शीतांशु कुमार सहाय
जब सरकार में साथ-साथ थे तब नीतीश कुमार विकास पुरुष थे, बड़े अच्छे थे और अब अलग हो गये तो वे सबसे बुरे हो गये, घोटालेबाज हो गये। यही प्रदर्शित किया है भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने। कभी शिवानन्द तिवारी के साथ गलबंहिया करते थे पर आज वे भी भाजपा की नजर में चारा घोटाले में शामिल नजर आ रहे हैं। रविवार को बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को अपने इन दोनों पूर्व साथियों से घोटालेबाजी की बू आने लगी और विरोध में ट्विटर पर लिख डाले 4 पृष्ठ। इतने पर भी मन नहीं भरा तो संवाददाताओं के बीच आ गये और नीतीश कुमार की विकासवादी छवि की ऐसी-की-तैसी करने लगे। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि डेढ़ दशक से अधिक समय तक गठबन्धन में साथ रहे, साथ-साथ लोकसभा व विधान सभा का चुनाव लड़े और साथ में ही बिहार में शासन भी किया भाजपा और जनता दल युनाइटेड (जदयू) ने। पर, कुछ महीने पूर्व ही नीतीश सरकार से किनारा करने वाले भाजपाइयों ने नीतीश व उनकी जदयू के प्रति आग उगलना आरंभ कर दिया।
चारा घोटाले की केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआइ) से जाँच कराने के लिए पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने वालों में से एक हैं सुशील मोदी। वैसे सच यह भी है कि वर्तमान में जदयू सांसद शिवानन्द तिवारी ने भी चारा घोटाले में याचिका दायर की थी। अखण्ड बिहार और वर्तमान झारखण्ड में भाजपा के मुख्य हस्ताक्षर सरयू राय ने भी चारा घोटाले में याचिका दायर की थी। अब कहा यह जा रहा है कि नीतीश कुमार ने 1995 के विधानसभा चुनाव के समय चारा घोटाले के मुख्य अभियुक्त श्याम बिहारी सिन्हा से चुनाव खर्च के लिये एक करोड़ रुपये लिये थे। यों शिवानन्द ने भी इस दौरान चारा घोटालेबाजों से कई बार लाखांे रुपये लिये थे। इस बीच मोदी चारा घोटाले की धमक को नीतीश तक लाने के प्रयास में कहते हैं कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र को इसी घोटाले में शामिल अधिकारी के महज सेवा विस्तार के लिए सिफारिशी पत्र लिखने पर 4 साल की सजा हो गयी। ऐसे में श्याम बिहारी सिन्हा द्वारा दिये गये धारा- 161 और 164 के बयान में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू सांसद शिवानंद तिवारी के भी नाम आये लेकिन सीबीआइ ने इनसे न पूछताछ की और न ही इनके खिलाफ कोई मामला दर्ज किया। आखिर सरकार में नीतीश के साथ रहते हुए ये सारी बातें सुशील को याद क्यों नहीं थी? इसका मतलब यह तो नहीं कि सत्ता का सुख भोगने में वे जनहित की इन बातों को भुला बैठे थे या जान-बूझकर तथ्यों को छिपाये बैठे थे।
हमेशा से भारतीय लोकतन्त्र में जनता को मूर्ख समझने की मूर्खता राजनीतिक नेताओं द्वारा की जाती रही है। इस बार भी ऐसा ही हुआ है। वरना चारा घोटाले की आरम्भिक चर्चा के दौरान बिहार विधान सभा में विपक्षी नेता के पद पर रहते हुए सुशील ने एक पुस्तिका प्रकाशित करवायी थी जिसमें बिहार की तत्कालीन लालू सरकार के काल के घोटालों के उल्लेख थे। ऐसा लगा था कि जब वे बिहार की सत्ता में आयेंगे तो घोटालों पर से पर्दा हटायेंगे पर सत्ता में रहते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया। अब फिर सत्ता से बाहर आते ही घोटालों की याद आ गयी। इन आरोपों में भले ही जो सच्चाई हो पर इतना तो सच ही है कि रिश्ते में खटास आने पर ही यह उजागर हुआ।
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