बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

मिले हाथ, बढ़ें साथ : भारत व चीन के बीच 9 समझौते


शीतांशु कुमार सहाय
बुध का काम शुद्ध। अर्थात् बुधवार को होने वाला कार्य शुद्ध यानी अच्छा होता है। यह भारतीय कहावत बुधवार को भारत और चीन के बीच हुए समझौते पर भी लागू हो जाये तो समझौते के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का कथन कि जब भारत व चीन के हाथ मिलते हैं तो दुनिया देखती है, सच साबित हो जायेगा। काफी गर्मजोशी के माहौल में दोनों देशों के नेताओं ने 9 महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये। विश्व की 2 क्षेत्रीय महाशक्तियों के बीच के करार की पल-पल की गतिविधियों पर विश्व की नजर वास्तव में थी। भारत व चीन के एकल या साझा शत्रुओं को दोनों की गर्मजोशी फूटी आँखों नहीं सुहाती है। वैसे विश्व की आर्थिक या सामरिक महाशक्तियाँ भी नहीं चाहतीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश व सबसे बड़ा साम्यवादी देश आपस में हाथ मिलाये। यदि ये दोनों मिल गये, आपसी ताल-मेल को कायम रखते हुए टकराव के तमाम बिन्दुओं पर समन्वय बनाये रखें तो निश्चय ही दोनों देशों का कल्याण होगा। साथ ही विश्व का मानचित्र भी कई मायनों में बदल जायेगा।
इस बार जो व्यवहार भारतीय प्रधानमंत्री के प्रति चीन ने दिखायी, वह कई मायनों में अलग है। बातचीत से लेकर भोज तक के माहौल को भारतीयता में रंगने की कोशिश की गयी। भोजन तो हमेशा मेहमान की रुचि का ही होता है पर माहौल में भी भारतीय का पुट घोला गया। बैठकों के अलावा मनमोहन सिंह के सम्मान में चीनी प्रधानमंत्री ली क्विंग के साथ ही राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भी भोज का आयोजन किया। ली द्वारा सिंह के सम्मान में दिये गये भोज में मेहमानों ने बॉलीवुड की पुराने जमाने की लोकप्रिय धुनों के बीच चीनी व्यंजनों का लुत्फ उठाया। भोज में जहाँ ‘स्पांज बैम्बू’, ‘मशरूम सूप’ व ‘बीन कर्ड’ की खुशबू महकती रही, वहीं पुरानी हिन्दी फिल्मों के गीत ‘मेरा नाम चुन चुन चू’, ‘बार-बार देखो हजार बार देखो’ और ‘गोरे-गोरे, ओ बांके छोरे’ की धुनें बजती रहीं। मनमोहन सिंह चीन के पूर्व प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के भी मेहमान थे। ऐसा बेहद कम होता है कि कोई सेवानिवृत्त चीनी नेता किसी गणमान्य मेहमान की मेजबानी करे। 57 वर्षीय ली ने सिंह को बुधवार के दिन फोरबिडन सिटी का दौरा भी कराया। यह भी एक दुर्लभ व्यवहार था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री ली क्विंग के बीच ‘ग्रेट हॉल ऑफ दी पीपुल’ में हुई गहन वार्ता के बाद सीमा, रक्षा व सहयोग के समझौते (बीडीसीए) पर हस्ताक्षर किये गये।
भारत और चीन के बीच 9 अहम करार पर हस्ताक्षर किये गये। इस अवसर पर मनमोहन सिंह ने उत्साहित अंदाज में कहा कि जब भारत व चीन के हाथ मिलते हैं तो दुनिया देखती है। उम्मीद की जानी चाहिये कि ये हाथ दोस्ती के लिए ही मिले रहें, एक-दूसरे की शक्ति को जाँचने के लिए नहीं। एक कैलेंडर वर्ष में ली व सिंह की दूसरी मुलाकात इस तथ्य के मद्देनजर काफी मायने रखती है कि 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और चाउ एन लाइ के बीच हुई मुलाकात के बाद यह इस प्रकार की पहली मुलाकात है। यह मुलाकात दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को दर्शाती है। सीमा के आसपास सैन्य क्षेत्र में आपसी विश्वास बहाली के उपायों का कार्यान्वयन जारी रखने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए बीडीसीए में दोनों देशों के सैन्य मुख्यालयों के बीच हॉटलाइन की स्थापना पर विचार करने की सहमति और आपसी सलाह-मशविरे से विशेष प्रबंध किये जाने का भी फैसला हुआ है। गौरतलब है कि एलएसी के बारे में अवधारणाओं में भिन्नता तथा स्पष्टता के अभाव को दोनों पक्षों द्वारा घुसपैठ के लिए मुख्य कारण माना जाता रहा है। लद्दाख के देप्सांग घाटी में चीनी सैनिकों की घुसपैठ 3 सप्ताह तक जारी रही थी और उसके बाद चीनी सैनिक अपनी मूल स्थितियों में लौट गये थे। समझौते के अनुसार, दोनों पक्ष अधिकतम संयम बरतेंगे, किसी भड़काऊ कार्रवाई से बचेंगे, दूसरे पक्ष के खिलाफ धमकी या बल प्रयोग नहीं करेंगे, एक दूसरे के साथ शिष्टाचार से पेश आएंगे और आपसी गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष से बचेंगे। यों ब्रह्मपुत्र व सीमा पारीय नदियों, आपसी व्यापार व निवेश से सम्बन्धित समझौते भी हुए। पर, वीजा व्यवस्था का उदारीकरण पर कोई समझौता नहीं हुआ।
भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सेना के बीच टकराव और सीमा पर तनाव को टालने के लिए बुधवार को एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके साथ ही दोनों पक्षों ने फैसला किया कि कोई भी पक्ष दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं करेगा और न ही सीमा पर गश्ती दलों का पीछा करेगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री ली क्विंग के बीच ग्रेट हॉल आफ दी पीपुल में हुई गहन वार्ता के बाद सीमा रक्षा सहयोग समझौते [बीडीसीए] पर हस्ताक्षर किए गए।  रक्षा सचिव आर के माथुर और पीएलए के डिप्टी चीफ आफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल सुन जियांग्यू द्वारा हस्ताक्षरित चार पन्नों के बीडीसीए में दस उपबंध हैं जो चार हजार किलोमीटर लंबी एलएसी पर शांति, समरसता तथा स्थिरता बनाए रखने का प्रावधान करते हैं। इसमें यह भी दोहराया गया है कि कोई भी पक्ष, दूसरे पक्ष के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं करेगा और किसी भी सैन्य क्षमता का इस्तेमाल किसी दूसरे पक्ष पर हमले के लिए नहीं किया जाना चाहिए। इस वर्ष अप्रैल में लद्दाख की देपसांग वैली में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी [पीएलए] के दखल के साथ ही कई मौकों पर चीनी घुसपैठ की घटनाओं से संबंधों में उपजे तनाव की पृष्ठभूमि में यह समझौता हुआ है। समझौता कहता है कि दोनों पक्षों को इस समझौते को एलएसी के संरेखण तथा सीमा के सवाल पर भी बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने अपने स्तर पर लागू करना होगा। बीडीसीए में वर्ष 1993 से सीमा प्रबंधन पर दोनों देशों के बीच हुए विभिन्न समझौतों की भावना तथा भारत-चीन सीमा मामलों पर समन्वय तथा विचार-विमर्श के लिए एक व्यवस्था स्थापित करने को लेकर जनवरी में किए गए हस्ताक्षर का उल्लेख किया गया है।
दोनों पक्षों के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की 2 घंटे से अधिक समय तक चली वार्ता और सिंह तथा ली के बीच इस वर्ष हुई दूसरी बातचीत के साथ ही कुल मिलाकर दोनों देशों के बीच नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें बीडीसीए तथा सीमा पारीय नदियों पर आपसी सहयोग को मजबूत करने संबंधी समझौता भी शामिल है। वीजा व्यवस्था का उदारीकरण किए जाने पर कोई समझौता नहीं हुआ। हालांकि चीनी पक्ष इस विषय में समझौता करने का प्रबल इच्छुक था, लेकिन भारत ने चीनी दूतावास द्वारा अरुणाचल प्रदेश के दो भारतीय तीरंदाजों को नत्थी वीजा दिए जाने के मुद्दे पर उभरे विवाद की पृष्ठभूमि में अपने कदम पीछे खींच लिए।
समक्षौते--
1. चार हजार किलोमीटर लंबी एलएसी पर शांति, समरसता तथा स्थिरता बनाए रखने का प्रावधान
2. कोई भी पक्ष, दूसरे पक्ष के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमताओं का इस्तेमाल नहीं करेगा और किसी भी सैन्य क्षमता का इस्तेमाल किसी दूसरे पक्ष पर हमले के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
3. एलएसी के आसपास सैन्य क्षेत्र में आपसी विश्वास बहाली उपायों का क्रियान्वयन जारी रखने की प्रतिबद्धता जाहिर करते हुए बीडीसीए में दोनों देशों के सैन्य मुख्यालयों के बीच हॉटलाइन की स्थापना पर विचार करने की सहमति और आपसी सलाह मशविरे से विशेष प्रबंध किए जाने का भी फैसला। उन क्षेत्रों में एक-दूसरे के गश्ती दलों का पीछा नहीं करेंगे, जिनके बारे में एलएसी पर कोई आम समक्ष नहीं है और यदि कोई शंकाग्रस्त स्थिति होती है तो स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है और यह स्थापित तंत्र के जरिए होगा। भारत और चीन ने यह सहमति भी जतायी कि यदि उनके सैनिक उन इलाकों में आमने सामने आ जाते हैं जहां एलएसी के बारे में कोई आम समझ नहीं है तो दोनों पक्ष अधिकतम संयम बरतेंगे, किसी भड़काऊ कार्रवाई से बचेंगे, दूसरे पक्ष के खिलाफ धमकी या बल प्रयोग नहीं करेंगे, एक दूसरे के साथ शिष्टाचार से पेश आएंगे और आपसी गोलीबारी या सशस्त्र संघर्ष से बचेंगे। समझौता कहता है कि दोनों पक्षों को इस समझौते को एलएसी के संरेखण तथा सीमा के सवाल पर भी बिना किसी पूर्वाग्रह के अपने अपने स्तर पर लागू करना होगा।
बीडीसीए में वर्ष 1993 से सीमा प्रबंधन पर दोनों देशों के बीच हुए विभिन्न समझौतों की भावना तथा भारत-चीन सीमा मामलों पर समन्वय तथा विचार-विमर्श के लिए एक व्यवस्था स्थापित करने को लेकर जनवरी में किए गए हस्ताक्षर का उल्लेख किया गया है।
4. ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा बांधों के निर्माण को लेकर शिकायतों की पृष्ठभूमि में दोनों पक्षों ने आपसी सहमति पत्र [एमओयू] पर हस्ताक्षर।
5. सीमा पारीय नदियों पर समन्वय को मजबूत बनाने, बाढ़ के मौसम में पनबिजली आंकड़ों के प्रावधान पर विशेषज्ञस्तरीय तंत्र के जरिए समन्वय करने तथा आपदा प्रबंधन एवं साक्षा हितों से जुड़े अन्य मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान पर सहमति।
6. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए हैं कि दोनों पड़ोसी देश, स्वतंत्र विदेश नीतियों का अनुसरण कर रहे हैं और ऐसे में भारत तथा चीन द्वारा अन्य देशों के साथ बरते जाने वाले संबंध एक दूसरे के लिए चिंता का विषय नहीं होने चाहिए। ऐसे काम करें जो आपसी विश्वास को बढ़ाएं, साझा हितों को विस्तार दें और आपसी समझ को गहरा करें।
7. सभी स्तरों पर पारदर्शिता बढ़ाने और रणनीतिक संवाद को मजबूती प्रदान करने पर सहमति।
8. दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच संपर्क को प्रोत्साहित करने और उसे संस्थागत स्वरूप प्रदान करने का फैसला।
9. भारत में चीनी निवेश को आकर्षित करने के लिए एक चीनी औद्योगिक पार्क की स्थापना तथा व्यापार संतुलन के लिए उपाय तलाशने पर सहमति।

कोई टिप्पणी नहीं: