मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

शुरू हो गयी संसद की सफाई : रशीद, लालू व जगदीश नहीं रहे सांसद


शीतांशु कुमार सहाय
विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र भारत है। विश्व में प्रथमतः लोकतन्त्र का आगाज भी यहीं हुआ। ऐसे में सदैव विश्व समुदाय का ध्यान भारतीय लोकतान्त्रिक उथल-पुथल व बदलावों पर लगा रहता है। हाल के 2 दशकों में देश की राजनीति का तेजी से अपराधीकरण हुआ तो विश्व स्तर पर काफी छीछालेदर हुई। इसके बावजूद देश को दशा-दिशा देने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को शर्म नहीं आयी। सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने आपराधिक छवि वालों को विधान सभाओं, विधान परिषदों, लोकसभा व राज्य सभा का टिकट देना जारी रखा। लिहाजा लोकतन्त्र के मन्दिर में अपराधियों की धड़ल्ले से घुसपैठ होने लगी। कानून तोड़ने वाले कानून बनाने वाले बन बैठे। लिहाजा वर्तमान व भूतपूर्व विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की वैसी नयी फौज तैयार हो गयी जिन पर गबन व घोटालों के मामले हैं।

लोकतन्त्र का वास्ता देकर राजनीतिक दलों ने ऐसा चुनावी दलदल तैयार किया कि उस पर खड़ा भारतीय लोकतन्त्र की नींव ही हिलने लगी। समय ऐसा भी आया कि अपराधी सीधे कारावास से ही चुनाव जीतने लगे। जनप्रतिनिधित्व कानून के सुराख का फायदा लेकर नामांकन से प्रचार तक के लिए कारावास से बाहर आने का न्यायिक आदेश भी आसानी से पा जाते थे। बाहुबल व अवैध धनबल के सहारे ऐसे लोग जनता के नेता बनते रहे हैं, जनप्रतिनिधि कहलाते रहे हैं। सच तो यही है कि इन असामाजिक चरित्रधारकों के पास न तो नेतृत्व क्षमता रही है और न ही जनप्रतिनिधि होने की पात्रता। इनसे इतर कुछ स्वच्छ छवि वाले या गरीब तबके से आने वाले भी राजनीति में आकर उद्दण्ड, अहंकारी व घोटालेबाज हो गये। यों विधायिका का ताना-बाना बुरी तरह से तहस-नहस हो गया। इसका असर कार्यपालिका पर व्यापक रूप से पड़ा। यों तमाम उच्चाधिकारी व कनीय कर्मी बेखौफ हो रिश्वतखोरी में मशगूल हो गये। विकास दीखने के बजाय कागजों में चमकने लगा। मतलब यह कि सरकार के 2 अंग विधायिका व कार्यपालिका पंगु हो गये। तब जनता की सारी अपेक्षाएँ केवल-और-केवल न्यायपालिका पर आकर सिमट गयीं। न्यायपालिका ने अपनी प्रशंसनीय भूमिका निभायी और भारतीय लोकतन्त्र की न्यायिक स्तर से सफाई में जुट गयी। परिणाम सामने आया। उच्चतम न्यायालय ने कानूनी रूप से दोषी सांसदों को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने से बचाने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने 10 जुलाई को अपने आदेश में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 की उप धारा-4 को समाप्त कर दिया जिसके तहत किसी विधायक या सांसद को तब तक अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता था, जब तक उच्च अदालत में उसकी अपील लंबित हो। न्यायालय के उस फैसले के बाद 3 सांसदों की सांसदी समाप्त हो गयी।

सोमवार को दिन में काँग्रेसी सांसद रशीद मसूद को राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया। उच्चतम न्यायालय की उक्त व्यवस्था के तहत अयोग्य ठहराये जाने वाले रशीद पहले सांसद हैं। रिश्वत के मामले में दोषी होने के कारण वे जेल में हैं। राज्यसभा की अधिसूचना के अनुसार मसूद को 19 सितंबर 2013 से सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया है। उसी दिन सीबीआई न्यायालय ने मसूद को दोषी ठहराया था। वह जेल की सजा के दौरान और रिहाई के बाद 6 सालों तक अयोग्य बने रहेंगे। यों चारा घोटाले में दोषी पाये जाने के बाद कारावास में बंद राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता जगदीश शर्मा की लोकसभा सदस्यता सोमवार की रात में खत्म कर दी गयी। चुनावी नियमों के अनुसार, लालू प्रसाद को 11 सालों (5 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है जबकि शर्मा को 10 साल (4 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है। यों धीरे-धीरे संसद की सफाई शुरू हो गयी है जो आगे भी जारी रहेगी।

शुरू हो गयी संसद की सफाई : रशीद, लालू व जगदीश नहीं रहे सांसद


शीतांशु कुमार सहाय
विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र भारत है। विश्व में प्रथमतः लोकतन्त्र का आगाज भी यहीं हुआ। ऐसे में सदैव विश्व समुदाय का ध्यान भारतीय लोकतान्त्रिक उथल-पुथल व बदलावों पर लगा रहता है। हाल के 2 दशकों में देश की राजनीति का तेजी से अपराधीकरण हुआ तो विश्व स्तर पर काफी छीछालेदर हुई। इसके बावजूद देश को दशा-दिशा देने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को शर्म नहीं आयी। सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने आपराधिक छवि वालों को विधान सभाओं, विधान परिषदों, लोकसभा व राज्य सभा का टिकट देना जारी रखा। लिहाजा लोकतन्त्र के मन्दिर में अपराधियों की धड़ल्ले से घुसपैठ होने लगी। कानून तोड़ने वाले कानून बनाने वाले बन बैठे। लिहाजा वर्तमान व भूतपूर्व विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की वैसी नयी फौज तैयार हो गयी जिन पर गबन व घोटालों के मामले हैं।
लोकतन्त्र का वास्ता देकर राजनीतिक दलों ने ऐसा चुनावी दलदल तैयार किया कि उस पर खड़ा भारतीय लोकतन्त्र की नींव ही हिलने लगी। समय ऐसा भी आया कि अपराधी सीधे कारावास से ही चुनाव जीतने लगे। जनप्रतिनिधित्व कानून के सुराख का फायदा लेकर नामांकन से प्रचार तक के लिए कारावास से बाहर आने का न्यायिक आदेश भी आसानी से पा जाते थे। बाहुबल व अवैध धनबल के सहारे ऐसे लोग जनता के नेता बनते रहे हैं, जनप्रतिनिधि कहलाते रहे हैं। सच तो यही है कि इन असामाजिक चरित्रधारकों के पास न तो नेतृत्व क्षमता रही है और न ही जनप्रतिनिधि होने की पात्रता। इनसे इतर कुछ स्वच्छ छवि वाले या गरीब तबके से आने वाले भी राजनीति में आकर उद्दण्ड, अहंकारी व घोटालेबाज हो गये। यों विधायिका का ताना-बाना बुरी तरह से तहस-नहस हो गया। इसका असर कार्यपालिका पर व्यापक रूप से पड़ा। यों तमाम उच्चाधिकारी व कनीय कर्मी बेखौफ हो रिश्वतखोरी में मशगूल हो गये। विकास दीखने के बजाय कागजों में चमकने लगा। मतलब यह कि सरकार के 2 अंग विधायिका व कार्यपालिका पंगु हो गये। तब जनता की सारी अपेक्षाएँ केवल-और-केवल न्यायपालिका पर आकर सिमट गयीं। न्यायपालिका ने अपनी प्रशंसनीय भूमिका निभायी और भारतीय लोकतन्त्र की न्यायिक स्तर से सफाई में जुट गयी। परिणाम सामने आया। उच्चतम न्यायालय ने कानूनी रूप से दोषी सांसदों को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने से बचाने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने 10 जुलाई को अपने आदेश में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 की उप धारा-4 को समाप्त कर दिया जिसके तहत किसी विधायक या सांसद को तब तक अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता था, जब तक उच्च अदालत में उसकी अपील लंबित हो। न्यायालय के उस फैसले के बाद 3 सांसदों की सांसदी समाप्त हो गयी।
सोमवार को दिन में काँग्रेसी सांसद रशीद मसूद को राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया। उच्चतम न्यायालय की उक्त व्यवस्था के तहत अयोग्य ठहराये जाने वाले रशीद पहले सांसद हैं। रिश्वत के मामले में दोषी होने के कारण वे जेल में हैं। राज्यसभा की अधिसूचना के अनुसार मसूद को 19 सितंबर 2013 से सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया है। उसी दिन सीबीआई न्यायालय ने मसूद को दोषी ठहराया था। वह जेल की सजा के दौरान और रिहाई के बाद 6 सालों तक अयोग्य बने रहेंगे। यों चारा घोटाले में दोषी पाये जाने के बाद कारावास में बंद राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता जगदीश शर्मा की लोकसभा सदस्यता सोमवार की रात में खत्म कर दी गयी। चुनावी नियमों के अनुसार, लालू प्रसाद को 11 सालों (5 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है जबकि शर्मा को 10 साल (4 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है। यों धीरे-धीरे संसद की सफाई शुरू हो गयी है जो आगे भी जारी रहेगी।

बीपीएससी ने किया नियमों को दरकिनार, आज अगली सुनवाई

53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में अनियमितता



शीतांशु कुमार सहाय
 बिहार की सर्वोच्च नियुक्ति करनेवाली संस्था बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) और इसकी तमाम परीक्षाएं हमेशा से विवादों में रही हैं। इस बार का मामला बीपीएससी की अन्य परीक्षाओं के विवादों से अलग है। वर्तमान विवाद 53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा से जुड़ा है। यह परीक्षा आरम्भ से अन्त तक विवादों में ही है। बीपीएससी द्वारा अन्तिम परीणाम निकाल देने के बाद भी मामला शान्त नहीं हुआ है। पटना उच्च न्यायालय में मामला अब भी चल रहा है। अभ्यर्थियों का आरोप है कि बीपीएससी ने अंकों के मॉडरेटिंग (सभी विषयों में मिले अंकों की तुलना कर अंक देना) कर परिणाम घोषित किया गया है। इसमें व्यापक धांधली की गयी। कई अभ्यर्थियों के अंकों में मॉडरेटिंग के नाम पर भारी फेरबदल किये गये। कुछ के अंकों में कटौती की गयी तो कुछ के अंक बढ़ा दिये गये। अंकों में कटौती के कारण कई मेधावी अभ्यर्थी अनुत्तीर्ण हो गये तो अंकों में बढ़ोत्तरी के फलस्वरूप कई अपात्र भी उत्तीर्ण घोषित किये गये।
प्रारंभिक परीक्षा के प्रश्न पत्र में गलती
6 जनवरी 2012 को पटना उच्च न्यायालय ने बीपीएससी को 53वीं से 55वीं प्रारंभिक संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के प्रश्न पत्र से 8 गलत प्रश्नों को हटाकर फिर से असफल परीक्षार्थियों की कॉपियों का मूल्यांकन कर 142 को पूर्णांक मानते हुए अतिरिक्त परिणाम प्रकाशित करने का आदेश दिया था। बीपीएससी  150 सही-सही प्रश्नोत्तर तैयार नहीं कर पाने में दुबारा अक्षम साबित हुआ।
मामला आरक्षण का
53वीं से 55वीं प्रारंभिक संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में बीपीएससी ने राज्य सरकार के नियमानुसार आरक्षण लागू कर दिया। इस पर भी मामला उच्च न्यायालय पहुंचा। न्यायालय ने आदेश दिया कि प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण लागू करना अवैध है। साथ ही अगली बार से ऐसा न करने की हिदायत भी दी। यों परीक्षा की प्रक्रिया आगे बढ़ी।
बिना सूचना के बढ़ी सीटे
अभ्यर्थियों के अधिवक्ता दीनू कुमार व इब्राहिम कबीर ने उच्च न्यायालय से कहा कि बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं प्रशासनिक सेवा के 257 पदों के लिए 13 जनवरी 2011 को विज्ञापन निकाला था। विज्ञापन में उसने 14 सेवाओं के बारे में जिक्र किया था। जब रिजल्ट निकला तो उसमें 19 सेवाओं के लिए 1006 पदों पर नियुक्ति की बात कही थी। बिना पूर्व सूचना के और रिजल्ट निकाल दिये जाने के बाद कई सेवाओं को बढ़ा दिया जाना भी गलत है।
लेखा सेवा के 100 पद हुए अलग
लेखा सेवा के एक सौ पद को 53वीं से 55वीं बीपीएससी मुख्य परीक्षा से हटाने का आदेश पटना उच्च न्यायालय ने बिहार सरकार सहित बीपीएससी को दिया। साथ ही लेखा सेवा को हटाकर मुख्य परीक्षा का रिजल्ट निकालने का आदेश अप्रैल में दिया। न्यायमूर्ति मिहिर कुमार झा की एकलपीठ ने विनोद कुमार तिवारी की ओर से दायर अर्जी पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया था। विदित है कि हाई कोर्ट ने 15 मार्च को मुख्य परीक्षा के रिजल्ट के प्रकाशन पर रोक लगाया था। इसके पूर्व आवेदक के वकील ज्ञान शंकर ने अदालत को बताया कि विज्ञापन में प्रकाशित रिक्तियों में लेखा सेवा पद के बारे में कहीं चर्चा नहीं है। वहीं, बीपीएससी का पक्ष रखते हुए अधिवक्ता संजय पांडेय ने कोर्ट को बताया कि आयोग ने सरकार की अनुशंसा पर ऐसा किया। अदालत ने आयोग को लेखा सेवा में बहाली के लिए अलग से परीक्षा लेने की बात कही। अदालत ने आयोग को इस सेवा को 53वी से 55वीं बीपीएससी से हटा कर रिजल्ट प्रकाशन करने का आदेश दिया।
साक्षात्कार के लिए 2610 चयनित
बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं सम्मिलित संयुक्त मुख्य (लिखित) प्रतियोगिता परीक्षा का परिणाम इस वर्ष 10 अप्रैल को घोषित किया। यह परीक्षा 25 मई 2012 से 14 जून 2012 की अवधि में पटना स्थित 30 परीक्षा केंद्रों में आयोजित की गयी थी। बीपीएससी ने मुख्य परीक्षा में सम्मिलित कुल 14407 उम्मीदवारों में से कुल 2610 अभ्यर्थियों का चयन साक्षात्कार के लिए किया।
मुख्य परीक्षा के परिणाम को चुनौती
मुख्य परीक्षा के परिणाम को सुनील कुमार सहित अन्य ने अधिवक्ता दीनू कुमार के माध्यम से चुनौती दी। इसी मुद्दे को लेकर नवीन चंद्र कुमार सिंह व अन्य ने अधिवक्ता विवेक प्रसाद के माध्यम से याचिका उच्च न्यायालय में दाखिल की। उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं प्रशासनिक सेवा का रिजल्ट मॉडरेटिंग कर निकाला है जबकि यह बात विज्ञापन या प्रारंभिक परीक्षा के दौरान नहीं बतायी गयी थी। ऐसा किया जाना कानूनन गलत है।
मूल्यांकन की नीति नहीं बनी
न्यायालय के निर्णय के अनुसार बीपीएससी ने स्केलिंग कर भी रिजल्ट नहीं निकाला है। उच्च न्यायालय ने अपने 26 अगस्त 2011 के आदेश में रिजल्ट में समरूपता लाने के लिए नीति बनाने को कहा था। साथ ही नये नियम बनने तक संघ लोक सेवा आयोग के नियम का पालन करने को भी कहा था। इसके बावजूद बीपीएससी ने कोई नियम नहीं अपनाया। अब तक बीपीएससी ने मूल्यांकन की नीति नहीं बनायी है।
सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था
वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने संजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के मामले में एक व्यवस्था दी। उसके तहत कहा गया है कि जब किसी परीक्षा में वैकल्पिक विषय अलग-अलग हों तो स्केलिंग पद्धति से और जब वैकल्पिक विषय एक ही हो तो मॉडरेशन पद्धति से अंक दिये जायें। पर,
बीपीएससी ने इस सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था को भी नहीं माना। इस मामले में बीपीएससी के अधिकारी कुछ भी बताने से परहेज कर रहे हैं।
मॉडरेशन का नियम
एक ही विषय की कॉपी को जब अलग-अलग परीक्षक जांच कर अंक देते हैं तब मुख्य परीक्षक यह निर्धारित करता है कि उदार परीक्षक द्वारा दिये गये अंक में से कितना काटा जाये और सख्त परीक्षक द्वारा दिये गये अंक में कितना जोड़ा जाये। इस प्रकार एक मॉडल आंसर के आधार पर जो मान्य अंक मुख्य परीक्षक द्वारा दिये जाते हैं, वही मॉडरेशन वाला अंक कहलाता है।
मॉडल आंसर बगैर मॉडरेशन
बीपीएससी ने एक आरटीआई के तहत 10 जून को बताया कि इस बार (53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा में) मॉडल आंसर नहीं बनाया गया। यों बिना मॉडल आंसर के ही अंकों का मॉडरेशन कर परिणाम निकाले गये जो वैध नहीं कहे जा सकते।
अंतिम परिणाम 
बीपीएससी ने 53वीं से 55वीं सम्मिलित संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा का अंतिम परिणाम अगस्त में जारी किया। राज्य संवर्ग की विभिन्न सेवाओं के लिए कुल 969 अभ्यर्थियों को अंतिम रूप से सफल घोषित किया गया, जिनमें  843 पुरुष व 126 महिलाएं हैं। प्रथम स्थान प्रदीप भुवनेश्वर सिंह को मिला। उन्हें 74 प्रतिशत अंक मिले, दूसरे व तीसरे स्थान पर रजनीश कुमार ने 70 प्रतिशत तो हरीश शर्मा ने 69 प्रतिशत अंक प्राप्त किये। महिलाओं में कुमारी अनामिका को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ। 2610 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। 28 मई से 5 जुलाई के बीच साक्षात्कार की प्रक्रिया पूरी की गयी। 31 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार में भाग नहीं लिया। एक की शैक्षणिक योग्यता नहीं रहने के कारण उम्मीदवारी रद्द कर दी गयी। शेष 2578 उम्मीदवारों ने साक्षात्कार प्रक्रिया में भाग लिया। इन अभ्यर्थियों ने अप्रैल 2011 में प्रारंभिक परीक्षा तो मई 2012 में लिखित परीक्षा दी थी।
आज अगली सुनवाई
पटना उच्च न्यायालय में 22 अक्टूबर को 53 वीं से 55वीं संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षा के मामले में दाखिल 8 मामलों को संयुक्त कर अगली सुनवाई होने वाली है। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेखा मोहन दोशित और न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह के डबल बेंच में यह सुनवाई होनी है। फिलहाल अभ्यर्थियों की मांग है कि मुख्य परीक्षा के परिणाम को रद्द कर पुनः साक्षात्कार आयोजित किया जाये।
सेवा / सफल उम्मीदवार
बिहार आरक्षी सेवा- आरक्षी उपाधीक्षक--34
जिला समादेष्टा--- 09
बिहार वित्त सेवा वाणिज्य कर पदा.--- 83
जिला अल्पसंख्यक कल्याण पदा. --- 38
बिहार कारा सेवा-काराधीक्षक--- 10
जिला अंकेक्षण पदा. --- 03
सहायक निबंधक, सहयोग समितियां--- 09
अवर निबंधक --- 56
ईख पदाधिकारी --- 02
सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा--- 10
प्रोबेशन पदाधिकारी--- 56
उत्पाद निरीक्षक--- 03
ग्रामीण विकास पदाधिकारी--- 532
श्रम अधीक्षक, बिहार श्रम सेवा--- 14
नियोजन पदाधिकारी --- 25
नगर कार्यपालक पदाधिकारी--- 27
अवर निर्वाचन पदाधिकारी--- 21
सहायक निदेशक, बाल संरक्षण इकाई--- 37
कुल------------- 969

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

रामदेव पर काँग्रेसी वार : निर्वाचन आयोग भी सख्त



शीतांशु कुमार सहाय
बाबा रामदेव और काँग्रेस का छत्तीस का आँकड़ा है। सर्वविदित यह तथ्य एक बार फिर से सत्य की कसौटी पर खरा उतरा। छत्तीसगढ़ के योग शिविर के मद्देनजर दोनों के बीच के रार फिर सतह पर आये। बाबा ने 2 चरणों में विधान सभा चुनाव होने वाले राज्य छत्तीसगढ़ में योग शिविर कर रहे थे। इसमें खिलाफत की अपने परम्परागत विरोधी काँग्रेस की। इससे तिलमिला उठी काँग्रेस और कर दी निर्वाचन आयोग में शिकायत। त्वरित गति से आयोग ने बाबा के शिविरों के खर्चे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खाते में जोड़ने का आदेश दे डाला। आरोप के मद्देनजर कहा गया कि रामदेव के मुख से भाजपा के प्रधानमंत्री के प्रत्याशी नरेन्द्र मोदी और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का गुणगान व काँग्रेस की बुराई की गयी है। ऐसे में जब निर्वाचन आयोग ने कार्रवाई की तो राजनीति गर्म होनी थी सो हो गयी। दोनों तरफ से वाक्युद्ध का नया दौर चल पड़ा है। नया दौर इसलिये भी कि पहली बार निर्वाचन आयोग ने किसी गैर-राजनीतिक व्यक्ति की सभा को राजनीतिक व उसके खर्च को किसी राजनीतिक दल के खर्चे में जोड़ा है।
दरअसल, निर्वाचन आयोग ने काँग्रेस की शिकायत पर गौर करते हुए यह आदेश दिया है कि योग गुरु रामदेव की सभा का खर्च भाजपा के खाते में जोड़ा जाये। रामदेव ने छत्तीसगढ़ में कई सभाएँ की हैं, जिनमें उन्होंने रमन सिंह  सरकार और नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की थी। गौरतलब है कि काँग्रेस ने आयोग के समक्ष यह शिकायत की थी कि बाबा रामदेव अपने योग शिविर का इस्तेमाल भाजपा के प्रचार हेतु कर रहे हैं। आरोप है कि उन्होंने 15 विधान सभा क्षेत्रों में योग दीक्षा के कार्यक्रमों में भाग लिया लेकिन ये सभी कार्यक्रम योग से कहीं अधिक राजनीतिक लग रहे थे। विभिन्न दलों द्वारा शिकायत किये जाने के बाद आयोग हरकत में आया। शिकायत में कहा गया कि रामदेव की सभाओं का खर्च भाजपा के चुनाव खर्च में जोड़ा जाए और ऐसा ही हुआ भी। रामदेव को लेकर निर्वाचन आयोग सख्त हो चला है। योग शिविरों में राजनीतिक भाषण देने वाले बाबा रामदेव अब चुनाव आयोग के निशाने पर आ गये हैं। छत्तीसगढ़ के बाद दिल्ली कीे उनकी योग सभाओं पर भी नजर रखी जा रही है। ग़ौरतलब है कि बाबा रामदेव खुले तौर पर भाजपा का समर्थन करते हैं और नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की वकालत करते हैं। इस बीच, निर्वाचन आयोग ने रामदेव की राज्य में कुछ जगह हुई सभाओं की रिपोर्ट और वीडियो संबंधित जिलाधिकारियों से मांगे हैं।
अब नजर डालते हैं बाबा रामदेव के चन्द शब्दों पर जो उन्होंने मंगलवार को छत्तीसगढ़ के दुर्ग की सभा में जाहिर किये- संसद में बैठे कुछ लोग कर्म कम, कुकर्म ज्यादा कर रहे हैं। अधर्म ज्यादा हो रहा है। ताड़का, रावण, कंस नये अवतार में आ गये हैं। उनका वध करने के लिए सुदर्शन चक्र चलाने की जरूरत नहीं; बल्कि बटन दबाकर ऐसे राक्षसों का नाश करना होगा। किसको बटन दबाना है, ये बताना जरूरी नहीं। आप खुद समझदार हैं। दुर्ग के सुराना कालेज ग्राउंड में योग की क्लास लेने से पहले रामदेव ने राजनीतिक क्लास ली। उन्होंने किसी का नाम लिए बगैर काँग्रेस और सोनिया गाँधी पर जमकर हमले किये। वे काँग्रेस को विदेशी पार्टी मानते हैं और कहते हैं कि इस विदेशी पार्टी का गठन अंग्रेज एओ ह्यूम ने किया। अब शब्दों पर जरा गौर कीजिये- चुनाव में विदेशी पार्टी नहीं; बल्कि भारत की जनता की पार्टी अच्छी है। चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान को विदेशी पार्टी आज भी शहीद नहीं मानती। नेहरू ने दिल्ली में ढाई सौ संतों को गोली से भुनवा दिया। ये खूनी खानदान है। ऐसे में काँग्रेस तिलमिला गयी और और निर्वाचन आयोग से लगायी गयी उसकी गुहार मंजूर भी हो गयी।
ऐसे में एक बात स्पष्ट होनी चाहिये कि कोई गैर-राजनीतिक व्यक्ति भी यदि आदर्श आचार संहिता की अवधि के बीच किसी कार्यक्रम में किसी दल का नाम लेकर उसकी असलियत उजागर करता है जिससे उसकी नकारात्मक छवि बनती है तो क्या जिस दल का नाम नहीं लिया गया उसके खर्च में ही कार्यक्रम का खर्च जुड़ेगा। योग कार्यक्रम में काँग्रेस की सच्चाई बताकर लोगों से संभलकर मतदान करने का आह्वान करने वाले स्वामी रामदेव के कार्यक्रम का खर्च भाजपा के खाते में जोड़ने की गुजारिश काँग्रेस द्वारा की गयी तो छत्तीसगढ़ के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सुनील कुमार कुजूर ने ऐसा ही करने का प्रस्ताव दे दिया। ऐसे में जब कोई मौलवी, मठाधीश या अन्य संगठन के नेतृत्व की ओर से किसी दल की गलत नीतियों का विरोध किया जायेगा तो उस संगठन, मस्जिद या मठ-मन्दिर का खर्च अन्य दल के खाते में जुड़ेगा जिसके विरुद्ध शिकायत की जायेगी?

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2013

इण्टरनेट पर राहुल से आगे नरेन्द्र


शीतांशु कुमार सहाय
सभी दलों ने एड़ी-चोटी का प्रयास लगा दिया है लोकसभा चुनाव में जीत के वास्ते। इस संदर्भ में तकनीकों का भी व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है। अपने को हर क्षेत्र में अव्वल साबित करने की होड़ मची है। इसी सिलसिले में इण्टरनेट का भी खूब उपयोग हो रहा है। विभिन्न दलों ने इण्टरनेट पर प्रचार के लिए विशेषज्ञों की टीम गठित कर ली है। सभी सोशल साइटों को पर प्रचार के मुहिम चलाये जा रहे हैं। पर, इसमें आगे कौन और पीछे कौन है, यह बताया है गूगल इण्डिया ने। अगले साल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले गूगल इंडिया द्वारा कराये एक सर्वेक्षण से पता चला है कि देश के 40 प्रतिशत से अधिक शहरी युवा अब तक इस बात का फैसला नहीं कर पाये हैं कि उन्हें किस राजनीतिक दल को मतदान करना है। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि पिछले 6 महीनों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किये गये गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी इण्टरनेट पर सबसे अधिक सर्च किये गये हैं। निश्चय ही यह काँग्रेस के लिए निराशाजनक है।
वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था इन दिनों लचर स्थिति में है। आम आदमी महंगाई से दो-चार हो रहा है। हर ओर भयंकर भ्रष्टाचार है। लोगों की बचत में लगातार गिरावट आ रही है। इसका जिम्मेवार सीधा काँग्रेस को मान रहे हैं देशवासी। देशवासियों की यह मान्यता भी गलत नहीं कही जा सकती। इसका कारण है कि केन्द्र में काँग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) की सरकार काबिज है। लिहाजा लोगों का मोह काँग्रेस से भंग हुआ है। यही नहीं, आम लोग राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ हैं। पर, संप्रग की सरकार ने राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ को रोकने वाले सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को बदलने के लिए एक अध्यादेश बनाया और राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज दिया। सरकार के इस कदम की देश-विदेश में आलोचना हुई। काफी छीछालेदर के बाद भी प्रधानमंत्री ने इसे वापस न लिया मगर राहुल गाँधी की खिलाफत के तुरन्त बाद ही इसे वापस ले लिया। इस प्रकरण के बाद भी काँग्रेस अपने उपाध्यक्ष राहुल को हीरो नहीं बना सकी और गूगल के सर्वेक्षण में वे नरेन्द्र मोदी से पीछे ही नजर आये। इस सूची में तीसरे स्थान पर काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी, चौथे स्थान पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा पाँचवें स्थान पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाकर दिल्ली विधान सभा चुनाव से नवम्बर में राजनीतिक करियर शुरू करने जा रहे अरविन्द केजरीवाल हैं। सूची में छठे स्थान पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मौजूद हैं। सबसे अधिक सर्च किये गये राजनीतिक दलों की सूची में भी नरेन्द्र मोदी की भाजपा ही शीर्ष पर है। काँग्रेस दूसरे, अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तीसरे, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की बहुजन समाज पार्टी चौथे तथा शिवसेना पाँचवें स्थान पर हैं।
विदित हो कि 2014 का लोकसभा आम चुनाव कई मायनों में अनोखा होगा। इसमें 2 बातें सबसे अहम हैं। एक तो यह कि इसमें इण्टरनेट का सर्वाधिक उपयोग होगा और दूसरा यह कि मतदाताओं को प्रत्याशियों को अस्वीकृत करने का भी अधिकार होगा। प्रत्याशियों को अस्वीकृत करने के अधिकार का प्रथमतः उपयोग मतदाताओं द्वारा नवम्बर-दिसम्बर में होने वाले 5 राज्यों में चुनाव के दौरान किया जाएगा। गूगल के सर्वेक्षण ने राजनीतिक गलियारे में गर्माहट ला दिया है। इसमें 108 लोकसभा सीटों के मतदाताओं के विचार लिये गये। चुनाव के दौरान इण्टरनेट के उपयोग का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान सर्च पिछले चुनाव की अपेक्षा 800 प्रतिशत अधिक है।

गूगल सर्वेक्षण में ये हैं टॉप 10 नेता/नेत्री-
1) नरेन्द्र मोदी,
2) राहुल गांधी,
3) सोनिया गांधी,
4) मनमोहन सिंह,
5) अरविंद केजरीवाल,
6) जयललिता,
7) अखिलेश यादव,
8) नीतिश कुमार,
9) सुषमा स्वराज और
10) दिग्विजय सिंह।

नीतीश पर तोहमत : सत्ता से बाहर आने पर भाजपा को याद आया घोटाला





शीतांशु कुमार सहाय
जब सरकार में साथ-साथ थे तब नीतीश कुमार विकास पुरुष थे, बड़े अच्छे थे और अब अलग हो गये तो वे सबसे बुरे हो गये, घोटालेबाज हो गये। यही प्रदर्शित किया है भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने। कभी शिवानन्द तिवारी के साथ गलबंहिया करते थे पर आज वे भी भाजपा की नजर में चारा घोटाले में शामिल नजर आ रहे हैं। रविवार को बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को अपने इन दोनों पूर्व साथियों से घोटालेबाजी की बू आने लगी और विरोध में ट्विटर पर लिख डाले 4 पृष्ठ। इतने पर भी मन नहीं भरा तो संवाददाताओं के बीच आ गये और नीतीश कुमार की विकासवादी छवि की ऐसी-की-तैसी करने लगे। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि डेढ़ दशक से अधिक समय तक गठबन्धन में साथ रहे, साथ-साथ लोकसभा व विधान सभा का चुनाव लड़े और साथ में ही बिहार में शासन भी किया भाजपा और जनता दल युनाइटेड (जदयू) ने। पर, कुछ महीने पूर्व ही नीतीश सरकार से किनारा करने वाले भाजपाइयों ने नीतीश व उनकी जदयू के प्रति आग उगलना आरंभ कर दिया।

चारा घोटाले की केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआइ) से जाँच कराने के लिए पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वालों में से एक हैं सुशील मोदी। वैसे सच यह भी है कि वर्तमान में जदयू सांसद शिवानन्द तिवारी ने भी चारा घोटाले में याचिका दायर की थी। अखण्ड बिहार और वर्तमान झारखण्ड में भाजपा के मुख्य हस्ताक्षर सरयू राय ने भी चारा घोटाले में याचिका दायर की थी। अब कहा यह जा रहा है कि नीतीश कुमार ने 1995 के विधानसभा चुनाव के समय चारा घोटाले के मुख्य अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा से चुनाव खर्च के लिये एक करोड़ रुपये लिये थे। यों शिवानन्द ने भी इस दौरान चारा घोटालेबाजों से कई बार लाखांे रुपये लिये थे। इस बीच मोदी चारा घोटाले की धमक को नीतीश तक लाने के प्रयास में कहते हैं कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र को इसी घोटाले में शामिल अधिकारी के महज सेवा विस्तार के लिए सिफारिशी पत्र लिखने पर 4 साल की सजा हो गयी। ऐसे में श्याम बिहारी सिन्हा द्वारा दिये गये धारा- 161 और 164 के बयान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू सांसद शिवानंद तिवारी के भी नाम आये लेकिन सीबीआइ ने इनसे न पूछताछ की और न ही इनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया। आखिर सरकार में नीतीश के साथ रहते हुए ये सारी बातें सुशील को याद क्यों नहीं थी? इसका मतलब यह तो नहीं कि सत्ता का सुख भोगने में वे जनहित की इन बातों को भुला बैठे थे या जान-बूझकर तथ्यों को छिपाये बैठे थे।

हमेशा से भारतीय लोकतन्त्र में जनता को मूर्ख समझने की मूर्खता राजनीतिक नेताओं द्वारा की जाती रही है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। वरना चारा घोटाले की आरम्भिक चर्चा के दौरान बिहार विधान सभा में विपक्षी नेता के पद पर रहते हुए सुशील ने एक पुस्तिका प्रकाशित करवायी थी जिसमें बिहार की तत्कालीन लालू सरकार के काल के घोटालों के उल्लेख थे। ऐसा लगा था कि जब वे बिहार की सत्ता में आयेंगे तो घोटालों पर से पर्दा हटायेंगे पर सत्ता में रहते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब फिर सत्ता से बाहर आते ही घोटालों की याद आ गयी। इन आरोपों में भले ही जो सच्चाई हो पर इतना तो सच ही है कि रिश्ते में खटास आने पर ही यह उजागर हुआ। 

रविवार, 6 अक्टूबर 2013

पहली बार प्रत्याशियों को नापसन्द करने का मिला अधिकार : 5 राज्यों में निर्वाचन का एलान / POWER OF RIGHT TO REJECT IN BHARAT


-शीतांशु कुमार सहाय
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त वीएस संपत ने कहा कि इस बार ईवीएम में 'कोई नहीं' का विकल्‍प भी दिया जाएगा। ईवीएम में उम्मीदवारों की सूची के सबसे अंत में एनओटीए का बटन होगा। जो मतदाता उम्मीदवारों में से किसी को भी अपना वोट नहीं देना चाहते वे एनओटीए का बटन दबा सकते हैं। वोटर 'कोई नहीं' वाला बटन दबाकर सभी उम्‍मीदवारों को नापसंद कर सकता है। एनओटीए यानी नन ऑफ द एवभ/None Of The Above (उपर्युक्त में से कोई नहीं)। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 27 सितंबर 2013 को अपने एक ऐतिहासिक फैसले में चुनाव आयोग से मतपत्रों और ईवीएम में 'कोई नहीं' (नोटा/एनओटीए) का विकल्प उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला एनजीओ पीपल्स यूनियन फोर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर दिया। शुक्रवार 4 अक्तूबर 2013 को नई दिल्ली में औपचारिक रूप से विधानसभा चुनावों के एलान के साथ ही पांचों राज्यों में आचार संहिता भी लागू हो गई। नक्सली हिंसा से प्रभावित छत्तीसगढ़ में सुरक्षा के लिहाज से मतदान दो चरणों में होंगे। बाकी के राज्यों में एक ही चरण में चुनाव होंगे। इन सभी राज्यों के विधानसभा का कार्यकाल 12 दिसंबर से 4 जनवरी के बीच खत्म हो रहा है। लिहाजा नतीजों की घोषणा उससे पहले ही एक साथ 8 दिसंबर को होगी। यूं तो घोषणा विधानसभा चुनाव की हुई है, लेकिन राजनीतिक महत्व इसलिए ज्यादा है क्योंकि अगले साल की पहली तिमाही में ही लोकसभा चुनाव की घोषणा होगी।
लोकसभा चुनाव-2014 का सेमीफाइनल
पांच राज्यों में नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा की भावी तस्वीर बहुत हद तक साफ कर देंगे। यही कारण है कि इस चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल माना जा रहा है। दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की कुल 630 विधानसभा सीटों के लिए 11 नवंबर से 4 दिसंबर तक चुनाव होंगे। लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इन आखिरी विधानसभा चुनावों में करीब 11 करोड़ मतदाता अपना फैसला सुनाएंगे। पांच में फिलहाल तीन राज्य दिल्ली, मिजोरम और राजस्थान कांग्रेस के पास है, वहीं मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ पिछले एक दशक से भाजपा के अभेद्य दुर्ग बने हुए हैं। खास बात है कि इन पांचों राज्यों में लोकसभा की 73 सीटें हैं। पांचों राज्यों के चुनाव नतीजे एक साथ 8 दिसंबर को आएंगे। इसके साथ ही तय होगा कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा में कौन मनोवैज्ञानिक बढ़त के साथ मैदान में उतरेगी। मिजोरम को छोड़ दें तो बाकी के राज्य न सिर्फ हिंदी भाषी हैं बल्कि वहां लड़ाई आमने-सामने की है। संप्रग और राजग का नेतृत्व कर रही कांग्रेस और भाजपा ही इन चारों राज्यों में मुख्य दल और सत्ता के दावेदार हैं। मिजोरम में कांग्रेस के सामने कोई बड़ा दावेदार नहीं है। ऐसे में खासकर चार राज्यों के विधानसभा चुनाव को लोकसभा के लिए सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है। लोकसभा के लिहाज से हालांकि इन पांच राज्यों में छह दर्जन सीटें हैं लेकिन कांग्रेस और भाजपा के लिए ये सीटें महत्वपूर्ण हैं। इन चुनावों में जिस दल का प्रदर्शन खराब होगा, लोकसभा चुनाव में उसकी नैया डूबने की भविष्यवाणी मानी जाएगी। खराब प्रदर्शन जहां भाजपा में नए सिरे से कलह की जमीन तैयार कर सकता है। वहीं अगर ऐसा कांग्रेस के साथ हुआ तो पहले ही आंध्र प्रदेश के मोर्चे और नेतृत्व के सवाल पर हांफ रही पार्टी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हमला करने के बदले बचाव की मुद्रा में होगी।
ईवीएम में इनमें से कोई नहीं का बटन 
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने कहा कि इस बार ईवीएम में 'कोई नहीं' का विकल्‍प भी दिया जाएगा। वोटर 'कोई नहीं' वाला बटन दबाकर सभी उम्‍मीदवारों को नापसंद कर सकता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से इस तरह की पहल करने को कहा था। मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने शुक्रवार 4 अक्तूबर 2013 को विधानसभा चुनाव की तिथियों की घोषणा की। उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुसार इसी चुनाव से वोटरों के पास सभी उम्मीदवारों को नापसंद करने का अधिकार होगा। इवीएम में 'इनमें से कोई नहीं' का बटन होगा। वोटरों को मतदान और प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए पहली बार 'जागरूकता आब्जर्वर' की नियुक्ति होगी। संपत ने कहा कि आयोग चाहता है कि ज्यादा से ज्यादा लोग चुनाव में हिस्सा लें। आयोग के कर्मचारी वोटरों को फोटो वोटर स्लिप घर तक देकर आएंगे। सुरक्षा, निष्पक्षता, खर्च सीमा आदि पर निगरानी के लिए अलग-अलग आब्जर्वर नियुक्त होंगे। वहीं उम्मीदवारों के लिए नामांकन पत्र में हर कालम भरना जरूरी होगा। अगर वह कोई कालम खाली छोड़ते हैं तो नामांकन रद हो सकता है।
मनी पावर के इस्‍तेमाल पर पैनी नजर
मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त वीएस संपत ने कहा कि चुनाव में पैसे के गलत इस्‍तेमाल पर कड़ी नजर रखी जाएगी। चुनाव में पहली बार जागरुकता ऑब्‍जर्वर होंगे। सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाएंगे।

छत्तीसगढ़ में पहला चरण
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 18 अक्‍टूबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 25 अक्‍टूबर
नामांकन पत्रों की जांच: 26 अक्‍टूबर
नाम वापस लेने की अंतिम तिथि: 28 अक्‍टूबर
मतदान: 11 नवंबर

छत्तीसगढ़ में दूसरा चरण
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 25 अक्‍टूबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 1 नवंबर
नामांकन पत्रों की जांच: 2 नवंबर
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख: 4 नवंबर
मतदान: 19 नवंबर

मध्‍य प्रदेश
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 1 नवंबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 8 नवंबर
नामांकन पत्रों की जांच: 9 नवंबर
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख: 11 नवंबर
मतदान: 25 नवंबर

राजस्‍थान 
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 5 नवंबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 12 नवंबर
नामांकन पत्रों की जांच: 13 नवंबर
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख: 16 नवंबर
मतदान: 1 दिसंबर

दिल्‍ली
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 9 नवंबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 16 नवंबर
नामांकन पत्रों की जांच: 18 नवंबर
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख: 20 नवंबर
मतदान: 4 दिसंबर

मिजोरम
अधिसूचना जारी होने की तारीख: 9 नवंबर
नामांकन की अंतिम तिथि: 16 नवंबर
नामांकन पत्रों की जांच: 18 नवंबर
नाम वापस लेने की अंतिम तारीख: 20 नवंबर
मतदान: 4 दिसंबर

नीतीश कुमार तक चारा घोटाले की आंच पहुंचा रही है भारतीय जनता पार्टी


--शीतांशु कुमार सहाय
चारा घोटाले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के लिए पटना उच्च न्यायालय मे याचिका दायर करने वालो मे से एक श्री मोदी ने रविवार 6 अक्टूबर 2013 को पटना मे संवाददाता सम्मेलन मे कहा कि श्री नीतीश कुमार ने 1995 के विधानसभा चुनाव के समय चारा घोटाले के मुख्य अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा से चुनाव खर्च के लिये एक करोड़ रूपया लिया था। इसी तरह श्री तिवारी ने भी इस दौरान चारा घोटाले के आरोपियो से कई बार लाखो रूपये लिये थे। मोदी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा को घोटाले में शामिल अधिकारी के सेवा विस्तार के लिए सिफारिशी पत्र लिखने के आधार पर चार साल की सजा हो गई। वहीं अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा द्वारा दिए गए 161 और 164 के बयान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू सांसद शिवानंद तिवारी का भी नाम आया है, लेकिन सीबीआइ ने इनसे न तो कोई पूछताछ की और ना ही इनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया। इस संबंध में उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर की गई है। सीबीआइ को 22 को न्यायालय में अपना जवाब दाखिल करना है। मोदी ने कहा कि यदि सीबीआइ मामले की निष्पक्ष जांच करे और अपनी रपट दे तो मामले के अन्य दोषियों को भी सजा हो सकती है।


भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी---
नीतीश कुमार तक चारा घोटाले की आंच पहुंचाने में भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी है। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने चारा घोटाला मामले को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के सांसद शिवानंद तिवारी पर मुकदमा चलाने की मांग की है। रविवार 6 अक्टूबर 2013 को बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एक के बाद एक चार ट्वीट किए और बताने की कोशिश की कि चारा घोटाले में केवल पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ही नहीं, वर्तमान सीएम नीतीश के हाथ भी रंगे हुए हैं। नीतीश कुमार के साथ ही जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी का नाम भी साफ-साफ अंडरलाइन किया गया है। रविवार को सुशील मोदी ने चार पेज शेयर करते हुए बताया कि ये इकबालिया बयान चारा घोटाले के सूत्रधार श्याम बिहारी सिन्हा का है जिससे साफ होता है कि नीतीश कुमार को एक करोड़ रुपये पहुंचाए गए थे। बता दें कि श्याम बिहारी सिन्हा का निधन हो चुका है।

सुशील मोदी के डॉक्यूमेंट---



 जो डॉक्यूमेंट सुशील मोदी ने शेयर किया है उसके मुताबिक श्याम बिहारी सिन्हा ने अपने बयान में कहा है- 'उमेश सिंह ने दिल्ली में मुझसे संपर्क किया और बताया कि मार्च 1995 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए नीतीश जी ने कुछ पैसा मांगा है। उमेश ने बताया कि एक करोड़ रुपये की मांग आई है। मैं रांची लौटा और बाकी के कमेटी मेंबर्स के साथ इस मसले पर बात की। कमेटी को लगा कि 1995 के चुनावों में समता पार्टी एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरने वाली है। तभी नीतीश कुमार समता पार्टी के एक मजबूत नेता के तौर पर उभर रहे थे। कमेटी ने श्री नीतीश कुमार को एक करोड़ रुपये देने का निर्णय लिया। कमेटी के फैसले के बाद मैं फिर दिल्ली लौटा और विजय कुमार मलिक से कहा कि वह उमेश सिंह को एक करोड़ रुपया दे दे, ताकि वह नीतीश कुमार को दिया जा सके। (यहां जहां नीतीश कुमार लिखा है, वहां नीतीश की जगह कुछ और नाम था, जिसे बाद में पेन से काटकर नीतीश किया गया है।) यह नवंबर या दिसंबर की बात है कि विजय मलिक ने उमेश सिंह को नई दिल्ली में एक करोड़ रुपये दे दिए। जब मैं अपनी तीसरी ट्रिप के दौरान दिल्ली में था, तब श्री नीतीश कुमार ने टेलीफोन से पुष्टि की कि उमेश सिंह आए थे और उनके मिले थे...
बयान में नीतीश और शिवानंद के भी नाम---
चारा घोटाले की केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने के लिए पटना उच्च न्यायालय मे याचिका दायर करने वालो मे से एक श्री मोदी ने रविवार 6 अक्टूबर 2013 को पटना मे संवाददाता सम्मेलन मे कहा कि श्री नीतीश कुमार ने 1995 के विधानसभा चुनाव के समय चारा घोटाले के मुख्य अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा से चुनाव खर्च के लिये एक करोड़ रूपया लिया था। इसी तरह श्री तिवारी ने भी इस दौरान चारा घोटाले के आरोपियो से कई बार लाखो रूपये लिये थे। मोदी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा को घोटाले में शामिल अधिकारी के सेवा विस्तार के लिए सिफारिशी पत्र लिखने के आधार पर चार साल की सजा हो गई। वहीं अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा द्वारा दिए गए 161 और 164 के बयान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू सांसद शिवानंद तिवारी का भी नाम आया है, लेकिन सीबीआइ ने इनसे न तो कोई पूछताछ की और ना ही इनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया। इस संबंध में उच्च न्यायालय में लोकहित याचिका दायर की गई है। सीबीआइ को 22 को न्यायालय में अपना जवाब दाखिल करना है। मोदी ने कहा कि यदि सीबीआइ मामले की निष्पक्ष जांच करे और अपनी रपट दे तो मामले के अन्य दोषियों को भी सजा हो सकती है।
विशेष अदालत ने सजा सुनाई---
गौरतलब है कि राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, जदयू के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री डा जगन्नाथ मिश्रा, जदयू सांसद जगदीश शर्मा, राजद के पूर्व सांसद डा. आरके राणा और भाजपा नेता ध्रव भगत समेत 37 लोगो को चारा घोटाले के मामले 20 ए/ 96 मे 03 अक्टूबर को रांची की विशेष अदालत ने सजा सुनाई है।
शिवानंद तिवारी के घर में जाकर उसे पैसे सौंप दिए---
 इसी बयान में शिवानंद तिवारी का जिक्र भी हुआ है। श्याम बिहारी सिन्हा ने बयान में कहा- 'नवंबर 1994 में मैं दिल्ली में था। तब उमेश सिंह मेरे पास आए और मुझे शिवानंद तिवारी के पास ले गए, जो करोलबाग के होटल खिला हाउस में ठहरे हुए थे। वहां शिवानंद तिवारी ने 50 लाख रुपये की मांग की।' उसके बाद तय किया गया कि तिवारी को 40 लाख रुपये दिए जाएंगे। बयान में है- 'त्रिपुरारी मोहन प्रसाद ने मुझे 40 लाख रुपये शिवानंद तिवारी को देने का निर्देश दिया। नवंबर 1994 में ही यह रकम अदा की गई। त्रिपुरारी मोहन प्रसाद ने बाद में कन्फर्म किया कि उसने 30 से 35 लाख रुपये शिवानंद तक पहुंचाने के लिए उमेश सिंह को दिए...'  इन्हीं डॉक्यूमेंट्स में उमेश सिंह का बयान भी है। उमेश ने बयान में कहा- '...शिवानंद तिवारी नरम नहीं पड़े। फिर वे चले गए। बाद में उसी दिन, श्याम बिहारी सिन्हा के कहने पर विजय मलिक के भाई ने चार लाख रुपये शिवानंद तिवारी को देने के लिए मरीन होटल में मुझे सौंपे, मैं पटना लौटा और शिवानंद तिवारी के घर में जाकर उसे पैसे सौंप दिए।'

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

लालू प्रसाद : 5 साल की जेल, 25 लाख रुपये जुर्माना


प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, सांसद और आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव अब कैदी नंबर 3312 बन चुके हैं। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में यही नंबर मिला है। कैदियों की जिंदगी, कैदियों का रहन सहन और कैदियों का खाना। ठाठ-बाट के साथ बिंदास जिंदगी बिताने के आदी लालू के लिए जेल की जिंदगी का एक एक पल भारी है। चारा घोटाले में आरजेडी अध्यक्ष और देश के पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव को 3 अक्टूबर 2013 को पांच साल की सजा सुनाई गई है। रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद लालू ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये विशेष सीबीआई अदालत का फैसला सुना। लालू के अलावा घोटाले के दोषी जेडीयू सांसद जगदीश शर्मा और जगन्नाथ मिश्रा को चार साल की सजा सुनाई गई है। बीएन शर्मा और केएम प्रसाद को पांच साल जेल और डेढ़ करोड़ रुपये का जुर्माने की सजा सुनाई गई है। वर्तमान समय में जबकि लालू 15वीं लोक सभा में सारण (बिहार) से सांसद थे उन्हें बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाला काण्ड में सजा भुगतने के लिये बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार रांची में रखा गया है।
जज बदलने की लालू यादव की अर्ज़ी---
इस मामले में जज बदलने की लालू यादव की अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट ने 13 अगस्त को ख़ारिज कर दी थी। लालू यादव ने अपनी याचिका में ट्रायल कोर्ट के जज पीके सिंह पर भेदभाव बरतने का आरोप लगाया था।
लालू प्रसाद, जगन्नाथ मिश्र, जगदीश शर्मा को सजा---
चारा घोटाले से जुड़े एक मामले में आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को पांच साल कैद और 25 लाख जुर्माने की सजा सुनाई गई। रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने उनके साथ नरमी बरतने की तमाम अपीलों को ठुकरा दिया। आरजेडी ने आरोप लगाया है कि लालू यादव के खिलाफ राजनीतिक साजिश हुई है। इसी के साथ अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को भी चार साल की कैद और दो लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। साथ ही जेडीयू सांसद जगदीश शर्मा को भी चार साल की कैद और पांच लाख जुर्माने की सजा सुनाई गई। सजा सुनने के लिए लालू अदालत में मौजूद नहीं थे। वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये दोषियों को ये सजा सुनाई गई जैसा कि तय हुआ था। लेकिन लालू की पार्टी यानी राष्ट्रीय जनता दल का मानना है कि वे पूरी तरह निर्दोष हैं,  फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा। उन्हें बीजेपी और जेडीयू के षड़यंत्र का शिकार होना पड़ा है।
1. लालू यादव--- 5 साल, 25 लाख रुपए जुर्माना
2. जगन्नाथ मिश्रा--- 4 साल, 2 लाख रुपए जुर्माना
3. जगदीश शर्मा--- 4 साल, 5 लाख रुपए जुर्माना
4. आरके राणा--- 5 साल, 30 लाख रुपए जुर्माना
5. बैक जुलियस--- 4 साल, 2 लाख रुपए जुर्माना
6. फूलचंद्र सिंह--- 4 साल, 2 लाख रुपए जुर्माना
7. महेश प्रसाद--- 4 साल, 2 लाख रुपए जुर्माना
8. अधिकारी चंद्र--- 4 साल, 2 लाख रुपए जुर्माना
राजनीतिक भविष्य पर बड़ा ग्रहण---
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और कभी सामाजिक न्याय आंदोलन के नायक बनकर उभरे लालू यादव के राजनीतिक भविष्य पर गुरुवार को बड़ा ग्रहण लग गया। चारा घोटाला मामले में दोषी ठहराए जा चुके लालू यादव को रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने पांच साल की कैद और 25 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। इसके साथ ही, रशीद मसूद के बाद लालू की संसद सदस्यता भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक खत्म हो जाएगी। अगर ऊंची अदालत से भी लालू को राहत नहीं मिलती तो आगामी 6 सालों तक वह चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे।
अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें---
सजा सुनाए जाने से पहले अदालत में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी दलीलें दीं। सीबीआई ने लालू के लिए सात साल की अधिकतम सजा की मांग की। सीबीआई ने कहा कि ये सामान्य मामला नहीं है। लालू यादव तमाम प्रतिष्ठित पदों पर रहे हैं। ऐसे व्यक्ति से उम्मीद नहीं की जाती कि वो ऐसे मामले में शामिल होगा। इस केस में असामान्य देरी हुई। जनता का व्यवस्था पर भरोसा बढ़े, इसके लिए सख्त सजा जरूरी है। लालू के वकील ने इसका सख्त विरोध किया। वकील ने दलील दी कि लालू यादव की उम्र 67 साल है और वे कई गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में हैं। रेल मंत्री के रूप में उन्होंने शानदार काम किया और रेलवे को फायदे में लाए। जांच में उन्होंने सहयोग किया। 41 एफआईआर उनके आदेश पर ही दर्ज हुई थीं। लालू यादव ने जांच के दौरान सभी जरूरी दस्तावेज उपलब्ध कराए इसलिए उनके साथ नरमी बरती जानी चाहिए। अदालत पर बचाव पक्ष की अपील का कोई असर नहीं पड़ा।
मैंने कोई अपराध नहीं किया : लालू 
चारा घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अदालत द्वारा पांच साल की सजा सुनाए जाने के बाद लालू प्रसाद की तात्कालिक प्रतिक्रिया थी-- जब मैंने कोई अपराध नहीं किया है तो मुझे कैसे दंडित किया गया है? सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा 25 लाख रुपये का जुर्माना और सजा सुनाए जाने के बाद बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में परेशान दिख रहे लालू प्रसाद ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से यह सवाल पूछा। न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने जवाब दिया कि आप हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। लालू प्रसाद के वकील चितरंजन प्रसाद ने उनसे जेल में भेंट की और बाद में कहा कि हम 17 अक्टूबर को हाईकोर्ट में अपील करेंगे।
रामविलास पासवान ने कहा---
दूसरी ओर, जेल में लालू प्रसाद यादव से मिलकर लौटे लोक जनशक्ति पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी आरजेडी के साथ गठबंधन में पूरी तरह बनी हुई रहेगी।
क्या है मामला---
इस मामले में शिवानंद तिवारी, सरयू रॉय, राजीव रंजन सिंह और रविशंकर प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। पटना हाईकोर्ट ने 11 मार्च 1996 को 950 करोड़ रुपए के कथित चारा घोटाले के मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया था। लालू यादव को चारा घोटाले के एक मामले में सहयोगी होने का दोषी पाया गया। इस मामले में लालू, पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा औऱ जेडीयू सांसद जगदीश शर्मा समेत 38 लोग दोषी हैं। चारा घोटाले का ये मामला चाईबासा ट्रेजरी से जुड़ा है। इसमें कागजों पर पशुओं के लिए फर्जी चारा दिखाकर 37 करोड़ 68 लाख रुपए अवैध रुप से निकाले गए थे। इसमें पशुपालन विभाग के अधिकारी, सप्लायर, आईएएस अफसर समेत कई राजनेताओं के नाम भी सामने आए। लालू यादव पर अन्य धाराओं सहित पूरे षडयंत्र में शामिल होने, फर्जीवाड़ा और भ्रष्टाचार का मामला साबित हुआ है।
वकील ने दी थी बतौर रेल मंत्री अच्छे काम की दलील--- 
अदालत में लालू के वकील ने यह दलील देते हुए रहम की अपील की थी कि रेल मंत्री रहते हुए लालू ने अच्छा काम किया और देश के लिए काफी मुनाफा कमाया। वकील ने अदालत से यह भी कहा कि लालू 17 साल से मानसिक तनाव में रहे. उनकी उम्र भी काफी हो गई है और तबीयत भी ठीक नहीं रहती। कोर्ट के बाहर मीडिया से बात करते हुए लालू के वकील ने कहा, 'अपराधी को जेल में रखने का मकसद उसमें सुधार लाना होता है लेकिन लालू के साथ अब वैसी कोई बात नहीं हैं। इसलिए उन्हें जेल में रखने का फायदा नहीं है।' इसी मामले में आरोपी नेता जगन्नाथ मिश्रा के वकील ने भी उनकी उम्र और सेहत का हवाला देते हुए कम सजा मांगी थी लेकिन सीबीआई के वकील बीएमपी सिंह ने दोषियों के लिए कड़ी सजा की मांग की। उन्होंने कहा कि ऐसी सजा हो जिससे दोषियों को सबक मिले और समाज में कड़ा संदेश जाए। उन्होंने कोर्ट के सामने दलील दी कि यह सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, व्यापक षडयंत्र का मामला है।
30 सितंबर को दोषी करार---
30 सितंबर को विशेष सीबीआई अदालत ने लालू प्रसाद समेत 44 अभियुक्तों को दोषी ठहराया था। इस मामले में 44 अन्य अभियुक्त भी थे और सभी को अदालत ने दोषी ठहराया था। 17 साल तक मुकदमे के बाद अदालत ने 30 सितंबर को लालू यादव को धारा 120-बी यानी आपराधिक साजिश रचने, धारा 420 यानी धोखाधड़ी करने, धारा 467 यानी पैसों का फर्जीवाड़ा करने, धारा 468 यानी धोखाधड़ी के इरादे से फर्जीवाड़ा करने, धारा 477 ए यानी फर्जीवाड़े का सबूत मिटाने और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 13 (1डी) और 13(2) के तहत दोषी ठहराया गया। 17 साल पुराने चारा घोटाले में कुल 950 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई थी। इसमें लालू पर चाईबासा कोषागार से 37 करोड़ 70 लाख रुपये फर्जी ढंग से निकालने का मामला था, जिसमें कोर्ट ने उन्हें 30 सितंबर को ही दोषी ठहरा दिया था। तभी साफ हो गया था कि लालू को कम-से-कम तीन और ज्यादा से ज्यादा सात साल कैद की सजा सुनाई जा सकती है। दोषी करार दिए जाने के बाद से ही लालू रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद हैं।
दशहरे की छुट्टियों से बढ़ेगी मुश्किल---
लालू जाहिर तौर पर फैसले के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में जाएंगे लेकिन उनकी मुश्किल यह है कि दशहरे के चलते कोर्ट में 5 अक्टूबर से 16 अक्टूबर तक छुट्टी है। इसलिए कोर्ट में अपील करने के लिए दशहरे की छुट्टियों से पहले उन्हें सिर्फ एक दिन का ही समय मिलेगा। सजा सुनाए जाने के बाद भी लालू के वकीलों की ओर से एक दिन के समय के भीतर ही अपील दाखिल किए जाने की संभावना बहुत कम है और अगर अपील दाखिल भी की गई तो उस पर सुनवाई दशहरे की छुट्टियों से पहले संभव नहीं हो पाएगी।


इस मामले से जुड़ा घटनाक्रम---
जनवरी, 1996: उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई। उसके बाद यह चारा घोटाला सामने आया।
11 मार्च, 1996: पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया। उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई।
27 मार्च, 1996: सीबीआई ने चाईबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की।
23 जून, 1997: सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद को आरोपी बनाया।
30 जुलाई, 1997: राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया। अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा।
5 अप्रैल, 2000: विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया।
5 अक्टूबर, 2001: उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया।
फरवरी, 2002: रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।
13 अगस्त, 2013: उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।
 17 सितंबर, 2013: विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
30 सितंबर, 2013: बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।
3 अक्टूबर 2013: लालू प्रसाद को विशेष सीबीआई अदालत ने पांच वर्ष के कठोर कारावास और 25 लाख रुपये के जुर्माने तथा पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को चार वर्ष की कैद और दो लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।

आप भूल नहीं सकते लालू को


प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय
1. बिहार के गोपालगंज मे 1948 मे एक गरीब परिवार मे जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूआत जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे।

2. लालू यादव 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। बिहार में अपने मुख्‍यमंत्रीत्‍व में लालू प्रसाद यादव ने समाज के पिछड़े तबकों को आगे लाने के लिए काफी प्रयास किए।

3. 1997 में जब उन्हें चारा घोटाले और आय से अधिक संपत्ति से जुड़े सीबीआई मामलों के कारण जेल जाना पड़ा तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया।

4. लालू यादव 1977 में 29 साल की उम्र में लोकसभा के सदस्य बने। 1997 में उन्होंने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया।

5. लालू प्रसाद जमीन से जुड़े उन कुछ गिने चुने नेताओं में से हैं जिन्‍होंने अपनी किस्‍मत को खुद से बनाया है।

6. लालू यादव पहले बिहार के छपरा से चुनाव लड़ते थे लेकिन चुनाव क्षेत्रों के नए परिसीमन के बाद छपरा चुनाव क्षेत्र समाप्त हो गया, इसलिए उन्‍होंने सारण (बिहार) से चुनाव लड़ा।

7. अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है।

8. अपनी चटपटी बातों से लोगों को लुभाने वाले लालू यादव तमाम घोटालों के बीच फंसे होने के बावजूद काफी लोकप्रिय हैं।

9. 1997 मे जब सीबीआई ने उनके खिलाफ चारा घोटाले मे आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा लेकिन अपनी पत्नी राबड़ी देवी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे।

10. लालू प्रसाद का एक खास शौक है, बड़े-बड़े आन्दोलनकारियों की जीवनियां पढना और राजनीतिक चर्चा करना।

11. 2004 में लोकसभा चुनाव मे एनडीए की करारी हार के बाद के बाद लालू यूपीए के शासन काल में गृह मन्त्री बनना चाहते थे लेकिन कांग्रेस के दबाव के बाद रेलमन्त्री बनने को राजी हुए। हालाकि लालू ने रेलवे को मुनाफे में लाकर सबको चकित कर दिया।

12. रेल मंत्रालय संभालने के बाद रेल मंत्रालय अचानक अरबों रुपए के मुनाफे में आ गया। लालू यादव के इस कुशल प्रबंधन की चर्चा भारत ही नहीं पूरे विश्व में होती है।

13. लालू प्रसाद यादव ने रेलमंत्री के रूप में रेल सेवा का भारत में कायापलट कर डाला। रेलवे की व्यवसायिक सफलता की कहानी को समझने के लिए हार्वर्ड जैसे कई अंतरराष्‍ट्रीय संस्थानों के विशेषज्ञों ने रेल मंत्रालय के मुख्यालय का दौरा किया।

14. भारतीय रेल की सफलता की कहानी को जानने के लिए देश विदेश से छात्रों का आना जारी रहा।
15. रेलवे मन्त्री रहते हुए लालू प्रसाद को काफी विवादों से समाना करना पड़ा। रेलवे में कुल्हड़ चलाने का फैसला उन्‍हीं का था।
16. बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे मे कुल्हड़ की शुरुआत, लालू हमेशा से ही सुर्खियों मे रहे।

17. रेलमंत्री रहते हुए लालू प्रसाद अक्‍सर रेलवे का औचक निरीक्षण करने पहुंचे जाते थें।

18. भारतीय प्रबंध संस्थान, बंगलौर और भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों को प्रशिक्षण देने वाली लाल बहादुर शास्त्री राष्‍ट्रीय अकादमी, मसूरी ने लालू यादव को व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया।

19. राजनीति के धुरंधर लालू क्रिकेट के भी शौकीन हैं।

20. लालू की प्रसिद्दि का यह आलम है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में भारत की राजनीति में सिर्फ लालू की ही बात करना पसन्द करते है। लालू के जनाधार में एम-वाई यानी मुस्लिम और यादवों के फैक्टर का बड़ा योगदान रहा है।

21. लालू का अन्दाज ही कुछ निराला है। आज भी लालू की खबर और उनसे जुड़ी तमाम बातों को जानने के लिए लोगों में उत्‍सुकता रहती है।

22. लालू प्रसाद यादव अपनी भाषण शैली के कारण आमजनों में काफी लोकप्रिय हैं। उनकी जनसभा में भाषण सुनने के लिए लोगों की कमी नहीं रहती।

बुधवार, 25 सितंबर 2013

ठगों, धोखेबाजों, बलात्कारियों और हत्यारों को सांसद और विधायक बनाना चाहती है काँग्रेस : रूडी


प्रस्तुति- शीतांशु कुमार सहाय

आपराधिक छवि वाले सांसदों पर अध्यादेश की आलोचना करते हुए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को कहा है कि काँग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने का निर्णय ठगी, धोखाधड़ी, हत्या और ऐसे ही मामले से जुड़े लोगों को सांसद या विधायक बनाने का कुत्सित प्रयास है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राजीव प्रताप रूडी ने कहा- भाजपा अध्यादेश से स्तब्ध है। हम जानना चाहते हैं कि यह किसका विचार है? यह विचार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का है या राहुल गांधी का या संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी का। उन्होंने कहा- ठगों, धोखेबाजों, बलात्कारियों और हत्यारों को हमारा सांसद और विधायक बनाने के लिए अध्यादेश लाने को कौन उत्सुक था? रूडी ने इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के फैसले की प्रशंसा करते हुए कहा कि शीर्ष न्यायालय ने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सांसद और विधायक को किसी भी अदालत में अपराध के लिए 2 वर्ष या अधिक की सजा सुनाये जाने पर तत्काल अयोग्य ठहराया जा सकता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को मंजूर अध्यादेश में इस आदेश को दरकिनार करने की बात कही है और भाजपा ने इस कदम का विरोध किया है। रूडी ने कहा- हम भारतीयों का पहले ही राजनीतिक व्यवस्था से विश्वास खत्म होता जा रहा है और बहुत जल्द ही लोकतंत्र के साथ ऐसा होगा। इसके लिए कांग्रेस को धन्यवाद।
इससे पूर्व भाजपा नेत्री व लोकसभा में विपक्षी नेत्री सुषमा स्वराज ने अपने ट्वीट में कहा था कि उनकी पार्टी दागी सांसदों से जुड़े केंद्रीय मंत्रिमंडल के अध्यादेश का विरोध करेगी। स्वराज ने कहा था- हम राष्ट्रपति से आग्रह करते हैं कि वे इस पर हस्ताक्षर नहीं करें। राष्ट्रपति ऐसे अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य नहीं हैं जो असंवैधानिक हो।

शनिवार, 21 सितंबर 2013

500 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि : भयंकर महंगाई का काँग्रेसी तोहफा



शीतांशु कुमार सहाय
    केन्द्र में सरकार की अगुवाई करने वाली काँग्रेस फिर से सत्ता में आने के लिए कमर कस चुकी है। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा के आम निर्वाचन में जनता के बीच जाकर वह भले ही कामयाबियों का दिवास्वप्न दिखायेगी मगर सच तो यही है कि महंगाई के सिवा उसके पास दिखाने के लिए अगर कुछ है तो वह है भ्रष्टाचार। मनमोहन सिंह की सरकार ने भ्रष्टाचार व महंगाई के तमाम कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया। लोकसभा निर्वाचन में जनता आदर्श सोसाइटी घोटाला, 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, राष्ट्रमण्डल खेल घोटाला, कोयला घोटाला, रुपये की भयानक गिरावट को अवश्य याद रखेगी। इन घोटालों में तो जनता द्वारा दिये गये कर की राशि को घपलेबाजों ने हड़पा जिससे जनता प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं हुई। पर, मनमोहन सरकार ने जो आकाश छूती महंगाई का तोहफा दिया है, वह सीधा जनता की जेब पर डाका डाल रहा है। अभी केन्द्र सरकार ने जो आँकड़े जारी किये हैंे, उनके अनुसार भोज्य-सामग्रियों की कीमत 250 प्रतिशत जबकि सब्जी का दाम 350 प्रतिशत बढ़ा है। यह महंगाई मनमोहन सिंह के शासन के दौरान वर्ष 2004 से 2013 के बीच बढ़ी है।
    दरअसल, अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री से जितनी अपेक्षा जनता ने पाल रखी थी, उनमें से किसी पर भी वे खड़े नहीं उतर सके। भारत और भारतवासियों के लिए यह सबसे बड़ी विडम्बना है जो ताउम्र याद रखने लायक है, भले ही नकारात्मक लहजे में ही। खाने-पीने पर इतनी आफत पहले कभी नहीं आयी जबकि महंगाई पहले भी बढ़ती रही है। काँग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन (संप्रग) के दोनों कार्यकालों में महंगाई ने आम आदमी को पस्त कर दिया है। भारत सरकार के आँकड़े जो कहानी बयान करते हैं, वे बेहद चौंकाने वाले हैं। आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2004 से 2013 के बीच खाने-पीने की वस्तुओं के मूल्य में 157 प्रतिशत वृद्धि हुई है। यहाँ जानने की बात है कि विश्व में भारत दूसरा सर्वाधिक सब्जी पैदा करने वाला देश है। इसके बावजूद यहाँ सब्जियों के दामों में 350 प्रतिशत की बेतहाशा वृद्धि हुई। 10 वर्षों में प्याज की कीमत 521 प्रतिशत, आलू 200 प्रतिशत, बैंगन का मूल्य 311 प्रतिशत बढ़ा है। पत्ता गोभी की कीमत में जबर्दस्त तेजी है और यह 714 प्रतिशत महंगी हुई है। अन्य सब्जियों के साथ भी यही हाल है। करोड़ों परिवारों को कई सब्जियों को अपनी थाली से हटाना पड़ा है। 2009 के बाद से दालों की कीमतें भी तेजी से बढ़ी हैं। दालें प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। भारत में अधिकतर लोग शाकाहारी हैं, ऐसे में उनकी खाने की थाली से एक महत्त्वपूर्ण पोषक खाद्य पदार्थ गायब हो गया है। दालों के दाम 2005 से जो बढ़ने शुरू हुए, वे 2010 तक 200 प्रतिशत से ज्यादा बढ़े। 2012 में इनकी कीमतों में फिर इजाफा हुआ और पिछले साल सितंबर में इनमें बेतहाशा बढ़ोत्तरी देखी गयी। यों दूध 119 प्रतिशत, अंडा 124 प्रतिशत और चीनी ने 106 प्रतिशत की छलांग लगायी है।
    महंगाई का आलम यह है कि नमक की कीमत भी इन 10 वर्षों में काफी बढ़ी है। अनाज भी पीछे नहीं है। चावल की कीमत में 137 प्रतिशत तो गेहूँ की कीमत में 117 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मसालों के मूल्य में 119 प्रतिशत की तेजी आयी है। फलों की बढ़िया पैदावार के बावजूद इनकी कीमतें 95 प्रतिशत बढ़ीं। यह महंगाई तब है जब भारत में आमतौर पर खाद्य पैदावार ठीक-ठाक रही है। ये आंकड़े हैं थोक बाजार के जबकि आम आदमी को खुदरा कीमत पर खरीददारी करनी होती है। खुदरा कीमतों में 500 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गयी है। ऐसे में 2014 के चुनाव का बेड़ा कैसे पार लगेगा?

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

KUKU ( अभ्युदय/Abhyudaya ) Means Adevancement /प्रभात / PRABHAT Means Morning





अभ्युदय का अर्थ 'सांसारिक सौख्य तथा समृद्धि की प्राप्ति'। महर्षि कणाद ने धर्म की परिभाषा में अभ्युदय की सिद्धि को भी परिगणित किया है-- यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स: धर्म: (वैशेषिक सूत्र १।१।२।)। भारतीय धर्म की उदार भावना के अनुसार धर्म केवल मोक्ष की सिद्धि का ही उपाय नहीं, प्रत्युत ऐहिक सुख तथा उन्नति का भी साधन है। अभ्युदय का अर्थ है पूर्ण उदय। अभि उपसर्ग लगाने से उदय के बाहरी व सर्वतोमूखी होने का अर्थ निकलता है। अभि तथा उदय, अभ्युदय अर्थात पूर्ण भौतिक विकास। पूर्ण में संवेदना भी आती है। अतः, यह बाहरी विकास भी जैसा कि आधुनिक जीवन में हम देखते है, केवल मानव का एकांगी विकास नहीं है। ना ही यह केवल आर्थिक विकास है। अभ्युदय वास्तविक विकास का नाम है। दिखावे का नहीं।


शुभ प्रभात

 

 मैं देखता हूं अपनी खिड़की से

नीले आसमान के परे,
रक्तहीन सूरज जगाता है, एक पीलीया दिन को।
और रात,
जिस की आग़ोश में मदहोश थे हम
किसी तन्हा कोने में सिमट जाती है।

रेलगाड़ियां स्टेशनों पर अधभरे पेट उड़ेलती हैं,
धंसी हुई आंखें बसों में घर से द़तर जाती हैं।
पकड़ती हैं स्कूल का रस्ता, भूख संभाले भारी बस्ता,
चमचमाती हुई गाड़ियों में
मख़मली लिबास और
कलफ लगे कुरते
लड़खड़ाते हैं क्लब की ओर, आंखें मलते

कितनी ख़ूबसूरत है,
सुबह भारत की।

-मधुप मोहता

गुरुवार, 19 सितंबर 2013

पितृपक्ष : पूर्वजों के प्रति श्रद्धा





शीतांशु कुमार सहाय
    यह सच है कि धरती पर सभी उस महान शक्ति की अनुकम्पा से जीवित हैं जो इन भौतिक आँखों से दिखाई नहीं पड़ती। पर, सच यह भी है कि दृश्य शक्ति के रूप में माँ व पिता हैं जो हमें धरती पर लाने वाले कारक हैं। इन दोनों के अलावा अन्य वरिष्ठ परिजनों के भी योगदान होते हैं हमारे मानसिक-शारीरिक परिवर्द्धन व परिष्करण में। ये सभी सम्मिलित रूप से पितृ कहलाते हैं। केवल पिता या पुरुष-परिजन ही नहीं; बल्कि माता व स्त्री-परिजन भी पितृ की श्रेणी में आते हैं। इनमें से जो स्वर्गवासी हो गये हैं, उन्हें आदरपूर्वक स्मरण करने की शुभ अवधि है पितृपक्ष का जो आज से आरम्भ हो रहा है। वास्तव में पितृ-पूजन का ही एक रूप है पितृ-तर्पण। इसे कहीं से भी अवैज्ञानिक नहीं माना जा सकता। कई वैज्ञानिक प्रयोगों के आधार पर भी आत्मा की प्रामाणिकता सिद्ध की जा चुकी है। मृत्यु के उपरान्त भौतिक शरीर नहीं रहता; आत्मा का अस्तित्व कायम रहता है। पितृ भी आत्मा के रूप में पितृपक्ष के दौरान अपने परवर्ती परिजनों से तर्पण प्राप्त करने के लिए अदृश्य रूप में उपस्थित होते हैं।
    दरअसल, पितृपक्ष के दौरान केवल सनातनधर्मी ही पितृ-तर्पण करते हैं। पर, पितृ या पूर्वज की प्रसन्नता के उपाय प्रत्येक धर्म में किये जाने का विधान है। विश्व में अपने को सबसे विकसित मानने वाली बिरादरी ईसाई में ऑल सोल्स डे यानी सभी आत्माओं का दिन मनाने की परम्परा है। यों इस्लाम में भी मृतकों को सादर याद करने की परम्परा प्रचलित है। मनुष्य पर 3 प्रकार के ऋण प्रमुख माने गये हैं- पितृ ऋण, देव ऋण और ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वाेपरि है। चूँकि लालन-पालन माता-पिता के घर में, उनके सान्निध्य में होता है, अतः यह ऋण सबसे बड़ा है। पितृपक्ष की अवधि हमें इस ऋण से मुक्ति का उत्तम अवसर उपलब्ध कराता है। इस दौरान पितरों का श्राद्ध करना ही चाहिये। श्राद्ध का सीधा सम्बन्ध पितरों यानी दिवंगत परिजनों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करने से है, जो उनकी मृत्यु की तिथि में किया जाता है। अर्थात् पितर किसी माह की प्रतिपदा को स्वर्गवासी हुए हों तो उनका श्राद्ध पितृपक्ष की प्रतिपदा के दिन ही होगा। पर, विशेष मान्यता यह भी है कि पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाए। परिवार में कुछ ऐसे भी पितर होते हैं, जिनकी अकाल मृत्यु होती है- दुर्घटना, विस्फोट, हत्या, आत्महत्या या विष से। ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन होता है। साधु और संन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी के दिन और जिन पितरों के मरने की तिथि याद नहीं है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है।   
    पितृपक्ष की अवधि आश्विन प्रथमा से आश्विन अमावस्या तक होती है। वैसे इसकी शुरूआत भाद्र पूर्णिमा से ही हो जाती है जिस दिन अगस्त्य ऋषि को जल का तर्पण दिया जाता है। इस दौरान श्रद्धा से पूर्वजों का श्राद्ध करने से सुख, शान्ति व स्वास्थ्य लाभ होता है, सम्यक् विकास होता है। वैसे सामान्य श्राद्ध तो घर पर ही किया जाता है मगर गया में श्राद्ध को सबसे उत्तम माना गया है। गया के अलावा भी भारत में श्राद्धकर्म करने हेतु कई उपयुक्त स्थल हैं। पश्चिम बंगाल में गंगासागर, महाराष्ट्र में त्र्यम्बकेश्वर, हरियाणा में पिहोवा, उत्तर प्रदेश में गडगंगा, उत्तराखंड में हरिद्वार भी पितृ दोष के निवारण के लिए श्राद्धकर्म करने हेतु उपयुक्त स्थल हैं। पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का विशेष महत्त्व है। सूर्य की सहस्र किरणों में से अमा नाम की किरण प्रमुख है जिसके तेज से सूर्य समस्त लोकों को प्रकाशित करता है। अमावस्या में चन्द्र निवास करते हैं। इस कारण धर्म कार्यों में अमावस्या को विशेष महत्त्व दिया जाता है। पितृगण अमावस्या के दिन वायु रूप में सूर्यास्त तक घर के द्वार पर उपस्थित रहकर स्वजनों से श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं।

बुधवार, 18 सितंबर 2013

8वीं अनुसूची : बाट जोहती भाषाएँ



शीतांशु कुमार सहाय
    भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है हिन्दी। विश्व में 70 करोड़ लोग हिन्दी बोलते, लिखते व समझते हैं। पर, अफसोस की बात है कि इसे भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया है। यह देश की राजभाषा है यानी राजकाज की भाषा। वैसे क्षेत्रीयता की संतुष्टि के लिए संविधान में 8वीं अनुसूची की व्यवस्था की गयी है। अब तक इसमें हिन्दी सहित 22 क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल किया जा चुका है। साथ ही 38 भाषाएँ केन्द्र सरकार के पास विचाराधीन हैं, 8वीं अनुसूची में शामिल होने के लिए प्रतीक्षारत हैं। झारखण्ड की 5 भाषाएँ भी प्रतीक्षासूची में हैं। इन भाषाओं की प्रतीक्षा कब खत्म होगी, यह कहना मुश्किल है। इस सम्बन्ध में भारत सरकार को अन्तिम निर्णय लेना है। झारखण्ड की जिन 5 भाषाओं को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किये जाने के लिए केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव दिया गया है, उनमें हो, कुड़ुख, कुरमाली, मुंडारी एवं नागपुरी शामिल हैं। वैसे इस अनुसूची में शामिल होने से केवल एक ही फायदा है कि कुछ नौकरी की परीक्षाएँ उन भाषाओं में होंगी और सरकारी निर्णय को उन भाषाओं में अनुवादित किया जाएगा।
    यहाँ यह जानने की बात है कि 8वीं अनुसूची में संविधान द्वारा मान्यताप्राप्त 22 प्रादेशिक भाषाएँ हैं। आरम्भ में 14 भाषाएँ असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, मराठी, मलयालम, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू थीं। बाद में सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली को शामिल किया गया। तदुपरान्त बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली को शामिल कर इस अनुसूची में 22 भाषाएँ हो गयीं। 1967 में सिंधी, 1992 में कोंकणी, मणिपुरी व नेपाली एवं 2003 में बोडो, डोगरी, मैथिली व संथाली के बाद 38 अन्य भाषाएँ इसमें शामिल होने को प्रस्तावित हैं। इसके अनुसार केवल हिन्दी ही नहीं; बल्कि हिन्दी के अलावा 21 अन्य भाषाएँ भी राजभाषा ही हैं। तभी तो कई सांसद या विधायक 8वीं अनुसूची के गैर-हिन्दी भाषाओं में भी पद और गोपनीयता की शपथ लेते हैं। संविधान के अनुसार ऐसा करना गलत भी नहीं है। विदित हो कि संविधान का निर्माण अंग्रेजी में हुआ और अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरित करने वाले तत्कालीन भारतीय नेता भी अंग्रेजी के पक्षधर थे। तभी तो राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 1967 द्वारा इस बात की व्यवस्था की गयी कि सरकार के काम-काज में सहभाषा के रूप में अंग्रेज़ी तब तक बनी रहेगी, जब तक अहिन्दी भाषी राज्य हिन्दी को एकमात्र राजभाषा बनाने के लिए सहमत न हो जाएँ। इसका मतलब यह हुआ कि भारत का एक भी राज्य चाहेगा कि अंग्रेज़ी बनी रहे तो वह सारे देश की सहायक राजभाषा बनी रहेगी। भाषाई गुलामी का प्रतीक राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 1967 काँग्रेस की देन है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के प्रयास से यह पारित हुआ था।
    संविधान को पलटने पर ज्ञात होता है कि इसके अनुच्छेद 343(1) के अनुसार संघ की राजभाषा, देवनागरी लिपि में लिखित हिन्दी को घोषित की गयी। पर, अनुच्छेद 343(2) के अनुसार 15 वर्ष के लिए अंग्रेजी को मान्यता देने के चलते इसे भारतीय संविधान लागू होने की तिथि 26 जनवरी 1950 से लागू नहीं किया जा सका। फिर अनुच्छेद 343(3) द्वारा सरकार ने हिन्दी के विरुद्ध यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह 1950 से 15 वर्ष की अवधि के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रख सकती है। रही-सही क़सर राजभाषा अधिनियम 1963 व राजभाषा (संशोधन) अधिनियम 1967 ने पूरी कर दी। इस अधिनियम ने तत्कालीन काँग्रेसी सरकार के उस उद्देश्य को साफ़ कर दिया कि अंग्रेज़ी की हुक़ूमत देश पर अनन्त काल तक बनी रहेगी। वैसे जान लें कि राजभाषा का दर्जा पाने के लिए अंगिका, बंजारा, बज्जीका, भोजपुरी, भोटी, भोटिया, बुंदेलखण्डी, छत्तीसगढ़ी, घाटकी, अंग्रेजी, गढ़वाली (पहाड़ी), गोन्दी, गुज्जर या गुज्जरी, कद्दाछी, कामतापुरी, कारबी, खासी, कोड़वा, कोक बराक, कुमावणी (पहाड़ी), लेपचा, लिम्बू, मिजो, मगही, निकोबारी, पहाड़ी (हिमाचली), पाली, राजस्थानी, सम्बलपुरी या कोशाली, शाउरसेनी (प्राकृत), सिरायकी, टेनेडी एवं टुलु भाषाएँ प्रयासरत हैं।

सोमवार, 16 सितंबर 2013

विश्वकर्मा पूजा : कीजिये कर्म की पूजा


शीतांशु कुमार सहाय

    बड़ा शुभ दिन है आज, विश्व को कर्म करने और निरन्तर कर्मशील रहने का सन्देश देने वाले देव विश्वकर्मा के वार्षिक पूजन का दिन। वैसे तो सृष्टि के आरम्भिक काल से ही विश्वकर्मा की आराधना की जा रही है पर आज के विकासवादी माहौल में उनकी आराधना का महत्त्व कुछ अधिक ही हो गया है। निर्माण-गतिविधियों को ही वर्तमान विकास का आधार माना जाता है। यों निर्माण के देव विश्वकर्मा के भक्तों की संख्या में वृद्धि हुई है। सनातन धर्म के ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है कि नवनिर्माण की विशेषज्ञता के कारण ही उन्हें देवताओं का अभियन्ता माना गया। भारतीय परम्परा में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। इन्हीं अवतारों में से एक भगवान विश्वकर्मा को प्रथम अभियन्ता माना गया है। समूचे विश्व का ढाँचा, लोक-परलोक का खाका उन्होंने ही तैयार किया। वे ही प्रथम आविष्कारक हैं। यान्त्रिकी, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र तकनीक, वैमानिकी विद्या, नवविद्या आदि के जो प्रसंग मिलते हैं, उन सबके अधिष्ठाता विश्वकर्मा ही माने जाते हैं।
    दरअसल, भारतीय परम्परा में ‘अहम् ब्रह्मास्मि’ अर्थात् मैं ही ब्रह्मा (भगवान) हूँ की भी संकल्पना है। इसे कई लोगों ने अपनाया, उसे साकार किया। विकास के इस युग में  निर्माण को अंजाम देने वाले ही भगवान की श्रेणी में हैं, भगवान हैं। धरती छोड़ते समय विश्वकर्मा निर्माण के गुण मनुष्य को दे गये। स्वयं मानव मन के उस उच्च स्थान पर विराजमान हो गये जहाँ पहुँचने के लिए निरन्तर उच्च श्रेणी का परिश्रम करना अनिवार्य है। ऐसे परिश्रम से ही आत्मविकास, समाज या परिवार का विकास सम्भव है। यहाँ यह जानने की बात है कि प्रत्येक ज्ञान अपने-आप में विशेष ज्ञान है। कोई भी ज्ञान जो विकास को बढ़ावा दे, वह ईश्वर की कृपा है। यही कृपा प्राप्त करने के लिए विश्वकर्मा की आराधना की जाती है। विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएँ प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है।
    वास्तव में केवल बाहरी विकास ही मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य नहीं है। मानव जीवन का उद्देश्य मात्र उदर-पोषण या परिवार-पालन ही नहीं है। भौतिक विकास के साथ-साथ आध्यात्मिक व आत्मिक विकास ही मानव जीवन की सम्पूर्णता का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पूर्ण करने में विश्वकर्मा सहयोग करते हैं। निर्माण या विकास का मतलब केवल वास्तुगत या वस्तुगत ही नहीं, आत्मतत्त्वगत भी है। विकास के इस सोपान पर चढ़ने के लिए निरन्तर सदाचारी प्रयास अनिवार्य है। ऐसा तभी सम्भव है जब केन्द्रीकृत प्रयास हो। जैसे ही केन्द्र प्रसारित हो जाता है तो विकास का लक्ष्य भटक जाता है। इस भटकाव को दूर करने के लिए भगवान विश्वकर्मा की आराधना तो करनी ही पड़ेगी। 

शनिवार, 14 सितंबर 2013

आप नरेन्द्र मोदी को नजरअन्दाज नहीं कर सकते



शीतांशु कुमार सहाय
शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वर्ष 2014 के लोकसभा आम निर्वाचन में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का प्रत्याशी घोषित किया। यों राष्ट्रीय राजनीति में नरेन्द्र का कद और बढ़ गया जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। राष्ट्रीय राजनीति का ही नरेन्द्र समर्थक और नरेन्द्र विरोधी खेमों में विभाजन हो गया है। नरेन्द्र के बारे में एक कहावत बनी है जो केवल उन्हीं पर लागू हो रही है। वह कहावत है कि आप यदि नरेन्द्र के विरोध में या समर्थन में खड़े न भी हों तो भी आप नरेन्द्र को नजरअन्दाज नहीं कर सकते। आज यह राष्ट्रीय स्तर पर सच सिद्ध हो रहा है कि नरेन्द्र को भले ही श्रेष्ठ न मानें काँग्रेसी या अन्य विरोधी पर उन्हें या उनके कथनी-करनी को नजरअन्दाज नहीं कर सकते। अब कमर कसकर आलोचक नरेन्द्र के अतीत के कब्र को खोद रहे हैं, धुंधली पड़ी यादों की परतों पर जमी धूल को झाड़कर कुछ खोज रहे हैं, कुछ सामने ला रहे हैं। यह प्रयास है उनकी छवि को बिगाड़ने का; ताकि लोग उनके नाम पर मतदान न करें। विरोधी नरेन्द्र के साम्प्रदायिक अतीत को धूमिल नहीं होने देना चाहते हैं। वहीं नरेन्द्र समर्थक नरेन्द्र को बेहतर प्रशासक व विकास पुरुष के रुप में प्रतिस्थापित करने का अभियान संचालित कर रहे हैं।
    नरेन्द्र के आलोचक या विरोधी केवल विपक्षी दलों में ही नहीं भाजपा में भी हैं। लाल कृष्ण आडवाणी जैसे कुछ खुलकर बोल रहे हैं तो कुछ इशारों में अपनी असहमति जता रहे हैं। वैसे भाजपा के कुछ नरेन्द्र विरोधी ऐन मौके पर समर्थन का सुर अलापने लगे। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ऐसा ही किया। गुजराती मोदी व बिहारी मोदी के छत्तीस का आँकड़ा अब तिरसठ के आँकड़े में बदल गया। सुशील जैसे नेता नरेन्द्र की लहर के सामने नतमस्तक होकर भविष्य की राजनीति में अपनी अपरिहार्यता को बनाये रखना चाहते हैं। यों एक और सच्चाई यह है कि काँग्रेस व अन्य विरोधी दलों में भी नरेन्द्र समर्थक मौजूद हैं और वे नरेन्द्र की लहर पर ही सवार होकर अपनी डूबती नैया को पार लगाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। काँग्रेस की नैया डूबोने में महंगाई महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, इसमें कोई संशय नहीं। इधर नरेन्द्र के नाम की घोषणा भाजपा ने की और उधर काँग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने पेट्रोल की कीमत बढ़ा दी। वैसे रुपये का गिरता मूल्य और भ्रष्टाचार भी केन्द्र सरकार में शामिल काँग्रेस समेत अन्य दलों को मझधार में डूबोने के लिए पर्याप्त हैं।
    जहाँ तक आडवाणी को नजरअन्दाज करने की बात है तो इस सम्बन्ध में सुषमा स्वराज की बातों को मानें तो वे नरेन्द्र के नाम की घोषणा से गुस्से में नहीं हैं। अगर हैं भी तो उन्हें राजनीति की नयी फसल को आगे आने देने में आना-कानी के बदले सहयोग ही करना चाहिये। नरेन्द्र की ताकत को दिल्ली में घोषित छात्रसंघ के चुनाव परिणाम से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इसमें भाजपा समर्थित छात्रसंघ की जीत हुई। लोकसभा निर्वाचन में यदि नरेन्द्र अपने बुते 273 के जादुई आँकड़े को छू लेते हैं तब तो बात बनेगी। पर, यह आज की परिस्थिति में संभव नहीं लगता। यदि भाजपा इस आँकड़े से दूर रहती है तो फिर राजग गठबंधन की याद आयेगी जो नरेन्द्र के कारण ही बिखरा। तब एक बार फिर राजग को विस्तारित करने के लिए वह कौन-सा चेहरा सामने लाया जायेगा जिसको लेकर भाजपा आगे बढ़ेगी?

शुक्रवार, 13 सितंबर 2013

साकेत अदालत ने फैसला सुनाया : चारों दोषियों को फांसी की सजा




प्रस्तुति: शीतांशु कुमार सहाय
आखिरकार 16 दिसम्बर 2012 की रात को दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में पारा मेडिकल की एक छात्रा से सामूहिक दुष्कर्म कर मरणासन्न स्थिति में छोड़ने वाले बचे 4 बालिग दुष्कर्मियों को न्यायालय ने आज शुक्रवार 13 सितम्बर को मौत की सजा सुनाई। 1200 पन्नों की चार्जशीट, 86 गवाहियां और 243 दिनों की सुनवाई के बाद आखिरकार वह फैसला आ गया जिसका इंतजार पूरे देश को था। एडिशनल सेशन जज योगेश खन्ना ने साकेत अदालत के कमरा नंबर 304 में सजा सुनाई। इससे पहले मंगलवार को ही चारों दोषियों को 13 धाराओं में दोषी करार दिया था। बुधवार को सजा पर बहस के बाद फैसला आज शुक्रवार 13 सितम्बर के लिए सुरक्षित रख लिया गया था। मामले के नाबालिग आरोपी को 3 साल की सजा सुनाई जा चुकी है जबकि एक अन्य आरोपी राम सिंह तिहाड़ जेल में खुदकुशी कर चुका है। ज्योति के हत्यारे चारों दरिंदों मुकेश शर्मा, विनय शर्मा, अक्षय ठाकुर और पवन गुप्ता को दिल्ली की साकेत अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने मामले को 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर' श्रेणी में रखते हुए यह फैसला सुनाया। जैसे ही जज ने फैसला सुनाया कोर्ट परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
फांसी दिए जाने के पक्ष में थे कई नेता
बीजेपी नेता सुषमा स्वराज, कांग्रेस नेता अंबिका सोनी और पूर्व गृह सचिव आरके सिंह समेत कई नेता और हस्तियां दोषियों को फांसी दिए जाने के पक्ष में थे। खुद गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने भी फांसी की उम्मीद जताते हुए कहा था कि भविष्य में भी ऐसे मामलों में फांसी की सजा ही होगी।
ज्योति और अवनींद्र की गवाही रही अहम
इस मामले में 2 गवाहियां बेहद अहम रहीं। एक खुद ज्योति की और दूसरी उसके दोस्त और घटना के एकमात्र चश्मदीद अवनींद्र पांडेय की। मौत से पहले अस्पताल में जब ज्योति से पूछा गया था कि दोषियों के लिए वह क्या सजा चाहती है, तो उसने फांसी की मांग की थी। फिर अगले ही क्षण उसने कहा था कि दोषियों को जिंदा जला देना चाहिए। इसके अलावा अदालत में जो सबूत पेश किए गए, उनमें शामिल हैं, वह बस जिसमें वारदात को अंजाम दिया गया था, दोषियों की बस का सीसीटीवी फुटेज, दोषियों के खून से सने कपड़े, डीएनए सैंपल, फॉरेंसिक और मेडिकल रिपोर्ट।
देश को याद रहेगा 16 दिसंबर
16 दिसंबर, 2012 की रात वसंत विहार के पास चलती बस में ज्योति के साथ गैंगरेप और दरिंदगी की गई थी, जिसके बाद आक्रोशित भीड़ ने दिल्ली और देश भर के इलाकों में कई दिनों तक जोरदार प्रदर्शन किए थे। 23 वर्षीय फीजियोथैरेपी की छात्रा ने 13 दिन तक अस्पताल में मौत से संघर्ष करते हुए सिंगापुर के अस्पताल में दम तोड़ दिया था।
घटना की रात 'लाइफ ऑफ पाई'
घटना की रात ज्योति अपने दोस्त अवनींद्र के साथ 'लाइफ ऑफ पाई' फिल्म देखकर निकली थी। दोनों ने मुनिरका से एक चार्टर्ड बस ली थी। इसी बस में छह लोगों ने छात्रा से गैंगरेप और दरिंदगी की। ज्योति के शरीर में रॉड डाल दी गई और अवनींद्र को बुरी तरह पीटा गया। बाद में बेसुध हालत में दरिंदों ने दोनों को सड़क पर रखा और उन्हें कुचलकर मारने की कोशिश की। हालांकि वे दोनों बच गए और काफी देर बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
फैसला सुन वकील ने पीटी मेज
जज ने फैसला सुनाने में ज्‍यादा वक्‍त नहीं लिया और कहा कि वह सीधे धारा-302 की बात कर रहे हैं। इसके ठीक बाद उन्‍होंने चारों दोषियों को फांसी की सजा सुना दी। सजा सुनते ही ज्‍योति की मां की आंखों से आंसू छलक आए जबकि बचाव पक्ष के वकील ने गुस्‍से में अपने सामने रखी मेज पर जोर से हाथ पटका। जज फैसला सुनाकर जाने लगे और दोषियों के वकील चिल्लाते रहे कि यह अन्‍याय है। चारों दोषियों और उनके वकीलों को छोड़कर कोर्ट में मौजूद हर शख्‍स बेहद खुश था। सबने जोरदार तालियां बजाकर फैसले पर खुशी जताई।
वकील का आरोप, सरकार के दबाव में सुनाई गई सजा

कोर्ट से बाहर आने के बाद बचाव पक्ष के वकील एपी सिंह ने आरोप लगाया कि सरकार के इशारे पर यह फैसला लिया गया और इसमें सीधे गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की भूमिका थी। उन्‍होंने कहा- 'सरकार के इशारे पर फैसला लिया गया। तथ्‍यों और गवाहों की अनदेखी करते हुए बिना सोचे-समझे जज ने सबको फांसी की सजा सुना दी है। फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए मेरे पास 3 महीने का समय है, अग इस दौरान दिल्‍ली और देश में रेप की कोई वारदात नहीं होती तो मैं अपील नहीं करूंगा। वरना इस फैसले को तार-तार कर दूंगा।'
देश की जनता की जीत : सरकारी वकील
सरकारी वकील ने फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि यह पूरे देश की जनता की जीत है। उन्‍होंने कहा- 'सही मायने में न्याय की जीत हुई है। दोषी फैसला सुनकर चुप थे। आज रूल ऑफ लॉ मजबूत हुआ है। सारे भारतवासी और 16 दिसंबर के आंदोलनकारी सब खुश हैं। इस फैसले में सबका योगदान है। डिफेंस लॉयर के आरोप बिल्कुल गलत है। पर्याप्‍त सबूत थे। धनंजय चटर्जी और कहर सिंह के केस को भी रेयरेस्ट ऑफ रेयर माना गया थो तो यह केस तो और भी दुर्दांत था। न्याय की यही मांग थी। लड़की के माता-पिता ने कहा कि मीडिया को भी धन्यवाद कीजिएगा।
आज पूरी हुई देश की मुराद
सभी आरोपियों को दोषी ठहराए जाने पर ज्योति के मां और पिता ने खुशी जताई थी। साथ ही यह भी कहा था कि फांसी से कम कोई भी सजा उनके जख्म नहीं भर सकती। फैसला सुनाए जाने से पहले और बाद में भी देशभर में दरिंदों को फांसी की मांग करते हुए प्रदर्शन हुए थे।
अक्षय के परिवार ने फैसले पर उठाया सवाल
वहीं दिल्ली गैंग रेप पर फैसला आते ही दोषी अक्षय ठाकुर के परिवार ने इस फैसले पर सवाल उठा दिया। बिहार के औरंगाबाद के रहने वाले अक्षय ठाकुर की पत्नी ने फैसले को गलत ठहराया है। पत्नी नमिता के मुताबिक इस फैसले के पहले अदालत को उसके और उसके ढाई साल के बच्चे के बारे में भी सोचना चाहिए था। नमिता ने कहा कि वो भी भारत की बेटी है और उसके भविष्य के बारे में भी सोचना चाहिए था। उधर अक्षय ठाकुर के भाई विनय ने कहा कि वो ऊपरी अदालत से लेकर राष्ट्रपति तक इस फैसले के खिलाफ जाऐंगे। जैसे ही ये फैसला आया परिवार में कोहराम मच गया जहां एक तरफ पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था तो मां बार-बार बेहोश हो रही थी।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

आश्चर्य किन्तु सच : राष्ट्रभाषा नहीं है हिन्दी


शीतांशु कुमार सहाय
    महात्मा गाँधी भारत के राष्ट्रपिता नहीं हैं और स्वाधीनता संग्राम के दौरान फाँसी पर झूलने वाले भगत सिंह शहीद नहीं हैं, जैसे कड़वे सच की पंक्ति थोड़ी और लम्बी हो गयी। इसमें शामिल हुआ नवीनतम सच भी प्रत्येक भारतीयों को नागवार गुजरेगा। वह कड़वा सच यह है कि हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है ही नहीं जबकि अधिकांश लोग हिन्दी को राष्ट्रभाषा मानते हैं। देश की अधिकतर लोग हिन्दी समझते, बोलते व लिखते हैं। विश्व में चीनी के बाद हिन्दी ही दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। 70 करोड़ से अधिक लोग हिन्दीभाषी हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है कि विश्व की सभी भाषाओं को हिन्दी में बिल्कुल उसी भाषा की वर्तनी व उच्चारण की शैली में लिखा जा सकता है। उत्तर व मध्य भारत में हिन्दी ही प्रधान भाषा है। देश के दक्षिणी राज्यों में भी हिन्दी बोली-समझी जाती है। फिर भी इसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला। लखनऊ की सूचना अधिकार कार्यकर्ता उर्वशी शर्मा को सूचना के अधिकार के तहत भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा मिली सूचना के अनुसार, भारत के संविधान के अनुच्छेद-343 के तहत हिन्दी भारत की ‘राजभाषा’ यानी राजकाज की भाषा मात्र है। भारत के संविधान में राष्ट्रभाषा का कोई उल्लेख है ही नहीं।
    दरअसल, यह राज अब तक केन्द्र की सत्ता में रहने वाली सरकारों ने जनता से छिपाया। केन्द्रीय सत्ता पर सर्वाधिक अवधि तक रहने का मौका मिला है काँग्रेस को। देश की आजादी में अहम् योगदान निभाने का श्रेय लेने वाली काँग्रेस को महात्मा गाँधी, भगत सिंह व अब हिन्दी की बेइज्जती का भी श्रेय लेना ही पड़ेगा। महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता, भगत सिंह को शहीद व हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने में यदि संवैधानिक समस्याएँ हैं तो उन्हें दूर करने के लिए संविधान में संशोधन का भी प्रावधान तो है। सरकार को यह बताना चाहिये कि किस दबाव के कारण ऐसा नहीं किया जा रहा है? आखिर केन्द्र सरकार कैसे कार्य करती है कि उसके पास किये गये कार्यों के रिकॉर्ड ही नहीं रहते। घोटाले की जाँच हो रही हो तो संचिकाएँ गायब हो जाती हैं। कोयला घोटाले में ऐसा ही हुआ है।
    जहाँ तक रिकॉर्ड की बात है तो उर्वशी को विदेश मंत्रालय के निदेशक मनीष प्रभात ने 21 फरवरी को लिखे पत्र में बताया कि वर्ष 1947 से वित्तीय वर्ष 1983-84 तक विदेश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की जानकारी भारत सरकार के पास उपलब्ध ही नहीं है। निश्चय ही यह दुखद है। विदेश में हिन्दी प्रसार की जानकारी देने के लिए उर्वशी की सूचना की अर्जी प्रधानमंत्री कार्यालय से गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग, राजभाषा विभाग से विदेश मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से वित्त मंत्रालय को स्थानांतरित की जा रही है। साथ ही राजभाषा विभाग से मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अब मानव संसाधन विकास मंत्रालय से केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, केंद्रीय हिंदी संस्थान मैसूर और केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली के जन सूचना अधिकारियों के पास उर्वशी की अर्जी लंबित है।

    भारत सरकार द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 1984-85 से वित्तीय वर्ष 2012-2013 की अवधि में विदेश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए भारत सरकार द्वारा सबसे कम 5,62,000 रुपये वर्ष 1984-85 में, सर्वाधिक 68,54,800 रुपये वर्ष 2007-08 में, वर्ष 2012-13 में (अगस्त 2012 तक) 50,00,000 रुपये खर्च किये गये थे।
    हिन्दी के नाम पर वक्तव्य देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मानने वाली मनमोहन सिंह की सरकार के पास विदेश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की 36 वर्षों की कोई जानकारी ही नहीं है। काँग्रेस नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार 7 महीनों बाद भी देश में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की जानकारी नहीं दे पायी है। ...तो सरकारी कार्य-शैली व हिन्दी दोनों की जय बोलिये!

पाकिस्तान को झटका : सबसे खतरनाक नगर कराची


शीतांशु कुमार सहाय
    पाकिस्तान को ममनून हुसैन के रूप में नया राष्ट्रपति मिला है। इससे वहाँ खुशी का माहौल है। पर, इसी हँसी-खुशी के बीच पाकिस्तान के लिए एक बुरी खबर आ गयी। उसके सबसे बड़े औद्योगिक नगर कराची को विश्व का सबसे खतरनाक नगर बताया गया है। यों खुशी के बीच गम की चाशनी घुल गयी और माहौल कुछ गमगीन हो गया। अमेरिका की पत्रिका ‘फॉरेन पॉलिसी’ ने इसी माह एक रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची को विश्व का सबसे खतरनाक शहर बताया गया है। यहाँ प्रत्येक 1,00,000 निवासियों पर हत्या की दर 12.3 है और यह दर विश्व के किसी भी बड़े नगर से 25 प्रतिशत तक अधिक है।
    केवल स्थानीय अपराधियों की ही नहीं; कराची में इन दिनों आतंकियों की भी कई सुरक्षित शरणस्थलियाँ हैं। अब यहाँ तालिबानियों ने भी अपनी पैठ बना ली है। यों हाल ही में बिहार से गिरफ्तार दुर्दान्त आतंकी भटकल ने बताया कि उसके आतंकी संगठन इण्डियन मुजाहिद्दीन का मुख्यालय कराची में ही है। कराची की इस दुर्गति के पीछे पाकिस्तान सरकार की गलत नीति भी जिम्मेदार है। उसका राष्ट्रीय गुप्तचर संगठन इण्टर सर्विस इण्टेलिजेन्स (आईएसआई) ही आतंकियों को प्रशिक्षण व संरक्षण दे रहा है। भटकल ने भी कहा है कि उसके संगठन के मुख्यालय की सुरक्षा आईएसआई ही करती है। ‘फॉरेन पॉलिसी’ के अनुसार, कराची में तालिबान की मौजूदगी बढ़ रही है जो अपराध व तस्करी का रैकेट चलाता है। यहाँ अन्य बड़े नगरों की तुलना में हत्या की दर करीब 25 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2000 से 2010 के बीच कराची की आबादी 80 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है। आबादी बढ़ने की यह रफ्तार न्यूयॉर्क से भी अधिक है। आबादी बढ़ने का कारण यह है कि वर्ष 2003-13 के दशक में आतंकवाद से जूझ रहे लाखों लोग पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम को छोड़कर कराची में शरण ली। काम की तलाश में यहाँ आये प्रवासियों की बड़ी तादाद ने नगर की स्थिति को खराब कर दिया है। इस कारण कराची सबसे खतरनाक शहर बन गया है।
    पाकिस्तान का सबसे बड़ा नगर और सिन्ध प्रान्त की राजधानी है कराची। यह अरब सागर तट पर स्थित पाकिस्तान का सबसे बड़ा बन्दरगाह भी है। उपनगरों को मिलाकर यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा नगर है जो 3527 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इसकी ज़िन्दादिली की वजह से पाकिस्तान में इसे ‘रौशनियों का शहर’ और क़ैद-ए-आज़म जिन्ना का निवास स्थान होने की वजह से इसे ‘शहर-ए-क़ैद’ भी कहते हैं। रौशनियों के बीच कराची में अपराध व अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद की कालिमा फैल रही है। समय रहते पाकिस्तान को सतर्क होना चाहिये वरना वह दिन दूर नहीं जब वह विश्व विरादरी से अलग-थलग हो जाएगा। अमेरिकी पत्रिका की रपट के अनुसार, वर्ष 2011 में मुंबई (भारत) में जहाँ 202 हत्याएँ हुईं, वहीं कराची में वर्ष 2011 में 1723 व वर्ष 2012 में 2000 से अधिक हत्याएँ हुईं। यों शिया व सुन्नी के विवाद ने भी कराची को विश्व में बदनाम किया है। राष्ट्रपति ममनून हुसैन व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को चाहिये कि वे इस बदनामी को खत्म करें।