कोरोना कपोल-कल्पना, गल्प-गॉशिप नहीं है। यह एक जीती-जागती सच्चाई है। अजूबा है! कोरोना! यह नाम कुछ और भी हो सकता था, हो सकता है! इसे कुछ और नाम भी दिया जा सकता था मगर इस की क्षमता पर कोई-न-कोई प्रकृति का नुमाइन्दा इन्सान की क्लास लेने तो आने ही वाला था- यह या इस जैसा!
नोवेल बनाम नोबल कोरोना
नोवेल कोरोना कहीं से भी 'नोबल' नहीं है। इस का अर्थ यह मत समझिये कि इस में नो-बल है; क्योंकि इस में बल बहुत है। सोचिये कि जब यह दिखायी नहीं देता तब इस से विश्व में इतना भय व्याप्त है। अगर यह दिखायी देता तो भय कितना गुना अधिक होता!?
असुर कोरोना
कोरोना एक असुर, एक दानव, एक राक्षस है! अतीत में शुम्भ-निशुम्भ, हिरण्यकशिपु, रावण जैसे न जाने कितने असुर पैदा हुए हैं। यह उसी असुर वंश की वंशावली का नया कलयुगी अवतार है। यह असुरों का नया कलयुगी उत्तराधिकारी है।
विलक्षण कोरोना
कोरोना जन्म से ही विलक्षण है। कोरोना में जन्मपूर्व और जन्मजात विलक्षण लक्षण हैं। इस में अधिकतर दैवीय लक्षण हैं। सच कहा जाय तो जिस प्रकार यह परिणाम दे रहा है, इस के लक्षण को दैवीय तो कतई नहीं कहा जा सकता; बल्कि कुलक्षण कहना ज़्यादा या बिल्कुल सही होगा। इसलिए यह कहा जाय कि इस के पास दैवीय शक्तियाँ हैं जिन का उपयोग वह असुर कार्य के लिए कर रहा है, तो बिल्कुल ग़लत न होगा।
कोरोना के अधिकतर कृत्य जो जन्मपूर्व व शिशुकाल में लक्षित हैं, वे श्रीकृष्ण के जन्मपूर्व, जन्म के साथ, जन्म के बाद की लीलाओं से मेेल खाते हैं। अलबत्ता श्रीकृष्ण भगवान थे, अतः उन्होंने अपनी महाशक्तियों का उपयोग विश्वकल्याण, विश्वरक्षा, अधर्म का नाश, धर्म की रक्षा, धर्म की स्थापना के लिए किया। चूँकि कोरोना असुर है, इसलिए वह अपनी शक्तियों का उपयोग मानव प्रताड़ना और विश्वविनाश के लिए कर रहा है।
अदृश्य कोरोना
कोरोना का एक विशेष विशिष्ट गुण है कि यह दृश्य होकर भी अदृश्य है। इसे विशेष सूक्ष्मदर्शी यन्त्रों से देखा जा सकता है। विशेष भौतिक यन्त्रों से ही इस के लक्षणों की पहचान की जा सकती है। इस के चेहरे, लक्षण और स्वभाव के आकलन किये जा सकते हैं। हालाँकि इस के विविध व बहुरूपिया चरित्र के कारण इस का चेहरे, लक्षण और स्वभाव सभी परिवर्तनशील हैं। इस का कोई एक चरित्र नहीं है, इसलिए यह त्रियाचरित्र से भी ज़्यादा विचित्र है। कहा जाता है कि स्त्री का निर्माण करनेवाले ब्रह्माजी भी उस का चरित्र यानी त्रियाचरित्र नहीं समझ पाये। तो समझ लीजिये कि सृष्टि और ब्रह्माण्ड के जन्मदाता ब्रह्माजी भी इसे नहीं समझ पाये तो आप और हम क्या समझेंगे। इसलिए कोरोना हम सब को कुछ नहीं समझ रहा है। अब आप और हम भगवान भरोसे हैं!
रक्तचरित्र कोरोना
कोरोना जन्म से ही रक्तचरित्र, रक्तपिपासु और रक्तबीज है। इस प्रकार यह उस शैतान देवता की तरह हो गया है जिसे ज़िन्दा रहने के लिए रक्त-ही-रक्त चाहिये। वह रक्तवर्णी है। वह रक्तरंजित है। वह रक्तिम है। जहाँ रक्त-ही-रक्त के अलावा कोई भी रिक्त स्थान नहीं है। इसे जीने के लिए खून, खून, खून और बस खून ही चाहिये। मतलब यह कि यह दुनिया का खून पी रहा है।
बहुरूपिया कोरोना
कोरोना बार-बार अपने चेहरे बदल रहा है। वह कई चेहरों के साथ नरसिंहावतार की तरह भी प्रकट हो रहा है। कोरोना में रूप व लक्षण बदलने की विलक्षण क्षमता है। अतः इसे पहचाना जाना अब मुश्किल हो रहा है। इस अनविजिबल महाबली दैवी शक्तियों से लैस असुर का जो हर क्षण किसी-न-किसी की बलि लिये जा रहा है, को किस प्रकार वश में किया जाय, किसी को समझ नहीं आ रहा। इस के हाथों निरन्तर शहीद हो रहे लोग का बलिदान कहीं व्यर्थ तो नहीं जायेगा?
करामाती कोरोना
करामाती कोरोना की चमत्कारी शक्ति बढ़ती ही जा रही है। अब उस ने तैरना और उड़ना भी शुरू कर दिया है। सुना है कि अभी यह शुरूआती दौर में है। शुरुआती दौर में भी इस की गति बहुत तेज है। आगे और भी तेज होगी इस की गति। कोरोना को कुछ समय पहले जानता कौन था? आज सब जानता है। इसलिए कि इस की गति बहुत तेज है। कमर कस लीजिये, शुरुआती गति है यह, अभी सुपरफास्ट की स्पीड आनेवाली है।
कोरोना वंशावली
अजातशत्रु कोरोना
कोरोना के बारे में कहा जाता है कि जन्म के साथ इस ने अपने पिता को लील लिया था। यह अपने पिता की हत्या का कारण बना था, अतः यह पितृहन्ता है। इस ने अपने पिता की हत्या कर दी थी, अतः यह अजातशत्रु है। प्रयोगशाला में नवरूप में मूर्त्तरूप देकर जन्म दे रहे इस के पिता डॉ. ली वेनलियांग को उस के देश के शासकों ने बेटे कोरोना से पीड़ित होने का हवाला देकर परमगति पर भेज दिया था। यों कोरोना ने पिता के ‘परमार्थ’ के कारण अन्ततोगत्वा सद्गति प्रदान की थी। उस के पिता के परमार्थ का फल कोविड-19 का ‘उपहार’ इन दिनों पूरा विश्व ‘भोग’ रहा है।
कलियुगी सन्तान
कोरोना कलियुग के उन देवताओं की नाज़ायज़ औलाद है जो स्वयं किसी असुर से कम नहीं है। इन्द्र जिस प्रकार स्वर्ग का सिंहासन बचाये रखने के लिए हमेशा येन-केन-प्रकारेण शक्तियाँ अर्जित-वर्द्धित करते रहने में व्यस्त और सजग रहते थे, उसी प्रकार कलियुग के देवताओं ने भी अति उत्साह में ऐसे महाशक्तिशाली असुर को जन्म दे डाला जो उन से भी ज़्यादा शक्तिशाली निकला। जो अलादीन के चिराग के जिन्न की तरह प्रभुत्वशाली था। दुनिया में प्रेत की तरह प्रकट हुआ यह वैताल अगिया-वैताल बन विश्वरूपी सोने की लंका में हनुमानजी की तरह जगह-जगह छलाँग लगाकर आग लगा रहा है। इसलिए दुनिया सोने लायक नहीं रही। दुनिया की आँखों की नीन्द गायब है; क्योंकि विश्व की जीती-जागती दुनिया में आग लग गयी है।
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