गुरुवार, 24 अक्टूबर 2013

मन्ना डे के रूप में हमने एक महान गायक खो दिया



-शीतांशु कुमार सहाय




जब कोई तपस्या करता है तो आंखें बंद कर लेता है। गाना मेरे लिए तपस्या है। गाते समय मैं आंखें बंद करता नहीं हूं, अपने आप बंद हो जाती हैं।
-मन्ना डे

7 दशकों तक अपनी अनोखे जादुई सुरों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज आज हमेशा के लिए खामोश हो गई। काफी समय से बीमार चल रहे बॉलीवुड के मशहूर गायक 94 साल के मन्ना डे का बैंगलोर के नारायणा अस्पताल में 24 अक्टूबर 2013 को निधन हो गया है। मन्ना डे का पार्थिव शरीर बैंगलोर के रवींद्र कला क्षेत्र में सुबह 10 बजे से दोपहर 12 तक दर्शनों के लिए रखा गया था। नारायणा अस्पताल के एक प्रवक्ता केएस वासुकी ने बताया कि मन्ना दा ने सुबह 4 बजे अंतिम सांस ली। अधिक उम्र हो जाने के कारण और गुर्दे की समस्या एवं दिल के काम करना बंद कर देने से देर रात अचानक उनकी हालत बिगड़ गई। गुरुवार 24 अक्टूबर 2013 की शाम बैंगलोर शहर के पश्चिमोत्तर इलाके में स्थित हब्बल शवदाहगृह में उनका अंतिम संस्कार हो गया। प्रबोध चंद्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म पिता पूर्ण चंद्र डे और माता महामाया डे के घर एक मई 1919 को कोलकाता में हुआ था। 16 अक्टूबर 2009 की शाम को मन्ना डे आखिरी बार लोगों से रूबरू हुए थे। इस महफिल में उन्होंने अपने दिल की बात कही थी।

3500 से अधिक गाने गाए---
मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार की तिकड़ी का चौथा हिस्सा बनकर उभरे मन्ना डे ने 1950 से 1970 के बीच हिंदी संगीत उद्योग पर राज किया। पांच दशकों तक फैले अपने करियर में डे ने हिंदी, बंगाली, गुजराती, मराठी, मलयालम, कन्नड और असमी में 3500 से अधिक गाने गाए। उनकी आवाज का इस्तेमाल जहां-जहां हुआ, कामयाबी की दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ। मन्ना डे ने 1990 के दशक में संगीत जगत को अलविदा कह दिया। 1991 में आई फिल्म प्रहार में गाया गीत 'हमारी ही मुट्ठी में' उनका अंतिम गीत था। मन्ना डे ने रफी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले और किशोर कुमार के साथ कई गीत गए। उन्होंने अपने कई हिट गीत संगीतकार एस डी बर्मन, आर डी बर्मन, शंकर जयकिशन, अनिल बिस्वास, रोशन और सलील चौधरी, मदन मोहन तथा एन सी रामचंद्र के साथ दिए।

पत्नी और दो बेटियां---
मन्ना डे ने केरल निवासी सुलोचना कुमारन से शादी की और उनकी दो बेटियां रमा और सुमिता हुई। उनकी पत्नी का उनकी जिंदगी में बेहद महत्वपूर्ण रोल था और यही वजह थी कि जनवरी 2012 में सुलोचना की मृत्यु के बाद डे अपनी जिंदगी के अंतिम दिनों में एकदम उदासीन और एकांतवासी हो गए थे। वह बंगलुरु में अकेले रहते थे। डे के निधन से हिंदी फिल्म संगीत का एक अध्याय समाप्त हो गया।

प्रथम गुरु थे चाचा---
संगीत में उनकी रूचि अपने चाचा कृष्ण चंद्र डे की वजह से पैदा हुई जो खुद भी न्यू थियेटर कंपनी के ख्यातिनाम गायक और अभिनेता थे। मन्ना नाम उन्हें उनके इन्हीं चाचा ने दिया था। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा चाचा केसी डे से हासिल की। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा।

बादल खान ने मन्ना डे की प्रतिभा को पहचान लिया---
मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने अपने उस्ताद से कहा, बस ऐसे ही गा लेता हूं। बादल खान ने मन्ना डे की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मन्ना डे 40 के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए। 1943 में फिल्म तमन्ना. मे बतौर प्लेबैक सिंगर उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म रामराज्य में कोरस के रुप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था।

सचिन देव बर्मन की सलाह पर बने गायक---
हालांकि उनके पिता चाहते थे कि वो बड़े होकर वकील बने लेकिन मन्ना डे ने संगीत को ही चुना। कलकत्ता के स्कॉटिश कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ मन्ना डे ने केसी डे से शास्त्रीय संगीत की बारीकियां सीखीं। कॉलेज में संगीत प्रतियोगिता के दौरान मन्ना डे ने लगातार 3 साल तक ये प्रतियोगिती जीती। आखिर में आयोजकों को ने उन्हें चांदी का तानपुरा देकर कहा कि वो आगे से इसमें हिस्सा नहीं लें। 23 साल की उम्र में मन्ना डे अपने चाचा के साथ मुंबई आए और उनके सहायक बन गए। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से भी उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। इसके बाद वो सचिन देव बर्मन के सहायक बन गए। इसके बाद वो कई संगीतकारों के सहायक रहे और उन्हें प्रतिभाशाली होने के बावजूद जमकर संघर्ष करना पड़ा। 1943 में आई फिल्म ‘तमन्ना’ के जरिए उन्होंने हिन्दी फिल्मों में अपना सफर शुरू किया और 1943 में बनी ‘रामराज्य’ से वे प्लैबैक सिंगर बन गए। सचिन दा ने ही मन्ना डे को सलाह दी कि वे गायक के रूप में आगे बढ़ें और मन्ना डे ने सलाह मान ली। 1950 में मशाल उनकी दूसरी फिल्म थी, जिसमें मन्ना डे को एकल गीत उपर गगन विशाल गाने का मौका मिला, जिसे संगीत से सजाया था सचिन देव बर्मन ने। 1952 में डे ने एक ही नाम और कहानी वाली बंगाली तथा मराठी फिल्म अमर भुपाली के लिए गीत गाए और खुद को एक उभरते बंगाली पार्श्र्वगायक के रूप में स्थापित कर लिया।

अपने आदर्श भीमसेन जोशी के मुकाबले में गाना पड़ा---
डे साहब की मांग दुरूह राग आधारित गीतों के लिए अधिक होने लगी और एक बार तो उन्हें 1956 में बसंत बहार फिल्म में उनके अपने आदर्श भीमसेन जोशी के मुकाबले में गाना पड़ा। 'केतकी गुलाब जूही' बोल वाले इस गीत को शुरू में उन्होंने गाने से मना कर दिया था।

मधुशाला को स्वर---
मन्ना डे केवल शब्दो को ही नहीं गाते थे, अपने गायन से वह शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते थे। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया।

प्रसिद्ध गीत---
उनके गाए मशहूर गीतों में 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम', 'चुनरी संभाल गोरी', 'जिंदगी कैसी है पहेली', 'चलत मुसाफिर मोह लियो रे', 'तेरे बिन आग ये चांदनी', 'मुड़ मुड़ के न देख', 'ऐ भाई जरा देख के चलो', 'यशोमती मईया से बोले नंदलाला', 'ऐ मेरे प्यारे वतन', 'ऐ मेरी जोहरा जबीं' और 'यारी है ईमान मेरा' जैसे गीत शामिल हैं। साल 1961 मे संगीत निर्देशक सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में फिल्म काबुलीवाला की सफलता के बाद मन्ना डे शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। फिल्म काबुलीवाला में मन्ना डे की आवाज में प्रेम धवन रचित यह गीत, ए मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है। प्राण के लिए उन्होंने फिल्म उपकार में कस्मे वादे प्यार वफा और जंजीर में यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी जैसे गीत गाए। उसी दौर में उन्होंने फिल्म पड़ोसन मे हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक चतुर नार बड़ी होशियार गीत गाया तो उन्हें महमूद की आवाज समझा जाने लगा। आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं, लेकिन बाद में उन्होने ऐ मेरे प्यारे वतन, ओ मेरी जोहरा जबीं, ये रात भीगी-भीगी, ना तो कारवां की तलाश है और ए भाई जरा देख के चलो जैसे गीत गाकर अपने आलोचको का मुंह बंद कर दिया। मन्ना डे के कुछ सर्वाधिक लोकप्रिय गीतों में दिल का हाल सुने दिलवाला, प्यार हुआ इकरार हुआ, आजा सनम, ये रात भीगी भीगी, 'फूलगेंदवा ना मारो', ऐ भाई जरा देख के चलो, कसमे वादे प्यार वफा और यारी है ईमान मेरा शामिल है।

आत्मकथा 'मैमोयर्स कम अलाइव' में शंकर-जयकिशन को श्रेय
उन्होंने बतौर गायक उनकी प्रतिभा को पहचानने का श्रेय संगीतकार शंकर-जयकिशन की जोड़ी को दिया। डे ने शोमैन राजकपूर की आवारा, श्री 420 और चोरी चोरी फिल्मों के लिए गाया।  
उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मैमोयर्स कम अलाइव' में लिखा है कि मैं शंकरजी का खास तौर से ऋणी हूं। यदि उनकी सरपरस्ती नहीं होती, तो जाहिर सी बात है कि मैं उन उंचाइयों पर कभी नहीं पहुंच पाता, जहां आज पहुंचा हूं। वह एक ऐसे शख्स थे, जो जानते थे कि मुझसे कैसे अच्छा काम कराना है। वास्तव में, वह पहले संगीत निदेशक थे, जिन्होंने मेरी आवाज के साथ प्रयोग करने का साहस किया और मुझसे रोमांटिक गीत गवाए।

धार्मिक फिल्मों के गायक का ठप्पा
मन्ना डे ने कुछ धार्मिक फिल्मों में गाने क्या गाएं उन पर धार्मिक गीतों के गायक का ठप्पा लगा दिया गया। ‘प्रभु का घर’, ‘श्रवण कुमार’, ‘जय हनुमान’, ‘राम विवाह’ जैसी कई फिल्मों में उन्होंने गीत गाए। इसके अलावा बी-सी ग्रेड फिल्मों में भी वो अपनी आवाज देते रहें। भजन के अलावा कव्वाली और मुश्किल गीतों के लिए मन्ना डे को याद किया जाता था। इसके अलावा मन्ना डे से उन गीतों को गंवाया जाता था, जिन्हें कोई गायक गाने को तैयार नहीं होता था। धार्मिक फिल्मों के गायक की इमेज तोड़ने में मन्ना डे को लगभग सात सात लगे।

फिल्म ‘आवारा’ से हटा ठप्पा
फिल्म ‘आवारा’ में मन्ना डे के गीत ‘तेरे बिना ये चांदनी’ बेहद लोकप्रिय हुआ और इसके बाद उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में मौके मिलने लगे। ‘प्यार हुआ इकरार हुआ..’ (श्री 420), ‘ये रात भीगी-भीगी..’ (चोरी-चोरी), ‘जहां मैं चली आती हूं..’ (चोरी-चोरी), ‘मुड-मुड़ के ना देख..’ (श्री 420) जैसी कई सफल गीतों में उन्होंने अपनी आवाज दी। मन्ना डे जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली। उनका सबसे मशहूर गाना ‘कस्में वादे प्यार वफा..’ था।

खेमेबाजी का शिकार
भारतीय फिल्म संगीत में खेमेबाजी उस समय जोरों से थी। सरल स्वभाव वाले मन्ना डे किसी कैम्प का हिस्सा नहीं थे। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उस समय रफी, किशोर, मुकेश, हेमंत कुमार जैसे गायक छाए हुए थे और हर गायक की किसी न किसी संगीतकार से अच्छी ट्यूनिंग थी। साथ ही राज कपूर, देव आनंद, दिलीप कुमार जैसे स्टार कलाकार मुकेश, किशोर कुमार और रफी जैसे गायकों से गंवाना चाहते थे, इसलिए भी मन्ना डे को मौके नहीं मिल पाते थे। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे। लेकिन साइड हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। कहा तो ये भी जाता था कि मन्ना डे से दूसरे गायक डरे थे इसलिए वे नहीं चाहते थे कि मन्ना डे को ज्यादा अवसर मिले।

संगीतकार अनिल विश्वास ने कहा था--- 
मन्ना डे के बारे में प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं, जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाये हों, लेकिन इनमें से कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नहीं गा सकता है। इसी तरह आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने एक बार कहा था, आप लोग मेरे गीत को सुनते हैं लेकिन अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं कहूंगा कि मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं।

गीतकार प्रेम धवन ने कहा था-- 
प्रसिद्ध गीतकार प्रेम धवन ने मन्ना डे के बारे में कहा था-- मन्ना डे हर रेंज में गीत गाने में सक्षम हैं। जब वह उंचा सुर लगाते हैं तो ऐसा लगता है कि सारा आसमान उनके साथ गा रहा है। जब वह नीचा सुर लगाते हैं तो लगता है उसमे पाताल जितनी गहराई है। अगर वह मध्यम सुर लगाते हैं तो लगता है उनके साथ सारी धरती झूम रही है।

पुरस्कार और सम्मान---
मन्ना डे को फिल्मों मे उल्लेखनीय योगदान के लिए 1971 में पदमश्री पुरस्कार और 2005 में पदमभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह 1969 में फिल्म मेरे हुजूर के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक, 1971 मे बंगला फिल्म निशि पदमा के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक और 1970 में प्रदर्शित फिल्म मेरा नाम जोकर के लिए फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक पुरस्कार से सम्मानित किए गए। मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय जुड़ गया जब फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए साल 2009 में उन्हें फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें बंगाल विशेष महासंगीत सम्मान से सम्मानित किया था।

कश्मीरी फर की टोपी उनकी पहचान बन गई---
मन्ना डे जब एक प्रोगाम के सिलसिले में कश्मीर गए थे तो वहां जमकर बर्फबारी हुई थी। इस बर्फबारी के कारण वे कांपने लगे थे। उनको कांपते हुए देख उनके एक प्रशंसक ने उन्हें अपना फर का टोपी गिफ्ट किया था, जो बाद में उनकी पहचान बन गई। मन्ना डे ने आटोबायोग्राफी में लिखा है कि जब वे एक कार्यक्रम के सिलसिले में दिसंबर महीने में कश्मीर गए थे तो वहां भयानक ठंड थी। उन्होंने लिखा है कि ठंड के कारण वे स्टेज पर कांप रहे थे और ठंड से निजात पाने की फिराक में लगे हुए थे। मन्ना डे ने कहा कि जब वे ठंड से कांप रहे थे तो उनके पास एक प्रशंसक आया और टोपी पहनने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने खुशी से स्वीकार कर लिया। टोपी पहनने के बाद ठंड से उन्हें राहत मिली और उन्होंने अपना कार्यक्रम पेश किया, जिसे लोगों ने काफी सराहा। इस घटना के बाद कश्मीरी फर की टोपी उनकी पहचान बन गई और वे जहां भी प्रोगाम देने के लिए जाते थे, टोपी पहनकर ही अपना गायन पेश करते थे।

श्रद्धांजलि के स्वर-

दुखद वाकया है। संगीत की दुनिया में उनकी अलग पहचान थी। कई दशकों के लिए उन्होंने भारतीय इंडस्ट्री को अपने सुरों से सजाया था। हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजली देते हैं। मनोरंजन जगत और मुल्क के लिए बड़ी क्षति है।
-मनीष तिवारी, सूचना-प्रसारण मंत्री

मन्ना डे के रूप में हमने एक महान गायक खो दिया है। उनकी अमर आवाज हमेशा जिंदा रहेगी। उनकी आत्मा को शांति मिले।
-नरेंद्र मोदी, सीएम, गुजरात

आज महान शास्त्रीय गायक और पार्श्वगायक मन्ना डे साहब जिन्हें हम सब मन्ना दा कहते थे, वो हमारे बीच नहीं रहे। मुझे जहां तक याद है मन्ना दा के साथ मैंने अनिल विश्वास जी का क्लासिकल गाना गाया था 1947-48 में। वो मेरा उनके साथ पहला गाना था। मन्ना दा बहुत हंसमुख और सरल स्वभाव के इनसान थे। अपने काम के प्रति बहुत समर्पित थे। मैं ईश्वर से प्रार्थना करती हूं कि मन्ना दा की आत्मा को वो शांति दे। मैं मन्ना दा की आत्मा को प्रणाम करती हूं।
-लता मंगेशकर, गायिका

महान गायक मन्ना डे नहीं रहे। आइए उनके लिए प्रार्थना करें। उनके परिवार के लिए मेरी सांत्वना। उनका संगीत 1000 साल तक रहेगा।
-मनोज वाजपेयी, अभिनेता

मन्ना डे के साथ बिताए अपने चार दशकों को याद करते हुए कहते हैं-- वह अपनी जड़ों को नहीं भूले थे। बाहर से सख्त होने के बावजूद वह अंदर से उतने ही नर्म दिल इंसान थे। मछली पकड़ना उनका प्रिय शौक था। उनके बारे में कई लोगों को गलतफहमी थी कि वह बेहद सख्त और रूखे व्यवहार वाले हैं। असल में तो वह अंदर से बेहद नर्म दिल इंसान थे। अगर वह किसी को पसंद करते तो उसके कायल हो जाते और अगर नापसंद करते तो सख्त रहते। वह अजनबियों से घुलते-मिलते नहीं थे।
-दुर्बादल चटर्जी, वाइलिन वादक

मन्ना डे का योगदान बहुत बड़ा है। कितनी पीढ़ी के लिए उन्होंने गाने गाए। कमर्शियल सिनेमा में भी उन्होंने अपने लिए जगह बनाई। पूरे हिन्दुस्तान के म्यूजिक प्रेमियों का नुकसान है।
-मधुर भंडारकर, फिल्म निर्देशक

94 साल तक वो हमारे बीच रहे लेकिन उनकी जिंदगी के चंद आखिरी साल बहुत अकेलेपन में गुज़रे। वो मुंबई से बैंगलोर में बस गए, मुझे एक बार बैंगलोर एयरपोर्ट पर मिले थे। बोले कि उनको लगता है कि अब फिल्म इंडस्ट्री को उनकी ज़रुरत नहीं है। बहुत कम बात करते थे। जब भी वो गाना गाते थे आंखें बंद कर लेते थे। मैंने पूछा तो कहा कि जब कोई तपस्या करता है तो आंखें बंद कर लेता है। गाना मेरे लिए तपस्या है। मैं आंखें बंद करता नहीं हूं, अपने आप बंद हो जाती हैं।
-रजा मुराद, अभिनेता

मन्ना डे जैसे गायक अब नही होंगे। अलग किस्म के गायक थे।
-जावेद अख्तर, गीतकार-लेखक

लोग चले जाते हैं, समय गुज़र जाता है, ध्वनि जीवित रहती है.. अमर हो जाती है !! उनके परिवार को सांत्वना देता हूं। हैरत होती है वो किस तरह अपने गीतों से हमारे जीवन से जुड़ गए थे।
-अमिताभ बच्चन, अभिनेता

मन्ना डे! महान गायक और महान आदमी। एक महान संगीतकार इतिहास में दर्ज हो गया। उनकी आत्मा को शांति मिले
-तलत अजीज, गायक

जब आप ये जानते हैं कि कोई आपको जल्द ही छोड़कर जाने वाला है, तब भी आपका दिल टूट ही जाता है।
-प्रीतिश नंदी, प्रोड्यूसर

मन्ना डे की आवाज बिल्कुल जुदा थी। वो अपने गानों, ए मेरी जोहरा जबी, दिल का हाल सुने दिलवाला और पूछो ना कैसे मैंने से दिलों में जिंदा रहेंगे।
-शबाना आजमी, अभिनेत्री

किशोर कुमार, मो. रपी और मुकेश के बाद आखिर महान सिंगर मन्ना डे भी चले गए। एक चतुर नार से मेरे प्यारे वतन, क्या रेंज थी।
-कुणाल कोहली, निर्देशक

जिंदगी इसी तरह से आती है, जाती है। मन्ना डे ने अपनी पूजा को अपने गले से निकाला।
-निदा फाजली, गीतकार

उनके गाने हमेशा हमारे कानों में गूंजेंगे। हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं।
-महेश भट्ट, निर्माता-निर्देशक

हमारे प्यारे मन्ना दा को जो हर भारतीय के रूह में बसे हैं ...हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि। अब कैसे रैन बीतेंगे बिना मन्ना दा के जो प्यार के सागर थे, जिन्होंने खुद को संगीत जगत के लिए समर्पित किया, दादा ने तो इस वतन को माँ के दिल और नन्ही सी बेटी का प्यार दिया है, हम सभी के पहेली जैसी जिंदगी में अपने आवाज़ की उत्तम नाटकीयता से हसाया भी और करुना भरे स्वर से रुलाया भी, कैसे सजेंगे सुर बिना मन्ना दा के ,मन को पंख कैसे लगाएँगे अब सुर? कौन मीठी धुन में नथनी से टूटे मोती को खोजेगा?...........सजल हैं नयन हमारे .....हाथ दोनों जोड़े ....ससुराल को जाते मन्ना दा बाबुल का घर जो छोड़े! प्रभु मन्ना दा के परिजनों को शक्ति दें और उनके चाहने वालों को साहस की वो सब इस दुःख को सह सकें।
-शारदा सिन्हा, गायिका

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