मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

शुरू हो गयी संसद की सफाई : रशीद, लालू व जगदीश नहीं रहे सांसद


शीतांशु कुमार सहाय
विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्र भारत है। विश्व में प्रथमतः लोकतन्त्र का आगाज भी यहीं हुआ। ऐसे में सदैव विश्व समुदाय का ध्यान भारतीय लोकतान्त्रिक उथल-पुथल व बदलावों पर लगा रहता है। हाल के 2 दशकों में देश की राजनीति का तेजी से अपराधीकरण हुआ तो विश्व स्तर पर काफी छीछालेदर हुई। इसके बावजूद देश को दशा-दिशा देने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं को शर्म नहीं आयी। सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने आपराधिक छवि वालों को विधान सभाओं, विधान परिषदों, लोकसभा व राज्य सभा का टिकट देना जारी रखा। लिहाजा लोकतन्त्र के मन्दिर में अपराधियों की धड़ल्ले से घुसपैठ होने लगी। कानून तोड़ने वाले कानून बनाने वाले बन बैठे। लिहाजा वर्तमान व भूतपूर्व विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की वैसी नयी फौज तैयार हो गयी जिन पर गबन व घोटालों के मामले हैं।
लोकतन्त्र का वास्ता देकर राजनीतिक दलों ने ऐसा चुनावी दलदल तैयार किया कि उस पर खड़ा भारतीय लोकतन्त्र की नींव ही हिलने लगी। समय ऐसा भी आया कि अपराधी सीधे कारावास से ही चुनाव जीतने लगे। जनप्रतिनिधित्व कानून के सुराख का फायदा लेकर नामांकन से प्रचार तक के लिए कारावास से बाहर आने का न्यायिक आदेश भी आसानी से पा जाते थे। बाहुबल व अवैध धनबल के सहारे ऐसे लोग जनता के नेता बनते रहे हैं, जनप्रतिनिधि कहलाते रहे हैं। सच तो यही है कि इन असामाजिक चरित्रधारकों के पास न तो नेतृत्व क्षमता रही है और न ही जनप्रतिनिधि होने की पात्रता। इनसे इतर कुछ स्वच्छ छवि वाले या गरीब तबके से आने वाले भी राजनीति में आकर उद्दण्ड, अहंकारी व घोटालेबाज हो गये। यों विधायिका का ताना-बाना बुरी तरह से तहस-नहस हो गया। इसका असर कार्यपालिका पर व्यापक रूप से पड़ा। यों तमाम उच्चाधिकारी व कनीय कर्मी बेखौफ हो रिश्वतखोरी में मशगूल हो गये। विकास दीखने के बजाय कागजों में चमकने लगा। मतलब यह कि सरकार के 2 अंग विधायिका व कार्यपालिका पंगु हो गये। तब जनता की सारी अपेक्षाएँ केवल-और-केवल न्यायपालिका पर आकर सिमट गयीं। न्यायपालिका ने अपनी प्रशंसनीय भूमिका निभायी और भारतीय लोकतन्त्र की न्यायिक स्तर से सफाई में जुट गयी। परिणाम सामने आया। उच्चतम न्यायालय ने कानूनी रूप से दोषी सांसदों को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराये जाने से बचाने वाले प्रावधान को निरस्त कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने 10 जुलाई को अपने आदेश में जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-8 की उप धारा-4 को समाप्त कर दिया जिसके तहत किसी विधायक या सांसद को तब तक अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता था, जब तक उच्च अदालत में उसकी अपील लंबित हो। न्यायालय के उस फैसले के बाद 3 सांसदों की सांसदी समाप्त हो गयी।
सोमवार को दिन में काँग्रेसी सांसद रशीद मसूद को राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य करार दिया गया। उच्चतम न्यायालय की उक्त व्यवस्था के तहत अयोग्य ठहराये जाने वाले रशीद पहले सांसद हैं। रिश्वत के मामले में दोषी होने के कारण वे जेल में हैं। राज्यसभा की अधिसूचना के अनुसार मसूद को 19 सितंबर 2013 से सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया है। उसी दिन सीबीआई न्यायालय ने मसूद को दोषी ठहराया था। वह जेल की सजा के दौरान और रिहाई के बाद 6 सालों तक अयोग्य बने रहेंगे। यों चारा घोटाले में दोषी पाये जाने के बाद कारावास में बंद राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद और जनता दल (यूनाइटेड) के नेता जगदीश शर्मा की लोकसभा सदस्यता सोमवार की रात में खत्म कर दी गयी। चुनावी नियमों के अनुसार, लालू प्रसाद को 11 सालों (5 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है जबकि शर्मा को 10 साल (4 साल जेल और रिहाई के बाद के 6 साल) के लिए अयोग्य ठहराया गया है। यों धीरे-धीरे संसद की सफाई शुरू हो गयी है जो आगे भी जारी रहेगी।

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