गुरुवार, 29 अगस्त 2019

फिट इंडिया अभियान : शीतांशु कुमार सहाय का अमृत और शीतांशु टीवी का सक्रिय योगदान FIT INDIA MOVEMENT

-शीतांशु कुमार सहाय
२९ अगस्त अर्थात् भारत का ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’। भारत के महान हॉकी खिलाड़ी ध्यानचन्द की जयन्ती को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। बृहस्पतिवार, २९ अगस्त २०१९ का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया कि इस दिन पहली बार सरकार ने आम भारतीय जनता के फिटनेस पर विशेष दृष्टिपात करने का अभियान ‘फिट इण्डिया मूवमेण्ट’ का श्रीगणेश किया। श्रीगणेश करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि अमेरिका, जर्मनी, चीन जैसे कई देशों में नागरिकों को स्वस्थ और फिट रखने की योजनाएँ चल रही हैं। उन्होंने कहा कि हर तरफ स्वार्थ की बात हो रही है, ऐसे में स्वार्थ से स्वास्थ्य की ओर जाना है। निश्चय ही इस अभियान का असर देशभर में पड़ेगा। 

यों हुई शुरुआत  

नई दिल्ली के इन्दिरा गाँधी स्टेडियम में इस महत्त्वपूर्ण अभियान को औपचारिक रूप से आरम्भ करने के लिए भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने १० बजकर ३४ मिनट से भाषण देना शुरू किया और ३५ मिनट में अभियान की आरम्भिक रूपरेखा रखी और रोगग्रस्त होते भारतीय को सचेत किया। राष्ट्रीय खेल दिवस यानी २९ अगस्त २०१९ को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के इंदिरा गाँधी स्टेडियम में फिट इंडिया अभियान की शुरुआत की। इस मौके पर उन्होंने कहा- बैडमिंटन हो, टेनिस हो, एथलेटिक्स हो, बॉक्सिंग हो, कुश्ती हो या फिर दूसरे खेल, हमारे खिलाड़ी हमारी उम्मीदों और आकांक्षाओं को नये पंख लगा रहे हैं। स्पोर्ट्स का सीधा नाता है फिटनेस से लेकिन आज जिस फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई है, उस का विस्तार स्पोर्ट्स से भी आगे बढ़कर है। फिटनेस एक शब्द नहीं है; बल्कि स्वस्थ और समृद्ध जीवन की एक ज़रूरी शर्त्त है।’’ आज यानी २९ अगस्त को हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की ११४वीं जयंती है। मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने शुभकामना देते हुए कहा कि मेजर ध्यानचंद के रूप में देश को एक महान स्पोर्ट्सपर्सन मिले थे। 

पहल प्रशन्सनीय.....परम्परा की ओर लौटें

निश्चय ही प्रधानमन्त्री की यह पहल प्रशन्सनीय है। मैं आप सुधी पाठकों से आग्रह करता हूँ कि स्वस्थ रहने, फिट रहने के लिए संकल्ति हो जायें और योग, पारम्परिक खेल, परिश्रम के कार्य, पैदल चलना, साइकिल चलाना, नाचना, उछलना-कूदना आदि को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें। घरेलू नुस्खों और आयुर्वेद की ओर लौटें। मैं सक्रिय रूप से फिट इण्डिया मूवमेण्ट में शामिल हूँ। 

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शीतांशु कुमार सहाय का अमृत के नियमित पाठकों को ज्ञात है कि आप को स्वस्थ और फिट बनाये रखने के लिए कई आलेखों का प्रकाशन पूर्व में किया जा चुका है जो अब भी जारी है। यह वेबसाइट https://Sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com अपना कर्तव्य समझते हुए बिना औषधि के भी स्वस्थ रहने के तरीकों का प्रचार कर रहा है। आप यदि लैपटॉप या कम्प्यूटर पर देख रहे हैं तो दायीं तरफ के कॉलम में दिये गये ‘लोकप्रिय रचनाएँ’ और ‘पूर्व प्रकाशित अमृत रचनाएँ’ में वर्ष २०१० से अब तक के सभी आलेखों को पढ़ेंगे तो ज्ञान के कई रहस्य आप को मालूम होंगे। यदि आप मोबाइल फोन पर देख रहे हैं तो स्क्रॉल कर इस बेवसाइट के सब से नीचे आइये और वहाँ लिखे ‘वेब वर्जन देखें’ पर क्लिक करें। ऐसा करने पर आप के मोबाइल पर कम्प्यूटर की तरह ही ‘शीतांशु कुमार सहाय का अमृत’ दिखायी देगा। अब दायें कॉलम में Subscribe by Email जहाँ लिखा है, उस के नीचे के बॉक्स में अपना ईमेल का पता डालें और इस वेबसाइट पर डाली जानेवाली नयी सामग्रियों और बेहतरीन जानकारी को अपने ईमेल पर निःशुल्क प्राप्त करें।

अपनी भाषा में पढ़ें

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फिट रहने के मन्त्र वीडियो में

समय-समय पर शीतांशु टीवी में फिट रहने के मन्त्र बताये जाते हैं। दायीं तरफ के कॉलम में शीतांशु टीवी का लिंक दिया गया है। आप उस पर क्लिक कर फिटनेस और ज्ञान की अन्य बातों को निःशुल्क जानने-समझने के लिए नये और पुराने वीडियो देख सकते हैं। शीतांशु टीवी पर रीलिज किये जानेवाले नये वीडियो आप तुरन्त देखना चाहते हैं तो कृपया इसे सब्सक्राइब कर लें। ‘शीतांशु टीवी’ का कोई वीडियो आप देख रहे हैं ता नीचे लाल रंग से SUBSCRIBE लिखा हुआ मिलेगा, उस पर क्लिक कर दें। इस के बाइ वहीं पर घण्टी का निशान आयेगा, उस पर भी क्लिक करेंगे तो आप को नये वीडियो की सूचना मिलने लगेगी और निःशुल्क मिलने लगेगा फिटनेस का मन्त्र। 

तकनीक ने बनाया रोगी

फिट भारत अभियान का श्रीगणेश करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- समय कैसे बदला है, उस का एक उदाहरण मैं आप को देता हूँ- कुछ दशक पहले तक एक सामान्य व्यक्ति एक दिन में ८-१० किलोमीटर पैदल चल ही लेता था। फिर धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी बदली, आधुनिक साधन आये और व्यक्ति का पैदल चलना कम हो गया। अब स्थिति क्या है? टेक्नोलॉजी ने हमारी ये हालत कर दी है कि हम चलते कम हैं और अब वही टेक्नोलॉजी हमें गिन-गिन के बताती है कि आज आप इतने स्टेप्स चले, अभी ५ हजार स्टेप्स नहीं हुए, २ हजार स्टेप्स नहीं हुए, अभी और चलिए।

डाइबिटीज और हाइपरटेंशन

प्रधानमंत्री ने आगे कहा- भारत में डाइबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। आजकल हम सुनते हैं कि हमारे पड़ोस में १२-१५ साल का बच्चा डाइबिटिक है। पहले सुनते थे कि ५०-६० की उम्र के बाद हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है लेकिन अब ३५-४० साल के युवाओं को हार्ट अटैक आ रहा है।

रविवार, 25 अगस्त 2019

आँसू से मत घबराइये, जीवन का अभिन्न अंग है रोना Do not be Afraid of Tears, Weeping is an Integral Part of Life

-शीतांशु कुमार सहाय
रूलाई और आँसू का सम्बन्ध लोग दु:ख से लगाते रहे हैं, किंतु रोना एक स्वाभाविक क्रिया है। रोने की कला मनुष्य को विरासत में मिली है। जन्म के समय से ही बच्चे रोना शुरू कर देते हैं। उस समय न रोने पर उसे रूलाने की कोशिश की जाती है; ताकि उस की मांसपेशियों व फेफड़ों का संचालन ठीक प्रकार से होने लगे।
कुछ लोग जोर से चिल्लाकर रोते हैं। ऐसी रूलाई सामान्य रूलाई से ज़्यादा फ़ायदेमन्द है। जोर से रोने पर मस्तिष्क में दबी भावनाओं का तनाव दूर हो जाता है, राहत मिलती है और बहुत शक्ति प्राप्त होती है; अत: पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में हृदयाघात यानी दिल का दौरा काफी कम पड़ता है।
अपने मानसिक तनाव को आँसू द्वारा शिथिल न कर पाने के कारण अक्सर पुरुष धमनियों से सम्बन्धित व्याधियों से पीड़ित रहते हैं।
आँसू ही आँखों को नम रखते हैं, स्वच्छ रखते हैं तथा धूल आदि पडऩे पर उसे धो डालते हैं। आँसू के विष के प्रभाव से ही हवा से उड़कर आँखों में पड़ऩेवाले कीट-पतंगे मर जाते हैं और वे हानि नहीं पहुँचा पाते। वैज्ञानिकों के मतानुसार, एक चम्मच आँसू 200 गैलन जल के कीटाणुओं को मारकर साफ करने में समर्थ है।
भावनात्मक आँसू हमें उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्ति दिलाते हैं। यही आँसू हद से बाहर जाने से भी रोकते हैं। रोने से मन का मैल धुल जाता है तथा एक प्रकार की शान्ति महसूस होती है। न रोनेवाले मानसिक तनाव से ग्रसित होकर चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। ऐेसे व्यक्ति शीघ्र निर्णय भी नहीं ले पाते।
आयुर्वेद के अनुसार, रूलाई रोकने पर कई रोगों के होने का डर है। ऐसे रोगों में जुकाम, आँख या हृदय में पीड़ा, अरुचि, डर, चक्कर आना, गर्दन में अकडऩ, मानसिक तनाव आदि मुख्य हैं। सदमा लगने पर रूलाई को जबरन रोकने से हृदयाघात, उच्च या निम्न रक्तचाप अथवा मस्तिष्क के निष्क्रिय होने का भय भी बना रहता है।
कभी-कभी ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता या अध्यापक बच्चे को डाँट या पीट देते हैं और जब वे रोने लगते हैं तो उन्हें डरा-धमकाकर रोने नहीं देते हैं। यह अत्यन्त घातक कदम है। इस से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण बच्चों की बुद्धि कुंठित भी हो सकती है अथवा वे किसी मनोरोग से ग्रसित होकर आजीवन उस से पीड़ित रह सकते हैं।
रोना कभी निरर्थक नहीं जाता। बच्चे रोते हैं तो 'दूध' मिलता है, पत्नी के रोने पर 'जिद्द' पूरी हो जाती है। रूलाई का एक शानदार उदाहरण देखिये-- अंग्रेजी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपियर वास्तव में एन. हेथवे को छोड़कर दूसरी लड़की से प्रेमालाप करने लगे। इस बात की जानकारी मिलने पर हेथवे घबरा गयीं। सहयोग की अपेक्षा से वह पड़ोसी के घर जाकर बहुत रोयीं और वृत्तान्त कह सुनाया।
हेथवे के रोने का प्रभाव पड़ोसी पर इतना पड़ा कि उस ने दूसरे दिन पूरे शहर में शेक्सपियर तथा हेथवे के विवाह के पोस्टर चिपकवा दिये। अंतत: विवश होकर शेक्सपियर को हेथवे से विवाह करना पड़ा।
आँसू की बहुपयोगिता को देखकर ही शायरों ने इसे 'मोती' की संज्ञा दी है। हिन्दी फिल्मों में कई गानों का मुख्य विषय आँसू ही है। .....तो आँसू से घबराएँ नहीं और रोने का मन करे तो अवश्य रोएँ; क्योंकि यह जीवन का अभिन्न अंग है।  

शुक्रवार, 9 अगस्त 2019

कुँवर सिंह और धरमन : प्रेम के पंचमात्राओं के मर्मज्ञ Love Story of Kunwar Singh and Dharman

अगस्त २०१९ में पटना के प्रेमचन्द रंगशाला में राम कुमार मोनार्क के निर्देशन में मंचित नाटक मे कुँवर सिंह की भूमिका में पंकज करपटने और धरमन का पात्र निभाती पिंकी सिंह।


-शीतांशु कुमार सहाय    
प्रेम.....पंचमात्राओं का छोटा शब्द। पर, इस की गहरायी प्रशान्त महासागर से अधिक और ऊँचाई हिमालय से ज़्यादा है। सृष्टि के प्रादुर्भाव से अब तक इसे परिभाषा की शाब्दिक सीमा देने में लाखों-करोड़ों शब्द जाया किये गये पर हाथ कुछ नहीं आया। आज भी यह अपरिभाषित है, अपरिमित है, अपरम्पार है। साधारण मनुष्य के वश की बात नहीं कि वह इन पंचमात्राओं को माप सके, इसे पा सके, इसे पार कर सके। पर, चूँकि मनुष्य में आत्मा निहित है जो परमात्मा का ही अंश है, अतः जो अपनी आत्मा को परमात्मातुल्य बनाने का प्रयत्न करता है, परमात्मतत्त्व को प्राप्त कर लेता है, वह इस पंचभूतशरीर में रहते हुए ही प्रेम की पंचमात्राओं को जान लेता है, इसे पा लेता है और इसे अपने जीवन का अंग बनाने में सफल हो जाता है। भारतीय इतिहास में सफल प्रेमी के रूप में महान स्वाधीनता सेनानी कुँवर सिंह भी जाने जाते हैं। 
कुँवर सिंह का प्रेम स्वार्थसिद्धि या काम-वासना का प्रतीक नहीं था। एक हिन्दू राजा होकर भी एक मुसलमान नर्तकी से प्रेम कर उन्होंने जाति और धर्म की दीवार ढाह दी। यह प्रेम का ही प्रतीक है कि उन्होंने अल्लाह की इबादत के लिए मस्जिद का निर्माण कराया तो अन्य धर्मों को भी पल्लवित-पुष्पित होने का भरपूर अवसर प्रदान किया। 
प्रेम को रहने के लिए, ठहरने के लिए, स्थिरता के लिए शुद्ध हृदय की आवश्यकता होती है। यह शुद्धता साबुन से नहीं, समर्पण- पूर्ण समर्पण से प्राप्त होती है। पूर्ण समर्पण तभी सम्भव है जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच संशय न हो और न ही भविष्य में संशय उत्पन्न होने की सम्भावना हो। ऐसा हुआ तभी तो जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के प्रति धरमन का समर्पण अमर हो गया, हम आज भी उसे याद करते हैं। संशय और दोषारोपण तो कुँवर-धरमन के प्रेम के बीच कभी जगह पा ही नहीं सके। 
यह भारतीय परम्परा है कि राजा के लिए उस की प्रजा सन्तान की तरह प्रिय होती है। सभी तबके की प्रजा पर कुँवर सिंह समान दृष्टि रखते थे। निर्धनों के प्रति उन का प्रेम देखते ही बनता था। एक निर्धन महिला को उन्होंने बहन का सम्मानित दर्जा प्रदान करते हुए निर्धनता दूर करने के लिए १०४० कट्ठे का भूखण्ड उपहार स्वरूप दिया। 
अँग्रेजों के आतंक से उन की प्रजा भी प्रताड़ित होने लगी। इसी दौरान प्रेमिका ने अपनी भूमिका निभायी और प्रेमी के भीतर के देशभक्त को जगाया। कुँवर सिंह के मनोरंजन के लिए धरमन जब भी नाचतीं तो उन के ओठ देशभक्ति की पंक्तियाँ ही गुनगुनाते। धरमन की राजमहल की विलासिता का त्याग देखकर महाराज कुँवर भी प्रेमिका के त्याग से आगे निकलने को प्रेम से भाव-विभोर होकर संकल्प लिया और हृदय में देशप्रेम की ज्योति जलायी। उन्होंने प्रमिका के व्यवहार और कहने का मर्म समझा और जान लिया कि देशभक्ति के बिना प्रेम अधूरा है। 
देशप्रेम की भावना जागते ही जब भोजपुर के शेर कुँवर सिंह ने तलवार उठायी तो अँग्रेजों की हुकूमत काँप उठी। प्रेम की भावना से ओत-प्रोत प्रेम की मिसाल कुँवर सिंह ने अस्सी-एकासी वर्ष की उम्र में भी महज नौ महीनों में पन्द्रह युद्ध किये और सभी युद्धों में अँग्रेजों को पराजित किया। अन्तिम युद्ध तो उन्होंने केवल बायें हाथ से ही किया और अँग्रेजों की सेना को बुरी तरह पराजित कर भोजपुर के आरा शहर में अँग्रेजों के झण्डा ‘यूनियन जैक’ को उतारकर अपना झण्डा फहराया। वह २३ अप्रील १९५८ ईस्वी का दिन था। कुँवर सिंह के साथ सब ने विजयोत्सव मनाया। इस विजयोत्सव को प्रेमी ने नृत्यांगना से वीरांगना बनी प्रेमिका को समर्पित किया, जो पहले ही रणक्षेत्र में वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। वह प्रेमी के साथ विजयोत्सव का क्षणिक सुख तो नहीं बाँट सकी लेकिन प्रेम के मार्ग पर चलती हुई त्याग को बलिदान में परिवर्तित कर परमात्मा के साथ अमरत्व के सुख का भोग कर रही थी।  
प्रेम में त्याग और बलिदान न हो तो वह प्रेम है ही नहीं। अतः धरमन ने भी प्रेमी की सेना में न केवल स्वयं शामिल हुईं; बल्कि अपनी बहन करमन के हाथों को भी शस्त्र थमायीं और वीरगति को प्राप्त होकर त्याग और बलिदान की असीम ऊँचाई को स्पर्श किया। कोई उस ऊँचाई तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं कर सकता।   
आमतौर पर महापुरुषों के जन्म दिन या पुण्यतिथि मनाये जाते हैं पर कुँवर सिंह के देशप्रेम को याद करने के लिए प्रतिवर्ष २३ अप्रील को ‘विजयोत्सव’ मनाया जाता है। उन के अप्रतिम शौर्य को सम्मान देने के लिए २३ अप्रील को 'शौर्य दिवस' कहा जाता है। इन महान प्रेमी और प्रेमिका को मेरा शत नमन!

गुरुवार, 8 अगस्त 2019

वीर कुँवर सिंह : अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था Kunwar Singh

पटना में स्थापित बाबू कुँवर सिंह की प्रतिमा


-शीतांशु कुमार सहाय
थे वयोवृद्ध तुम, किन्तु जवानी नस-नस में लहराती थी।
बिजली लज्जित हो जाती थी, तलवार चमक जब जाती थी।
तुम बढ़ते जिधर, उधर मचता अरि-दल में कोलाहल-क्रन्दन।
हे वीर तुम्हारा अभिनन्दन!
कविवर सत्यनारायण लाल ने अपनी कविता ‘वीर कुँवर सिंह के प्रति’ में प्रख्यात भारतीय स्वाधीनता सेनानी वीर बाबू कुँवर सिंह की शूरता व विजय अभियान का काव्यात्मक वर्णन किया है। कुँवर सिंह ने अन्तिम साँस तक परतन्त्रता को स्वीकार नहीं किया और बाद के स्वतन्त्रता संग्रामियों के लिए ऐसा आदर्श छोड़ गये, जिसे अपनाकर देश को स्वाधीन कराना सम्भव हो सका।
  भारत के बिहार राज्य अन्तर्गत वर्तमान भोजपुर ज़िले के जगदीशपुर गाँव के ज़मीन्दार थे कुँवर सिंह के दादा उमराँव सिंह। विपरीत परिस्थिति आने पर उमराँव सिंह को परिवार सहित अपने मित्र वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाजीपुर के नवाब अब्दुल्ला के पास जाना पड़ा। वहीं उमराँव सिंह की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसे साहेबजादा सिंह का नाम दिया गया। साहेबजादा सिंह ताक़तवर होने के साथ-साथ क्रोधी और उग्र व्यवहार वाले थे। साहेबजादा सिंह का विवाह पंचरत्न देवी से हुआ। उन के चार पुत्र हुए- कुँवर सिंह, दयाल सिंह, राजपति सिंह और अमर सिंह।  
वर्ष 1777 ईस्वी में 13 नवम्बर को कुँवर सिंह का जन्म हुआ था। बचपन से ही कुँवर सिंह वीरता और साहस के कार्यों में संलग्न रहने के कारण पढ़ने पर ध्यान न दे सके। इस सन्दर्भ में लेखक रामनाथ पाठक ‘प्रणयी’ ने लिखा है- ‘‘वे प्रारम्भ से ही सरस्वती की सेवा से विरत रहकर चण्डी के चरणों में अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते रहे। .....उन्होंने जितौरा के वन में अपने लिए फूस का बंगला बनवाया था। वे वहीं रहकर शिकार प्रभृति वीरता के कार्यों से अपना मनोविनोद किया करते थे।’’
तरुणावस्था में ही कुँवर सिंह का विवाह गया के देवमँूगा के प्रसिद्ध ज़मीनदार राजा फतेह नारायण सिंह की पुत्री से हुआ। दाम्पत्य मधुर था पर कुँवर सिंह की आसक्ति अन्य औरतों में बनी रही। आरा की धरमन बीवी अन्त तक उन के शौर्य और प्रणय में साथ देती रही। धरमन और उन की बहन करमन ने कुँवर सिंह के नेतृत्व में युद्ध भी किया। 
सन् 1826 ईस्वी में साहबजादा सिंह की मृत्यु के बाद बाबू कुँवर सिंह को जगदीशपुर की रियासत की बागडोर सौंपी गयी। राजगद्दी पर बैठते ही कुँवर सिंह ने जगदीशपुर का काफ़ी विकास किया। जगदीशपुर दुर्ग को सुन्दर व ज़्यादा सुरक्षात्मक बनाकर हथियारों से लैस घुड़सवारों की फौज बनायी गयी। कुँवर सिंह के भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध नहीं थे, पर इस की चिन्ता उन्हें नहीं थी। शेर की तरह अकेले ही वे दहाड़ते थे।
वर्ष 1845-46 से ही अँग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की चिंगारी सुलगने लगी थी। कई बिहारियों को कारागार में डाला जा चुका था। सोनपुर का गुप्त सम्मेलन इस सन्दर्भ में प्रभावशाली रहा, पर सफलता सन्दिग्ध रही। यों अन्दर-ही-अन्दर 1857 में देशभर में एकसाथ विद्रोह करने की योजना बनी पर बैरकपुर छावनी (बंगाल) के सिपाही मंगल पाण्डेय ने निर्धारित समय से कुछ माह पूर्व मार्च 1857 में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी सरकार के विरुद्ध विद्रोह का श्रीगणेश कर दिया। इस की सूचना बिहार में पटना के दानापुर छावनी के सैनिकों को भी मिली और वे सब भी समय से पूर्व ही अँग्रजों के विरुद्ध विद्रोह कर डाले। चूँकि सैनिकों यानी सिपाहियों ने इस की शुरुआत की, अतः इसे ‘सिपाही विद्रोह’ कहते हैं। 
सिपाही विद्रोह को भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम कहा जाता है। दानापुर के सैनिकों ने जगदीशपुर के महाराज कुँवर सिंह को नेतृत्व प्रदान किया। अस्सी वर्षों की अवस्था में उन्होंने इस चुनौती को स्वीकारा और कई युद्धों में कम्पनी की गोरी सेना को परास्त कर शौर्य और पराक्रम की अमिट गाथा लिख डाली। 
सम्पूर्ण भारतवर्ष को वीर विजयी कुँवर सिंह के शौर्य पर गुमान है। भारत माता के इस महान सपूत के चरणों में सम्पूर्ण भारतवासियों के प्रणाम निवेदित हैं। संसद भवन में वीर बाबू कुँवर सिंह के चित्र को ससम्मान लगाकर देश ने उन के प्रति अपना कर्तव्य निभाया। कुँवर सिंह सिपाही विद्रोह के प्रथम बिहारी सेनानी हैं जिन का चित्र संसद भवन में लगाया गया। 
स्वतन्त्र भारत भूमि पर साँस लेनेवाला प्रत्येक नागरिक प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक वीर बाबू कुँवर सिंह के बलिदान का ऋणी है। आइये, हम सब भारत की एकता, अखण्डता और स्वतन्त्रता को अक्षुण्ण रखकर उन के प्रति आंशिक ऋणमुक्ति का प्रयास जारी रखें। 
भारत में सिपाही विद्रोह की व्यापकता के मद्देनज़र 19 जून 1857 ईस्वी को पटना के आयुक्त विलियम टेलर ने स्थानीय प्रमुख व्यक्तियों की बैठक विद्रोह के दबाने के सन्दर्भ में बुलायी, जिन में से तीन मुसलमानों को गिरफ्तार कर लिया। भोजपुर के तरारी थानान्तर्गत लकवा गाँव के पीर अली को भी टेलर ने पाँच जुलाई 1857 ईस्वी को पकड़वाया और मात्र तीन घण्टों की न्यायालीय प्रक्रिया के पश्चात् फाँसी दे दी गयी। 
पीर अली पटना में पुस्तक की दूकान चलाते और विद्रोह में भाग लेते थे। एक पेड़ से लटकाकर उन्हें फाँसी दे दी गयी। पटना में गाँधी मैदान के निकट स्थित वर्तमान कारगिल शहीद स्मारक के निकट ही वह पेड़ स्थित था। तत्कालीन दण्डाधिकारी मौलवी बख्श के आदेश पर ही पीर अली को फाँसी की सज़ा दी गयी थी।  
भारत माता के सपूत पीर अली की शहादत ने देशभक्तों को उद्वेलित कर दिया। फलतः 19 जून 1857 की शाम को दानापुर छावनी के सैन्य सिपाहियों की टोली कुँवर सिंह के नेतृत्व में रणाहुति देने आरा की ओर कूच कर गयी। कुँवर के छोटे भाई अमर सिंह सहित विशाल सिंह व हरेकृष्ण सिंह भी युद्ध में शामिल हो गये। युद्ध की तैयारी के लिए जगदीशपुर के दुर्ग में 20 हज़ार सैनिकों के लिए छः महीनों की खाद्य सामग्रियों, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और अन्य आवश्यक सामानों को संग्रहित कर लिया गया। यों अस्सी वर्षीय कुँवर सिंह के नेतृत्व में भारत माता के वीर सपूतों ने शाहाबाद क्षेत्र में अँग्रेजी हुकूमत को परास्त कर दिया। उस समय का शाहाबाद वर्तमान में बिहार के चार जिलों में बँटा है। ये ज़िले हैं- भोजपुर, बक्सर, कैमूर और रोहतास। अब शाहाबाद नाम का कोई ज़िला नहीं है। 
ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 500 सैनिकों को डनवर के नेतृत्व में आरा भेजा। शाहाबाद के सैनिकों ने कुँवर सिंह के कुशल नेतृत्व में रणकौशल दिखाते हुए 29-30 जुलाई 1857 ईस्वी को डनवर की सेना को परास्त कर दिया। इसी तरह लायड को भी हार का सामना करना पड़ा। जीवित अँग्रेज सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी बना लिया। बिहार के भोजपुर ज़िले के वर्तमान आरा शहर में स्थित महाराजा महाविद्यालय परिसर में स्थित आरा हाउस कुँवर सिंह की जीत का परिचायक है, जहाँ अँग्रेजों को कैद कर रखा गया था। यहाँ ‘वीर कुँवर सिंह संग्रहालय’ बनाया गया है। बिहार सरकार ने आरा में उन के नाम पर ‘वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय’ की स्थापना की है।
बंगाल तोपखाने का मेजर आयर उस दौरान जलयान से प्रयाग जा रहा था। वह सैनिकों सहित आरा के बीवीगंज में कुँवर सेना से युद्ध करने आ गया। उस ने बन्दी बनाये गये अँग्रेज सैनिकों को मुक्त कराया। आयर ने कुँवर सेना के कई अधिकारियों को फाँसी दे दी। इस बीच कुँवर सिंह अपने बचे साथियों सहित आगे की रणनीति बनाने के लिए जगदीशपुर आ गये।      इस के बाद कैप्टन रैटरे के सौ सिक्ख सैनिकों सहित दो सौ अन्य सैनिकों के साथ 12 अगस्त 1857 ईस्वी की सुबह जगदीशपुर पर हमला कर दिया। जितौरा गढ़ को बर्वाद कर अमर सिंह व दयाल सिंह के घर को जला दिया गया। पुनः सैनिकों को संगठित कर कुँवर सिंह 26 अगस्त 1857 ईस्वी को मिर्जापुर (वर्तमान उत्तर प्रदेश का एक ज़िला) पहुँचे। मिर्जापुर में अँग्रेजों को पराजित करने के बाद वे रामगढ़, घोरावाल, नेवारी, तप्पा उपरन्धा को जीतते हुए बाँदा और कालपी होते हुए कानपुर पहुँचे। ग्वालियर की क्रान्ति सेना, नाना साहेब व कुँवर सिंह ने मिलकर कानपुर में अँग्रेजों से युद्ध किया पर वे असफल रहे। इस के उपरान्त कुँवर सिंह लखनऊ आ गये। लखनऊ के नवाब ने उन्हें शाही वस्त्र व धन से सम्मानित किया। 
घटना 17 मार्च 1858 ईस्वी की है। आजमगढ़ के निकट अतरौलिया में कुँवर सिंह अपने पुराने साथियों से मिले और अँग्रेजों के चंगुल से भारत की मुक्ति पर रणनीतिक चर्चा की। सैनिकों को संगठित करने की नीति भी बनी। तैयारी चल ही रही थी कि अँग्रेज कर्नल मिलमैन ने कुँवर सिंह और उन के साथियों पर अचानक आक्रमण कर दिया। पूरी तैयारी न रहने के बावजूद अपने देशभक्त सैनिकों का कुशल नेतृत्व करते हुए कुँवर सिंह ने मिलमैन और उस के सैनिकों को बुरी तरह परास्त किया। सैकड़ों सैनिक मारे गये। अन्ततः 26 मार्च 1858 ईस्वी को भारत माता के महान सपूत महाराजा कुँवर सिंह ने पुनः आजमगढ़ को अपने कब्जे में किया। अभी महाराजा के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रदर्शित करती हुई आजमगढ़ की प्रजा खुशी मना ही रही थी कि फिर 27 मार्च 1858 ईस्वी को कर्नल डेम्स के नेतृत्व में अँग्रेजी सेना ने हमला कर दिया मगर इस बार भी कुँवर सिंह की सेना से मात खानी पड़ी। लगातार मात खाते अँग्रेजों ने कुँवर सिंह को अपना सब से बड़ा शत्रु मान लिया था और उन्हें मार डालने की हर सम्भव कोशिश की जाने लगी। 
बात 13 अप्रील 1858 ईस्वी की है। कुशल सेनापति निशान सिंह के नेतृत्व में दो हज़ार वीर सैनिकों को आजमगढ़ की सुरक्षा की जिम्मेवारी सौंपकर महाराज कुँवर सिंह गाजीपुर चले गये। 16 अप्रील 1858 ईस्वी को उन्होंने लुगार्ड पर हमला कर दिया। वे सैनिकों सहित पुनः आजमगढ़ आ गये और लुगार्ड के नेतृत्ववाली ब्रिटिश सेना से भयंकर युद्ध किया। कुछ देशद्रोही रियासतों के राजाओं ने अँग्रेजों को अपनी सेना मुहैया करायी और धन से भी सहायता की। इस कारण देशभक्तों पर देशद्रोहियों की टोली मजबूुत पड़ने लगी। इसलिए कुछ सैनिकों सहित कुँवर सिंह दूसरी तरफ कूच कर गये। लुगार्ड के निर्देश पर ब्रिगेडियर डगलस ने सैनिकों के साथ कुँवर सिंह का पीछा किया। 
डगलस 19 अप्रील 1858 ईस्वी को नागरा की ओर बढ़ा जिस की जानकारी गुप्तचरों ने दी तो कुँवर सिंह सैनिकों के साथ सिकन्दरपुर की ओर चल दिये और वहीं से घाघरा नदी पार कर गये। इस तरह वे 20 अप्रील 1858 ईस्वी की रात में गाजीपुर के मनिआर गाँव पहुँचे, जहाँ उन का भव्य स्वागत किया गया। गाजीपुर के ही शिवपुर के लोग ने बीस नावों की व्यवस्था की। भारत की स्वतऩ्त्रता के लिए प्राण उत्सर्ग करने को तत्पर सैकड़ों वीर सैनिकों के साथ कुँवर सिंह शिवपुर घाट से गंगा पार गये। इस तरह ईस्ट इण्डिया कम्पनी की तमाम चौकसियों के बावजू़द 22 अप्रील 1858 ईस्वी को एक हज़ार पैदल और घुड़सवार सैनिकों के साथ महाराज कुँवर सिंह जगदीशपुर पहुँचने में सफल रहे। उन्होंने पहले सभी सैनिकों को गंगा पार कराया और अन्तिम नाव से स्वयं पार करने लगे। इसी बीच अँग्रजी सेना वहाँ आ धमकी और कुँवर सिंह के नाव पर अन्धाधुन्ध गोलीबारी कर दी। एक गोली कुँवर सिंह के दायें बाँह में लगी। गोली का विष शरीर में न फैले, इसलिए कुँवर सिंह ने म्यान से तलवार निकाली और अपने बायें हाथ से बाँह के निकट से दायें हाथ को काटकर गंगा में डाल दिया। केवल स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही नहीं; बल्कि विश्व इतिहास में ऐसा प्रकरण उपलब्ध नहीं है कि देशसेवा के लिए कोई सेनानी स्वयं अपने शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग काटकर डाला हो। माता गंगा को भी किसी भक्त ने भगीरथ काल से अबतक ऐसा ‘भोग’ नहीं चढ़ाया है। 
भारत माता को ईस्ट इण्डिया कम्पनी की दास्तां से मुक्ति दिलाने के लिए नौ महीने में 15 युद्ध लड़नेवाले महान देशभक्त कुँवर सिंह के शरीर में जाँघ सहित कई अंगों में घाव थे। उस पर से दायाँ हाथ काट लेने पर दायीं बाँह पर भी असह्य दर्द देनेवाला बड़ा घाव हो गया। जगदीशपुर नरेश कुँवर सिंह के घायल होने की सूचना पाकर अँग्रेज प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि अब भोजपुर के रणबाँकुरों को पराजित करना आसान होगा। यों आरा से ले ग्रेण्ड के नेतृत्व में अँग्रेज सैनिकों ने जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया। प्रजा की भलाई के लिए कुँवर सिंह ने बायें हाथ से भारत माता की पवित्र मिट्टी का तिलक लगाया और बायें हाथ से ही तलवार लहराते हुए सैनिकों के साथ अँग्रेज सैनिकों पर कहर बनकर टूटे। यह कुँवर सिंह के जीवन का अन्तिम युद्ध था। इस युद्ध में भी वे विजेता ही रहे। इस तरह 23 अप्रील 1858 ईस्वी को जगदीशपुर ही नहीं, आरा से भी अँग्रेजों को खदेड़ दिया और आरा में विजयोत्सव मनाया गया। अँग्रेजों के ध्वज ‘यूनियन जैक’ को उतारकर कुँवर सिंह ने अपना ध्वज फहराया। सैकड़ों सैनिकों को कुँवर सिंह ने बन्दी भी बनाया। बिहार में अब भी 23 अप्रील को प्रतिवर्ष ‘कुँवर सिंह का विजयोत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन (23 अप्रील) को 'शौर्य दिवस' के रूप में मनाया जाता है। कुँवर सिंह के अदम्य साहस, पराक्रम और शौर्य के कारण उन के नाम के आगे ‘वीर’ शब्द जोड़ते हैं। उन्होंने जीवन की चौथी अवस्था (80-81 वर्ष) में अपनी वीरता का लोहा मनवाया, अतः उन्हें ‘बाबू’ (पिता या अभिभावक) की भी संज्ञा दी जाती है।    
भारत के इतिहास कुँवर सिंह जैसे व्यक्तित्व नहीं मिलते हैं। आज भी उन की जीवनी हमें देशभक्ति, साम्प्रदायिक एकता और परहित की ओर प्रेरित करती है। उन के राज्य में सभी धर्मों और जातियों को समान अधिकार मिले हुए थे। उन्होंने विलासिता के बीच भी देशभक्ति और व्यक्तिगत खुशी के बीच भी परहित को प्रश्रय दिया। उन्होंने अपनी प्रेमिका धरमन के नाम पर आरा में ‘धरमन मस्जिद’ बनवायी जहाँ आज भी मुसलमान नमाज अदा करते हैं और कुँवर सिंह की साम्प्रदायिंक सौहार्द को बढ़ावा देने की भूमिका को सराहते हैं। धरमन की बहन करमन के नाम पर उन्होंने एक गाँव बसाया जो आज भी ‘करमन टोला’ के नाम से प्रसिद्ध है। धरमन और करमन केवल नृत्यांगना ही नहीं वीरांगना भी थीं। दोनों ने 1857 ईस्वी के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में कुँवर सिंह की सेना में शामिल होकर बहादुरी के साथ लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुईं।
विजयोत्सव के तीन दिनों बाद 26 अप्रील 1858 ईस्वी को वीर बाबू कुँवर सिंह ने युद्ध, उन्माद और प्रतिशोध की इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 
इस आलेख में तो अति संक्षिप्त रूप से ही वीर बाबू कुँवर सिंह के व्यक्तित्व व कृतित्व को रेखांकित करने का प्रयास मैं ने किया। पर, इस बात का अफसोस है कि भारतीय इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप और शिवाजी की तरह ही प्रथम स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सेनानी बाबू कुँवर सिंह के साथ भी घोर अन्याय किया है। कुँवर सिंह और उन के परिजनों के बलिदान के अलावा धरमन और करमन जैसी वीरांगनाओं को भी इतिहासकारों ने नकारने का कुत्सित प्रयास किया है। हर भारतवासी उन्हें श्रद्धा से स्मरण करे और संघर्ष करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा ले। अन्त में कवि मनोरंजन प्रसाद सिंह की कविता याद हो आयी-
उधर खड़ी थी लक्ष्मीबाई और पेशवा नाना था।
इधर बिहारी वीर बाँकुड़ा खड़ा हुआ मस्ताना था।।
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था।
सब कहते हैं कुँवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।।

सोमवार, 5 अगस्त 2019

जानिये अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में क्या-क्या बदल जायेगा What will Change in Jammu and Kashmir After the Temoval of Article 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा। अब प्रत्येक भारतवासी को यह जानना आवश्यक है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्या परिवर्तन हो जायेगा। 
  1. अनुच्छेद 370 के हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष अधिकार पूरी तरह से खत्म हो गया है। केन्द्र सरकार के इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान पूरी तरह से लागू होगा। 
  2. भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में ज़मीन और अन्य स्थायी संपत्ति खरीद सकेगा।
  3. जम्मू-कश्मीर का अब अलग ध्वज नहीं होगा। अब केवल एक राष्ट्रध्वज तिरंगा ही रहेगा और सभी राष्ट्रीय उत्सवों और अन्य मौकों पर तिरंगा ही शान से लहरायेगा। 
  4. जम्मू-कश्मीर में अब दुहरी नागरिकता नहीं होगी। 
  5. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में मताधिकार का अधिकार सिर्फ वहाँ के स्थायी नागरिकों को ही था। दूसरे राज्य के लोग वहाँ मतदान नहीं कर सकते थे और न चुनाव में प्रत्याशी बन सकते थे। अब नरेंद्र मोदी सरकार के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद भारत का कोई भी नागरिक वहाँ के मतदाता और प्रत्याशी बन सकते हैं। 
  6. जम्मू-कश्मीर अब अलग राज्य नहीं बल्कि केंद्रशासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा। 
  7. विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह 5 साल होगा। 
  8. लद्दाख को अलग केंद्रशासित प्रदेश घोषित किया गया। यहाँ विधानसभा नहीं होगी और इस का प्रशासन चंडीगढ़ की तरह केन्द्र सरकार द्वारा चलाया जायेगा। 
  9. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में सूचना का अधिकार (आरटीआई) और लेखा परीक्षण (सीएजी) जैसे कानून भी लागू होंगे। 
  10. जम्मू-कश्मीर में देश का कोई भी नागरिक अब सरकारी नौकरी पाने का अधिकारी हो गया है।
  11. इस फैसले के बाद जम्मू-कश्मीर का अपना अलग से कोई संविधान नहीं होगा। विदित हो कि कश्मीर में 17 नवम्बर 1956 ईस्वी को अपना संविधान लागू किया था। अब कश्मीर में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 का भी इस्तेमाल हो सकता है यानी राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। 


ऐतिहासिक फैसला : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख बने केन्द्रशासित प्रदेश, 370 का आंशिक खात्मा Historical verdict : Jammu and Kashmir and Ladakh became Union Territories, Partial end of Artical 370

-शीतांशु कुमार सहाय
सोमवार, 5 अगस्त 2019 का दिन भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण रूप से शामिल हो गया। इस दिन भारतीय संघ को दो और केन्द्रशासित प्रदेश मिले। अब भारत में कुल आठ केन्द्रशासित प्रदेश हो गये। जम्मू-कश्मीर विधायकों वाला केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा और लद्दाख को बिना विधायकों का केन्द्रशासित प्रदेश बनाया जायेगा।
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय संविधान की अनुच्छेद 370 का संकल्प विधेयक राज्यसभा में सोमवार, 5 अगस्त 2019 को पेश कर दिया है। विधेयक को प्रस्तुत करते ही विपक्ष दलों काँग्रेस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के सदस्यों ने जमकर हंगामा किया। एक पीडीपी सांसद ने कुर्ता तक फाड़ लिया। 
राज्यसभा में श्री शाह ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड 1 के सिवा इस अनुच्छेद के सारे खण्डों को रद्द करने की सिफारिश की। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। साथ ही लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करते हुए केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया है। उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति एम. वैंकेया नायडू ने सदन में मार्शल बुलाने का आदेश दिया। इसी के साथ सदन की कार्रवाई स्थगित कर दी गयी। 
विधेयक पेश करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री शाह ने कहा- जिस दिन से राष्ट्रपति द्वारा इस गैजेट नोटिफिकेशन को स्वीकार किया जायेगा, उस दिन से संविधान के अनुच्छेद 370 (1) के अलावा और कोई भी खण्ड लागू नहीं होंगे। शाह ने आगे कहा- हम जो चारों संकल्प और बिल लेकर आये हैं, वह कश्मीर मुद्दे पर ही है। संकल्प प्रस्तुत करता हूँ। अनुच्छेद 370 (1) के अलावा सभी खण्ड राष्ट्रपति के अनुमोदन के अलावा खत्म होंगे। 
विधेयक पर विपक्षी दलों का आरोप है कि सरकार ने इस विधेयक के बारे में पहले से नहीं बताया था। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में बैठकर धरना भी दिया। राज्यसभा में जैसे ही गृह मंत्री अमित शाह बोलने के लिए खड़े हुए विपक्ष ने हंगामा शुरू किया। काँग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कश्मीर में युद्ध जैसे हालात क्यों हैं? पूर्व मुख्यमंत्री नज़रबंद क्यों हैं? विदित हो कि 4 अगस्त 2019 की आधी रात को ही जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, फारूख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती को उन के घरों में ही नज़रबन्द कर दिया गया है।

शनिवार, 29 जून 2019

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की नज़र जम्मू-कश्मीर पर, सुधारकर लेंगे दम/Narendra Modi and Amit Shah's Attention on Jammu and Kashmir, Renovation & Innovation are Going on

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह
-शीतांशु कुमार सहाय
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 26 और 27 जून 2019 को जम्मू-कश्मीर राज्य की दो दिवसीय यात्रा की। इस दौरान उन्होंने राज्यपाल सत्यपाल मलिक और राज्य सरकार के अधिकारियों से मुलाकात कर राज्य की प्रगति पर महत्त्वपूर्ण चर्चा की। उन्होंने शहीद अरशद के घर जाकर परिजनों से मुलाकात की और आतंकी घटनाओं में मारे गये लोग को अनुग्रह राशि के चेक प्रदान किये। अमरनाथ यात्रा की समीक्षा की। अब केन्द्र सरकार और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के युवाओं के लिए एक विशेष योजना तैयार की है। यह योजना कश्मीर के उन युवकों की तकदीर बदल कर रख देगा, जो बेरोजगारी की वजह से या गुमराह होकर गलत रास्ते पर चले गये हैं। 
केन्द्रीय मन्त्री शाह ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक और दूसरे अधिकारियों के साथ हुई बैठक में स्पष्ट किया कि जम्मू-कश्मीर के युवाओं को तरक्की की राह पर ले जाने के लिए केंद्र सरकार खुले मन से आर्थिक सहायता प्रदान करेगी। सैन्य बलों पर पत्थराव करनेवाले या आतंक के रास्ते पर जा रहे युवाओं को किस तरह से दुबारा राष्ट्र की मुख्य धारा में लाया जाय, इस के लिए भी एक प्रभावी योजना बनायी जा रही है।  

तीन प्रतिशत आरक्षण

गृह मंत्री बनने के बाद अपने पहले जम्मू-कश्मीर की यात्रा (26 व 27 जून 2019) से वापस नयी दिल्ली लौटने के बाद अमित शाह ने 27 जून 2019 को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को छः माह का अवधिविस्तार और जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवाले लोग को नौकरियों में तीन प्रतिशत आरक्षण देने के प्रस्ताव पर सदन की सहमति प्राप्त की। राज्य में 3 जुलाई 2019 को राष्ट्रपति शासन की अवधि खत्म हो रही थी। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण कानून में संशोधन किया है। प्रस्तान के मुताबिक, वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्रों में रहनेवाले लोग को 3 प्रतिशत आरक्षण का फायदा मिलेगा।  

जान-माल की क्षति पर मुआवजा

पाकिस्तान की तरफ से होनेवाली गोलीबारी और अन्य प्रहार से सीमावर्ती क्षेत्रों में रहनेवालों को जान-माल की क्षति होती रहती है। पशु भी मारे जाते हैं। इस सन्दर्भ में पहले कोई मुआवजा नहीं मिलता था। पर, अब मोदी सरकार ने ऐसे पीड़ितों या उन के परिजनों को मुआवजा देने का प्रावधान किया है। पालतू भैंस की मौत पर भी 50 हजार रुपये देने का काम सरकार ने किया है। 

15 हजार बंकर

एलओसी और अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर सुरक्षा के मद्देनज़र लगभग 15 हजार बंकर बनाने का फैसला केन्द्रीय सरकार ने  किया है। इन में से अब तक 4400 बंकर बन चुके हैं। समय के भीतर सभी बंकर बना लिये जायेंगे। 

युवाओं पर खास ध्यान, एनजीओ पर नज़र

श्रीनगर में बैठक करते अमित शाह व सत्यपाल मलिक 
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी कश्मीर यात्रा के दौरान युवाओं पर खास ध्यान दिया है। चूँकि घाटी में अधिकांश युवा किसी वजह से राष्ट्र की मुख्य धारा से दूर चले गये हैं। जम्मू-कश्मीर में शांति कायम करने के प्रयासों को नुकसान पहुँचानेवाले कुछ लोग के बहकावे में आकर स्थानीय युवा गलत राह पर जा रहे हैं। इस मामले में अलगाववादी हों, हुर्रियत या फिर कथित स्थानीय राजनेताओं और सीमा पार के आतंकी संगठनों के सहयोग से घाटी में चल रहे कई एनजीओ और उन के संचालकों पर जाँच एजेंसियों की नज़र है। सेना, अर्द्धसैनिक बल, जम्मू-कश्मीर पुलिस और एनआईए जैसी जाँच एजेंसियों के पास इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि उक्त संगठन कश्मीर के युवाओं को गलत राह पर ले जा रहे हैं। सुरक्षा बलों पर पथराव करना या हैंड ग्रेनेड फेंकना, ये सब बातें युवाओं के गुमराह होने की वजह से सामने आ रही हैं। इस का एक दूसरा कारण कश्मीर में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का होना भी है। इस के चलते स्थानीय युवा आसानी से आतंकियों के बहकावे में आ जाते हैं।

कार्ययोजना के प्रमुख बिन्दु

  • राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के नेतृत्ववाली नरेन्द्र मोदी की सरकार ने जम्मू-कश्मीर के युवाओं की बेरोजगारी पूरी तरह से समाप्त करने के लिए जिन बिन्दुओं पर कार्य हुए हैं या हो रहे हैं, उन में प्रमुख हैं- 
  • विकास पैकेज में युवाओं के लिए अलग से योजना बनेगी।
  • युवाओं को फायदा पहुँचानेवाली योजनाओं में भ्रष्टाचार और लीकेज जैसी बुराई को जड़ से खत्म किया जायेगा।
  • घाटी में डेयरी और पशुपालन व्यवसाय को अन्तर्राष्ट्रीय मापदण्डों के अनुसार विकसित करेंगे। 
  • अमूल और मदर डेयरी जैसी बड़ी संस्थाओं के साथ यहाँ के युवाओं को जोड़ा जायेगा।
  • पोल्ट्री व्यवसाय में अत्याधुनिक तरीकों का इस्तेमाल होगा।
  • उद्यमियों के द्वार पर बाजार उपलब्ध कराये जायेंगे।
  • हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए राज्य स्तर पर कई योजनाएँ शुरू होंगी। 
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जम्मू-कश्मीर की कला पहुँचे, इस के लिए अलग से योजना बनेगी।
  • सभी योजनाओं में युवाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए बैंक ऋण और विशेष आर्थिक पैकेज भी दिया जायेगा।
  • घाटी में एमबीबीएस, इंजीनियरिंग या एमबीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स करनेवाले वे युवा जो किन्हीं कारणों से खुद को संतुष्ट नहीं पा रहे हैं, राज्य सरकार अब उन की सुधि लेगी। राज्य सरकार ऐसे युवाओं को बेहतर जीवन जीने और संतोषजनक रोजगार मुहैया कराने का इंतजाम करेगी।

आतंकवाद और लोकतन्त्र

जम्मू-कश्मीर में बहुत समय बाद पहली बार आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनायी गयी है। एक साल के भीतर केन्द्रीय सरकार ने आतंकवाद को जड़ों से उखाड़ने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। विकास की बात करते हुए एक साल के भीतर पंचायत के चुनाव कराये गये और 4 हजार पंचायतों में 40 हजार सरपंच देश की सेवा कर रहे हैं। अब तक 700 करोड़ रुपये सीधे पंचायतों के बैंक खातों में पहुँचा है। आगे 3000 करोड़ रुपये भी पंचायतों को जल्द दिये जायेंगे। 
केवल पश्चिम बंगाल ही नहीं, जम्मू-कश्मीर भी चुनावों में हिंसा के लिए प्रसिद्ध था। पर, 40 हजार पदों के लिए हुए पंचायत चुनाव (नवम्बर 2018) में एक भी व्यक्ति की जान नहीं गयी। इसी तरह इसी वर्ष अप्रील-मई में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में भी हिंसा नहीं हुई। मत-प्रतिशत बढ़ा और चुनाव शान्तिपूर्ण रहा। मतलब यह कि स्थिति सरकार के नियंत्रण में है।

शुक्रवार, 25 जनवरी 2019

जानिये पूरा 'जन-गण-मन' गीत Know Full Jan-Gan-Man Song

-शीतांशु कुमार सहाय
आइये जानते हैं, राष्ट्रगान के बारे में। बंगाल के साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा सन् १९११ ईस्वी में लिखा गया 'जन-गण-मन' ही विश्व के सब से बड़े लोकतांत्रिक देश भारत का राष्ट्रगान है। 'जन-गण-मन' को रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी मातृभाषा बंगला में लिखा था। बाद में आबिद अली ने इस का हिन्दी और उर्दू में अनुवाद किया। राष्ट्रगान में संस्कृत भाषा के शब्दों की अधिकता है। इसे २७ दिसंबर सन् १९११ ईस्वी को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में गाया गया था। राष्ट्रगान को गाने में ५२ सेकेंड का समय लगता है।
सच यह है कि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत का राष्ट्रगान बनाने के लिए 'जन-गण-मन' गीत की रचना नहीं की थी। आप सच जान लीजिये। बात सन् १९११ ईस्वी की है, जब दिल्ली को कलकत्ता की जगह भारत की राजधानी बनाया गया था। उस समय नयी राजधानी दिल्ली में विशेष 'दरबार' का आयोजन किया गया था। इस में इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम को भी आमंत्रित किया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर से जॉर्ज पंचम के स्वागत के लिए गीत लिखने को कहा गया था और इस तरह 'जन-गण-मन' गीत की रचना हुई जो पाँच अवतरणों का है। २४ जनवरी सन् १९५० ईस्वी को भारत की संविधान सभा में राष्ट्रगान के रूप में 'जन गण मन' के हिन्दी संस्करण के प्रथम अवतरण को स्वीकार किया गया। 
रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने जिस कविता की रचना की थी उस के केवल पहले पद को ही राष्ट्रगान माना गया। पूरी कविता पाँच अवतरणों यानी पदों में है। कविता के पाँचों अवतरण यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ--

जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग,
विन्ध्य-हिमाचल, यमुना-गंगा उच्छल जलधितरंग,
जब शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष माँगे,
गा हे तव जय गाथा।
जन-गण-मंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे; जय-जय-जय-जय हे।।

अहरह तव आह्वान प्रचारित, सुनि तव उदार वाणी,
हिन्दू बौद्ध सिक्ख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी,
पूरब पश्चिम आसे, तव सिंहासन पासे,
प्रेमहार हय गाथा।
जन-गण-ऐक्यविधायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

पतन अभ्युदय वन्धुर पन्था, युग-युग धावित यात्री,
तुम चिरसारथि, तव रथचक्रे, मुखरित पथ दिनरात्रि।
दारुण विप्लव-माझे, तव शंखध्वनि बाजे,
संकटदुःखत्राता।
जन-गण-पथपरिचायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

घोर तिमिरघन निविड़ निशीथे, पीड़ित मूर्छित देशे,
जाग्रत छिल तव अविचल मंगल, नतनयने अनिमेषे।
दुःस्वप्ने आतंके, रक्षा करिले अंके,
स्नेहमयी तुमि माता।
जन-गण-दुःखत्रायक जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि, पूर्व उदयगिरिभाले,
गाहे विहंगम, पुण्य समीरण नवजीवनरस ढाले।
तव करुणारुणरागे, निद्रित भारत जागे,
तव चरणे नत माथा।
जय हे जय हे जय-जय-जय हे, भारतभाग्यविधाता !
जय हे, जय हे, जय हे, जय-जय-जय-जय हे।।

(द्रष्टव्य : ऊपर लाल रंग में लिखा गया अंश भारत का राष्ट्रगान बना।)
साभार : शीतांशु टीवी https://www.youtube.com/channel/UCWD-lRTEY05tZFsqpyPl3jA

गुरुवार, 10 जनवरी 2019

विश्व हिन्दी दिवस : विश्व फलक पर हिन्दी की बुलन्दी World Hindi Day

-शीतांशु कुमार सहाय
देश-दुनिया में हिन्दी निरन्तर प्रसारित हो रही है। यह विश्व के सर्वाधिक लोग द्वारा बोली जानेवाली भाषा के रूप में स्थापित हो रही है। भारत से बाहर भी हिन्दी का लगातार प्रसार जारी है। सच तो यह है कि विश्वभाषा का दर्ज़ा प्राप्त अंग्रेजी से ज़्यादा पूरी दुनिया में हिन्दी बोली जाती है। चीनी भाषा के बाद हिन्दी भाषा ही सब से ज़्यादा लोग द्वारा बोली जाती है। आज विश्व हिन्दी दिवस है। विश्व हिन्दी दिवस हर साल १० जनवरी को मनाया जाता है। विश्व हिन्दी दिवस २०१९ का उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए वातावरण निर्मित करना और हिन्दी को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है। विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। 
हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर’ को लेकर हाल में फिर ‘कुछ ज़्यादा’ ही चर्चित हुए भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने १० जनवरी २००६ को विश्व हिन्दी दिवस की मनाने की शुरुआत की थी। तब से प्रतिवर्ष १० जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाया जाता है। 
बहुत लोग अब भी ‘हिन्दी दिवस’ और ‘विश्व हिन्दी दिवस’ के बीच अन्तर नहीं जानते। अगर आप भी नहीं जानते तो मैं बता देता हूँ। वास्तव में १० जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ और प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। १४ सितम्बर सन् १९४९ ईस्वी को भारत की संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया था। अतः प्रतिवर्ष १४ सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है।

विश्व हिन्दी दिवस की पृष्ठभूमि व विश्व हिन्दी सम्मेलन

हिन्दी के विकास के लिए विश्व हिन्दी सम्मेलनों को आरम्भ किया गया। इस के तहत पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन सन् १९७५ ईस्वी में १० जनवरी को भारत के महाराष्ट्र राज्य के नागपुर नगर में आयोजित हुआ था। अतः तत्कालीन प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने १० जनवरी सन् २००६ ईस्वी को प्रतिवर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की आधिकारिक घोषणा की थी। 
विदित हो कि पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन १० से १४ जनवरी सन् १९७५ ईस्वी तक नागपुर में आयोजित हुआ था। उस सम्मेलन का बोधवाक्य था- वसुधैव कुटुम्बकम्। इस सम्मेलन में ३० देशों के १२२ प्रतिनिधि शामिल हुए थे। १९७५ में विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शृँखला आरम्भ की गयी। तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने इस के लिए पहल की थी। पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा (महाराष्ट्र) के सहयोग से नागपुर में सम्पन्न हुआ जिस में प्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वतन्त्रता सेनानी विनोबा भावे ने अपना विशेष सन्देश भेजा था।
इस के बाद दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन मॉरीशस देश में हुआ था। मॉरीशस की राजधानी पोर्टलुई में २८ से ३० अगस्त सन् १९७६ ईस्वी तक दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन संचालित हुआ था। पिछले वर्ष ११वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन अगस्त २०१८ में मॉरीशस में आयोजित किया गया था। 
सन् २००६ ईस्वी में पहला विश्व हिन्दी दिवस नॉर्वे स्थित भारतीय दूतावास ने मनाया था। इस के बाद दूसरा और तीसरा विश्व हिन्दी दिवस भारतीय नॉर्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल की अध्यक्षता में बहुत धूमधाम से मनाया गया था।
तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन देश की भारत की राजधानी नयी दिल्ली में २८ से ३० अक्तूबर सन् १९८३ ईस्वी तक किया गया। सम्मेलन में १७ देशों के १८१ प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया। इस में कुल ६,५६६ प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया जिन में विदेशों से आये २६० प्रतिनिधि भी शामिल थे।
चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन २ दिसम्बर से ४ दिसम्बर १९९३ तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित किया गया। सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग २०० विदेशी प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। यों पाँचवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में आयोजित हुआ। यह आयोजन ४ से ८ अप्रैल १९९६ तक चला। सम्मेलन में भारत से १७ और अन्य देशों के २५७ प्रतिनिधि शामिल हुए।
छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन लन्दन में १४ सितम्बर से १८ सितम्बर सन् १९९९ ईस्वी तक आयोजित हुआ। सम्मेलन में २१ देशों के ७०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इसी तरह सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में ५ से ९ जून सन् २००३ ईस्वी तक हुआ। सम्मेलन में भारत से २०० प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। इस में १२ से अधिक देशों के हिन्दी विद्वान व अन्य हिन्दी सेवी सम्मिलित हुए थे।
आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १३ से १५ जुलाई सन् २००७ ईस्वी तक संयुक्त राज्य अमेरिका के नगर न्यूयॉर्क में हुआ। नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन २२ से २४ सितम्बर सन् २०१२ ईस्वी तक दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में हुआ। सम्मेलन में २२ देशों के ६०० से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। 
दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन १० से १२ सितम्बर सन् २०१५ ईस्वी तक भारत में मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। ग्यारहवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन १८ से २० अगस्त सन् २०१८ ईस्वी तक मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में आयोजित हुआ था। अब १२वाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन सन् २०२१ ईस्वी में संयुक्त राज्य अमेरिका के नगर न्यूयॉर्क में होगा।

विश्व में हिन्दी की बढ़ती शक्ति

प्रशान्त महासागर के दक्षिण में मेलानेशिया में स्थित फिजी देश है। भारत के बाहर फिजी पहला देश है जहाँं हिन्दी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है। इसे ‘फिजियन हिन्दी’ या ‘फिजियन हिन्दुस्तानी’ भी कहते हैं। यह अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिश्रित रूप है। 
अभी विश्व के सैकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगाण्डा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरिशस, फिजी और दक्षिण अफ्रीका समेत कई देशों में हिन्दी बोली जाती है।
सन् २०१७ ईस्वी में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में पहली बार ‘अच्छा’, ‘बड़ा दिन’, ‘बच्चा’ और ‘सूर्य नमस्कार’ जैसे हिन्दी शब्दों को शामिल किया गया। 

अपनी भाषा में ही प्रगति

हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, हिन्दी एक संस्कृति है। हिन्दी में अनेकता के एकता का बीज छिपा है। यह बोलने और सीखने में सहज है। 
यह तथ्य अकाट्य सच है कि कोई भी प्राणी जितना अपनी भाषा में सहज होता है, उतना किसी और भाषा में नहीं। मनुष्य पर भी यह तथ्य लागू होता है। अपनी भाषा के जरिये हम जिनता उन्नति कर सकते हैं, उतना किसी अन्य भाषा के आश्रित होकर नहीं। अन्य भाषाओं पर भी अधिकार होना चाहिए लेकिन अपनी भाषा को पीछे छोड़कर नहीं। इस सन्दर्भ में मुझे आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की कविता की पंक्ति याद आयी-
निज भाषा उन्नति अहै, 
सब उन्नति को मूल।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हमें समझाया कि अपनी भाषा से ही उन्नति सम्भव है; क्योंकि यही सारी उन्नतियों का मूल आधार है। विभिन्न प्रकार की कलाएँ, असीमित शिक्षा तथा अनेक प्रकार का ज्ञान सभी देशों से जरूर लीजिये मगर उन का प्रचार मातृभाषा में ही कीजिये। 

रविवार, 30 दिसंबर 2018

जानिये भारत के 8 एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स को Know 8 Accidental Prime Ministers of India

                                                

पहचानिये इन्हें
-शीतांशु कुमार सहाय
प्रख्यात फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के लाज़वाब अभिनय से सजी-संवरी हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ का आधिकारिक ट्रेलर प्रदर्शित होने के बाद जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सुर्खियों में हैं, वहीं भारतीय जनता पार्टी और काँग्रेस में जबर्दस्त वाक्युद्ध जारी है। अब चर्चा यह भी हो रही है कि क्या वास्तव में मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार नहीं थे? क्या मनमोहन सिंह एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर अर्थात् अचानक या संयोगवश बनाये गये प्रधानमंत्री थे? क्या वे प्रधानमंत्री पद के योग्य नहीं थे? क्या उन में निर्णय लेने की क्षमता नहीं थी? खैर इस विवाद को यहीं रहने दें। हम आप को भारत के एक-दो नहीं, पूरे आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स के बारे में बता रहे हैं। इन के नाम अचानक ही सामने आ गये और वे संसार के सब से बड़े लोकतान्त्रिक देश के प्रधानमंत्री बन गये। ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ फिल्म के ट्रेलर लोकार्पित होने के बाद लोग यही जान रहे हैं कि केवल मनमोहन सिंह ही एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर थे। पर, यह सच नहीं है। भारत में अब तक आठ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स हो चुके हैं। 
मैं इन के बारे में जरूर बताऊँगा।  लेकिन आप ऐसे ही राज जानने के लिए, भारत की समृद्ध परम्परा और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक परिवेश में जानने-समझने के लिए, योग, अध्यात्म और स्वास्थ्य के आसान सूत्रों और बहुत-सी जानकारियों को हासिल करने के लिए 'शीतांशु कुमार सहाय का अमृत' (https://sheetanshukumarsahaykaamrit.blogspot.com/) को नियमित पढ़ते रहें और जानकारी अच्छी लगे तो लाइक और शेयर ज़रूर करें। आलेख के नीचे में आप अपना मन्तव्य भी दे सकते हैं।  
आप इत्मीनान से पूरा आलेख पढ़ें; क्योंकि सब से ज़्यादा चर्चित हो चुके एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की चर्चा तो मैं सब से अन्त में करूँगा। इस का कारण यह है कि वे फिलहाल भारत के अन्तिम एक्सीडेण्टल प्राइम मिनिस्टर हैं। 

1. इन्दिरा गाँधी 


आप को जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि ‘आयरन लेडी’ के उपनाम से मशहूर इन्दिरा गाँधी भारत के इतिहास में पहली एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुई हैं। सन् 1966 ईस्वी में तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकन्द शहर में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का निधन 11 जनवरी को हो गया। तब गुलजारी लाल नंदा को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया। इस के बाद अचानक ही लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना-प्रसारण मंत्री के पद पर कार्यरत इन्दिरा गाँधी को देश का नियमित प्रधानमंत्री बनाया गया। इन्दिरा गाँधी 24 जनवरी 1966 ईस्वी को भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। इस तरह वह कार्यवाहक प्रधानमन्त्री गुलजारी लाल नंदा सहित मोरारजी देसाई और जगजीवन राम जैसे दिग्गजों को पछाड़कर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर आसीन होने में सफल रहीं। उन्हें अपने पिता और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू के वफ़ादार राजनीतिज्ञों का भरपूर सहयोग मिला। देश में आपातकाल लागू करने पर उन की बहुत निन्दा हुई।

2. चौधरी चरण सिंह

दूसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर हुए चौधरी चरण सिंह। सन् 1977 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में इन्दिरा गाँधी बुरी तरह से हार गयीं और देश में पहली बार गैर-काँग्रेसी दलों ने मिलकर सरकार बनायी थी। जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी भाई देसाई भारत के प्रधानमन्त्री बने। चौधरी चरण सिंह उपप्रधानमंत्री और गृहमन्त्री बने। कुछ माह बाद जनता पार्टी में अन्दरूनी कलह हो गयी। इस कारण मोरारजी देसाई की सरकार गिर गयी। तब काँग्रेस के सहयोग से 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी को चौधरी चरण सिंह भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। राष्ट्रपति ने उन्हें 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में बहुमत साबित करने का समय दिया था। पर परिपक्व राजनीतिज्ञ हो चुकी इन्दिरा गाँधी ने 19 अगस्त 1979 को ही समर्थन वापस ले लिया और चौधरी चरण सिंह की सरकार गिर गयी। इस तरह प्रधानमन्त्री के रूप में चौधरी चरण सिंह संसद में प्रवेश नहीं कर पाये। यही उन का सब से यादगार किन्तु नकारात्मक कीर्तिमान बन पाया। चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई सन् 1979 ईस्वी से 14 जनवरी सन् 1980 ईस्वी तक प्रधानमन्त्री रहे।

3. राजीव गाँधी

देश को कम्प्यूटर का उपहार देनेवाले राजीव गाँधी को तीसरे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में याद किया जाता है। 31 अक्तूबर सन् 1984 ईस्वी को तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की उन के अंगरक्षकों बेअन्त सिंह और शतवन्त सिंह द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी। यों अचानक ही भारत के सामने नेतृत्व का संकट आ गया। ऐसे में नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादार काँग्रेसियों ने कई वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर तुरन्त ही इन्दिरा गाँधी के ज्येष्ठ पुत्र राजीव गाँधी को बतौर प्रधानमन्त्री देश की बागडोर सौंप दी। उस समय राजीव गाँधी लोकसभा सांसद थे। वह भारत के सातवें और सब से कम उम्र के प्रधानमंत्री बनेे। उन का यह कीर्तिमान अब तक कायम है। राजीव गाँधी हवाई जहाज के पायलट थे और राजनीति में नहीं आना चाहते थे। उन के अनुज संजय गाँधी राजनीति में सक्रिय थे जिन की सन् 1980 ईस्वी में हवाई जहाज दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। ऐसे में माँ इन्दिरा गाँधी को सहयोग देने के लिए उन्होंने राजनीति में आना पड़ा। राजीव गाँधी 31 अक्तूबर 1984 से 2 दिसम्बर 1989 ईस्वी तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। तमिलनाडु के श्रीपेरम्बुदुर में 21 मई सन् 1991 ईस्वी को लोकसभा आम निर्वाचन के प्रचार के दौरान लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (एलटीटीई/लिट्टे) के एक आत्मघाती हमलावर ने उन की हत्या कर दी। 

4. चन्द्रशेखर

भारत के चौथे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर के रूप में चन्द्रशेखर याद आते हैं। इन्होंने ऐसा इतिहास बनाया जो किसी से भी शायद ही सम्भव हो। मात्र 64 सांसदों के समर्थन पर इन्होंने सरकार बनाने का दावा किया जो कदापि सम्भव नहीं था। पर, तत्कालीन विपक्षी दल काँग्रेस ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया और वे एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बन गये। अनोखे घटनाक्रम में सन् 1990 ईस्वी में समाजवादी जनता पार्टी के नेता चन्द्रशेखर 10 नवम्बर सन् 1990 ईस्वी को भारत के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए। वह छः महीने प्रधानमन्त्री पद पर रहे। वास्तव में हुआ यह कि भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ़्तारी के बाद भाजपा ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिर गयी। हालाँकि विश्वनाथ प्रताप सिंह यदि प्रधानमन्त्री का पद छोड़ देते और किसी भाजपा नेता को नेतृत्व मिलता तो सरकार बच सकती थी पर इस के लिए जनता दल नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह तैयार नहीं थे। इसी बीच तत्कालीन विपक्षी नेता राजीव गाँधी ने चन्द्रशेखर से सम्पर्क किया। चन्द्रशेखर के नेतृत्व में जनता दल टूट गयी और 64 बागी सांसदों को लेकर समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ और सरकार बनाने का दावा ठोंक दिया गया। राजीव गाँधी के नेतृत्व में काँग्रेस ने उन्हें समर्थन दिया जो टिकाऊ न रहा और 21 जून सन् 1991 ईस्वी को चन्द्रशेखर को त्याग पत्र देना पड़ा।

5. पीवी नरसिंह राव

भारत के एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर्स की पंक्ति में पामुलापति वेंकट नरसिंह राव पाँचवें स्थान पर रहे हैं। वह पेशे से कृषि विशेषज्ञ और अधिवक्ता थे।  काँग्रेस से जुड़कर वे राजनीति में आये कई महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों के कार्यभार सम्भाले। उन में राजनीतिक सूझबूझ तो थी पर नेहरू-इन्दिरा के वफ़ादारों को कुछ सूझ नहीं रहा था। काँग्रेस चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गाँधी को खो चुकी थी। इस का असर यह हुआ कि मतदाताओं का झुकाव काँगेस के प्रति हुआ और 1991 के लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस सत्ता में वापस आयी। अब प्रधानमन्त्री बनाने की बारी थी तो अचानक नरसिंह राव का नाम सामने आया और वह भारत के प्रधानमन्त्री बने। 20 जून 1991 से 16 मई 1996 ईस्वी तक पीवी नरसिंह राव भारत के प्रधानमन्त्री रहे।

6. एचडी देवगौड़ा

हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा अर्थात् एचडी देवगौड़ा जनता दल के नेता के रूप में अचानक प्रधानमन्त्री बन गये थे। इन्हें भारत का छठा एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर कहिये। एचडी देवगौड़ा का प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा आज भी लोग को बेहद चौंकाता है। राष्ट्रीय स्तर पर उन का नाम किसी ने नहीं सुना था। उस समय कुछ दल मिलकर राष्ट्रीय मोर्चा बनाये थे। अब जानिये कि कैसे अचानक प्रधानमन्त्री बन बैठे देवगौड़ा। सन् 1996 ईस्वी में हुए लोकसभा आम निर्वाचन में काँग्रेस 140 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही लेकिन वह बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पा रही थी। लोकसभा में संख्याबल में तीसरे स्थान पर राष्ट्रीय मोर्चा था। राष्ट्रीय मोर्चे के 79 सांसद थे। इस राष्ट्रीय मोर्चे के प्रधान थे जनता दल नेता एचडी देवगौड़ा। वह कुछ दिन पहले ही विधानसभा निर्वाचन में जीत दर्जकर कर्नाटक में अपनी सरकार चला रहे थे। उन की पार्टी जनता दल के पास लोकसभा में 46 सांसद थे। भारतीय जनता पार्टी को दुबारा सत्ता में आने से रोकने के लिए काँग्रेस ने ऐसा बड़ा दाँव खेला जिस का किसी को भरोसा नहीं था। काँग्रेस ने राष्ट्रीय मोर्चे को बाहर से समर्थन देते हुए सरकार बनाने को प्रेरित किया। इस के लिए तुरन्त ही एचडी देवगौड़ा तैयार हो गये। उन्होंने अपने जनता दल के 46, समाजवादी पार्टी के 17 और तेलगुदेशम के 16 कुल 79 सांसदों और काँग्रेसी की बाहरी मदद से सरकार बनाने का दावा राष्ट्रपति के सामने पेश कर दिया। यों अचानक 1 जून 1996 को हरदनहल्ली डोडागौड़ा देवगौड़ा भारत के प्रधानमन्त्री बन गये। पर, यहाँ भी काँग्रेस ने जो काम चौधरी चरण सिंह और चन्द्रशेखर के साथ किया था, वही किया और देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले ली। इस तरह एचडी देवगौड़ा को 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। 

7. इन्द्र कुमार गुजराल

एक आश्चर्यजनक राजनीतिक घटनाक्रम में इन्द्र कुमार गुजराल भारत के सातवें एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर बने। बात अप्रील 1997 की है। एचडी देवगौड़ा की केन्द्र सरकार को बाहर से समर्थन दे रही काँग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में राजनीतिक संकट गहरा गया। मध्यावधि लोकसभा निर्वाचन को टालने के लिए संयुक्त मोर्चा और काँग्रेस के बीच एक समझौता हुआ। प्रधानमन्त्री पद से एचडी देवगौड़ा ने त्याग पत्र दिया और अचानक इन्द्र कुमार गुजराल संयुक्त मोर्चे के नये नेता चुने गये। वह 21 अप्रील सन् 1997 ईस्वी को भारत के 12वें प्रधानमन्त्री बने। नवम्बर 1997 में जैन आयोग के मामले पर काँग्रेस ने उन की सरकार से समर्थन वापस ले लिया। इस तरह 28 नवम्बर सन् 1997 ईस्वी को इन्द्र कुमार गुजराल को प्रधानमन्त्री पद से त्याग पत्र देना पड़ा। पत्रकार राजदीप सरदेसाई की एक पुस्तक में छपे प्रकरण को सच मानें तो प्रातःकाल में इन्द्र कुमार गुजराल को जगाकर यह बताया गया था कि वे भारत के प्रधानमन्त्री बनने जा रहे हैं।

8. मनमोहन सिंह

अब मैं चर्चा करता हूँ एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर डॉक्टर मनमोहन सिंह की। वह नौकरशाह थे और भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं। मनमोहन सिंह कभी लोकसभा निर्वाचन नहीं लड़े। इन के प्रधानमन्त्री बनने का किस्सा काफ़ी रोचक है। दरअसल, विदेशी मूल के विवाद की वज़ह से तत्कालीन काँग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने प्रधानमन्त्री बनना स्वीकार नहीं किया। तब यह पद किसे दिया जाय? उस समय कई दिग्गज काँग्रेसी नेता दावेदार थे पर अचानक मनमोहन सिंह का नाम सामने आ गया और सोनिया गाँधी के आदेश पर उन्हें काँग्रेसी सांसदों ने अपना नेता चुन लिया। इस तरह भारत को अचानक एक नया प्रधानमन्त्री मिल गया। 22 मई सन् 2004 ईस्वी से 26 मई सन् 2014 ईस्वी तक मनमोहन सिंह प्रधानमन्त्री रहे।
आजकल अनुपम खेर अभिनीत हिन्दी फिल्म ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ की बहुत चर्चा है। इस फिल्म का कथानक मनमोहन सिंह के प्रधानमन्त्री रहने के दौरान उन के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की पुस्तक ‘द एक्सीडेण्टल प्राइममिनिस्टर’ पर आधारित है। बारू मई 2004 से अगस्त 2008 तक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे। वह प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के मुख्य प्रवक्ता भी थे।

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

आप के कम्प्यूटर या मोबाइल फोन पर 10 नज़रें, न करें गलत हरकत / 10 Types Watching on Your Computer or Mobile Phone, do not Act Wrong

-शीतांशु कुमार सहाय
यदि आप भारत में हैं तो अब आप का कम्प्यूटर और उस में रखी गयी व्यक्तिगत सामगियाँ बिना आप की इजाजत के ‘कोई’ देख सकता है। उस में अगर कुछ ‘गलत’ मिला तो आप के दरवाजे पर दस्तक होगी। आप दरवाजा खोलेंगे तो पुलिस होगी जो आप को थाने चलने, स्पष्टीकरण देने या सीधे गिरफ्तार भी कर सकती है। जी हाँ, यह सच है। भारत में केन्द्रीय सरकार के आदेश से ऐसा होनेवाला है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने अप्रत्याशित कदम उठाते हुए बृहस्पतिवार, 20 दिसम्बर 2018 को 10 केन्द्रीय एजेंसियों को देश में चल रहे किसी भी कम्प्यूटर में सेंधमारी कर जासूसी करने की इजाजत दे दी है। गृह मंत्रालय के आदेश के अनुसार, देश की ये सुरक्षा एजेंसियाँ किसी भी व्यक्ति के कम्प्यूटर में जेनरेट, ट्रांसमिट, रिसीव और स्टोर किये गये किसी दस्तावेज को देख सकती हैं, उस का परीक्षण कर सकती हैं। किसी व्यक्ति या संस्थान के कॉल या डाटा को जाँचने-परखने के लिए अब इन 10 एजेंसियों को गृह मन्त्रालय का आदेश प्राप्त करने की आवश्यता नहीं है।
इस सरकारी आदेश पर कई तरह की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। पर, चाहे जो भी प्रतिक्रिया आये मगर इसे गोपनीयता भंग करनेवाला बताकर खारिज नहीं किया जा सकता। दरअसल, कोई भी स्मार्टफोन या इण्टरनेट से युक्त कम्प्यूटर, लैपटॉप या टैब्लेट रखनेवाला व्यक्ति अपनी निजता को कई कम्पनियों के बीच बाँट चुका होता है। गौर करें, आप जैसे ही कोई ऐप अपने मोबाइल फोन, कम्प्यूटर, लैपटॉप या टैब्लेट में डाउनलोड करते हैं और उसे चालू करते हैं तो वह कई शर्त्तें आप से स्वीकार करवाता है और आप बिना सोचे-समझे उसे स्वीकार भी कर लेते हैं। प्रत्येक ऐप आप की फोटो गैलरी, डाउनलोडेड या अपलोडेड सामग्रियाँ, मीडिया, वाई-फाई, लोकेशन (आप कब, कहाँ हैं) आदि से सम्बन्धित पूरी जानकारी प्राप्त करती है और जब तक वह ऐप आप के फोन में है, तब तक के सारे अपडेट्स (फोटो गैलरी में डाले गये नये चित्र या वीडियो, नयी डाउनलोडेड या अपलोडेड सामग्रियाँ, मीडिया की नयी सामग्री, वाई-फाई या मोबाइल डाटा, लोकेशन) की जानकारी ऐप वाली कम्पनी को मिलती रहती है। 
इसी तरह अब गूगल का नया फीचर आया है। इस का लोग खूब उपयोग कर रहे हैं। पहले लोग मोबाइल फोन या सिम कार्ड में सम्पर्कवालों के नम्बर उन के नाम के साथ सुरक्षित रखते थे। पर अब गूगल के माध्यम से इसे सुरक्षित रख रहे हैं। यों महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ क्लाउड या ड्राइव में सुरक्षित रख रहे हैं। 
ऐसे में भारत सरकार के नये आदेश की आलोचना नहीं होनी चाहिये; क्योंकि ऐसा पहले से ही हो रहा है। निजी कम्पनियाँ सब की इलेक्ट्रॉनिक सेन्धमारी पहले से ही कर रही हैं। ऐसे में भारत सरकार तो नियमानुसार कानूनन ही अपनी दस एजेन्सियों को किसी व्यक्ति या संस्थान के कॉल या डाटा को जाँचने-परखने के लिए अधिकृत किया है।  
भारत के केन्द्रीय गृह मन्त्रालय के आदेश के अनुसार अब इण्टेलिजेंस ब्यूरो, नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, सेण्ट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स, डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इण्टेलिजेन्स, केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), एनआईए, कैबिनेट सेक्रेटेरिएट (रॉ), डायरेक्टरेट ऑफ सिग्नल इण्टेलिजेन्स और दिल्ली के आरक्षी आयुक्त (कमिश्नर ऑफ पुलिस) को भारत देश की सीमा के अन्दर चलनेवाले सभी कम्प्यूटर की जासूसी की मंजूरी दी गयी है। यहाँ कम्प्यूटर एक व्यापक शब्द है जिस के अन्तर्गत स्मार्टफोन, लैपटॉप या टैब्लेट भी आयेंगे। .....तो हो जायें सावधान और गैर कानूनी कार्य न करें।  

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

२०१८ की तरह २०१९ में भी होंगे ३ सूर्य ग्रहण और २ चन्द्र ग्रहण

-शीतांशु कुमार सहाय
कुछ ही दिन शेष हैं नये वर्ष सन् २०१९ ईस्वी के आने में। लोग अपने-अपने तरीके से नये साल का स्वागत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच मैं कुछ काम की बात और आप को बता रहा हूँ। जिस तरह वर्ष २०१८ में पाँच ग्रहण- तीन सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण पड़े, उसी तरह अगले साल २०१९ में भी पृथ्वी पर पाँच ग्रहण- तीन सूर्य ग्रहण और दो चन्द्र ग्रहण दिखायी देंगे। 
वर्ष २०१९ में तीन सूर्य ग्रहण होंगे और दो चन्द्र ग्रहण। पहला ग्रहण जनवरी में तो पाँचवाँ और अन्तिम ग्रहण दिसम्बर में होगा। अगले साल का पहला ग्रहण ६जनवरी को होगा। यह आंशिक सूर्य ग्रहण के रूप में दिखायी देगा। २०१९ साल के शुरुआती महीने में ही चन्द्र ग्रहण भी होगा। यह पूर्ण (खग्रास) चन्द्र ग्रहण के रूप में २१ जनवरी को दिखायी देगा। 
सन् २०१९ ईस्वी में जनवरी के बाद फरवरी, मार्च, अप्रील, मई और जून- इन पाँच महीनों में कोई ग्रहण नहीं पड़ेगा। फिर २ जुलाई को पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा। उस के उपरान्त जुलाई में ही १६ तारीख को आंशिक चन्द्र ग्रहण भी होगा। पुनः अगस्त, सितम्बर, अक्तूबर और नवम्बर में कोई ग्रहण नहीं लगेगा। साल २०१९ का अन्तिम ग्रहण २६ दिसम्बर को पड़ेगा। यह सूर्य ग्रहण होगा। 
वर्ष २०१९ में लगनेवाले पाँचों ग्रहण में से भारत में तीन नहीं दिखायी देंगे। भारत में केवल दो ही ग्रहण दीखेंगे। १६ जुलाई और २६ दिसम्बर को लगनेवाले क्रमशः आंशिक चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को ही भारतवासी देख पायेंगे।

बुधवार, 12 दिसंबर 2018

नरेन्द्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी पर राहुल गाँधी भारी Rahul Gandhi Cumbersome on the Pair of Narendra Modi & Amit Shah

-शीतांशु कुमार सहाय
भारत में लोकसभा आम निर्वाचन 2019 से पहले केन्द्रीय सत्ता का सेमीफाइनल माने जा रहे पाँच राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के विधानसभा आम निर्वाचन में तीन प्रमुख राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर काँग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की ‘दमदार राजनीतिक जोड़ी’ पर भारी पड़े हैं। इस से जनता के बीच जो सन्देश गया है, वह काँग्रेस और राहुल गाँधी दोनों की स्वीकार्यता को बढ़ाने में सकारात्मक भूमिका अदा करेगा। 
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा अध्यक्ष शाह के जी-तोड़ चुनाव प्रचार पर काँग्रेस अध्यक्ष गाँधी की 82 जनसभाओं व 7 रोड शो ने पानी फेर दिया। इन तीन राज्यों के चुनाव परिणाम जहाँ काँग्रेस के लिए संजीवनी का काम करेंगे, वहीं राहुल की खुद की राजनीति में नया अध्याय लिखंेगे। तीन राज्यों से भाजपा को सत्ता से बेदखल करने पर राहुल देश की राजनीति की पिच पर मंझे राजनेता के रूप में स्थापित कर पाने में समर्थ हो पायेंगे। 
पिछले कुछ समय से सोशल साइटों पर राहुल गाँधी को लेकर जो व्यंग्यबाण चलाये जा रहे थे, उन पर अचानक ब्रेक लग गया है। चुनाव नतीजे ऐसे लोग के मुँह बंद कर दिये हैं। विरोधी लोग राहुल की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठा रहे थे। 
भाजपाशासित तीन राज्यों में राहुल के नेतृत्व में जीत के बाद उन का कद विपक्ष की राजनीति में बढ़ा है, इस से इंकार नहीं किया जा सकता। देशभर में यह संदेश भी गया है कि लोकसभा आम निर्वाचन 2019 में भी राहुल गाँधी भाजपा अर्थात् मोदी-शाह की जोड़ी को कड़ी चुनौती देने में सक्षम हैं। 
चुनावी समर में काँग्रेस ने इस बार भाजपा को उस के मोदी बनाम राहुल के अस्त्र से ही घेरा। यही कारण रहा कि पूरे अभियान में राहुल का पूरा फोकस मोदी को घेरने पर रहा। राफेल कांड, नोटबंदी, जीएसटी, सीबीआई विवाद, आरबीआई का सरकार से टकराव, रोजगार, किसानों की दयनीय स्थिति व युवाओं को लेकर राहुल के तेवर नरेन्द्र पर लगातार तल्ख रहे। इतना ही नहीं अपनी आक्रामक शैली से राहुल ने तीनों राज्यों में चुनावी एजेंडे सेट किये और मोदी से लेकर भाजपा के ज्यादातर बड़े नेता उन में फँसते चले गये। 
गाँधी युवाओं और किसानों को यह संदेश देने में भी सफल रहे कि मोदी के वायदे खोखले हैं और जुमलेबाजी से लोग का भला नहीं होनेवाला है। उन्होंने झूठे वायदों और नफरत की राजनीति पर मोदी व भाजपा को घेरा। नतीजे गवाह हैं कि राहुल का यह अंदाज मतदाताओं को रास आया। किसानों की कर्जमाफी और उन की फसल के मूल्य पर राहुल की चली गुगली में भाजपा बोल्ड हो गयी। दूसरी तरफ भाजपा नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान जो भाषण दिये, उन के प्रभाव भी भाजपा पर नकारात्क पड़ा। कोई भाजपा प्रवक्ता अपने नेताओं के भाषण के नकारात्मक पहलुओं को सकारात्मक रूप से समझाने में सफल नहीं रहा।
अप्रत्याशित जीत दर्ज करने के बाद जो राहुल गाँधी का बयान आया, उस में अत्यन्त सधे हुए शब्द थे। काँग्रेस अध्यक्ष राहुल ने ‘काँग्रेसमुक्त भारत’ के भाजपा के नारे के बारे में स्पष्ट कहा कि उन की पार्टी भाजपा मुक्त करने के लिए नहीं; बल्कि भाजपा की विचारधारा के खिलाफ लड़ रही है और हमें उम्मीद है कि हम उस में जीत हासिल करेंगे। उन्होंने कहा कि आज हम जीते हैं और पूरा विपक्ष मिलकर 2019 में भी भाजपा को हरायेगा। 
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जिन तीन अहम मुद्दों को लेकर 2014 में सत्ता में आये थे- किसानों की समस्या का समाधान, युवाओं को रोजगार और भ्रष्टाचार पर लगाम- इन तीनों मुद्दों पर मोदी विफल रहे हैं। कहीं-न-कहीं विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार का यह भी एक कारण है। जीएसटी, नोटबंदी लोग पर भारी पड़े तो जनता ने अपने वोट के जरिये अपना निर्णय सुना दिया है। नोटबंदी तो एक बड़ा स्कैम था।
छत्तीसगढ़ में पार्टी की दो तिहाई बहुमत के साथ जीत, राजस्थान में स्पष्ट बहुमत मिलने और मध्यप्रदेश में सब से बड़े दल के रूप में जीत दर्ज करने पर काँग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने पार्टी की जीत को किसान, युवाओं और छोटे दुकानदारों की जीत बताया।

राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ व मिजोरम में किस दल को कितनी सीटें मिलीं How many seats did the party get in Rajasthan, Madhya Pradesh, Telangana, Chhattisgarh and Mizoram

-शीतांशु कुमार सहाय

पाँच राज्यों में किस दल ने कितनी सीटों पर जीत दर्ज की, यहाँ जानिये-