञान जो विकास को बढ़ावा दे, वह ईश्वर की कृपा है। यही कृपा प्राप्त करने के लिए विश्वकर्मा की आराधना की जाती है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यन्त्रों व शक्ति-सम्पन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है।

वास्तव में केवल बाहरी विकास ही मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का उद्देश्य मात्र उदर-पोषण या परिवार-पालन ही नहीं है। भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक व आत्मिक विकास ही मानव जीवन की सम्पूर्णता का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पूर्ण करने में विश्वकर्मा सहयोग करते हैं। निर्माण या विकास का मतलब केवल वास्तुगत या वस्तुगत ही नहीं, आत्मतत्त्वगत भी है। विकास के इस सोपान पर चढ़ने के लिए निरन्तर सदाचारी प्रयास (कर्म) अनिवार्य है। ऐसा तभी सम्भव है जब केन्द्रीकृत प्रयास हो। जैसे ही केन्द्र प्रसारित हो जाता है तो विकास का लक्ष्य भटक जाता है। इस भटकाव को दूर करने के लिए भगवान विश्वकर्मा की आराधना तो करनी ही पड़ेगी। जय विश्वकर्मा!

बुधवार, 11 सितंबर 2019

अपनी राशि के अनुसार करें शिव पूजन Method of Worshiping Shiva According to the Zodiac

-शीतांशु कुमार सहाय

शिव पूजन की विधि राशि के अनुसार इस प्रकार करें --
मेष : 
शिव जी को लाल चन्दन व लाल रंग के फूल चढ़ायें तथा नागेश्वराय नमः का जाप करें।
वृष :
चमेली के फूल चढ़ायें तथा रूद्राष्टाकर का पाठ करें।
मिथुन :
धतूरा, भांग चढ़ायें साथ में पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
कर्क :
भांग मिश्रित दूध से अभिषेक करें और रूद्राष्टाधयी का पाठ करें।
सिंह :
कनेर के लाल रंग फूल अर्पित करे तथा शिव चालीसा का पाठ करें।
कन्या :
बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि चढ़ायें और पंचाक्षरी मन्त्र का जाप करें।
तुला : 
मिश्री मिले दूध से शिव का अभिषेक करें तथा शिव के सहस्त्रनाम का जाप करें।
वृश्चिक :
गुलाब का फूल व बिल्वपत्र की जड़ चढ़ायें और रूद्राष्टक का पाठ करें।
धनु :
पीले फूल अर्पित करें एंव खीर का भोग लगायें और शिवाष्टक का पाठ करें।
मकर : 
शिव जी को धूतरा, फूल, भांग एंव अष्टगंध चढ़ायें और पार्वतीनाथाय नमः का जाप करें।
कुम्भ : 
शिव जी का गन्ने के रस से अभिषेक करें एंव शिवाष्टाक का पाठ करें।
मीन :
शिव जी पर पंचामृत, दही, दूध व पीले फूल चढ़ायें और चन्दन की माला से १०८ बार पंचाक्षरी मन्त्र (नमः शिवाय) का जाप करें।


भारत महान {1} : आत्मा अमर है, वैज्ञानिकों को भी मानना पड़ा Great India {1} : The Soul is Immortal, Even Scientists had to Agree


-शीतांशु कुमार सहाय 
सुप्रिय पाठकों!
https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com पर ‘भारत महान’ शृँखला के अन्तर्गत यह पहली प्रस्तुति है। इस शृँखला में आप जानेंगे अतुलनीय प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के बारे में। साथ ही शीतांशु टीवी पर भी ‘भारत महान’ शृँखला के तहत विशेष लघु फिल्मों के माध्यम से जानकारी उपलब्ध करायी जा रही है। ऐसी जानकारी को आप ग्रहण करें और मित्रों व रिश्तेदारों के बीच भी शेयर करें; ताकि समृद्ध भारतीय अतीत का सच सभी जान सकें।   
आम तौर पर भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित तथ्यों को शेष विश्व कल्पना ही मानता रहा है। वैसे सच यह है कि वेद, वेदान्त, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भगवद्गीता सहित चिकित्सा, अभियन्त्रण, भूगोल, ज्योतिष, अन्तरिक्ष, कला, संगीत आदि से सम्बद्ध भारतीय ग्रन्थों में उल्लिखित बातें आज भी वैज्ञानिक रूप से सच सिद्ध होती हैं। ऐसी कई बातें हैं जो पहले लोग नहीं माने पर कालान्तर में उन सच्चाइयों को स्वीकारना पड़ा। ‘भारत महान’ शृँखला के तहत आप ऐसी सच्चाइयों के बारे में जानते रहेंगे। 
पहली कड़ी में आत्मा की बात करते हैं। सभी भारतीय ग्रन्थों में शरीर को नश्वर और आत्मा को अमर बताया गया है। 'श्रीमद्भगवद्गीता' में भगवान श्रीकृष्ण ने इस बारे में विस्तार से बताया है। क्या मृत्यु के बाद जीवन होता है? कुछ लोग मृत्यु को अध्यात्म और भगवान से जोड़ते हैं। इस के विपरीत कुछ लोग मानते हैं कि मृत्यु के बाद कुछ नहीं होता। अपने को वैज्ञानिक कहनेवाले ऐसा ही मानते हैं। आज का विज्ञान किसी भी आध्यात्मिक बात पर यकीन करे, ऐसा कम ही देखा गया है, पर इस बार कुछ अलग हुआ है। वैज्ञानिकों को सृष्टि के आरम्भ काल से चले आ रहे सत्य का प्रमाण मिल गया है, जो भारतीय ग्रन्थों में पहले से ही विद्यमान है। वह सत्य है-- आत्मा अमर है और शरीर नश्वर है।

आत्मा में निहित ज्ञान अक्षुण्ण

आत्मा के अमर होने की बात को वैज्ञानिकों ने अब सच सिद्ध किया है। भौतिकी और गणित के दो वैज्ञानिकों ने मनुष्य के शरीर के मरने के बाद क्या होता है, इस पर दो दशकों तक लंबे अनुसन्धान के बाद भारतीय धर्मग्रन्थों में वर्णित तथ्यों को प्रयोगों के आधार पर सिद्ध किया है कि आत्मा कभी मरती नहीं है, केवल शरीर ही मरता है। मृत्यु के बाद आत्मा पुनः ब्रह्मांड में वापस चली जाती है लेकिन इस में निहित सूचनाएँ (ज्ञान) कभी नष्ट नहीं होती हैं, अक्षुण्ण रहती हैं और आत्मा के साथ दूसरे शरीर में प्रकट होती हैं। 

इन्होंने किये अनुसन्धान

ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के गणित व भौतिकी के प्रोफेसर सर रॉजर पेनरोज और अमेरिकी विश्वविद्यालय यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के भौतिकी वैज्ञानिक डॉक्टर स्टुअर्ट हैमरॉफ ने करीब दो दशक के शोध के बाद इस विषय पर छ: शोधपत्र प्रकाशित किये हैं। उन के शोध पर अमेरिका के मशहूर साइंस चैनल ने वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंट्री फिल्म) बनायी है। सर रॉजर पेनरोज और डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ का मानना है कि जिसे हम चेतना या आत्मा कह सकते हैं, वह केवल शरीर के मरने के समय शरीर से निकला बहुत सूक्ष्म रूप में ब्रह्मांड में छोड़ी गयी इन्फॉर्मेशन (सूचना या ज्ञान) की तरह है। इन दोनों वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रक्रिया को “Orchestrated Objective Reduction” (Orch-OR) कहा जाता है। आज का विज्ञान यह पहले ही साबित कर चुका है कि शरीर में प्रोटीन से बनी हुई सूक्ष्मनलिकाएँ होती हैं जो ज्ञान या सूचना को एक जगह से दूसरी जगह ले जा सकती हैं। वैज्ञानिकों को तब घोर आश्चर्य हुआ जब इस शोध में पता लगा कि इतने सूक्ष्म आकार में पूरे जीवन के कर्म का वृत्तान्त संकलित और सुरक्षित रहता है। भारतीय ग्रन्थों में इसे 'प्रारब्ध' कहते हैं। 

विज्ञान का सुर बदला 

आज का विज्ञान यही कहता आया है कि आत्मा कोई चीज़ नहीं होती, शरीर के मरने के बाद कोई जीवन नहीं रहता। पर, अब कुछ अलग कहा जा रहा है। वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि वास्तव में आत्मा की मृत्यु नहीं होती; केवल शरीर मरता है। आत्मा के सम्बन्ध में श्रीमद्भगवद्गीता में जो बातें भगवान ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को बतायीं, वही बात अब वैज्ञानिकों के मुख से भी निकल रही है। 

क्वांटम सिद्धांत का आधार

वैज्ञानिकों को यह शोध भौतिकी के क्वाटंम सिद्धांत पर आधारित हैं। इस के अनुसार आत्मा चेतन मस्तिष्क की कोशिकाओं में प्रोटीन से बनी नलिकाओं में ऊर्जा के सूक्ष्म स्रोत अणुओं-परमाणुओं के रूप में रहती है। सूचनाएँ इन्हीं सूक्ष्म कणों में संग्रहित रहती हैं। क्वांटम मैकेनिक्स यानी मात्रा (कोई वस्तु कितनी मात्रा में है) की स्टडी करनेवाले कुछ नामी वैज्ञानिकों ने इस के बारे में बताया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि क्वांटम मेकैनिक्स के कारण ही शरीर के खत्म होने के बाद भी चेतना का कुछ भाग ब्रह्मांड में रह जाता है। वैसे वैज्ञानिक अभी भी इस बारे में पूरी तरह से एकमत नहीं हैं कि आखिर चेतना होती क्या है या आत्मा किसे कहा जाय? पाठकों को मैं बता दूँ कि यहाँ वैज्ञानिकों का शोध प्रेत पर आधारित नहीं है।

अनुसंधानकर्ताओं ने इस प्रकार समझाया  

डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ अपने शोध निष्कर्ष को एक उदाहरण से समझाते हैं-- मान लीजिये कि हृदय की धड़कन बन्द हो गयी और शरीर में खून का संचार रूक गया। ऐसे में प्रोटीन से बनी हुई ये ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ (microtubules) अपने स्थान से हिल जायेंगी और जो जानकारी इन में सुरक्षित हैं वो नष्ट होने के बजाय ब्रह्मांड में जगह-जगह बिखर जायेंगी। जानकारी या ज्ञान के ये कण इतने छोटे होते हैं कि दिखायी नहीं देते। इसे ही मृत्यु कहते हैं। इस के विपरीत अगर मरीज एकदम से जाग जाता है जिसे मेडिकल हिस्ट्री (चिकित्सा इतिहास) में रिवाइव करना कहा जाता है तो इस का मतलब है कि हृदय की धड़कन फिर से चालू हो गयी और प्रोटीन निर्मित ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ अपनी जगह वापस आ गयी हैं। इसे ही मौत से सामना या नियर डेथ एक्सपीरियंस कहा जाता है। इस दौरान मरीज मरने का अनुभव कर लेता है। अगर मरीज रिवाइव नहीं करता है तो ऐसा सम्भव है कि इन नलिकाओं में मौजूद जानकारी या क्वांटम इन्फॉर्मेशन शरीर के बाहर चली जाय और ब्रह्माण्ड में बिखर जाय। शरीर से मुक्त होनेवाले इस सूक्ष्म ज्ञान-पुंज को 'आत्मा' कहा जा सकता है। .....तो डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ के इस उदाहरण से आप भी समझ गये होंगे कि अन्ततः भारतीय ज्ञान का लोहा सब को मानना ही पड़ता है। 
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब व्यक्ति दिमागी रूप से मृत होने लगता है तब मस्तिष्क में स्थित प्रोटीन निर्मित ज्ञान सम्वाहक सूक्ष्मनलिकाएँ क्वांटम ज्ञान खोने लगती हैं। सूक्ष्म ज्ञान के ऊर्जा कण मस्तिष्क की नलिकाओं से निकल ब्रह्मांड में चले जाते हैं। कभी मरता हुआ मनुष्य जीवित हो उठता है, इस का मतलब है कि ये कण वापस सूक्ष्म नलिकाओं में लौट आये हैं।

ज्ञान नष्ट नहीं होते 

क्रिया योग में कहा गया है कि गुरु से दीक्षा लेकर जो साधना करता है और मुक्ति प्राप्त नहीं कर पाता है तो अगले जन्म में उसे प्रारब्ध के रूप में पिछले योग-ज्ञान की प्राप्ति होती है और वह योग की जिस ऊँचाई पर पिछले जन्म में था, वहीँ से फिर साधना आरम्भ करता है और शीघ्र ही सफल हो जाता है। इस से पता चलता है कि आत्मा में पिछले कई जन्मों के संस्कार, ज्ञान या जानकारी संग्रहित रहती हैं जो शरीर रूप में प्रकट होने यानी जन्म लेने पर अपना प्रभाव दिखाती हैं। योग की इस बात को भी सर रॉजर पेनरोज और डॉक्टर स्टुअर्ट हैमरॉफ ने सच माना है। इन दोनों वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार, सूक्ष्म ऊर्जा कणों के ब्रह्मांड में जाने के बावजूद उन में निहित सूचनाएँ (ज्ञान) नष्ट नहीं होती। क्वाटंम सिद्धांत प्रतिपादित करनेवाले वैज्ञानिक मैक्स प्लैंक के नाम पर जर्मनी के म्यूनिख नगर में 'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर फिजिक्स' स्थापित है, वहाँ के वैज्ञानिक डॉक्टर हेंस पीटर टुर ने इस शोध से पहले ही आत्मा से सम्बन्धित इन तथ्यों की पुष्टि की है।

मरने के बाद अनन्त संभावनाएँ

'मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर फिजिक्स' का कहना है कि हमारे भौतिक ब्रह्माण्ड यानी फिजिकल यूनिवर्स में एक बार मरने के बाद अनन्त संभावनाएँ हो सकती हैं। इसी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉक्टर हेंस पीटर टुर ने माना है कि प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में जो ज्ञान के भण्डार हैं, उन्हें समझने में विश्व का मानव असमर्थ है। हेंस पीटर टुर ने कहा है-- "कई बातें ऐसी हैं जिन्हें हम अभी समझ सकते हैं, हमारी दुनिया असल में बहुत छोटे स्तर पर है और बहुत कुछ ऐसा भी है जो समझा नहीं जा सकता। इस के आगे असंख्य सच हैं जो बहुत बड़े हैं लेकिन जिन के बारे में हमें पता नहीं है। हमारा शरीर मर जाता है लेकिन आध्यात्मिक क्वांटम क्षेत्र खत्म नहीं होता। इस तरह से तो सब अमर हैं।" 

मानव दिमाग एक संगणक 

शोधकर्ताओं का कहना है कि मानव मस्तिष्क एक जैविक संगणक (कंप्यूटर) की तरह है। इस जैविक कंप्यूटर का प्रोग्राम चेतना या आत्मा है जो मस्तिष्क के अंदर मौजूद एक क्वांटम कंप्यूटर के जरिये संचालित होती है। क्वांटम कंप्यूटर से तात्पर्य मस्तिष्क की कोशिकाओं में स्थित सूक्ष्म नलिकाओं से है जो प्रोटीन आधारित अणुओं से निर्मित हैं। बड़ी संख्या में ऊर्जा के ये सूक्ष्म स्रोत अणु मिलकर एक क्वाटंम स्टेट तैयार करते हैं जो वास्तव में चेतना या आत्मा है।

भारतीय दर्शन में आत्मा 

भारतीय दर्शन के अनुसार, आत्मा का कोई धर्म नहीं होता, इस की कोई जाति नहीं होती। आत्मा न पुरुष है और न ही स्त्री। न यह पशु के रूप का है और न मनुष्य के आकार का। वास्तव में आत्मा निराकार है। यह केवल परमात्मा का अंश है। परमात्मा को जाति, धर्म या आकार की सीमा में नहीं आँका जा सकता। आत्मा एक ऐसी जीवन-शक्‍ति है, जिस के कारण हमारा शरीर जीवित है। इस जीवन-शक्ति के बिना शरीर निष्प्राण हो जाता है और हम मिट्टी में फिर मिल जाते हैं। मतलब यह कि शरीर से आत्मा या जीवन-शक्ति निकलती है, तो शरीर मर जाता है और वहीं लौट जाता है, जहाँ से वह निकला था यानी पंचतत्त्वों में। उसी तरह जीवन-शक्ति आत्मा भी वहीं लौट जाती है, जहाँ से वह आयी थी अर्थात् परमात्मा के पास। 
"वह कौन है जो अमर आत्मा और नश्वर शरीर का बार-बार संयोग करवाता है?" अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार दिया-- "एक और शरीर है, जो आत्मा के लिए भीतर का वस्त्र है। वह है सूक्ष्म शरीर। उसे अंत:वस्त्र भी कह सकते हैं। वह शरीर विद्युत कणों का पुंज है जो इन भौतिक आँखों से नहीं दिखायी देता है। मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से सूक्ष्म शरीर निर्मित है। यह शरीर पिछले जन्म के संस्कार और ज्ञान (प्रारब्ध) के साथ आता है। स्थूल शरीर माता-पिता से मिलता है और सूक्ष्म शरीर पूर्वजन्म से। सूक्ष्म शरीर न हो, तो स्थूल शरीर ग्रहण नहीं किया जा सकता। सूक्ष्म शरीर के पञ्चकोश हैं-- अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश और आनन्दमय कोश। योग साधना से इन पञ्चकोशों को भेदकर पार करना पड़ता है, तब सूक्ष्म शरीर से छुटकारा मिलता है। सूक्ष्म शरीर छूटने का अर्थ है ‘मोक्ष’ यानी जन्म-मरण के बन्धन से मुक्ति।"
प्रारब्ध को ठीक करने के लिए भारतीय ग्रन्थों ने सदा अच्छे कार्य और सदाचार को अपनाने की सीख दी है; ताकि मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सके।

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

फिट इंडिया अभियान : शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और शीतांशु टीवी का सक्रिय योगदान FIT INDIA MOVEMENT

-शीतांशु कुमार सहाय
२९ अगस्त अर्थात् भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’। भारत के महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचन्द की जयन्ती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बृहस्पतिवार, २९ अगस्त २०१९ का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया कि इस दिन पहली बार सरकार ने आम भारतीय जनता के फिटनेस पर विशेष दृष्टिपात करने का अभियान ‘फिट इण्डिया मूवमेण्ट’ का श्रीगणेश किया। श्रीगणेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि अमेरिका, जर्मनी, चीन जैसे कई देशों में नागरिकों को स्वस्थ और फिट रखने की योजनाएँ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि हर तरफ स्वार्थ की बात हो रही है, ऐसे में स्वार्थ से स्वास्थ्य की ओर जाना है। निश्चय ही इस अभियान का असर देशभर में पड़ेगा। 

यों हुई शुरुआत  

नई दिल्ली के इन्दिरा गाँधी स्टेडियम में इस महत्त्वपूर्ण अभियान को औपचारिक रूप से आरम्भ करने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने १० बजकर ३४ मिनट से भाषण देना शुरू किया और ३५ मिनट में अभियान की आरम्भिक रूपरेखा रखी और रोगग्रस्त होते भारतीय को सचेत किया। राष्ट्रीय खेल दिवस यानी २९ अगस्त २०१९ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में फिट इंडिया अभियान की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने कहा- बैडमिंटन हो, टेनिस हो, एथलेटिक्स हो, बॉक्सिंग हो, कुश्ती हो या फिर दूसरे खेल, हमारे खिलाड़ी हमारी उम्मीदों और आकांक्षाओं को नये पंख लगा रहे हैं। स्पोर्ट्स का सीधा नाता है फिटनेस से लेकिन आज जिस फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई है, उस का विस्तार स्पोर्ट्स से भी आगे बढ़कर है। फिटनेस एक शब्द नहीं है; बल्कि स्वस्थ और समृद्ध जीवन की एक ज़रूरी शर्त्त है।’’ आज यानी २९ अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की ११४वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने शुभकामना देते हुए कहा कि मेजर ध्यानचंद के रूप में देश को एक महान स्पोर्ट्सपर्सन मिले थे। 

पहल प्रशन्सनीय.....परम्परा की ओर लौटें

निश्चय ही प्रधानमन्त्री की यह पहल प्रशन्सनीय है। मैं आप सुधी पाठकों से आग्रह करता हूँ कि स्वस्थ रहने, फिट रहने के लिए संकल्ति हो जायें और योग, पारम्परिक खेल, परिश्रम के कार्य, पैदल चलना, साइकिल चलाना, नाचना, उछलना-कूदना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। घरेलू नुस्खों और आयुर्वेद की ओर लौटें। मैं सक्रिय रूप से फिट इण्डिया मूवमेण्ट में शामिल हूँ। 

आप के ईमेल पर निःशुल्क जानकारी     

शीतांशु कुमार सहाय का अमृत के नियमित पाठकों को ज्ञात है कि आप को स्वस्थ और फिट बनाये रखने के लिए कई आलेखों का प्रकाशन पूर्व में किया जा चुका है जो अब भी जारी है। यह वेबसाइट https://Sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com अपना कर्तव्य समझते हुए बिना औषधि के भी स्वस्थ रहने के तरीकों का प्रचार कर रहा है। आप यदि लैपटॉप या कम्प्यूटर पर देख रहे हैं तो दायीं तरफ के कॉलम में दिये गये ‘लोकप्रिय रचनाएँ’ और ‘पूर्व प्रकाशित अमृत रचनाएँ’ में वर्ष २०१० से अब तक के सभी आलेखों को पढ़ेंगे तो ज्ञान के कई रहस्य आप को मालूम होंगे। यदि आप मोबाइल फोन पर देख रहे हैं तो स्क्रॉल कर इस बेवसाइट के सब से नीचे आइये और वहाँ लिखे ‘वेब वर्जन देखें’ पर क्लिक करें। ऐसा करने पर आप के मोबाइल पर कम्प्यूटर की तरह ही ‘शीतांशु कुमार सहाय का अमृत’ दिखायी देगा। अब दायें कॉलम में Subscribe by Email जहाँ लिखा है, उस के नीचे के बॉक्स में अपना ईमेल का पता डालें और इस वेबसाइट पर डाली जानेवाली नयी सामग्रियों और बेहतरीन जानकारी को अपने ईमेल पर निःशुल्क प्राप्त करें।

अपनी भाषा में पढ़ें

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फिट रहने के मन्त्र वीडियो में

समय-समय पर शीतांशु टीवी में फिट रहने के मन्त्र बताये जाते हैं। दायीं तरफ के कॉलम में शीतांशु टीवी का लिंक दिया गया है। आप उस पर क्लिक कर फिटनेस और ज्ञान की अन्य बातों को निःशुल्क जानने-समझने के लिए नये और पुराने वीडियो देख सकते हैं। शीतांशु टीवी पर रीलिज किये जानेवाले नये वीडियो आप तुरन्त देखना चाहते हैं तो कृपया इसे सब्सक्राइब कर लें। ‘शीतांशु टीवी’ का कोई वीडियो आप देख रहे हैं ता नीचे लाल रंग से SUBSCRIBE लिखा हुआ मिलेगा, उस पर क्लिक कर दें। इस के बाइ वहीं पर घण्टी का निशान आयेगा, उस पर भी क्लिक करेंगे तो आप को नये वीडियो की सूचना मिलने लगेगी और निःशुल्क मिलने लगेगा फिटनेस का मन्त्र। 

तकनीक ने बनाया रोगी

फिट भारत अभियान का श्रीगणेश करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- समय कैसे बदला है, उस का एक उदाहरण मैं आप को देता हूँ- कुछ दशक पहले तक एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में ८-१० किलोमीटर पैदल चल ही लेता था। फिर धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी बदली, आधुनिक साधन आये और व्यक्ति का पैदल चलना कम हो गया। अब स्थिति क्या है? टेक्नोलॉजी ने हमारी ये हालत कर दी है कि हम चलते कम हैं और अब वही टेक्नोलॉजी हमें गिन-गिन के बताती है कि आज आप इतने स्टेप्स चले, अभी ५ हजार स्टेप्स नहीं हुए, २ हजार स्टेप्स नहीं हुए, अभी और चलिए।

डाइबिटीज और हाइपरटेंशन

प्रधानमंत्री ने आगे कहा- भारत में डाइबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। आजकल हम सुनते हैं कि हमारे पड़ोस में १२-१५ साल का बच्चा डाइबिटिक है। पहले सुनते थे कि ५०-६० की उम्र के बाद हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है लेकिन अब ३५-४० साल के युवाओं को हार्ट अटैक आ रहा है।

रविवार, 25 अगस्त 2019

आँसू से मत घबराइये, जीवन का अभिन्न अंग है रोना Do not be Afraid of Tears, Weeping is an Integral Part of Life

-शीतांशु कुमार सहाय
रूलाई और आँसू का सम्बन्ध लोग दु:ख से लगाते रहे हैं, किंतु रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने की कला मनुष्य को विरासत में मिली है। जन्म के समय से ही बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। उस समय न रोने पर उसे रूलाने की कोशिश की जाती है; ताकि उस की मांसपेशियों व फेफड़ों का संचालन ठीक प्रकार से होने लगे।
कुछ लोग जोर से चिल्लाकर रोते हैं। ऐसी रूलाई सामान्य रूलाई से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। जोर से रोने पर मस्तिष्क में दबी भावनाओं का तनाव दूर हो जाता है, राहत मिलती है और बहुत शक्ति प्राप्त होती है; अत: पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में हृदयाघात यानी दिल का दौरा काफी कम पड़ता है।
अपने मानसिक तनाव को आँसू द्वारा शिथिल न कर पाने के कारण अक्सर पुरुष धमनियों से सम्बन्धित व्याधियों से पीड़ित रहते हैं।
आँसू ही आँखों को नम रखते हैं, स्वच्छ रखते हैं तथा धूल आदि पडऩे पर उसे धो डालते हैं। आँसू के विष के प्रभाव से ही हवा से उड़कर आँखों में पड़ऩेवाले कीट-पतंगे मर जाते हैं और वे हानि नहीं पहुँचा पाते। वैज्ञानिकों के मतानुसार, एक चम्मच आँसू 200 गैलन जल के कीटाणुओं को मारकर साफ करने में समर्थ है।
भावनात्मक आँसू हमें उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्ति दिलाते हैं। यही आँसू हद से बाहर जाने से भी रोकते हैं। रोने से मन का मैल धुल जाता है तथा एक प्रकार की शान्ति महसूस होती है। न रोनेवाले मानसिक तनाव से ग्रसित होकर चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐेसे व्यक्ति शीघ्र निर्णय भी नहीं ले पाते।
आयुर्वेद के अनुसार, रूलाई रोकने पर कई रोगों के होने का डर है। ऐसे रोगों में जुकाम, आँख या हृदय में पीड़ा, अरुचि, डर, चक्कर आना, गर्दन में अकडऩ, मानसिक तनाव आदि मुख्य हैं। सदमा लगने पर रूलाई को जबरन रोकने से हृदयाघात, उच्च या निम्न रक्तचाप अथवा मस्तिष्क के निष्क्रिय होने का भय भी बना रहता है।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता या अध्यापक बच्चे को डाँट या पीट देते हैं और जब वे रोने लगते हैं तो उन्हें डरा-धमकाकर रोने नहीं देते हैं। यह अत्यन्त घातक कदम है। इस से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों की बुद्धि कुंठित भी हो सकती है अथवा वे किसी मनोरोग से ग्रसित होकर आजीवन उस से पीड़ित रह सकते हैं।
रोना कभी निरर्थक नहीं जाता। बच्चे रोते हैं तो 'दूध' मिलता है, पत्नी के रोने पर 'जिद्द' पूरी हो जाती है। रूलाई का एक शानदार उदाहरण देखिये-- अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर वास्तव में एन. हेथवे को छोड़कर दूसरी लड़की से प्रेमालाप करने लगे। इस बात की जानकारी मिलने पर हेथवे घबरा गयीं। सहयोग की अपेक्षा से वह पड़ोसी के घर जाकर बहुत रोयीं और वृत्तान्त कह सुनाया।
हेथवे के रोने का प्रभाव पड़ोसी पर इतना पड़ा कि उस ने दूसरे दिन पूरे शहर में शेक्सपियर तथा हेथवे के विवाह के पोस्टर चिपकवा दिये। अंतत: विवश होकर शेक्सपियर को हेथवे से विवाह करना पड़ा।
आँसू की बहुपयोगिता को देखकर ही शायरों ने इसे 'मोती' की संज्ञा दी है। हिन्दी फिल्मों में कई गानों का मुख्य विषय आँसू ही है। .....तो आँसू से घबराएँ नहीं और रोने का मन करे तो अवश्य रोएँ; क्योंकि यह जीवन का अभिन्न अंग है।  

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

कुँवर सिंह और धरमन : प्रेम के पंचमात्राओं के मर्मज्ञ Love Story of Kunwar Singh and Dharman

अगस्त २०१९ में पटना के प्रेमचन्द रंगशाला में राम कुमार मोनार्क के निर्देशन में मंचित नाटक मे कुँवर सिंह की भूमिका में पंकज करपटने और धरमन का पात्र निभाती पिंकी सिंह।


-शीतांशु कुमार सहाय    
प्रेम.....पंचमात्राओं का छोटा शब्द। पर, इस की गहरायी प्रशान्त महासागर से अधिक और ऊँचाई हिमालय से ज़्यादा है। सृष्टि के प्रादुर्भाव से अब तक इसे परिभाषा की शाब्दिक सीमा देने में लाखों-करोड़ों शब्द जाया किये गये पर हाथ कुछ नहीं आया। आज भी यह अपरिभाषित है, अपरिमित है, अपरम्पार है। साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं कि वह इन पंचमात्राओं को माप सके, इसे पा सके, इसे पार कर सके। पर, चूँकि मनुष्य में आत्मा निहित है जो परमात्मा का ही अंश है, अतः जो अपनी आत्मा को परमात्मातुल्य बनाने का प्रयत्न करता है, परमात्मतत्त्व को प्राप्त कर लेता है, वह इस पंचभूतशरीर में रहते हुए ही प्रेम की पंचमात्राओं को जान लेता है, इसे पा लेता है और इसे अपने जीवन का अंग बनाने में सफल हो जाता है। भारतीय इतिहास में सफल प्रेमी के रूप में महान स्वाधीनता सेनानी कुँवर सिंह भी जाने जाते हैं। 
कुँवर सिंह का प्रेम स्वार्थसिद्धि या काम-वासना का प्रतीक नहीं था। एक हिन्दू राजा होकर भी एक मुसलमान नर्तकी से प्रेम कर उन्होंने जाति और धर्म की दीवार ढाह दी। यह प्रेम का ही प्रतीक है कि उन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण कराया तो अन्य धर्मों को भी पल्लवित-पुष्पित होने का भरपूर अवसर प्रदान किया। 
प्रेम को रहने के लिए, ठहरने के लिए, स्थिरता के लिए शुद्ध हृदय की आवश्यकता होती है। यह शुद्धता साबुन से नहीं, समर्पण- पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। पूर्ण समर्पण तभी सम्भव है जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच संशय न हो और न ही भविष्य में संशय उत्पन्न होने की सम्भावना हो। ऐसा हुआ तभी तो जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के प्रति धरमन का समर्पण अमर हो गया, हम आज भी उसे याद करते हैं। संशय और दोषारोपण तो कुँवर-धरमन के प्रेम के बीच कभी जगह पा ही नहीं सके। 
यह भारतीय परम्परा है कि राजा के लिए उस की प्रजा सन्तान की तरह प्रिय होती है। सभी तबके की प्रजा पर कुँवर सिंह समान दृष्टि रखते थे। निर्धनों के प्रति उन का प्रेम देखते ही बनता था। एक निर्धन महिला को उन्होंने बहन का सम्मानित दर्जा प्रदान करते हुए निर्धनता दूर करने के लिए १०४० कट्ठे का भूखण्ड उपहार स्वरूप दिया। 
अँग्रेजों के आतंक से उन की प्रजा भी प्रताड़ित होने लगी। इसी दौरान प्रेमिका ने अपनी भूमिका निभायी और प्रेमी के भीतर के देशभक्त को जगाया। कुँवर सिंह के मनोरंजन के लिए धरमन जब भी नाचतीं तो उन के ओठ देशभक्ति की पंक्तियाँ ही गुनगुनाते। धरमन की राजमहल की विलासिता का त्याग देखकर महाराज कुँवर भी प्रेमिका के त्याग से आगे निकलने को प्रेम से भाव-विभोर होकर संकल्प लिया और हृदय में देशप्रेम की ज्योति जलायी। उन्होंने प्रमिका के व्यवहार और कहने का मर्म समझा और जान लिया कि देशभक्ति के बिना प्रेम अधूरा है। 
देशप्रेम की भावना जागते ही जब भोजपुर के शेर कुँवर सिंह ने तलवार उठायी तो अँग्रेजों की हुकूमत काँप उठी। प्रेम की भावना से ओत-प्रोत प्रेम की मिसाल कुँवर सिंह ने अस्सी-एकासी वर्ष की उम्र में भी महज नौ महीनों में पन्द्रह युद्ध किये और सभी युद्धों में अँग्रेजों को पराजित किया। अन्तिम युद्ध तो उन्होंने केवल बायें हाथ से ही किया और अँग्रेजों की सेना को बुरी तरह पराजित कर भोजपुर के आरा शहर में अँग्रेजों के झण्डा ‘यूनियन जैक’ को उतारकर अपना झण्डा फहराया। वह २३ अप्रील १९५८ ईस्वी का दिन था। कुँवर सिंह के साथ सब ने विजयोत्सव मनाया। इस विजयोत्सव को प्रेमी ने नृत्यांगना से वीरांगना बनी प्रेमिका को समर्पित किया, जो पहले ही रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। वह प्रेमी के साथ विजयोत्सव का क्षणिक सुख तो नहीं बाँट सकी लेकिन प्रेम के मार्ग पर चलती हुई त्याग को बलिदान में परिवर्तित कर परमात्मा के साथ अमरत्व के सुख का भोग कर रही थी।  
प्रेम में त्याग और बलिदान न हो तो वह प्रेम है ही नहीं। अतः धरमन ने भी प्रेमी की सेना में न केवल स्वयं शामिल हुईं; बल्कि अपनी बहन करमन के हाथों को भी शस्त्र थमायीं और वीरगति को प्राप्त होकर त्याग और बलिदान की असीम ऊँचाई को स्पर्श किया। कोई उस ऊँचाई तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं कर सकता।   
आमतौर पर महापुरुषों के जन्म दिन या पुण्यतिथि मनाये जाते हैं पर कुँवर सिंह के देशप्रेम को याद करने के लिए प्रतिवर्ष २३ अप्रील को ‘विजयोत्सव’ मनाया जाता है। उन के अप्रतिम शौर्य को सम्मान देने के लिए २३ अप्रील को 'शौर्य दिवस' कहा जाता है। इन महान प्रेमी और प्रेमिका को मेरा शत नमन!

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

वीर कुँवर सिंह : अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था Kunwar Singh

पटना में स्थापित बाबू कुँवर सिंह की प्रतिमा


-शीतांशु कुमार सहाय
थे वयोवृद्ध तुम, किन्तु जवानी नस-नस में लहराती थी।
बिजली लज्जित हो जाती थी, तलवार चमक जब जाती थी।
तुम बढ़ते जिधर, उधर मचता अरि-दल में कोलाहल-क्रन्दन।
हे वीर तुम्हारा अभिनन्दन!
कविवर सत्यनारायण लाल ने अपनी कविता ‘वीर कुँवर सिंह के प्रति’ में प्रख्यात भारतीय स्वाधीनता सेनानी वीर बाबू कुँवर सिंह की शूरता व विजय अभियान का काव्यात्मक वर्णन किया है। कुँवर सिंह ने अन्तिम साँस तक परतन्त्रता को स्वीकार नहीं किया और बाद के स्वतन्त्रता संग्रामियों के लिए ऐसा आदर्श छोड़ गये, जिसे अपनाकर देश को स्वाधीन कराना सम्भव हो सका।
  भारत के बिहार राज्य अन्तर्गत वर्तमान भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर गाँव के ज़मीन्दार थे कुँवर सिंह के दादा उमराँव सिंह। विपरीत परिस्थिति आने पर उमराँव सिंह को परिवार सहित अपने मित्र वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर के नवाब अब्दुल्ला के पास जाना पड़ा। वहीं उमराँव सिंह की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे साहेबजादा सिंह का नाम दिया गया। साहेबजादा सिंह ताक़तवर होने के साथ-साथ क्रोधी और उग्र व्यवहार वाले थे। साहेबजादा सिंह का विवाह पंचरत्न देवी से हुआ। उन के चार पुत्र हुए- कुँवर सिंह, दयाल सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह।  
वर्ष 1777 ईस्वी में 13 नवम्बर को कुँवर सिंह का जन्म हुआ था। बचपन से ही कुँवर सिंह वीरता और साहस के कार्यों में संलग्न रहने के कारण पढ़ने पर ध्यान न दे सके। इस सन्दर्भ में लेखक रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ ने लिखा है- ‘‘वे प्रारम्भ से ही सरस्वती की सेवा से विरत रहकर चण्डी के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे। .....उन्होंने जितौरा के वन में अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। वे वहीं रहकर शिकार प्रभृति वीरता के कार्यों से अपना मनोविनोद किया करते थे।’’
तरुणावस्था में ही कुँवर सिंह का विवाह गया के देवमँूगा के प्रसिद्ध ज़मीनदार राजा फतेह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ। दाम्पत्य मधुर था पर कुँवर सिंह की आसक्ति अन्य औरतों में बनी रही। आरा की धरमन बीवी अन्त तक उन के शौर्य और प्रणय में साथ देती रही। धरमन और उन की बहन करमन ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में युद्ध भी किया। 
सन् 1826 ईस्वी में साहबजादा सिंह की मृत्यु के बाद बाबू कुँवर सिंह को जगदीशपुर की रियासत की बागडोर सौंपी गयी। राजगद्दी पर बैठते ही कुँवर सिंह ने जगदीशपुर का काफ़ी विकास किया। जगदीशपुर दुर्ग को सुन्दर व ज़्यादा सुरक्षात्मक बनाकर हथियारों से लैस घुड़सवारों की फौज बनायी गयी। कुँवर सिंह के भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं थे, पर इस की चिन्ता उन्हें नहीं थी। शेर की तरह अकेले ही वे दहाड़ते थे।
वर्ष 1845-46 से ही अँग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। कई बिहारियों को कारागार में डाला जा चुका था। सोनपुर का गुप्त सम्मेलन इस सन्दर्भ में प्रभावशाली रहा, पर सफलता सन्दिग्ध रही। यों अन्दर-ही-अन्दर 1857 में देशभर में एकसाथ विद्रोह करने की योजना बनी पर बैरकपुर छावनी (बंगाल) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने निर्धारित समय से कुछ माह पूर्व मार्च 1857 में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया। इस की सूचना बिहार में पटना के दानापुर छावनी के सैनिकों को भी मिली और वे सब भी समय से पूर्व ही अँग्रजों के विरुद्ध विद्रोह कर डाले। चूँकि सैनिकों यानी सिपाहियों ने इस की शुरुआत की, अतः इसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहते हैं। 
सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह को नेतृत्व प्रदान किया। अस्सी वर्षों की अवस्था में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई युद्धों में कम्पनी की गोरी सेना को परास्त कर शौर्य और पराक्रम की अमिट गाथा लिख डाली। 
सम्पूर्ण भारतवर्ष को वीर विजयी कुँवर सिंह के शौर्य पर गुमान है। भारत माता के इस महान सपूत के चरणों में सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रणाम निवेदित हैं। संसद भवन में वीर बाबू कुँवर सिंह के चित्र को ससम्मान लगाकर देश ने उन के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। कुँवर सिंह सिपाही विद्रोह के प्रथम बिहारी सेनानी हैं जिन का चित्र संसद भवन में लगाया गया। 
स्वतन्त्र भारत भूमि पर साँस लेनेवाला प्रत्येक नागरिक प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक वीर बाबू कुँवर सिंह के बलिदान का ऋणी है। आइये, हम सब भारत की एकता, अखण्डता और स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखकर उन के प्रति आंशिक ऋणमुक्ति का प्रयास जारी रखें। 
भारत में सिपाही विद्रोह की व्यापकता के मद्देनज़र 19 जून 1857 ईस्वी को पटना के आयुक्त विलियम टेलर ने स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों की बैठक विद्रोह के दबाने के सन्दर्भ में बुलायी, जिन में से तीन मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। भोजपुर के तरारी थानान्तर्गत लकवा गाँव के पीर अली को भी टेलर ने पाँच जुलाई 1857 ईस्वी को पकड़वाया और मात्र तीन घण्टों की न्यायालीय प्रक्रिया के पश्चात् फाँसी दे दी गयी। 
पीर अली पटना में पुस्तक की दूकान चलाते और विद्रोह में भाग लेते थे। एक पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दे दी गयी। पटना में गाँधी मैदान के निकट स्थित वर्तमान कारगिल शहीद स्मारक के निकट ही वह पेड़ स्थित था। तत्कालीन दण्डाधिकारी मौलवी बख्श के आदेश पर ही पीर अली को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।  
भारत माता के सपूत पीर अली की शहादत ने देशभक्तों को उद्वेलित कर दिया। फलतः 19 जून 1857 की शाम को दानापुर छावनी के सैन्य सिपाहियों की टोली कुँवर सिंह के नेतृत्व में रणाहुति देने आरा की ओर कूच कर गयी। कुँवर के छोटे भाई अमर सिंह सहित विशाल सिंह व हरेकृष्ण सिंह भी युद्ध में शामिल हो गये। युद्ध की तैयारी के लिए जगदीशपुर के दुर्ग में 20 हज़ार सैनिकों के लिए छः महीनों की खाद्य सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामानों को संग्रहित कर लिया गया। यों अस्सी वर्षीय कुँवर सिंह के नेतृत्व में भारत माता के वीर सपूतों ने शाहाबाद क्षेत्र में अँग्रेजी हुकूमत को परास्त कर दिया। उस समय का शाहाबाद वर्तमान में बिहार के चार जिलों में बँटा है। ये ज़िले हैं- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास। अब शाहाबाद नाम का कोई ज़िला नहीं है। 
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 500 सैनिकों को डनवर के नेतृत्व में आरा भेजा। शाहाबाद के सैनिकों ने कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में रणकौशल दिखाते हुए 29-30 जुलाई 1857 ईस्वी को डनवर की सेना को परास्त कर दिया। इसी तरह लायड को भी हार का सामना करना पड़ा। जीवित अँग्रेज सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी बना लिया। बिहार के भोजपुर ज़िले के वर्तमान आरा शहर में स्थित महाराजा महाविद्यालय परिसर में स्थित आरा हाउस कुँवर सिंह की जीत का परिचायक है, जहाँ अँग्रेजों को कैद कर रखा गया था। यहाँ ‘वीर कुँवर सिंह संग्रहालय’ बनाया गया है। बिहार सरकार ने आरा में उन के नाम पर ‘वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है।
बंगाल तोपखाने का मेजर आयर उस दौरान जलयान से प्रयाग जा रहा था। वह सैनिकों सहित आरा के बीवीगंज में कुँवर सेना से युद्ध करने आ गया। उस ने बन्दी बनाये गये अँग्रेज सैनिकों को मुक्त कराया। आयर ने कुँवर सेना के कई अधिकारियों को फाँसी दे दी। इस बीच कुँवर सिंह अपने बचे साथियों सहित आगे की रणनीति बनाने के लिए जगदीशपुर आ गये।      इस के बाद कैप्टन रैटरे के सौ सिक्ख सैनिकों सहित दो सौ अन्य सैनिकों के साथ 12 अगस्त 1857 ईस्वी की सुबह जगदीशपुर पर हमला कर दिया। जितौरा गढ़ को बर्वाद कर अमर सिंह व दयाल सिंह के घर को जला दिया गया। पुनः सैनिकों को संगठित कर कुँवर सिंह 26 अगस्त 1857 ईस्वी को मिर्जापुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश का एक ज़िला) पहुँचे। मिर्जापुर में अँग्रेजों को पराजित करने के बाद वे रामगढ़, घोरावाल, नेवारी, तप्पा उपरन्धा को जीतते हुए बाँदा और कालपी होते हुए कानपुर पहुँचे। ग्वालियर की क्रान्ति सेना, नाना साहेब व कुँवर सिंह ने मिलकर कानपुर में अँग्रेजों से युद्ध किया पर वे असफल रहे। इस के उपरान्त कुँवर सिंह लखनऊ आ गये। लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही वस्त्र व धन से सम्मानित किया। 
घटना 17 मार्च 1858 ईस्वी की है। आजमगढ़ के निकट अतरौलिया में कुँवर सिंह अपने पुराने साथियों से मिले और अँग्रेजों के चंगुल से भारत की मुक्ति पर रणनीतिक चर्चा की। सैनिकों को संगठित करने की नीति भी बनी। तैयारी चल ही रही थी कि अँग्रेज कर्नल मिलमैन ने कुँवर सिंह और उन के साथियों पर अचानक आक्रमण कर दिया। पूरी तैयारी न रहने के बावजूद अपने देशभक्त सैनिकों का कुशल नेतृत्व करते हुए कुँवर सिंह ने मिलमैन और उस के सैनिकों को बुरी तरह परास्त किया। सैकड़ों सैनिक मारे गये। अन्ततः 26 मार्च 1858 ईस्वी को भारत माता के महान सपूत महाराजा कुँवर सिंह ने पुनः आजमगढ़ को अपने कब्जे में किया। अभी महाराजा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हुई आजमगढ़ की प्रजा खुशी मना ही रही थी कि फिर 27 मार्च 1858 ईस्वी को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अँग्रेजी सेना ने हमला कर दिया मगर इस बार भी कुँवर सिंह की सेना से मात खानी पड़ी। लगातार मात खाते अँग्रेजों ने कुँवर सिंह को अपना सब से बड़ा शत्रु मान लिया था और उन्हें मार डालने की हर सम्भव कोशिश की जाने लगी। 
बात 13 अप्रील 1858 ईस्वी की है। कुशल सेनापति निशान सिंह के नेतृत्व में दो हज़ार वीर सैनिकों को आजमगढ़ की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपकर महाराज कुँवर सिंह गाजीपुर चले गये। 16 अप्रील 1858 ईस्वी को उन्होंने लुगार्ड पर हमला कर दिया। वे सैनिकों सहित पुनः आजमगढ़ आ गये और लुगार्ड के नेतृत्ववाली ब्रिटिश सेना से भयंकर युद्ध किया। कुछ देशद्रोही रियासतों के राजाओं ने अँग्रेजों को अपनी सेना मुहैया करायी और धन से भी सहायता की। इस कारण देशभक्तों पर देशद्रोहियों की टोली मजबूुत पड़ने लगी। इसलिए कुछ सैनिकों सहित कुँवर सिंह दूसरी तरफ कूच कर गये। लुगार्ड के निर्देश पर ब्रिगेडियर डगलस ने सैनिकों के साथ कुँवर सिंह का पीछा किया। 
डगलस 19 अप्रील 1858 ईस्वी को नागरा की ओर बढ़ा जिस की जानकारी गुप्तचरों ने दी तो कुँवर सिंह सैनिकों के साथ सिकन्दरपुर की ओर चल दिये और वहीं से घाघरा नदी पार कर गये। इस तरह वे 20 अप्रील 1858 ईस्वी की रात में गाजीपुर के मनिआर गाँव पहुँचे, जहाँ उन का भव्य स्वागत किया गया। गाजीपुर के ही शिवपुर के लोग ने बीस नावों की व्यवस्था की। भारत की स्वतऩ्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर सैकड़ों वीर सैनिकों के साथ कुँवर सिंह शिवपुर घाट से गंगा पार गये। इस तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तमाम चौकसियों के बावजू़द 22 अप्रील 1858 ईस्वी को एक हज़ार पैदल और घुड़सवार सैनिकों के साथ महाराज कुँवर सिंह जगदीशपुर पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने पहले सभी सैनिकों को गंगा पार कराया और अन्तिम नाव से स्वयं पार करने लगे। इसी बीच अँग्रजी सेना वहाँ आ धमकी और कुँवर सिंह के नाव पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर दी। एक गोली कुँवर सिंह के दायें बाँह में लगी। गोली का विष शरीर में न फैले, इसलिए कुँवर सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और अपने बायें हाथ से बाँह के निकट से दायें हाथ को काटकर गंगा में डाल दिया। केवल स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं; बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा प्रकरण उपलब्ध नहीं है कि देशसेवा के लिए कोई सेनानी स्वयं अपने शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग काटकर डाला हो। माता गंगा को भी किसी भक्त ने भगीरथ काल से अबतक ऐसा ‘भोग’ नहीं चढ़ाया है। 
भारत माता को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए नौ महीने में 15 युद्ध लड़नेवाले महान देशभक्त कुँवर सिंह के शरीर में जाँघ सहित कई अंगों में घाव थे। उस पर से दायाँ हाथ काट लेने पर दायीं बाँह पर भी असह्य दर्द देनेवाला बड़ा घाव हो गया। जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के घायल होने की सूचना पाकर अँग्रेज प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब भोजपुर के रणबाँकुरों को पराजित करना आसान होगा। यों आरा से ले ग्रेण्ड के नेतृत्व में अँग्रेज सैनिकों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। प्रजा की भलाई के लिए कुँवर सिंह ने बायें हाथ से भारत माता की पवित्र मिट्टी का तिलक लगाया और बायें हाथ से ही तलवार लहराते हुए सैनिकों के साथ अँग्रेज सैनिकों पर कहर बनकर टूटे। यह कुँवर सिंह के जीवन का अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध में भी वे विजेता ही रहे। इस तरह 23 अप्रील 1858 ईस्वी को जगदीशपुर ही नहीं, आरा से भी अँग्रेजों को खदेड़ दिया और आरा में विजयोत्सव मनाया गया। अँग्रेजों के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को उतारकर कुँवर सिंह ने अपना ध्वज फहराया। सैकड़ों सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी भी बनाया। बिहार में अब भी 23 अप्रील को प्रतिवर्ष ‘कुँवर सिंह का विजयोत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन (23 अप्रील) को 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कुँवर सिंह के अदम्य साहस, पराक्रम और शौर्य के कारण उन के नाम के आगे ‘वीर’ शब्द जोड़ते हैं। उन्होंने जीवन की चौथी अवस्था (80-81 वर्ष) में अपनी वीरता का लोहा मनवाया, अतः उन्हें ‘बाबू’ (पिता या अभिभावक) की भी संज्ञा दी जाती है।    
भारत के इतिहास कुँवर सिंह जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलते हैं। आज भी उन की जीवनी हमें देशभक्ति, साम्प्रदायिक एकता और परहित की ओर प्रेरित करती है। उन के राज्य में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार मिले हुए थे। उन्होंने विलासिता के बीच भी देशभक्ति और व्यक्तिगत खुशी के बीच भी परहित को प्रश्रय दिया। उन्होंने अपनी प्रेमिका धरमन के नाम पर आरा में ‘धरमन मस्जिद’ बनवायी जहाँ आज भी मुसलमान नमाज अदा करते हैं और कुँवर सिंह की साम्प्रदायिंक सौहार्द को बढ़ावा देने की भूमिका को सराहते हैं। धरमन की बहन करमन के नाम पर उन्होंने एक गाँव बसाया जो आज भी ‘करमन टोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। धरमन और करमन केवल नृत्यांगना ही नहीं वीरांगना भी थीं। दोनों ने 1857 ईस्वी के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कुँवर सिंह की सेना में शामिल होकर बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं।
विजयोत्सव के तीन दिनों बाद 26 अप्रील 1858 ईस्वी को वीर बाबू कुँवर सिंह ने युद्ध, उन्माद और प्रतिशोध की इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 
इस आलेख में तो अति संक्षिप्त रूप से ही वीर बाबू कुँवर सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित करने का प्रयास मैं ने किया। पर, इस बात का अफसोस है कि भारतीय इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानी बाबू कुँवर सिंह के साथ भी घोर अन्याय किया है। कुँवर सिंह और उन के परिजनों के बलिदान के अलावा धरमन और करमन जैसी वीरांगनाओं को भी इतिहासकारों ने नकारने का कुत्सित प्रयास किया है। हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से स्मरण करे और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा ले। अन्त में कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता याद हो आयी-
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बाँकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।।
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।।

सोमवार, 5 अगस्त 2019

जानिये अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या-क्या बदल जायेगा What will Change in Jammu and Kashmir After the Temoval of Article 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा। अब प्रत्येक भारतवासी को यह जानना आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्या परिवर्तन हो जायेगा। 
  1. अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष अधिकार पूरी तरह से खत्म हो गया है। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। 
  2. भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में ज़मीन और अन्य स्थायी संपत्ति खरीद सकेगा।
  3. जम्मू-कश्मीर का अब अलग ध्वज नहीं होगा। अब केवल एक राष्ट्रध्वज तिरंगा ही रहेगा और सभी राष्ट्रीय उत्सवों और अन्य मौकों पर तिरंगा ही शान से लहरायेगा। 
  4. जम्मू-कश्मीर में अब दुहरी नागरिकता नहीं होगी। 
  5. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में मताधिकार का अधिकार सिर्फ वहाँ के स्थायी नागरिकों को ही था। दूसरे राज्य के लोग वहाँ मतदान नहीं कर सकते थे और न चुनाव में प्रत्याशी बन सकते थे। अब नरेंद्र मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत का कोई भी नागरिक वहाँ के मतदाता और प्रत्याशी बन सकते हैं। 
  6. जम्मू-कश्मीर अब अलग राज्य नहीं बल्कि केंद्रशासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा। 
  7. विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा। 
  8. लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया। यहाँ विधानसभा नहीं होगी और इस का प्रशासन चंडीगढ़ की तरह केन्द्र सरकार द्वारा चलाया जायेगा। 
  9. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सूचना का अधिकार (आरटीआई) और लेखा परीक्षण (सीएजी) जैसे कानून भी लागू होंगे। 
  10. जम्मू-कश्मीर में देश का कोई भी नागरिक अब सरकारी नौकरी पाने का अधिकारी हो गया है।
  11. इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर का अपना अलग से कोई संविधान नहीं होगा। विदित हो कि कश्मीर में 17 नवम्बर 1956 ईस्वी को अपना संविधान लागू किया था। अब कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 का भी इस्तेमाल हो सकता है यानी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। 


ऐतिहासिक फैसला : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बने केन्द्रशासित प्रदेश, 370 का आंशिक खात्मा Historical verdict : Jammu and Kashmir and Ladakh became Union Territories, Partial end of Artical 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय संविधान की अनुच्छेद 370 का संकल्प विधेयक राज्यसभा में सोमवार, 5 अगस्त 2019 को पेश कर दिया है। विधेयक को प्रस्तुत करते ही विपक्ष दलों काँग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। एक पीडीपी सांसद ने कुर्ता तक फाड़ लिया। 
राज्यसभा में श्री शाह ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा इस अनुच्छेद के सारे खण्डों को रद्द करने की सिफारिश की। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। साथ ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करते हुए केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वैंकेया नायडू ने सदन में मार्शल बुलाने का आदेश दिया। इसी के साथ सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी गयी। 
विधेयक पेश करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने कहा- जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस गैजेट नोटिफिकेशन को स्वीकार किया जायेगा, उस दिन से संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा और कोई भी खण्ड लागू नहीं होंगे। शाह ने आगे कहा- हम जो चारों संकल्प और बिल लेकर आये हैं, वह कश्मीर मुद्दे पर ही है। संकल्प प्रस्तुत करता हूँ। अनुच्छेद 370 (1) के अलावा सभी खण्ड राष्ट्रपति के अनुमोदन के अलावा खत्म होंगे। 
विधेयक पर विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने इस विधेयक के बारे में पहले से नहीं बताया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में बैठकर धरना भी दिया। राज्यसभा में जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह बोलने के लिए खड़े हुए विपक्ष ने हंगामा शुरू किया। काँग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कश्मीर में युद्ध जैसे हालात क्यों हैं? पूर्व मुख्यमंत्री नज़रबंद क्यों हैं? विदित हो कि 4 अगस्त 2019 की आधी रात को ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को उन के घरों में ही नज़रबन्द कर दिया गया है।